Sutra Navigation: Anuyogdwar ( अनुयोगद्वारासूत्र )

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Sr No : 1024317
Scripture Name( English ): Anuyogdwar Translated Scripture Name : अनुयोगद्वारासूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Translated Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Section : Translated Section :
Sutra Number : 317 Category : Chulika-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ–जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। से तं ओवम्मसंखा। से किं तं परिमाणसंखा? परिमाणसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य। से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा? कालियसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा। से तं कालियसुयपरिमाणसंखा। से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा पाहुडसंखा पाहु-डियासंखा पाहुडपाहुडियासंखा वत्थुसंखा। से तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा। से तं परिमाणसंखा। से किं तं जाणणासंखा? जाणणासंखा–जो जं जाणइ, तं जहा–सद्दं सद्दिओ, गणियं गणियओ, निमित्तं नेमि-त्तिओ, कालं कालनाणी, वेज्जयं वेज्जो से तं जाणणासंखा। से किं तं गणणासंखा? गणणासंखा–एक्को गणणं न उवेइ, दुप्पभिइ संखा, तं जहा–संखेज्जए असंखेज्जए अनंतए। से किं तं संखेज्जए? संखेज्जए तिविहे पन्नत्ते, तं–जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमणुक्कोसए। से किं तं असंखेज्जए? असंखेज्जए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–परित्तासंखेज्जए जुत्तासंखेज्जए असंखेज्जासंखेज्जए। से किं तं परित्तासंखेज्जए? परित्तासंखेज्जए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमणुक्कोसए। से किं तं जुत्तासंखेज्जए? जुत्तासंखेज्जए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमणुक्कोसए। से किं तं असंखेज्जासंखेज्जए? असंखेज्जासंखेज्जए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमणु-क्कोसए। से किं तं अनंतए? अनंतए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–परित्ताणंतए जुत्ताणंतए अनंताणंतए। से किं तं परित्तानंतए? परित्ताणंतए तिविहे पन्नत्ते, तं–जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमनुक्कोसए से किं तं जुत्तानंतए? जुत्ताणंतए तिविहे पन्नत्ते, तं–जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमणुक्कोसए। से किं तं अनंतानंतए? अनंतानंतए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जहन्नए अजहन्नमनुक्कोसए। जहन्नयं संखेज्जयं केत्तियं होइ? दोरूवाइं। तेण परं अजहन्नमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं संखेज्जयं न पावइ। उक्कोसयं संखेज्जयं केत्तियं होइ? उक्कोसयस्स संखेज्जयस्स परूवणं करिस्सामि – से जहानामए पल्ले सिया एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाइं अद्धं अंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते। ससे णं पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए। तओ णं तेहिं सिद्धत्थएहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारो घेप्पइ। एगे दीवे एगे समुद्दे-एगे दीवे एगे समुद्दे एवं पक्खिप्पमाणेहिं-पक्खिप्पमाणेहिं जावइया दीव-समुद्दा तेहिं सिद्धत्थएहिं अप्फुन्ना, एस णं एवइए खेत्ते पल्ले पढमा सलागा। एवइयाणं सला-गाणं असंलप्पा लोगा भरिया तहा वि उक्कोसयं संखेज्जयं न पावइ। जहा को दिट्ठंतो? से जहानामए मंचे सिया आमलगाणं भरिए, तत्थ एगे आमलए पक्खित्ते से माते, अन्ने वि पक्खित्ते से वि माते, अन्ने वि पक्खित्ते से वि माते, एवं पक्खिप्पमाणेहिं-पक्खिप्पमाणेहिं होही से आमलए जम्मि पक्खित्ते से मंचे भरिज्जिहिइ, होही से आमलए जे तत्थ न माहिइ। एवामेव उक्कोसए संखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहन्नयं परित्तासंखेज्जयं भवइ। तेण परं अजहन्नमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं न पावइ। उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ? जहन्नयं परित्तासंखेज्जयं जहन्नयपरित्तासंखेज्ज- यमेत्ताणं रासीणं अन्न मन्नब्भासो रूवूणो उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं होइ। अहवा जहन्नयं जुत्तासंखेज्जयं रूवूणं उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं होइ। जहन्नयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ? जहन्नयं परित्तासंखेज्जयं जहन्नयपरित्तासंखेज्ज-यमेत्ताणं रासीणं अन्न-मन्नब्भासो पडिपुण्णो जहन्नयं जुत्तासंखेज्जयं होइ। अहवा उक्कोसए परित्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहन्नयं जुत्तासंखेज्जयं होइ। आवलिया वि तत्तिया चेव। तेण परं अजहन्नमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं न पावइ। उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ? जहन्नएणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अन्नमन्नब्भासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ। अहवा जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ। जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ? जहन्नएणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अन्नमन्नब्भासो पडिपुण्णो जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ। अहवा उक्कोसए जुत्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ। तेण परं अजहन्नमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं न पावइ। उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ? जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहन्नय-असंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अन्नमन्नब्भासो रूवूणो उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ। अहवा जहन्नयं परित्ताणंतयं रूवूणं उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ। जहन्नयं परित्तानंतयं केत्तियं होइ? जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहन्नय-असंखेज्जा-संखेज्जमेत्ताणं रासीणं अन्नमन्नब्भासो पडिपुण्णो जहन्नयं परित्ताणंतयं होइ। अहवा उक्कोसए असंखेज्जासंखजए रूवं पक्खित्तं जहन्नयं परित्ताणंतयं होइ। तेण परं अजहन्नमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं परित्ताणंतयं न पावइ। उक्कोसयं परित्ताणंतयं केत्तियं होइ? जहन्नयं परित्ताणंतयं जहन्नयपरित्ताणंतयमेत्ताणं रासीणं अन्नमन्नब्भासो रूवूणो उक्कोसयं परित्ताणंतयं होइ। अहवा जहन्नयं जुत्ताणंतयं रूवूणं उक्कोसयं परित्ताणंतयं होइ। जहन्नयं जुत्ताणंतयं केत्तियं होइ? जहन्नयं परित्ताणंतयं जहन्नयपरित्ताणंतयमेत्ताणं रासीणं अन्नमन्नब्भासो पडिपुण्णो जहन्नयं जुत्ताणंतयं होइ। अहवा उक्कोसए परित्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहन्नयं जुत्ताणंतयं होइ। अभवसिद्धिया वि तत्तिया चेव। तेण परं अजहन्नमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं जुत्ताणंतयं न पावइ। उक्कोसयं जुत्ताणंतयं केत्तियं होइ? जहन्नएणं जुत्ताणंतएणं अभवसिद्धिया गुणिया अन्नमन्नब्भासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्ताणंतयं होइ। अहवा जहन्नयं अनंताणंतयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्ताणंतयं होइ। जहन्नयं अनंतानंतयं केत्तियं होइ? जहन्नयं जुत्ताणंतएणं अभवसिद्धिया गुणिया अन्नमन्नब्भासो पडिपुण्णो जहन्नयं अनंताणंतयं होइ। अहवा उक्कोसए जुत्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहन्नयं अनंताणंतयं होइ। तेण परं अजहन्नमणुक्कोसयाइं ठाणाइं। से तं गणणासंखा। से किं तं भावसंखा? भावसंखा–जे इमे जीवा संखगइनामगोत्ताइं कम्माइं वेदेंति। से तं भावसंखा। से तं संखप्पमाणे। से तं भावप्पमाणे। से तं पमाणे।
Sutra Meaning : अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद्‌ – असद्‌रूप औपम्यसंख्या है। जैसा – खर विषाण है वैसा ही शश विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है। परिमाणसंख्या क्या है ? दो प्रकार की है। जैसे – कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुतपरिमाण – संख्या। कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की है। पर्यव (पर्याय) संख्या, अक्षरसंख्या, संघातसंख्या, पदसंख्या, पादसंख्या, गाथासंख्या, श्र्लोकसंख्या, वेढ (वेष्टक) संख्या, निर्युक्तिसंख्या, अनुयोगद्वारसंख्या, उद्देशसंख्या, अध्ययनसंख्या, श्रुतस्कन्धसंख्या, अंग – संख्या आदि कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या है। दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या के अनेक प्रकार हैं। यथा – पर्वसंख्या यावत्‌ अनुयोग – द्वारसंख्या, प्राभृतसंख्या, प्राभृतिकासंख्या, प्राभृतप्राभृतिकासंख्या, वस्तुसंख्या और पूर्वसंख्या। इस प्रकार से दृष्टिवादश्रुत – परिमाणसंख्या का स्वरूप जानना। ज्ञानसंख्या क्या है ? जो जिसको जानता है उसे ज्ञानसंख्या कहते हैं। जैसे कि – शब्द को जानने वाला शाब्दिक, गणित को जानने वाला गणितज्ञ, निमित्त को जानने वाला नैमित्तिक, काल को जाननेवाला कालज्ञ और वैद्यक को जाननेवाला वैद्य। ये इतने हैं, इस रूप में गिनती करने को गणनासंख्या कहते हैं। ‘एक’, गणना नहीं कहलाता है इसलिए दो से गणना प्रारम्भ होती है। वह गणनासंख्या संख्या, असंख्यात और अनन्त, तीन प्रकार की जानना। संख्यात क्या है ? तीन प्रकार का है। जघन्य संख्यात, उत्कृष्ट संख्यात और अजघन्य – अनुत्कृष्ट संख्यात। असंख्यात के तीन प्रकार हैं। जैसे – परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात। परीतासंख्यात तीन प्रकार का है – जघन्य परीतासंख्यात, उत्कृष्ट परीतासंख्यात और अजघन्य – अनुत्कृष्ट परीतासंख्यात। युक्तासंख्यात तीन प्रकार का है। जघन्य युक्तासंख्यात, उत्कृष्ट युक्तासंख्यात और अजघन्यानुत्कृष्ट युक्तासंख्यात। असंख्यातसंख्यात तीन प्रकार का है। जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्यानुत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात। भगवन्‌ ! अनन्त क्या है ? अनन्त के तीन प्रकार हैं। परीतानन्त, युक्तानन्त और अनन्तानन्त। परीतानन्त तीन प्रकार का है। जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्य – अनुत्कृष्ट परीतानन्त। आयुष्मन्‌ ! युक्तानन्त के तीन प्रकार हैं। जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्य – अनुत्कृष्ट युक्तानन्त। अनन्तानन्त के दो प्रकार कहे हैं। यथा – जघन्य अनन्तानन्त और अजघन्य – अनुत्कृष्ट अनन्तानन्त। भगवन्‌ ! जघन्य संख्यात कितने प्रमाण में होता है ? दो रूप प्रमाण जघन्य संख्यात है, उसके पश्चात्‌ यावत्‌ उत्कृष्ट संख्यात का स्थान प्राप्त न होने तक मध्यम संख्यात जानना। उत्कृष्ट संख्यात की प्ररूपणा इस प्रकार करूँगा – एक लाख योजन लम्बा – चौड़ा और ३१६२२७ योजन, तीन कोश, १२८ धनुष एवं १३॥ अंगुल से कुछ अधिक परिधि वाला कोई एक पल्य हो। पल्य को सर्षपों के दानों से भर दिया जाए। उन सर्षपों से द्वीप और समुद्रों का उद्धार – प्रमाण निकाला जाता है। अनुक्रम से एक द्वीप में और एक समुद्र में इस तरह प्रक्षेप करते – करते जितने द्वीप – समुद्र उन सरसों के दानों से भर जाऍं, उनके समाप्त होने पर एक दाना शलाकापल्य में डाल दिया जाए। इस प्रकार के शलाका रुप पल्य में भरे सरसों के दानों से अकथनीय लोक भरे हुए हों तब भी उत्कृष्ट संख्या का स्थान प्राप्त नहीं होता है। इसके लिये कोई दृष्टान्त जैसे कोई एक मंच हो और वह आंवलों से पूरित हो, तदनन्तर एक आंवला डाला तो वह भी समा गया, दूसरा डाला तो वह भी समा गया, तीसरा डाला तो वह भी समा गया, इस प्रकार प्रक्षेप करते – करते अंत में एक आंवला ऐसा होगा कि जिसके प्रक्षेप से मंच परिपूर्ण भर जाता है। उसके बाद आंवला डाला जाए तो वह नहीं समाता है। इसी प्रकार बारंबार डाले गए सर्षपों से जब असंलप्य – बहुत से पल्य अंत में आमूलशिख पूरित हो जाए, उनमें एक सर्षप जितना भी स्थान न रहे तब उत्कृष्ट संख्या का स्थान प्राप्त होता है। इसी प्रकार उत्कृष्ट संख्यात संख्या में रूप (एक) का प्रक्षेप करने से जघन्य परीतासंख्यात होता है। तदनन्तर (परीतासंख्यात के) अजघन्य – अनुत्कृष्ट स्थान हैं, जहाँ तक उत्कृष्ट परीतासंख्यात स्थान प्राप्त नहीं होता है। जघन्य परीता – संख्यात राशि को जघन्य परीतासंख्यात राशि से परस्पर अभ्यास गुणित करके रूप (एक) न्यून करने पर उत्कृष्ट परीता – संख्यात का प्रमाण होता है। अथवा एक न्यून जघन्य युक्तासंख्यात उत्कृष्ट परीतासंख्यात का प्रमाण है। जघन्य युक्तासंख्यात का कितना प्रमाण है ? जघन्य परीतासंख्यात राशि का जघन्य परीतासंख्यात राशि से अन्योन्य अभ्यास करने पर प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तासंख्यात का प्रमाण होता है। अथवा उत्कृष्ट परीतासंख्यात के प्रमाण में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य युक्तासंख्यात होता है। आवलिका भी जघन्य युक्तासंख्यात तुल्य समय – प्रमाण वाली जानना। जघन्य युक्तासंख्यात से आगे जहाँ तक उत्कृष्ट युक्तासंख्यात प्राप्त न हो, तत्प्रमाण मध्यम युक्तासंख्यात है। जघन्य युक्ता – संख्यात राशि को आवलिका से परस्पर अभ्यास रूप गुणा करने से प्राप्त प्रमाण में से एक न्यून उत्कृष्ट युक्तासंख्यात है। अथवा जघन्य असंख्यातसंख्यात राशि प्रमाण में से एक कम करने से उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है। जघन्य असंख्यातासंख्यात का क्या प्रमाण है ? जघन्य युक्तासंख्यात के साथ आवलिका की राशि का परस्पर अभ्यास करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य असंख्यातासंख्यात है। अथवा उत्कृष्ट युक्तसंख्यात में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य असंख्यातासंख्यात होता है। तत्पश्चात्‌ मध्यम स्थान होते हैं और वे स्थान उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात प्राप्त होने से पूर्व तक जानना। जघन्य असंख्यातासंख्यात मात्र राशि का उसी जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि से अन्योन्य अभ्यास – गुणा करने से प्राप्त संख्या में से एक न्यून करने पर प्राप्त संख्या उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है। अथवा एक न्यून जघन्य परीतानन्त उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण है। जघन्य परीतानन्त का कितना प्रमाण है ? जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि को उसी जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि के परस्पर अभ्यास रूप में गुणित करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य परीतानन्त का प्रमाण है। अथवा उत्कृष्ट असंख्याता – संख्यात में एक रूप का प्रक्षेप करने से भी जघन्य परीतानन्त का प्रमाण होता है। तत्पश्चात्‌ अजघन्य – अनुत्कृष्ट परीतानन्त के स्थान होते हैं और वे भी उत्कृष्ट परीतानन्त का स्थान प्राप्त न होने के पूर्व तक होते हैं। जघन्य परीतानन्त की राशि को उसी जघन्य परीतानन्त राशि से परस्पर अभ्यास रूप गुणित करके उसमें से एक रूप (अंक) न्यून करने से उत्कृष्ट परीतानन्त का प्रमाण होता है। अथवा जघन्य युक्तानन्त की संख्या में से एक न्यून करने से भी उत्कृष्ट परीतानन्त की संख्या बनती है। जघन्य युक्तानन्त कितने प्रमाण में होता है ? जघन्य परीतानन्त मात्र राशि का उसी राशि से अभ्यास करने से प्रतिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तानन्त है। अर्थात्‌ जघन्य परीतानन्त जितनी सर्षप संख्या का परस्पर अभ्यास रूप गुणा करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तानन्त है। अथवा उत्कृष्ट परीतानन्त में एक रूप (अंक) प्रक्षिप्त करने से जघन्य युक्तानन्त होता है। अभवसिद्धिक (अभव्य) जीव भी इतने ही (जघन्य युक्तानन्त जितने) होते हैं। उसके पश्चात्‌ अजघन्योत्कृष्ट (मध्यम) युक्तानन्त के स्थान हैं और वे उत्कृष्ट युक्तानन्त के स्थान के पूर्व तक हैं। जघन्य युक्तानन्त राशि के साथ अभवसिद्धिक राशि का परस्पर अभ्यास रूप गुणाकार करके प्राप्त संख्या में से एक रूप को न्यून करने पर प्राप्त राशि उत्कृष्ट युक्तानन्त की संख्या है। अथवा एक रूप न्यून जघन्य अनन्तानन्त उत्कृष्ट युक्तानन्त है। जघन्य युक्तानन्त के साथ अभवसिद्धिक जीवों को परस्पर अभ्यास रूप से गुणित करने पर प्राप्त पूर्ण संख्या जघन्य अनन्तानन्त का प्रमाण है। अथवा उत्कृष्ट युक्तानन्त में एक रूप का प्रक्षेप करने से जघन्य अनन्तानन्त होता है। तत्पश्चात्‌ सभी स्थान अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त के होते हैं। भावसंख्या क्या है ? इस लोक में जो जीव शंखगतिनाम – गोत्र कर्मादिकों का वेदन कर रहे हैं वे भावशंख हैं। यही भाव संख्या है, यही भावप्रमाण का वर्ण है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] 4. Asamtayam asamtaenam uvamijjai–jaha kharavisanam taha sasavisanam. Se tam ovammasamkha. Se kim tam parimanasamkha? Parimanasamkha duviha pannatta, tam jaha–kaliyasuyaparimanasamkha ditthivayasuyaparimanasamkha ya. Se kim tam kaliyasuyaparimanasamkha? Kaliyasuyaparimanasamkha anegaviha pannatta, tam jaha–pajjavasamkha akkharasamkha samghayasamkha payasamkha payasamkha gahasamkha silogasamkha vedhasamkha nijjuttisamkha anuogadarasamkha uddesagasamkha ajjhayanasamkha suyakhamdhasamkha amgasamkha. Se tam kaliyasuyaparimanasamkha. Se kim tam ditthivayasuyaparimanasamkha? Ditthivayasuyaparimanasamkha anegaviha pannatta, tam jaha–pajjavasamkha akkharasamkha samghayasamkha payasamkha payasamkha gahasamkha silogasamkha vedhasamkha nijjuttisamkha anuogadarasamkha pahudasamkha pahu-diyasamkha pahudapahudiyasamkha vatthusamkha. Se tam ditthivayasuyaparimanasamkha. Se tam parimanasamkha. Se kim tam jananasamkha? Jananasamkha–jo jam janai, tam jaha–saddam saddio, ganiyam ganiyao, nimittam nemi-ttio, kalam kalanani, vejjayam vejjo se tam jananasamkha. Se kim tam gananasamkha? Gananasamkha–ekko gananam na uvei, duppabhii samkha, tam jaha–samkhejjae asamkhejjae anamtae. Se kim tam samkhejjae? Samkhejjae tivihe pannatte, tam–jahannae ukkosae ajahannamanukkosae. Se kim tam asamkhejjae? Asamkhejjae tivihe pannatte, tam jaha–parittasamkhejjae juttasamkhejjae asamkhejjasamkhejjae. Se kim tam parittasamkhejjae? Parittasamkhejjae tivihe pannatte, tam jaha–jahannae ukkosae ajahannamanukkosae. Se kim tam juttasamkhejjae? Juttasamkhejjae tivihe pannatte, tam jaha–jahannae ukkosae ajahannamanukkosae. Se kim tam asamkhejjasamkhejjae? Asamkhejjasamkhejjae tivihe pannatte, tam jaha–jahannae ukkosae ajahannamanu-kkosae. Se kim tam anamtae? Anamtae tivihe pannatte, tam jaha–parittanamtae juttanamtae anamtanamtae. Se kim tam parittanamtae? Parittanamtae tivihe pannatte, tam–jahannae ukkosae ajahannamanukkosae Se kim tam juttanamtae? Juttanamtae tivihe pannatte, tam–jahannae ukkosae ajahannamanukkosae. Se kim tam anamtanamtae? Anamtanamtae duvihe pannatte, tam jaha–jahannae ajahannamanukkosae. Jahannayam samkhejjayam kettiyam hoi? Doruvaim. Tena param ajahannamanukkosayaim thanaim java ukkosayam samkhejjayam na pavai. Ukkosayam samkhejjayam kettiyam hoi? Ukkosayassa samkhejjayassa paruvanam karissami – se jahanamae palle siya egam joyanasayasahassam ayama-vikkhambhenam, tinni joyanasayasahassaim solasa sahassaim donni ya sattavise joyanasae tinni ya kose atthavisam cha dhanusayam terasa ya amgulaim addham amgulam cha kimchivisesahiyam parikkhevenam pannatte. Sase nam palle siddhatthayanam bharie. Tao nam tehim siddhatthaehim diva-samuddanam uddharo gheppai. Ege dive ege samudde-ege dive ege samudde evam pakkhippamanehim-pakkhippamanehim javaiya diva-samudda tehim siddhatthaehim apphunna, esa nam evaie khette palle padhama salaga. Evaiyanam sala-ganam asamlappa loga bhariya taha vi ukkosayam samkhejjayam na pavai. Jaha ko ditthamto? Se jahanamae mamche siya amalaganam bharie, tattha ege amalae pakkhitte se mate, anne vi pakkhitte se vi mate, anne vi pakkhitte se vi mate, evam pakkhippamanehim-pakkhippamanehim hohi se amalae jammi pakkhitte se mamche bharijjihii, hohi se amalae je tattha na mahii. Evameva ukkosae samkhejjae ruvam pakkhittam jahannayam parittasamkhejjayam bhavai. Tena param ajahannamanukkosayaim thanaim java ukkosayam parittasamkhejjayam na pavai. Ukkosayam parittasamkhejjayam kettiyam hoi? Jahannayam parittasamkhejjayam jahannayaparittasamkhejja- yamettanam rasinam anna mannabbhaso ruvuno ukkosayam parittasamkhejjayam hoi. Ahava jahannayam juttasamkhejjayam ruvunam ukkosayam parittasamkhejjayam hoi. Jahannayam juttasamkhejjayam kettiyam hoi? Jahannayam parittasamkhejjayam jahannayaparittasamkhejja-yamettanam rasinam anna-mannabbhaso padipunno jahannayam juttasamkhejjayam hoi. Ahava ukkosae parittasamkhejjae ruvam pakkhittam jahannayam juttasamkhejjayam hoi. Avaliya vi tattiya cheva. Tena param ajahannamanukkosayaim thanaim java ukkosayam juttasamkhejjayam na pavai. Ukkosayam juttasamkhejjayam kettiyam hoi? Jahannaenam juttasamkhejjaenam avaliya guniya annamannabbhaso ruvuno ukkosayam juttasamkhejjayam hoi. Ahava jahannayam asamkhejjasamkhejjayam ruvunam ukkosayam juttasamkhejjayam hoi. Jahannayam asamkhejjasamkhejjayam kettiyam hoi? Jahannaenam juttasamkhejjaenam avaliya guniya annamannabbhaso padipunno jahannayam asamkhejjasamkhejjayam hoi. Ahava ukkosae juttasamkhejjae ruvam pakkhittam jahannayam asamkhejjasamkhejjayam hoi. Tena param ajahannamanukkosayaim thanaim java ukkosayam asamkhejjasamkhejjayam na pavai. Ukkosayam asamkhejjasamkhejjayam kettiyam hoi? Jahannayam asamkhejjasamkhejjayam jahannaya-asamkhejjasamkhejjayamettanam rasinam annamannabbhaso ruvuno ukkosayam asamkhejjasamkhejjayam hoi. Ahava jahannayam parittanamtayam ruvunam ukkosayam asamkhejjasamkhejjayam hoi. Jahannayam parittanamtayam kettiyam hoi? Jahannayam asamkhejjasamkhejjayam jahannaya-asamkhejja-samkhejjamettanam rasinam annamannabbhaso padipunno jahannayam parittanamtayam hoi. Ahava ukkosae asamkhejjasamkhajae ruvam pakkhittam jahannayam parittanamtayam hoi. Tena param ajahannamanukkosayaim thanaim java ukkosayam parittanamtayam na pavai. Ukkosayam parittanamtayam kettiyam hoi? Jahannayam parittanamtayam jahannayaparittanamtayamettanam rasinam annamannabbhaso ruvuno ukkosayam parittanamtayam hoi. Ahava jahannayam juttanamtayam ruvunam ukkosayam parittanamtayam hoi. Jahannayam juttanamtayam kettiyam hoi? Jahannayam parittanamtayam jahannayaparittanamtayamettanam rasinam annamannabbhaso padipunno jahannayam juttanamtayam hoi. Ahava ukkosae parittanamtae ruvam pakkhittam jahannayam juttanamtayam hoi. Abhavasiddhiya vi tattiya cheva. Tena param ajahannamanukkosayaim thanaim java ukkosayam juttanamtayam na pavai. Ukkosayam juttanamtayam kettiyam hoi? Jahannaenam juttanamtaenam abhavasiddhiya guniya annamannabbhaso ruvuno ukkosayam juttanamtayam hoi. Ahava jahannayam anamtanamtayam ruvunam ukkosayam juttanamtayam hoi. Jahannayam anamtanamtayam kettiyam hoi? Jahannayam juttanamtaenam abhavasiddhiya guniya annamannabbhaso padipunno jahannayam anamtanamtayam hoi. Ahava ukkosae juttanamtae ruvam pakkhittam jahannayam anamtanamtayam hoi. Tena param ajahannamanukkosayaim thanaim. Se tam gananasamkha. Se kim tam bhavasamkha? Bhavasamkha–je ime jiva samkhagainamagottaim kammaim vedemti. Se tam bhavasamkha. Se tam samkhappamane. Se tam bhavappamane. Se tam pamane.
Sutra Meaning Transliteration : Avidyamana padartha ko avidyamana padartha se upamita karana asad – asadrupa aupamyasamkhya hai. Jaisa – khara vishana hai vaisa hi shasha vishana hai aura jaisa shashavishana hai vaisa hi kharavishana hai. Parimanasamkhya kya hai\? Do prakara ki hai. Jaise – kalikashrutaparimanasamkhya aura drishtivadashrutaparimana – samkhya. Kalika shrutaparimanasamkhya aneka prakara ki hai. Paryava (paryaya) samkhya, aksharasamkhya, samghatasamkhya, padasamkhya, padasamkhya, gathasamkhya, shrlokasamkhya, vedha (veshtaka) samkhya, niryuktisamkhya, anuyogadvarasamkhya, uddeshasamkhya, adhyayanasamkhya, shrutaskandhasamkhya, amga – samkhya adi kalikashrutaparimanasamkhya hai. Drishtivadashrutaparimanasamkhya ke aneka prakara haim. Yatha – parvasamkhya yavat anuyoga – dvarasamkhya, prabhritasamkhya, prabhritikasamkhya, prabhritaprabhritikasamkhya, vastusamkhya aura purvasamkhya. Isa prakara se drishtivadashruta – parimanasamkhya ka svarupa janana. Jnyanasamkhya kya hai\? Jo jisako janata hai use jnyanasamkhya kahate haim. Jaise ki – shabda ko janane vala shabdika, ganita ko janane vala ganitajnya, nimitta ko janane vala naimittika, kala ko jananevala kalajnya aura vaidyaka ko jananevala vaidya. Ye itane haim, isa rupa mem ginati karane ko gananasamkhya kahate haim. ‘eka’, ganana nahim kahalata hai isalie do se ganana prarambha hoti hai. Vaha gananasamkhya samkhya, asamkhyata aura ananta, tina prakara ki janana. Samkhyata kya hai\? Tina prakara ka hai. Jaghanya samkhyata, utkrishta samkhyata aura ajaghanya – anutkrishta samkhyata. Asamkhyata ke tina prakara haim. Jaise – paritasamkhyata, yuktasamkhyata aura asamkhyatasamkhyata. Paritasamkhyata tina prakara ka hai – jaghanya paritasamkhyata, utkrishta paritasamkhyata aura ajaghanya – anutkrishta paritasamkhyata. Yuktasamkhyata tina prakara ka hai. Jaghanya yuktasamkhyata, utkrishta yuktasamkhyata aura ajaghanyanutkrishta yuktasamkhyata. Asamkhyatasamkhyata tina prakara ka hai. Jaghanya, utkrishta aura ajaghanyanutkrishta asamkhyatasamkhyata. Bhagavan ! Ananta kya hai\? Ananta ke tina prakara haim. Paritananta, yuktananta aura anantananta. Paritananta tina prakara ka hai. Jaghanya, utkrishta aura ajaghanya – anutkrishta paritananta. Ayushman ! Yuktananta ke tina prakara haim. Jaghanya, utkrishta aura ajaghanya – anutkrishta yuktananta. Anantananta ke do prakara kahe haim. Yatha – jaghanya anantananta aura ajaghanya – anutkrishta anantananta. Bhagavan ! Jaghanya samkhyata kitane pramana mem hota hai\? Do rupa pramana jaghanya samkhyata hai, usake pashchat yavat utkrishta samkhyata ka sthana prapta na hone taka madhyama samkhyata janana. Utkrishta samkhyata ki prarupana isa prakara karumga – eka lakha yojana lamba – chaura aura 316227 yojana, tina kosha, 128 dhanusha evam 13.. Amgula se kuchha adhika paridhi vala koi eka palya ho. Palya ko sarshapom ke danom se bhara diya jae. Una sarshapom se dvipa aura samudrom ka uddhara – pramana nikala jata hai. Anukrama se eka dvipa mem aura eka samudra mem isa taraha prakshepa karate – karate jitane dvipa – samudra una sarasom ke danom se bhara jaam, unake samapta hone para eka dana shalakapalya mem dala diya jae. Isa prakara ke shalaka rupa palya mem bhare sarasom ke danom se akathaniya loka bhare hue hom taba bhi utkrishta samkhya ka sthana prapta nahim hota hai. Isake liye koi drishtanta jaise koi eka mamcha ho aura vaha amvalom se purita ho, tadanantara eka amvala dala to vaha bhi sama gaya, dusara dala to vaha bhi sama gaya, tisara dala to vaha bhi sama gaya, isa prakara prakshepa karate – karate amta mem eka amvala aisa hoga ki jisake prakshepa se mamcha paripurna bhara jata hai. Usake bada amvala dala jae to vaha nahim samata hai. Isi prakara barambara dale gae sarshapom se jaba asamlapya – bahuta se palya amta mem amulashikha purita ho jae, unamem eka sarshapa jitana bhi sthana na rahe taba utkrishta samkhya ka sthana prapta hota hai. Isi prakara utkrishta samkhyata samkhya mem rupa (eka) ka prakshepa karane se jaghanya paritasamkhyata hota hai. Tadanantara (paritasamkhyata ke) ajaghanya – anutkrishta sthana haim, jaham taka utkrishta paritasamkhyata sthana prapta nahim hota hai. Jaghanya parita – samkhyata rashi ko jaghanya paritasamkhyata rashi se paraspara abhyasa gunita karake rupa (eka) nyuna karane para utkrishta parita – samkhyata ka pramana hota hai. Athava eka nyuna jaghanya yuktasamkhyata utkrishta paritasamkhyata ka pramana hai. Jaghanya yuktasamkhyata ka kitana pramana hai\? Jaghanya paritasamkhyata rashi ka jaghanya paritasamkhyata rashi se anyonya abhyasa karane para prapta paripurna samkhya jaghanya yuktasamkhyata ka pramana hota hai. Athava utkrishta paritasamkhyata ke pramana mem eka ka prakshepa karane se jaghanya yuktasamkhyata hota hai. Avalika bhi jaghanya yuktasamkhyata tulya samaya – pramana vali janana. Jaghanya yuktasamkhyata se age jaham taka utkrishta yuktasamkhyata prapta na ho, tatpramana madhyama yuktasamkhyata hai. Jaghanya yukta – samkhyata rashi ko avalika se paraspara abhyasa rupa guna karane se prapta pramana mem se eka nyuna utkrishta yuktasamkhyata hai. Athava jaghanya asamkhyatasamkhyata rashi pramana mem se eka kama karane se utkrishta yuktasamkhyata hota hai. Jaghanya asamkhyatasamkhyata ka kya pramana hai\? Jaghanya yuktasamkhyata ke satha avalika ki rashi ka paraspara abhyasa karane se prapta paripurna samkhya jaghanya asamkhyatasamkhyata hai. Athava utkrishta yuktasamkhyata mem eka ka prakshepa karane se jaghanya asamkhyatasamkhyata hota hai. Tatpashchat madhyama sthana hote haim aura ve sthana utkrishta asamkhyatasamkhyata prapta hone se purva taka janana. Jaghanya asamkhyatasamkhyata matra rashi ka usi jaghanya asamkhyatasamkhyata rashi se anyonya abhyasa – guna karane se prapta samkhya mem se eka nyuna karane para prapta samkhya utkrishta asamkhyatasamkhyata hai. Athava eka nyuna jaghanya paritananta utkrishta asamkhyatasamkhyata ka pramana hai. Jaghanya paritananta ka kitana pramana hai\? Jaghanya asamkhyatasamkhyata rashi ko usi jaghanya asamkhyatasamkhyata rashi ke paraspara abhyasa rupa mem gunita karane se prapta paripurna samkhya jaghanya paritananta ka pramana hai. Athava utkrishta asamkhyata – samkhyata mem eka rupa ka prakshepa karane se bhi jaghanya paritananta ka pramana hota hai. Tatpashchat ajaghanya – anutkrishta paritananta ke sthana hote haim aura ve bhi utkrishta paritananta ka sthana prapta na hone ke purva taka hote haim. Jaghanya paritananta ki rashi ko usi jaghanya paritananta rashi se paraspara abhyasa rupa gunita karake usamem se eka rupa (amka) nyuna karane se utkrishta paritananta ka pramana hota hai. Athava jaghanya yuktananta ki samkhya mem se eka nyuna karane se bhi utkrishta paritananta ki samkhya banati hai. Jaghanya yuktananta kitane pramana mem hota hai\? Jaghanya paritananta matra rashi ka usi rashi se abhyasa karane se pratipurna samkhya jaghanya yuktananta hai. Arthat jaghanya paritananta jitani sarshapa samkhya ka paraspara abhyasa rupa guna karane se prapta paripurna samkhya jaghanya yuktananta hai. Athava utkrishta paritananta mem eka rupa (amka) prakshipta karane se jaghanya yuktananta hota hai. Abhavasiddhika (abhavya) jiva bhi itane hi (jaghanya yuktananta jitane) hote haim. Usake pashchat ajaghanyotkrishta (madhyama) yuktananta ke sthana haim aura ve utkrishta yuktananta ke sthana ke purva taka haim. Jaghanya yuktananta rashi ke satha abhavasiddhika rashi ka paraspara abhyasa rupa gunakara karake prapta samkhya mem se eka rupa ko nyuna karane para prapta rashi utkrishta yuktananta ki samkhya hai. Athava eka rupa nyuna jaghanya anantananta utkrishta yuktananta hai. Jaghanya yuktananta ke satha abhavasiddhika jivom ko paraspara abhyasa rupa se gunita karane para prapta purna samkhya jaghanya anantananta ka pramana hai. Athava utkrishta yuktananta mem eka rupa ka prakshepa karane se jaghanya anantananta hota hai. Tatpashchat sabhi sthana ajaghanyotkrishta anantananta ke hote haim. Bhavasamkhya kya hai\? Isa loka mem jo jiva shamkhagatinama – gotra karmadikom ka vedana kara rahe haim ve bhavashamkha haim. Yahi bhava samkhya hai, yahi bhavapramana ka varna hai.