Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011308 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग) |
Translated Chapter : |
12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग) |
Section : | 5. धर्म तथा अधर्म द्रव्य | Translated Section : | 5. धर्म तथा अधर्म द्रव्य |
Sutra Number : | 305 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | पंचास्तिककाय । ८८ | ||
Mool Sutra : | ण य गच्छदि धम्मत्थो, गमणं ण करेदि अण्णदवियस्स। हवदि गती स प्पसरो, जीवाणं पुग्गलाणं च ।। | ||
Sutra Meaning : | धर्मास्तिकाय न तो स्वयं चलता है और न जीव पुद्गलों को जबरदस्ती चलाता है। वह इनकी गति के लिए प्रवर्तक या निमित्त मात्र है। (इसी प्रकार अधर्म द्रव्य को निमित्त मात्र ही समझना चाहिए।) | ||
Mool Sutra Transliteration : | Na ya gachchhadi dhammattho, gamanam na karedi annadaviyassa. Havadi gati sa ppasaro, jivanam puggalanam cha\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Dharmastikaya na to svayam chalata hai aura na jiva pudgalom ko jabaradasti chalata hai. Vaha inaki gati ke lie pravartaka ya nimitta matra hai. (isi prakara adharma dravya ko nimitta matra hi samajhana chahie.) |