Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004552 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | ३२. आत्मविकाससूत्र (गुणस्थान) | Translated Section : | ३२. आत्मविकाससूत्र (गुणस्थान) |
Sutra Number : | 552 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | गोम्मटसार जीवकाण्ड 29 | ||
Mool Sutra : | नो इन्द्रियेषु विरतो, नो जीवे स्थावरे त्रसे चापि। यः श्रद्दधाति जिनोक्तं, सम्यग्दृष्टिरविरतः सः।।७।। | ||
Sutra Meaning : | जो न तो इन्द्रिय-विषयों से विरत है और न त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा से विरत है, लेकिन केवल जिनेन्द्र-प्ररूपित तत्त्वार्थ का श्रद्धान करता है, वह व्यक्ति अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती कहलाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | No indriyeshu virato, no jive sthavare trase chapi. Yah shraddadhati jinoktam, samyagdrishtiraviratah sah..7.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo na to indriya-vishayom se virata hai aura na trasa-sthavara jivom ki himsa se virata hai, lekina kevala jinendra-prarupita tattvartha ka shraddhana karata hai, vaha vyakti aviratasamyagdrishti gunasthanavarti kahalata hai. |