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Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 44 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए

Translated Sutra: कौशलिक अर्हत्‌ ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात्‌ निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत्‌ यावत्‌ जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक्‌ भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान्‌ ऐसे उत्तम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 45 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा पंचउत्तरासाढे अभीइछट्ठे होत्था, तं जहा–उत्तरासाढाहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कंते, उत्तरासाढाहिं जाए, उत्तरासाढाहिं रायाभिसेयं पत्ते, उत्तरासाढाहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, उत्तरासाढाहिं अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, अभीइणा परिनिव्वुए।

Translated Sutra: भगवान्‌ ऋषभ के जीवन में पाँच उत्तराषाढा नक्षत्र तथा एक अभिजित्‌ नक्षत्र से सम्बद्ध घटनाएं हैं। चन्द्र – संयोगप्राप्त उत्तराषाढा नक्षत्र में उनका च्यवन – हुआ। उसी में जन्म हुआ। राज्याभिषेक हुआ। मुंडित होकर, घर छोड़कर अनगार बने। उसीमें केवलज्ञान, केवलदर्शन समुत्पन्न हुआ। भगवान्‌ अभिजित नक्षत्र में परिनिर्वृत्त
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 46 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता, तेवट्ठिं पुव्वसय-सहस्साइं रज्जवासमज्झा वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे

Translated Sutra: कौशलिक भगवान्‌ ऋषभ वज्रऋषभनाराचसंहनन युक्त, समचौरससंस्थानसंस्थित तथा ५०० धनुष दैहिक ऊंचाई युक्त थे। वे २० लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा ६३ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे। यों ८३ लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात्‌ मुंडित होकर अगारवास से अनगार – धर्म में प्रव्रजित हुए। १००० वर्ष छद्मस्थ – पर्याय
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 47 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमप-ज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए० परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! । तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे

Translated Sutra: गौतम ! तीसरे आरक का दो सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी काल का दुःषम – सुषमा नामक चौथा आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है। भगवन्‌ ! उस समय भरतक्षेत्र का आकार – स्वरूप कैसा होता है ? गौतम ! उस समय भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है यावत्‌
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार २ काळ

Hindi 48 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए [भरहे वासे] एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहि अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण कम्म बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कम पज्जवेहिं अनंतगुण परिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमा नामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! । तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ?

Translated Sutra: गौतम ! चतुर्थ आरक के ४२००० वर्ष कम एक सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत हो जाने पर अव – सर्पिणी – काल का दुःषमा नामक पंचम आरक प्रारंभ होता है। उसमें अनन्त वर्णपर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है। भगवन्‌ ! उस काल में भरतक्षेत्र का कैसा आकार – स्वरूप होता है ? गौतम ! भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 58 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लासिय लउसिय दमिली, सिंहलि तह आरबी पुलिंदी य । पक्कणि बहलि मुरुंडी, सबरीओ पारसीओ य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ५७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 59 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेल्ले कोट्ठसमुग्गे पत्ते चोए य तगरमेला य । हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासवसमुग्गे ॥

Translated Sutra: इनके अतिरिक्त कतिपय दासियाँ तेल – समुद्‌गक, कोष्ठ, पत्र, चोय, तगर, हरिताल, हिंगुल, मैनसिल, तथा सर्षप समुद्‌गक लियें थीं। कतिपय दासियों के हाथों में तालपत्र, धूपकडच्छुक – धूपदान थे।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 60 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पेगइयाओ वंदनकलसहत्थगयाओ भिंगार आदंस थाल पाति सुपइट्ठग बायकरग रयणकरंड पुप्फचंगेरी मल्ल वण्ण चुण्ण गंधहत्थगयाओ वत्थ आभरण लोमहत्थयचंगेरी पुप्फपडलहत्थ- गयाओ जाव लोमहत्थगडलहत्थगयाओ अप्पेगइयाओ सीहासनहत्थगयाओ छत्त चामर हत्थ-गयाओ तेल्लसमुग्गयहत्थगयाओ कोट्ठसमुग्गयहत्थगयाओ जाव सासवसमुग्गहत्थगयाओ। अप्पेगइयाओ तालियंटहत्थगयाओ धूवकडुच्छुयहत्थगयाओ भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्ठओ अनुगच्छंति। तए णं से भरहे राया सव्विड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थ पुप्फ गंध मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय सद्दसन्निनाएणं

Translated Sutra: उनमें से किन्हीं – किन्हीं के हाथों में मंगलकलश, भृंगार, दर्पण, थाल, छोटे पात्र, सुप्रतिष्ठक, वातकरक, रत्न करंडक, फूलों की डलियाँ, माला, वर्ण, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभूषण, मोर – पंखों से बनी फूलों की गुलदस्तों से भरी डलियाँ, मयूरपिच्छ, सिंहासन, छत्र, चँवर तथा तिलसमुद्‌गक – आदि भिन्न – भिन्न वस्तुएं थीं। यों वह राजा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 61 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्द-सन्नि-नाएणं आपूरेंते चेव अंबरतलं विनीयाए रायहानीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहे पयाते यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ,

Translated Sutra: अष्ट दिवसीय महोत्सव के संपन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न आयुधगृहशाला – से निकला। निकलकर आकाश में प्रतिपन्न हुआ। वह एक सहस्र यक्षों से संपरिवृत था। दिव्य वाद्यों की ध्वनि एवं निनाद से आकाश व्याप्त था। वह चक्ररत्न विनीता राजधानी के बीच से निकला। निकलकर गंगा महानदी के दक्षिणी किनारे से होता हुआ पूर्व दिशा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 62 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं अस्सरहं दुरुढे समाणे हय गय रह पवरजोहकलियाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभडचडगर पहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अनेगरायवरसहस्साणुजायमग्गे महया उक्किट्ठि सीहनाय बोल कलकलरवेणं पक्खु भियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे-करेमाणे पुरत्थिम-दिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुद्दं ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला। तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धनुं परामुसइ। तए णं तं अइरुग्गयबालचंद इंदधनु सन्निकासं वरमहिस दरिय दप्पिय दढघणसिंगग्गरइयसारं उरगवर पवरगवल पवरपरहुय भमरकुल णीलि णिद्ध धंत धोयपट्टं निउणोविय

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राज भरत चातुर्घंट – अश्वरथ पर सवार हुआ। वह घोड़े, हाथी, रथ तथा पदातियों से युक्त चातुरंगिणी सेना से घिरा था। बड़े – बड़े योद्धाओं का समूह साथ चल रहा था। हजारों मुकुटधारी श्रेष्ठ राजा पीछे – पीछे चल रहे थे। चक्ररत्न द्वारा दिखाये गये मार्ग पर वह आगे बढ़ रहा था। उस के द्वारा किये गये सिंहनाद के कलकल शब्द
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 63 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हंदि! सुणंतु भवंतो, बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा । नागासुरा सुवण्णा, तेसिं खु नमो पणिवयामि ॥

Translated Sutra: मेरे द्वारा प्रयुक्त बाण के बहिर्भाग में तथा आभ्यन्तर भाग में अधिष्ठित नागकुमार, असुरकुमार, सुपर्ण – कुमार, आदि देवों ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप उसे स्वीकार करें। यों कहकर राजा भरत ने बाण छोड़ा। सूत्र – ६३, ६४
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 64 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हंदि! सुणंतु भवंतो, अब्भिंतरओ सरस्स जे देवा । नागासुरा सुवण्णा, सव्वे मे ते विसयवासीइतिकट्टु उसुं निसिरइ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ६३
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 65 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिगरणिगरियमज्झो, वाउद्धुयसोभमाणकोसेज्जो । चित्तेण सोभत्ते धनुवरेण इंदोव्व पच्चक्खं ॥

Translated Sutra: मल्ल जब अखाड़े में उतरता है, तब जैसे वह कमर बांधे होता है, उसी प्रकार भरत युद्धोचित वस्त्र – बन्ध द्वारा अपनी कमर बांधे था। उसका कौशेय – पहना हुआ वस्त्र – विशेष हवा से हिलता हुआ बड़ा सुन्दर प्रतीत होता था। विचित्र, उत्तम धनुष धारण किये वह साक्षात्‌ इन्द्र की ज्यों सुशोभित हो रहा था, विद्युत्‌ की तरह देदीप्यमान
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 66 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे, नरवइणो तंमि विजयंमि ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ६५
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 67 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सरे भरहेणं रन्ना निसट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता मागहतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवनंसि निवइए। तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवनंसि सरं निवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी–केस णं भो! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीनपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं दिवानुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमन्नागयाए उप्पिं अप्पुस्सुए भवनंसि सरं निसिरइ त्तिकट्टु सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव से नामाहयके

Translated Sutra: राजा भरत द्वारा छोड़े जाते ही वह बाण तुरन्त बारह योजन तक जाकर मागध तीर्थ के अधिपति – के भवन में गिरा। मागध तीर्थाधिपति देव तत्क्षण क्रोध से लाल हो गया, रोषयुक्त, कोपाविष्ट, प्रचण्ड और क्रोधाग्नि से उद्दीप्त हो गया। कोपाधिक्य से उसके ललाट पर तीन रेखाएं उभर आई। उसकी भृकुटि तन गई। वह बोला – ‘अप्रार्थित – मृत्यु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 68 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदामतित्थाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेह, आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह त्तिकट्टु मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता तेणेव कमेणं जाव धवलमहामेहनिग्गए जाव सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं-उद्धुव्वमाणीहिं, मगइयवरफलग पवरपरिगरखेडय वरवम्म कवय माढी सहस्स-कलिए उक्कडवरमउड तिरीड पडाग झय वेजयंति चामरचलंत

Translated Sutra: राजा भरत ने दिव्य चक्ररत्न को दक्षिण – पश्चिम दिशा में वरदामतीर्थ की ओर जाते हुए देखा। वह बहुत हर्षित तथा परितुष्ट हुआ। उस के कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं – से परिगठित चातुरंगिणी सेना को तैयार करो, आभिषेक्य हस्तिरत्न को शीघ्र ही सुसज्ज करो। यों कहकर राजा स्नानघर में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 69 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आसम दोणमुह गाम पट्टण पुरवर खंधावार गिहावणविभागकुसले, एगासीतिपदेसु सव्वेसु चेव वत्थूसु नेगगुणजाणए पंडिए विहिण्णू पणयालीसाए देवयाणं, वत्थुपरिच्छाए नेमिपासेसु भत्तसालासु कोट्टणिसु य वासघरेसु य विभागकुसले, छेज्जे वेज्झे य दानकम्मे पहाणबुद्धी, जलयाणं भूमियाण य भायणे, जलथलगुहासु जंतेसु परिहासु य कालनाणे, तहेव सद्दे वत्थुप्पएसे पहाणे, गब्भिणि कण्ण रुक्ख वल्लिवेढिय गुणदोसवियाणए, गुणड्ढे, सोलसपासायकरणकुसले, चउसट्ठि-विकप्पवित्थयमई, नंदावत्ते य वद्धमाणे सोत्थियरुयग तह सव्वओभद्दसन्निवेसे य बहुविसेसे, उद्दंडिय देव कोट्ठ दारु गिरि खाय वाहन विभागकुसले

Translated Sutra: वह शिल्पी आश्रम, द्रोणमुख, ग्राम, पट्टन, नगर, सैन्यशिबिर, गृह, आपण – इत्यादि की समुचित संरचना में कुशल था। इक्यासी प्रकार के वास्तु – क्षेत्र का जानकार था। विधिज्ञ था। विशेषज्ञ था। विविध परम्परानुगत भवनों, भोजनशालाओं, दुर्ग – भित्तियों, वासगृहों – के यथोचित रूप में निर्माण करने में निपुण था। काठ आदि के छेदन
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 70 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इय तस्स बहुगुणड्ढे, थवईरयणे नरिंदचंदस्स । तवसंजमनिव्विट्ठे, किं करवाणीतुवट्ठाई ॥

Translated Sutra: वह शिल्पकार अनेकानेक गुणयुक्त था। राजा भरत को अपने पूर्वाचरित तप तथा संयम के फलस्वरूप प्राप्त उस शिल्पी ने कहा – स्वामी ! मैं क्या निर्माण करूँ ?
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 71 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो देवकम्मविहिणा, खंधावारं नरिंदवयणेणं । आवसहभवनकलियं, करेइ सव्वं मुहुत्तेणं ॥

Translated Sutra: राजा के वचन के अनुरूप उसने देवकर्मविधि से – दिव्य क्षमता द्वारा मुहूर्त्त मात्र में – सैन्यशिबिर तथा सुन्दर आवास – भवन की रचना कर दी। पौषधशाला का निर्माण किया।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 72 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] करेत्ता पवरपोसहघरं करेइ, करेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छति, उवगच्छित्ता तमाणत्तियं खिप्पामेग पच्चप्पिणइ। तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता वरदामतित्थ-कुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्क-मणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवने निक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए एगे अबीए अट्ठम-भत्तं पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राजा भरत के पास आकर निवेदित किया कि आपके आदेशानुरूप निर्माण – कार्य सम्पन्न कर दिया है। इससे आगे का वर्णन पूर्ववत्‌ है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 73 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं तं धरणितलगमनलहु ततोव्विद्ध लक्खणपसत्थं हिमवंत कंदरंतरणिवाय संवद्धिय चित्त तिनिसदलियं जंबूणयसुकयकुव्वरं कनयदंडियारं पुलय वइर इंदणील सासग पवाल फलिहवर रयण लेट्ठु मणि विद्दुमविभूसियं अडयालीसारर-इयतवणिज्जपट्टसंगहिय जुत्ततुंबं पघसियपसिय-निम्मियनवपट्ट पुट्ठ परिनिट्ठियं विसिट्ठलट्ठणवलोहवद्धकम्मं हरिपहरणरयणसरिसचक्कं कक्केयण-इंदणी सासगसुसमाहिय बद्धजालकंकडं पसत्थविच्छिण्णसमधुरं पुरवरं व गुत्तं सुकरणतवणिज्ज-जुत्तकलियं कंकडगणिजुत्तकप्पणं पहरणानुजायं खेडग कनग धनु मंडलग्ग वरसत्ति कोंत तोमर सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं कनगरयणचित्तं जुत्तं हलीमुह

Translated Sutra: वह रथ पृथ्वी पर शीघ्र गति से चलनेवाला था। अनेक उत्तम लक्षण युक्त था। हिमालय पर्वत की वायु – रहित कन्दराओं में संवर्धित तिनिश नामक रथनिर्माणोपयोगी वृक्षों के काठ से बना था। उसका जुआ जम्बूनद स्वर्ण से निर्मित था। आरे स्वर्णमयी ताड़ियों के थे। पुलक, वरेन्द्र, नील सासक, प्रवाल, स्फटिक, लेष्टु, चन्द्रकांत, विद्रुम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 74 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्स-संपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहे पयाते यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवनाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए तहेव जाव जेणेव सिंधूए देवीए भवनं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधूए देवीए भवनस्स अदूरसामंते

Translated Sutra: प्रभास तीर्थकुमार को विजित कर लेने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के परिसम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। यावत्‌ उसने सिन्धु महानदी के दाहिने किनारे होते हुए पूर्व दिशा में सिन्धु देवी के भवन की ओर प्रयाण किया। राजा भरत बहुत हर्षित हुआ, परितुष्ट हुआ। जहाँ सिन्धु
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 75 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे सिंधूए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंतं चेव अंबरतलं० उत्तरपुरत्थिमं दिसिं वेयड्ढपव्वयभिमुहे पयाए यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरत्थिमंदिसिं वेयड्ढपव्वयाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए जाव जेणेव वेयड्ढपव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले नितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले नितंबे दुवालसजोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं

Translated Sutra: सिन्धुदेवी के विजयोपलक्ष्य में अष्टदिवसीय महोत्सव सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न पूर्ववत्‌ शास्त्रागार से बाहर निकला। ईशानकोण में वैताढ्य पर्वत की ओर प्रयाण किया। राजा भरत वैताढ्य पर्वत की दाहिनी ओर की तलहटी थी, वहाँ आया। वहाँ बारह योजन लम्बा तथा नौ योजन चौड़ा सैन्य – शिबिर स्थापित किया। वैताढ्यकुमार
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 76 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेनावइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छाहि णं भो देवानुप्पिया! सिंधूए महानईए पच्चत्थिमिल्लं निक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तते णं से सेनावई बलस्स नेया, भरहे वासंमि विस्सुयजसे, महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निण्णाण य दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थ-कुसले रयणं सेनावई सुसेने

Translated Sutra: कृतमाल देव के विजयोपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर राजा भरत ने अपने सुषेण सेनापति को बुलाकर कहा – सिंधु महानदी के पश्चिम से विद्यमान, पूर्व में तथा दक्षिण में सिन्धु महानदी द्वारा, पश्चिम में पश्चिम समुद्र द्वारा तथा उत्तर में वैताढ्य पर्वत द्वारा विभक्त भरतक्षेत्र के कोणवर्ती
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 77 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अन्नया कयाइ सुसेणं सेनावइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– गच्छ णं खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से सुसेने सेनावई भरहेणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुनेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रन्नो अंतियाओ पडिनि-क्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भसंथारगं संथरइ,

Translated Sutra: राजा भरत ने सेनापति सुषेण को बुलाकर कहा – जाओ, शीघ्र ही तमिस्र गुफा के दक्षिणी द्वार के दोनों कपाट उद्‌घाटित करो। राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर सेनापति सुषेण अपने चित्त में हर्षित, परितुष्ट तथा आनन्दित हुआ। उसने अपने दोनों हाथ जोड़े। विनयपूर्वक राजा का वचन स्वीकार किया। पौषधशाला में आया। डाभ का बिछौना
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 78 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया मणिरयणं परामुसइ– तो तं चउरंगुलप्पमाणमेत्तं च अनग्घियं तंसच्छलंसं अनोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं वेढो– जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, ण किंचि जायइ हवइ आरोग्गे य सव्वकालं। तेरिच्छिय-देवमाणुसकया य, उवसग्गा सव्वे न करेंति तस्स दुक्खं। संगामे वि असत्थवज्झो, होइ णरो मणिवरं धरेंतो। ठियजोव्वण-केसअवट्ठियणहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को। तं मणिरयणं गहाय से नरवई हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए निक्खिवइ। तए णं से भरहाहिवे नरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए नरसीहे नरवई नरिंदे नरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राजा भरत ने मणिरत्न का स्पर्श किया। वह मणिरत्न विशिष्ट आकारयुक्त, सुन्दरतायुक्त था। चार अंगुल प्रमाण था, अमूल्य था – वह तिखूंटा, ऊपर नीचे षट्‌कोणयुक्त, अनुपम द्युतियुक्त, दिव्य, मणिरत्नों में सर्वोत्कृष्ट, सब लोगों का मन हरने वाला था – जो सर्व – कष्ट – निवारक था, सर्वकाल आरोग्यप्रद था। उस के प्रभाव
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 79 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं तिमिसगुहाए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ नामं दुवे महानईओ पन्नत्ताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरत्थिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पवूढाओ समाणीओ पच्चत्थि-मेणं सिंधुं महानइं समप्पेंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ महानईओ? गोयमा! जण्णं उम्मुग्गजलाए महानईए तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मनुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्णं उम्मुग्गजला महानई तिक्खुत्तो आहुणिय-आहुणिय एगंते थलंसि एडेइ। जण्णं निमुग्गजलाए महानईए तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मनुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्णं निमुग्गजला

Translated Sutra: तमिस्रा गुफा के ठीक बीच में उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नामक दो महानदियाँ हैं, जो तमिस्रा गुफा के पूर्वी भित्तिप्रदेश से निकलती हुई पश्चिमी भित्ति प्रदेश होती हुई सिन्धु महानदी में मिलती हैं। भगवन्‌ ! इन नदियों के उन्मग्नजला तथा निमग्नजला – ये नाम किस कारण पड़े ? गौतम ! उन्मग्नजला महानदी में तृण, पत्र काष्ठ पाषाणखण्ड,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 80 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरड्ढभरहे वासे बहवे आवाडा नामं चिलाया परिवसंति–अड्ढा दित्ता बित्ता विच्छिण्णविउलभवन सयणासण जानवाहनाइण्णा बहुधन बहुजायरूवरयया आओगपओग-संपउत्ता विच्छड्डियपउरभत्तपाणा बहुदासी-दास गो महिस गवेलगप्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया सूरा वीरा विक्कंता विच्छिण्णविउलबलबाहणा बहुसु समरसंपराएसु लद्धलक्खा यावि होत्था। तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अन्नया कयाइ विसयंसि बहूइं उप्पाइयसयाइं पाउब्भवित्था, तं जहा– अकाले गज्जियं, अकाले विज्जुयं, अकाले पायवा पुप्फंति, अभिक्खणं-अभिक्खणं आगासे देवयाओ नच्चंति। तए णं ते आवाडचिलाया विसयंसि बहूइं उप्पाइयसयाइं

Translated Sutra: उस समय उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में – आपात संज्ञक किरात निवास करते थे। वे आढ्य, दीप्त, वित्त, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन तथा स्वर्ण, रजत आदि प्रचुर धन के स्वामी थे। आयोग – प्रयोग – संप्रवृत्त – थे। उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खाने – पीने के बहुत पदार्थ बचते थे। उनके घरों में बहुत से नौकर – नौकरानियाँ, गायें, भैंसे,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 81 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेनाबलस्स नेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं निन्नाणय दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेनावई सुसेने भरहस्स रन्नो अग्गाणीयं आवाड-चिलाएहिं हयमहियपवरवीर घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरुहइ, तए णं तं असीइमंगुलमूसियं नवनउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसिय सिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाकं चउरंगुलजण्णुकं

Translated Sutra: सेनापति सुषेण ने राजा भरत के सैन्य के अग्रभाग के अनेक योद्धाओं को आपात किरातों द्वारा हत, मथित देखा। सैनिकों को भागते देखा। सेनापति सुषेण तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल एवं कुपित हुआ। वह मिसमिसाहट करता हुआ – कमलामेल नामक अश्वरत्न पर – आरूढ़ हुआ। वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊंचा था, निन्यानवे अंगुल मध्य परिधियुक्त
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 82 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पन्नासगुंलदीहो, सोलंस सो अंगुलाइं विच्छिण्णो । अद्धंगुलसोणीको, जेट्ठपमाणो असी भणिओ ॥

Translated Sutra: वह तलवार पचास अंगुल लम्बी, सोलह अंगुल चौड़ी और मोटाई अर्ध – अंगुल प्रमाण थी।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 83 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] असिरयणं नरवइस्स हत्थाओ तं गहिऊण जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आवाडचिल्लाएहिं सद्धिं संपलग्गे आवि होत्था। तए णं से सुसेने सेनावई ते आवाडचिलाए हयमहियपवरवीरघाइय विवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहेइ।

Translated Sutra: राजा के हाथ से उत्तम तलवार को लेकर सेनापति सुषेण, आपात किरातों से भिड़ गया। उसने आपात किरातों में से अनेक प्रबल योद्धाओं को मार डाला, मथ डाला तथा घायल कर डाला।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 84 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते आवाडचिलाया सुसेनसेनावइणा हयमहिय पवरवीरघाइय विवडियचिंधद्धयपडागा किच्छ- प्पाणोवगया दिसोदिसिं पडिसेहिया समाणा भीया तत्था वहिया उव्विग्गा संजायभया अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमितिकट्टु अनेगाइं जोयणाइं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता एगयओ मिलायंति, मिलायित्ता जेणेव सिंधू महानई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वालुयासंथारए संथरेंति, संथरेत्ता वालुयासंथारए दुरुहंति, दुरुहित्ता अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति, पगिण्हित्ता वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया जे तेसिं कुलदेवया मेहमुहा नामं नागकुमारा देवा ते मनसीकरेमाणा-मनसीकरेमाणा

Translated Sutra: सेनापति सुषेण द्वारा हत – मथित किये जाने पर, मेदान छोड़कर भागे हुए आपात किरात बड़े भीत, त्रस्त, व्यथित, पीड़ायुक्त, उद्विग्न होकर घबरा गये। वे अपने को निर्बल, निर्वीर्य तथा पौरुष – पराक्रम रहित अनुभव करने लगे। शत्रु – सेना का सामना करना शक्य नहीं है, यह सोचकर वे वहाँ से अनेक योजन दूर भाग गये। यों दूर जाकर वे एक स्थान
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 85 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया उप्पिं विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासमाणं पासइ, पासित्ता चम्मरयणं परामुसइ– तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं मुत्ततारद्ध-चंदचित्तं अयलमकंपं अभेज्जकवयं जंतं सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं, सणसत्तर-साइं सव्वधण्णाइं जत्थ रोहंति एगदिवसेण वावियाइं, वासं णाऊण चक्कवट्टिणा परामुट्ठे दिव्वे चम्मरयणे दुवालसजोयणाइं तिरियं पवित्थरइ तत्थ साहियाइं। तए णं से भरहे राया सखंधारबले चम्मरयणं दुरुहइ, दुरुहित्ता दिव्वं छत्तरयणं परामुसइ– तए णं नवनउइसहस्स-कंचनसलागपरिमंडियं महरिहं अओज्झं निव्वण

Translated Sutra: राजा भरत ने उस वर्षा को देखा। अपने चर्मरत्न का स्पर्श किया। वह चर्मरत्न कुछ अधिक बारह योजन तिरछा विस्तीर्ण हो गया – । तत्पश्चात्‌ राजा भरत अपनी सेना सहित उस चर्मरत्न पर आरूढ़ हो गया। छत्ररत्न छुआ, वह छत्ररत्न निन्यानवें हजार स्वर्ण – निर्मित शलाकाओं से – ताड़ियों से परिमण्डित था। बहुमूल्य था, अयोध्या था, निर्व्रण
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 86 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहयं बहुगुणदानं, उऊण विवरीयसुकयच्छायं । छत्तरयणं पहाणं सुदुल्लहं अप्पपुण्णाणं ॥

Translated Sutra: वह छत्ररत्न अहत – था, ऐश्वर्य आदि अनेक गुणों का प्रदायक था। हेमन्त आदि ऋतुओं में तद्विपरीत सुखप्रद छाया देता था। छत्रों में उत्कृष्ट एवं प्रधान था।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 87 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पमाणराईण तवगुणाण फलेगदेसभागं, विमानवासेवि दुल्लहतरं, वग्घारियमल्लदामकलावं सारय-धवलब्भरयणिगरप्पगासं दिव्वं छत्तरयणं महिवइस्स धरणियलपुण्णचंदो। तए णं से दिव्वे छत्तरतणे भरहेणं रन्ना परामुट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं पवित्थरइ साहियाइं तिरियं।

Translated Sutra: अल्पपुण्य – पुरुषों के लिए दुर्लभ था। वह छत्ररत्न छह खण्डों के अधिपति चक्रवर्ती राजाओं के पूर्वाचरित तप के फल का एक भाग था। देवयोनि में भी अत्यन्त दुर्लभ था। उस पर फूलों की मालाएं लटकती थीं, शरद्‌ ऋतु के धवल मेघ तथा चन्द्रमा के प्रकाश के समान भास्वर था। एक सहस्र देवों से अधिष्ठित था। राजा भरत का वह छत्ररत्न
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 88 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया छत्तरयणं खंधावारस्सुवरिं ठवेइ, ठवेत्ता मणिरयणं परामुसइ– तो तं चउरंगुल-प्पमाणमेत्तं च अणग्घियं तंसच्छलंसं अनोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं– जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, न किंचि जायइ हवइ आरोग्गे य सव्वकालं । तेरिच्छिय-देवमानुसकया य, उवसग्गा सव्वे न करेंति तस्स दुक्खं ॥ संगामे वि असत्थवज्झो, होइ नरो मणिवरं धरेंतो । ठियजोव्वण-केसअवट्ठिय-नहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को ॥ तं मणिरयणं गहाय छत्तरयणस्स वत्थिभागंसि ठवेइ, तस्स य अनतिवरं चारुरूवं सिलनिहि-यत्थमंतसित्त सालि जव गोहूम मुग्ग मास तिल कुलत्थ सट्ठिग निप्फाव चणग कोद्दव कोत्थुंभरि

Translated Sutra: राजा भरत ने छत्ररत्न को अपनी सेना पर तान दिया। मणिरत्न का स्पर्श किया। उस मणिरत्न को राजा भरत ने छत्ररत्न के बस्तिभाग में – स्थापित किया। राजा भरत के साथ गाथापतिरत्न था। वह अपनी अनुपम विशेषता – लिये था। शिला की ज्यों अति स्थिर चर्मरत्न पर केवल वपन मात्र द्वारा शालि, जौ, गेहूँ, मूँग, उर्द, तिल, कुलथी, षष्टिक,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 89 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नवि से खुहा न तण्हा, नेव भयं नेव विज्जए दुक्खं । भरहाहिवस्स रन्नो, खंधावारस्सवि तहेव ॥

Translated Sutra: उस अवधि में राजा भरत को तथा उस की सेना को न भूख ने पीड़ित किया, न उन्होंने दैन्य का अनुभव किया और न वे भयभीत और दुःखित ही हुए।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 90 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–केस णं भो! अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीनपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरि परिवज्जिए जे णं ममं इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवानुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमन्नागयाए उप्पिं विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासइ। तए णं तस्स भरहस्स रन्नो इमेयारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मनोगयं संकप्पं समुप्पन्नं जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सन्नज्झिउं पवत्ता यावि होत्था। तए णं ते देवा सन्नद्धबद्धवम्मियकवया

Translated Sutra: राजा भरत को इस रूप में रहते हुए सात दिन रात व्यतीत हो गये तो उस के मन में ऐसा विचार, भाव, संकल्प उत्पन्न हुआ – कौन ऐसा है, जो मेरी दिव्य ऋद्धि तथा दिव्य द्युति की विद्यामानता में भी मेरी सेना पर युग, मूसल एवं मुष्टिका प्रमाण जलधारा द्वारा सात दिन – रात हुए, भारी वर्षा करता जा रहा है। राजा भरत ने मन में ऐसा विचार, भाव
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 91 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वसुहर! गुणहर! जयहर! हिरिसिरिधीकित्तिधारकनरिंद! लक्खणसहस्सधारक! रायमिणं णे चिरं धारे ॥

Translated Sutra: षट्‌खण्डवर्ती वैभव के स्वामिन्‌ ! गुणभूषित ! जयशील ! लज्जा, लक्ष्मी, धृति, कीर्ति के धारक ! राजोचित सहस्रों लक्षणों से सम्पन्न ! नरेन्द्र ! हमारे इस राज्य का चिरकाल पर्यन्त आप पालन करें।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 92 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हयवति! गयवति! नरवति! नवनिहिवति! भरहवासपढमवति! बत्तीसजनवयसहस्सराय! सामी चिरं जीव ॥

Translated Sutra: अश्वपते ! गजपते ! नरपते ! नवनिधिपते ! भरत क्षेत्र के प्रथमाधिपते ! बत्तीस हजार देशों के राजाओं के अधिनायक ! आप चिरकाल तक जीवित रहें – दीर्घायु हों।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 93 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढमनरीसर! ईसर! हियईसर! महिलियासहस्साणं । देवसयसहस्सीसर! चोद्दसरयणीसर! जसंसी! ॥

Translated Sutra: प्रथम नरेश्वर ! ऐश्वर्यशालीन्‌ ! ६४००० नारियों के हृदयेश्वर – मागध तीर्थाधिपति आदि लाखों देव के स्वामिन्‌ ! चतुर्दश रत्नों के धारक ! यशस्विन्‌ !
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 94 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सागरगिरिपेरंतं, उत्तरपाईणमभिजियं तुमए । ता अम्हे देवानुप्पियस्स विसए परिवसामो ॥

Translated Sutra: आपने दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम दिशा में समुद्रपर्यन्त और उत्तर दिशा में क्षुल्ल हिमवान्‌ गिरि पर्यन्त समग्र भरतक्षेत्र को जीत लिया है। हम आपके प्रजाजन हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 95 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहो णं देवानुप्पियाणं इड्ढी जुई जसे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए, तं दिट्ठा णं देवानुप्पियाणं इड्ढी जुई जसे बले वीरिए पुरिस-क्कार-परक्कमे दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए, तं खामेसु णं देवानुप्पिया! खमंतु णं देवानुप्पिया! खंतुमरुहंतु णं देवानुप्पिया! नाइ भुज्जो-भुज्जो एवं करणयाए त्तिकट्टु पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायं सरणं उवेंति। तए णं से भरहे राया तेसिं आवाडचिलायाणं अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छंति, पडिच्छित्ता ते आवाडचिलाए एवं वयासी– गच्छह णं भो! तुब्भे ममं बाहुच्छायापरिग्गहिया

Translated Sutra: आपकी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषकार तथा पराक्रम – ये सब आश्चर्यकारक हैं। आपको दिव्य देव – द्युति – परमोत्कृष्ट प्रभाव अपने पुण्योदय से प्राप्त है। हमने आपकी ऋद्धि का साक्षात्‌ अनुभव किया है। देवानुप्रिय ! हम आपसे क्षमायाचना करते हैं। आप हमें क्षमा करें। हम भविष्य में फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे। यों कहकर
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 96 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं दिव्वे चक्करयणे अन्नया कयाइ आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंत-लिक्खपडिवन्ने जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं उत्तरपुरत्थिमं दिसिं चुल्लहिमवंतपव्वयाभिमुहे पयाते यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरत्थिमं दिसिं चुल्लहिमवंतपव्वयाभिमुहं पयातं पासइ जाव जेणेव चुल्लहिमवंतपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लहिमवंतवासहर पव्वयस्स अदूरसामन्ते दुवालसजोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधावार-निवेसं करेइ जाव चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, तहेव

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वह दिव्य चक्ररत्न शास्त्रागार से बाहर निकला, ईसान – कोण में लघु हिमवान्‌ पर्वत की ओर चला। राजा भरत ने क्षुद्र हिमवान्‌ वर्षधर पर्वत से कुछ ही दूरी पर सैन्य – शिबिर स्थापित किया। उसने क्षुद्र हिमवान्‌ गिरिकुमार देव को उद्दिष्ट कर तेले की तपस्या की। शेष कथन मागधतीर्थ समान जानना। राजा भरत क्षुद्र
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 97 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता जेणेव उसहकूडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसहकूडं पव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ, फुसित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता छत्तलं दुवालसं- सियं अट्ठकण्णियं अहिगरणिसंठियं सोवण्णियं काग-निरयणं परामुसइ, परामुसित्ता उसभकूडस्स पव्वयस्स पुरत्थिमिल्लंसि कडगंसि नामगं आउडेइ–

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राजा भरत ने अपने रथ के घोड़ों को नियन्त्रित किया। रथ को वापस मोड़ा। ऋषभकूट पर्वत आया। रथ के अग्र भाग से तीन बार ऋषभकूट पर्वत का स्पर्श किया। काकणी रत्न का स्पर्श किया। वह रत्न चार दिशाओं तथा ऊपर, नीचे छह तलयुक्त था। यावत्‌ अष्टस्वर्णमानपरिमाण था। राजा ने काकणी रत्न का स्पर्श कर ऋषभकूट पर्वत के
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 98 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओसप्पिणी इमीसे, तइयाए समाइ पच्छिमे भाए । अहमंसि चक्कवट्टी, भरहो इति नामधेज्जेणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 99 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहमंसि पढमराया, इहइं भरहाहिवो नरवरिंदो । नत्थि महं पडिसत्तू, जियं मए भारहं वासं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 100 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इतिकट्टु णामगं आउडेइ, आउडेत्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता जेणेव विजयखंधावारनिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव– तए णं से दिव्वे चक्करयणे चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं दाहिणं दिसिं वेयड्ढपव्वया-भिमुहे पयाते यावि होत्था।

Translated Sutra: देखो सूत्र ९७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 101 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणं दिसिं वेयड्ढपव्वयाभिमुह पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए जाव जेणेव वेयड्ढपव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे दुवालस जोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ जाव पोसहसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता नमिविनमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे

Translated Sutra: राजा भरत ने उस दिव्य चक्ररत्न को दक्षिण दिशा में वैताढ्य पर्वत की ओर जाते हुए देखा। वह वैताढ्य पर्वत की उत्तर दिशावर्ती तलहटो में आया। वहाँ सैन्यशिबिर स्थापित किया। पौषधशाला में प्रविष्ट हुआ। श्रीऋषभस्वामी के कच्छ तथा महाकच्छ नामक प्रधान सामन्तों के पुत्र नमि एवं विनमि नामक विद्याधर राजाओं को उद्दिष्ट
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 102 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिसु तनुयं तिसु तंबं तिवलीणं तिउन्नयं तिगंभीरं । तिसु कालं तिसु सेयं तियायतं तिसु य विच्छिण्णं ॥

Translated Sutra: वह तीन स्थानों में – कृश थी। तीन स्थानों में लाल थी। त्रिवलियुक्त थी। तीन स्थानों में – उन्नत थी। तीन स्थानों में गंभीर थी। तीन स्थानों में कृष्णवर्ण थी। तीन स्थानों में – श्वेतता लिये थी। तीन स्थानों में – लम्बाई लिये थी। तीन स्थानों में – चौड़ाई युक्त थी।
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