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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 262 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तया णं भंते! किंसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढीमुहकलंबुया-पुप्फसंठाणसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता– अंतो संकुया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासे णं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति– पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अनवट्ठियाओ हवंति, तं जहा–सव्वब्भंतरिया चेव बाहा, सव्वबाहिरिया चेव बाहा।
तीसे णं सव्वब्भंतरीया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिन्नि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं।
से णं भंते! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा? गोयमा! जे णं मंदरस्स Translated Sutra: भगवन् ! तब अन्धकार – स्थिति कैसी होती है ? गौतम ! अन्धकार – स्थिति तब ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प का संस्थान लिये होती है। वह भीतर संकीर्ण, बाहर विस्तीर्ण इत्यादि होती है। उसकी सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में ६३२४ – ६/१० योजन – प्रमाण है। जो पर्वत की परिधि है, उसे दो से गुणित किया जाए, गुणनफल को दस | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 263 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! तं चेव जाव दीसंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि या मज्झंतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुहुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता तं चेव जाव उच्चत्तेणं।
जइ णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि या मज्झंतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुहुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं, कम्हा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति जाव अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य (दो) उद्गमन – मुहूर्त्त में – स्थानापेक्षया दूर होते हुए भी द्रष्टा की प्रतीति की अपेक्षा से समीप दिखाई देते हैं ? मध्याह्न – काल में समीप होते हुए भी क्या वे दूर दिखाई देते हैं ? अस्तमन – वेलामें दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं ? हा गौतम ! ऐसा ही है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 264 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया किं तीतं खेत्तं गच्छंति? पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति? अनागयं खेत्तं गच्छंति? गोयमा! नो तीतं खेत्तं गच्छंति, पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति, नो अनागयं खेत्तं गच्छंति।
तं भंते! किं पुट्ठं गच्छंति? अपुट्ठं गच्छंति? गोयमा! पुट्ठं गच्छंति, नो अपुट्ठं गच्छंति।
तं भंते! किं ओगाढं गच्छंति? अणोगाढं गच्छंति? गोयमा! ओगाढं गच्छंति, नो अनोगाढं गच्छंति।
तं भंते! किं अनंतरोगाढं गच्छंति? परंपरोगाढं गच्छंति? गोयमा! अनंतरोगाढं गच्छंति, नो परंपरोगाढं गच्छंति।
तं भंते! किं अणुं गच्छंति? बायरं गच्छंति? गोयमा! अणुंपि गच्छंति, बायरंपि गच्छंति।
तं भंते! किं उड्ढं Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य अतीत – क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं अथवा प्रत्युत्पन्न या अनागत क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे केवल वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं या अस्पर्शपूर्वक ? गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 265 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जइ? पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ? अनागए खेत्ते किरिया कज्जइ? गोयमा! नो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, नो अनागए खेत्ते किरिया कज्जइ।
सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव नियमा छद्दिसिं। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्यों द्वारा अवभासन आदि क्रिया क्या अतीत क्षेत्र में, या प्रत्युत्पन्न – क्षेत्र में अथवा अनागत क्षेत्र में की जाती है ? गौतम ! अवभासन आदि क्रिया प्रत्युत्पन्न क्षेत्र में ही की जाती है। सूर्य अपने तेज द्वारा क्षेत्र – स्पर्शन पूर्वक अवभासन आदि क्रिया करते हैं। वह अवभासन आदि क्रिया | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 266 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उड्ढं तवयंति अहे तिरियं च? गोयमा! एगं जोयणसयं उड्ढं तवयंति, अट्ठारस जोयणसयाइं अहे तवयंति, सीयालीसं जोयणसहस्साइं दोन्नि य तेवट्ठे जोयणसए एगवीसं च सट्ठिभाए जोयणस्स तिरियं तवयंति। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने क्षेत्र को ऊर्ध्वभाग में, अधोभाग में तथा तिर्यक् भाग में तपाते हैं ? गौतम! ऊर्ध्वभाग में १०० योजन क्षेत्र को, अधोभाग में १८०० योजन क्षेत्र को तथा तिर्यक् भाग में ४७२६३ – २१/६० योजन क्षेत्र को अपने तेज से तपाते हैं – | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 267 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, चारट्ठिइया गइरइया गइसमावन्नगा? गोयमा! अंतो णं मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय गहगण-नक्खत्त तारारूवा ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठिइया, गइरइया गइसमा-वण्णगा उड्ढीमुह-कलंबुया-पुप्फसंठाण-संठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं Translated Sutra: भगवन् ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं तारे – ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पातीत हैं ? कल्पोपपन्न हैं, चारोपपन्न हैं, चारस्थितिक हैं, गतिरतिक हैं – या गति समापन्न हैं ? गौतम ! मानुषोत्तर ज्योतिष्क देव विमानोत्पन्न हैं, चारोपपन्न हैं, गतिरतिक हैं, गतिसमापन्न हैं। ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प के आकारमें | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 268 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणिं पकरेंति? गोयमा! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव तत्थण्णे इंदे उववण्णे भवइ।
इंदट्ठाणे णं भंते! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासे उववाएणं विरहिए।
बहिया णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवा, तं चेव नेयव्वं, नाणत्तं– विमानोववन्नगा, नो चारोववन्नगा, चारट्ठिइया, नो गइरइया नो गइसमावन्नगा पक्किट्टगसंठाणसंठिएहिं जोयणसयसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, सयसाहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट Translated Sutra: भगवन् ! उन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र जब च्युत हो जाता है, तब इन्द्रविरहकाल में देव किस प्रकार काम चलाते हैं ? गौतम ! चार या पाँच सामानिक देव मिल कर इन्द्रस्थान का संचालन करते हैं। इन्द्र का स्थान कम एक समय तथा अधिक से अधिक छह मास तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है। मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती ज्योतिष्क | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 269 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! चंदमंडला पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस चंदमंडला पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया चंदमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता पंच चंदमंडला पन्नत्ता।
लवणे णं भंते! पुच्छा। गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं दस चंदमंडला पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे पन्नरस चंदमंडला भवंतीतिमक्खायं। Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र – मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १५ हैं। जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र अवगाहन कर पाँच चन्द्र – मण्डल है। लवणसमुद्रमें ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दस चन्द्र – मण्डल हैं। यों कुल १५ चन्द्र – मण्डल होते हैं | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 270 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वब्भंतराओ णं भंते! चंदमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल से सर्वबाह्य चन्द्र – मण्डल अबाधित रूप में कितनी दूरी पर है। गौतम ! ५१० योजन की दूरी पर है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 271 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदमंडलस्स णं भंते! चंदमंडलस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! पणतीसं-पणतीसं जोयणाइं तीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाभाए चंदमंडलस्स-चंदमंडलस्स अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! एक चन्द्र – मण्डल का दूसरे चन्द्र – मण्डल से कितना अन्तर है ? गौतम ! ३५ – ३०/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के सात भागों में चार भाग योजनांश परिमित अन्तर है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 272 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदमंडले णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! छप्पन्नं एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयामविक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अट्ठावीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स बाहल्लेणं। Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई, परिधि तथा ऊंचाई कितनी है ? गौतम ! लम्बाई – चौड़ाई ५६/६१ योजन, परिधि उससे कुछ अधिक तीन गुनी तथा ऊंचाई २८/६१ योजन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 273 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्भंतरए चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे चंदमंडले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरानंतरे चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य छप्पन्ने जोयणसए पणवीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाभाए अबाहाए अब्भंतरानंतरे चंदमंडले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४४८२० योजन की दूरी पर है। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से दूसरा आभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल ४४८५६ – २५/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से ४ भाग योजनांश की दूरी पर है। इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 274 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वब्भंतरे णं भंते! चंदमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं छच्चचत्ताले जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसहस्साइं पन्नरस जोयणसयसहस्साइं अउणानउइं च जोयणाइं किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते।
अब्भंतरानंतरे सा चेव पुच्छा। गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं सत्त य बारसुत्तरे जोयणसए एगावन्नं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुण्णियाभागं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसयसहस्साइं पन्नरस सहस्साइं तिन्नि य एगूनवीसे जोयणसए किंचि-विसेसाहिए परिक्खेवेणं।
अब्भंतरतच्चे णं जाव पन्नत्ते? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई तथा परिधि कितनी है ? गौतम ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९६४० योजन तथा उसकी परिधि कुछ अधिक ३१५०८९ योजन है। द्वितीय आभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९७१२ – ५१/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से १ भाग | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 275 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! चंदे सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साइं तेवत्तरिं च जोयणाइं सत्तत्तरिं च चोयाले भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहिं सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता। तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स चंदे चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ।
जया णं भंते! चंदे अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साइं सत्तत्तरिं च जोयणाइं छत्तीसं च चोवत्तरे भागसए गच्छइ Translated Sutra: भगवन् ! जब चन्द्र सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब वह प्रतिमुहूर्त्त कितना क्षेत्र पार करता है ? गौतम ! ५०७३ – ७७४४/१३७२५ योजन। तब वह यहाँ स्थित मनुष्यों को ४७२६३ – २१/६१ योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। जब चन्द्र दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब प्रतिमुहूर्त्त ५०७७ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 276 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहेत्ता, एत्थ णं दो नक्खत्तमंडला पन्नत्ता।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहेत्ता केवइयं नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं छ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे अट्ठ नक्खत्तमंडला भवंतीतिमक्खायं।
सव्वब्भंतराओ णं भंते! नक्खत्तमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए नक्खत्तमंडले पन्नत्ते? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! नक्षत्रमण्डल कितने बतलाये हैं ? गौतम ! आठ। जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दो नक्षत्रमण्डल हैं। लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर छ नक्षत्रमण्डल हैं। सर्वाभ्यन्तर नक्षत्र – मण्डल से सर्वबाह्य नक्षत्रमण्डल ५१० योजन की अव्यवहित दूरी पर है। एक नक्षत्रमण्डल से दूसरे नक्षत्रमण्डल | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 277 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिणपडीणमागच्छंति, दाहिणपडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीणमागच्छंति, पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीण -पाईणमागच्छंति? हंता गोयमा! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे जाव णेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपन्नत्ती सूरप-ण्णत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता भवइ।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे चंदिमा उदीण-पाईणमुग्गच्छइ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपन्नत्ती चंदपन्नत्ती Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य – ईशान कोण में उदित होकर क्या आग्नेय कोण में अस्त होते हैं, आग्नेय कोण में उदित होकर नैर्ऋत्य कोण में अस्त होते हैं, नैर्ऋत्य कोण में उदित होकर वायव्य कोण में अस्त होते हैं, वायव्य कोण में उदित होकर ईशान कोण में अस्त होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 278 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! संवच्छरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच संवच्छरा पन्नत्ता, तं जहा–नक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सनिच्छरसंवच्छरे।
नक्खत्तसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुवालसविहे पन्नत्ते, तं जहा–सावणे भद्दवए आसोए कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चेत्ते वइसाहे जेट्ठामूले आसाढे, जं वा विहप्फइ महग्गहे दुवालसेहिं संवच्छरेहिं सव्वनक्खत्तमंडलं समानेइ। सेत्तं नक्खत्तसंवच्छरे।
जुगसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–चंदे चंदे अभिवड्ढिए चंदे अभिवड्ढिए चेव।
पढमस्स णं भंते! चंदसंवच्छरस्स कइ पव्वा पन्नत्ता? Translated Sutra: भगवन् ! संवत्सर कितने हैं ? गौतम ! संवत्सर पाँच हैं – नक्षत्र – संवत्सर, युग – संवत्सर, प्रमाण – संवत्सर, लक्षण – संवत्सर तथा शनैश्चर – संवत्सर। नक्षत्र – संवत्सर कितने प्रकार का है ? बारह प्रकार का, श्रावण, भाद्रपद, आसोज यावत् आषाढ। अथवा बृहस्पति महाग्रह बारह वर्षों की अवधि में जो सर्व नक्षत्रमण्डल का परिसमापन | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 279 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समयं नक्खत्ता जोगं जोयंति समयं उदू परिणमंति ।
नच्चुण्ह नाइसीओ, बहूदओ होइ नक्खत्ते ॥ Translated Sutra: जिसमें कृत्तिका आदि नक्षत्र समरूप में – मासान्तिक तिथियों से योग – करते हैं, जिसमें ऋतुएं समरूप में परिणत होती हैं, जो प्रचुर जलयुक्त हैं, वह समक – संवत्सर हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 280 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ससि समगं पुण्णमासिं, जोएंति विसमचारिनक्खत्ता ।
कडुओ बहूदओ वा, तमाहु संवच्छरं चंदं ॥ Translated Sutra: जब चन्द्र के साथ पूर्णमासी में विषम – नक्षत्र का योग होता है, जो कटुक, कष्टकर, विपुल वर्षायुक्त होता है, वह चन्द्र – संवत्सर है। | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 281 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विसमं पवालिणो परिणमंति, अनुदूसु देंति फुप्फफलं ।
वासं न सम्म वासइ, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥ Translated Sutra: जिसमें विषम काल में – वनस्पति अंकुरित होती है, अन् – ऋतु में – पुष्प एवं फल आते हैं, जिसमें सम्यक् – वर्षा नहीं होती, वह कर्म – संवत्सर है। | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 282 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढविदगाणं तु रसं, पुप्फफलाणं च देइ आइच्चो ।
अप्पेणवि वासेणं, सम्मं निप्फज्जए सासं ॥ Translated Sutra: जिसमें सूर्य, पृथ्वी, चल, पुष्प एवं फल – रस प्रदान करता है, जिसमें थोड़ी वर्षा से ही धान्य सम्यक् रूप में निष्पन्न होता है – अच्छी फसल होती है, वह आदित्य – संवत्सर है। | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 283 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आइच्चतेयतविया, खणलवदिवसा उऊ परिणमंति ।
पूरेइ य निन्नथले, तमाहु अभिवड्ढियं जाण ॥ Translated Sutra: जिसमें क्षण, लव, दिन, ऋतु, सूर्य के तेज से तप्त रहते हैं, जिसमें निम्न स्थल जल – पूरित रहते हैं, वह अभिवर्द्धित संवत्सर है। | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 284 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सनिच्छरसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठावीसइविहे पन्नत्ते, जाव उत्तराओ आसाढाओ जं वा सनिच्चरे महग्गए तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं नक्खत्तमंडलं समानेइ। सेत्तं सनिच्चरसंवच्छरे। तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! शनैश्चर संवत्सर कितने प्रकार का है ? अठ्ठाईस प्रकार का – १. अभिजित, २. श्रवण, ३. धनिष्ठा, ४. शतभिषक्, ५. पूर्वा भाद्रपद, ६. उत्तरा भाद्रपद, ७. रेवती, ८. अश्विनी, ९. भरिणी, १०. कृत्तिका, ११. रोहिणी यावत् तथा २८. उत्तराषाढा। अथवा शनैश्चर महाग्रह तीस संवत्सरों में समस्त नक्षत्र – मण्डल का समापन करता है – वह काल शनैश्चर | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 285 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अभिई सवणे धनिट्ठा, सयभिसया दो य होंति भद्दवया ।
रेवइ अस्सिणि भरणी, कत्तिय तह रोहिणी चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 286 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! संवच्छरस्स कइ मासा पन्नत्ता? गोयमा! दुवालस मासा पन्नत्ता। तेसि णं दुविहा नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–लोइया लोउत्तरिया य। तत्थ लोइया णामा इमे, तं जहा–सावणे भद्दवए जाव आसाढे। लोउत्तरिया नामा इमे, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! प्रत्येक संवत्सर के कितने महीने हैं ? गौतम ! बारह महीने, उनके लौकिक एवं लोकोत्तर दो प्रकार के नाम। लौकिक नाम – श्रावण, भाद्रपद यावत् आषाढ। लोकोत्तर नाम इस प्रकार हैं – १. अभिनन्दित, २. प्रतिष्ठित, ३. विजय, ४. प्रीतिवर्द्धन, ५. श्रेयान्, ६. शिव, ७. शिशिर, ८. हिमवान्, ९. वसन्तमास, १०. कुसुमसम्भव, ११. निदाघ तथा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 287 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अभिनंदिए पइट्ठे य, विजए पीइवद्धणे ।
सेयंसे य सिवे चेव, सिसिरे य सहेमवं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८६ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 288 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे ।
एक्कारसे निदाहे य, वनविरोहे य बारसे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८६ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 289 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! मासस्स कइ पक्खा पन्नत्ता? गोयमा! दो पक्खा पन्नत्ता, तं जहा–बहुलपक्खे य सुक्कपक्खे य।
एगमेगस्स णं भंते! पक्खस्स कइ दिवसा पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस दिवसा पन्नत्ता, तं जहा–पडिवादिवसे बिइयादिवसे जाव पन्नरसीदिवसे।
एएसि णं भंते! पन्नरसण्हं दिवसाणं कइ नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा Translated Sutra: भगवन् ! प्रत्येक महीने के कितने पक्ष हैं ? गौतम ! दो, कृष्ण तथा शुक्ल। प्रत्येक पक्ष के पन्द्रह दिन हैं, – १. प्रतिपदा – दिवस, २. द्वितीया – दिवस, ३. तृतीया – दिवस यावत् १५. पंचदशी – दिवस – अमावस्या या पूर्णमासी का दिन। इन पन्द्रह दिनों के पन्द्रह नाम हैं, जैसे – १. पूर्वाङ्ग, २. सिद्धमनोरम, ३. मनोहर, ४. यशोभद्र, ५. यशोधर, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 290 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वंगे सिद्धमनोरमे य, तत्तो मनोहरे चेव ।
जसभद्दे य जसधरे, छट्ठे सव्वकामसमिद्धे य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 291 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इंदमुद्धाभिसित्ते य, सोमनस धनंजए य बोद्धव्वे ।
अत्थसिद्धे अभिजाए, अच्चसणे सयंजए चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 301 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जोगो देवय तारग्ग, गोत्त संठाण चंदरविजोगो ।
कुल पुण्णिम अवमंसा य, सन्निवाए य नेया य ॥ Translated Sutra: योग, देवता, ताराग्र, गोत्र, संस्थान, चन्द्र – रवि – योग, कुल, पूर्णिमा – अमावस्या, सन्निपात तथा नेता – यहाँ विवक्षित हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 302 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! नक्खत्ता पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठावीसं नक्खत्ता पन्नत्ता, तं जहा–अभिई सवणो धनिट्ठा सयभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी मियसिरं अद्दा पुनव्वसू पूसो अस्सेसा मघा पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी हत्थो चित्ता साइ विसाहा अनुराहा जेट्ठा मूलं पुव्वासाढा उत्तरासाढा। Translated Sutra: भगवन् ! नक्षत्र कितने हैं ? गौतम ! अठ्ठाईस – अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्, पूर्वभाद्रपदा, उत्तर भाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा तथा उत्तराषाढा। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 303 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं चंदस्स दाहिणेनवि उत्तरेनवि पमद्दंपि जोगं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं चंदस्स दाहिणेनवि पमद्दंपि जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स पमद्दं जोयं जोएंति? गोयमा! एएसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं, तत्थ णं, जेते नक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति, ते णं छ, तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्र के दक्षिण में – योग करते हैं – कितने नक्षत्र चन्द्रमा के उत्तर में, कितने दक्षिण में भी, उत्तर में भी, कितने चन्द्रमा के दक्षिण में भी नक्षण – विमानों को चीरकर भी और कितने नक्षत्र सदा नक्षत्र – विमानों को चीरकर चन्द्रमा से योग करते हैं ? गौतम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 304 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संठाण अद्द पुसो, सिलेस हत्थो तहेव मूलो य ।
बाहिरओ बाहिरमंडलस्स छप्पेते नक्खत्ता ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०३ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 305 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते नक्खत्ता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, ते णं बारस, तं जहा–अभिई सवणो घनिट्ठा सयभिसया पुव्व भद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी साई। तत्थ णं जेते नक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणेणवि च उत्तरेनवि पमद्दंपि जोगं जोएंति, ते णं सत्त, तं जहा–कत्तिया रोहिणी पुणव्वसू मघा चित्ता विसाहा अनुराहा। तत्थ णं जेते नक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स दाहिणओवि पमद्दंपि जोगं जोएंति, ताओ णं दुवे असाढाओ।
सव्वबाहिरए मंडले जोगं जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा। तत्थ णं जेसे नक्खत्ते, जे णं सया चंदस्स पमद्दं जोगं जोएइ सा णं एगा जेट्ठा। Translated Sutra: जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के उत्तर में अवस्थित होते हुए योग करते हैं, वे बारह हैं – अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्, पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी तथा स्वाति। जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के दक्षिण में भी, उत्तर में भी, नक्षत्र – विमानों को चीरकर भी योग करते हैं, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 306 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिई नक्खत्ते किंदेवयाए पन्नत्ते? गोयमा! बम्हदेवयाए पन्नत्ते। सवणे नक्खत्ते विण्हुदेवयाए पन्नत्ते। धनिट्ठा नक्खत्ते वसुदेवयाए पन्नत्ते। एएणं कमेणं नेयव्वा अनुपरिवाडीए इमाओ देवयाओ –बम्हा विण्हू वसू वरुणे अए अभिवड्ढी पूसे आसे जमे अग्गी पयावई सोमे रुद्दे अदिती वहस्सई सप्पे पिऊ भगे अज्जम सविया तट्ठा वाऊ इंदग्गी मित्तो इंदे निरई आऊ विस्सा य, एवं नक्खत्ताणं एताए परिवाडीए नेयव्वा जाव उत्तरासाढा किंदेवया पन्नत्ता? गोयमा! विस्सदेवया पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! अभिजित आदि नक्षत्रों के कौन – कौन देवता हैं ? पहले नक्षत्र से अठ्ठावीसवें नक्षत्र तक के देवता यथाक्रम इस प्रकार हैं – ब्रह्मा, विष्णु, वसु, वरुण, अज, अभिवृद्धि, पूषा, अश्व, यम, अग्नि, प्रजापति, सोम, रुद्र, अदिति, बृहस्पति, सर्प्प, पितृ, भंग, अर्यमा, सविता, त्वष्टा, वायु, इन्द्राग्नी, मित्र, इन्द्र, नैर्ऋत, आप तथा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 307 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते कइतारे पन्नत्ते? गोयमा! तितारे पन्नत्ते। एवं नेयव्वा जस्स जइयाओ ताराओ, इमं च तं तारग्गं– Translated Sutra: भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र के कितने तारे हैं ? गौतम ! तीन तारे हैं। जिन नक्षत्रों के जितने जितने तारे हैं, वे प्रथम से अन्तिम तक इस प्रकार हैं – अभिजित नक्षत्र के तीन तारे, श्रवण के तीन, धनिष्ठा के पाँच, शतभिषक् के सौ, पूर्वभाद्रपदा के दो, उत्तर – भाद्रपदा के दो, रेवती के बत्तीस, अश्विनी के | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 308 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिग-तिग पंचेगसयं, दुग-दुग बत्तीसगं तिग-तिगं च ।
छप्पंचग तिग एक्कग पंचग तिग छक्कगं चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०७ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 309 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तग दुग दुग पंचग, एक्केक्कग पंच चउ तिगं चेव ।
एक्कारसग चउक्कं, चउक्कगं चेव तारग्गं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०७ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 310 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिई नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? गोयमा! मोग्गलायणसगोत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र का क्या गोत्र है ? गौतम ! मौद्गलायन गोत्र है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 311 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मोग्गलायण संखायणे य, तह अग्गभाव कण्णिल्ले ।
तत्तो य जाउकण्णे, धनंजए चेव बोद्धव्वे ॥ Translated Sutra: प्रथम से अन्तिम नक्षत्र तक सब नक्षत्रों के गोत्र इस प्रकार हैं – अभिजित नक्षत्र का मौद्गलायन, श्रवण का सांख्यायन, धनिष्ठा का अग्रभाग, शतभिषक् का कण्णिलायन, पूर्वभाद्रपदा का जातुकर्ण्ण, उत्तरभाद्रपदा का धनञ्जय। तथा – रेवती का पुष्यायन, अश्विनी का अश्वायन, भरणी का भार्गवेश, कृत्तिका का अग्निवेश्य, रोहिणी | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 312 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुस्सायणे य अस्सायणे य, भग्गवेसे य अग्गिवेसे य ।
गोयम भारद्दाए, लोहिच्चे चेव वासिट्ठे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३११ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 313 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ओमज्जायण मंडव्वायणे य, पिंगायणे य गोवल्ले ।
कासव कोसिय दब्भा य, चामरच्छाय सुंगा य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३११ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 314 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोलव्वायण तेगिच्छायणे य कच्चायणे हवइ मूले ।
तत्तो य वज्झियायण, वग्घावच्चे य गोत्ताइं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३११ | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 315 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! गोसीसावलिसंठिए पन्नत्ते, Translated Sutra: भगवन् ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र का कैसा संस्थान है ? गौतम ! गोशीर्षावलि – प्रथम से अन्तिम तक सब नक्षत्रों के संस्थान इस प्रकार हैं – अभिजित का गोशीर्षावलि, श्रवण का कासार, धनिष्ठा का पक्षी के कलेवर सदृश, शतभिषक् का पुष्प – राशि, पूर्वभाद्रपदा का अर्धवापी, उत्तरभाद्रपदा का भी अर्धवापी, रेवती | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 316 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोसीसावलि काहार, सउणि पुप्फोवयार वावी य ।
नावा आसक्खंधग, भग छुरघरए य सगडुद्धी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१५ | |||||||||
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वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 317 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मिगसीसावलि रुहिरबिंदु तुल वद्धमानग पडागा ।
पागारे पलियंके, हत्थे मुहफुल्लए चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१५ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 318 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खीलग दामणि एगावली य गयदंत विच्छुयअले य ।
गयविक्कमे य तत्तो, सीहनिसाई य संठाणा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१५ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 319 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते कइमुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोगं जोएइ?
गोयमा! नव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभाए मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोगं जोएइ। एवं इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वं– Translated Sutra: भगवन् ! अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र कितने मुहूर्त्त पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ९ – २७/६७ मुहूर्त्त रहता है। इन नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग इस प्रकार है। अभिजित नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ एक अहोरात्र में उनके २६/३७ भाग परिमित योग होता है। इससे अभिजित चन्द्रयोग काल ९ – २७/६७ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 320 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अभिइस्स चंदजोगो, सत्तट्ठिखंडिओ अहोरत्तो ।
ते हुंति नव मुहुत्ता, सत्तावीसं कलाओ य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१९ |