Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2011804 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग) |
Translated Chapter : |
12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग) |
Section : | 4. आकाश द्रव्य | Translated Section : | 4. आकाश द्रव्य |
Sutra Number : | 301 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | नयचक्र बृहद । ९८; तुलना: उत्तराध्ययन । २८.९ | ||
Mool Sutra : | चेतनरहितममूर्त्तंमवगाहनलक्षणं च सर्वगतम्। लोकालोकद्विभेदं, तन्नभोद्रव्यं जिनोद्दिष्टम् ।। | ||
Sutra Meaning : | आकाश द्रव्य अचेतन है, अमूर्तीक है, सर्वगत अर्थात् विभु है। सर्व द्रव्यों को अवगाह या अवकाश देना इसका लक्षण है। वह दो भागों में विभक्त है - लोकाकाश और अलोकाकाश। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Chetanarahitamamurttammavagahanalakshanam cha sarvagatam. Lokalokadvibhedam, tannabhodravyam jinoddishtam\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Akasha dravya achetana hai, amurtika hai, sarvagata arthat vibhu hai. Sarva dravyom ko avagaha ya avakasha dena isaka lakshana hai. Vaha do bhagom mem vibhakta hai - lokakasha aura alokakasha. |