Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011759 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Translated Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Section : | 4. पूजा-भक्ति सूत्र | Translated Section : | 4. पूजा-भक्ति सूत्र |
Sutra Number : | 256 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | भगवती आराधना । ७४६ | ||
Mool Sutra : | एकापि सा समर्था, जिनभक्तिः दुर्गतिं निवारयितुम्। पुण्यान्यपि पूरयितुं, आसिद्धिः परम्परासुखानाम् ।। | ||
Sutra Meaning : | अकेली जिन-भक्ति ही दुर्गति का नाश करने में समर्थ है। इससे विपुल पुण्य की प्राप्ति होती है। जब तक साधक को मोक्ष नहीं होता तब तक इसके प्रभाव से वह इन्द्र चक्रवर्ती व तीर्थंकर आदि पदों का उत्तमोत्तम सुख भोगता रहता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Ekapi sa samartha, jinabhaktih durgatim nivarayitum. Punyanyapi purayitum, asiddhih paramparasukhanam\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Akeli jina-bhakti hi durgati ka nasha karane mem samartha hai. Isase vipula punya ki prapti hoti hai. Jaba taka sadhaka ko moksha nahim hota taba taka isake prabhava se vaha indra chakravarti va tirthamkara adi padom ka uttamottama sukha bhogata rahata hai. |