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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 321 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सयभिसया भरणीओ, अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य ।
एए छन्नक्खत्ता पन्नरसमुहुत्तसंजोगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 322 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नेव उत्तराइं, पुनव्वसू रोहिणी विसाहा य ।
एए छन्नक्खत्ता, पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 323 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अवसेसा नक्खत्ता, पन्नरसवि हुंति तीसइमुहुत्ता ।
चंदंमि एस जोगो, नक्खत्ताणं मुनेयव्वो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 324 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते कइ अहोरत्ते सूरेण सद्धिं जोगं जोएइ? गोयमा! चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेणं सद्धिं जोगं जोएइ। एवं इमाहिं गाहाहिं नेयव्वं– Translated Sutra: भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र सूर्य के साथ कितने अहोरात्र पर्यन्त योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ४ अहोरात्र एवं ६ मुहूर्त्त पर्यन्त। इन गाथाओं द्वारा नक्षत्र – सूर्ययोग जानना। अभिजित नक्षत्र का सूर्य के साथ ४ अहोरात्र तथा ६ मुहूर्त्त पर्यन्त योग रहता है। शतभिषक्, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 325 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अभिई छच्च मुहुत्ते, चत्तारि य केवले अहोरत्ते ।
सूरेण समं गच्छइ, एत्तो सेसाण वोच्छामि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 326 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सयभिसया भरणीओ, अद्दा असेस साइ जेट्ठा य ।
वच्चंति मुहुत्ते इक्कवीस छच्चेवहोरत्ते ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 327 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नेव उत्तराइं, पुनव्वसू रोहिणी विसाहा य ।
वच्चंति मुहुत्ते, तिन्नि चेव वीसं अहोरत्ते ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 328 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अवसेसा नक्खत्ता, पन्नरसवि सूरसहगया जंति ।
बारस चेव मुहुत्ते, तेरस य समे अहोरत्ते ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३२४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 329 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कुला, कइ उवकुला, कइ कुलोवकुला पन्नत्ता? गोयमा! बारस कुला, बारस उवकुला, चत्तारि कुलोवकुला पन्नत्ता। बारस कुला, तं जहा–धनिट्ठा कुलं उत्तरभद्दवया कुलं अस्सिणी कुलं कत्तिया कुलं मिगसिर कुलं पुस्सो कुलं मघा कुलं उत्तरफग्गुणी कुलं चित्ता कुलं विसाहा कुलं मूलो कुलं उत्तरासाढा कुलं। Translated Sutra: भगवन् ! कुल, उपकुल तथा कुलोपकुल कितने हैं ? गौतम ! कुल बारह, उपकुल बारह तथा कुलोपकुल चार हैं। बारह कुल – धनिष्ठा, उत्तरभाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिर, पुष्य, मघा, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल तथा उत्तराषाढाकुल। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 330 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मासाणं परिणामा, होंति कुला उवकुला उ हेट्ठिमगा ।
होंति पुण कुलोवकुला, अभीइसय अद्द अनुराहा ॥ Translated Sutra: जिन नक्षत्रों द्वारा महीनों की परिसमाप्ति होती है, वे माससदृश नामवाले नक्षत्र कुल हैं। जो कुलों के अधस्तन होते हैं, कुलों के समीप होते हैं, वे उपकुल कहे जाते हैं। वे भी मास – समापक होते हैं। जो कुलों तथा उपकुलों के अधस्तन होते हैं, वे कुलोपकुल कहे जाते हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 331 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बारस उवकुला, तं जहा–सवणो उवकुलं पुव्वभद्दवया उवकुलं रेवई उवकुलं भरणी उवकुलं रोहिणी उवकुलं पुन्नव्वसू उवकुलं अस्सेसा उवकुलं पुव्वफग्गुणी उवकुलं हत्थो उवकुलं साई उवकुलं जेट्ठा उवकुलं पुव्वासाढा उवकुलं। चत्तारि कुलोवकुला तं जहा–अभिई कुलोवकुला सयभिसया कुलोवकुला अद्दा कुलोवकुला अनुराहा कुलोवकुला।
कइ णं भंते! पुण्णिमाओ, कइ अमावसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! बारस पुण्णिमाओ, बारस अमावसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–साविट्ठी पोट्ठवई आसोई कत्तिगी मग्गसिरी पोसी माही फग्गुणी चेत्ती वइसाही जेट्ठामूली आसाढी।
साविट्ठिण्णं भंते! पुण्णिमासिं कइ नक्खत्ता जोगं जोएंति? गोयमा! तिन्नि Translated Sutra: बारह उपकुल – श्रवण, पूर्वभाद्रपदा, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, अश्लेषा, पूर्वफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा तथा पूर्वाषाढा उपकुल। चार कुलोपकुल – अभिजित, शतभिषक्, आर्द्रा तथा अनुराधा कुलोपकुल। भगवन् ! पूर्णिमाएं तथा अमावस्याएं कितनी हैं ? गौतम ! बारह पूर्णिमाएं तथा बारह अमावस्याएं हैं, जैसे – श्राविष्ठी, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 332 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वासाणं भंते! पढमं मासं कइ नक्खत्ता नेंति? गोयमा! चत्तारि नक्खत्ता नेंति, तं जहा–उत्तरासाढा अभिई सवणो धणिट्ठा। उत्तरासाढा चउद्दस अहोरत्ते नेइ। अभिई सत्त अहोरत्ते नेई। सवणो अट्ठ अहोरत्ते णेई। धनिट्ठा एगं अहोरत्तं नेइ। तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अनुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पया चत्तारि य अंगुला पोरिसी भवइ।
वासाणं भंते! दोच्चं मासं कइ नक्खत्ता नेंति? गोयमा! चत्तारि, तं जहा–धनिट्ठा सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया। धनिट्ठा णं चउद्दस अहोरत्ते नेइ। सयभिसया सत्त। पुव्वाभद्दवया अट्ठ। उत्तराभद्दवया एगं। तंसि च णं मासंसि अट्ठंगुलपोरिसीए Translated Sutra: भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के श्रावण मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! चार – उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण तथा धनिष्ठा। उत्तराषाढा नक्षत्र श्रावण मास के १४ अहोरात्र, अभिजित नक्षत्र ७ अहोरात्र, श्रवण नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है। उस मास में सूर्य चार अंगुल | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 333 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जोगो देवय तारग्ग, गोत्त संठाण चंदरविजोगो ।
कुल पुण्णिम अवमंसा, नेया छाया य बोद्धव्वा ॥ Translated Sutra: योग, देवता, तारे, गोत्र, संस्थान, चन्द्र – सूर्य – योग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या, छाया – इनका वर्णन उपर्युक्त है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 334 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हिट्ठिं ससिपरिवारो, मंदरबाहा तहेव लोगंते ।
धरणितलाउ अबाहा, अंतो बाहिं च उड्ढमहे ॥ Translated Sutra: सोलह द्वार क्रमशः इसी प्रकार है – चन्द्र तथा सूर्य के तारा विमानों के अधिष्ठातृ – देवों, चन्द्र – परिवार, मेरु से ज्योतिश्चक्र के अन्तर, लोकान्त से ज्योतिश्चक्र के अन्तर, भूतल से ज्योतिश्चक्र के अन्तर तथा छठा द्वार – नक्षत्र अपने चार क्षेत्र के भीतर, बाहर या ऊपर चलते हैं ? इस सम्बन्ध में वर्णन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 335 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संठाणं च पमाणं, वहंति सीहगई इड्ढिमंता य ।
तारंतरग्गमहिसी, तुडिय पहु ठिई य अप्पबहू ॥ Translated Sutra: ज्योतिष्क विमानों के संस्थान, ज्योतिष्क देवों की संख्या, चन्द्र आदि देवों के विमानों को करनेवाले देव, देवगति, देवऋद्धि, ताराओं के पारस्परिक अन्तर, चन्द्र आदि की अग्रमहिषियों, आभ्यन्तर परिषत् एवं देवियों के साथ भोग – सामर्थ्य, ज्योतिष्क देवों के आयुष्य तथा सोलहवाँ द्वार – ज्योतिष्क देवों के अल्पबहुत्व का | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 336 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! चंदिमसूरियाणं हिट्ठिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? हंता गोयमा! तं चेव उच्चारेयव्वं। Translated Sutra: भगवन् ! क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र तथा सूर्य के अधस्तन प्रदेशवर्ती तारा विमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र एवं सूर्य के अणु – हीन हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र आदि के विमानों के समश्रेणीवर्ती तथा उपरितन प्रदेशवर्ती ताराविमानों | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 337 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं जहा-जहा णं तेसिं देवाणं तवणियम-बंभचेराइं ऊसियाइं भवंति, तहा-तहा णं तेसि णं देवाणं एवं पन्नायए, तं जहा–अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। जहा-जहा णं तेसिं देवाणं तव नियम बंभचेराइं नो ऊसि-याइं भवंति तहा-तहा णं तेसिं देवाणं एवं नो पन्नायए, तं जहा–अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। Translated Sutra: भगवन् ! ऐसा किस कारण से है ? गौतम ! पूर्व भव में उन ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों का तप आचरण, नियमानुपालन तथा ब्रह्मचर्य – सेवन जैसा – जैसा उच्च या अनुच्च होता है, तदनुरूप उनमें द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र आदि से हीनता – या तुल्यता होती है। पूर्व भव में उन देवों का तप आचरण नियमानुपालन, ब्रह्मचर्य – सेवन | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 338 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! चंदस्स केवइया महग्गहा परिवारो, केवइया नक्खत्ता परिवारो, केवइया तारागणकोडाकोडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठासीइमहग्गहा परिवारो, अट्ठवीसं नक्खत्ता परिवारो, छावट्ठिसहस्साइं नव सया पण्णत्तरा तारागणकोडाकोडीणं पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! एक एक चन्द्र का महाग्रह – परिवार, नक्षत्र – परिवार तथा तारागण – परिवार कितना कोड़ाकोड़ी है? गौतम ! प्रत्येक चन्द्र का परिवार ८८ महाग्रह है, २८ नक्षत्र है तथा ६६९७५ कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 339 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए जोइसं चारं चरइ? गोयमा! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ।
लोगंताओ णं भंते! केवइयाए अबाहाए जोइसे पन्नत्ते? गोयमा! एक्कारस एक्कारसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसे पन्नत्ते।
धरणितलाओ णं भंते! [केवतियं अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति? केवतियं अबाहाए सूरविमाने चारं चरति? केवतियं अबाहाए चंदविमाने चारं चरति? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति? गोयमा!] सत्तहिं णउएहिं जोयणसएहिं जोइसे चारं चरइ। एवं सूरविमाने अट्ठहिं सएहिं, चंदविमाने अट्ठहिं असीएहिं, उवरिल्ले तारारूवे णवहिं जोयणसएहिं चारं चरइ।
जोइसस्स Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से कितने अन्तर पर गति करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी पर। ज्योतिश्चक्र – लोकान्त से अलोक से पूर्व ११११ योजन के अन्तर पर स्थित है। अधस्तन ज्योतिश्चक्र धरणितल से ७९० योजन की ऊंचाई पर गति करता है। इसी प्रकार सूर्यविमान धरणीतल से ८०० योजन की ऊंचाई पर, चन्द्र विमान ८८० योजन की | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 340 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्लं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वबाहिरं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वहिट्ठिल्लं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरइ? गोयमा! अभिई नक्खत्ते सव्वब्भंतरं चारं चरइ, मूलो सव्वबाहिरं चारं चरइ, भरणी सव्वहिट्ठिल्लगं चारं चरइ, साई सव्वुवरिल्लं चारं चरइ।
चंदविमाने णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! अद्धकविट्ठसंठाणसंठिए सव्वफालियामए अब्भुग्गयमूसियपहसिए एवं सव्वाइं नेयव्वाइं।
चंदविमाने णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं? केवइयं बाहल्लेणं? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में अठ्ठाईस नक्षत्रों में कौन सा नक्षत्र सर्व मण्डलों के भीतर, कौन सा नक्षत्र समस्त मण्डलों के बाहर, कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे और कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है ? गौतम ! अभिजित नक्षत्र सर्वाभ्यन्तर – मण्डल में से, मूल नक्षत्र सब मण्डलों के बाहर, भरणी नक्षत्र सब | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 341 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छप्पन्नं खलु भाए, विच्छिण्णं चंदमंडलं होइ ।
अट्ठावीसं भाए, बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ Translated Sutra: गौतम ! चन्द्रविमान ५६/६१ योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा २८/६१ योजन ऊंचा है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 342 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अडयालीसं भाए, विच्छिण्णं सूरमंडलं होइ ।
चउवीसं खलु भाए, बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ Translated Sutra: सूर्यविमान ४८/६१ योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा २४/६१ योजन ऊंचा है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 343 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दो कोसे य गहाणं, नक्खत्ताणं तु हवइ तस्सद्धं ।
तस्सद्धं ताराणं, तस्सद्धं चेव बाहल्लं ॥ Translated Sutra: ग्रहों, नक्षत्रों तथा ताराओं के विमान क्रमशः २ कोश, १ कोश तथा १/२ कोश विस्तीर्ण हैं। ऊंचाई उन से आधी होती है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 344 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमानं भंते! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति? गोयमा! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति–चंदविमानस्स णं पुरत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतल विमलनिम्मलदहिधण गोखीर फेण रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउट्ठ वट्ट पीवरसु-सिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पल-पत्तमउयसूमालतालुजीहाणं महुगुलियपिंगलक्खाणं पीवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसय-सुहुमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं ऊसिय सुणमिय सुजाय अप्फोडिय नंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं वइरामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्ज जोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव परिवहन करते हैं ? गौतम ! सोलह हजार, चन्द्रविमान के पूर्व में श्वेत, सुभग, जनप्रिय, सुप्रभ, शंख के मध्यभाग, जमे हुए दहीं, गाय के दूध के झाग तथा रजतनिकर, उज्ज्वल दीप्तियुक्त, स्थिर, लष्ट, प्रकोष्ठक, वृत्त, पीवर, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, तीक्ष्ण, दंष्ट्राओं प्रकटित मुखयुक्त, रक्तोत्पल, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 345 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोलसदेवसहस्सा, हवंति चंदेसु चेव सूरेसु ।
अट्ठेव सहस्साइं, एक्केक्कंमी गहविमाने ॥ Translated Sutra: चार – चार हजार सिंहरूपधारी देव, चार – चार हजार गजरूपधारी देव, चार – चार हजार वृषभरूपधारी देव तथा चार – चार हजार अश्वरूपधारी देव – कुल सोलह हजार देव सूर्य विमानों का परिवहन करते हैं। ग्रहों के विमानों का दो – दो हजार सिंहरूपधारी देव, दो – दो हजार गजरूपधारी देव, दो – दो हजार वृषभरूपधारी देव और दो – दो हजार अश्वरूपधारी | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 346 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि सहस्साइं, नक्खत्तंमि य हवंति इक्किक्के ।
दो चेव सहस्साइं, तारारूवेक्कमेक्कंमि ॥ Translated Sutra: नक्षत्रों के विमानों का एक – एक हजार सिंहरूपधारी देव, एक – एक हजार गजरूपधारी देव, एक – एक हजार वृषभरूपधारी देव एवं एक – एक हजार अश्वरूपधारी देव – कुल चार – चार हजार देव परिवहन करते हैं। तारों के विमानों का पाँच – पाँच सौ सिंहरूपधारी देव, पाँच – पाँच सौ गजरूपधारी देव, पाँच – पाँच सौ वृषभरूपधारी देव तथा पाँच – पाँच | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 347 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सूरविमानाणं जाव तारारूवविमानाणं, नवरं–एस देवसंघाए। Translated Sutra: उपर्युक्त चन्द्र – विमानों के वर्णन के अनुरूप सूर्य – विमान यावत् तारा – विमानों का वर्णन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 348 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चंदिम सूरियगहगण नक्खत्त तारारूवाणं कयरे सव्वसिग्घगई? कयरे सव्वसिग्घ-गईतराए चेव? गोयमा! चंदेहिंतो सूरा सव्वसिग्घगई, सूरेहिंतो गहा सिग्घगई, गहेहिंतो नक्खत्ता सिग्घगई, नक्खत्तेहिंतो तारारूवा सिग्घगई, सव्व प्पगई, चंदा, सव्वसिग्घगई तारारूवा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों में कौन सर्वशीघ्रगति हैं ? कौन सर्वशीघ्रतर गतियुक्त हैं ? गौतम ! चन्द्रों की अपेक्षा सूर्य, सूर्यों की अपेक्षा ग्रह, ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्र तथा नक्षत्रों की अपेक्षा तारे शीघ्र गतियुक्त हैं। इनमें चन्द्र सबसे अल्प या मन्दगतियुक्त हैं तथा तारे सबसे | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 349 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवाणं कयरे सव्वमहिड्ढिया? कयरे सव्वप्पिड्ढिया? गोयमा! तारारूवेहिंतो नक्खत्ता महिड्ढिया, नक्खत्तेहिंतो गहा महिड्ढिया, गहेहिंतो सूरिया महिड्ढिया, सूरेहिंतो चंदा महिड्ढिया, सव्वप्पिड्ढिया तारारूवा, सव्वमहिड्ढिया चंदा। Translated Sutra: इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों मैं कौन सर्वमहर्द्धिक है ? कौन सबसे अल्प ऋद्धिशाली हैं ? गौतम! तारों से नक्षत्र, नक्षत्रों से ग्रह, ग्रहों से सूर्य तथा सूर्यों से चन्द्र अधिक ऋद्धिशाली हैं। तारे सबसे कम ऋद्धिशाली तथा चन्द्र सबसे अधिक ऋद्धिशाली हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 350 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे ताराए य ताराए य केवइए, अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–वाघाइए य निव्वाघाइए य। निव्वाघाइए जहन्नेणं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेणं दो गाउयाइं। वाघाइए जहन्नेणं दोन्नि छावट्ठे जोयणसए, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साइं दोन्नि य बायाले जोयणसए तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में एक तारे से दूसरे तारे का कितना अन्तर है ? गौतम ! अन्तर दो प्रकार का है – व्याघातिक और निर्व्याघातिक। एक तारे से दूसरे तारे का निर्व्याघातिक अन्तर जघन्य ५०० धनुष तथा उत्कृष्ट २ गव्यूत है। एक तारे से दूसरे तारे का व्याघातिक अन्तर जघन्य २६६ योजन तथा उत्कृष्ट १२२४२ योजन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 351 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिनाभा अच्चिमाली पभंकरा। तओ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारो पण्णत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नं देवीसहस्सं परिवारो विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवी सहस्सा। सेत्तं तुडिए।
पभू णं भंते! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाने चंदाए रायहानीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धिं महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घण मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के इन्द्र, ज्योतिष्क देवों के राजा चन्द्र के कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? गौतम ! चार – चन्द्रप्रभा, ज्योत्सनाभा, अर्चिमाली तथा प्रभंकरा। उनमें से एक – एक अग्रमहिषी का चार – चार हजार देवी – परिवार है। एक – एक अग्रमहिषी अन्य सहस्र देवियों की विकुर्वणा करने में समर्थ होती है। यों विकुर्वणा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 352 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इंगालए वियालए लोहितक्खे सणिच्छरे चेव ।
आहुणिए पाहुणिए, कनगसणामा य पंचेव ॥ Translated Sutra: अङ्गारक, विकालक, लोहिताङ्ग, शनैश्चरस आधुनिक, प्राधुनिक, कण, कणक, कणकणक, कणवित्तानक, कणसन्तानक, सोम, सहित, आश्वासन, कार्योपग, कुर्बुरक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, शंखवर्णाभ – । यों भावकेतु पर्यन्त ग्रहों का उच्चारण करना। उन सबकी अग्रमहिषियाँ उपर्युक्त नामों की हैं। सूत्र – ३५२–३५४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 353 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोमे सहिए आसासणे य कज्जोवए य कब्बडए ।
अयकरए दुंदुभए, संखसनामेवि तिन्नेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५२ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 354 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं भाणियव्वं जाव भावकेउस्स अग्गमहिसीओ। Translated Sutra: देखो सूत्र ३५२ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 355 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं।
चंदविमाने णं देवीणं जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिमब्भहियं
सूरविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं।
सूरविमाने देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अब्भहियं।
गहविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं।
गहविमाने देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं।
नक्खत्तविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र – विमान में देवों की स्थिति कितने काल की होती है ? गौतम ! चन्द्र – विमान में देवों की स्थिति जघन्य – १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम, देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट – पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम होती है। सूर्य – विमान में देवों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 356 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बम्हा विण्हू य वसू, वरुणे अय विद्धी पूस आस जमे ।
अग्गि पयावइ सोमे, रुद्दे अदिई वहस्सई सप्पे ॥ Translated Sutra: नक्षत्रों के अधिदेवता – इस प्रकार हैं – अभिजित के ब्रह्मा, श्रवण के विष्णु, धनिष्ठा के वसु, शतभिषक् के वरुण, पूर्वभाद्रपदा के अज, उत्तरभाद्रपदा के वृद्धि, रेवती के पूषा, अश्विनी के अश्व, भरणी के यम, कृत्तिका के अग्नि, रोहिणी के प्रजापति, मृगशिर के सोम, आर्द्रा के रुद्र, पुनर्वसु के अदिति, पुष्य के बृहस्पति और अश्लेषा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 357 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पिउ भग अज्जम सविया, तट्ठा वाऊ तहेव इंदग्गी ।
मित्ते इंदे णिरई, आऊ विस्सा य बोद्धव्वे ॥ Translated Sutra: मघा के पिता, पूर्वफाल्गुनी के भग, उत्तरफाल्गुनी के अर्यमा, हस्त के सविता, चित्रा के त्वष्टा, स्वाति के वायु, विशाखा के इन्द्राग्नी, अनुराधा के मित्र, ज्येष्ठा के इन्द्र, मूल के निर्ऋति, पूर्वाषाढा के आप तथा उत्तराषाढा के अधिदेवता विश्वे हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 358 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा संगहणी गाहा। Translated Sutra: यह संग्रहणी गाथाएं हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 359 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! चंदिम सूरिया दुवे तुल्ला सव्वत्थोवा, नक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, तारारूवा संखेज्जगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा ताराओं में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य तथा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चन्द्र और सूर्य तुल्य हैं। वे सबसे कम हैं। उनसे नक्षत्र संख्येय गुण हैं। नक्षत्रों से ग्रह संख्येय गुने हैं। ग्रहों से तारे संख्येय गुने हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 360 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जहन्नपए वा उक्कोसपए वा केवइया तित्थयरा सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहण्णपए चत्तारि, उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थयरा सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नपए चत्तारि, उक्कोसपए तीसं चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
बलदेवा तत्तिया चेव जत्तिया चक्कवट्टी, वासुदेवावि तत्तिया चेव।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया णिहिरयणा सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि छलुत्तरा निहिरयणसया सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया निहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में जघन्य तथा उत्कृष्ट कितने तीर्थंकर हैं ? गौतम ! जघन्य चार तथा उत्कृष्ट चौंतीस तीर्थंकर होते हैं। जम्बूद्वीप में चक्रवर्ती कम से कम चार तथा अधिक से अधिक तीस होते हैं। जितने चक्रवर्ती होते हैं, उतने ही बलदेव होते हैं, वासुदेव भी उतने ही होते हैं। जम्बूद्वीप में निधि – रत्न ३०६ होते हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 361 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया पंचिंदियरयणसया सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! दो दसुत्तरा पंचिंदिय-रयणसया सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जहन्नपए वा उक्कोसपए वा केवइया पंचिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! जहन्नपए अट्ठावीसं, उक्कोसपए दोन्नि दसुत्तरा पंचिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया एगिंदियरयणसया सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! दो दसुत्तरा एगिंदियरयणसया सव्वग्गेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ पञ्चेन्द्रिय – रत्न होते हैं ? २१० हैं। उसमें – कम से कम २८ और अधिक से अधिक २१० पञ्चेन्द्रिय – रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 362 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! जहन्नपए अट्ठावीसं उक्कोसेणं दोन्नि दसुत्तरा एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं उव्वेहेणं, केवइयं उड्ढं उच्च-त्तेणं, केवइयं सव्वग्गेणं पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्निय कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस य अंगुलाइं अद्धंगुलं च किंचिविसे-साहियं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, नवनउइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ एकेन्द्रिय रत्न होते हैं ? २१० हैं। उसमें – कम से कम २८ तथा अधिक से अधिक २१० एकेन्द्रिय – रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप की लम्बाई – चौड़ाई, परिधि, भूमिगत गहराई, ऊंचाई कितनी है ? गौतम ! जम्बूद्वीप की लम्बाई – चौड़ाई १,००,००० योजन तथा परिधि ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 363 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे किं पुढविपरिणामे? आउपरिणामे? जीवपरिणामे? पोग्गलपरिणामे? गोयमा! पुढविपरिणामेवि आउपरिणामेवि जीवपरिणामेवि पोग्गलपरिणामेवि।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए आउकाइयत्ताए तेउकाइयत्ताए वाउकाइयत्ताए वणस्सइकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप पृथ्वी – परिणाम है, अप् – परिणाम है, जीव – परिणाम है, पुद्गलपरिणाम है ? गौतम! पृथ्वी, जल, जीव तथा पुद्गलपिण्डमय भी है। भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सर्वप्राण, सर्वजीव, सर्वभूत, सर्वसत्त्व – ये सब पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वकाल में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 364 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहवे जंबूरुक्खा जंबूवणा जंबूवनसंडा निच्चं कुसुमिया जाव पडिमंजरिवडेंसगधरा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। जंबूए सुदंसणाए अनाढिए नामं देवे महिड्ढिए जाव पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप ‘जम्बूद्वीप’ क्यों कहलाता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में स्थान – स्थान पर बहुत से जम्बू वृक्ष हैं, जम्बू वृक्षों से आपूर्ण वन हैं, वन – खण्ड हैं – वे अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मञ्जरियों के रूप में मानो शिरोभूषण – धारण किये रहते हैं। वे अपनी श्री द्वारा अत्यन्त शोभित होते हुए स्थित हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 365 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे मिहिलाए नयरीए माणिभद्दे चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं मज्झगए एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ जंबूदीवपन्नत्ती नाम अज्जो! अज्झयणे अट्ठं च हेउं च पसिणं च कारणं च वागरणं च भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइ Translated Sutra: आर्य जम्बू ! मिथिला नगरी में मणिभद्र चैत्य में बहुत – से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों, श्राविकाओं, देवों, देवियों की परिषद् के बीच श्रमण भगवान् महावीर ने शस्त्रपरिज्ञादि को ज्यों श्रुतस्कन्धादि में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का आख्यान किया – भाषण किया, निरूपण किया, प्ररूपण किया। विस्मरणशील श्रोतृवृन्द पर | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 242 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दप्पण भद्दासण वद्धमाण वरकलस मच्छ सिरिवच्छा ।
सोत्थिय नंदावत्ता लिहित्ता अट्ठट्ठ मंगलगा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૧ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 243 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] काऊण करेइ उवयारं, किं ते? पाडल मल्लिय चंपग असोग पुन्नाग चूयमंजरि नवमालिय बकुल तिलग कणवीर कुंद कोज्जय कोरंट पत्त दमनग वरसुरभिगंधगंधियस्स कयग्गहिय करयलपब्भट्ठ-विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमनिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभ रयण वइर वेरुलियविमलदंडं कंचनमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टिं विनिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेत्तु पयते धुवं दाऊण जिनवरिंदस्स सत्तट्ठपयाइं ओसरित्ता दसंगुलियं अंजलिं करिय मत्थयंसि पयओ अट्ठसयविसुद्धगंथ-जुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुनरुत्तेहिं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૧ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 244 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सक्के देविंदे देवराया पंच सक्के विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे सक्के भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के वज्जपाणी पुरओ पकड्ढइ।
तए णं से सक्के देविंदे देवराया चउरासीईए सामानियसाहस्सीहिं जाव अन्नेहि य बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइस वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनणयरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवने Translated Sutra: ત્યારપછી તે દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રએ પાંચ શક્ર રૂપો. વિકુર્વ્યા – વિકુર્વીને એક શક્રે તીર્થંકર ભગવંતને બે હાથના સંપુટ વડે ગ્રહણ કર્યા, એક શક્રે પાછળ છત્ર ધારણ કર્યું. બે શક્રો બંને બાજુ ચામર વીંઝે છે. એક શક્ર હાથમાં વજ્ર લઈ આગળ ચાલે છે. ત્યારપછી તે શક્ર ૮૪,૦૦૦ સામાનિકોથી યાવત્ બીજા ભવનપતિ, વાણવ્યંતર, જ્યોતિષ્ક | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Gujarati | 245 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता! पुट्ठा।
ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु लवणे समुद्दे। एवं लवणसमुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्ठा भाणियव्वा।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति, अत्थेगइया नो पच्चायंति।
एवं लवणसमुद्दस्सवि जंबुद्दीवे दीवे नेयव्वं। Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પ્રદેશો લવણસમુદ્રને પૃષ્ઠ છે ? હા, ગૌતમ ! સ્પૃષ્ટ છે. ભગવન્ ! શું તે જંબૂદ્વીપના પ્રદેશ કહેવાય કે લવણસમુદ્રના કહેવાય ? ગૌતમ ! તે પ્રદેશો જંબૂદ્વીપ દ્વીપના જ કહેવાય છે, લવણસમુદ્રના કહેવાતા નથી. એ પ્રમાણે લવણસમુદ્રના પ્રદેશો પણ જંબૂદ્વીપ દ્વીપને સ્પૃષ્ટ છે, એ પ્રમાણે કહેવું. ભગવન્ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Gujarati | 246 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खंडा जोयण वासा, पव्वय कूडा य तित्थ सेढीओ ।
विजय द्दह सलिलाओ य, पिंडए होइ संगहणी ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૪૬. ખંડ, યોજન, વર્ષક્ષેત્ર, પર્વત, કૂટ, તીર્થ, શ્રેણી, વિજય, દ્રહ તથા નદીઓની આ સંગ્રહણી ગાથા છે. સૂત્ર– ૨૪૭. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્ર પ્રમાણ માત્ર ખંડ કરાતા ખંડગણિતથી કેટલા ખંડ થાય છે ? ગૌતમ ! ખંડ ગણિતથી ૧૯૦ ખંડ કહેલ છે. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપ યોજન ગણિતથી કેટલા યોજન પ્રમાણ કહેલ છે ? ગૌતમ ! સૂત્ર– |