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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 203 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मंदर मेरु मनोरम सुदंसण सयंपभे य गिरिराया । रयणोच्चए सिलोच्चए मज्झे लोगस्स नाभी य ।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०२
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 204 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अच्छे य सूरियावत्ते सूरियावरणे ति या । उत्तमे य दिसादी य, वडेंसेति य सोलस ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २०२
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 205 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–मंदरे पव्वए? मंदरे पव्वए? गोयमा! मंदरे पव्वए मंदरे नामं देवे परिवसइ महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठिईए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–मंदरे पव्वए-मंदरे पव्वए। अदुत्तरं तं चेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वह मन्दर पर्वत क्यों कहलाता है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर मन्दर नामक परम ऋद्धिशाली, पल्योपम के आयुष्यवाला देव निवास करता है, अथवा यह नाम शाश्वत है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 206 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे नीलवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमिल्ललवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे नीलवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे, निसहवत्तव्वया निलवंतस्स भाणियव्वा, नवरं–जीवा दाहिणेणं, धनुपट्ठं उत्तरेणं, एत्थ णं केसरिद्दहो, सीया महानई पवूढा समाणी उत्तरकुरं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी जम-गपव्वए निलवंत उत्तरकुरु चंदेरावण मालवंतद्दहे य दुहा विभयमाणी-विभयमाणी चउरासीए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी-आपूरेमाणी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप का नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र के उत्तर में, रम्यक क्षेत्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। निषध पर्वत के समान है। इतना अन्तर है – दक्षिण में इसकी जीवा है, उत्तर में धनुपृष्ठभाग है। उसमें केसरी द्रह है। दक्षिण में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 207 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धे नीले पुव्वविदेहे, सीया य कित्ति नारी य । अवरविदेहे रम्मगकूडे उवदंसणे चेव ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २०६
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 208 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वे एए कूडा पंचसइया, रायहानीओ उत्तरेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नीलवंते वासहरपव्वए? नीलवंते वासहरपव्वए? गोयमा! नीले नीलोभासे, नीलवंते य इत्थ देवे महिड्ढीए जाव परिवसइ। सव्ववेरुलियामए नीलवंते जाव निच्चे।

Translated Sutra: ये सब कूट पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियाँ मेरु के उत्तर में है। भगवन्‌ ! नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत इस नाम से क्यों पुकारा जाता है ? गौतम ! वहाँ नीलवर्णयुक्त, नील आभावाला परम ऋद्धिशाली नीलवान्‌ देव निवास करता है, नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत सर्वथा वैडूर्यरत्नमय – है। अथवा उसका यह नाम नित्य है
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 209 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे रम्मए नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! निलवंतस्स उत्तरेणं, रुप्पिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एवं जह चेव हरिवासं तह चेव रम्मयं वासं भाणियव्वं, नवरं–दक्खिणेणं जीवा उत्तरेणं धनुपट्ठं अवसेसं तं चेव। कहि णं भंते! रम्मए वासे गंधावई नामं वट्टवेयड्ढपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! नरकंताए पच्च-त्थिमेणं, नारीकंताए पुरत्थिमेणं, रम्मगवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं गंधावई नामं वट्टवेयड्ढे पन्नत्ते, जं चेव वियडावइस्स तं चेव गंधावइस्सवि वत्तव्वं। अट्ठो, बहवे उप्पलाइं जाव गंधावइवण्णाइं गंधावइवण्णाभाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप का रम्यक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत के उत्तर में, रुक्मी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी वर्णन हरिवर्ष सदृश है। रम्यक्‌ क्षेत्र में गन्धापाती वृत्तवैताढ्य
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 210 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धे रुप्पी रम्मग, नरकंता बुद्धि रुप्पकूला य । हेरण्णवए मणिकंचणे य रुप्पिम्मि कूडाइं ॥

Translated Sutra: सिद्धायतनकूट, रुक्मीकूट, रम्यककूट, नरकान्ताकूट, बुद्धिकूट, रूप्यकूलाकूट, हैरण्यवतकूट तथा मणि – कांचनकूट।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 211 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वेवि एए पंचसइया, रायहानीओ उत्तरेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–रुप्पी वासहरपव्वए? रुप्पी वासहरपव्वए? गोयमा! रुप्पी णं वासहरपव्वए रुप्पी रुप्पपट्टे रुप्पिओभासे सव्वरुप्पामए। रुप्पी य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से तेणट्ठेणं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते? गोयमा! रुप्पिस्स उत्तरेणं, सिहरिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते। एवं जह चेव हेमवयं तह चेव हेरण्णवयंपि भाणियव्वं, नवरं–जीवा दाहिणेणं उत्तरेणं धनुपट्ठं अवसिट्ठं तं

Translated Sutra: ये सभी कूट पाँच – पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। उत्तर में इनकी राजधानियाँ है। भगवन्‌ ! वह रुक्मी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजत – निष्पन्न रजत की ज्यों आभामय एवं सर्वथा रजतमय है। वहाँ पल्योपमस्थितिक रुक्मी नामक देव निवास करता है, इसलिए वह रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 212 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं एक्कमेक्के चक्कवट्टिविजए भगवंतो तित्थयरा समुप्पज्जंति, तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामा णियसाहस्सीहिं चउहिं य महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अनियाहिवईहिं सोलसएहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहि य बहूहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडाओ महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणीओ विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: जब एक एक – किसी भी चक्रवर्ती – विजय में तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं, उस काल – उस समय – अधोलोकवा – स्तव्या, महत्तरिका – आठ दिक्कुमारिकाएं, जो अपने कूटों, भवनों और प्रासादों में अपने ४००० सामानिक देवों, सपरिवार चार महत्तरिकाओं, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, १६००० आत्मरक्षक देवों तथा अन्य अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 213 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भोगंकरा भोगवई, सुभोगा भोगमालिनी । तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिंदिया ॥

Translated Sutra: वह आठ दिक्‌कुमारिका है – भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला और अनिन्दिता।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 214 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति। तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलियाइं पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमनागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं जम्मनमहिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवओ जम्मनमहिमं करेमो त्तिकट्टु एवं वयंति, वइत्ता पत्तेयं-पत्तेयं आभिओगिए

Translated Sutra: जब वे अधोलोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने आसनों को चलित होते देखती हैं, वे अपने अवधिज्ञान का प्रयोग करती हैं। तीर्थंकर को देखती हैं। कहती हैं – जम्बूद्वीप में तीर्थंकर उत्पन्न हुए हैं। अतीत, प्रत्युत्पन्न तथा अनागत – अधोलोकवास्तव्या हम आठ महत्तरिका दिशाकुमारियों का यह परंपरागत आचार है कि हम भगवान्‌ तीर्थंकर
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 215 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं एवं तं चेव पुव्ववण्णियं जाव विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: उस काल, उस समय, ऊर्ध्वलोकवास्तव्या – आठ दिक्कुमारिकाओं के, जो अपने कूटों पर, अपने भवनों में, अपने उत्तम प्रासादों में अपने चार हजार सामानिक देवों, यावत्‌ अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर देव – देवियों से संपरिवृत्त, नृत्य, गीत एवं तुमुल वाद्य – ध्वनि के बीच विपुल सुखोपभोग में अभिरत होती हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 216 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मेहंकरा मेहवई, सुमेहा मेहमालिनी । सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेना बलाहगा ॥

Translated Sutra: यह दिक्कुमारिकाएं है – मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, सुवत्सा, वत्समित्रा, वारिषेणा तथा बलाहका।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 217 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं उड्ढलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति, एवं तं चेव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं जाव अम्हे णं देवानुप्पिए! उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी-महत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मनमहिमं करिस्सामो, तुब्भाहिं ण भाइयव्वं तिकट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति, ... ... से जहानामए–कम्मगरदारए

Translated Sutra: तब उन देवी के आसन चलित होते हैं, शेष पूर्ववत्‌। वे दिक्कुमारिकाएं भगवान्‌ तीर्थंकर की माता से कहती हैं – देवानुप्रिये ! हम उर्ध्वलोकवासिनी दिक्कुमारिकाएं भगवान्‌ का जन्म – महोत्सव मनायेंगी। अतः आप भयभीत मत होना। यों कहकर वे – ईशान कोण में चली जाती हैं। यावत्‌ वे आकाश में बादलों की विकुर्वणा करती हैं, वे
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 218 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: उस काल, उस समय पूर्वदिग्वर्ती रुचककूट – निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने – अपने कूटों पर सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार है – नन्दोत्तरा, नन्दा, आनन्दा, नन्दिवर्धना, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती तथा अपराजिता। सूत्र – २१८, २१९
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 219 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नंदुत्तरा य नंदा, आनंदा नंदिवद्धणा । विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २१८
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 220 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेसं तं चेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य पुरत्थिमेणं आदंसहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ तहेव जाव विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: अवशिष्ट वर्णन पूर्ववत्‌ है। देवानुप्रिये ! पूर्वदिशावर्ती रुचककूट निवासिनी हम आठ दिशाकुमारिकाएं भगवान्‌ तीर्थंकर का जन्म – महोत्सव मनायेंगी। अतः आप भयभीत मत होना।’ यों कहकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के शृंगार, शोभा, सज्जा आदि विलोकन में उपयोगी, प्रयोजनीय दर्पण हाथ में लिये वे भगवान्‌ तीर्थंकर एवं उनकी माता
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 221 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समाहारा सुप्पइण्णा, सुप्पबुद्धा जसोहरा । लच्छिमई सेसवई, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२०
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 222 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य दाहिणेणं भिंगार-हत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं पच्चत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं जाव विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: वे भगवान्‌ तीर्थंकर की माता से कहती हैं – ‘आप भयभीत न हों।’ यों कहकर वे भगवान्‌ तीर्थंकर एवं उनकी माता के स्नपन में प्रयोजनीय सजल कलश हाथ में लिए दक्षिण में आगान, परिगान करने लगती हैं। उस काल, उस समय पश्चिम रूचक कूट – निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – इलादेवी, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मावती,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 223 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इलादेवी सुरादेवी, पुहवी पउमावई । एगनासा नवमिया भद्दा सीया य अट्ठमा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२२
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 224 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य पच्चत्थिमेणं तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरिल्लरुयगवत्थव्वाओ जाव विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra:
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 225 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अलंबुसा मिस्सकेसी, पुंडरीका य वारुणी । हासा सव्वप्पभा चेव, सिरि हिरि चेव उत्तरओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२४
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 226 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव वंदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसिरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जाव विहरंति, तं जहा– चित्ता य चित्तकनगा, सतेरा य सोदामिणी ॥ तहेव जाव ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा–रूया रूयंसा सुरूया रूयगावई। तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स

Translated Sutra: वे भगवान्‌ तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ में लिए आगान – परिगान करती हैं। उस काल, उस समय रुचककूट के मस्तक पर – चारों विदिशाओं में निवास करने वाली चार दिक्कुमारि – काएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – चित्रा, चित्रकनका, श्वेता तथा सौदामिनी। वे आकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के चारों विदिशाओं
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 227 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने। से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं,

Translated Sutra: उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 228 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पालए देवे सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणित्ता तहेव करेइ। तस्स णं दिव्वस्स जाणविमानस्स तिदिसिं तओ तिसोवानपडिरूवगा वण्णओ। तेसि णं पडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे, वण्णओ जाव पडिरूवा। तस्स णं जाणविमानस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे, से जहानामए–आलिंगपुक्खरेइ वा जाव दीवियचम्मेइ वा अनेगसंकुकीलगसहस्सवितते आवड पच्चावड सेढि प्पसेढि सोत्थिय सोवत्थिय पूसमानव वद्धमाणग मच्छंडग मगरंडग जारमार फुल्लावलि पउमपत्त सागरतरंग वसंतलय पउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहिं समरीइएहिं

Translated Sutra: देवेन्द्र, देवराज शक्र द्वारा यों कहे जाने पर – पालक नामक देव हर्षित एवं परितुष्ट होता है। वह वैक्रिय समुद्‌घात द्वारा यान – विमान की विकुर्वणा करता है। उस यान – विमान के भीतर बहुत समतल एवं रमणीय भूमि – भाग है। वह आलिंग – पुष्कर तथा शंकुसदृश बड़े – बड़े कीले ठोक कर, खींचकर समान किये गये चीते आदि के चर्म जैसा समतल
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 238 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दाहिणिल्लाणं पायत्ताणीयाहिवई भद्दसेणो, उत्तरिल्लाणं दक्खो। वाणमंतरजोइसिया नेयव्वा, एवं चेव नवरं–चत्तारि सामानियसाहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसीओ, सोलस आयरक्खसहस्सा, विमाणा सहस्सं, महिंदज्झया पणवीसं जोयणसयं, घंटा दाहिणाणं मंजु-स्सरा, उत्तराणं मंजुघोसा, पायत्ताणीयाहिवई विमानकारी य आभिओगा देवा, जोइसियाणं सुस्सरा सुस्सरनिग्घोसा घंटाओ, मंदरे समोसरणं जाव पज्जुवासंति।

Translated Sutra: चमरेन्द्र को छोड़कर दाक्षिणात्य भवनपति इन्द्रों के भद्रसेन और बलीन्द्र को छोड़कर उत्तरीय भवनपति इन्द्रों के दक्ष नामक पदाति – सेनाधिपति हैं। इसी प्रकार व्यन्तरेन्द्रों तथा ज्योतिष्केन्द्रों का वर्णन है। उनके ४००० सामानिक देव, चार अग्रमहिषियाँ तथा १६००० अंगरक्षक देव हैं, विमान १००० योजन विस्तीर्ण तथा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 239 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया महं देवाहिवे आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! महत्थं महग्घं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते आभिओग्गा देवा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं जाव समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियकलसाणं, एवं रुप्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुप्पमयाणं सुवण्ण मणिमयाणं रुप्पमणिमयाणं सुवण्णरुप्प-मणिमयाणं अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं वंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आयंसाणं थालाणं पातीणं सुपइट्ठाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं

Translated Sutra: देवेन्द्र, देवराज, महान्‌ देवाधिप अच्युत अपने आभियोगिक देवों को बुलाता है, उनसे कहता है – देवानुप्रियों! शीघ्र ही महार्थ, महार्घ, महार्ह, विपुल – तीर्थंकराभिषेक उपस्थापित करो – । यह सुनकर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परिपुष्ट होते हैं। वे ईशानकोण में जाते हैं। वैक्रियसमुद्‌घात से १००८ स्वर्णकलश, १००८ रजत
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 240 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया दसहिं सामानियसाहस्सीहिं, तायत्तीसाए तावत्तीसएहिं चउहिं लोगपालेहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, चत्तालीसाए आयरक्खदेव-साहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे तेहिं साभाविएहिं वेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारि-पडिपुण्णेहिं चंदनकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहिं करयलसूमालपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं जाव सव्वोदएहिं सव्वमट्टि-याहिं सव्वतुवरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं महया-महया तित्थयराभिसेएणं

Translated Sutra: देवेन्द्र अच्युत अपने १०००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति – देवों तथा ४०००० अंगरक्षक देवों से परिवृत्त होता हुआ स्वाभाविक एवं विकुर्वित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चर्चित गलवे में मोली बाँधे हुए, कमलों एवं उत्पलों
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 241 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामिं तेणं महया-महया अभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता ताहिं इट्ठाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं सिव्वाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहिं जयजयसद्दं पउंजइ, पउंजित्ता तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइं लूहेइ, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेनं गाताइं अनुलिंपति, अनुलिंपित्ता नासा-नीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलकनगखचियंतकम्मं आगास फलिहसमप्पभं

Translated Sutra: सपरिवार अच्युतेन्द्र विपुल, बृहत्‌ अभिषेक – सामग्री द्वारा तीर्थंकर का अभिषेक करता है। अभिषेक कर वह हाथ जोड़ता है, ‘जय – विजय’ शब्दों द्वारा भगवान्‌ की वर्धापना करता है, ‘जय – जय’ शब्द उच्चारित करता है। वैसा कर वह रोएंदार, सुकोमल, सुरभित, काषायित, बिभीतक, आमलक आदि कसैली वनौषधियों से रंगे हुए वस्त्र – द्वारा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 242 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दप्पण भद्दासण वद्धमाण वरकलस मच्छ सिरिवच्छा । सोत्थिय नंदावत्ता लिहित्ता अट्ठट्ठ मंगलगा ॥

Translated Sutra: १. दर्पण, २. भद्रासन, ३. वर्धमान, ४. वर कलश, ५. मत्स्य, ६. श्रीवत्स, ७. स्वस्तिक तथा ८. नन्द्यावर्त।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 243 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] काऊण करेइ उवयारं, किं ते? पाडल मल्लिय चंपग असोग पुन्नाग चूयमंजरि नवमालिय बकुल तिलग कणवीर कुंद कोज्जय कोरंट पत्त दमनग वरसुरभिगंधगंधियस्स कयग्गहिय करयलपब्भट्ठ-विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमनिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभ रयण वइर वेरुलियविमलदंडं कंचनमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टिं विनिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेत्तु पयते धुवं दाऊण जिनवरिंदस्स सत्तट्ठपयाइं ओसरित्ता दसंगुलियं अंजलिं करिय मत्थयंसि पयओ अट्ठसयविसुद्धगंथ-जुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुनरुत्तेहिं

Translated Sutra: पूजोपचार करता है। गुलाब, मल्लिका, आदि सुगन्धयुक्त फूलों को कोमलता से हाथ में लेता है। वे सहज रूप में उसकी हथेलियों से गिरते हैं, उन पँचरंगे पुष्पों का घुटने – घुटने जितना ऊंचा एक विचित्र ढेर लग जाता है। चन्द्रकान्त आदि रत्न, हीरे तथा नीलम से बने उज्ज्वल दंडयुक्त, स्वर्णमणि एवं रत्नों से चित्रांकित, काले अगर,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 244 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सक्के देविंदे देवराया पंच सक्के विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे सक्के भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के वज्जपाणी पुरओ पकड्ढइ। तए णं से सक्के देविंदे देवराया चउरासीईए सामानियसाहस्सीहिं जाव अन्नेहि य बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइस वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनणयरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवने

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ देवेन्द्र देवराज शक्र पाँच शक्रों की विकुर्वणा करता है। यावत्‌ एक शक्र वज्र हाथ में लिये आगे खड़ा होता है। फिर शक्र अपने ८४००० सामानिक देवों, भवनपति यावत्‌ वैमानिक देवों, देवियों से परिवृत, सब प्रकार की ऋद्धि से युक्त, वाद्य – ध्वनि के बीच उत्कृष्ट त्वरित दिव्य गति द्वारा, जहाँ भगवान्‌ तीर्थंकर
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 245 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता! पुट्ठा। ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु लवणे समुद्दे। एवं लवणसमुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्ठा भाणियव्वा। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति, अत्थेगइया नो पच्चायंति। एवं लवणसमुद्दस्सवि जंबुद्दीवे दीवे नेयव्वं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जम्बूद्वीप के चरम प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। जम्बूद्वीप के जो प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं, क्या वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं या लवणसमुद्र के ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं। इसी प्रकार लवणसमुद्र के प्रदेशों की बात है। भगवन्‌ ! क्या
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 246 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खंडा जोयण वासा, पव्वय कूडा य तित्थ सेढीओ । विजय द्दह सलिलाओ य, पिंडए होइ संगहणी ॥

Translated Sutra: खण्ड, योजन, वर्ष, पर्वत, कूट, तीर्थ, श्रेणियाँ, विजय, द्रह तथा नदियाँ – इनका प्रस्तुत सूत्र में वर्णन है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 247 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहप्पमाणमेत्तेहिं खंडेहिं केवइयं खंडगणिएणं पन्नत्ते? गोयमा! णउयं खंडसयं खंडगणिएणं पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं जोयणगणिएणं पन्नत्ते? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के प्रमाण जितने – भरतक्षेत्र के बराबर खण्ड किये जाए तो वे कितने होते हैं ? गौतम ! खण्डगणित के अनुसार वे १९० होते हैं। भगवन्‌ ! योजनगणित के अनुसार जम्बूद्वीप का कितना प्रमाण है ? गौतम ! जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल – प्रमाण ७,९०,५६,९४,१५० योजन है। सूत्र – २४७, २४८
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 248 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्तेव य कोडिसया, नउया छप्पन्न सयसहस्साइं । चउनवइं च सहस्सा, सयं दिवड्ढं च गणियपयं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २४७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 249 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ वासा पन्नत्ता? गोयमा! सत्त वासा पन्नत्ता, तं जहा–भरहे एरवए हेमवए हेरण्णवए हरिवासे रम्मगवासे महाविदेहे। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया वासहरा पन्नत्ता? केवइया मंदरा पव्वया? केवइया चित्तकूडा? केवइया विचित्तकूडा? केवइया जमगपव्वया? केवइया कंचनगपव्वया? केवइया वक्खारा? केवइया दीहवेयड्ढा? केवइया वट्ठवेयड्ढा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वया, एगे मंदर पव्वए, एगे चित्तकूडे, एगे विचित्तकूडे, दो जमगपव्वया, दो कंचनगपव्वय-सया, वीसं वक्खारपव्वया, चोत्तीसं दीहवेयड्ढा, चत्तारि वट्टवेयड्ढा–एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे दुन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में कितने वर्ष – क्षेत्र हैं ? गौतम ! सात, – भरत, ऐरावत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष तथा महाविदेह। जम्बूद्वीप के अन्तर्गत छह वर्षधर पर्वत, एक मन्दर पर्वत, एक चित्रकूट पर्वत, एक विचित्रकूट पर्वत, दो यमक पर्वत, दो सौ काञ्चन पर्वत, बीस वक्षस्कार पर्वत, चौतीस दीर्घ वैताढ्य पर्वत तथा चार वृत्त
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 250 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ चंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति? कइ सूरिया तवइंसु तवेंति तविस्संति? केवइया नक्खत्ता जोगं जोएंसु जोएंति जोएस्संति? केवइया महग्गहा चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति? केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ सोभं सोभिंसु सोभंति सोभिस्संति? गोयमा! दो चंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति, दो सूरिया तवइंसु तवेंति तविस्संति छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसु जोएंति जोएस्संति, छावत्तरं महग्गहसयं चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रमा उद्योत करते थे ? उद्योत करते हैं एवं करते रहेंगे ? कितने सूर्य तपते थे ? तपते हैं और तपते रहेंगे ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! जम्बूद्वीप में चन्द्र उद्योत करते थे। करते हैं तथा करेंगे। दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपते रहेंगे। ५६ नक्षत्र योग करते थे, करते हैं एवं करते रहेंगे।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 251 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगं च सयसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं । नव य सया पन्नासा, तारागणकोडिकोडिणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २५०
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 252 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! एगे चउरासीए मंडलसए पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता, एत्थ णं पन्नट्ठी सूरमंडला पन्नत्ता। लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं एगूनवीसे सूरमंडलसए पन्नत्ते– एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे एगे चुलसीए सूरमंडलसए भवतीतिमक्खायं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सूर्य – मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १८४, जम्बूद्वीप में १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ६५ सूर्य – मण्डल हैं। लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ११९ सूर्यमण्डल हैं। इस प्रकार जम्बूद्वीप तथा लवणसमुद्र में १८४ सूर्य – मण्डल होते हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 253 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वब्भंतराओ णं भंते! सूरमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से सर्वबाह्य सूर्य – मण्डल कितने अन्तर पर हैं ? गौतम ! ५१० योजन के अन्तर पर है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 254 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरमंडलस्स णं भंते! सूरमंडलस्स य केवइयं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! दो-दो जोयणाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक सूर्य – मण्डल से दूसरे सूर्य – मण्डल का अबाधित – कितना अन्तर है ? गौतम ! दो योजन का है
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 255 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरमंडले णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! अडयालीसं एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयामविक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एगसट्ठियाए जोयणस्स बाहल्लेणं पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सूर्य – मण्डल का आयाम, विस्तार, परिक्षेप तथा बाहल्य – कितना है ? गौतम ! लम्बाई – चौड़ाई ४८/६१ योजन, परिधि उससे कुछ अधिक तीन गुणी तथा मोटाई २४/६१ योजन है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 256 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरानंतरे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य बावीसे जोयणसए अडयालीसं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स अबाहाए अब्भंतरानंतरे सूरमंडले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य पणवीसे जोयणसए पणतीसं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल जम्बूद्वीप स्थित मन्दर पर्वत से कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४४८२० योजन की दूरी पर है। सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से दूसरा सूर्य – मण्डल ४४८२२ – ४८/६१ योजन की दूरी पर है। सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से तीसरा सूर्य – मण्डल ४४८२५ – ३५/६१ योजन की दूरी पर है। यों प्रति दिन रात एक – एक
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 257 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे सव्वब्भंतरे णं भंते! सूरमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं छच्चं चत्ताले जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसय-सहस्साइं पन्नरस य जोयणसहस्साइं एगूनणउइं च जोयणाइं किंचिविसेसाहियाइं परिक्खेवेणं। अब्भंतरानंतरे णं भंते! सूरमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं छच्च पणयाले जोयणसए पणतीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयामविक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसयसहस्साइं पन्नरस य जोयणसहस्साइं एगं च सत्तुत्तरं जोयणसयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते। अब्भंतरतच्चे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल का लम्बाई – चौड़ाई तथा परिधि कितनी है ? गौतम ! लम्बाई – चौड़ाई ९९६४० योजन तथा परिधि कुछ अधिक ३१५०८९ योजन है। द्वितीय आभ्यन्तर सूर्य – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९६४५ – ३५/६१ योजन तथा परिधि ३१५१०७ योजन है। तृतीय आभ्यन्तर सूर्य – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९६५१ – ६/६१
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 258 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तदा णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोन्नि य एगावण्णे जोयणसए एगूनतीसं च सट्ठिभाए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तदा णं इह-गयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य जोयणस्स सट्ठिभाएहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। जया णं भंते! सूरिए अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर – मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो वह एक – एक मुहूर्त्त में कितने क्षेत्र को गमन करता है ? गौतम ! वह एक – एक मुहूर्त्त में ५२५१ – २९/६० योजन पार करता है। उस समय सूर्य यहाँ भरतक्षेत्र – स्थित मनुष्यों को ४७२६३ – २१/६० योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। वहाँ से निकलता हुआ सूर्य नव
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 259 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ? गोयमा! तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतरा मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। जया णं भंते! सूरिए अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ? गोयमा! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि य एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तब – उस समय दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! उत्तमावस्थाप्राप्त, उत्कृष्ट – १८ मुहूर्त्त का दिन होता है, जघन्य १२ मुहुर्त्त की रात होती है। वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नये संवत्सर में प्रथम अहोरात्र में दूसरे आभ्यन्तर
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 260 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं किंसंठिया तावखेत्तसंठिई पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया तावखेत्तसंठिई पन्नत्ता– अंतो संकुया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासेणं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति– पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अनवट्ठियाओ हवंति, तं जहा–सव्वब्भंतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वब्भंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं नव जोयणसहस्साइं चत्तारि छलसीए जोयणसए नव य दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं। एस णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो उसके ताप – क्षेत्र की स्थिति किस प्रकार है ? तब ताप – क्षेत्र की स्थिति ऊर्ध्वमुखी कदम्ब – पुष्प के संस्थान जैसी होती है – वह भीतर में संकीर्ण तथा बाहर विस्तीर्ण, भीतर से वृत्त तथा बाहर से पृथुल, भीतर अंकमुख तथा बाहर गाड़ी की धुरी के अग्रभाग जैसी
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 261 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मेरुस्स मज्झयारे, जाव य लवणस्स रुंदछब्भागे । तावायामो एसो, सगडुद्धीसंठिओ नियमा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २६०
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