Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2011283 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Translated Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Section : | 13. उत्तम त्याग | Translated Section : | 13. उत्तम त्याग |
Sutra Number : | 280 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | अध्यात्म उपनिषद् । २.९ | ||
Mool Sutra : | विषयान् साधकः पूर्वमनिष्टत्वधिया त्यजेत्। न त्यजेन्न च गृह्णीयात्, सिद्धो विन्द्यात् स तत्त्वतः ।। | ||
Sutra Meaning : | यद्यपि अपरम भाव वाली अपनी पूर्व भूमिका में साधक विषयों को अनिष्ट जानकर उनका त्याग अवश्य करता है और उसे ऐसा करना भी चाहिए, परन्तु परमार्थ भूमि के हस्तगत हो जाने के कारण ज्ञानी तो तत्त्वतः सिद्ध व मुक्त ही है। इसलिए वह न तो कुछ त्याग करता है, न ग्रहण। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Vishayan sadhakah purvamanishtatvadhiya tyajet. Na tyajenna cha grihniyat, siddho vindyat sa tattvatah\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Yadyapi aparama bhava vali apani purva bhumika mem sadhaka vishayom ko anishta janakara unaka tyaga avashya karata hai aura use aisa karana bhi chahie, parantu paramartha bhumi ke hastagata ho jane ke karana jnyani to tattvatah siddha va mukta hi hai. Isalie vaha na to kuchha tyaga karata hai, na grahana. |