Sutra Navigation: Pindniryukti ( पिंड – निर्युक्ति )

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Sr No : 1020001
Scripture Name( English ): Pindniryukti Translated Scripture Name : पिंड – निर्युक्ति
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

पिण्ड

Translated Chapter :

पिण्ड

Section : Translated Section :
Sutra Number : 1 Category : Mool-02B
Gatha or Sutra : Gatha Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [गाथा] पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य । इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुत्ती ॥
Sutra Meaning : पिंड़ यानि समूह। वो चार प्रकार के – नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। यहाँ संयम आदि भावपिंड़ उपकारक द्रव्यपिंड़ है। द्रव्यपिंड़ के द्वारा भावपिंड़ की साधना की जाती है। द्रव्यपिंड़ तीन प्रकार के हैं। आहार, शय्या, उपधि। इस ग्रंथ में मुख्यतया आहारपिंड़ के बारे में सोचना है। पिंड़ शुद्धि आठ प्रकार से सोचनी है। उद्‌गम, उत्पादना, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम्र और कारण। उद्‌गम – यानि आहार की उत्पत्ति। उससे पैदा होनेवाले दोष उद्‌गमादि दोष कहलाते हैं, वो आधाकर्मादि सोलह प्रकार से होती है, यह दोष गृहस्थ के द्वारा उत्पन्न होते हैं। उत्पादना यानि आहार को पाना उसमें होनेवाले दोष उत्पादन आदि दोष कहलाते हैं, वो धात्री आदि सोलह प्रकार से होती है। यह दोष साधु के द्वारा उत्पन्न होते हैं। एषणा के तीन प्रकार हैं। गवेषणा एषणा, ग्रहण एषणा और ग्रास एषणा। गवेषणा एषणा के आठ प्रकार – प्रमाण, काल, आवश्यक, संघाट्टक, उपकरण, मात्रक, काऊस्सग्ग, योग और अपवाद। प्रमाण – भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर दो बार जाना। अकाले ठल्ला की शंका हुई हो तो उस समय पानी ले। भिक्षा के समय गोचरी पानी ले। काल – जिस गाँव में भिक्षा का जो समय हुआ हो तब जाए। आवश्यक – ठल्ला मात्रादि की शंका दूर करके भिक्षा के लिए जाए। उपाश्रय के बाहर नीकलते ही ‘आवस्सहि’ कहे। संघाट्टक दो साधु साथ में भिक्षा के लिए आए। उपकरण – उत्सर्ग से सभी उपकरण साथ लेकर भिक्षा के लिए जाए। सभी उपकरण साथ लेकर भिक्षा के लिए जाना समर्थ न हो तो पात्रा, पड़ला, रजोहरण, दो वस्त्र और दांड़ा लेकर गोचरी जाए। मात्रक – पात्र के साथ दूसरा मात्रक लेकर भिक्षा के लिए जाए। काऊस्सग्ग करके आदेश माँगे। ‘संदिसह’ आचार्य कहे, ‘लाभ’ साधु कहे (कहं लेसु) आचार्य कहे (जहा गहियं पुव्वसाहूहिं) योग – फिर कहे कि ‘आवस्सियाए जस्स जोगो’ जो – जो संयम को जरुरी होगा वो ग्रहण करूँगा। गवेषणा दो प्रकार की है। एक द्रव्य गवेषणा, दूसरी भाव गवेषणा। द्रव्य गवेषणा – वसंतपुर नाम के नगर में जितशत्रु राजा को धारिणी नाम की रानी थी। एक बार चित्रसभा में गई, उसमें सुवर्ण पीठवाला मृग देखा। वो रानी गर्भवती थी, इसलिए उसे सुवर्ण पीठवाले मृग का माँस खाने का दोहलो (ईच्छा) हुई। वो ईच्छा पूरी न होने से रानी का शरीर सूखने लगा। रानी को कमझोर होते देखकर राजाने पूछा कि, तुम क्यों कमझोर होती जाती हो ? तुम्हें क्या दुःख है ? रानी ने सुवर्ण पीठवाले मृग का माँस खाने की ईच्छा की बात कही। राजा ने अपने पुरुषों को सुवर्णमृग को पकड़कर लाने का हूकम किया। पुरुषोंने सोचा कि सुवर्णमृग को श्रीपर्णी फल काफी प्रिय होते हैं, लेकिन अभी उस फल की मौसम नहीं है। इसलिए नकली फल बनाकर जंगल में गए। वहाँ उस नकली फल के ढ़ेर करके पेड़ के नीचे रख दिए। मृग ने वो फल देखे और अपने नायक को बात की, सभी वहाँ आए। नायक ने वो फल देखे और सभी मृग को कहा कि, किसी धूर्त ने हमें पकड़ने के लिए यह किया है। क्योंकि अभी इन फलों की मौसम नहीं है। इसलिए वो फल खाने कोई न जाए। इस प्रकार नायक की बात सुनकर कुछ मृग वो फल खाने के लिए न गए। कुछ मृग नायक की बात की परवा किए बिना फल खाने के लिए गए जैसे ही फल खाने लगे वहीं राजा के पुरुषोंने उत मृग को पकड़ लिया। इसलिए उन मृग में से कुछ बाँधे गए और कुछ मर गए। जिन मृग ने वो फल नहीं खाए वो सुखी हो गए, ईच्छा के अनुसार वन में विचरण करने लगे। भाव गवेषणा – किसी महोत्सव पर कुछ साधु आए थे। किसी श्रावक ने या भद्रिकने साधुओं के लिए (आधाकर्मी) भोजन तैयार करवाया और दूसरे लोगों को बुलाकर भोजन देने लगे। उनके मन में था कि, ‘यह देख कर साधु आहार लेने आएंगे।’ आचार्य को इस बात का किसी भी प्रकार पता चल गया। इसलिए साधुओं को कहा कि ‘वहाँ गोचरी लेने के लिए मत जाना। क्योंकि वह आहार आधाकर्मी है।’ कुछ साधु वहाँ आहार लेने के लिए न गए, लेकिन किसी कुल में से गोचरी ले आए। जब कुछ साधु ने आचार्य के वचन की परवा न की और वह आहार लाकर खाया। जिन साधुओंने आचार्य भगवंत का वचन सुनकर वह आधाकर्मी आहार न लिया, वो साधु तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा के आराधक बने और परलोक में महासुख पाया। जब कि जिन साधुओं ने आधाकर्मी आहार खाया वो साधु श्री जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा के विराधक बने और संसार का विस्तार किया। इसलिए साधुओं को निर्दोष आर पानी की गवेषणा करनी चाहिए और दोषित आहार पानी आदि का त्याग करना चाहिए। क्योंकि निर्दोष आहार आदि के ग्रहण से संसार का शीघ्र अन्त होता है। ग्रहण एषणा दो प्रकार से। एक द्रव्य, दूसरी भाव। द्रव्य ग्रहण एषणा – एक जंगल में कुछ बंदर रहते थे। एक दिन गर्मी में फल, पान आदि सूखे देखकर बड़े बंदर ने सोचा कि दूसरे जंगल में जाए। दूसरे अच्छे जंगल की जाँच करने के लिए अलग – अलग दिशा में कुछ बंदरों को भेजा। उस जंगल में एक बड़ा द्रह था। यह देखकर बंदर खुश हो गए। बड़े बंदर ने उस द्रह की चारों ओर जाँच – पड़ताल की, तो उस द्रह में जाने के पाँव के निशान दिखते थे, लेकिन बाहर आने के निशान नहीं दिखते थे। इसलिए बड़े बंदर ने सभी बंदरों को इकट्ठा करके कहा कि, इस द्रह में सावधान रहना। किनारे से या द्रह में जाकर पानी मत पीना, लीकन पोली नली के द्वारा पानी पीना। जो बंदरने बड़े बंदर के कहने के अनुसार किया वो सुखी हुए। और जो द्रह में जाकर पानी पीने के लिए गए वो मर गए। इस प्रकार आचार्य भगवंत महोत्सव आदि में आधाकर्मी, उद्देशिक आदि दोषवाले आहार आदि का त्याग करवाते हैं और शुद्ध आहार ग्रहण करवाते हैं। जो साधु आचार्य भगवंत के कहने के अनुसार व्यवहार करते हैं, वो थोड़े ही समय में सभी कर्मो का क्षय करते हैं। जो आचार्य भगवंत के वचन के अनुसार व्यवहार नहीं करते वो कईं भव में जन्म, जरा, मरण आदि के दुःख पाते हैं। भाव ग्रहण एषणा के ग्यारह प्रकार – स्थान, दायक, गमन, ग्रहण, आगमन, प्राप्त, परवृत, पतित, गुरुक, त्रिविध भाव। स्थान – तीन प्रकार के आत्म ऊपघातिक, प्रवचन ऊपघातिक, संयम ऊपघातिक। दायक – आठ वर्ष से कम उम्र का बच्चा, वृद्ध, नौकर, नपुंसक, पागल, क्रोधित आदि से भिक्षा ग्रहण मत करना। गमन – भिक्षा देनेवाले, भिक्षा लेने के लिए भीतर जाए, तो उस पर नीचे की जमीं एवं आसपास भी न देखे। यदि वो जाते हुए पृथ्वी, पानी, अग्नि आदि का संघट्टा करता हो तो भिक्षा ग्रहण मत करना। ग्रहण – छोटा, नीचा द्वार हो, जहाँ अच्छी प्रकार देख सकते न हो, अलमारी बंध हो, दरवाजा बंध हो, कईं लोग आते – जाते हो, बैलगाड़ी आदि पड़े हो, वहाँ भिक्षा ग्रहण मत करना। आगमन – भिक्षा लेकर आनेवाले गृहस्थ पृथ्वी आदि की विराधना करते हुए आ रहे हो तो भिक्षा ग्रहण मत करना। प्राप्त – कच्चा पानी, संसक्त या गीला हो तो भिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए। परावर्त – आहार आदि दूसरे बरतन में ड़ाले तो उस बरतन को कच्चा पानी आदि लगा हो तो उस बरतन में से आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। पतित आहार पात्र में ग्रहण करने के बाद जाँच करनी चाहिए। योगवाला पिंड़ है या स्वाभाविक, वो देखो। गुरुक – बड़े या भारी भाजन से भिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए। त्रिविध – काल तीन प्रकार से। ग्रीष्म, हेमंत और वर्षाकाल। एवं देनेवाले तीन प्रकार से – स्त्री, पुरुष और नपुंसक। उन हरएक में तरुण, मध्यम और स्थविर। नपुंसक शीत होते हैं, स्त्री उष्मावाली होती है और पुरुष शीतोष्ण होते हैं। उनमें पुरःकर्म, उदकार्द्र, सस्निग्ध तीन होते हैं। वो हरएक सचित्त, अचित्त और मिश्र तीन प्रकार से हैं। पुरःकर्म और उदकार्द्र में भिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए। सस्निग्ध में यानी मिश्र और सचित्त पानीवाले हाथ हों, उस हाथ की ऊंगलियाँ, रेखा और हथेली यदि सूखे हो तो भिक्षा ग्रहण किया जाए। भाव – लौकिक और लोकोत्तर, दोनों में प्रशस्त और अप्रशस्त। ग्रास एषणा – बयालीस दोष रहित शुद्ध आहार ग्रहण करके, जाँच करके, विधिवत्‌ उपाश्रय में आकर, विधिवत्‌ गोचरी की आलोचना करे। फिर मुहूर्त्त तक स्वाध्याय आदि करके, आचार्य, प्राघुर्णक, तपस्वी, बाल, वृद्ध आदि को निमंत्रणा करके आसक्ति बिना विधिवत्‌ आहार खाए। आहार शुद्ध है या नहीं उसकी जाँच करे वो गवेषणा एषणा। उसमें दोष न लगे उस प्रकार आहार ग्रहण करना यानि ग्रहण एषणा। और दोष न लगे उस प्रकार से खाए उसे ग्रास एषणा कहते हैं। संयोजना – वो द्रव्य संयोजना और भाव संयोजना ऐसे दो प्रकार से हैं। यानि उद्‌गम उत्पादन आदि दोष कौन – कौन से हैं, वो जानकर टालने की गवेषणा करे, आहार ग्रहण करने के बाद संयोजन आदि दोष न लगे ऐसे आहार खाए वो उद्देश है। प्रमाण – आहार कितना खाना उसका प्रमाण। अंगार – अच्छे आहार की या आहार बनाने वाले की प्रशंसा करना। ध्रुम्र – बूरे आहार की या आहार बनानेवाले की नींदा करना। कारण – किस कारण से आहार खाना और किस कारण से न खाए ? पिंड़ – निर्युक्ति के यह आठ द्वार हैं। उसका क्रमसर बयान किया जाएगा। सूत्र – १–१४
Mool Sutra Transliteration : [gatha] pimde uggama uppayanesana joyana pamane ya. Imgala dhuma karana atthaviha pimdanijjutti.
Sutra Meaning Transliteration : Pimra yani samuha. Vo chara prakara ke – nama, sthapana, dravya aura bhava. Yaham samyama adi bhavapimra upakaraka dravyapimra hai. Dravyapimra ke dvara bhavapimra ki sadhana ki jati hai. Dravyapimra tina prakara ke haim. Ahara, shayya, upadhi. Isa gramtha mem mukhyataya aharapimra ke bare mem sochana hai. Pimra shuddhi atha prakara se sochani hai. Udgama, utpadana, eshana, samyojana, pramana, amgara, dhumra aura karana. Udgama – yani ahara ki utpatti. Usase paida honevale dosha udgamadi dosha kahalate haim, vo adhakarmadi solaha prakara se hoti hai, yaha dosha grihastha ke dvara utpanna hote haim. Utpadana yani ahara ko pana usamem honevale dosha utpadana adi dosha kahalate haim, vo dhatri adi solaha prakara se hoti hai. Yaha dosha sadhu ke dvara utpanna hote haim. Eshana ke tina prakara haim. Gaveshana eshana, grahana eshana aura grasa eshana. Gaveshana eshana ke atha prakara – pramana, kala, avashyaka, samghattaka, upakarana, matraka, kaussagga, yoga aura apavada. Pramana – bhiksha ke lie grihastha ke ghara do bara jana. Akale thalla ki shamka hui ho to usa samaya pani le. Bhiksha ke samaya gochari pani le. Kala – jisa gamva mem bhiksha ka jo samaya hua ho taba jae. Avashyaka – thalla matradi ki shamka dura karake bhiksha ke lie jae. Upashraya ke bahara nikalate hi ‘avassahi’ kahe. Samghattaka do sadhu satha mem bhiksha ke lie ae. Upakarana – utsarga se sabhi upakarana satha lekara bhiksha ke lie jae. Sabhi upakarana satha lekara bhiksha ke lie jana samartha na ho to patra, parala, rajoharana, do vastra aura damra lekara gochari jae. Matraka – patra ke satha dusara matraka lekara bhiksha ke lie jae. Kaussagga karake adesha mamge. ‘samdisaha’ acharya kahe, ‘labha’ sadhu kahe (kaham lesu) acharya kahe (jaha gahiyam puvvasahuhim) yoga – phira kahe ki ‘avassiyae jassa jogo’ jo – jo samyama ko jaruri hoga vo grahana karumga. Gaveshana do prakara ki hai. Eka dravya gaveshana, dusari bhava gaveshana. Dravya gaveshana – vasamtapura nama ke nagara mem jitashatru raja ko dharini nama ki rani thi. Eka bara chitrasabha mem gai, usamem suvarna pithavala mriga dekha. Vo rani garbhavati thi, isalie use suvarna pithavale mriga ka mamsa khane ka dohalo (ichchha) hui. Vo ichchha puri na hone se rani ka sharira sukhane laga. Rani ko kamajhora hote dekhakara rajane puchha ki, tuma kyom kamajhora hoti jati ho\? Tumhem kya duhkha hai\? Rani ne suvarna pithavale mriga ka mamsa khane ki ichchha ki bata kahi. Raja ne apane purushom ko suvarnamriga ko pakarakara lane ka hukama kiya. Purushomne socha ki suvarnamriga ko shriparni phala kaphi priya hote haim, lekina abhi usa phala ki mausama nahim hai. Isalie nakali phala banakara jamgala mem gae. Vaham usa nakali phala ke rhera karake pera ke niche rakha die. Mriga ne vo phala dekhe aura apane nayaka ko bata ki, sabhi vaham ae. Nayaka ne vo phala dekhe aura sabhi mriga ko kaha ki, kisi dhurta ne hamem pakarane ke lie yaha kiya hai. Kyomki abhi ina phalom ki mausama nahim hai. Isalie vo phala khane koi na jae. Isa prakara nayaka ki bata sunakara kuchha mriga vo phala khane ke lie na gae. Kuchha mriga nayaka ki bata ki parava kie bina phala khane ke lie gae jaise hi phala khane lage vahim raja ke purushomne uta mriga ko pakara liya. Isalie una mriga mem se kuchha bamdhe gae aura kuchha mara gae. Jina mriga ne vo phala nahim khae vo sukhi ho gae, ichchha ke anusara vana mem vicharana karane lage. Bhava gaveshana – kisi mahotsava para kuchha sadhu ae the. Kisi shravaka ne ya bhadrikane sadhuom ke lie (adhakarmi) bhojana taiyara karavaya aura dusare logom ko bulakara bhojana dene lage. Unake mana mem tha ki, ‘yaha dekha kara sadhu ahara lene aemge.’ acharya ko isa bata ka kisi bhi prakara pata chala gaya. Isalie sadhuom ko kaha ki ‘vaham gochari lene ke lie mata jana. Kyomki vaha ahara adhakarmi hai.’ kuchha sadhu vaham ahara lene ke lie na gae, lekina kisi kula mem se gochari le ae. Jaba kuchha sadhu ne acharya ke vachana ki parava na ki aura vaha ahara lakara khaya. Jina sadhuomne acharya bhagavamta ka vachana sunakara vaha adhakarmi ahara na liya, vo sadhu tirthamkara bhagavamta ki ajnya ke aradhaka bane aura paraloka mem mahasukha paya. Jaba ki jina sadhuom ne adhakarmi ahara khaya vo sadhu shri jineshvara bhagavamta ki ajnya ke viradhaka bane aura samsara ka vistara kiya. Isalie sadhuom ko nirdosha ara pani ki gaveshana karani chahie aura doshita ahara pani adi ka tyaga karana chahie. Kyomki nirdosha ahara adi ke grahana se samsara ka shighra anta hota hai. Grahana eshana do prakara se. Eka dravya, dusari bhava. Dravya grahana eshana – eka jamgala mem kuchha bamdara rahate the. Eka dina garmi mem phala, pana adi sukhe dekhakara bare bamdara ne socha ki dusare jamgala mem jae. Dusare achchhe jamgala ki jamcha karane ke lie alaga – alaga disha mem kuchha bamdarom ko bheja. Usa jamgala mem eka bara draha tha. Yaha dekhakara bamdara khusha ho gae. Bare bamdara ne usa draha ki charom ora jamcha – paratala ki, to usa draha mem jane ke pamva ke nishana dikhate the, lekina bahara ane ke nishana nahim dikhate the. Isalie bare bamdara ne sabhi bamdarom ko ikattha karake kaha ki, isa draha mem savadhana rahana. Kinare se ya draha mem jakara pani mata pina, likana poli nali ke dvara pani pina. Jo bamdarane bare bamdara ke kahane ke anusara kiya vo sukhi hue. Aura jo draha mem jakara pani pine ke lie gae vo mara gae. Isa prakara acharya bhagavamta mahotsava adi mem adhakarmi, uddeshika adi doshavale ahara adi ka tyaga karavate haim aura shuddha ahara grahana karavate haim. Jo sadhu acharya bhagavamta ke kahane ke anusara vyavahara karate haim, vo thore hi samaya mem sabhi karmo ka kshaya karate haim. Jo acharya bhagavamta ke vachana ke anusara vyavahara nahim karate vo kaim bhava mem janma, jara, marana adi ke duhkha pate haim. Bhava grahana eshana ke gyaraha prakara – sthana, dayaka, gamana, grahana, agamana, prapta, paravrita, patita, guruka, trividha bhava. Sthana – tina prakara ke atma upaghatika, pravachana upaghatika, samyama upaghatika. Dayaka – atha varsha se kama umra ka bachcha, vriddha, naukara, napumsaka, pagala, krodhita adi se bhiksha grahana mata karana. Gamana – bhiksha denevale, bhiksha lene ke lie bhitara jae, to usa para niche ki jamim evam asapasa bhi na dekhe. Yadi vo jate hue prithvi, pani, agni adi ka samghatta karata ho to bhiksha grahana mata karana. Grahana – chhota, nicha dvara ho, jaham achchhi prakara dekha sakate na ho, alamari bamdha ho, daravaja bamdha ho, kaim loga ate – jate ho, bailagari adi pare ho, vaham bhiksha grahana mata karana. Agamana – bhiksha lekara anevale grihastha prithvi adi ki viradhana karate hue a rahe ho to bhiksha grahana mata karana. Prapta – kachcha pani, samsakta ya gila ho to bhiksha grahana nahim karani chahie. Paravarta – ahara adi dusare baratana mem rale to usa baratana ko kachcha pani adi laga ho to usa baratana mem se ahara grahana nahim karana chahie. Patita ahara patra mem grahana karane ke bada jamcha karani chahie. Yogavala pimra hai ya svabhavika, vo dekho. Guruka – bare ya bhari bhajana se bhiksha grahana nahim karani chahie. Trividha – kala tina prakara se. Grishma, hemamta aura varshakala. Evam denevale tina prakara se – stri, purusha aura napumsaka. Una haraeka mem taruna, madhyama aura sthavira. Napumsaka shita hote haim, stri ushmavali hoti hai aura purusha shitoshna hote haim. Unamem purahkarma, udakardra, sasnigdha tina hote haim. Vo haraeka sachitta, achitta aura mishra tina prakara se haim. Purahkarma aura udakardra mem bhiksha grahana nahim karani chahie. Sasnigdha mem yani mishra aura sachitta panivale hatha hom, usa hatha ki umgaliyam, rekha aura hatheli yadi sukhe ho to bhiksha grahana kiya jae. Bhava – laukika aura lokottara, donom mem prashasta aura aprashasta. Grasa eshana – bayalisa dosha rahita shuddha ahara grahana karake, jamcha karake, vidhivat upashraya mem akara, vidhivat gochari ki alochana kare. Phira muhurtta taka svadhyaya adi karake, acharya, praghurnaka, tapasvi, bala, vriddha adi ko nimamtrana karake asakti bina vidhivat ahara khae. Ahara shuddha hai ya nahim usaki jamcha kare vo gaveshana eshana. Usamem dosha na lage usa prakara ahara grahana karana yani grahana eshana. Aura dosha na lage usa prakara se khae use grasa eshana kahate haim. Samyojana – vo dravya samyojana aura bhava samyojana aise do prakara se haim. Yani udgama utpadana adi dosha kauna – kauna se haim, vo janakara talane ki gaveshana kare, ahara grahana karane ke bada samyojana adi dosha na lage aise ahara khae vo uddesha hai. Pramana – ahara kitana khana usaka pramana. Amgara – achchhe ahara ki ya ahara banane vale ki prashamsa karana. Dhrumra – bure ahara ki ya ahara bananevale ki nimda karana. Karana – kisa karana se ahara khana aura kisa karana se na khae\? Pimra – niryukti ke yaha atha dvara haim. Usaka kramasara bayana kiya jaega. Sutra – 1–14