Sutra Navigation: Anuyogdwar ( अनुयोगद्वारासूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1024270 | ||
Scripture Name( English ): | Anuyogdwar | Translated Scripture Name : | अनुयोगद्वारासूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Translated Chapter : |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 270 | Category : | Chulika-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति। से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो, संखेज्जएणं लोगो गुणितो संखेज्जा लोगा, असंखेज्जएणं लोगो गुणितो असंखेज्जा लोगा। एएणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति। एएसि णं सेढीअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा? सव्वत्थोवे सेढीअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंखेज्जगुणे। से तं पमाणंगुले। से तं विभागनिप्फन्ने। से तं खेत्तप्पमाणे। | ||
Sutra Meaning : | मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है। संमूर्च्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है। अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त मनुष्यों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है। वाणव्यंतरों की भावधारणीय एवं उत्तर वैक्रियशरीर की अवगाहना असुरकुमारों के समान जानना। इसी प्रकार ज्योतिष्क भी समझ लेना। सौधर्मकल्प के देवों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! दो प्रकार की – भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। इनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सात रत्नि है। उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है। इसी तरह इशान कल्प में भी जानना। सनत्कुमार – कल्प में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट छह रत्नि प्रमाण है, उत्तरवैक्रिय सौधर्मकल्प के बराबर है। सनत्कुमारकल्प जितनी अवगाहना माहेन्द्रकल्प में जानना। ब्रह्मलोक और लांतक में भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पाँच रत्नि प्रमाण है तथा उत्तरवैक्रिय का प्रमाण सौधर्मकल्पवत् है। महाशुक्र और सहस्रार कल्पों में भवधारणीय अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार रत्नि प्रमाण है तथा उत्तर – वैक्रिय सौधर्मकल्प के समान है। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत – में भवधारणीय अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन रत्नि की है। उत्तरवैक्रिय सौधर्मकल्प के समान है। ग्रैवेयकदेवों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! ग्रैवेयकदेवों का एकमात्र भवधारणीय शरीर ही होता है। उस की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट दो हाथ है। अनुत्तरविमानवासी देवों का एकमात्र भवधारणीय शरीर ही है। उसकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हाथ है वह उत्सेधांगुल संक्षेप से तीन प्रकार का है। सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल। एक अंगुल लम्बी तथा एक प्रदेश चौड़ी आकाशप्रदेशों की श्रेणी को सूच्यंगुल कहते हैं। सूची से सूची को गुणित करने पर प्रतरांगुल निष्पन्न होता है, सूच्यंगुल से गुणित प्रतरांगुल घनांगुल कहलाता है। भगवन् ! इन सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में कौन किससे अल्प, बहुल, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? इनमें सर्वस्तोक सूच्यंगुल है, उससे प्रतरांगुल असंख्यातगुणा और प्रतरांगुल से घनांगुल असंख्यातगुणा है। प्रमाणांगुल क्या है ? भरतक्षेत्र पर शासन करनेवाले चक्रवर्ती के अष्ट स्वर्णप्रमाण, छह तल वाले, बारह कोटियों और आठ कर्णिकाओं से युक्त अधिकरण संस्थान काकणीरत्न की एक – एक कोटि उत्सेधांगुल प्रमाण विष्कंभ वाली है, उसकी वह एक कोटि श्रमण भगवान् महावीर के अर्धांगुल प्रमाण है। उस अर्धांगुल से हजार गुणा एक प्रमाणांगुल है। इस अंगुल से छह अंगुल का एक पाद, दो पाद अथवा बारह अंगुल की एक वितस्ति, दो वितस्तियों की रत्नि, दो रत्नि की एक कुक्षि, दो कुक्षियों का एक धनुष, दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। प्रमाणांगुल से कौन – सा प्रयोजन सिद्ध होता है ? इस से पृथ्वीयों की, कांडों की, पातालकलशों की, भवनों की, भवनों के प्रस्तरों की, नरकवासों की, नरकपंक्तियों की, नरक के प्रस्तरों की, कल्पों की, विमानों की, विमानपंक्तियों की, विमानप्रस्तरों की, टंकों की, कूटों की, पर्वतों की, शिखर वाले पर्वतों की, प्राग्भारों की, विजयों की, वक्षारों की, क्षेत्रों की, वर्षधर पर्वतों की, समुद्रों की, वेलाओं की, वेदिकाओं की, द्वारों की, तोरणों की, द्वीपों की तथा समुद्रों की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई और परिधि नापी जाती है। वह (प्रमाणांगुल) संक्षेप में तीन प्रकार का कहा गया है – श्रेण्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल। (प्रमाणांगुल से निष्पन्न) असंख्यात कोडाकोडी योजनों की एक श्रेणी होती है। श्रेणी को श्रेणी से गुणित करने पर प्रतरांगुल और प्रतरांगुल को श्रेणी के साथ गुणा करने से (एक) लोक होता है। संख्यात राशि से गुणित लोक ‘संख्यातलोक’, असंख्यात राशि से गुणित लोक ‘असंख्यातलोक’ और अनन्त राशि से गुणित लोक ‘अनन्तलोक’ कहलाता है। इन श्रेण्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? श्रेण्यंगुल सर्वस्तोक है, उससे प्रतरांगुल असंख्यात गुणा है और प्रतरांगुल से घनांगुल असंख्यात गुणा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] manussanam bhamte kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam enam pamanamgulenam kim paoyanam? Eenam pamanamgulenam pudhavinam kamdanam patalanam bhavananam bhavanapatthadanam nirayanam nirayavaliyanam nirayapatthadanam kappanam vimananam vimanavaliyanam vimanapatthadanam tamkanam kudanam selanam siharinam pabbha-ranam vijayanam vakkharanam vasanam vasaharanam pavvayanam velanam veiyanam daranam torananam divanam samuddanam ayama-vikkhambha-uchchatta-uvveha-parikkheva mavijjamti. Se samasao tivihe pannatte, tam jaha–sedhiamgule payaramgule ghanamgule. Asamkhejjao joyanakodakodio sedhi, sedhi sedhie guniya payaram, payaram sedhie guniyam logo, samkhejjaenam logo gunito samkhejja loga, asamkhejjaenam logo gunito asamkhejja loga. Eenam pamanamgulenam kim paoyanam? Eenam pamanamgulenam pudhavinam kamdanam patalanam bhavananam bhavanapatthadanam nirayanam nirayavaliyanam nirayapatthadanam kappanam vimananam vimanavaliyanam vimanapatthadanam tamkanam kudanam selanam siharinam pabbha-ranam vijayanam vakkharanam vasanam vasaharanam pavvayanam velanam veiyanam daranam torananam divanam samuddanam ayama-vikkhambha-uchchatta-uvveha-parikkheva mavijjamti. Eesi nam sedhiamgula-payaramgula-ghanamgulanam kayare kayarehimto appe va bahue va tulle va visesahie va? Savvatthove sedhiamgule, payaramgule asamkhejjagune, ghanamgule asamkhejjagune. Se tam pamanamgule. Se tam vibhaganipphanne. Se tam khettappamane. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Manushyom ki shariravagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta tina gavyuti hai. Sammurchchhima manushyom ki jaghanya aura utkrishta avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Garbhaja manushyom ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta tina gavyuti pramana hai. Aparyapta garbhavyutkranta manushyom ki avagahana jaghanya aura utkrishta amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Paryapta garbhavyutkrantika manushyom ki avagahana jaghanya amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta tina gavyuti pramana hai. Vanavyamtarom ki bhavadharaniya evam uttara vaikriyasharira ki avagahana asurakumarom ke samana janana. Isi prakara jyotishka bhi samajha lena. Saudharmakalpa ke devom ki shariravagahana kitani hai\? Gautama ! Do prakara ki – bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Inamem se bhavadharaniya sharira ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga ki aura utkrishta sata ratni hai. Uttaravaikriya sharira ki jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishta eka lakha yojana pramana hai. Isi taraha ishana kalpa mem bhi janana. Sanatkumara – kalpa mem bhavadharaniya jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta chhaha ratni pramana hai, uttaravaikriya saudharmakalpa ke barabara hai. Sanatkumarakalpa jitani avagahana mahendrakalpa mem janana. Brahmaloka aura lamtaka mem bhavadharaniya sharira ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta pamcha ratni pramana hai tatha uttaravaikriya ka pramana saudharmakalpavat hai. Mahashukra aura sahasrara kalpom mem bhavadharaniya avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta chara ratni pramana hai tatha uttara – vaikriya saudharmakalpa ke samana hai. Anata, pranata, arana aura achyuta – mem bhavadharaniya avagahana jaghanya amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta tina ratni ki hai. Uttaravaikriya saudharmakalpa ke samana hai. Graiveyakadevom ki shariravagahana kitani hai\? Gautama ! Graiveyakadevom ka ekamatra bhavadharaniya sharira hi hota hai. Usa ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta do hatha hai. Anuttaravimanavasi devom ka ekamatra bhavadharaniya sharira hi hai. Usaki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta eka hatha hai Vaha utsedhamgula samkshepa se tina prakara ka hai. Suchyamgula, prataramgula aura ghanamgula. Eka amgula lambi tatha eka pradesha chauri akashapradeshom ki shreni ko suchyamgula kahate haim. Suchi se suchi ko gunita karane para prataramgula nishpanna hota hai, suchyamgula se gunita prataramgula ghanamgula kahalata hai. Bhagavan ! Ina suchyamgula, prataramgula aura ghanamgula mem kauna kisase alpa, bahula, tulya athava visheshadhika hai\? Inamem sarvastoka suchyamgula hai, usase prataramgula asamkhyataguna aura prataramgula se ghanamgula asamkhyataguna hai. Pramanamgula kya hai\? Bharatakshetra para shasana karanevale chakravarti ke ashta svarnapramana, chhaha tala vale, baraha kotiyom aura atha karnikaom se yukta adhikarana samsthana kakaniratna ki eka – eka koti utsedhamgula pramana vishkambha vali hai, usaki vaha eka koti shramana bhagavan mahavira ke ardhamgula pramana hai. Usa ardhamgula se hajara guna eka pramanamgula hai. Isa amgula se chhaha amgula ka eka pada, do pada athava baraha amgula ki eka vitasti, do vitastiyom ki ratni, do ratni ki eka kukshi, do kukshiyom ka eka dhanusha, do hajara dhanusha ka eka gavyuta aura chara gavyuta ka eka yojana hota hai. Pramanamgula se kauna – sa prayojana siddha hota hai\? Isa se prithviyom ki, kamdom ki, patalakalashom ki, bhavanom ki, bhavanom ke prastarom ki, narakavasom ki, narakapamktiyom ki, naraka ke prastarom ki, kalpom ki, vimanom ki, vimanapamktiyom ki, vimanaprastarom ki, tamkom ki, kutom ki, parvatom ki, shikhara vale parvatom ki, pragbharom ki, vijayom ki, vaksharom ki, kshetrom ki, varshadhara parvatom ki, samudrom ki, velaom ki, vedikaom ki, dvarom ki, toranom ki, dvipom ki tatha samudrom ki lambai, chaurai, umchai, gaharai aura paridhi napi jati hai. Vaha (pramanamgula) samkshepa mem tina prakara ka kaha gaya hai – shrenyamgula, prataramgula, ghanamgula. (pramanamgula se nishpanna) asamkhyata kodakodi yojanom ki eka shreni hoti hai. Shreni ko shreni se gunita karane para prataramgula aura prataramgula ko shreni ke satha guna karane se (eka) loka hota hai. Samkhyata rashi se gunita loka ‘samkhyataloka’, asamkhyata rashi se gunita loka ‘asamkhyataloka’ aura ananta rashi se gunita loka ‘anantaloka’ kahalata hai. Ina shrenyamgula, prataramgula aura ghanamgula mem kauna kisase alpa, adhika, tulya athava visheshadhika hai\? Shrenyamgula sarvastoka hai, usase prataramgula asamkhyata guna hai aura prataramgula se ghanamgula asamkhyata guna hai. |