Sutra Navigation: Pindniryukti ( पिंड – निर्युक्ति )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1020117 | ||
Scripture Name( English ): | Pindniryukti | Translated Scripture Name : | पिंड – निर्युक्ति |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
उद्गम् |
Translated Chapter : |
उद्गम् |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 117 | Category : | Mool-02B |
Gatha or Sutra : | Gatha | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं । भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥ | ||
Sutra Meaning : | संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव से सर्व विरति रूप छठ्ठे गुण स्थान पर रहे सबसे जघन्य विशुद्ध स्थानवाले जीव की विशुद्धि अनन्तगुण अधिक है यानि सबसे नीचे के विशुद्धि स्थान में रहा साधु, सबसे ऊपर विशुद्धि स्थान में रहे श्रावक से अनन्त गुण ज्यादा है। जघन्य ऐसे वो सर्व विरति के विशुद्धि स्थान को केवलज्ञानी की दृष्टि से – बुद्धि से बाँटा जाए और जिसका दूसरा हिस्सा न हो सके ऐसे अविभाज्य हिस्से किए जाए, ऐसे हिस्सों की सर्व गिनती के बारे में सोचा जाए तो, देश विरति के सर्व उत्कृष्ट विशुद्धि स्थान के यदि ऐसे अविभाज्य हिस्से हो उसकी सर्व संख्या को सर्व जीव की जो अनन्त संख्या है, उसका अनन्तवा हिस्सा, उसमें जो संख्या हो उस संख्या के दुगुने किए जाए और जितने संख्या मिले उतने हिस्से सर्व विरति के सर्व जघन्य विशुद्धि स्थान में होते हैं। सर्व विरति गुणस्थान के यह सभी जघन्य विशुद्धि स्थान से दूसरा अनन्त हिस्सा वृद्धिवाला होता है। यानि पहले संयम स्थान में अनन्त हिस्से वृद्धि करे तब दूसरा संयम स्थान आए, उसमें अनन्त हिस्से वृद्धि करने से जो आता है वो तीसरा संयमस्थान, इस प्रकार अनन्त हिस्से वृद्धि तब तक करे जब तक उस स्थान की गिनती एक अंगुल के असंख्यात भागों में रहे प्रदेश की संख्या जितनी बने। अंगुल के असंख्यात भाग के प्रमाण आकाश प्रदेश में रहे प्रदेश की संख्या जितने संयम स्थान को, शास्त्र की परिभाषा में एक कंड़क कहते हैं। एक कंड़क में असंख्यात संयम स्थान का समूह होता है। इस प्रकार हुए प्रथम कंड़क के अंतिम संयम स्थान में जितने अविभाज्य अंश है उसमें असंख्यात भाग वृद्धि करने से जो संख्या बने उतने संख्या का दूसरे कंड़क का पहला स्थान बनता है। उसके बाद उससे दूसरा स्थान अनन्त हिस्सा ज्यादा आए ऐसे अनन्त हिस्से अधिक अनन्त हिस्से अधिक की वृद्धि करने से पूरा कंड़क बने, उसके बाद असंख्यात हिस्से ज्यादा ड़ालने से दूसरे कंड़क का दूसरा स्थान आता है। उसके असंख्यात हिस्से वृद्धि का तीसरा स्थान। इस प्रकार एक – एक कंड़कान्तरित असंख्यात हिस्से, वृद्धिवाले संयम स्थान एक कंड़क के अनुसार बने उसके बाद, संख्यात हिस्से ज्यादा वृद्धि करने से संख्यात हिस्से अधिक का पहला संयमस्थान आता है। उसके बाद अनन्त हिस्सा ज्यादा एक कंड़क के अनुसार एक एक असंख्यात हिस्से अधिक का संयमस्थान आए, वो भी कंड़क प्रमाण हो यानि संख्यात हिस्से अधिक का दूसरा संयम स्थान आता है। ऐसे क्रम – क्रम पर बीच में अनन्त हिस्सा अधिक कंड़क उसके बीच असंख्यात हिस्से अधिक स्थान आते हैं। जब संख्यात हिस्से अधिक संयम स्थान की गिनती भी कंड़क प्रमाण बने। उसके बाद संख्यातगुण अधिक पहला संयम स्थान आए उसके बाद कंड़क अंक प्रमाण अनन्त हिस्से वृद्धिवाले संयम स्थान आते हैं। उसके बाद एक असंख्यात हिस्से वृद्धिवाले संयम स्थान आए, ऐसे अनन्त हिस्से अधिक कंड़क के बीच असंख्यात हिस्से अधिकवाले कंड़क प्रमाण बने। उसके बाद पूर्व के क्रम से संख्यात हिस्से अधिक संयम स्थान का कंड़क करना। वो कंड़क पूरा होने के बाद दूसरा संख्यातगुण अधिक का संयमस्थान आता है। उसके बाद अनन्त हिस्से अधिक संयम स्थान के बीच – बीच में कंड़क के अनुसार संख्यात हिस्से अधिक संयमस्थान आता है, उसके बाद तीनों के बीच में कंड़क प्रमाण संख्यात गुण अधिक संयम स्थान आता है, उसके बाद असंख्यात गुण अधिक का दूसरा संयम स्थान आता है। इसी क्रम से चार से अंतरित अनगिनत गुण अधिक के संयम स्थान आते हैं। उसके बाद एक संख्यात हिस्सा अधिक का संयम स्थान आए उस प्रकार से अनन्त हिस्से अंतरित असंख्यात हिस्से अधिक का कंड़क प्रमाण बने, उसके बाद दो के आँतरावाला संख्यात हिस्से अधिक का कंड़क प्रमाण बने। उसके बाद तीन के आँतरावाला संख्यात गुण अधिक का कंड़क प्रमाण बने, उन चारों के आंतरावाला असंख्यात् गुण अधिक का कंड़क प्रमाण बने। उसके बाद अनन्त गुण अधिक का दूसरा संयम स्थान आता है। इस क्रम के अनुसार अनन्त गुण अधिक के स्थान भी कंड़क प्रमाण करे। उसके बाद ऊपर के अनुसार अनन्त हिस्से अधिक का संयम स्थान उसके बीच – बीच में असंख्यात हिस्सा अधिक का उसके बाद दोनों बीच – बीच में संख्यात हिस्से अधिक का, उसके बाद तीन आंतरावाला संख्यात गुण अधिक का और उसके बाद चार आंतरावाला असंख्यात गुण अधिक का कंड़क करे। यानि षट् स्थानक परिपूर्ण बने। ऐसे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण षट् स्थानक संयम श्रेणी में बनते हैं। इस प्रकार संयम श्रेणी का स्वरूप शास्त्र में बताया है। आधाकर्मी आहार ग्रहण करनेवाला विशुद्ध संयम स्थान से नीचे गिरते हुए हीन भाव में आने से यावत् रत्नप्रभादि नरकगति की आयु बाँधता है। यहाँ शिष्य सवाल करता है कि, आहार तैयार करने से छह कायादि का आरम्भ गृहस्थ करता है, तो उस आरम्भ आदि का ज्ञानावरणादि पापकर्म साधु को आहार ग्रहण करने से क्यों लगे ? क्योंकि एक का किया हुआ कर्म दूसरे में संक्रम नहीं होता। जो कि एक का किया हुआ कर्म दूसरे में संक्रम होता तो क्षपक श्रेणि पर चड़े महात्मा, कृपालु और पूरे जगत के जीव के कर्म को नष्ट करने में समर्थ है; इसलिए सारे प्राणी के ज्ञानावरणादि कर्म को अपनी क्षपकश्रेणी में संक्रम करके खपा दे तो सबका एक साथ मोक्ष हो। यदि दूसरों ने किए कर्म का संक्रम हो सके तो, क्षपकश्रेणी में रहा एक आत्मा सारे प्राणी के कर्म को खपाने में समर्थ है। लेकिन ऐसा नहीं होता, इसलिए दूसरों ने किया कर्म दूसरे में संक्रम न हो सके ? (उसका उत्तर देते हुए बताते हैं कि) जो साधु प्रमत्त हो और कुशल न हो तो साधु कर्म से बँधता है, लेकिन जो अप्रमत्त और कुशल होते हैं वो कर्म से नहीं बँधता। आधाकर्मी आहार ग्रहण करने की ईच्छा करना अशुभ परिणाम है। अशुभ परिणाम होने से वो अशुभ कर्मबँध करता है। जो साधु आधाकर्मी आहार ग्रहण नहीं करते, उसका परिणाम अशुभ नहीं होता, यानि उसको अशुभ कर्मबँध नहीं होता। इसलिए आधाकर्मी आहार ग्रहण करने की ईच्छा कोशीश से साधु को नहीं करनी चाहिए। दूसरे ने किया कर्म खुद को तब ही बँधा जाए कि जब आधाकर्मी आहार ग्रहण करे और ग्रहण किया वो आहार खाए। उपचार से यहाँ आधाकर्म को आत्मकर्म कहा गया है। कौन – सी चीज आधाकर्मी बने? अशन, पान, खादिम और स्वादिम। इस चार प्रकार का आहार आधाकर्मी बनता है। इस प्रकार प्रवचन में श्री तीर्थंकर भगवंत कहते हैं। किस प्रकार का आधाकर्मी बनता है ? तो धान्यादि की उत्पत्ति से लेकर चार प्रकार का आहार अचित्तप्रासुक बने तब तक यदि साधु का उद्देश रखा गया हो, तो वे तैयार आहार तक का सबकुछ आधाकर्मी कहलाता है। वस्त्रादि भी साधु निमित्त से किया जाए तो उस साधु को वो सब भी आधाकर्मी – अकल्प्य बनता है। लेकिन यहाँ पिंड़ का अधिकार होने से अशन आदि चार प्रकार के आहार का ही विषय बताया है। अशन, पान, खादिम और स्वादिम यह चार प्रकार का आहार आधाकर्मी हो सकता है। उसमें कृत और निष्ठित ऐसे भेद होते हैं। कृत – यानि साधु को उद्देशकर वो अशन आदि करने की शुरूआत करना। निष्ठित यानि साधु को उद्देशकर वो अशन आदि प्रासुक अचित्त बनाना। शंका – शुरू से लेकर अशन आदि आधाकर्मी किस प्रकार मुमकिन बने ? साधु को आधाकर्मी न कल्पे ऐसा पता हो या न हो ऐसा किसी गृहस्थ साधु ऊपर की अति भक्ति में किसी प्रकार उसको पता चले कि, ‘साधुओं को इस प्रकार के आहार आदि की जरुर है।’ इसलिए वो गृहस्थ उस प्रकार का धान्य आदि खुद या दूसरों से खेत में बोकर वो चीज बनवाए। तो शुरू से वो चीज आधाकर्मी कहलाती है। अशन आदि शुरू से लेकर जब तक अचित्त न बने तब तक वो ‘कृत्त’ कहलाता है और अचित्त बनने के बाद वो ‘निष्ठित’ कहलाता है। कृत और निष्ठित में चतुर्भंगी गृहस्थ और साधु को उद्देशकर होता है। साधु के लिए कृत और साधु के लिए निष्ठित। साधु के लिए कृत और गृहस्थ के लिए निष्ठित। गृहस्थ के लिए कृत (शुरूआत) और साधु के लिए निष्ठित, गृहस्थ के लिए कृत (शुरूआत) और गृहस्थ के लिए निष्ठित। इन चार भांगा में दूसरे और चोथे भांगा में तैयार होनेवाला आहार आदि साधु को कल्पे। पहला और तीसरा भांगा अकल्प्य। साधु को उद्देशकर ड़ाँगर बोना, क्यारे में पानी देना, पौधा नीकलने के बाद लणना, धान्य अलग करना और चावल अलग करने के लिए दो बार किनार पर, तब तक का सभी कृत कहलाता है। जब कि तीसरी बार छड़कर चावल अलग किए जाए तब उसे निष्ठित कहते हैं। इसी प्रकार पानी, खादिम और स्वादिम के लिए समझ लेना – तीसरी बार भी साधु के निमित्त से छड़कर बनाया गया चावल गृहस्थ ने अपने लिए पकाए हो तो भी साधु को वो चावल – हिस्सा न कल्पे, इसलिए वो आधाकर्मी ही माना जाता है। लेकिन ड़ाँगर दूसरी बार छड़ने तक साधु का उद्देश हो और तीसरी बार गृहस्थ ने अपने उद्देश से छड़े हो और अपने लिए पकाए हो तो वो चावल साधु को कल्प सकते हैं। जो ड़ाँगर तीसरी बार साधु ने छड़कर चावल बनाए हो, वो चावल गृहस्थ ने अपने लिए पकाए हो तो बने हुए चावल एक ने दूसरों को दिए, दूसरे ने तीसरे को दिया, तीसरे ने चौथे को दिया ऐसे यावत् एक हजार स्थान पर दिया गया हो तब तक तो चावल साधु को न कल्पे, लेकिन एक हजार के बाद के स्थान पर गए हो तो वो चावल साधु को कल्पे। कुछ आचार्य ऐसा कहते हैं कि, लाखो घर जाए तो भी न कल्पे। पानी के लिए साधु को उद्देशकर पानी के लिए कुआ खुदने की क्रिया से लेकर अन्त में तीन ऊबाल आने के बाद जब तक नीचे न उतरा जाए तब तक क्रिया को कृत कहते हैं और नीचे ऊतरने की क्रिया को निष्ठित कहते हैं। इसलिए ऐसा तय होता है कि, ‘सचित्त चीज को अचित्त बनाने की शुरूआत करने के बाद अन्त में अचित्त बने तब तक यदि साधु का उद्देश रखा गया हो तो वो चीज साधु को न कल्पे, लेकिन यदि साधु को उद्देशकर शुरू करने के बाद अचित्त बनने से पहले साधु का उद्देश बदलकर गृहस्थ अपने लिए चीज तैयार करे, अचित्त करे तो वो चीज साधु को कल्पे। और फिर अचित्त चीज को अग्नि आदि के आरम्भ से साधु को उद्देशकर पकाया जाए तो वो चीज साधु को न कल्पे, लेकिन वो अचित्त चीज पकाने की शुरूआत साधु को उद्देशकर की हो और पकाई; लेकिन पकाकर तैयार करने के बाद चूल्हा पर से गृहस्थ ने अपने लिए उतारी हो तो वो चीज साधु को कल्पे। लेकिन अचित्त चीज गृहस्थ ने अपने लिए पकाने की शुरूआत की हो और पकाई हो लेकिन साधु आने के या समाचार जानकर साधु को वहोराने के निमित्त से वो तैयार की गई चीज चूल्हे पर से नीचे उतारे तो वो साधु को न कल्पे। किसके लिए बनाया आधाकर्मी कहलाता है ? प्रवचन और लिंग – वेश से जो साधु का साधर्मिक हो, उनके लिए बनाई हुई चीज साधु के लिए आधाकर्मी दोषवाली है। इसलिए वो चीज साधु को न कल्पे। लेकिन प्रत्येकबुद्ध, निह्नव, तीर्थंकर आदि के लिए बनाई गई चीज साधु को कल्पे। साधर्मिक के प्रकार बताते हैं। १. नाम, २. स्थापना, ३. द्रव्य, ४. क्षेत्र, ५. काल, ६. प्रवचन, ७. लिंग, ८. दर्शन, ९. ज्ञान, १०. चारित्र, ११. अभिग्रह और १२. भावना। यह बारह प्रकार से साधर्मिक हो। इस बारह प्रकार के साधर्मिक में कल्प्य और अकल्प्यपन बताते हैं। नाम साधर्मिक – किसी पुरुष अपने पिता जिन्दा हो तब या मर जाने के बाद उनके अनुराग से उस नामवाले को आहार देने की उम्मीद करे, यानि वो तय करे कि ‘जो किसी देवदत्त नाम के गृहस्थ या त्यागी हो वो सबको मैं भोजन बनाके दूँ।’ जब ऐसा संकल्प हो तो देवदत्त नाम के साधु को वो भोजन न कल्पे, लेकिन उस नाम के अलावा दूसरे नामवाले साधु को कल्पे। स्थापना साधर्मिक – किसी के रिश्तेदार ने दीक्षा ली हो और उनके राग से वो रिश्तेदार साधु की मूरत या तसवीर बनाकर उनके सामने रखने के लिए भोजन तैयार करवाए और फिर तय करे कि, ‘‘ऐसे वेशवाले को मैं यह भोजन दूँ।’’ तो साधु को न कल्पे। द्रव्य साधर्मिक – साधु का कालधर्म हुआ हो और उनके निमित्त से आहार बनाकर साधु को देने का संकल्प किया हो तो साधु को वो आहार लेना न कल्पे। क्षेत्र साधर्मिक – सौराष्ट्र, कच्छ, गुजरात, मारवाड़, महाराष्ट्र, बंगाल आदि प्रदेश को क्षेत्र कहते हैं। और फिर गाँव, नगर, गली, महोल्ला आदि भी क्षेत्र कहलाते हैं। ‘सौराष्ट्र देश में उत्पन्न होनेवाले साधु को मैं आहार दूँ।’ ऐसा तय किया हो तो सौराष्ट्र देश में उत्पन्न होनेवाले साधु को न कल्पे, दूसरे साधु को कल्पे। काल साधर्मिक – महिना, दिन, प्रहर आदि काल कहलाते हैं। कुछ तिथि, कुछ दिन या कुछ प्रहर में उत्पन्न होनेवाले साधु को वो आहार न कल्पे, उसके सिवा के न कल्पे। प्रवचन, लिंग, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, अभिग्रह और भावना – इस सात प्रकार के साधर्मिक में द्विसंयोगी २१ भांगा होते हैं। वो इस प्रकार – १. प्रवचन और लिंग। २. प्रवचन और दर्शन। ३. प्रवचन और ज्ञान। ४. प्रवचन और चारित्र। ५. प्रवचन और अभिग्रह। ६. प्रवचन और भावना। ७. लिंग और दर्शन। ८. लिंग और ज्ञान। ९. लिंग और चारित्र। १०. लिंग और अभिग्रह। ११. लिंग और भावना। १२. दर्शन और ज्ञान। १३. दर्शन और चारित्र। १४. दर्शन और अभिग्रह। १५. दर्शन और भावना। १६. ज्ञान और चारित्र। १७. ज्ञान और अभिग्रह। १८. ज्ञान और भावना। १९. चारित्र और अभिग्रह। २०. चारित्र और भावना। २१. अभिग्रह और भावना। ऊपर कहे अनुसार इक्कीस भेद में चार – चार भांगा नीचे के अनुसार होते हैं। प्रवचन से साधर्मिक, लिंग (वेश) से नहीं। लिंग से साधर्मिक प्रवचन से नहीं। प्रवचन से साधर्मिक और लिंग से साधर्मिक। प्रवचन से नहीं और लिंग से नहीं। इस प्रकार बाकी के बीस भेद में ४ – ४ भांगा समझना। प्रवचन से साधर्मिक लेकिन लिंग से नहीं। अविरति सम्यग्दृष्टि से लेकर श्रावक होकर दशवीं प्रतिमा वहन करनेवाले श्रावक तक लिंग से साधर्मिक नहीं है। लिंग से साधर्मिक लेकिन प्रवचन से साधर्मिक नहीं – श्रावक की ग्यारहवीं प्रतिमा वहन करनेवाले (मुंड़न करवाया हो) श्रावक लिंग से साधर्मिक है। लेकिन प्रवचन से साधर्मिक नहीं। उनके लिए बनाया गया आहार साधु को कल्पे। निह्नव संघ बाहर होने से प्रवचन से साधर्मिक नहीं लेकिन लिंग से साधर्मिक है। उनके लिए बनाया गया साधु को कल्पे। लेकिन यदि उसे निह्नव की तरह लोग पहचानते न हो तो ऐसे निह्नव के लिए बनाया भी साधु को न कल्पे। प्रवचन से साधर्मिक और लिंग से भी साधर्मिक – साधु या ग्यारहवी प्रतिमा वहन करनेवाले श्रावक। साधु के लिए किया गया न कल्पे, श्रावक के लिए किया गया कल्पे। प्रवचन से साधर्मिक नहीं और लिंग से भी साधर्मिक नहीं गृहस्थ, प्रत्येक बुद्ध और तीर्थंकर, उनके लिए किया हुआ साधु को कल्पे। क्योंकि प्रत्येक बुद्ध और श्री तीर्थंकर लिंग और प्रवचन से अतीत हैं। इसी प्रकार प्रवचन और दर्शन की, प्रवचन और ज्ञान की, प्रवचन और चारित्र की, प्रवचन और अभिग्रह की, प्रवचन और भावना की, लिंग और दर्शन या ज्ञान या चारित्र या अभिग्रह या भावना की चतुर्भंगी, दर्शन के साथ ज्ञान, चारित्र, अभिग्रह और भावना की चतुर्भंगी, ज्ञान के साथ चारित्र या अभिग्रह या भावना की चतुर्भंगी और अन्त में चारित्र के साथ अभिग्रह और भावना की चतुर्भंगी ऐसे दूसरी बीस चतुर्भंगी की जाती है। इन हर एक भेदमें साधु के लिए किया गया हो तो साधु को न कल्पे। तीर्थंकर, प्रत्येकबुद्ध, निह्नवों और श्रावक के लिए किया गया हो तो साधु को कल्पे किस प्रकार से उपयोग करने से आधाकर्म बँधता है ? प्रतिसेवना यानि आधाकर्मी दोषवाले आहार आदि खाना, प्रतिश्रवणा यानि आधाकर्मी आहार के न्योते का स्वीकारना। संवास यानि आधाकर्मी आहार खानेवाले के साथ रहना। अनुमोदन यानि आधाकर्मी आहार खानेवाले की प्रशंसा करना। इन चार प्रकार के व्यवहार से आधा कर्म दोष का कर्मबँध होता है। इसके लिए चोर, राजपुत्र, चोर की पल्ली और राजदुष्ट मानव का, ऐसे चार दृष्टांत हैं प्रतिसेवना – दूसरों के लाया हुआ आधाकर्मी आहार खाना। दूसरों के लाया हुआ आधाकर्मी आहार खाने वाले साधु को, कोइ साधु कहे कि, ‘तुम संयत होकर आधाकर्मी आहार क्यों खाते हो’ ऐसा सुनकर वो जवाब देता है कि, इसमें मुझे कोई दोष नहीं है क्योंकि मैं आधाकर्मी आहार नहीं लाया हूँ, वो तो जो लाते हैं उनको दोष लगता है। जैसे अंगारे दूसरों से नीकलवाए तो खुद नहीं जलता, ऐसे आधाकर्मी लाए तो उसे दोष लगे। इसमें मुझे क्या ? इस प्रकार उल्टी मिसाल दे और दूसरों का लाया हुआ आहार खुद खाए उसे प्रतिसेवना कहते हैं। दूसरों के लाया हुआ आधाकर्मी आहार साधु खाए तो उसे खाने से आत्मा पापकर्म से बँधता है। वो समझने के लिए चोर का दृष्टांत – किसी एक गाँव में चोर लोग रहते थे। एक बार कुछ चोर पास के गाँव में जाकर कुछ गाय को उठाकर अपने गाँव की ओर आ रहे थे, वहाँ रास्ते में दूसरे कुछ चोर और मुसाफिर मिले। सब साथ – साथ आगे चलते हैं। ऐसा करने से अपने देश की हद आ गई, वे निर्भय होकर किसी पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठे और भोजन करते समय कुछ गाय को मार डाला और उनका माँस पकाने लगे। उस समय दूसरे मुसाफिर आए। चोरों ने उन्हें भी न्यौता दिया। पकाया हुआ माँस खाने के लिए दिया। उसमें से कुछ ने ‘गाय के माँस का भक्षण पापकारक है’ ऐसा समझकर माँस न खाया, कुछ परोसते थे, कुछ खाते थे, उतने में सिपाही आए और सबको घैरकर पकड़ लिया। जो रास्ते में इकट्ठे हुए थे वो कहने लगे कि, ‘हमने चोरी नहीं की, हम तो रास्ते में मिले थे।’ मुसाफिर ने कहा कि, हम तो इस ओर से आते हैं और यहाँ विसामा लेत हैं। सिपाही ने उनकी एक न सुनी और सबको मार ड़ाला। चोरी न करने के बावजूद रास्ते में मिलने से चोर के साथ मर गए। इस दृष्टांत में चोरों को रास्ते में और भोजन के समय ही मुसाफिर मिले। उसमें भी जो भोजन करने में नहीं थे केवल परोसने में थे, उनको भी सिपाही ने पकड़ लिया और मार ड़ाला। ऐसे जो साधु दूसरे साधुओं को पापकर्मी आहार देते हैं, वो साधु नरक आदि गति के आशयभूत कर्म ही बाँधते हैं; तो फिर जो आधाकर्मी आहार खाए उनको बँध हो उसके लिए क्या कहें ? प्रतिश्रवणा – आधाकर्मी लानेवाले साधु को गुरु दाक्षिण्यतादि ‘लाभ’ कहे, आधाकर्मी आहार लेकर किसी साधु गुरु के पास आए और आधाकर्मी आहार आलोचना करे वहाँ गुरु ‘अच्छा हुआ तुम्हें यह मिला’ ऐसा कहे, इस प्रकार सुन ले। लेकिन निषेध न करे तो प्रतिश्रवणा कहते हैं। उस पर राजपुत्र का दृष्टांत। गुणसमृद्ध नाम के नगर में महाबल राजा राज करे। उनकी शीला महारानी है। उनके पेट से एक पुत्र हुआ उसका नाम विजित समर रखा। उम्र होते ही कुमार को राज्य पाने की ईच्छा हुई और मन में सोचने लगा कि मेरे पिता वृद्ध हुए हैं फिर भी मरे नहीं, इसलिए लम्बी आयुवाले लगते हैं। इसलिए मेरे सुभट की सहाय पाकर मेरे पिता को मार डालूँ और मैं राजा बन जाऊं। इस प्रकार सोचकर गुप्तस्थान में अपने सुभट को बुलाकर अभिप्राय बताया। उसमें से कुछ ने कहा कि, कुमार ! तुम्हारा विचार उत्तम है। हम तुम्हारे काम में सहायता करेंगे। कुछ लोगों ने कहा कि, इस प्रकार करो। कुछ चूप रहे लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। कुछ सुभट को कुमार की बात अच्छी न लगी इसलिए राजा के पास जाकर गुप्त में सभी बातें जाहीर कर दी। यह बात सुनते ही राजा कोपायमान हुआ और राजकुमार और सुभट को कैद किया। फिर जिन्होंने ‘सहाय करेंगे’ ऐसा कहा था, ‘ऐसे करो’ ऐसा कहा था और जो चूप रहे थे उन सभी सुभटों को और राजकुमार को मार ड़ाला। जिन्होंने राजा को खबर दी थी उन सुभटों की तनखा बढ़ाई, मान बढ़ाया और अच्छा तौहफा दिया। किसी साधु ने चार साधुओं को आधाकर्मी आहार के लिए न्यौता दिया। यह न्यौता सुनकर एक साधु ने वो आधाकर्मी आहार खाया। दूसरे ने ऐसा कहा कि, मैं नहीं खाऊंगा, तुम खाओ। तीसरा साधु कुछ न बोला। जब कि चौथे साधु ने कहा कि, साधु को आधाकर्मी आहार न कल्पे, इसलिए तुम वो आहार मत लेना। इसमें पहले तीन को ‘प्रतिश्रवणा’ दोष लगे। जब कि चौथे साधु के निषेध करने से उसे ‘प्रतिश्रवणा’ दोष नहीं लगता। संवास – आधाकर्मी आहार खाते हो उनके साथ रहना। काफी रूक्ष वृत्ति से निर्वाह करनेवाले साधु को भी आधाकर्मी आहार खानेवाले के साथ का सहवास, आधाकर्मी आहार का दर्शन, गंध और उसकी बातचीत भी साधु को ललचाकर नीचा दीखानेवाली है। इसलिए आधाकर्मी आहार खानेवाले साधु के साथ रहना भी न कल्पे। उन पर चोरपल्ली का दृष्टांत। वसंतपुर नगर में अरिमर्दन राजा राज करे। उनकी प्रियदर्शना रानी है। वसंतपुर नगर के पास में थोड़ी दूर भीम नाम की पल्ली आई हुई है। कुछ भील जाति के चोर रहते हैं और कुछ वणिक रहते हैं। भील लोग के गाँव में जाकर लूँटमार करे, लोगों को परेशान करे, ताकतवर होने से किसी सामंत राजा या मांड़लिक राजा उन्हें पकड़ नहीं सकते। दिन ब दिन भील लोगों का त्रास बढ़ने लगा इसलिए मांड़लिक राजा ने अरिमर्दन राजा को यह हकीकत बताई। यह सुनकर अरिमर्दन राजा कोपायमान हुआ। कईं सुभट आदि सामग्री सज्ज करके भील लोगों की पल्ली के पास आ पहुँचे। भील को पता चलते ही, वो भी आए। दोनों के बीच तुमुल युद्ध हुआ। उसमें कुछ भील मर गए, कुछ भील भाग गए। राजा ने पूरी पल्ली को घेर लिया और सबको कैद किया। वहाँ रहनेवाले वणिक ने सोचा कि, हम चोर नहीं है, इसलिए राजा हमको कुछ नहीं करेंगे। ऐसा सोचकर उन्होंने नासभाग नहीं की लेकिन वहीं रहे। लेकिन राज के हूकम से सैनिक ने उन सबको कैद किया और सबको राजा के पास हाजिर किया। वणिक ने कहा कि हम वणिक है लेकिन चोर नहीं है। राजा ने कहा कि, तुम भले ही चोर नहीं हो लेकिन तुम चोर से भी ज्यादा शिक्षा के लायक हो, क्योंकि हमारे अपराधी ऐसे भील लोगों के साथ रहे हो। ऐसा कहकर सबको सझा दी। ऐसे साधु भी आधाकर्मी आहार खानेवाले के साथ रहे तो उसे भी दोष लगता है। इसलिए आधाकर्मी आहार खाते हो ऐसे साधु के साथ नहीं रहना चाहिए। अनुमोदना – आधाकर्मी आहार खानेवाले की प्रशंसा करना। यह पून्यशाली है। अच्छा – अच्छा मिलता है और हररोज अच्छा खाते हैं। या किसी साधु ऐसा बोले कि, ‘हमें कभी भी ईच्छित आहार नहीं मिलता, जब की इन्हें तो हंमेशा ईच्छित आहार मिलता है, वो भी पूरा, आदरपूर्वक, समय पर और मौसम के उचित मिलता है, इसलिए ये सुख से जीते हैं, सुखी हैं। इस प्रकार आधाकर्मी आहार करनेवाले की प्रशंसा करने से अनुमोदना का दोष लगता है। किसी साधु आधाकर्मी आहार खाते हो उसे देखकर कोई उनकी प्रशंसा करे कि, ‘धन्य है, ये सुख से जीते हैं।’ जब कि दूसरे कहें कि, ‘धिक्कार है इन्हें कि, शास्त्र में निषेध किए गए आहार को खाते हैं।’ जो साधु अनुमोदना करते हैं उन साधुओं को अनुमोदना का दोष लगता है, वो सम्बन्धी कर्म बाँधते हैं। जब कि दूसरों को वो दोष नहीं लगता। प्रतिसेवना दोष में प्रतिश्रवणा – संवास और अनुमोदना चार दोष लगे, प्रतिश्रवणा में संवास और अनुमोदना के साथ तीन दोष लगे। संवास दोष में संवास और अनुमोदना दो दोष लगे। अनुमोदना दोष में एक अनुमोदना दोष लगे। इसलिए साधु ने इन चार दोष में से किसी दोष न लगे उसकी देखभाल रखे। आधाकर्म किसके जैसा है ? आधाकर्मी आहार वमेल भोजन विष्टा, मदिरा और गाय के माँस जैसा है। आधाकर्मी आहार जिस पात्र में लाए हो या रखा हो उस पात्र का गोबर आदि से घिसकर तीन बार पानी से धोकर सूखाने के बाद, उसमें दूसरा शुद्ध आहार लेना कल्पे। साधु ने असंयम का त्याग किया है, जब कि आधाकर्मी आहार असंयमकारी है, इसलिए वमेल चाहे जितना भी सुन्दर हो लेकिन नहीं खाते। और फिर तिल का आँटा, श्रीफल, आदि फल विष्टा में या अशुचि में गिर जाए तो उसमें विष्टा या अशुचि गिर जाए तो वो चीज खाने के लायक नहीं रहती। ऐसे शुद्ध आहार में आधाकर्मी आहार गिर जाए या उसमें मिल जाए तो वो शुद्ध आहार भी उपयोग करने के लायक नहीं रहता और उस पात्र को भी गोबर आदि घिसकर तीन बार धोने के बाद उस पात्र में दूसरा आहार लेना कल्पे। आधाकर्म खाने में कौन – से दोष हैं ? आधाकर्मी आहार ग्रहण करने में – १. अतिक्रम, २. व्यतिक्रम, ३. अतिचार, ४. अनाचार, ५. आज्ञाभंग, ६. अनवस्था, ७. मिथ्यात्व और ८. विराधना दोष लगता है। अतिक्रम – आधाकर्मी आहार के लिए न्यौता सुने, ग्रहण करनेवाले की ईच्छा बताए या निषेध न करे और लेने जाने के लिए कदम न उठाए तब तक अतिक्रम नाम का दोष लगता है। व्यतिक्रम – आधाकर्मी आहार लेने के लिए वसति उपाश्रय में से नीकलकर गृहस्थ के वहाँ जाए और जब तक आहार ग्रहण न करे तब तक व्यतिक्रम नाम का दोष लगता है। अतिचार – आधाकर्मी आहार ग्रहण करके वसति में आए, खाने के लिए बैठे और जब तक नीवाला मुँह में न जाए तब तक अतिचार नाम का दोष लगता है। अनाचार – आधाकर्मी आहार का नीवाला मुँह में ड़ालकर नीगल जाए तब अनाचार नाम का दोष लगता है। अतिक्रम आदि दोष उत्तरोत्तर ज्यादा से ज्यादा चारित्रधर्म का उल्लंघन करनीवाले उग्र दोष हैं। आज्ञाभंग – बिना कारण, स्वाद की खातिर आधाकर्मी खाने से आज्ञाभंग दोष लगता है। श्री तीर्थंकर भगवंत ने बिना कारण आधाकर्मी आहार खाने का निषेध किया है। अनवस्था – एक साधु दूसरे साधु को आधाकर्मी आहार खाते हुए देखे इसलिए उन्हें भी आधाकर्मी आहार खाने की ईच्छा हो, उन्हें देखकर तीसरे साधु को ईच्छा हो ऐसे परम्परा बढ़े ऐसे परम्परा बढ़ने से संयम का सर्वथा उच्छेद होने का अवसर आए। इसलिए अनवस्था नाम का दोष लगता है। मिथ्यात्व – दीक्षा ग्रहण करे तब साधु ने सभी सावद्य योग की प्रतिज्ञा त्रिविध – त्रिविध से की हो, आधाकर्मी आहार खाने में जीववध की अनुमति आ जाती है। इसलिए आधाकर्मी आहार नहीं खाना चाहिए। जब वो साधु दूसरे साधु को आधाकर्मी आहार खाते हुए देखें तो उनके मन में लगे कि, ‘यह साधु असत्यवादी हे, बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं। इसलिए उस साधु की श्रद्धा चलायमान बने और मिथ्यात्व पाए। विराधना – विराधना तीन प्रकार से। आत्म विराधना, संयम विराधना, प्रवचन विराधना। अतिथि की प्रकार साधु के लिए आधाकर्मी आहार, गृहस्थ गौरवपूर्वक बनाए, इसलिए स्वादिष्ट और स्निग्ध हो और इससे ऐसा आहार साधु आदि खाए। ज्यादा खाने से बीमारी आए, स्वाध्याय न हो, सूत्र – अर्थ का विस्मरण हो, भूल जाए। देह में हलचल होने से चारित्र की श्रद्धा कम हो, दर्शन का नाश हो। प्रत्युपेक्षणा की कमी यानि चारित्र का नाश। ऐसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र समान संयमी आत्मा की विराधना हुई। बीमारी में देखभाल करने में छह काय जीव की विराधना और वैयावच्च करनेवाले साधु को सूत्र अर्थ की हानि हो, इसलिए संयम विराधना। लम्बे अरसे की बीमारी में ‘यह साधु ज्यादा खानेवाले हैं’ खुद के पेट को भी नहीं पहचानते, इसलिए बीमार होते हैं आदि दूसरे लोग बोले। इसलिए प्रवचन विराधना। आधाकर्मी आहार खाने में इसी प्रकार दोष रहे हैं। इसलिए आधाकर्मी आहार नहीं खाना चाहिए। श्री जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा का भंग करके जो साधु आधाकर्मी आहार खाते हैं, उस साधु को सद्गति दिलानेवाले अनुष्ठान रूप संयम की आराधना नहीं होती। लेकिन संयम का घात होने से नरक आदि दुर्गति में जाना होता है। इस लोक में राजा की आज्ञा का भंग करने से जीव को दंड़ना पड़ता है। यानि जन्म मरण आदि कईं प्रकार के दुःख भुगतने पड़ते हैं। आधाकर्मी आहार खाने की बुद्धिवाले शुद्ध आहार खाने के बावजूद भी आज्ञाभंग के दोष से दंड़ते हैं और शुद्ध आहार की गवेषणा करनेवाले को शायद आधाकर्मी आहार खाने में आ जाए तो भी वो दंड़ते नहीं क्योंकि उन्होंने श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा का पालन किया है। आधाकर्मी आहार देने में कौन – से दोष हैं ? निर्वाह होता हो उस समय आधाकर्मी अशुद्ध आहार देने से, देनेवाला और लेनेवाला दोनों का अहित होता है। लेकिन निर्वाह न होता हो (यानि ग्लान आदि कारण से) तो देने में और लेने में दोनों को हितावह है। आधाकर्मी आहार चारित्र को नष्ट करता है, इससे गृहस्थ के लिए उत्सर्ग से साधु को आधाकर्मी आहार का दान देना योग्य नहीं माना, फिर भी ग्लान आदि कारण से या अकाल आदि के समय ऐतराझ नहीं है बल्कि योग्य है और फायदेमंद है। जैसे बुखार से पीड़ित दर्दी को घेबर आदि देनेवाले वैद्य दोनों का अहित करते हैं और भस्मकपातादि की बीमारी में घेबर आदि दोनों का हित करते हैं, ऐसे बिना कारण देने से देनेवाला और लेनेवाला दोनों का अहित हो, बिना कारण देने से दोनों को फायदा हो। आधाकर्म मालूम करने के लिए किस प्रकार पूछे ? आधाकर्मी आहार ग्रहण न हो जाए इसलिए पूछना चाहिए। वो विधिवत् पूछना चाहिए लेकिन अविधिपूर्वक नहीं पूछना चाहिए। उसमें जो एक विधिवत् पूछने का और दूसरा अविधिवत् पूछने का उसमें अविधिपूर्वक पूछने से नुकसान होता है और उस पर दृष्टांत। शाली नाम के एक गाँव में एक ग्रामणी नाम का वणिक रहता था। उसकी पत्नी भी ग्रामणी नाम की थी। एक बार वणिक दुकान पर गया था तब उसके घर एक साधु भिक्षा के लिए आए। ग्रामणी साधु को शालिजात के चावल वहोराने लगी। चावल आधाकर्मी है या शुद्ध ? वो पता करने के लिए साधुने उस स्त्री को पूछा कि, ‘हे श्राविका ! यह चावल कहाँ के हैं ?’ उस स्त्री ने कहा कि, मुझे नहीं पता। मेरे पति जाने, दुकान जाकर पूछ लो। इसलिए साधु ने दुकान पर जाकर पूछा। वणिक ने कहा कि, मगध देश के सीमाड़े के गोबर गाँव से आए हैं। यह सुनकर वो साधु गोबर गाँव जाने के लिए तैयार हो गया। वहाँ भी उसे शक हुआ कि, यह रास्ता किसी श्रावक ने साधु के लिए बनाया होता तो? उस शक से रास्ता छोड़कर उल्टे रास्ते पर चलने लगा। इसलिए पाँव में काँटे – कंकर लगे, कुत्ते ने काट लिया, सूर्य की गर्मी भी बढ़ने लगी। आधाकर्म की शंका से पेड़ की छाँव में भी नहीं बैठता। इसलिए ज्यादा गर्मी लगने से वो साधु मूर्छित हो गया, काफी परेशान हो गया। इस प्रकार करने से ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना नहीं हो सकती। यह अविधि पृच्छा है, इस प्रकार नहीं पूछना चाहिए, लेकिन विधिवत् पूछे, वो बताते हैं – उस देश में चीज की कमी हो और वहाँ कईं बार देखा जाए, घर में लोग कम हो और खाना ज्यादा दिखे। काफी आग्रह करते हो तो वहाँ पूछे कि यह चीज किसके लिए और किसके निमित्त से बनाई है ? उस देश में काफी चीज होती हो, तो वहाँ पूछने की जरुर नहीं है। लेकिन घर में लोग कम हो और आग्रह करे तो पूछे। अनादर यानि काफी आग्रह न हो और घर में पुरुष कम हो तो पूछने की जरुरत नहीं है। क्योंकि आधाकर्मी हो तो आग्रह करे। देनेवाला सरल हो तो पूछने पर जैसा हो वैसा बोल दे कि, भगवन् ! यह तुम्हारे लिए बनाया है। मायावी हो तो यह ग्रहण करो। तुम्हारे लिए कुछ नहीं बनाया। ऐसा कहकर घर में दूसरों के सामने देखे या हँसे। मुँह पर के भाव से पता चले कि ‘यह आधाकर्मी है।’ यह किसके लिए बनाया है ? ऐसा पूछने से देनेवाला क्रोधित हो और बोले कि, तुमको क्या ? तो वहाँ आहार ग्रहण करने में शक मत करना। उपयोग रखने के बावजूद भी किस प्रकार आधाकर्म का ग्रहण हो ? जो कोई श्रावक – श्राविका काफी भक्तिवाले और गहरे आचारवाले हों वो आधाकर्मी आहार बनाकर वहोराने में काफी आदर न दिखाए, पूछने के बावजूद सच न बोले या चीज कम हो तो अशुद्ध कैसे होगी ? इसलिए साधु ने पूछा न हो। इस कारण से वो आहार आधाकर्मी होने के बावजूद, शुद्ध समझकर ग्रहण करने से साधु ठग जाए। गृहस्थ के छल से आधाकर्मी ग्रहण करने के बावजूद भी निर्दोषता कैसे ? गाथा में ‘फासुयभोई’ का अर्थ यहाँ ‘सर्व दोष रहित शुद्ध आहार खानेवाला करना है।’ साधु का आचार है कि ग्लान आदि प्रयोजन के समय निर्दोष आहार की गवेषणा करना। निर्दोष न मिले तो कम से कम दोषवाली चीज ले, वो न मिले तो श्रावक आदि को सूचना देकर दोषवाली ले। श्रावक की कमी से शास्त्र की विधिवत् ग्रहण करे। लेकिन अप्रासुक यानि सचित्त चीज को तो कभी भी न ले। आधाकर्मी आहार खाने के परिणामवाला साधु शुद्ध आहार लेने के बावजूद, कर्मबँध से बँधता है, जब कि शुद्ध आहार की गवेषणा करनेवाले को शायद आधाकर्मी आहार आ जाए और वो अशुद्ध आहार खाने के बावजूद वो कर्मबँध से नहीं बँधता क्योंकि उसमें आधाकर्मी आहार लेने की भावना नहीं है। शुद्ध में अशुद्ध बुद्धि से खानेवाले साधु कर्म से बँधते हैं। शुद्ध की गवेषणा करने से अशुद्ध आ जाए तो भी भाव शुद्धि से साधु को निर्जरा होती है, उस पर अब दृष्टांत – आचार्य भगवंत श्री रत्नाकर सूरीश्वरजी महाराज ५०० शिष्य से परिवरित शास्त्र की विधिवत् विहार करते करते पोतनपुर नाम के नगर में आए। ५०० शिष्य में एक प्रियंकर नाम के साधु मासखमण के पारणे के मासखमण का तप करनेवाले थे। पारणे के दिन उस साधु ने सोचा कि, मेरा पारणा जानकर किसी ने आधाकर्मी आहार किया हो, इसलिए पास के गाँव में गोचरी जाऊं, कि जिससे शुद्ध आहार मिले। ऐसा सोचकर उस गाँव में गोचरी के लिए न जाते हुए पास के एक गाँव में गए। उस गाँव में यशोमती नाम की विचक्षण श्राविका रहती थी। लोगों के मुख से तपस्वी पारणा का दिन उसको पता चला। इसलिए उसने सोचा कि, शायद वो तपस्वी महात्मा पारणा के लिए आए तो मुझे फायदा हो सके, उस आशय से काफी भक्तिपूर्वक खीर आदि उत्तम रसोई तैयार की। खीर आदि उत्तम द्रव्य देखकर साधु को आधाकर्मी का शक न हो, इसलिए पत्ते के पड़िये में बच्चों के लिए थोड़ी थोरी खीर रख दी और बच्चों को शीखाया कि, यदि इस प्रकार के साधु यहाँ आएंगे तो बोलो कि हे मा ! हमें इतनी सारी खीर क्यों दी ? भाग्य से वो तपस्वी साधु घूमते – घूमते सबसे पहले यशोमत श्राविका के घर आ पहुँचे। यशोमती भीतर से काफी खुश हुई, लेकिन साधु को शक न हो इसलिए बाहर से खास कोई सम्मान न दिया, बच्चों को शीखाने के अनुसार बोलने लगे, इसलिए यशोमती ने बच्चों पर गुस्सा किया। और बाहर से अपमान और गुस्सा होकर साधु को कहा कि, ‘यह बच्चे पागल हो गए हैं। खीर भी उन्हें पसंद नहीं है। यदि उन्हें पसंद होती हो तो लो वरना कहीं ओर चले जाव। मुनि को आधाकर्मी आदि के लिए शक न होने से पातरा नीकाला। यशोमती ने काफी भक्तिपूर्वक पातरा भर दिया और दूसरा घी, गुड़ आदि भाव से वहोराया। साधु आहार लेकर विशुद्ध अध्यवयसायपूर्वक गाँव के बाहर नीकले और एक पेड़ के नीचे गए, वहाँ विधिवत् इरियावहि आदि करके, फिर कुछ स्वाध्याय किया और सोचने लगे कि, ‘आज गोचरी में खीर आदि उत्तम द्रव्य मिले हैं तो किसी साधु आकर मुझे लाभ दे तो मैं संसार सागर को पार कर दूँ। क्योंकि साधु हंमेशा स्वाध्याय में रक्त होते हैं और संसार स्वरूप को यथावस्थित – जैसे है ऐसा हंमेशा सोचते हैं, इसलिए वो दुःख समान संसार से विरक्त होकर मोक्ष की साधना में एकचित्त रहते हैं, आचार्यादि की शक्ति अनुसार वैयावच्च में उद्युत रहते हैं और फिर देश के लब्धिवाले उपदेश देकर काफी उपकार करते हैं और अच्छी प्रकार से संयम का पालन करनेवाले हैं। ऐसे महात्मा को अच्छा आहार ज्ञान आदि में सहायक बने, यह मेरा आहार उन्हें ज्ञानादिक में सहायक बने तो मुझे बड़ा फायदा हो सके। जब ये मेरा शरीर असार प्रायः और फिझूल है, मुझे तो जैसे – तैसे आहार से भी गुझारा हो सकता है। यह भावनापूर्वक मूर्च्छा रहित वो आहार खाने से विशुद्ध अध्यवसाय होते ही क्षपकश्रेणी लेकर और खाए रहने से केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इस प्रकार भाव से शुद्ध आहार गवेषणा करे फ़िर् भी आधाकर्मी आहार आ जाए तो खाने के बावजूद भी वो आधाकर्मी के कर्मसे नहीं बँधता, क्योंकि वो भगवंत की आज्ञा का पालन करता है शंका – जिस अशुद्ध आहारादि को साधु ने खुद ने नहीं बनाया, या नहीं बनवाया और फिर बनानेवाले की अनुमोदना नहीं की उस आहार को ग्रहण करने में क्या दोष ? तुम्हारी बात सही है। जो कि खुद को आहार आदि नहीं करता, दूसरों से भी नहीं करवाता तो भी ‘यह आहारादि साधु के लिए बनाया है।’ ऐसा समझने के बावजूद भी यदि वो आधाकर्मी आहार ग्रहण करता है, तो देनेवाले गृहस्थ और दूसरे साधुओं को ऐसा लगे कि, ‘आधाकर्मी आहारादि देने में और लेने में कोई दोष नहीं है, यदि दोष होता तो यह साधु जानने के बावजूद भी क्यों ग्रहण करे ?’ ऐसा होने से आधाकर्मी आहार में लम्बे अरसे तक छह जीव निकाय का घात चलता रहता है। जो साधु आधाकर्मी आहार का निषेध करे या ‘साधु को आधाकर्मी आहार न कल्पे।’ और आधाकर्मी आहार ग्रहण न करे तो ऊपर के अनुसार दोष उन साधु को नहीं लगता। लेकिन आधाकर्मी आहार मालूम होने के बावजूद जो वो आहार ले तो यकीनन उनको अनुमोदना का दोष लगता है। निषेध न करने से अनुमति आ जाती है। और फिर आधाकर्मी आहार खाने का शौख लग जाए, तो ऐसा आहार न मिले तो खुद भी बनाने में लग जाए ऐसा भी हो, इसलिए साधु को आधाकर्मी आहारादि नहीं लेना चाहिए। जो साधु आधाकर्मी आहार ले और उसका प्रायश्चित्त न करे, तो वो साधु श्री जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा का भंजक होने से उस साधु का लोच करना, करवाना, विहार करना आदि सब व्यर्थ – निरर्थक है। जैसे कबूतर अपने पंख तोड़ता है और चारों ओर घूमता है लेकिन उसको धर्म के लिए नहीं होता। ऐसे आधाकर्मी आहार लेनेवाले का लोच, विहार आदि धर्म के लिए नहीं होते। सूत्र – ११७–२४० | ||
Mool Sutra Transliteration : | [gatha] samjamathananam kamdagana lesathiivisesanam. Bhavam ahe karei tamha tam bhavahekammam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Samyamasthana – kamraka samyamashreni, leshya evam shata vedaniya adi ke samana shubha prakriti mem vishuddha vishuddha sthana mem rahe sadhu ko adhakarmi ahara jisa prakara se niche ke sthana para le jata hai, usa karana se vo adhahkarma kahalata hai. Samyama sthana ka svarupa deshavirati samana pamchave guna – sthana mem rahe sarva utkrishta vishuddha sthanavale jiva se sarva virati rupa chhaththe guna sthana para rahe sabase jaghanya vishuddha sthanavale jiva ki vishuddhi anantaguna adhika hai yani sabase niche ke vishuddhi sthana mem raha sadhu, sabase upara vishuddhi sthana mem rahe shravaka se ananta guna jyada hai. Jaghanya aise vo sarva virati ke vishuddhi sthana ko kevalajnyani ki drishti se – buddhi se bamta jae aura jisaka dusara hissa na ho sake aise avibhajya hisse kie jae, aise hissom ki sarva ginati ke bare mem socha jae to, desha virati ke sarva utkrishta vishuddhi sthana ke yadi aise avibhajya hisse ho usaki sarva samkhya ko sarva jiva ki jo ananta samkhya hai, usaka anantava hissa, usamem jo samkhya ho usa samkhya ke dugune kie jae aura jitane samkhya mile utane hisse sarva virati ke sarva jaghanya vishuddhi sthana mem hote haim. Sarva virati gunasthana ke yaha sabhi jaghanya vishuddhi sthana se dusara ananta hissa vriddhivala hota hai. Yani pahale samyama sthana mem ananta hisse vriddhi kare taba dusara samyama sthana ae, usamem ananta hisse vriddhi karane se jo ata hai vo tisara samyamasthana, isa prakara ananta hisse vriddhi taba taka kare jaba taka usa sthana ki ginati eka amgula ke asamkhyata bhagom mem rahe pradesha ki samkhya jitani bane. Amgula ke asamkhyata bhaga ke pramana akasha pradesha mem rahe pradesha ki samkhya jitane samyama sthana ko, shastra ki paribhasha mem eka kamraka kahate haim. Eka kamraka mem asamkhyata samyama sthana ka samuha hota hai. Isa prakara hue prathama kamraka ke amtima samyama sthana mem jitane avibhajya amsha hai usamem asamkhyata bhaga vriddhi karane se jo samkhya bane utane samkhya ka dusare kamraka ka pahala sthana banata hai. Usake bada usase dusara sthana ananta hissa jyada ae aise ananta hisse adhika ananta hisse adhika ki vriddhi karane se pura kamraka bane, usake bada asamkhyata hisse jyada ralane se dusare kamraka ka dusara sthana ata hai. Usake asamkhyata hisse vriddhi ka tisara sthana. Isa prakara eka – eka kamrakantarita asamkhyata hisse, vriddhivale samyama sthana eka kamraka ke anusara bane usake bada, samkhyata hisse jyada vriddhi karane se samkhyata hisse adhika ka pahala samyamasthana ata hai. Usake bada ananta hissa jyada eka kamraka ke anusara eka eka asamkhyata hisse adhika ka samyamasthana ae, vo bhi kamraka pramana ho yani samkhyata hisse adhika ka dusara samyama sthana ata hai. Aise krama – krama para bicha mem ananta hissa adhika kamraka usake bicha asamkhyata hisse adhika sthana ate haim. Jaba samkhyata hisse adhika samyama sthana ki ginati bhi kamraka pramana bane. Usake bada samkhyataguna adhika pahala samyama sthana ae usake bada kamraka amka pramana ananta hisse vriddhivale samyama sthana ate haim. Usake bada eka asamkhyata hisse vriddhivale samyama sthana ae, aise ananta hisse adhika kamraka ke bicha asamkhyata hisse adhikavale kamraka pramana bane. Usake bada purva ke krama se samkhyata hisse adhika samyama sthana ka kamraka karana. Vo kamraka pura hone ke bada dusara samkhyataguna adhika ka samyamasthana ata hai. Usake bada ananta hisse adhika samyama sthana ke bicha – bicha mem kamraka ke anusara samkhyata hisse adhika samyamasthana ata hai, usake bada tinom ke bicha mem kamraka pramana samkhyata guna adhika samyama sthana ata hai, usake bada asamkhyata guna adhika ka dusara samyama sthana ata hai. Isi krama se chara se amtarita anaginata guna adhika ke samyama sthana ate haim. Usake bada eka samkhyata hissa adhika ka samyama sthana ae usa prakara se ananta hisse amtarita asamkhyata hisse adhika ka kamraka pramana bane, usake bada do ke amtaravala samkhyata hisse adhika ka kamraka pramana bane. Usake bada tina ke amtaravala samkhyata guna adhika ka kamraka pramana bane, una charom ke amtaravala asamkhyat guna adhika ka kamraka pramana bane. Usake bada ananta guna adhika ka dusara samyama sthana ata hai. Isa krama ke anusara ananta guna adhika ke sthana bhi kamraka pramana kare. Usake bada upara ke anusara ananta hisse adhika ka samyama sthana usake bicha – bicha mem asamkhyata hissa adhika ka usake bada donom bicha – bicha mem samkhyata hisse adhika ka, usake bada tina amtaravala samkhyata guna adhika ka aura usake bada chara amtaravala asamkhyata guna adhika ka kamraka kare. Yani shat sthanaka paripurna bane. Aise asamkhyata lokakasha pradesha pramana shat sthanaka samyama shreni mem banate haim. Isa prakara samyama shreni ka svarupa shastra mem bataya hai. Adhakarmi ahara grahana karanevala vishuddha samyama sthana se niche girate hue hina bhava mem ane se yavat ratnaprabhadi narakagati ki ayu bamdhata hai. Yaham shishya savala karata hai ki, ahara taiyara karane se chhaha kayadi ka arambha grihastha karata hai, to usa arambha adi ka jnyanavaranadi papakarma sadhu ko ahara grahana karane se kyom lage\? Kyomki eka ka kiya hua karma dusare mem samkrama nahim hota. Jo ki eka ka kiya hua karma dusare mem samkrama hota to kshapaka shreni para chare mahatma, kripalu aura pure jagata ke jiva ke karma ko nashta karane mem samartha hai; isalie sare prani ke jnyanavaranadi karma ko apani kshapakashreni mem samkrama karake khapa de to sabaka eka satha moksha ho. Yadi dusarom ne kie karma ka samkrama ho sake to, kshapakashreni mem raha eka atma sare prani ke karma ko khapane mem samartha hai. Lekina aisa nahim hota, isalie dusarom ne kiya karma dusare mem samkrama na ho sake\? (usaka uttara dete hue batate haim ki) jo sadhu pramatta ho aura kushala na ho to sadhu karma se bamdhata hai, lekina jo apramatta aura kushala hote haim vo karma se nahim bamdhata. Adhakarmi ahara grahana karane ki ichchha karana ashubha parinama hai. Ashubha parinama hone se vo ashubha karmabamdha karata hai. Jo sadhu adhakarmi ahara grahana nahim karate, usaka parinama ashubha nahim hota, yani usako ashubha karmabamdha nahim hota. Isalie adhakarmi ahara grahana karane ki ichchha koshisha se sadhu ko nahim karani chahie. Dusare ne kiya karma khuda ko taba hi bamdha jae ki jaba adhakarmi ahara grahana kare aura grahana kiya vo ahara khae. Upachara se yaham adhakarma ko atmakarma kaha gaya hai. Kauna – si chija adhakarmi bane? Ashana, pana, khadima aura svadima. Isa chara prakara ka ahara adhakarmi banata hai. Isa prakara pravachana mem shri tirthamkara bhagavamta kahate haim. Kisa prakara ka adhakarmi banata hai\? To dhanyadi ki utpatti se lekara chara prakara ka ahara achittaprasuka bane taba taka yadi sadhu ka uddesha rakha gaya ho, to ve taiyara ahara taka ka sabakuchha adhakarmi kahalata hai. Vastradi bhi sadhu nimitta se kiya jae to usa sadhu ko vo saba bhi adhakarmi – akalpya banata hai. Lekina yaham pimra ka adhikara hone se ashana adi chara prakara ke ahara ka hi vishaya bataya hai. Ashana, pana, khadima aura svadima yaha chara prakara ka ahara adhakarmi ho sakata hai. Usamem krita aura nishthita aise bheda hote haim. Krita – yani sadhu ko uddeshakara vo ashana adi karane ki shuruata karana. Nishthita yani sadhu ko uddeshakara vo ashana adi prasuka achitta banana. Shamka – shuru se lekara ashana adi adhakarmi kisa prakara mumakina bane\? Sadhu ko adhakarmi na kalpe aisa pata ho ya na ho aisa kisi grihastha sadhu upara ki ati bhakti mem kisi prakara usako pata chale ki, ‘sadhuom ko isa prakara ke ahara adi ki jarura hai.’ isalie vo grihastha usa prakara ka dhanya adi khuda ya dusarom se kheta mem bokara vo chija banavae. To shuru se vo chija adhakarmi kahalati hai. Ashana adi shuru se lekara jaba taka achitta na bane taba taka vo ‘kritta’ kahalata hai aura achitta banane ke bada vo ‘nishthita’ kahalata hai. Krita aura nishthita mem chaturbhamgi grihastha aura sadhu ko uddeshakara hota hai. Sadhu ke lie krita aura sadhu ke lie nishthita. Sadhu ke lie krita aura grihastha ke lie nishthita. Grihastha ke lie krita (shuruata) aura sadhu ke lie nishthita, grihastha ke lie krita (shuruata) aura grihastha ke lie nishthita. Ina chara bhamga mem dusare aura chothe bhamga mem taiyara honevala ahara adi sadhu ko kalpe. Pahala aura tisara bhamga akalpya. Sadhu ko uddeshakara ramgara bona, kyare mem pani dena, paudha nikalane ke bada lanana, dhanya alaga karana aura chavala alaga karane ke lie do bara kinara para, taba taka ka sabhi krita kahalata hai. Jaba ki tisari bara chharakara chavala alaga kie jae taba use nishthita kahate haim. Isi prakara pani, khadima aura svadima ke lie samajha lena – tisari bara bhi sadhu ke nimitta se chharakara banaya gaya chavala grihastha ne apane lie pakae ho to bhi sadhu ko vo chavala – hissa na kalpe, isalie vo adhakarmi hi mana jata hai. Lekina ramgara dusari bara chharane taka sadhu ka uddesha ho aura tisari bara grihastha ne apane uddesha se chhare ho aura apane lie pakae ho to vo chavala sadhu ko kalpa sakate haim. Jo ramgara tisari bara sadhu ne chharakara chavala banae ho, vo chavala grihastha ne apane lie pakae ho to bane hue chavala eka ne dusarom ko die, dusare ne tisare ko diya, tisare ne chauthe ko diya aise yavat eka hajara sthana para diya gaya ho taba taka to chavala sadhu ko na kalpe, lekina eka hajara ke bada ke sthana para gae ho to vo chavala sadhu ko kalpe. Kuchha acharya aisa kahate haim ki, lakho ghara jae to bhi na kalpe. Pani ke lie sadhu ko uddeshakara pani ke lie kua khudane ki kriya se lekara anta mem tina ubala ane ke bada jaba taka niche na utara jae taba taka kriya ko krita kahate haim aura niche utarane ki kriya ko nishthita kahate haim. Isalie aisa taya hota hai ki, ‘sachitta chija ko achitta banane ki shuruata karane ke bada anta mem achitta bane taba taka yadi sadhu ka uddesha rakha gaya ho to vo chija sadhu ko na kalpe, lekina yadi sadhu ko uddeshakara shuru karane ke bada achitta banane se pahale sadhu ka uddesha badalakara grihastha apane lie chija taiyara kare, achitta kare to vo chija sadhu ko kalpe. Aura phira achitta chija ko agni adi ke arambha se sadhu ko uddeshakara pakaya jae to vo chija sadhu ko na kalpe, lekina vo achitta chija pakane ki shuruata sadhu ko uddeshakara ki ho aura pakai; lekina pakakara taiyara karane ke bada chulha para se grihastha ne apane lie utari ho to vo chija sadhu ko kalpe. Lekina achitta chija grihastha ne apane lie pakane ki shuruata ki ho aura pakai ho lekina sadhu ane ke ya samachara janakara sadhu ko vahorane ke nimitta se vo taiyara ki gai chija chulhe para se niche utare to vo sadhu ko na kalpe. Kisake lie banaya adhakarmi kahalata hai\? Pravachana aura limga – vesha se jo sadhu ka sadharmika ho, unake lie banai hui chija sadhu ke lie adhakarmi doshavali hai. Isalie vo chija sadhu ko na kalpe. Lekina pratyekabuddha, nihnava, tirthamkara adi ke lie banai gai chija sadhu ko kalpe. Sadharmika ke prakara batate haim. 1. Nama, 2. Sthapana, 3. Dravya, 4. Kshetra, 5. Kala, 6. Pravachana, 7. Limga, 8. Darshana, 9. Jnyana, 10. Charitra, 11. Abhigraha aura 12. Bhavana. Yaha baraha prakara se sadharmika ho. Isa baraha prakara ke sadharmika mem kalpya aura akalpyapana batate haim. Nama sadharmika – kisi purusha apane pita jinda ho taba ya mara jane ke bada unake anuraga se usa namavale ko ahara dene ki ummida kare, yani vo taya kare ki ‘jo kisi devadatta nama ke grihastha ya tyagi ho vo sabako maim bhojana banake dum.’ jaba aisa samkalpa ho to devadatta nama ke sadhu ko vo bhojana na kalpe, lekina usa nama ke alava dusare namavale sadhu ko kalpe. Sthapana sadharmika – kisi ke rishtedara ne diksha li ho aura unake raga se vo rishtedara sadhu ki murata ya tasavira banakara unake samane rakhane ke lie bhojana taiyara karavae aura phira taya kare ki, ‘‘aise veshavale ko maim yaha bhojana dum.’’ to sadhu ko na kalpe. Dravya sadharmika – sadhu ka kaladharma hua ho aura unake nimitta se ahara banakara sadhu ko dene ka samkalpa kiya ho to sadhu ko vo ahara lena na kalpe. Kshetra sadharmika – saurashtra, kachchha, gujarata, maravara, maharashtra, bamgala adi pradesha ko kshetra kahate haim. Aura phira gamva, nagara, gali, maholla adi bhi kshetra kahalate haim. ‘saurashtra desha mem utpanna honevale sadhu ko maim ahara dum.’ aisa taya kiya ho to saurashtra desha mem utpanna honevale sadhu ko na kalpe, dusare sadhu ko kalpe. Kala sadharmika – mahina, dina, prahara adi kala kahalate haim. Kuchha tithi, kuchha dina ya kuchha prahara mem utpanna honevale sadhu ko vo ahara na kalpe, usake siva ke na kalpe. Pravachana, limga, darshana, jnyana, charitra, abhigraha aura bhavana – isa sata prakara ke sadharmika mem dvisamyogi 21 bhamga hote haim. Vo isa prakara – 1. Pravachana aura limga. 2. Pravachana aura darshana. 3. Pravachana aura jnyana. 4. Pravachana aura charitra. 5. Pravachana aura abhigraha. 6. Pravachana aura bhavana. 7. Limga aura darshana. 8. Limga aura jnyana. 9. Limga aura charitra. 10. Limga aura abhigraha. 11. Limga aura bhavana. 12. Darshana aura jnyana. 13. Darshana aura charitra. 14. Darshana aura abhigraha. 15. Darshana aura bhavana. 16. Jnyana aura charitra. 17. Jnyana aura abhigraha. 18. Jnyana aura bhavana. 19. Charitra aura abhigraha. 20. Charitra aura bhavana. 21. Abhigraha aura bhavana. Upara kahe anusara ikkisa bheda mem chara – chara bhamga niche ke anusara hote haim. Pravachana se sadharmika, limga (vesha) se nahim. Limga se sadharmika pravachana se nahim. Pravachana se sadharmika aura limga se sadharmika. Pravachana se nahim aura limga se nahim. Isa prakara baki ke bisa bheda mem 4 – 4 bhamga samajhana. Pravachana se sadharmika lekina limga se nahim. Avirati samyagdrishti se lekara shravaka hokara dashavim pratima vahana karanevale shravaka taka limga se sadharmika nahim hai. Limga se sadharmika lekina pravachana se sadharmika nahim – shravaka ki gyarahavim pratima vahana karanevale (mumrana karavaya ho) shravaka limga se sadharmika hai. Lekina pravachana se sadharmika nahim. Unake lie banaya gaya ahara sadhu ko kalpe. Nihnava samgha bahara hone se pravachana se sadharmika nahim lekina limga se sadharmika hai. Unake lie banaya gaya sadhu ko kalpe. Lekina yadi use nihnava ki taraha loga pahachanate na ho to aise nihnava ke lie banaya bhi sadhu ko na kalpe. Pravachana se sadharmika aura limga se bhi sadharmika – sadhu ya gyarahavi pratima vahana karanevale shravaka. Sadhu ke lie kiya gaya na kalpe, shravaka ke lie kiya gaya kalpe. Pravachana se sadharmika nahim aura limga se bhi sadharmika nahim grihastha, pratyeka buddha aura tirthamkara, unake lie kiya hua sadhu ko kalpe. Kyomki pratyeka buddha aura shri tirthamkara limga aura pravachana se atita haim. Isi prakara pravachana aura darshana ki, pravachana aura jnyana ki, pravachana aura charitra ki, pravachana aura abhigraha ki, pravachana aura bhavana ki, limga aura darshana ya jnyana ya charitra ya abhigraha ya bhavana ki chaturbhamgi, darshana ke satha jnyana, charitra, abhigraha aura bhavana ki chaturbhamgi, jnyana ke satha charitra ya abhigraha ya bhavana ki chaturbhamgi aura anta mem charitra ke satha abhigraha aura bhavana ki chaturbhamgi aise dusari bisa chaturbhamgi ki jati hai. Ina hara eka bhedamem sadhu ke lie kiya gaya ho to sadhu ko na kalpe. Tirthamkara, pratyekabuddha, nihnavom aura shravaka ke lie kiya gaya ho to sadhu ko kalpe Kisa prakara se upayoga karane se adhakarma bamdhata hai\? Pratisevana yani adhakarmi doshavale ahara adi khana, pratishravana yani adhakarmi ahara ke nyote ka svikarana. Samvasa yani adhakarmi ahara khanevale ke satha rahana. Anumodana yani adhakarmi ahara khanevale ki prashamsa karana. Ina chara prakara ke vyavahara se adha karma dosha ka karmabamdha hota hai. Isake lie chora, rajaputra, chora ki palli aura rajadushta manava ka, aise chara drishtamta haim Pratisevana – dusarom ke laya hua adhakarmi ahara khana. Dusarom ke laya hua adhakarmi ahara khane vale sadhu ko, koi sadhu kahe ki, ‘tuma samyata hokara adhakarmi ahara kyom khate ho’ aisa sunakara vo javaba deta hai ki, isamem mujhe koi dosha nahim hai kyomki maim adhakarmi ahara nahim laya hum, vo to jo late haim unako dosha lagata hai. Jaise amgare dusarom se nikalavae to khuda nahim jalata, aise adhakarmi lae to use dosha lage. Isamem mujhe kya\? Isa prakara ulti misala de aura dusarom ka laya hua ahara khuda khae use pratisevana kahate haim. Dusarom ke laya hua adhakarmi ahara sadhu khae to use khane se atma papakarma se bamdhata hai. Vo samajhane ke lie chora ka drishtamta – kisi eka gamva mem chora loga rahate the. Eka bara kuchha chora pasa ke gamva mem jakara kuchha gaya ko uthakara apane gamva ki ora a rahe the, vaham raste mem dusare kuchha chora aura musaphira mile. Saba satha – satha age chalate haim. Aisa karane se apane desha ki hada a gai, ve nirbhaya hokara kisi pera ke niche vishrama karane baithe aura bhojana karate samaya kuchha gaya ko mara dala aura unaka mamsa pakane lage. Usa samaya dusare musaphira ae. Chorom ne unhem bhi nyauta diya. Pakaya hua mamsa khane ke lie diya. Usamem se kuchha ne ‘gaya ke mamsa ka bhakshana papakaraka hai’ aisa samajhakara mamsa na khaya, kuchha parosate the, kuchha khate the, utane mem sipahi ae aura sabako ghairakara pakara liya. Jo raste mem ikatthe hue the vo kahane lage ki, ‘hamane chori nahim ki, hama to raste mem mile the.’ musaphira ne kaha ki, hama to isa ora se ate haim aura yaham visama leta haim. Sipahi ne unaki eka na suni aura sabako mara rala. Chori na karane ke bavajuda raste mem milane se chora ke satha mara gae. Isa drishtamta mem chorom ko raste mem aura bhojana ke samaya hi musaphira mile. Usamem bhi jo bhojana karane mem nahim the kevala parosane mem the, unako bhi sipahi ne pakara liya aura mara rala. Aise jo sadhu dusare sadhuom ko papakarmi ahara dete haim, vo sadhu naraka adi gati ke ashayabhuta karma hi bamdhate haim; to phira jo adhakarmi ahara khae unako bamdha ho usake lie kya kahem\? Pratishravana – adhakarmi lanevale sadhu ko guru dakshinyatadi ‘labha’ kahe, adhakarmi ahara lekara kisi sadhu guru ke pasa ae aura adhakarmi ahara alochana kare vaham guru ‘achchha hua tumhem yaha mila’ aisa kahe, isa prakara suna le. Lekina nishedha na kare to pratishravana kahate haim. Usa para rajaputra ka drishtamta. Gunasamriddha nama ke nagara mem mahabala raja raja kare. Unaki shila maharani hai. Unake peta se eka putra hua usaka nama vijita samara rakha. Umra hote hi kumara ko rajya pane ki ichchha hui aura mana mem sochane laga ki mere pita vriddha hue haim phira bhi mare nahim, isalie lambi ayuvale lagate haim. Isalie mere subhata ki sahaya pakara mere pita ko mara dalum aura maim raja bana jaum. Isa prakara sochakara guptasthana mem apane subhata ko bulakara abhipraya bataya. Usamem se kuchha ne kaha ki, kumara ! Tumhara vichara uttama hai. Hama tumhare kama mem sahayata karemge. Kuchha logom ne kaha ki, isa prakara karo. Kuchha chupa rahe lekina koi javaba nahim diya. Kuchha subhata ko kumara ki bata achchhi na lagi isalie raja ke pasa jakara gupta mem sabhi batem jahira kara di. Yaha bata sunate hi raja kopayamana hua aura rajakumara aura subhata ko kaida kiya. Phira jinhomne ‘sahaya karemge’ aisa kaha tha, ‘aise karo’ aisa kaha tha aura jo chupa rahe the una sabhi subhatom ko aura rajakumara ko mara rala. Jinhomne raja ko khabara di thi una subhatom ki tanakha barhai, mana barhaya aura achchha tauhapha diya. Kisi sadhu ne chara sadhuom ko adhakarmi ahara ke lie nyauta diya. Yaha nyauta sunakara eka sadhu ne vo adhakarmi ahara khaya. Dusare ne aisa kaha ki, maim nahim khaumga, tuma khao. Tisara sadhu kuchha na bola. Jaba ki chauthe sadhu ne kaha ki, sadhu ko adhakarmi ahara na kalpe, isalie tuma vo ahara mata lena. Isamem pahale tina ko ‘pratishravana’ dosha lage. Jaba ki chauthe sadhu ke nishedha karane se use ‘pratishravana’ dosha nahim lagata. Samvasa – adhakarmi ahara khate ho unake satha rahana. Kaphi ruksha vritti se nirvaha karanevale sadhu ko bhi adhakarmi ahara khanevale ke satha ka sahavasa, adhakarmi ahara ka darshana, gamdha aura usaki batachita bhi sadhu ko lalachakara nicha dikhanevali hai. Isalie adhakarmi ahara khanevale sadhu ke satha rahana bhi na kalpe. Una para chorapalli ka drishtamta. Vasamtapura nagara mem arimardana raja raja kare. Unaki priyadarshana rani hai. Vasamtapura nagara ke pasa mem thori dura bhima nama ki palli ai hui hai. Kuchha bhila jati ke chora rahate haim aura kuchha vanika rahate haim. Bhila loga ke gamva mem jakara lumtamara kare, logom ko pareshana kare, takatavara hone se kisi samamta raja ya mamralika raja unhem pakara nahim sakate. Dina ba dina bhila logom ka trasa barhane laga isalie mamralika raja ne arimardana raja ko yaha hakikata batai. Yaha sunakara arimardana raja kopayamana hua. Kaim subhata adi samagri sajja karake bhila logom ki palli ke pasa a pahumche. Bhila ko pata chalate hi, vo bhi ae. Donom ke bicha tumula yuddha hua. Usamem kuchha bhila mara gae, kuchha bhila bhaga gae. Raja ne puri palli ko ghera liya aura sabako kaida kiya. Vaham rahanevale vanika ne socha ki, hama chora nahim hai, isalie raja hamako kuchha nahim karemge. Aisa sochakara unhomne nasabhaga nahim ki lekina vahim rahe. Lekina raja ke hukama se sainika ne una sabako kaida kiya aura sabako raja ke pasa hajira kiya. Vanika ne kaha ki hama vanika hai lekina chora nahim hai. Raja ne kaha ki, tuma bhale hi chora nahim ho lekina tuma chora se bhi jyada shiksha ke layaka ho, kyomki hamare aparadhi aise bhila logom ke satha rahe ho. Aisa kahakara sabako sajha di. Aise sadhu bhi adhakarmi ahara khanevale ke satha rahe to use bhi dosha lagata hai. Isalie adhakarmi ahara khate ho aise sadhu ke satha nahim rahana chahie. Anumodana – adhakarmi ahara khanevale ki prashamsa karana. Yaha punyashali hai. Achchha – achchha milata hai aura hararoja achchha khate haim. Ya kisi sadhu aisa bole ki, ‘hamem kabhi bhi ichchhita ahara nahim milata, jaba ki inhem to hammesha ichchhita ahara milata hai, vo bhi pura, adarapurvaka, samaya para aura mausama ke uchita milata hai, isalie ye sukha se jite haim, sukhi haim. Isa prakara adhakarmi ahara karanevale ki prashamsa karane se anumodana ka dosha lagata hai. Kisi sadhu adhakarmi ahara khate ho use dekhakara koi unaki prashamsa kare ki, ‘dhanya hai, ye sukha se jite haim.’ jaba ki dusare kahem ki, ‘dhikkara hai inhem ki, shastra mem nishedha kie gae ahara ko khate haim.’ jo sadhu anumodana karate haim una sadhuom ko anumodana ka dosha lagata hai, vo sambandhi karma bamdhate haim. Jaba ki dusarom ko vo dosha nahim lagata. Pratisevana dosha mem pratishravana – samvasa aura anumodana chara dosha lage, pratishravana mem samvasa aura anumodana ke satha tina dosha lage. Samvasa dosha mem samvasa aura anumodana do dosha lage. Anumodana dosha mem eka anumodana dosha lage. Isalie sadhu ne ina chara dosha mem se kisi dosha na lage usaki dekhabhala rakhe. Adhakarma kisake jaisa hai\? Adhakarmi ahara vamela bhojana vishta, madira aura gaya ke mamsa jaisa hai. Adhakarmi ahara jisa patra mem lae ho ya rakha ho usa patra ka gobara adi se ghisakara tina bara pani se dhokara sukhane ke bada, usamem dusara shuddha ahara lena kalpe. Sadhu ne asamyama ka tyaga kiya hai, jaba ki adhakarmi ahara asamyamakari hai, isalie vamela chahe jitana bhi sundara ho lekina nahim khate. Aura phira tila ka amta, shriphala, adi phala vishta mem ya ashuchi mem gira jae to usamem vishta ya ashuchi gira jae to vo chija khane ke layaka nahim rahati. Aise shuddha ahara mem adhakarmi ahara gira jae ya usamem mila jae to vo shuddha ahara bhi upayoga karane ke layaka nahim rahata aura usa patra ko bhi gobara adi ghisakara tina bara dhone ke bada usa patra mem dusara ahara lena kalpe. Adhakarma khane mem kauna – se dosha haim\? Adhakarmi ahara grahana karane mem – 1. Atikrama, 2. Vyatikrama, 3. Atichara, 4. Anachara, 5. Ajnyabhamga, 6. Anavastha, 7. Mithyatva aura 8. Viradhana dosha lagata hai. Atikrama – adhakarmi ahara ke lie nyauta sune, grahana karanevale ki ichchha batae ya nishedha na kare aura lene jane ke lie kadama na uthae taba taka atikrama nama ka dosha lagata hai. Vyatikrama – adhakarmi ahara lene ke lie vasati upashraya mem se nikalakara grihastha ke vaham jae aura jaba taka ahara grahana na kare taba taka vyatikrama nama ka dosha lagata hai. Atichara – adhakarmi ahara grahana karake vasati mem ae, khane ke lie baithe aura jaba taka nivala mumha mem na jae taba taka atichara nama ka dosha lagata hai. Anachara – adhakarmi ahara ka nivala mumha mem ralakara nigala jae taba anachara nama ka dosha lagata hai. Atikrama adi dosha uttarottara jyada se jyada charitradharma ka ullamghana karanivale ugra dosha haim. Ajnyabhamga – bina karana, svada ki khatira adhakarmi khane se ajnyabhamga dosha lagata hai. Shri tirthamkara bhagavamta ne bina karana adhakarmi ahara khane ka nishedha kiya hai. Anavastha – eka sadhu dusare sadhu ko adhakarmi ahara khate hue dekhe isalie unhem bhi adhakarmi ahara khane ki ichchha ho, unhem dekhakara tisare sadhu ko ichchha ho aise parampara barhe aise parampara barhane se samyama ka sarvatha uchchheda hone ka avasara ae. Isalie anavastha nama ka dosha lagata hai. Mithyatva – diksha grahana kare taba sadhu ne sabhi savadya yoga ki pratijnya trividha – trividha se ki ho, adhakarmi ahara khane mem jivavadha ki anumati a jati hai. Isalie adhakarmi ahara nahim khana chahie. Jaba vo sadhu dusare sadhu ko adhakarmi ahara khate hue dekhem to unake mana mem lage ki, ‘yaha sadhu asatyavadi he, bolate kuchha haim aura karate kuchha haim. Isalie usa sadhu ki shraddha chalayamana bane aura mithyatva pae. Viradhana – viradhana tina prakara se. Atma viradhana, samyama viradhana, pravachana viradhana. Atithi ki prakara sadhu ke lie adhakarmi ahara, grihastha gauravapurvaka banae, isalie svadishta aura snigdha ho aura isase aisa ahara sadhu adi khae. Jyada khane se bimari ae, svadhyaya na ho, sutra – artha ka vismarana ho, bhula jae. Deha mem halachala hone se charitra ki shraddha kama ho, darshana ka nasha ho. Pratyupekshana ki kami yani charitra ka nasha. Aise jnyana, darshana, charitra samana samyami atma ki viradhana hui. Bimari mem dekhabhala karane mem chhaha kaya jiva ki viradhana aura vaiyavachcha karanevale sadhu ko sutra artha ki hani ho, isalie samyama viradhana. Lambe arase ki bimari mem ‘yaha sadhu jyada khanevale haim’ khuda ke peta ko bhi nahim pahachanate, isalie bimara hote haim adi dusare loga bole. Isalie pravachana viradhana. Adhakarmi ahara khane mem isi prakara dosha rahe haim. Isalie adhakarmi ahara nahim khana chahie. Shri jineshvara bhagavamta ki ajnya ka bhamga karake jo sadhu adhakarmi ahara khate haim, usa sadhu ko sadgati dilanevale anushthana rupa samyama ki aradhana nahim hoti. Lekina samyama ka ghata hone se naraka adi durgati mem jana hota hai. Isa loka mem raja ki ajnya ka bhamga karane se jiva ko damrana parata hai. Yani janma marana adi kaim prakara ke duhkha bhugatane parate haim. Adhakarmi ahara khane ki buddhivale shuddha ahara khane ke bavajuda bhi ajnyabhamga ke dosha se damrate haim aura shuddha ahara ki gaveshana karanevale ko shayada adhakarmi ahara khane mem a jae to bhi vo damrate nahim kyomki unhomne shri tirthamkara bhagavamta ki ajnya ka palana kiya hai. Adhakarmi ahara dene mem kauna – se dosha haim\? Nirvaha hota ho usa samaya adhakarmi ashuddha ahara dene se, denevala aura lenevala donom ka ahita hota hai. Lekina nirvaha na hota ho (yani glana adi karana se) to dene mem aura lene mem donom ko hitavaha hai. Adhakarmi ahara charitra ko nashta karata hai, isase grihastha ke lie utsarga se sadhu ko adhakarmi ahara ka dana dena yogya nahim mana, phira bhi glana adi karana se ya akala adi ke samaya aitarajha nahim hai balki yogya hai aura phayademamda hai. Jaise bukhara se pirita dardi ko ghebara adi denevale vaidya donom ka ahita karate haim aura bhasmakapatadi ki bimari mem ghebara adi donom ka hita karate haim, aise bina karana dene se denevala aura lenevala donom ka ahita ho, bina karana dene se donom ko phayada ho. Adhakarma maluma karane ke lie kisa prakara puchhe\? Adhakarmi ahara grahana na ho jae isalie puchhana chahie. Vo vidhivat puchhana chahie lekina avidhipurvaka nahim puchhana chahie. Usamem jo eka vidhivat puchhane ka aura dusara avidhivat puchhane ka usamem avidhipurvaka puchhane se nukasana hota hai aura usa para drishtamta. Shali nama ke eka gamva mem eka gramani nama ka vanika rahata tha. Usaki patni bhi gramani nama ki thi. Eka bara vanika dukana para gaya tha taba usake ghara eka sadhu bhiksha ke lie ae. Gramani sadhu ko shalijata ke chavala vahorane lagi. Chavala adhakarmi hai ya shuddha\? Vo pata karane ke lie sadhune usa stri ko puchha ki, ‘he shravika ! Yaha chavala kaham ke haim\?’ usa stri ne kaha ki, mujhe nahim pata. Mere pati jane, dukana jakara puchha lo. Isalie sadhu ne dukana para jakara puchha. Vanika ne kaha ki, magadha desha ke simare ke gobara gamva se ae haim. Yaha sunakara vo sadhu gobara gamva jane ke lie taiyara ho gaya. Vaham bhi use shaka hua ki, yaha rasta kisi shravaka ne sadhu ke lie banaya hota to? Usa shaka se rasta chhorakara ulte raste para chalane laga. Isalie pamva mem kamte – kamkara lage, kutte ne kata liya, surya ki garmi bhi barhane lagi. Adhakarma ki shamka se pera ki chhamva mem bhi nahim baithata. Isalie jyada garmi lagane se vo sadhu murchhita ho gaya, kaphi pareshana ho gaya. Isa prakara karane se jnyana, darshana aura charitra ki aradhana nahim ho sakati. Yaha avidhi prichchha hai, isa prakara nahim puchhana chahie, lekina vidhivat puchhe, vo batate haim – usa desha mem chija ki kami ho aura vaham kaim bara dekha jae, ghara mem loga kama ho aura khana jyada dikhe. Kaphi agraha karate ho to vaham puchhe ki yaha chija kisake lie aura kisake nimitta se banai hai\? Usa desha mem kaphi chija hoti ho, to vaham puchhane ki jarura nahim hai. Lekina ghara mem loga kama ho aura agraha kare to puchhe. Anadara yani kaphi agraha na ho aura ghara mem purusha kama ho to puchhane ki jarurata nahim hai. Kyomki adhakarmi ho to agraha kare. Denevala sarala ho to puchhane para jaisa ho vaisa bola de ki, bhagavan ! Yaha tumhare lie banaya hai. Mayavi ho to yaha grahana karo. Tumhare lie kuchha nahim banaya. Aisa kahakara ghara mem dusarom ke samane dekhe ya hamse. Mumha para ke bhava se pata chale ki ‘yaha adhakarmi hai.’ yaha kisake lie banaya hai\? Aisa puchhane se denevala krodhita ho aura bole ki, tumako kya\? To vaham ahara grahana karane mem shaka mata karana. Upayoga rakhane ke bavajuda bhi kisa prakara adhakarma ka grahana ho\? Jo koi shravaka – shravika kaphi bhaktivale aura gahare acharavale hom vo adhakarmi ahara banakara vahorane mem kaphi adara na dikhae, puchhane ke bavajuda sacha na bole ya chija kama ho to ashuddha kaise hogi\? Isalie sadhu ne puchha na ho. Isa karana se vo ahara adhakarmi hone ke bavajuda, shuddha samajhakara grahana karane se sadhu thaga jae. Grihastha ke chhala se adhakarmi grahana karane ke bavajuda bhi nirdoshata kaise\? Gatha mem ‘phasuyabhoi’ ka artha yaham ‘sarva dosha rahita shuddha ahara khanevala karana hai.’ sadhu ka achara hai ki glana adi prayojana ke samaya nirdosha ahara ki gaveshana karana. Nirdosha na mile to kama se kama doshavali chija le, vo na mile to shravaka adi ko suchana dekara doshavali le. Shravaka ki kami se shastra ki vidhivat grahana kare. Lekina aprasuka yani sachitta chija ko to kabhi bhi na le. Adhakarmi ahara khane ke parinamavala sadhu shuddha ahara lene ke bavajuda, karmabamdha se bamdhata hai, jaba ki shuddha ahara ki gaveshana karanevale ko shayada adhakarmi ahara a jae aura vo ashuddha ahara khane ke bavajuda vo karmabamdha se nahim bamdhata kyomki usamem adhakarmi ahara lene ki bhavana nahim hai. Shuddha mem ashuddha buddhi se khanevale sadhu karma se bamdhate haim. Shuddha ki gaveshana karane se ashuddha a jae to bhi bhava shuddhi se sadhu ko nirjara hoti hai, usa para aba drishtamta – acharya bhagavamta shri ratnakara surishvaraji maharaja 500 shishya se parivarita shastra ki vidhivat vihara karate karate potanapura nama ke nagara mem ae. 500 shishya mem eka priyamkara nama ke sadhu masakhamana ke parane ke masakhamana ka tapa karanevale the. Parane ke dina usa sadhu ne socha ki, mera parana janakara kisi ne adhakarmi ahara kiya ho, isalie pasa ke gamva mem gochari jaum, ki jisase shuddha ahara mile. Aisa sochakara usa gamva mem gochari ke lie na jate hue pasa ke eka gamva mem gae. Usa gamva mem yashomati nama ki vichakshana shravika rahati thi. Logom ke mukha se tapasvi parana ka dina usako pata chala. Isalie usane socha ki, shayada vo tapasvi mahatma parana ke lie ae to mujhe phayada ho sake, usa ashaya se kaphi bhaktipurvaka khira adi uttama rasoi taiyara ki. Khira adi uttama dravya dekhakara sadhu ko adhakarmi ka shaka na ho, isalie patte ke pariye mem bachchom ke lie thori thori khira rakha di aura bachchom ko shikhaya ki, yadi isa prakara ke sadhu yaham aemge to bolo ki he ma ! Hamem itani sari khira kyom di\? Bhagya se vo tapasvi sadhu ghumate – ghumate sabase pahale yashomata shravika ke ghara a pahumche. Yashomati bhitara se kaphi khusha hui, lekina sadhu ko shaka na ho isalie bahara se khasa koi sammana na diya, bachchom ko shikhane ke anusara bolane lage, isalie yashomati ne bachchom para gussa kiya. Aura bahara se apamana aura gussa hokara sadhu ko kaha ki, ‘yaha bachche pagala ho gae haim. Khira bhi unhem pasamda nahim hai. Yadi unhem pasamda hoti ho to lo varana kahim ora chale java. Muni ko adhakarmi adi ke lie shaka na hone se patara nikala. Yashomati ne kaphi bhaktipurvaka patara bhara diya aura dusara ghi, gura adi bhava se vahoraya. Sadhu ahara lekara vishuddha adhyavayasayapurvaka gamva ke bahara nikale aura eka pera ke niche gae, vaham vidhivat iriyavahi adi karake, phira kuchha svadhyaya kiya aura sochane lage ki, ‘aja gochari mem khira adi uttama dravya mile haim to kisi sadhu akara mujhe labha de to maim samsara sagara ko para kara dum. Kyomki sadhu hammesha svadhyaya mem rakta hote haim aura samsara svarupa ko yathavasthita – jaise hai aisa hammesha sochate haim, isalie vo duhkha samana samsara se virakta hokara moksha ki sadhana mem ekachitta rahate haim, acharyadi ki shakti anusara vaiyavachcha mem udyuta rahate haim aura phira desha ke labdhivale upadesha dekara kaphi upakara karate haim aura achchhi prakara se samyama ka palana karanevale haim. Aise mahatma ko achchha ahara jnyana adi mem sahayaka bane, yaha mera ahara unhem jnyanadika mem sahayaka bane to mujhe bara phayada ho sake. Jaba ye mera sharira asara prayah aura phijhula hai, mujhe to jaise – taise ahara se bhi gujhara ho sakata hai. Yaha bhavanapurvaka murchchha rahita vo ahara khane se vishuddha adhyavasaya hote hi kshapakashreni lekara aura khae rahane se kevalajnyana utpanna hua. Isa prakara bhava se shuddha ahara gaveshana kare fir bhi adhakarmi ahara a jae to khane ke bavajuda bhi vo adhakarmi ke karmase nahim bamdhata, kyomki vo bhagavamta ki ajnya ka palana karata hai Shamka – jisa ashuddha aharadi ko sadhu ne khuda ne nahim banaya, ya nahim banavaya aura phira bananevale ki anumodana nahim ki usa ahara ko grahana karane mem kya dosha\? Tumhari bata sahi hai. Jo ki khuda ko ahara adi nahim karata, dusarom se bhi nahim karavata to bhi ‘yaha aharadi sadhu ke lie banaya hai.’ aisa samajhane ke bavajuda bhi yadi vo adhakarmi ahara grahana karata hai, to denevale grihastha aura dusare sadhuom ko aisa lage ki, ‘adhakarmi aharadi dene mem aura lene mem koi dosha nahim hai, yadi dosha hota to yaha sadhu janane ke bavajuda bhi kyom grahana kare\?’ aisa hone se adhakarmi ahara mem lambe arase taka chhaha jiva nikaya ka ghata chalata rahata hai. Jo sadhu adhakarmi ahara ka nishedha kare ya ‘sadhu ko adhakarmi ahara na kalpe.’ aura adhakarmi ahara grahana na kare to upara ke anusara dosha una sadhu ko nahim lagata. Lekina adhakarmi ahara maluma hone ke bavajuda jo vo ahara le to yakinana unako anumodana ka dosha lagata hai. Nishedha na karane se anumati a jati hai. Aura phira adhakarmi ahara khane ka shaukha laga jae, to aisa ahara na mile to khuda bhi banane mem laga jae aisa bhi ho, isalie sadhu ko adhakarmi aharadi nahim lena chahie. Jo sadhu adhakarmi ahara le aura usaka prayashchitta na kare, to vo sadhu shri jineshvara bhagavamta ki ajnya ka bhamjaka hone se usa sadhu ka locha karana, karavana, vihara karana adi saba vyartha – nirarthaka hai. Jaise kabutara apane pamkha torata hai aura charom ora ghumata hai lekina usako dharma ke lie nahim hota. Aise adhakarmi ahara lenevale ka locha, vihara adi dharma ke lie nahim hote. Sutra – 117–240 |