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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 294 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विजया य वेजयंति, जयंति अपराजिया य इच्छा य ।
समाहारा चेव तहा, तेया य तहेव अइतेया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 295 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] देवानंदा निरई, रयणीणं नामधेज्जाइं ॥
एयासि णं भंते! पन्नरसण्हं राईणं कइ तिही पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस तिहि पन्नत्ता, तं जहा–उग्गवई, भोग्गई, जसवई, सव्वसिद्धा सुहानामा।
पुनरवि–उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा ।
पुनरवि–उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहनामा ।
एवं एए तिगुणा तिहीओ सव्वेसिं राईणं।
एगमेगस्स णं भंते! अहोरत्तस्स कइ मुहुत्ता पन्नत्ता? गोयमा! तीसं मुहुत्ता पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 296 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रोद्दे सेए मित्ते, वाउ सुपीए तहेव अभिचंदे ।
माहिंद बलव बंभे, बहुसच्चे चेव ईसाने ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 297 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तट्ठे य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आनंदे ।
विजए य वीससेने, पायावच्चे उवसमे य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 298 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गंधव्व अग्गिवेसे, सयवसहे आयवं च अममे य ।
अनवं भोमे च रिसहे, सव्वट्ठे रक्खसे चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 299 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! करणा पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारस करणा पन्नत्ता, तं जहा–बवं बालवं कोलवं थीविलोयणं गराइ वणिजं विट्ठी सउणी चउप्पयं नागं किंथुग्घं।
एएसि णं भंते! एक्कारसण्हं करणाणं कइ करणा चरा, कइ करणा थिरा पन्नत्ता? गोयमा! सत्त करणा चरा, चत्तारि करणा थिरा पन्नत्ता, तं जहा–बवं बालवं कोलवं थीविलोयणं गराइ वणिजं विट्ठी–एए णं सत्त करणा चरा। चत्तारि करणा थिरा पन्नत्ता, तं जहा–सउणी चउप्पयं नागं किंथुग्घं–एए णं चत्तारि करणा थिरा।
एए णं भंते! चरा थिरा वा कया भवंति? गोयमा! सुक्कपक्खस्स पडिवाए राओ बवे करणे भवइ। बिइयाए दिवा बालवे करणे भवइ, राओ कोलवे करणे भवइ। तइयाए दिवा थीविलोयणं करणं Translated Sutra: भगवन् ! करण कितने हैं ? गौतम ! ग्यारह – १. बव, २. बालव, ३. कौलव, ४. स्त्रीविलोचन – तैतिल, ५. गर, ६. वणिज, ७. विष्टि, ८. शकुनि, ९. चतुष्पद, १०. नाग तथा ११. किंस्तुघ्न। इन ग्यारह करणों में सात करण चर तथा चार करण स्थिर हैं। बव, बालव, कौलव, स्त्रीविलोचन, गरादि, वणिज तथा विष्टि – ये सात करण चर हैं एवं शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 300 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] किमाइया णं भंते! संवच्छरा, किमाइया अयना, किमाइया उऊ, किमाइया भासा, किमाइया पक्खा, किमाइया अहोरत्ता, किमाइया मुहुत्ता, किमाइया करणा, किमाइया नक्खत्ता पन्नत्ता? गोयमा! चंदाइया संवच्छरा, दक्खिणाइया अयणा, पाउसाइया उऊ, सावणाइया मासा, बहुलाइया पक्खा, दिवसाइया अहोरत्ता, रोद्दाइया मुहुत्ता, बालवाइया करणा, अभिजियाइया नक्खत्ता पन्नत्ता समणाउसो! ।
पंचसंवच्छरिए णं भंते! जुगे केवइया अयणा, केवइया उऊ, एवं मासा पक्खा अहोरत्ता, केवइया मुहुत्ता पन्नत्ता? गोयमा! पंचसंवच्छरिए णं जुगे दस अयणा, तीसं उऊ, सट्ठी मासा, एगे वीसुत्तरे पक्खसए, अट्ठारसतीसा अहोरत्तसया चउप्पन्नं मुहुत्तसहस्सा Translated Sutra: भगवन् ! संवत्सरों में आदि – संवत्सर कौन सा है ? अयनों में प्रथम अयन कौन सा है ? यावत् नक्षत्रों में प्रथम नक्षत्र कौन सा है ? गौतम ! संवत्सरों में आदि – चन्द्र – संवत्सर है। अयनों में प्रथम दक्षिणायन है। ऋतुओं में प्रथम प्रावृट् – ऋतु है। महीनों में प्रथम श्रावण है। पक्षों में प्रथम कृष्णपक्ष है। अहोरात्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 1 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो अरहंताणं।
तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नयरी होत्था–रिद्ध-त्थिमिय-समिद्धा, वण्णओ।
से णं मिहिलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे नामं चेइए होत्था, वण्णओ। जियसत्तू राया, धारिणी देवी, वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढो, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया। Translated Sutra: अरिहंत भगवंतो को नमस्कार हो। उस काल, उस समय, मिथिला नामक नगरी थी। वह वैभव, सुरक्षा, समृद्धि आदि विशेषताओं से युक्त थी। मिथिला नगरी के बाहर ईशान कोण में माणिभद्र नामक चैत्य था। जितशत्रु राजा था। धारिणी पटरानी थी। तब भगवान् महावीर वहाँ समवसृत हुए – लोग अपने – अपने स्थानों से रवाना हुए, भगवान् ने धर्मदेशना | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 2 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिघसपह्मगोरे उग्ग-तवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबह्मचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्न-कोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले Translated Sutra: उसी समय की बात है, भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी – शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार – जो गौतम गोत्र में उत्पन्न थे, जिनकी ऊंचाई सात हाथ थी, समचतुरस्र संस्थानसंस्थित, जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन, कसौटी पर अंकित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौरवर्ण थे, जो उग्र तपस्वी, दीप्त तपस्वी, तप्त – तपस्वी, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? केमहालए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? किंसंठिए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? किमागारभावपडोयारे णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे पन्नत्ते?
गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भिंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूय-संठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंद-संठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं । Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? कितना बड़ा है ? उस का संस्थान कैसा है ? उस का आकार – स्वरूप कैसा है? गौतम ! यह जम्बूद्वीप सब द्वीप – समुद्रों में आभ्यन्तर है – सबसे छोटा है, गोल है, तेल में तले पूए जैसा गोल है, रथ के पहिए जैसा, कमल कर्णिका जैसा, प्रतिपूर्ण चन्द्र जैसा गोल है, अपने गोल आकारमें यह एक लाख योजन लम्बा – चौड़ा है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 4 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं एगाए वइरामईए जगईए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते।
सा णं जगई अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णा, मज्झे संक्खित्ता, उवरिं तनुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
सा णं जगई एगेणं महंतगवक्खकडएणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। से णं गवक्खकडए अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे।
तीसे Translated Sutra: वह एक वज्रमय जगती द्वारा सब ओर से वेष्टित है। वह जगती आठ योजन ऊंची है। मूल में बारह योजन चौड़ी, बीच में आठ योजन चौड़ी और ऊपर चार योजन चौड़ी है। मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त तथा ऊपर पतली है। उस का आकार गाय की पूँछ जैसा है। यह सर्व रत्नमय, स्वच्छ, सुकोमल, चिकनी, घुटी हुई सी – तरासी हुई – सी, रजरहित, मैल – रहित, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 5 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगईए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं एत्थ णं महं एगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूनाइं दो जोयणाइं विक्खंभेणं, जगईसमए परिक्खेवेणं, वनसंडवण्णओ नेयव्वो। Translated Sutra: उस जगती के ऊपर तथा पद्मवरवेदिका के बाहर एक विशाल वन – खण्ड है। वह कुछ कम दो योजन चौड़ा है। उसकी परिधि जगती के तुल्य है। उसका वर्णन पूर्वोक्त आगमों से जान लेना चाहिए। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 6 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते, से जहानामए–आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविह-पंचवण्णेहिं मणीहि य तणेहि य उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो पुक्खरिणीओ पव्वयगा घरगा मंडवगा पुढविसिलावट्टया य नेयव्वा।
तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति रमंति ललंति कीलंति मोहंति, पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चनुभवमाणा विहरंति।
तीसे णं जगईए उप्पिं पउमवरवेइयाए अंतो एत्थ णं महं एगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूनाइं Translated Sutra: उस वन – खंड में एक अत्यन्त समतल रमणीय भूमिभाग है। वह आलिंग – पुष्कर – धर्म – पुट, समतल और सुन्दर है। यावत् बहुविध पंचरंगी मणियों से, तृणों से सुशोभित है। कृष्ण आदि उनके अपने – अपने विशेष वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श तथा शब्द हैं। वहाँ पुष्करिणी, पर्वत, मंड़प, पृथ्वी – शिलापट्ट हैं। वहाँ अनेक वाणव्यन्तर देव एवं देवियाँ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 7 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजए वेजयंते जयंते अपराजिते। एवं चत्तारि वि दारा सराय हाणिया भाणियव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार द्वार हैं – विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजित। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 8 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं वीइवइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पुरत्थिमपेरंते लवणसमुद्द-पुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीआए महानईए उप्पिं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेए वरकनग-थूभियाए जाव दारस्स वण्णओ जाव रायहानी। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप का विजय द्वार कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप स्थित मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में ४५ हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप के पूर्व के अंतमें तथा लवणसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम में सीता महानदी पर जम्बूद्वीप का विजय द्वार है। वह आठ योजन ऊंचा तथा चार योजन चौड़ा है। उसका प्रवेश – चार योजन का है। वह द्वार | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 9 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स दारस्स य दारस्स य केवइए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! अउणासीइं जोयणसहस्साइं बावन्नं च जोयणाइं देसूणं च अद्धजोयणं दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अबाधित अन्तर कितना है ? | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 10 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अउणासीइ सहस्सा, बावन्नं चेव जोयणा हुंति ।
ऊणं च अद्धजोयण, दारंतरं जंबुद्दीवस्स ॥ Translated Sutra: गौतम ! वह ७९०५२ योजन एवं कुछ कम आधे योजन का है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 11 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते?
गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते– खाणुबहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्वयबहुले पवायबहुले उज्झरबहुले निज्झरबहुले खुड्डाबहुले दरिबहुले नदीबहुले दहबहुले रुक्खबहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले लयाबहुले वल्लीबहुले अडवीबहुले सावयबहुये तेनबहुले तक्करबहुले डिंबबहुले डमरबहुले दुब्भिक्खबहुले दुक्कालबहुले पासंडबहुले किवणबहुले वणीमगबहुले Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत नामक वर्ष – क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्ल हिमवंत पर्वत के दक्षिण में, दक्षिणवर्ती लवणसमुद्र के उत्तर में, पूर्ववर्ती लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमवर्ती लवणसमुद्र के पूर्व में है। इसमें स्थाणुओं, काँटों, ऊंची – नीची भूमि, दुर्गमस्थानों, पर्वतों, प्रपातों, अवझरों, निर्झरों, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे भरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धभरहे नामं वासे पन्नत्ते– पाईणपडीणायए उदीण-दाहिणविच्छिन्ने अद्धचंदसंठाणसंठिए तिहा लवणसमुद्दं पुट्ठे, गंगासिंधूहिं महानईहिं तिभागपविभत्ते दोन्नि अट्ठतीसे जोयणसए तिन्नि य एगूनवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं।
तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा– पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्यपर्वत के दक्षिण में, दक्षिण – लवण समुद्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बू नामक द्वीप के अन्तर्गत है। वह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। यह अर्द्ध – चन्द्र – संस्थान | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 13 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पणवीसं जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र के दक्षिण में, दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। यह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। अपने पूर्वी किनारे से पूर्व – लवणसमुद्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कुडे पन्नत्ते?
गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं दाहिणड्ढभरहकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, छ सक्कोसाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे देसूनाइं पंच जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरि साइरेगाइं तिन्नि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले देसूनाइं वीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे देसूनाइं पन्नरस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइं नव जोयणाइं परिक्खेवेणं, मूले विच्छिन्नेमज्झे संखित्ते Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्व लवणसमुद्र के पश्चिम में, दक्षिणार्ध भरतकूट के पूर्व में है। वह छह योजन एक कोस ऊंचा, मूल में छह योजन एक कौस चौड़ा, मध्य में कुछ पाँच योजन चौड़ा तथा ऊपर कुछ अधिक तीन योजन चौड़ा है। मूल में उसकी परिधि कुछ कम बाईस योजन, मध्य में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेयड्ढपव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते?
गोयमा! खंडप्पवायकूडस्स पुरत्थिमेणं सिद्धायतनकूडस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं वेयड्ढ-पव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, सिद्धायतनकूडप्पमाणसरिसे जाव–
तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पन्नत्ते–कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिए जाव पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं पासायवडेंसगस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता–पंच धनुसयाइं आयामविक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाहिं धनुसयाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई।
तीसे Translated Sutra: भगवन् ! वैताढ्य पर्वत का दक्षिणार्ध भरतकूट कहाँ है ? गौतम ! खण्डप्रपातकूट के पूर्व में तथा सिद्धा – यतनकूट के पश्चिम में है। उसका परिमाण आदि वर्णन सिद्धायतनकूट के बराबर है। दक्षिणार्ध भरतकूट के अति समतल, सुन्दर भूमिभाग में एक उत्तम प्रासाद है। वह एक कोस ऊंचा और आधा कोस चौड़ा है। अपने से निकलती प्रभामय किरणों | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 16 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मज्झे वेयड्ढस्स उ, कनयमया तिन्नि होंति कूडा उ ।
सेसा पव्वयकूडा, सव्वे रयणामया होंति ॥ Translated Sutra: वैताढ्य पर्वत के मध्य में तीन कूट स्वर्णमय हैं, बाकी के सभी पर्वतकूट रत्नमय हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 17 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जण्णामया य कूडा तन्नामा खलु हवंति ते देव ।
पलिओवमट्ठिईया हवंति पत्तेयं पत्तेयं ॥ Translated Sutra: जिस नाम के कूट है, उसी नाम के देव होते हैं – प्रत्येक देव की एक – एक पल्योपम की स्थिति होती है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] माणिभद्दकूडे वेयड्ढकूडे पुण्णभद्दकूडे–एए तिन्नि कणगामया सेसा छप्पि रयणामया। छण्हं सरिणामया देवा, दोण्हं कय-मालए चेव नट्टमालए चेव।
रायहानीओ? जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियं असंखेज्जदीवसमुद्दे वीईवइत्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं रायहानीओ भाणियव्वाओ विजयरायहानी सरिसियाओ। Translated Sutra: मणिभद्रकूट, वैताढ्यकूट एवं पूर्णभद्रकूट – ये तीन कूट स्वर्णमय हैं तथा बाकी के छह कूट रत्नमय हैं। दो पर कृत्यमालक तथा नृत्यमालक नामक दो विसदृश नामों वाले देव रहते हैं। बाकी के छह कूटों पर कूटसदृश नाम के देव रहते हैं। मन्दर पर्वत के दक्षिण में तिरछे असंख्येय द्वीप समुद्रों को लांघते हुए अन्य जम्बूद्वीप में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 19 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–वेयड्ढे पव्वए वेयड्ढे पव्वए? गोयमा! वेयड्ढे णं पव्वए भरहं वासं दुहा विभयमाणे-विभयमाणे चिट्ठइ, तं जहा–दाहिणड्ढभरहं च उत्तरड्ढभरहं च। वेयड्ढगिरिकुमारे य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठिईए परिव-सइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–वेयड्ढे पव्वए वेयड्ढे पव्वए।
अदुत्तरं च णं गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स सासए नामधेज्जे पन्नत्ते–जं न कयाइ न आसि न कयाइ न अत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे। Translated Sutra: भगवन् ! वैताढ्य पर्वत को ‘वैताढ्य पर्वत’ क्यों कहते हैं ? गौतम ! वो भरतक्षेत्र को दक्षिणार्ध भरत तथा उत्तरार्ध भरत नामक दो भागों में विभक्त करता हुआ स्थित है। वहां वैताढ्यगिरिकुमार नामक परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपमस्थितिक देव निवास करता है। इन कारणों से वह वैताढ्य पर्वत कहा जाता है। इस के अतिरिक्त वैताढ्य | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 20 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे नामं वासे पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेपलियंकसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, गंगासिंधूहिं महानईहिं तिभागपविभत्ते दोन्नि अट्ठतीसे जोयणसए तिन्नि य एगूनवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं।
तस्स Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में उत्तरार्ध भरत नामक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, पर्यंक – संस्थान – संस्थित है। वह दोनों तरफ लवण – समुद्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 21 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे उसभकूडे नामं पव्वए पन्नत्ते?
गोयमा! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं सिंधुकुंडस्स पुरत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्व-यस्स दाहिणिल्ले नितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे उसहकूडे नामं पव्वए पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले साइरेगाइं पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं अट्ठारस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरिं साइरेगाइं दुवालस जोयणाइं परिक्खेवेणं, [पाठांतरं–मूले बारस Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में ऋषभकूट पर्वत कहाँ है ? गौतम ! हिमवान् पर्वत के जिस स्थान से गंगा महानदी नीकलती है, उसके पश्चिम में, जिस स्थान से सिन्धु महानदी नीकलती है, उनके पूर्व में, चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिणी मेखला – सन्निकटस्थ प्रदेश में है। वह आठ योजन ऊंचा, दो योजन गहरा, मूल में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 22 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–ओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य।
ओसप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुसमसुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समा-काले।
उस्सप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दुस्समदुस्समाको दुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले सुसमाकाले सुसमसुसमाकाले।
एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया? गोयमा! असंखेज्जाणं सम-याणं समुदय-समिइ-समागमेणं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में कितने प्रकार का काल है ? गौतम ! दो प्रकार का, अवस – र्पिणी तथा उत्सर्पिणी काल। अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का, सुषम – सुषमाकाल, सुषमाकाल, सुषम – दुःषमाकाल, दुःषम – सुषमाकाल, दुःषमाकाल, दुःषम – दुःषमाकाल। उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? गौतम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 23 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हट्ठस्स अनवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो ।
एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चई ॥ Translated Sutra: हृष्ट – पुष्ट, अग्लान, नीरोग मनुष्य का एक उच्छ्वास – निःश्वास प्राण कहा जाता है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 24 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त पाणूइं से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे ।
लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्तेति आहिए ॥ Translated Sutra: सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, ७७ लवों का एक मुहूर्त्त होता है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 25 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नि सहस्सा सत्त य, सयाइं तेवत्तरिं च ऊसासा ।
एस मुहुत्तो भणिओ, सव्वेहिं अनंतनाणीहिं ॥ Translated Sutra: उच्छ्वास – निःश्वास का एक मुहूर्त्त होता है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 26 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं मुहुत्तप्पमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तो, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उदू, तिन्नि उदू अयने, दो अयना संवच्छरे, पंच संवच्छरिए जुगे, वीसं जुगाइं वाससए, दस वाससयाइं वाससहस्से, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्से, चउरासीइं वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीई पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं बिगुणं बिगुणं नेयव्वं–तुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे नलिनंगे नलिने अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे अउयंगे अउए नउयंगे नउए पउयंगे पउए चूलियंगे चूलिया जाव चउरासीइं सीसपहेलियंग-सयसहस्साइं सा एगा सीसपहेलिया। एतावताव Translated Sutra: इस मुहूर्त्तप्रमाण से तीस मुहूर्त्तों का एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयनों का एक संवत्सर – वर्ष, पाँच वर्षों का एक युग, बीस युगों का एक वर्ष – शतक, दश वर्षशतकों का एक वर्ष – सहस्र, सौ वर्षसहस्रों का एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 27 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवमिए? ओवमिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पलिओवमे य सागरोवमे य।
से किं तं पलिओवमे? पलिओवमस्स परूवणं करिस्सामि– परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य। अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिइ-समागमेणं वावहारिए परमाणू निप्फज्जइ, तत्थ नो सत्थं कमइ– Translated Sutra: भगवन् ! औपमिक काल का क्या स्वरूप है ? गौतम ! औपमिक काल दो प्रकार का है – पल्योपम तथा सागरोपम। पल्योपम का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पल्योपम की प्ररूपणा करूँगा – परमाणु दो प्रकार का है – सूक्ष्म तथा व्यावहारिक परमाणु। अनन्त सूक्ष्म परमाणु – पुद्गलों के एक – भावापन्न समुदाय से व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 28 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्थेण सुतिक्खेणवि, छेत्तुं भित्तुं च जं किर ण सक्का ।
तं परमाणुं सिद्धा, वयंति आदिं पमाणाणं ॥ Translated Sutra: कोई भी व्यक्ति उसे तेज शस्त्र द्वारा भी छिन्न – भिन्न नहीं कर सकता। ऐसा सर्वज्ञों ने कहा है। वह (व्यावहारिक परमाणु) सभी प्रमाणों का आदि कारण है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणूणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिआइ वा सण्ह-सण्हियाइ वा उद्धरेणूइ वा तस-रेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जवमज्झेइ वा उस्सेहंगुलेइ वा अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू, अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ सा एगे देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे हरिवास-रम्मयवासाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ हेमवय-एरण्णवयाणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ Translated Sutra: अनन्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदाय – संयोग से एक उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है। आठ उत्श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिकाओं की एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है। आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओं का एक ऊर्ध्वरेणु होता है। आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु होता है। आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु होता है। आठ रथरेणुओं का देवकुरु | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 30 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिआ ।
तं सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परीमाणं ॥ Translated Sutra: ऐसे कोड़ाकोड़ी पल्योपम का दस गुना एक सागरोपम का परिमाण है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 31 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं सागरोवमप्पमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा, तिन्नि सागरोवम-कोडाकोडीओ कालो सुसमा दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा, एगा सागरोवम-कोडाकोडीओ बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दुस्सम-सुसमा, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दुस्समा, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दुस्समदुस्समा। पुनरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वास-सहस्साइं कालो दुस्समदुस्समा, एवं पडिलोमं नेयव्वं जाव चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा। दससागरोवमकोडाकोडीओ ओसप्पिणी, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी। Translated Sutra: ऐसे सागरोपम परिमाण से सुषमसुषमा का काल चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम, सुषमा का काल तीन कोड़ाकोड़ी सागरोपम, सुषमदुःषमा का काल दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम, दुःषमसुषमा का काल ४२००० वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम, दुःषमा का काल २१००० वर्ष तथा दुःषमदुःषमा का काल २१००० वर्ष है। अव – सर्पिणी काल के छह आरों का परिमाण है। उत्सर्पिणी काल | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 32 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविधपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो य तणाण य भाणिअव्वो जाव तत्थ णं बहवे मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति।
तीसे णं समाए भरहे वासे बहवे उद्दाला कोद्दाला मोद्दाला कयमाला नट्टमाला दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला सेयमाला नामं दुमगणा पन्नत्ता, कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के सुषमासुषमा नामक प्रथम आरे में, जब वह अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा में था, भरतक्षेत्र का आकार – स्वरूप अवस्थिति – सब किस प्रकार का था ? गौतम ! उस का भूमिभाग बड़ा समतल तथा रमणीय था। मुरज के ऊपरी भाग की ज्यों वह समतल था। नाना प्रकार के काले यावत् सफेद मणियों एवं तृणों | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 33 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ मत्तंगाणाणं दुमगणा पन्नत्ता, जहा से चंदप्पभ जाव ओछण्णपडिच्छण्णा चिट्ठंति। एवं जाव अनिगणा नामं दुमगणा पन्नत्ता। Translated Sutra: उस समय भरतक्षेत्र में जहाँ – तहाँ मत्तांग नामक कल्पवृक्ष – समूह थे। वे चन्द्रप्रभा, मणिशिलिका, उत्तम मदिरा, उत्तम वारुणी, उत्तम वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श युक्त, बलवीर्यप्रद सुपरिपक्व पत्तों, फूलों और फलों के रस एवं बहुत से अन्य पुष्टिप्रद पदार्थों के संयोग से निष्पन्न आसव, मधु, मेरक, सुरा और भी बहुत प्रकार के | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 34 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! तेणं मनुया सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा जाव लक्खण-वंजण-गुणोववेया सुजाय-सुविभत्त-संगयंगा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मणुईणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ताओ अइकंत-विसप्पमाणमउय-सुकुमाल-कुम्मसंठिय-विसिट्ठचलणाओ उज्जु-मउय पीवर-सुसाहयंगुलीओ अब्भुन्नय-रइय-तलिण-तंब सुइ निद्धनक्खा रोमरहिय-वट्ट-लट्टसंठिय-अजहण्ण-पसत्थलक्खण-अक्कोप्प-जंघजुयला सुनिम्मिय-सुगूढसुजाणू मंसलसुबद्धसंधीओ कयलीखंभाइरेकसंठिय-निव्वण-सुकुमाल-मउय-मंसलअविरल-समसंहियसुजायवट्टपीवरनिरंतरोरू Translated Sutra: उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार – स्वरूप कैसा था ? गौतम ! उस समय वहाँ के मनुष्य बड़े सुन्दर, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थे। उनके चरण – सुन्दर रचना युक्त तथा कछुए की तरह उठे हुए होने से मनोज्ञ प्रतीत होते थे इत्यादि वर्णन पूर्ववत्। भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में स्त्रियों का आकार – स्वरूप कैसा था ? गौतम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 35 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते मनुआणं केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ?
गोयमा! अट्ठमभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ पुढवी पुप्फफलाहारा णं ते मनुआ पन्नत्ता समणाउसो।
तीसे णं भंते! पुढवीए केरिसए आसाए पन्नत्ते? गोयमा! से जहानामए गुलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा मच्छंडियाइ वा पप्पडमोयएइ वा भिसेइ वा पुप्फुत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाइ वा महाविजयाइ वा आकासियाइ वा आदंसियाइ वा आगासफलोवमाइ वा उग्गाइ वा अणोवमाइ वा, भवे एयारूवे? नो इणट्ठे समट्ठे। सा णं पुढवी इत्तो इट्ठतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुन्नतरिया चेव मणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पन्नत्ते? Translated Sutra: भगवन् ! उन मनुष्यों को कितने समय बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है ? हे गौतम ! तीन दिन के बाद होती है। कल्पवृक्षों से प्राप्त पृथ्वी तथा पुष्प – फल का आहार करते हैं। उस पृथ्वी का आस्वाद कैसा होता है ? गौतम ! गुड़, खांड़, शक्कर, मत्स्यंडिका, राब, पर्पट, मोदक, मृणाल, पुष्पोत्तर, पद्मोत्तर, विजया, महाविजया, आकाशिका, आदर्शिका, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 36 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं भंते! मनुया तमाहारमाहारेत्ता कहिं वसहिं उवेंति? गोयमा! रुक्खगेहालया णं ते मनुया पन्नत्ता समणाउसो! ।
तेसि णं भंते! रुक्खाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! कूडागारसंठिया पेच्छा च्छत्त-ज्झय थूभ तोरण गोपुर वेइया चोप्पालग अट्टालग पासाय हम्मिय गवक्ख वालग्गपोइया वलभीघरसंठिया, अन्ने इत्थ बहवे वरभवनविसिट्ठसंठाण-संठिया दुमगणा सुहसीयलच्छाया पन्नत्ता समणाउसो! । Translated Sutra: भगवन् ! वे मनुष्य वैसा आहार का सेवन करते हुए कहाँ निवास करते हैं ? हे गौतम ! वे मनुष्य वृक्ष – रूप घरों में निवास करते हैं। उन वृक्षों का आकार – स्वरूप कैसा है ? गौतम ! वे वृक्ष कूट, प्रेक्षागृह, छत्र, स्तूप, तोरण, गोपूर, वेदिका, चोप्फाल, अट्टालिका, प्रासाद, हर्म्य, हवेलियाँ, गवाक्ष, वालाग्रपोतिका तथा वलभीगृह सदृश संस्थान | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 37 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे बासे गेहाइ वा गेहावनाइय वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, रुक्खगेहालया णं ते मनुया पन्नत्ता समणाउसो!।
अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे गामाइ वा नगराइ वा निगमाइ वा रायहानीइ वा खेडाइ वा कब्बडाइ वा मडंबाइ वा दोणमुहाइ वा पट्टणाइ वा आगराइ वा आसमाइ वा संबाहाइ वा सन्निवेसाइ वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, जहिच्छियकामगामिणो णं ते मनुया पन्नत्ता।
अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे असीइ वा मसीइ वा किसीइ वा वणिएत्ती वा पणिएत्ति वा वाणिज्जेइ वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, ववगयअसिमसि किसि वणिय पणिय वाणिज्जा णं ते मनुया पन्नत्ता समणाउसो!।
अत्थि णं भंते! तीसे Translated Sutra: भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में क्या घर होते हैं ? क्या गेहापण – बाजार होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। उन मनुष्यों के वृक्ष ही घर होते हैं। क्या उस समय भरतक्षेत्र में ग्राम यावत् सन्निवेश होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य स्वभावतः यथेच्छ – विचरणशील होते हैं। क्या उस समय भरतक्षेत्र में असि, मषि, कृषि, वणिक् | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 38 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए भारहे वासे मनुयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
तीसे णं समाए भरहे वासे मनुयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं।
ते णं भंते! मनुया किं संघयणी पन्नत्ता? गोयमा! वइरोसभणारायसंघयणी पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! मनुयाणं सरीरा किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! समचउरंससंठाणसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं मनुयाणं बेछप्पणा पिट्ठिकरंडगसया पन्नत्ता समणाउसो! ।
ते णं भंते! मनुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? गोयमा! छम्मासावसेसाउया Translated Sutra: भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों की स्थिति – आयुष्य कितने काल का होता है ? गौतम ! आयुष्य जघन्य – कुछ कम तीन पल्योपम का तथा उत्कृष्ट – तीन पल्योपम का होता है। उस समय भरतक्षेत्र में मनुष्यों के शरीर कितने ऊंचे होते हैं ? गौतम ! जघन्यतः कुछ कम तीन कोस तथा उत्कृष्टतः तीन कोस ऊंचे होते हैं। उन मनुष्यों का संहनन | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 39 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए चउहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं सुसमा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे Translated Sutra: गौतम ! प्रथम आरक का जब चार सागर कोड़ा – कोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषमा नामक द्वितीय आरक प्रारम्भ हो जाता है। उसमें अनन्त वर्ण, अनन्त गंध, अनन्त रस, अनन्त स्पर्श, अनन्त संहनन, अनन्त संस्थान, अनन्त उच्चत्व, अनन्त आयु, अनन्त गुरु – लघु, अनन्त अगुरु – लघु, अनन्त उत्थान – कर्म – बल – वीर्य – पुरुषकार | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 40 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्थ णं सुसमदुस्समा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
सा णं समा तिहा विभज्जइ–पढमे तिभाए, मज्झिमे तिभाए, पच्छिमे तिभाए।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे Translated Sutra: गौतम ! द्वितीय आरक का तीन सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी – काल का सुषम – दुःषमा नामक तृतीय आरक प्रारम्भ होता है। उसमें अनन्त वर्ण – पर्याय यावत् पुरुषकार – पराक्रमपर्याय की अनन्त गुण परिहानि होती है। उस आरक को तीन भागों में विभक्त किया है – प्रथम त्रिभाग, मध्यम त्रिभाग, अंतिम त्रिभाग। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 41 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए पच्छिमे तिभाए पलिओवमट्ठभागावसेसे, एत्थ णं इमे पन्नरस कुलगरा समुप्प-ज्जित्था, तं जहा–सम्मुती पडिस्सुई सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे विमलवाहने चक्खुमं जसमं अभिचंदे चंदाभे पसेणई मरुदेवे नाभी उसभे त्ति। Translated Sutra: उस आरक के अंतिम तीसरे भाग के समाप्त होने में जब एक पल्योपम का आठवां भाग अवशिष्ट रहता है तो ये पन्द्रह कुलकर उत्पन्न होते हैं – सुमति, प्रतिश्रुति, सीमंकर, सीमन्धर, क्षेमंकर, क्षेमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान्, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, प्रसेनजित्, मरुदेव, नाभि, ऋषभ। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 42 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं सम्मुति-पडिस्सुइ-सीमंकर-सीमंधर-खेमंकराणं–एतेसिं पंचण्हं कुलगराणं हक्कारे नामं दण्डनीई होत्था। ते णं मनुया हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया विनओनया चिट्ठंति।
तत्थं णं खेमंधर-विमलवाहन-चक्खुम-जसम-अभिचंदाणं–एतेसि णं पंचण्हं कुलगराणं मक्कारे नामं दंडणीई होत्था। ते णं मनुया मक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया विनओनया चिट्ठंति।
तत्थ णं चंदाभ-पसेणइ-मरुदेव-नाभि-उसभाणं–एतेसि णं पंचण्हं कुलगराणं धिक्कारे नामं दंडणीई होत्था। ते णं मनुया धिक्कारेणं दंडेणं हया समाना लज्जिया विलिया वेड्डा भीया Translated Sutra: उन पन्द्रह कुलकरों में से सुमति, प्रतिश्रुति, सीमंकर, सीमन्धर तथा क्षेमंकर – इन पाँच कुलकरों की हकार नामक दंड़ – नीति होती है। वे मनुष्य हकार – दंड़ से अभिहत होकर लज्जित, विलज्जित, व्यर्द्ध, भीतियुक्त, निःशब्द तथा विनयावनत हो जाते हैं। उनमें से क्षेमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान् तथा अभिचन्द्र – इन पाँच | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 43 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिंसि, एत्थ णं उसहे नामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था।
तए णं उसभे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारावासमज्झावसइ, अज्झावसित्ता तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसइ, तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झा-वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चोसट्ठिं महिला गुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिन्नि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावस, अज्झावसत्ता...
...जेसे Translated Sutra: नाभि कुलकर के, उन की भार्या मरुदेवी की कोख से उस समय ऋषभ नामक अर्हत्, कौशलिक, प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर चतुर्दिग्व्याप्त अथवा चार गतियों का अन्त करने में सक्षम धर्म – साम्राज्य के प्रथम चक्रवर्ती उत्पन्न हुए। कौशलिक अर्हत् ऋषभ ने बीस लाख पूर्व कुमार – अवस्था में व्यतीत किए। तिरेसठ |