Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011659 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Translated Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Section : | 5. अप्रमाद-सूत्र | Translated Section : | 5. अप्रमाद-सूत्र |
Sutra Number : | 157 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | मोक्षपाहुड । ३१; तुलना: भगवती सूत्र। १२.२.४४३ | ||
Mool Sutra : | यः सुप्तो व्यवहारे, सः योगी जागर्ति स्वकार्ये। यः जागर्ति व्यवहारे, सः सुप्तो आत्मनः कार्ये ।। | ||
Sutra Meaning : | जो व्यवहार में सोता है वह योगी निज कार्य में जागता है। और जो व्यवहार में जागता है, वह निज कार्य में सोता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Yah supto vyavahare, sah yogi jagarti svakarye. Yah jagarti vyavahare, sah supto atmanah karye\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo vyavahara mem sota hai vaha yogi nija karya mem jagata hai. Aura jo vyavahara mem jagata hai, vaha nija karya mem sota hai. |