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Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

3. एक गम्भीर पहेली Hindi 6 View Detail
Mool Sutra: हा! जह मोहियमइणा, सुग्गइमग्गं अजाणमाणेणं। भीमे भवकंतारे, सुचिरं भमियं भयकरम्मि ।।

Translated Sutra: हा! मोक्षमार्ग अर्थात् धर्म को नहीं जानता हुआ, यह मोहितमति जीव अनादिकाल से इस भयंकर तथा भीम भव-वन में भटक रहा है।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

3. एक गम्भीर पहेली Hindi 7 View Detail
Mool Sutra: सो णत्थि इहोगासो, लोए बालग्गकोडिमित्तोऽवि। जम्मणमरणाबाहा, अणेगसो जत्थ ण य पत्ता ।।

Translated Sutra: इस लोक में बाल के अग्रभाग जितना भी कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहाँ मैंने जन्म-मरण आदि अनेक बाधाएँ न उठायी हों।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

4. यह कैसी भ्रान्ति Hindi 8 View Detail
Mool Sutra: जेसिं विसयेसु रदी, तेसिं दुक्खं वियाण सब्भावं। जइ तं ण हि सब्भावं, वावारो णत्थि विसयत्थं ।।

Translated Sutra: जिन जीवों की विषयों में रति होती है, दुःख ही उनका स्वभाव है, ऐसा जानना चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा न होता तो वे विषयभोग के प्रति व्यापार ही क्यों करते?
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

4. यह कैसी भ्रान्ति Hindi 9 View Detail
Mool Sutra: जह निंबदुमुप्पण्णो, कीडो कडुयंपि मण्णए महुरं। तह मुक्खसुहपरुक्खा, संसारदुहं सुहं विंति ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार नीम के वृक्ष में उत्पन्न कीड़ा उसके कडुवे स्वाद को भी मधुर मानता है, उसी प्रकार मोक्ष गत परमार्थ सुख से अनभिज्ञ प्राणी इस संसार-दुःख को ही सुख कहता है।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

5. एक महान् आश्चर्य Hindi 10 View Detail
Mool Sutra: (क) दवग्गिणा जहा रण्णे, डज्झमाणेसु जंतुसु। अण्णे सत्ता पमोयंति, रागद्दोसवसं गया ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार वन में अग्नि लग जाने पर उसमें जलते हुए जीवों को देखकर दूसरे जीव रागद्वेषवश प्रसन्न होते हैं, उसी प्रकार काम-भोगों में मूर्च्छित हम सब मूर्ख जन यह नहीं समझते कि (हम सहित) यह सारा संसार ही राग-द्वेषरूपी अग्नि में नित्य जला जा रहा है। संदर्भ १०-१०
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

5. एक महान् आश्चर्य Hindi 10 View Detail
Mool Sutra: (ख) एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया। डज्झमाणं ण बुज्झामो, रागद्दोसऽग्गिणा जगं ।।

Translated Sutra: संदर्भ १०-१०
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

6. दुःख-हेतु-कर्म Hindi 11 View Detail
Mool Sutra: जमिणं जगई पुढो जगा, कम्मेहिं लुप्पंति पाणिणो। सयमेव कडेहि गाहई, नो तस्स मुच्चेज्जपुट्ठयं ।।

Translated Sutra: इस संसार के समस्त प्राणी अपने ही कर्मों के द्वारा दुःखी हो रहे हैं। अन्य कोई भी सुख या दुःख देनेवाला नहीं है। कर्मों का फल भोगे बिना इनसे छुटकारा सम्भव नहीं।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

7. अपना शत्रु-मित्र स्वयं Hindi 12 View Detail
Mool Sutra: अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहाधेणू, अप्पा मे नंदणं वणं ।।

Translated Sutra: आत्मा ही वैतरणी नदी है और आत्मा ही शाल्मली वृक्ष। आत्मा ही कामधेनु है और आत्मा ही नन्दन-वन।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

7. अपना शत्रु-मित्र स्वयं Hindi 13 View Detail
Mool Sutra: अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठिय-सुपट्ठिय ।।

Translated Sutra: आत्मा ही अपने सुख व दुःख को सामान्य तथा विशेष रूप से करनेवाला है, और इसलिए वही अपना मित्र अथवा शत्रु है। सुकृत्यों में स्थित वह अपना मित्र है और दुष्कृत्यों में स्थित अपना शत्रु।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

8. दैत्यराज मिथ्यात्व (अविद्या) Hindi 14 View Detail
Mool Sutra: मिच्छंतं वेदंतो जीवो, विवरीयदंसणो होइ। ण य धम्मं रोचेदि हु, महुरं पि रसं जहा जरिदो ।।

Translated Sutra: मिथ्यात्व या अज्ञाननामक कर्म का अनुभव करनेवाला जीव (स्वभाव से ही) विपरीत श्रद्धानी होता है। जिस प्रकार ज्वरयुक्त मनुष्य को मधुर रस नहीं रुचता, उसी प्रकार उसे कल्याणकर धर्म भी नहीं रुचता है।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

8. दैत्यराज मिथ्यात्व (अविद्या) Hindi 15 View Detail
Mool Sutra: सद्दहदि य पत्तेदि य रोचेदि, य तह पुणो य फासेदि। धम्मं भोगणिमित्तं, ण दु सो कम्मक्खयणिमित्तं ।।

Translated Sutra: (और यदि कदाचित्) वह धर्म की श्रद्धा, रुचि या प्रतीति करे भी और उसका कुछ स्पर्श करे भी, तो (तत्त्वज्ञान के अभाव के कारण) उसके लिए वह केवल भोग-निमित्तक ही होता है, कर्म-क्षय-निमित्तक नहीं। वह सदा मनुष्यादिरूप देहाध्यासस्थ व्यवहार में मूढ़ बना रहता है।
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

8. दैत्यराज मिथ्यात्व (अविद्या) Hindi 16 View Detail
Mool Sutra: हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। को जाणइ परे लोए, अत्थि वा णत्थि वा पुणो ।।

Translated Sutra: उसकी विषयासक्त बुद्धि के अनुसार वर्तमान के काम-भोग तो हस्तगत हैं और भूत व भविष्यत् के अत्यन्त परोक्ष। परलोक किसने देखा है? कौन जानता है कि वह है भी या नहीं?
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

8. दैत्यराज मिथ्यात्व (अविद्या) Hindi 17 View Detail
Mool Sutra: इमं च मे अत्थि इमं च णत्थि, इमं च मे किच्चं इमं अकिच्चं। तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ।।

Translated Sutra: `यह वस्तु तो मेरे पास है और यह नहीं है। यह काम तो मैंने कर लिया है और यह अभी करना शेष है।' इस प्रकार के विकल्पों से लालायित उसको काल हर लेता है। कौन कैसे प्रमाद करे?
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1. मिथ्यात्व-अधिकार - (अविद्या योग)

9. लेने गये फूल, हाथ लगे शूल Hindi 18 View Detail
Mool Sutra: भोगामिस दोसविसण्णे, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थो। बाले य मंदिए मूढे, बज्झइ मच्छिया व खेलम्मि ।।

Translated Sutra: भोगरूपी दोष में लिप्त व आसक्त होने के कारण, हित व निःश्रेयस (मोक्ष) की बुद्धि का त्याग कर देनेवाला, आलसी, मूर्ख व मिथ्यादृष्टि ज्यों-ज्यों संसार से छूटने का प्रयत्न करता है, त्यों-त्यों कफ में पड़ी मक्खी की भाँति अधिकाधिक फँसता जाता है।
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2. रत्नत्रय अधिकार - (विवेक योग)

1. सम्यक् योग-रत्नत्रय Hindi 19 View Detail
Mool Sutra: मणसा वाया कायेण वा वि जुत्तस्स वीरियपरिणामो। जीवस्स-प्पणिजोगो, जोगो त्ति जिणेहिं णिद्दिट्ठो ।।

Translated Sutra: मन वचन व काय से युक्त जीव का वीर्य-परिणाम रूप प्रणियोग, `योग' कहलाता है। (अर्थात् जीव का मानसिक, वाचिक व कायिक हर प्रकार का प्रयत्न या पुरुषार्थ योग शब्द का वाच्य है।)
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2. रत्नत्रय अधिकार - (विवेक योग)

1. सम्यक् योग-रत्नत्रय Hindi 20 View Detail
Mool Sutra: चतुर्वर्गेऽग्रणी मोक्षो, योगस्तस्य च कारणम्। ज्ञानश्रद्धानचारित्ररूपं रत्नत्रयं च सः ।।

Translated Sutra: धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थों में मोक्ष पुरुषार्थ ही प्रधान है। योग उसका कारण है। ज्ञान, श्रद्धान व चारित्ररूप रत्नत्रय उसका स्वरूप है।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

1. निश्चय-व्यवहार ज्ञान समन्वय Hindi 27 View Detail
Mool Sutra: ववहारेणुवदिस्सइ, णाणिस्स चरित्तं दंसणं णाणं। णवि णाणं ण चरित्तं, ण दंसणं जाणगो सुद्धो ।।

Translated Sutra: अभेद-रत्नत्रय में स्थित ज्ञानी के चरित्र है, दर्शन है या ज्ञान है, यह बात भेदोपचार (विश्लेषण) सूचक व्यवहार से ही कही जाती है। वास्तव में उस अखण्ड तत्त्व में न ज्ञान है, न दर्शन है और न चारित्र है। वह ज्ञानी तो ज्ञायक मात्र है। प्रश्न : विश्लेषणकारी इस व्यवहार का कथन करने की आवश्यकता ही क्या है?
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

1. निश्चय-व्यवहार ज्ञान समन्वय Hindi 28 View Detail
Mool Sutra: जह ण वि सक्कमणज्जो, अणज्जभासं विणा उ गाहेउं। तह ववहारेण विणा, परमत्थुवएसणमसक्कं ।।

Translated Sutra: उत्तर : जिस प्रकार म्लेच्छ जनों को म्लेच्छ भाषा के बिना कुछ भी समझाना शक्य नहीं है, उसी प्रकार तत्त्वमूढ साधारण जन को व्यवहार के बिना परमार्थ का उपदेश देना शक्य नहीं है। (अर्थात् विश्लेषण किये बिना प्राथमिक जनों को अद्वैत तत्त्व का परिचय कराना शक्य नहीं है।)
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

1. निश्चय-व्यवहार ज्ञान समन्वय Hindi 29 View Detail
Mool Sutra: ववहारोऽभूयत्थो, भूयत्थो देसिदो दू सुद्धणओ। भूयत्थमस्सिदो खलु, सम्माइट्ठी हवइ जीवो ।।

Translated Sutra: विश्लेषणकृत यह भेदोपचारी व्यवहार यद्यपि अभूतार्थ व असत्यार्थ है, और एकमात्र शुद्ध या निश्चय नय ही भूतार्थ है, जिसके आश्रय से जीव वास्तव में सम्यग्दृष्टि होता है।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

1. निश्चय-व्यवहार ज्ञान समन्वय Hindi 30 View Detail
Mool Sutra: सुद्धो सुद्धादेसो, णायव्वो परमभावदरिसीहिं। ववहारदेसिदा पुण, जे दु अपरमेट्ठिदा भावे ।।

Translated Sutra: (तदपि व्यवहार प्रयोजनीय है, क्योंकि) परमभावदर्शियों ने शुद्ध तत्त्व का आदेश चरम-भूमि में स्थित शुद्ध तत्त्वज्ञानी के लिए किया है, और व्यवहार का आदेश अपरमभावरूप निम्न भूमियों में स्थित साधक के लिए किया गया है।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

2. निश्चय-व्यवहार चारित्र समन्वय Hindi 36 View Detail
Mool Sutra: आलोयणादिकिरिया, जं विसकुंभेत्ति सुद्धचरियस्स। भणियमिह समयसारे, तं जाण सुएण अत्थेण ।।

Translated Sutra: आलोचना, प्रतिक्रमण आदि व्यावहारिक क्रियाओं को समयसार (ग्रन्थ की गाथा ३०६) में शुद्ध चारित्रवान् के लिए विषकुम्भ कहा है। उसे राग की अपेक्षा ही विष-कुम्भ कहा है, ऐसा भावार्थ भी शास्त्र से जान लेना चाहिए।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

4. परम्परा-मुक्ति Hindi 40 View Detail
Mool Sutra: विगिंच कम्मुणो हेउं, जसं संचिणु खंतिए। पाढवं सरीरं हिच्चा, उड्ढं पक्कमई दिसं ।।

Translated Sutra: धर्म-विरोधी कर्मों के हेतु (मिथ्यात्व, अविरति) आदि को दूर करके धर्म का आचरण करो और संयमरूपी यश को बढ़ाओ। ऐसा करने से इस पार्थिव शरीर को छोड़कर साधक देवलोक को प्राप्त होता है। (काल पूर्ण होने पर वहाँ से चलकर मनुष्य गति में किसी उत्तम कुल में जन्म लेता है।) वहाँ वह मनुष्योचित सभी प्रकार के उत्तमोत्तम सुखों को भोगकर
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

4. परम्परा-मुक्ति Hindi 41 View Detail
Mool Sutra: भोच्चा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं। पुव्वं विसुद्ध सद्धम्मे, केवलं बोहि बुज्झिया ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ४०; संदर्भ ४०-४२
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

4. परम्परा-मुक्ति Hindi 42 View Detail
Mool Sutra: चउरंगं दुल्लहं णच्चा, संजमं पडिवज्जिया। तवसा धुयकम्मंसे, सिद्धे हवइ सासए ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ४०; संदर्भ ४०-४२
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

1. सम्यग्दर्शन (तत्त्वार्थ दर्शन) Hindi 43 View Detail
Mool Sutra: भूयत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं य। आसवसंवरणिज्जरबंधो मोक्खो य सम्मत्तं ।।

Translated Sutra: भूतार्थनय से जाने गये जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव-संवर, निर्जरा, बन्ध-मोक्ष ये नव तत्त्व ही सम्यक्त्व हैं। (आत्मनिष्ठ सम्यग्दृष्टि है और पर्याय-निष्ठ मिथ्या-दृष्टि।)
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

1. सम्यग्दर्शन (तत्त्वार्थ दर्शन) Hindi 44 View Detail
Mool Sutra: जं मोणं तं सम्मं जं सम्मं तमिह होइ मोणं ति। निच्छयओ इयरस्स उ सम्मं सम्मत्तहेऊ वि ।।

Translated Sutra: परमार्थतः मौन ही सम्यक्त्व है और सम्यक्त्व ही मौन है। तत्त्वार्थ श्रद्धान लक्षणवाला व्यवहार सम्यक्त्व इसका हेतु है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

10. उपवृंहणत्व (अदम्भित्व) Hindi 64 View Detail
Mool Sutra: नो सक्कियमिच्छई न पूयं, नो वि य वंदणगं कुओ पसंसं? से संजए सव्वए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू ।।

Translated Sutra: जो सत्कार तथा पूजा-प्रतिष्ठा की इच्छा नहीं करता, नमस्कार तथा वन्दना आदि की भावना नहीं करता, उसके लिए प्रशंसा सुनने का प्रश्न ही कहाँ? वह संयत है, सुव्रत है, तपस्वी है, आत्म-गवेषक है और वही भिक्षु है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

10. उपवृंहणत्व (अदम्भित्व) Hindi 65 View Detail
Mool Sutra: तेसिं वि तवो ण सुद्धो, निक्खंता जे महाकुला। जन्नेवन्ने वियाणंति, न सिलोगं पवेज्जए ।।

Translated Sutra: उनका तप शुद्ध नहीं है जो इक्ष्वाकु आदि बड़े कुलों में उत्पन्न होकर दीक्षित होने के कारण अभिमान करते हैं और लोक-सम्मान के लिए तप करते हैं। अतएव साधु को ऐसा तप करना चाहिए कि दूसरों को उसका पता ही न चले, जिसमें इहलोक व परलोक की आशंसा न हो। उसे अपनी प्रशंसा भी नहीं करनी चाहिए।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

10. उपवृंहणत्व (अदम्भित्व) Hindi 66 View Detail
Mool Sutra: घोडगलिंडसमाणस्स, तस्स अब्भंतरम्मि कुधिदस्स। बाहिरकरणं किं से, काहिदि वगणिहुदकरणस्स ।।

Translated Sutra: बगुले की चेष्टा के समान अन्तरंग में जो कषाय से मलिन है, ऐसे साधु की बाह्य क्रिया किस काम की? वह तो घोड़े की लीद के समान है, जो ऊपर से चिकनी और भीतर से दुर्गन्धयुक्त होती है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

10. उपवृंहणत्व (अदम्भित्व) Hindi 67 View Detail
Mool Sutra: गुणेहि साहू अगुणेहिऽसाहू, गिण्हाहि साहूगुण मुंचऽसाहू। वियाणिया अप्पगमप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो ।।

Translated Sutra: गुणों से ही (मनुष्य) साधु होता है और दुर्गुणों से असाधु। अतः सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ो। जो आत्मा द्वारा आत्मा को जानकर राग-द्वेष दोनों में सम रहता है, वही पूज्य है। (झूठी प्रशंसा पानेवाला दम्भाचारी नहीं।)
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

10. उपवृंहणत्व (अदम्भित्व) Hindi 68 View Detail
Mool Sutra: तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम! मा पमायए ।।

Translated Sutra: तू इस विशाल संसार-सागर को तैर चुका है। (गोखुर में डूबने की भाँति) अब किनारा हाथ आ जाने पर भी (झूठी मान-प्रतिष्ठा मात्र के लिए) क्यों अटक रहा है? शीघ्र पार हो जा। हे गौतम! क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

11. स्थितिकरणत्व (ज्ञानयोग व्यवस्थिति) Hindi 69 View Detail
Mool Sutra: जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, काएण वाया अदु माणसेणं। तत्थेव धीरो पडि साहरिज्जा, आइन्नओ खिप्पमिव क्खलीणं ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार जातिवान् घोड़ा लगाम का संकेत पाते ही विपरीत मार्ग को छोड़कर सीधे मार्ग पर चलने लगता है, उसी प्रकार धैर्यवान् साधु जब कभी अपने मन वचन काय को असद् मार्ग पर जाता हुआ देखता है, तो तत्काल ही वह उनको वहाँ से खींचकर सन्मार्ग में प्रतिष्ठित कर देता है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

12. वात्सल्यत्व (प्रेमयोग) Hindi 70 View Detail
Mool Sutra: जो धम्मिएसु भत्तो, अणुचरणं कुणदि परमसद्धाए। पिय वयणं जंपंतो, वच्छल्लं तस्स भव्वस्स ।।

Translated Sutra: जो सम्यग्दृष्टि जीव प्रिय वचन बोलता हुआ अत्यन्त श्रद्धा से धर्मी जनों में प्रमोदपूर्ण भक्ति रखता है, तथा उनके अनुसार आचरण करता है, उस भव्य जीव के वात्सल्य गुण कहा गया है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

12. वात्सल्यत्व (प्रेमयोग) Hindi 71 View Detail
Mool Sutra: सत्त्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्। माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ।।

Translated Sutra: सब जीवों में मेरी मैत्री हो, गुणीजनों में प्रमोद हो, दुःखी जीवों के प्रति दया हो और धर्म-विमुख विपरीत वृत्तिवालों में माध्यस्थ भाव। हे प्रभो! मेरी आत्मा सदा (प्रेम व वात्सल्य के अंगभूत) इन चारों भावों को धारण करे।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

13. प्रशम भाव (चित्त-प्रसाद) Hindi 72 View Detail
Mool Sutra: चत्तारि कसाए तिन्नि गारवे पंचइंदियग्गामे। जिणिउं परीसहसहेऽवि य हराहि आराहणपडागं ।।

Translated Sutra: क्रोधादि चार कषायों को, रस ऋद्धि व सुख इन तीन गारवों को, पाँचों इन्द्रियों को तथा अनुकूल व प्रतिकूल विघ्नों को व संकटों को जीतकर, साथ ही आराधनारूपी पताका को हाथ में लेकर, मित्र पुत्र व बन्धु आदि में तथा इष्टानिष्ट इन्द्रिय विषयों में किंचिन्मात्र भी राग-द्वेष करना कर्तव्य नहीं है। संदर्भ ७२-७३
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

13. प्रशम भाव (चित्त-प्रसाद) Hindi 73 View Detail
Mool Sutra: मित्तसुयबंधवाइसु इट्ठाणिट्ठेसु इंदियत्थेसु। रागो वा दोसो वा ईसि मणेणं ण कायव्वो ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ७२; संदर्भ ७२-७३
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

14. आस्तिक्य भाव Hindi 74 View Detail
Mool Sutra: अर्थोऽयमपरोऽनर्थ, इति निर्द्धारणं हृदि। आस्तिक्यं परमं चिह्नं, सम्यक्त्वस्य जगुर्जिनाः ।।

Translated Sutra: `यह अर्थ है और यह अनर्थ है', हृदय में इस प्रकार दृढ़ निर्धारण करना, सम्यग्दर्शन का आस्तिक्य नामक परम चिह्न है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

15. प्रभावनाकरणत्व Hindi 75 View Detail
Mool Sutra: धम्मकहाकहणेण य, बाहिरजोगेहिं चाविं णवज्जेहिं। धम्मो पहाविदव्वो, जीवेसु दयाणुकंपाए ।।

Translated Sutra: धर्मोपदेश के द्वारा, अथवा स्व-परोपकारी शुभ क्रियाओं के द्वारा, अथवा जीवों में दया व अनुकम्पा के द्वारा (उपलक्षण से प्रेम, दान व सेवा आदि के द्वारा) धर्म की प्रभावना करना कर्तव्य है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

16. भाव-संशुद्धि Hindi 76 View Detail
Mool Sutra: मदमाणमायलोह-विवज्जियभावो दु भावसुद्धि त्ति। परिकहियं भव्वाणं, लोयालोयप्पदरिसीहिं ।।

Translated Sutra: लोकालोकदर्शी सर्वज्ञ भगवान् ने, भव्यों के मद मान माया व लोभविवर्जित निर्मल भाव को भाव-शुद्धि कहा है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

16. भाव-संशुद्धि Hindi 77 View Detail
Mool Sutra: मनः शुद्धिमबिभ्राणा, ये तपस्यन्ति मुक्तये। त्यक्त्वा नावं भुजाभ्यां ते, तितीर्षन्ति महार्णवम् ।।

Translated Sutra: मन की शुद्धि को प्राप्त किये बिना जो अज्ञ जन मोक्ष के लिए तप करते हैं, वे नाव को छोड़कर महासागर को भुजाओं से तैरने की इच्छा करते हैं। (अर्थात् बिना चित्त-शुद्धि के मोक्ष-मार्ग में गमन सम्भव नहीं।) (भाव से विरक्त व्यक्ति जल में कमलवत् अलिप्त रहता है।)
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

16. भाव-संशुद्धि Hindi 78 View Detail
Mool Sutra: अब्भंतरसोधीए, बाहिर सोधी वि होदि णियमेण। अब्भंतरदोसेण हु, कुणदि णरो बाहिरे दोसे ।।

Translated Sutra: अभ्यन्तर शुद्धि के होने पर बाह्य शुद्धि नियम से होती है। अभ्यन्तर परिणामों के मलिन होने पर मनुष्य शरीर व वचन से अवश्य ही दोष उत्पन्न करता है। (तात्पर्य यह कि निःशंकित या अभयत्व आदि भावों से युक्त चित्त-शुद्धि का हो जाना ही सम्यग्दर्शन का प्रधान चिह्न है।)
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

1. सम्यग्ज्ञान-सूत्र (अध्यात्म-विवेक) Hindi 79 View Detail
Mool Sutra: संसयविमोहविब्भमविवज्जियं अप्पपरसरूवस्स। गहणं सम्मण्णाणं, सायारमणेयभेयं तु ।।

Translated Sutra: आत्मा व अनात्मा के स्वरूप को संशय, विमोह, विभ्रमरहित जानना सम्यग्ज्ञान है, जो सविकल्प व साकार रूप होने के कारण अनेक भेदोंवाला होता है।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

1. सम्यग्ज्ञान-सूत्र (अध्यात्म-विवेक) Hindi 80 View Detail
Mool Sutra: भिन्नाः प्रत्येकमात्मानो, विभिन्नाः पुद्गलाः अपि। शून्यः संसर्ग इत्येवं, यः पश्यति स पश्यति ।।

Translated Sutra: प्रत्येक आत्मा तथा शरीर मन आदि सभी पुद्गल भी परस्पर एक-दूसरे से भिन्न हैं। देह व जीव का अथवा पिता पुत्रादि का संसर्ग कोई वस्तु नहीं है। जो ऐसा देखता है वही वास्तव में देखता है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

5. निश्चय व्यवहार ज्ञान-समन्वय Hindi 90 View Detail
Mool Sutra: सुत्तं अत्थनिमेणं, न सुत्तमेत्तेण अत्थपडिवत्ती। अत्थगई उण णयवाय-गहणलीणा दुरभिगम्मा ।।

Translated Sutra: इसमें सन्देह नहीं कि सूत्र (शास्त्र) अर्थ का स्थान है, परन्तु मात्र सूत्र से अर्थ की प्रतिपत्ति नहीं होती। अर्थ का ज्ञान विचारणा व तर्कपूर्ण गहन नयवाद पर अवलम्बित होने के कारण दुर्लभ है। अतः सूत्र का ज्ञाता अर्थ प्राप्त करने का प्रयत्न करे, क्योंकि अकुशल एवं धृष्ट आचार्य (शास्त्र को पक्ष-पोषण का तथा शास्त्रज्ञान
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

5. निश्चय व्यवहार ज्ञान-समन्वय Hindi 91 View Detail
Mool Sutra: तम्हा अहिगयसुत्तेण, अत्थसंपायणम्मि जइयव्वं। आयरियधीरहत्था, हंदि महाणं विलंबेन्ति ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ९०; संदर्भ ९०-९१
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

9. अध्यात्मज्ञान-चिन्तनिका Hindi 99 View Detail
Mool Sutra: समणेण सावएण य, जाओ णिच्चंपि भावणिज्जाओ। दढसंवेगकरीओ, विसेसओ उत्तमट्ठम्मि ।।

Translated Sutra: श्रमण को या श्रावक को संवेग व वैराग्य के दृढ़ीकरणार्थ नित्य ही, विशेषतः सल्लेखना के काल में इन १२ भावनाओं का चिन्तवन करते रहना चाहिए।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

9. अध्यात्मज्ञान-चिन्तनिका Hindi 100 View Detail
Mool Sutra: अधुवमसरणमेगत्त-मण्णत्तसंसारलोयमसुइत्तं। आसवसंवरणिज्जर, धम्मं बोधिं च चिंतिज्ज ।।

Translated Sutra: अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधिदुर्लभ, इन १२ भावनाओं का चिन्तन करना चाहिए।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

10. अनित्य व अशरण संसार Hindi 101 View Detail
Mool Sutra: अम्भोबुद्बुदसंनिभा तनुरियं, श्रीरिन्द्रजालोपमा। दुर्वाताहतवारिवाहसदृशाः, कान्तार्थपुत्रादयः ।।

Translated Sutra: यह शरीर जलबुद्बुद के समान अनित्य है तथा लक्ष्मी इन्द्रजाल के समान चंचल। स्त्री, धन व पुत्रादि आँधी से आहत जल-प्रवाहवत् अति वेग से नाश की ओर दौड़े जा रहे हैं। वैषयिक सुख काम से मत्त स्त्री की भाँति तरल हैं अर्थात् विश्वास के योग्य नहीं हैं। इसलिए समस्त उपद्रवों के स्थानभूत इनके विषय में शोक करने से क्या लाभ है?
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

10. अनित्य व अशरण संसार Hindi 102 View Detail
Mool Sutra: सौख्यं वैषयिकं सदैव तरलं, मत्तांगनापाङ्गवत्। तस्मादेतदुपप्लवाप्तिविषये, शोकेन किं किं मुदा ।।

Translated Sutra: कृपया देखें १०१; संदर्भ १०१-१०२
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

10. अनित्य व अशरण संसार Hindi 103 View Detail
Mool Sutra: जम्मजरामरणभए अभिद्दुए, विविहवाहिसंतत्ते। लोगम्मि नत्थि सरणं, जिणिंदवरसासणं मुत्तुं ।।

Translated Sutra: जन्म, जरा व मरण के भय से पूर्ण तथा विविध व्याधियों से संतप्त इस लोक में जिनशासन को छोड़कर (अथवा आत्मा को छोड़कर) अन्य कोई शरण नहीं है।
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