Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011760 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Translated Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Section : | 4. पूजा-भक्ति सूत्र | Translated Section : | 4. पूजा-भक्ति सूत्र |
Sutra Number : | 257 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | सावय पण्णत्ति। ३४६; तुलना: स्वयंभू स्तोत्र। ५८ | ||
Mool Sutra : | आह गुरु पूजायां, कायवधः भवत्येव यद्यपि जिनानाम्। तथापि सा कर्तव्या, परिणामविशुद्धिहेतुत्वात् ।। | ||
Sutra Meaning : | यद्यपि जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करने में कुछ न कुछ हिंसा अवश्य होती है, तथापि परिणाम-विशुद्धि का हेतु होने के कारण वह अवश्य करनी चाहिए, ऐसा गुरु का आदेश है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Aha guru pujayam, kayavadhah bhavatyeva yadyapi jinanam. Tathapi sa kartavya, parinamavishuddhihetutvat\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Yadyapi jinendra bhagavan ki puja karane mem kuchha na kuchha himsa avashya hoti hai, tathapi parinama-vishuddhi ka hetu hone ke karana vaha avashya karani chahie, aisa guru ka adesha hai. |