Sutra Navigation: Pindniryukti ( पिंड – निर्युक्ति )

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Sr No : 1020614
Scripture Name( English ): Pindniryukti Translated Scripture Name : पिंड – निर्युक्ति
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

एषणा

Translated Chapter :

एषणा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 614 Category : Mool-02B
Gatha or Sutra : Gatha Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [गाथा] बाले वुड्ढे मत्ते उम्मत्ते वेविए य जरिए य । अंधिल्लए पगलिए आरूढे पाउयाहिं च ॥
Sutra Meaning : नीचे बताए गए चालीस प्रकार के दाता के पास से उत्सर्ग मार्ग से साधु को भिक्षा लेना न कल्पे। बच्चा – आठ साल से कम उम्र का हो उससे भिक्षा लेना न कल्पे। बुजुर्ग हाजिर न हो तो भिक्षा आदि लेने में कईं प्रकार के दोष रहे हैं। एक स्त्री नई – नई श्राविका बनी थी। एक दिन खेत में जाने से उस स्त्री ने अपनी छोटी बेटी को कहा कि, ‘साधु भिक्षा के लिए आए तो देना।’ एक साधु संघाटक घूमते – घूमते उसके घर आए। बालिका वहोराने लगी। छोटी बच्ची को मुग्ध देखकर बड़े साधु ने लंपटता से बच्ची के पास से माँगकर सारी चीजें वहोर ली। माँ ने कहा था इसलिए बच्ची ने सब कुछ वहोराया। वो स्त्री खेत से आई तब कुछ भी न देखने से गुस्सा होकर बोली कि, क्यों सबकुछ दे दिया ? बच्ची ने कहा कि, माँग – माँगकर सबकुछ ले लिया। स्त्री गुस्सा हो गई और उपाश्रय आकर चिल्लाकर बोलने लगी कि, तुम्हारा साधु ऐसा कैसा कि बच्ची के पास से सबकुछ ले गए ? स्त्री का चिल्लाना सुनकर लोग इकट्ठे हो गए और साधु की नींदा करने लगे। यह लोग केवल वेशधारी है, लूँटारे है, साधुता नहीं है। ऐसा – ऐसा बोलने लगे। आचार्य भगवंत ने शासन का अवर्णवाद होते देखा और आचार्य भगवंत ने उस साधु को बुलाकर, फिर से ऐसा मत करना ऐसा कहकर ठपका दिया। इस प्रकार शासन का ऊड्डाह आदि दोष रहे हैं, इसलिए इस प्रकार बुजुर्ग की गैर – मौजूदगी में छोटे बच्चे से भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – वड़ील आदि मौजूद हो और वो दिलवाए तो छोटे बच्चे से भी भिक्षा लेना कल्पे। वृद्ध – ६० साल मतांतर से ७० साल की उम्रवाले वृद्ध से भिक्षा लेना न कल्पे। क्योंकि काफी वृद्ध से भिक्षा लेने में कईं प्रकार के दोष रहे हैं। बुढ़ापे के कारण से उसके मुँह से पानी नीकल रहा हो इसलिए देते – देते देने की चीज में भी मुँह से पानी गिरे, उसे देखकर जुगुप्सा होती है कि, ‘कैसी बूरी भिक्षा लेनेवाले हैं ?’ हाथ काँप रहे तो उससे चीज गिर जाए उसमें छकाय जीव की विराधना होती है। वृद्ध होने से देते समय खुद गिर जाए, तो जमीं पर रहे जीव की विराधना होती है, या वृद्ध के हाथ – पाँव आदि तूट जाए या ऊतर जाए। वृद्ध यदि घर का नायक न हो तो घर के लोगों को उन पर द्वेष हो कि यह वृद्ध सब दे देता है या तो साधु पर द्वेष करे या दोनों पर द्वेष करे। अपवाद – वृद्ध होने के बावजूद भी मुँह से पानी न नीकले, शरीर न काँपे, ताकतवर हो, घर का मालिक हो, तो उसका दिया हुआ लेना कल्पे। मत्त – दारू आदि पीया हो, उससे भिक्षा लेना न कल्पे। दारू आदि पीया होने से भान न हो, इसलिए शायद साधु को चिपक जाए या बकवास करे कि, अरे ! मुंड़ीआ ! क्यों यहाँ आए हो ? ऐसा बोलते हुए मारने के लिए आए या पात्रादि तोड़ दे, या पात्र में थूँक दे या देते – देते दारू का वमन करे, उससे कपड़े, शरीर या पात्र उल्टी से खरड़ित हो जाए। यह देखकर लोग साधु की नींदा करे कि, इन लोगों को धिक्कार है, कैसे अपवित्र है कि ऐसे दारू पीनेवाले से भी भिक्षा ग्रहण करते हैं। अपवाद – यदि वो श्रावक हो, परवश न हो यानि भान में हो और आसपास में लोग न हो तो दिया हुआ लेना कल्पे। उन्मत्त – महासंग्राम आदि में जय पाने से अभिमानी होकर या भून आदि का वमल में फँसा हो उससे उन्मत्त, उनसे भी भिक्षा लेना न कल्पे। उन्मत्त में ऊपर के मत्त में कहे अनुसार वमनदोष रहित के दोष लगते हैं। अपवाद – वो पवित्र हो, भद्रक हो और शान्त हो तो लेना कल्पे। वेपमान – शरीर काँप रहा हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। शरीर काँपने से उनके हाथ से भिक्षा देते शरीर गिर जाए या पात्र में ड़ालते शरीर बाहर गिरे या भाजन आदि हाथ से नीचे गिर जाए, तो भाजन तूट जाए, छह काय जीव की विराधना आदि होने से भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – शरीर काँप रहा हो, लेकिन उसके हाथ न काँपते हो तो कल्पे। ज्वरित – बुखार आ रहा हो तो उससे लेना न कल्पे। ऊपर के अनुसार दोष लगे अलावा उसका बुखार शायद साधु में संक्रमे, लोगों में उड्डाह हो कि, यह कैसे आहार लंपट है बुखारवाले से भिक्षा लेते हैं। इसलिए बुखारवाले से भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – बुखार उतर गया हो – भिक्षा देते समय बुखार न हो तो कल्पे। अंध – अंधो से भिक्षा लेना न कल्पे। शासन का ऊड्डाह होता है कि, यह अंधा दे सके ऐसा नहीं है फिर भी यह पेटभरे साधु उनसे भिक्षा ग्रहण करते हैं। अंधा देखता नहीं होने से जमीं पर रहे छह जीवनीकाय विराधना करे, पत्थर आदि बीच में आ जाए तो नीचे गिर पड़े तो उसे लगे, भाज उठाया हो और गिर पड़े तो जीव की विराधना हो। देते समय बाहर गिर जाए आदि दोष होने से अंधे से भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – श्रावक या श्रद्धालु अंधे से उसका पुत्र आदि हाथ पकड़कर दिलाए तो भिक्षा लेना कल्पे। प्रगलित – गलता को आदि चमड़ी की बीमारी जिसे हुई हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। भिक्षा देने से उसे कष्ट हो, गिर जाए, दस्त – पिशाब अच्छी प्रकार से साफ न कर सके तो अपवित्र रहे। उनसे भिक्षा लेने में लोगों को जुगुप्सा हो, छह जीवनीकाय की विराधना आदि दोष लगे, इसलिए उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – ऊपर बताए दोष को जिस अवसर में सँभावना न हो और आसपास में दूसरे लोग न हो तो भिक्षा लेना कल्पे। आरूढ – पाँव में पादुका – जूते आदि पहना हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। हस्तान्दु – दोनों हाथ लकड़े की हेंड़ में ड़ाले हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। निगड़ – पाँव में बेड़ियाँ हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। छिन्नहस्तवाद – हाथ या पाँव कटे हुए हो ऐसे ठूँठे या लंगड़े से भिक्षा लेना न कल्पे। त्रिराशिक – नपुंसक से भिक्षा लेना न कल्पे। नपुंसक से भिक्षा लेने में स्व – पर और उभय का दोष रहा है। नपुंसक से बार – बार भिक्षा लेने से काफी पहचान होने से साधु को देखकर उसे वेदोदय हो और कुचेष्टा करे यानि दोनों को मैथुनकर्म का दोष लगे। बार – बार न जाए लेकिन किसी दिन जाए तो मैथुनदोष का अवसर न आए, लेकिन लोगों में जुगुप्सा होती है कि, यह साधु नपुंसक से भी भिक्षा ग्रहण करते हैं, इसलिए साधु भी नपुंसक होंगे। इत्यादि दोष लगे। अपवाद – नपुंसक अनासेवी हो, कृत्रिम प्रकार से नपुंसक हुआ हो, मंत्र, तंत्र से नपुंसक हुआ हो, श्राप से नपुंसक हुआ हो तो उससे भिक्षा लेना कल्पे। गर्विणी – पास में प्रसवकाल – गर्भ रहे नौ महिने हुए हो ऐसे गर्भवाली स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे। गर्भवाली स्त्री से भिक्षा लेने में स्त्री को उठते – बैठते भीतर रहे गर्भ के जीव को दर्द होता है, इसलिए उनसे भिक्षा मत लेना। अपवाद – गर्भ रहे नौ महीने न हुए हो, भिक्षा देने में कष्ट न हो, बैठी हो तो बैठे – बैठे और खड़ी हो तो खड़े – खड़े भिक्षा दे तो कल्पे। जिनकल्पी साधु के लिए तो जिस दिन गर्भ रहे उसी दिन से लेकर जब तक बच्चा माँ का दूध पीता हो तब तक उस स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे। बालवत्सा – माँ का दूध पीता हुआ बच्चा गोद में हो और माँ बच्चे को छोड़कर भिक्षा दे तो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। बच्चे को जमीं पर या माँची में रखकर भिक्षा दे तो शायद उस बच्चे को बिल्ली या कूत्ता आदि माँस का टुकड़ा या खरगोश का बच्चा समझकर मुँह से पकड़कर ले जाए तो बच्चा मर जाए। भिक्षा देते समय उस स्त्री के हाथ खरड़ित हो उन कर्कश हाथ से बच्चे को वापस हाथ में लेने से बच्चे को दर्द हो इत्यादि दोष के कारण से उन स्त्री से भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – बच्चा बड़ा हो, स्तनपान न करता हो तो ऐसी स्त्री से भिक्षा लेना कल्पे। क्योंकि वो बड़ा होने से उसे उठा ले जाना मुमकीन नहीं है। भोजन कर रहे हो – उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। भोजन कर रहे हो और भिक्षा देने के लिए उठे तो हाथ धोए तो अप्‌काय आदि की विराधना होती है। हाथ साफ किए बिना दे तो लोगों में जुगुप्सा हो कि, झूठी भिक्षा लेते हैं। इसलिए भोजन करते हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – हाथ झूठे न हुए हो या भोजन करने की शुरूआत न की हो तो उनसे भिक्षा लेना कल्पे। मथ्नंती – दहीं वलोती हो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। दहीं आदि वलोती हो तो वो संसक्त हो तो वो संसक्त दहीं आदि से खरड़ित हाथ से भिक्षा देने से वो रस जीव का विनाश है इसलिए उनके हाथ से भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – वलोणा पूरा हो गया हो, हाथ सूखे हो तो लेना कल्पे या फिर वलोणा में हाथ न बिगाड़े हो तो लेना कल्पे भज्जंती – चूल्हे पर तावड़ी आदि में चने आदि पकाती हो तो भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – चूल्हे पर से तावड़ी उतार ली हो या संघट्टो न हो तो कल्पे। दलंती – चक्की आदि में आँटा पीसती हो तो भिक्षा लेना न कल्पे। अपवाद – साँबिल ऊपर किया हो और साधु आ जाए तो उठाए हुए साँबिल में कण न चिपके हो तो साँबिल निर्जीव जगह में रखकर दो तो लेना कल्पे। पिसंती – पत्थर, खाणीया आदि में पिसती हो वो भिक्षा न कल्पे। अपवाद – पिस लिया हो, सचित्त का संघट्टो न हो उस समय साधु आए और दे तो लेना कल्पे। पिजंती – रूई अलग करती हो तो लेना न कल्पे। रूचंती – कपास में से रूई अलग नीकालती हो तो लेना न कल्पे। कंतंती – रूई में से सुत्त बुनती हो तो लेना न कल्पे। मद्माणी – रूई की पुणी बनाती हो तो लेना न कल्पे। अपवाद – पिंजन आदि काम पूरा हो गया हो या अचित्त रूई को पिंजती हो तो भिक्षा लेना कल्पे। या भिक्षा देने के बाद हाथ साफ न करे तो लेना कल्पे। यानि पश्चात्‌ कर्मदोष न लगे ऐसा हो तो लेना कल्पे। सचित्त पृथ्वीकाय आदि चीज (सचित्त नमक, पानी, अग्नि, पवन भरी बस्ती, फल, मत्स्य आदि) हाथ में हो तो भिक्षा लेना न कल्पे। साधु को भिक्षा देने के लिए सचित्त चीज नीचे रखकर दे तो लेना न कल्पे। सचित्त चीज पर चलती हो और दे तो न कल्पे। सचित्त चीज का संघट्टो करते हुए दे, सिर में सचित्त फूल का गजरा, फूल आदि हो तो भिक्षा लेना न कल्पे। पृथ्वीकाय आदि का आरम्भ करती हो उनसे लेना न कल्पे। कुदाली आदि से जमीं खुदती हो तब पृथ्वीकाय का आरम्भ हो, सचित्त पानी में स्नान करती हो, कपड़े धोती हो या पेड़ को पानी देती हो तो अप्‌काय का आरम्भ होता है, चूल्हा जलाती हो तो तेऊकाय का आरम्भ, पंखा ड़ालती हो या बस्ती में पवन भरती हो तो वायुकाय का आरम्भ होता है, सब्जी काटती हो तो वनस्पतिकाय का आरम्भ, मत्स्यादि छेदन करती हो तो त्रसकाय का आरम्भ। इस प्रकार आरम्भ करनेवाला भिक्षा देता हो तो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। लिप्तहस्त – दहीं आदि से हाथ खरड़ित हो तो उनसे भिक्षा लेना न कल्पे। हाथ खरड़ित हो तो हाथ पर जीवजन्तु चिपके हो तो उसकी विराधना इसलिए न कल्पे। लिप्तमात्र – दहीं आदि से खरड़ित बरतन दे तो लेना न कल्पे। उद्वर्तती – बड़ा, भारी या गर्म बरतन आदि उठाकर भिक्षा दे तो लेना न कल्पे। बड़ा बरतन बार – बार घूमाया न जाए इसलिए उस बरतन के नीचे मकोड़े, चींटी आए हो उसे उठाकर वापस रखने से नीचे के कीड़े – मकोड़े मर जाए, उठाने में कष्ट लगे, जल जाए आदि दोष रहे हैं। बड़े – बड़े बरतन उठाकर दे तो वो भिक्षा न कल्पे। साधारण – काफी लोगों की मालिकी वाली चीज सबकी अनुमति बिना दे रहे हो तो वो भिक्षा न कल्पे, द्वेष आदि दोष लगे इसलिए न कल्पे। चोरी किया हुआ – चोरी छूपे या चोरी करके देते हो तो भिक्षा लेना न कल्पे। नौकर – बहू आदि ने चोरीछूपे से दिया हुआ साधु ले और पीछे से उसके मालिक या सास को पता चले तो उसे मारे, बाँधे, गुस्सा करे आदि दोष हो इसलिए ऐसा आहार लेना साधु को न कल्पे। प्राभृतिका – लहाणी करने के लिए यानि दूसरों को देने के लिए बरतन में से दूसरे बरतन में नीकाला हो उसे दे तो साधु को लेना न कल्पे। सप्रत्यपाय – आहार देने से देनेवाले को या लेनेवाले के शरीर को कोई अपाय – नुकसान हो तो वो लेना न कल्पे। यह अपाय – ऊपर, नीचे और तीरछे ऐसे तीन प्रकार से। जैसे कि खड़े होने में सिर पर खींटी, दरवाजा लगे ऐसा हो, नीचे जमीं पर काँटे, काच आदि पड़े हो वो लगने की सँभावना हो, आसपास में गाय, भैंस आदि हो और वो शींग मारे ऐसा मुमकीन हो या ऊपर छत में सर्प आदि लटकते हो और वो खड़े होने से ड़ँस ले ऐसा हो तो साधु को भिक्षा लेना न कल्पे। अन्य उद्देश – कार्पटिकादि भिक्षाचर आदि को देने के लिए या बलि आदि का देने के लिए रखा हुआ आहार लेना न कल्पे। ऐसा आहार ग्रहण करने में अदत्तादान का दोष लगता है। क्योंकि वो आहार उस कार्पटिकादि के लिए कल्पित है। और फिर ग्लान आदि साधु को उद्देशकर आहार दिया हो तो उस ग्लान आदि के अलावा दूसरों को उपयोग के लिए देना न कल्पे, लेकिन यदि ऐसा कहा हो कि, वो ग्लान आदि न ले तो दूसरे कोई भी ले तो वो आहार दूसरों को लेना कल्पे। उसके अलावा न कल्पे। आभोग – साधु को न कल्पे ऐसी चीज जान – बूझकर दे तो वो लेना न कल्पे। कोई ऐसा सोचे कि, महानुभाव साधु हंमेशा सूखा, रूखा – सूखा भिक्षा में जो मिले वो खाते हैं, तो घेबर आदि बनाकर दूँ कि जिससे उनके शरीर को सहारा मिले, शक्ति मिले। ऐसा सोचकर घेबर आदि बनाकर साधु को दे या कोई दुश्मन साधु का नियम भंग करवाने के इरादे से अनेषणीय बनाकर दे। जान – बूझकर आधाकर्मी आहार आदि दे तो साधु को ऐसा आहार लेना न कल्पे। अनाभोग – अनजाने में साधु को कल्पे नहीं ऐसी चीज दे तो वो लेना न कल्पे। सूत्र – ६१४–६४३
Mool Sutra Transliteration : [gatha] bale vuddhe matte ummatte vevie ya jarie ya. Amdhillae pagalie arudhe pauyahim cha.
Sutra Meaning Transliteration : Niche batae gae chalisa prakara ke data ke pasa se utsarga marga se sadhu ko bhiksha lena na kalpe. Bachcha – atha sala se kama umra ka ho usase bhiksha lena na kalpe. Bujurga hajira na ho to bhiksha adi lene mem kaim prakara ke dosha rahe haim. Eka stri nai – nai shravika bani thi. Eka dina kheta mem jane se usa stri ne apani chhoti beti ko kaha ki, ‘sadhu bhiksha ke lie ae to dena.’ eka sadhu samghataka ghumate – ghumate usake ghara ae. Balika vahorane lagi. Chhoti bachchi ko mugdha dekhakara bare sadhu ne lampatata se bachchi ke pasa se mamgakara sari chijem vahora li. Mam ne kaha tha isalie bachchi ne saba kuchha vahoraya. Vo stri kheta se ai taba kuchha bhi na dekhane se gussa hokara boli ki, kyom sabakuchha de diya\? Bachchi ne kaha ki, mamga – mamgakara sabakuchha le liya. Stri gussa ho gai aura upashraya akara chillakara bolane lagi ki, tumhara sadhu aisa kaisa ki bachchi ke pasa se sabakuchha le gae\? Stri ka chillana sunakara loga ikatthe ho gae aura sadhu ki nimda karane lage. Yaha loga kevala veshadhari hai, lumtare hai, sadhuta nahim hai. Aisa – aisa bolane lage. Acharya bhagavamta ne shasana ka avarnavada hote dekha aura acharya bhagavamta ne usa sadhu ko bulakara, phira se aisa mata karana aisa kahakara thapaka diya. Isa prakara shasana ka uddaha adi dosha rahe haim, isalie isa prakara bujurga ki gaira – maujudagi mem chhote bachche se bhiksha lena na kalpe. Apavada – varila adi maujuda ho aura vo dilavae to chhote bachche se bhi bhiksha lena kalpe. Vriddha – 60 sala matamtara se 70 sala ki umravale vriddha se bhiksha lena na kalpe. Kyomki kaphi vriddha se bhiksha lene mem kaim prakara ke dosha rahe haim. Burhape ke karana se usake mumha se pani nikala raha ho isalie dete – dete dene ki chija mem bhi mumha se pani gire, use dekhakara jugupsa hoti hai ki, ‘kaisi buri bhiksha lenevale haim\?’ hatha kampa rahe to usase chija gira jae usamem chhakaya jiva ki viradhana hoti hai. Vriddha hone se dete samaya khuda gira jae, to jamim para rahe jiva ki viradhana hoti hai, ya vriddha ke hatha – pamva adi tuta jae ya utara jae. Vriddha yadi ghara ka nayaka na ho to ghara ke logom ko una para dvesha ho ki yaha vriddha saba de deta hai ya to sadhu para dvesha kare ya donom para dvesha kare. Apavada – vriddha hone ke bavajuda bhi mumha se pani na nikale, sharira na kampe, takatavara ho, ghara ka malika ho, to usaka diya hua lena kalpe. Matta – daru adi piya ho, usase bhiksha lena na kalpe. Daru adi piya hone se bhana na ho, isalie shayada sadhu ko chipaka jae ya bakavasa kare ki, are ! Mumria ! Kyom yaham ae ho\? Aisa bolate hue marane ke lie ae ya patradi tora de, ya patra mem thumka de ya dete – dete daru ka vamana kare, usase kapare, sharira ya patra ulti se khararita ho jae. Yaha dekhakara loga sadhu ki nimda kare ki, ina logom ko dhikkara hai, kaise apavitra hai ki aise daru pinevale se bhi bhiksha grahana karate haim. Apavada – yadi vo shravaka ho, paravasha na ho yani bhana mem ho aura asapasa mem loga na ho to diya hua lena kalpe. Unmatta – mahasamgrama adi mem jaya pane se abhimani hokara ya bhuna adi ka vamala mem phamsa ho usase unmatta, unase bhi bhiksha lena na kalpe. Unmatta mem upara ke matta mem kahe anusara vamanadosha rahita ke dosha lagate haim. Apavada – vo pavitra ho, bhadraka ho aura shanta ho to lena kalpe. Vepamana – sharira kampa raha ho unase bhiksha lena na kalpe. Sharira kampane se unake hatha se bhiksha dete sharira gira jae ya patra mem ralate sharira bahara gire ya bhajana adi hatha se niche gira jae, to bhajana tuta jae, chhaha kaya jiva ki viradhana adi hone se bhiksha lena na kalpe. Apavada – sharira kampa raha ho, lekina usake hatha na kampate ho to kalpe. Jvarita – bukhara a raha ho to usase lena na kalpe. Upara ke anusara dosha lage alava usaka bukhara shayada sadhu mem samkrame, logom mem uddaha ho ki, yaha kaise ahara lampata hai bukharavale se bhiksha lete haim. Isalie bukharavale se bhiksha lena na kalpe. Apavada – bukhara utara gaya ho – bhiksha dete samaya bukhara na ho to kalpe. Amdha – amdho se bhiksha lena na kalpe. Shasana ka uddaha hota hai ki, yaha amdha de sake aisa nahim hai phira bhi yaha petabhare sadhu unase bhiksha grahana karate haim. Amdha dekhata nahim hone se jamim para rahe chhaha jivanikaya viradhana kare, patthara adi bicha mem a jae to niche gira pare to use lage, bhaja uthaya ho aura gira pare to jiva ki viradhana ho. Dete samaya bahara gira jae adi dosha hone se amdhe se bhiksha lena na kalpe. Apavada – shravaka ya shraddhalu amdhe se usaka putra adi hatha pakarakara dilae to bhiksha lena kalpe. Pragalita – galata ko adi chamari ki bimari jise hui ho unase bhiksha lena na kalpe. Bhiksha dene se use kashta ho, gira jae, dasta – pishaba achchhi prakara se sapha na kara sake to apavitra rahe. Unase bhiksha lene mem logom ko jugupsa ho, chhaha jivanikaya ki viradhana adi dosha lage, isalie unase bhiksha lena na kalpe. Apavada – upara batae dosha ko jisa avasara mem sambhavana na ho aura asapasa mem dusare loga na ho to bhiksha lena kalpe. Arudha – pamva mem paduka – jute adi pahana ho unase bhiksha lena na kalpe. Hastandu – donom hatha lakare ki hemra mem rale ho unase bhiksha lena na kalpe. Nigara – pamva mem beriyam ho unase bhiksha lena na kalpe. Chhinnahastavada – hatha ya pamva kate hue ho aise thumthe ya lamgare se bhiksha lena na kalpe. Trirashika – napumsaka se bhiksha lena na kalpe. Napumsaka se bhiksha lene mem sva – para aura ubhaya ka dosha raha hai. Napumsaka se bara – bara bhiksha lene se kaphi pahachana hone se sadhu ko dekhakara use vedodaya ho aura kucheshta kare yani donom ko maithunakarma ka dosha lage. Bara – bara na jae lekina kisi dina jae to maithunadosha ka avasara na ae, lekina logom mem jugupsa hoti hai ki, yaha sadhu napumsaka se bhi bhiksha grahana karate haim, isalie sadhu bhi napumsaka homge. Ityadi dosha lage. Apavada – napumsaka anasevi ho, kritrima prakara se napumsaka hua ho, mamtra, tamtra se napumsaka hua ho, shrapa se napumsaka hua ho to usase bhiksha lena kalpe. Garvini – pasa mem prasavakala – garbha rahe nau mahine hue ho aise garbhavali stri se bhiksha lena na kalpe. Garbhavali stri se bhiksha lene mem stri ko uthate – baithate bhitara rahe garbha ke jiva ko darda hota hai, isalie unase bhiksha mata lena. Apavada – garbha rahe nau mahine na hue ho, bhiksha dene mem kashta na ho, baithi ho to baithe – baithe aura khari ho to khare – khare bhiksha de to kalpe. Jinakalpi sadhu ke lie to jisa dina garbha rahe usi dina se lekara jaba taka bachcha mam ka dudha pita ho taba taka usa stri se bhiksha lena na kalpe. Balavatsa – mam ka dudha pita hua bachcha goda mem ho aura mam bachche ko chhorakara bhiksha de to unase bhiksha lena na kalpe. Bachche ko jamim para ya mamchi mem rakhakara bhiksha de to shayada usa bachche ko billi ya kutta adi mamsa ka tukara ya kharagosha ka bachcha samajhakara mumha se pakarakara le jae to bachcha mara jae. Bhiksha dete samaya usa stri ke hatha khararita ho una karkasha hatha se bachche ko vapasa hatha mem lene se bachche ko darda ho ityadi dosha ke karana se una stri se bhiksha lena na kalpe. Apavada – bachcha bara ho, stanapana na karata ho to aisi stri se bhiksha lena kalpe. Kyomki vo bara hone se use utha le jana mumakina nahim hai. Bhojana kara rahe ho – unase bhiksha lena na kalpe. Bhojana kara rahe ho aura bhiksha dene ke lie uthe to hatha dhoe to apkaya adi ki viradhana hoti hai. Hatha sapha kie bina de to logom mem jugupsa ho ki, jhuthi bhiksha lete haim. Isalie bhojana karate ho unase bhiksha lena na kalpe. Apavada – hatha jhuthe na hue ho ya bhojana karane ki shuruata na ki ho to unase bhiksha lena kalpe. Mathnamti – dahim valoti ho unase bhiksha lena na kalpe. Dahim adi valoti ho to vo samsakta ho to vo samsakta dahim adi se khararita hatha se bhiksha dene se vo rasa jiva ka vinasha hai isalie unake hatha se bhiksha lena na kalpe. Apavada – valona pura ho gaya ho, hatha sukhe ho to lena kalpe ya phira valona mem hatha na bigare ho to lena kalpe Bhajjamti – chulhe para tavari adi mem chane adi pakati ho to bhiksha lena na kalpe. Apavada – chulhe para se tavari utara li ho ya samghatto na ho to kalpe. Dalamti – chakki adi mem amta pisati ho to bhiksha lena na kalpe. Apavada – sambila upara kiya ho aura sadhu a jae to uthae hue sambila mem kana na chipake ho to sambila nirjiva jagaha mem rakhakara do to lena kalpe. Pisamti – patthara, khaniya adi mem pisati ho vo bhiksha na kalpe. Apavada – pisa liya ho, sachitta ka samghatto na ho usa samaya sadhu ae aura de to lena kalpe. Pijamti – rui alaga karati ho to lena na kalpe. Ruchamti – kapasa mem se rui alaga nikalati ho to lena na kalpe. Kamtamti – rui mem se sutta bunati ho to lena na kalpe. Madmani – rui ki puni banati ho to lena na kalpe. Apavada – pimjana adi kama pura ho gaya ho ya achitta rui ko pimjati ho to bhiksha lena kalpe. Ya bhiksha dene ke bada hatha sapha na kare to lena kalpe. Yani pashchat karmadosha na lage aisa ho to lena kalpe. Sachitta prithvikaya adi chija (sachitta namaka, pani, agni, pavana bhari basti, phala, matsya adi) hatha mem ho to bhiksha lena na kalpe. Sadhu ko bhiksha dene ke lie sachitta chija niche rakhakara de to lena na kalpe. Sachitta chija para chalati ho aura de to na kalpe. Sachitta chija ka samghatto karate hue de, sira mem sachitta phula ka gajara, phula adi ho to bhiksha lena na kalpe. Prithvikaya adi ka arambha karati ho unase lena na kalpe. Kudali adi se jamim khudati ho taba prithvikaya ka arambha ho, sachitta pani mem snana karati ho, kapare dhoti ho ya pera ko pani deti ho to apkaya ka arambha hota hai, chulha jalati ho to teukaya ka arambha, pamkha ralati ho ya basti mem pavana bharati ho to vayukaya ka arambha hota hai, sabji katati ho to vanaspatikaya ka arambha, matsyadi chhedana karati ho to trasakaya ka arambha. Isa prakara arambha karanevala bhiksha deta ho to unase bhiksha lena na kalpe. Liptahasta – dahim adi se hatha khararita ho to unase bhiksha lena na kalpe. Hatha khararita ho to hatha para jivajantu chipake ho to usaki viradhana isalie na kalpe. Liptamatra – dahim adi se khararita baratana de to lena na kalpe. Udvartati – bara, bhari ya garma baratana adi uthakara bhiksha de to lena na kalpe. Bara baratana bara – bara ghumaya na jae isalie usa baratana ke niche makore, chimti ae ho use uthakara vapasa rakhane se niche ke kire – makore mara jae, uthane mem kashta lage, jala jae adi dosha rahe haim. Bare – bare baratana uthakara de to vo bhiksha na kalpe. Sadharana – kaphi logom ki maliki vali chija sabaki anumati bina de rahe ho to vo bhiksha na kalpe, dvesha adi dosha lage isalie na kalpe. Chori kiya hua – chori chhupe ya chori karake dete ho to bhiksha lena na kalpe. Naukara – bahu adi ne chorichhupe se diya hua sadhu le aura pichhe se usake malika ya sasa ko pata chale to use mare, bamdhe, gussa kare adi dosha ho isalie aisa ahara lena sadhu ko na kalpe. Prabhritika – lahani karane ke lie yani dusarom ko dene ke lie baratana mem se dusare baratana mem nikala ho use de to sadhu ko lena na kalpe. Sapratyapaya – ahara dene se denevale ko ya lenevale ke sharira ko koi apaya – nukasana ho to vo lena na kalpe. Yaha apaya – upara, niche aura tirachhe aise tina prakara se. Jaise ki khare hone mem sira para khimti, daravaja lage aisa ho, niche jamim para kamte, kacha adi pare ho vo lagane ki sambhavana ho, asapasa mem gaya, bhaimsa adi ho aura vo shimga mare aisa mumakina ho ya upara chhata mem sarpa adi latakate ho aura vo khare hone se ramsa le aisa ho to sadhu ko bhiksha lena na kalpe. Anya uddesha – karpatikadi bhikshachara adi ko dene ke lie ya bali adi ka dene ke lie rakha hua ahara lena na kalpe. Aisa ahara grahana karane mem adattadana ka dosha lagata hai. Kyomki vo ahara usa karpatikadi ke lie kalpita hai. Aura phira glana adi sadhu ko uddeshakara ahara diya ho to usa glana adi ke alava dusarom ko upayoga ke lie dena na kalpe, lekina yadi aisa kaha ho ki, vo glana adi na le to dusare koi bhi le to vo ahara dusarom ko lena kalpe. Usake alava na kalpe. Abhoga – sadhu ko na kalpe aisi chija jana – bujhakara de to vo lena na kalpe. Koi aisa soche ki, mahanubhava sadhu hammesha sukha, rukha – sukha bhiksha mem jo mile vo khate haim, to ghebara adi banakara dum ki jisase unake sharira ko sahara mile, shakti mile. Aisa sochakara ghebara adi banakara sadhu ko de ya koi dushmana sadhu ka niyama bhamga karavane ke irade se aneshaniya banakara de. Jana – bujhakara adhakarmi ahara adi de to sadhu ko aisa ahara lena na kalpe. Anabhoga – anajane mem sadhu ko kalpe nahim aisi chija de to vo lena na kalpe. Sutra – 614–643