Sutra Navigation: Anuyogdwar ( अनुयोगद्वारासूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1024295 | ||
Scripture Name( English ): | Anuyogdwar | Translated Scripture Name : | अनुयोगद्वारासूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Translated Chapter : |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 295 | Category : | Chulika-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहिं वावहारिय-खेत्त-पलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं केवलं पन्नवणट्ठं पन्नविज्जइ। से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे। से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे? सुहुमे खेत्तपलिओवमे – से जहानामए पल्ले सिया–जोयणं आयाम-विक्खं-भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले– एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाइं कज्जइ, ते णं वालग्गा दिठ्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणग-जीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा। से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा। जे णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना वा अणप्फुन्ना वा, तओ णं समए-समए एग-मेगं आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ। से तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे। तत्थ णं चोयए पन्नवगं एवं वयासी–अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा, जे णं वालग्गेहिं अणप्फुन्ना? हंता अत्थि। जहा को दिट्ठंतो? से जहानामए कोट्ठए सिया कोहंडाणं भरिए, तत्थ णं माउलिंगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बिल्ला पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं आमलगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बयरा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं चणगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं मुग्गा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं सरिसवा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं गंगावालुया पक्खित्ता सा वि माया, एवमेव एएणं दिट्ठंतेणं अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा, जे णं तेहिं वालग्गेहिं अणप्फुन्ना। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! इन व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम से कौन – सा प्रयोजन सिद्ध होता है ? गौतम ! इन से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। मात्र इनके स्वरूप की प्ररूपणा ही की गई है। भगवन् ! सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम क्या है ? वह इस प्रकार जानना – जैसे धान्य के पल्य के समान एक पल्य हो जो एक योजन लम्बा – चौड़ा, एक योजन ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला हो। फिर उस पल्य को एक दिन, तीन दिन यावत् सात दिन के उगे हुए बालाग्रों से भरा जाए और उन बालाग्रों के असंख्यात – असंख्यात ऐसे खण्ड किये जाऍं, जो दृष्टि के विषयभूत पदार्थ की अपेक्षा असंख्यात भाग – प्रमाण हों एवं सूक्ष्मपनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यात गुणे हों। उन बालाग्रखण्डों को न तो अग्नि जला सके और न वायु उड़ा सके, वे न तो सड़ – गल सके और न जल से भीग सके, उनमें दुर्गन्ध भी उत्पन्न न हो सके। उस पल्य के बालाग्रों से जो आकाशप्रदेश स्पृष्ट हुए हों और स्पृष्ट न हुए हों उनमें से प्रति समय एक – एक आकाशप्रदेश का अपहरण किया जाए तो जितने काल में वह पल्य क्षीण, नीरज, निर्लेप एवं सर्वात्मना विशुद्ध हो जाए, उसे सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम हैं। भगवन् ! क्या उस पल्य के ऐसे भी आकाशप्रदेश हैं जो उन बालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट हों ? आयुष्मन् ! हाँ, हैं। इस विषय में कोई दृष्टांत है ? हाँ है। जैसे कोई एक कोष्ठ कूष्मांड के फलों से भरा हुआ हो और उसमें बिजौराफल डाले गए तो वे भी उसमें समा गए। फिर उसमें बिल्वफल डाले तो वे भी समा जाते हैं। इसी प्रकार उसमें आँवला डालें जाऍं तो वे भी समा जाते हैं। फिर वहाँ बेर डाले जाऍं तो वे भी समा जाते हैं। फिर चने डालें तो वे भी उसमें समा जाते हैं। फिर मूँग के दाने डाले जाऍं तो वे भी उसमें समा जाते हैं। फिर सरसों डाले जाऍं तो वे भी समा जाते हैं। इसके बाद गंगा महानदी की बालू डाली जाए तो वह भी उसमें समा जाती है। इस दृष्टान्त से उस पल्य के ऐसे भी आकाशप्रदेश होते हैं जो उन बालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट रह जाते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] eehim vavahariyakhettapaliovama-sagarovamehim kim paoyanam? Eehim vavahariya-khetta-paliovama-sagarovamehim natthi kimchippaoyanam kevalam pannavanattham pannavijjai. Se tam vavaharie khettapaliovame. Se kim tam suhume khettapaliovame? Suhume khettapaliovame – se jahanamae palle siya–joyanam ayama-vikkham-bhenam, joyanam uddham uchchattenam, tam tigunam savisesam parikkhevenam; se nam palle– Egahiya-beyahiya-teyahiya, ukkosenam sattarattaparudhanam. Sammatthe sannichite, bharie valaggakodinam. Tattha nam egamege valagge asamkhejjaim khamdaim kajjai, te nam valagga diththiogahanao asamkhejjaibhagametta suhumassa panaga-jivassa sarirogahanao asamkhejjaguna. Se nam valagge no aggi dahejja, no vau harejja, no kuchchhejja, no palividdhamsejja, no puittae havvamagachchhejja. Je nam tassa pallassa agasapaesa tehim valaggehim apphunna va anapphunna va, tao nam samae-samae ega-megam agasapaesam avahaya javaienam kalenam se palle khine nirae nilleve nitthie bhavai. Se tam suhume khettapaliovame. Tattha nam choyae pannavagam evam vayasi–atthi nam tassa pallassa agasapaesa, je nam valaggehim anapphunna? Hamta atthi. Jaha ko ditthamto? Se jahanamae kotthae siya kohamdanam bharie, tattha nam maulimga pakkhitta te vi maya, tattha nam billa pakkhitta te vi maya, tattha nam amalaga pakkhitta te vi maya, tattha nam bayara pakkhitta te vi maya, tattha nam chanaga pakkhitta te vi maya, tattha nam mugga pakkhitta te vi maya, tattha nam sarisava pakkhitta te vi maya, tattha nam gamgavaluya pakkhitta sa vi maya, evameva eenam ditthamtenam atthi nam tassa pallassa agasapaesa, je nam tehim valaggehim anapphunna. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Ina vyavaharika kshetrapalyopama aura sagaropama se kauna – sa prayojana siddha hota hai\? Gautama ! Ina se koi prayojana siddha nahim hota. Matra inake svarupa ki prarupana hi ki gai hai. Bhagavan ! Sukshma kshetrapalyopama kya hai\? Vaha isa prakara janana – jaise dhanya ke palya ke samana eka palya ho jo eka yojana lamba – chaura, eka yojana umcha aura kuchha adhika tiguni paridhi vala ho. Phira usa palya ko eka dina, tina dina yavat sata dina ke uge hue balagrom se bhara jae aura una balagrom ke asamkhyata – asamkhyata aise khanda kiye jaam, jo drishti ke vishayabhuta padartha ki apeksha asamkhyata bhaga – pramana hom evam sukshmapanaka jiva ki shariravagahana se asamkhyata gune hom. Una balagrakhandom ko na to agni jala sake aura na vayu ura sake, ve na to sara – gala sake aura na jala se bhiga sake, unamem durgandha bhi utpanna na ho sake. Usa palya ke balagrom se jo akashapradesha sprishta hue hom aura sprishta na hue hom unamem se prati samaya eka – eka akashapradesha ka apaharana kiya jae to jitane kala mem vaha palya kshina, niraja, nirlepa evam sarvatmana vishuddha ho jae, use sukshma kshetrapalyopama haim. Bhagavan ! Kya usa palya ke aise bhi akashapradesha haim jo una balagrakhandom se asprishta hom\? Ayushman ! Ham, haim. Isa vishaya mem koi drishtamta hai\? Ham hai. Jaise koi eka koshtha kushmamda ke phalom se bhara hua ho aura usamem bijauraphala dale gae to ve bhi usamem sama gae. Phira usamem bilvaphala dale to ve bhi sama jate haim. Isi prakara usamem amvala dalem jaam to ve bhi sama jate haim. Phira vaham bera dale jaam to ve bhi sama jate haim. Phira chane dalem to ve bhi usamem sama jate haim. Phira mumga ke dane dale jaam to ve bhi usamem sama jate haim. Phira sarasom dale jaam to ve bhi sama jate haim. Isake bada gamga mahanadi ki balu dali jae to vaha bhi usamem sama jati hai. Isa drishtanta se usa palya ke aise bhi akashapradesha hote haim jo una balagrakhandom se asprishta raha jate haim. |