Sutra Navigation: Anuyogdwar ( अनुयोगद्वारासूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1024052
Scripture Name( English ): Anuyogdwar Translated Scripture Name : अनुयोगद्वारासूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Translated Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Section : Translated Section :
Sutra Number : 52 Category : Chulika-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं दव्वखंधे? दव्वक्खंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वखंधे? आगमओ दव्वखंधे–जस्स णं खंधे त्ति पदं सिक्खियं सेसं जहा दव्वा-वस्सए तहा भाणियव्वं नवरं खंधाभिलाओ जाव से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे जाणगसरीर-भविय-सरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए।
Sutra Meaning : द्रव्यस्कन्ध क्या है ? दो प्रकार का है। आगमद्रव्यस्कन्ध और नोआगमद्रव्यस्कन्ध। आगमद्रव्यस्कन्ध क्या है ? जिसने स्कन्धपद को गुरु से सीखा है, स्थित किया है, जित, मित किया है यावत्‌ नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा आगम से एक द्रव्यस्कन्ध है, दो अनुपयुक्त आत्माऍं दो, इस प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्माऍं हैं, उतने ही आगमद्रव्यस्कन्ध जानना। इसी तरह व्यवहारनय को भी जानना। संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्यस्कन्ध और अनेक अनुपयुक्त आत्माऍं अनेक आगमद्रव्यस्कन्ध ऐसा स्वीकार नहीं करता, किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यस्कन्ध मानता है। ऋजुसूत्रनय से एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्यस्कन्ध है। वह भेदों को स्वीकार नहीं करता है। तीनों शब्दनय ज्ञायक यदि अनुपयुक्त हों तो उसे अवस्तु मानते हैं। क्योंकि जो ज्ञायक है वह अनुपयुक्त नहीं होता है। नोआगमद्रव्यस्कन्ध क्या है ? तीन प्रकार का है। ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध, भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध और ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध। ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध क्या है ? स्कन्धपद के अर्थाधिकार को जाननेवाले यावत्‌ जिसने स्कन्ध पद का अध्ययन किया था, प्रतिपादन किया था आदि पूर्ववत्‌। भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध क्या है ? समय पूर्ण होने पर यथाकाल कोई योनिस्थान से बाहर निकला ओर वह यावत्‌ भविष्य में ‘स्कन्ध’ इस पद के अर्थ को सीखेगा, उस जीव का शरीर भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध है। इसका दृष्टान्त ? भविष्य में यह मधुकुंभ है, यह घृतकुंभ है। ज्ञायकशरीर – भव्यशरीर – व्यतिरिक्त द्रव्यस्कन्ध क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं। सचित्त, अचित्त और मिश्र।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam davvakhamdhe? Davvakkhamdhe duvihe pannatte, tam jaha–agamao ya noagamao ya. Se kim tam agamao davvakhamdhe? Agamao davvakhamdhe–jassa nam khamdhe tti padam sikkhiyam sesam jaha davva-vassae taha bhaniyavvam navaram khamdhabhilao java se kim tam janagasarira-bhaviyasarira-vatiritte davvakhamdhe janagasarira-bhaviya-sarira-vatiritte davvakhamdhe tivihe pannatte tam jaha–sachitte achitte misae.
Sutra Meaning Transliteration : Dravyaskandha kya hai\? Do prakara ka hai. Agamadravyaskandha aura noagamadravyaskandha. Agamadravyaskandha kya hai\? Jisane skandhapada ko guru se sikha hai, sthita kiya hai, jita, mita kiya hai yavat naigamanaya ki apeksha eka anupayukta atma agama se eka dravyaskandha hai, do anupayukta atmaam do, isa prakara jitani bhi anupayukta atmaam haim, utane hi agamadravyaskandha janana. Isi taraha vyavaharanaya ko bhi janana. Samgrahanaya eka anupayukta atma eka dravyaskandha aura aneka anupayukta atmaam aneka agamadravyaskandha aisa svikara nahim karata, kintu sabhi ko eka hi agamadravyaskandha manata hai. Rijusutranaya se eka anupayukta atma eka agamadravyaskandha hai. Vaha bhedom ko svikara nahim karata hai. Tinom shabdanaya jnyayaka yadi anupayukta hom to use avastu manate haim. Kyomki jo jnyayaka hai vaha anupayukta nahim hota hai. Noagamadravyaskandha kya hai\? Tina prakara ka hai. Jnyayakashariradravyaskandha, bhavyashariradravyaskandha aura jnyayakasharira – bhavyashariravyatiriktadravyaskandha. Jnyayakashariradravyaskandha kya hai\? Skandhapada ke arthadhikara ko jananevale yavat jisane skandha pada ka adhyayana kiya tha, pratipadana kiya tha adi purvavat. Bhavyashariradravyaskandha kya hai\? Samaya purna hone para yathakala koi yonisthana se bahara nikala ora vaha yavat bhavishya mem ‘skandha’ isa pada ke artha ko sikhega, usa jiva ka sharira bhavyashariradravyaskandha hai. Isaka drishtanta\? Bhavishya mem yaha madhukumbha hai, yaha ghritakumbha hai. Jnyayakasharira – bhavyasharira – vyatirikta dravyaskandha kya hai\? Usake tina prakara haim. Sachitta, achitta aura mishra.