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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 596 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (३) तओ परम-सद्धा-संवेगपरं नाऊणं आजम्माभिग्गहं च दायव्वं। जहा णं
(४) सहली-कयसुलद्ध-मनुय भव, भो भो देवानुप्पिया
(५) तए अज्जप्पभितीए जावज्जीवं ति-कालियं अनुदिणं अनुत्तावलेगग्गचित्तेणं चेइए वंदेयव्वे।
(६) इणमेव भो मनुयत्ताओ असुइ-असासय-खणभंगुराओ सारं ति।
(७) तत्थ पुव्वण्हे ताव उदग-पाणं न कायव्वं, जाव चेइए साहू य न वंदिए।
(८) तहा मज्झण्हे ताव असण-किरियं न कायव्वं, जाव चेइए न वंदिए।
(९) तहा अवरण्हे चेव तहा कायव्वं, जहा अवंदिएहिं चेइएहिं नो संझायालमइक्कमेज्जा। Translated Sutra: उसके बाद परम श्रद्धा संवेग तत्पर बना जानकर जीवन पर्यन्त के कुछ अभिग्रह देना। जैसे कि हे देवानुप्रिय ! तुने वाकई ऐसा सुन्दर मानवभव पाया उसे सफल किया। तुझे आज से लेकर जावज्जीव हंमेशा तीन काल जल्दबाझी किए बिना शान्त और एकाग्र चित्त से चैत्य का दर्शन, वंदन करना, अशुचि अशाश्वत क्षणभंगुर ऐसी मानवता का यही सार है। | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 596 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] (३) तओ परम-सद्धा-संवेगपरं नाऊणं आजम्माभिग्गहं च दायव्वं। जहा णं
(४) सहली-कयसुलद्ध-मनुय भव, भो भो देवानुप्पिया
(५) तए अज्जप्पभितीए जावज्जीवं ति-कालियं अनुदिणं अनुत्तावलेगग्गचित्तेणं चेइए वंदेयव्वे।
(६) इणमेव भो मनुयत्ताओ असुइ-असासय-खणभंगुराओ सारं ति।
(७) तत्थ पुव्वण्हे ताव उदग-पाणं न कायव्वं, जाव चेइए साहू य न वंदिए।
(८) तहा मज्झण्हे ताव असण-किरियं न कायव्वं, जाव चेइए न वंदिए।
(९) तहा अवरण्हे चेव तहा कायव्वं, जहा अवंदिएहिं चेइएहिं नो संझायालमइक्कमेज्जा। Translated Sutra: ત્યારપછી પરમ શ્રદ્ધા સંવેગ તત્પર બનેલો જાણીને જીવન પર્યન્તના કેટલાક અભિગ્રહ આપવા જેવા કે હે દેવાનુપ્રિય ! તે ખરેખર આવો સુંદર મનુષ્ય ભવ મેળવ્યો. તેને સફળ કર્યો ત્યારે આજથી જાવજ્જીવ હંમેશા ત્રણે કાળ ત્વરા રહિત, શાંત અને એકાગ્ર ચિત્તે ચૈત્યોના દર્શન – વંદન કરવા. અશુચિ અશાશ્વત ક્ષણભંગુર એવા મનુષ્યત્વનો આ જ | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 785 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] मुहधोवण दंतवणं अद्दागाईण कल्ल आवासं ।
पुव्वण्हकरणमप्पण उक्कोसयां च मज्झण्हे ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 785 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] मुहधोवण दंतवणं अद्दागाईण कल्ल आवासं ।
पुव्वण्हकरणमप्पण उक्कोसयां च मज्झण्हे ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1132 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कालस्स पडिक्कमिउं मज्झण्हे ताहे होति गंतव्वं ।
वीयारं भोत्तूण व सेस अकालो उ वीयारे । दारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1132 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कालस्स पडिक्कमिउं मज्झण्हे ताहे होति गंतव्वं ।
वीयारं भोत्तूण व सेस अकालो उ वीयारे । दारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 304 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहिं महापाडिवएहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–आसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हगपाडिवए।
नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहिं संज्झाहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–पढमाए, पच्छिमाए, मज्झण्हे, अड्ढरत्ते।
कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउक्ककालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–पुव्वण्हे, अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे। Translated Sutra: चार महाप्रतिपदाओं में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है। वे चार प्रतिपदाएं ये हैं – श्रावण कृष्णा प्रतिपदा, कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा, मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा, वैशाख कृष्णा प्रतिपदा। चार संध्याओं में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है। वे चार संध्याएं | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 304 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहिं महापाडिवएहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–आसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हगपाडिवए।
नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहिं संज्झाहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–पढमाए, पच्छिमाए, मज्झण्हे, अड्ढरत्ते।
कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउक्ककालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा–पुव्वण्हे, अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૦૪. સાધુ – સાધ્વીને ચાર મહા પડવાએ સ્વાધ્યાય કરવો ન કલ્પે, તે આ – અષાઢી પડવો, આસોનો પડવો, કાર્તિકી પડવો, ચૈત્રી પડવો (પડવો એટલે વદ એકમ.) સાધુ – સાધ્વીને ચાર સંધ્યાએ સ્વાધ્યાય કરવો ન કલ્પે, તે આ – સૂર્યોદયે, મધ્યાહ્ને, સંધ્યાએ, મધ્યરાત્રિએ. (પૂર્વ પશ્ચાત્ ઘડી). સૂત્ર– ૩૦૫. લોક સ્થિતિ ચાર ભેદે છે – આકાશ પ્રતિષ્ઠિત |