Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2011081 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग) |
Translated Chapter : |
5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग) |
Section : | 1. सम्यग्ज्ञान-सूत्र (अध्यात्म-विवेक) | Translated Section : | 1. सम्यग्ज्ञान-सूत्र (अध्यात्म-विवेक) |
Sutra Number : | 80 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | अध्यात्मसार । ८.२१; तुलना: =देखो गाथा ७९। | ||
Mool Sutra : | भिन्नाः प्रत्येकमात्मानो, विभिन्नाः पुद्गलाः अपि। शून्यः संसर्ग इत्येवं, यः पश्यति स पश्यति ।। | ||
Sutra Meaning : | प्रत्येक आत्मा तथा शरीर मन आदि सभी पुद्गल भी परस्पर एक-दूसरे से भिन्न हैं। देह व जीव का अथवा पिता पुत्रादि का संसर्ग कोई वस्तु नहीं है। जो ऐसा देखता है वही वास्तव में देखता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Bhinnah pratyekamatmano, vibhinnah pudgalah api. Shunyah samsarga ityevam, yah pashyati sa pashyati\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pratyeka atma tatha sharira mana adi sabhi pudgala bhi paraspara eka-dusare se bhinna haim. Deha va jiva ka athava pita putradi ka samsarga koi vastu nahim hai. Jo aisa dekhata hai vahi vastava mem dekhata hai. |