Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )

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Sr No : 1018083
Scripture Name( English ): Mahanishith Translated Scripture Name : महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Translated Chapter :

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 1383 Category : Chheda-06
Gatha or Sutra : Gatha Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [गाथा] वज्जेंतो बीय-हरीयाइं, पाणे य दग-मट्टियं। उववायं विसमं खाणुं रन्नो गिहवईणं च॥
Sutra Meaning : ऐसे करते हुए भिक्षा का समय आ पहुँचा। हे गौतम ! इस अवसर पर पिंड़ेसणा – शास्त्र में बताए विधि से दीनता रहित मनवाला भिक्षु बीज और वनस्पतिकाय, पानी, कीचड़, पृथ्वीकाय को वर्जते, राजा और गृहस्थ की ओर से होनेवाले विषम उपद्रव – कदाग्रही को छोड़नेवाला, शंकास्थान का त्याग करनेवाला, पाँच समिति, तीन गुप्ति में उपयोगवाला, गोचरचर्या में प्राभृतिक नाम के दोषवाली भिक्षा का वर्जन न करे तो उसको चोथभक्त प्रायश्चित्त। यदि वो उपवासी न हो तो स्थापना कुल में प्रवेश करे तो उपवास, जल्दबाझी में प्रतिकूल चीज ग्रहण करने के बाद तुरन्त ही निरुपद्रव स्थान में न परठवे तो उपवास, अकल्प्य चीज भिक्षा में ग्रहण करने के बाद यथा – योग्य उपवास आदि, कल्प्य चीज का प्रतिबंध करे तो उपस्थापन, गोचरी लेने के लिए नीकला भिक्षु बाते – विकथा की प्रस्तावना करे, उदीरणा करे, कहने लगे, सुने तो छठ्ठ प्रायश्चित्त, गोचरी करके वापस आने के बाद लाए गए आहार, पानी, औषध जिसने दिए हों, जिस तरह ग्रहण किया हो, उसके अनुसार और उस क्रम से न आलोवे तो पुरिमड्ढ, इरिय० प्रतिक्रमे बिना चावल – पानी न आलोवे, तो पुरिमड्ढ, रजयुक्त पाँव का प्रमार्जन किए बिना इरिया प्रतिक्रमे तो पुरिमड्ढ, इरिया० पड़िक्कमने की ईच्छावाले पाँव के नीचे की भूमि के हिस्से की तीन बार प्रमार्जन न करे तो नीवी, कान तक और होठ पर मुहपत्ति रखे बिना इरिया प्रतिक्रमे तो मिच्छामि दुक्कडम्‌ और पुरिमड्ढ। सज्झाय परठवते – गोचरी आलोवते धम्मो मंगलम्‌ की गाथा का परावर्तन किए बिना चैत्य और साधु को वन्दे बिना पच्चक्खाण पूरे करे तो पुरिमड्ढ, पच्चक्खाण पूरे किए बिना भोजन, पानी या औषध का परिभोग करे तो चोथभक्त, गुरु के सन्मुख पच्चक्खाण न पारे तो, उपयोग न करे, प्राभृतिक न आलोवे, सज्झाय न परठवे, इस हर एक प्रस्थापन में, गुरु भी शिष्य की और उपयोगवाले न बने तो उनको पारंचित प्रायश्चित्त, साधर्मिक, साधु को गोचरी में से आहारादिक दिए बिना भक्ति किए बिना कुछ आहारादिक परिभोग करे तो छठ्ठ, भोजन करते, परोंसते यदि नीचे गिर जाए तो छठ्ठ, कटु, तीखे, कषायेल, खट्टे, मधुर, खारे रस का आस्वाद करे, बार – बार आस्वाद करके वैसे स्वादवाले भोजन करे तो चोथ भक्त, वैसे स्वादिष्ट रस में राग पाए तो खमण या अठ्ठम, काऊस्सग्ग किए बिना विगइ का इस्तमाल करे तो पाँच आयंबिल, दो विगइ से ज्यादा विगइ का इस्तमाल करे तो पाँच निर्विकृतिक, निष्कारण विगइ का इस्तमाल करे तो अठ्ठम, ग्लान के लिए अशन, पान, पथ्य, अनुपान ही आए हो और बिना दिया गया इस्तमाल करे तो पारंचित। ग्लान की सेवा – मावजत किए बिना भोजन करे तो उपस्थापन, अपने – अपने सारे कर्तव्य का त्याग करके ग्लान के कार्य का आलम्बन लेकर अपने कर्तव्य में प्रमाद का सेवन करे तो वो अवंदनीय, ग्लान के उचित जो करने लायक कार्य न कर दे तो अठ्ठम, ग्लान, बुलाए और एक शब्द बोलने के साथ तुरन्त जाकर जो आज्ञा दे उसका अमल न करे तो पारंचित, लेकिन यदि वो ग्लान साधु स्वस्थ चित्तवाला हो तो। यदि सनेपात आदि कारण से भ्रमित मानसवाले हो तो उस ग्लान से कहा हो वैसा न करना हो। उसके उचित हितकारी जो होता हो वो ही करना, ग्लान के कार्य न करे उसे संघ के बाहर नीकालना। आधाकर्म, औदेशिक, पूर्तिकर्म, मिश्रजात, स्थापना, प्राभृतिका, प्रादुष्करण, क्रीत, प्रामित्यक, अभ्याहृत, उद्‌भिन्न, मालोपहृत, आछेद्य, अनिसृष्ट, अध्यवपुरक, धात्री, दुत्ति, निमित्त, आजीवक, वनीपक, चिकित्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, पूर्वपश्चात्‌ संस्तव, विद्या, मंत्र, चूर्ण, योग, मूल कर्मशक्ति, म्रक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संहृत, दायक, उद्‌भिन्न, अपरिणत, लिप्त, छर्दित, इन बियालीश आहार के दोष में से किसी भी दोष से दुषित आहारपानी औषध का परिभोग करे तो यथायोग्य क्रमिक उपवास, आयंबिल का प्रायश्चित्त देना। छ कारण के गैरमोजुदगी में भोजन करे तो अठ्ठम, धुम्रदोष और अंगार दोषयुक्त, आहार का भोगवटा करे तो उपस्थापन, अलग – अलग आहार या स्वादवाले संयोग करके जिह्वा के स्वाद के पोषण के लिए भोजन करे तो आयंबिल और बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम होने के बावजूद अष्टमी, चतुर्दशी, ज्ञानपंचमी, पर्युषणा धोकर पानी न पीए तो चऊत्थ, पात्रा धोए हुए पानी परठवे तो दुवालस, पात्रा, मात्रक, तरपणी या किसी भी तरह के भाजन उपकरण को गीलापन दूर करके सूखाकर चिकनाइवाले या चिकनाइ रहित बिना साफ किए स्थापित करके रखे तो चोथभक्त, पात्रबाँध की गठान न छोड़े, उसकी पड़िलेहणा न करे तो चोथ भक्त। भोजन मंड़ली में हाथ धोए, उसके पानी में पाँव का संघट्टा करके चले, भोजन करने की जगह साफ करके दंड़पुच्छणक से काजा न ले तो नीवी, भोजन मांड़ली के स्थान में जगह साफ करके काजा इकट्ठा करके इरिया न प्रतिक्रमे तो नीवी। उस प्रकार इरियावही कह कर बाकी रहे दिन का यानि तिविहार या चोविहार का प्रत्याख्यान न करे तो आयंबिल गुरु के समक्ष वो पच्चक्खाण न करे तो पुरिमड्ढ, अविधि से पच्चक्खाण करे तो आयंबिल, पच्चक्खाण करने के बाद चैत्य और साधु को न वांदे तो पुरिमड्ढ, कुशील को वंदन करे तो अवंदनीय, उसके बाद के संयम में बाहर ठंड़िल भूमि पर जाने के लिए पानी लेने के लिए जाए, बड़ी नीति करके वापस आए तो उस वक्त कुछ न्यून तीसरी पोरिसी पूर्ण बने। उसमें भी इरियावही प्रतिक्रम करके विधि से गमनागमन की आलोचना करके पात्रा, मात्रक आदि भाजन और उपकरण व्यवस्थित करे तब तीसरी पोरिसी अच्छी तरह से पूर्ण बने। इस प्रकार तीसरी पोरिसी बीत जाने के बाद हे गौतम ! जो भिक्षु उपधि और स्थंड़िल विधिवत्‌ गुरु के सन्मुख संदिसाऊं – ऐसे आज्ञा माँगकर पानी पीने के भी पच्चक्खाण लेकर काल वक्त तक स्वाध्याय न करे उसे छठ्ठ प्रायश्चित्त समझना। इस प्रकार कालवेला आ पहुँचे तब गुरु की उपधि और स्थंड़िल, वंदन, प्रतिक्रमण, सज्झाय, मंड़ली आदि वसति की प्रत्युपेक्षणा करके समाधिपूर्वक चित्त के विक्षेप बिना संयमित होकर अपनी उपधि और स्थंड़िल की प्रत्युपेक्षणा करके गोचर चरित और काल प्रतिक्रम करके गोचरचर्या घोषणा करके उसके बाद दैवसिक अतिचार से विशुद्धि निमित्त काऊसग्ग करे। इस हरएक में क्रमिक उपस्थापन पुरिमड्ढ एकासन और उपस्थापना प्रायश्चित्त जानना। इसके अनुसार काऊसग्ग करके मुहपत्ति की प्रतिलेखना करके विधिवत्‌ गुरु महाराज को कृतिकर्म वंदन करके सूर्योदय से लेकर किसी भी स्थान में जैसे कि बैठते, जाते, चलते, घूमते, जल्दबाझी करते, पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति, हरियाली, तृण, बीज, पुष्प, फूल, कुपल – अंकुर, प्रवाल, पात्र, दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रिय वाले जीव का संघट्ट, परितापन, किलामणा, उपद्रव आदि किए हों और तीन गुप्ति, चार कषाय, पाँच महाव्रत, छ जीवनीकाय, सात तरह के पानी और आहारादिक की एषणा, आँठ प्रवचनमाता, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्ति, दश तरह का श्रमणधर्म, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की जिस खंड़ से विराधना हुए हो उसकी नींदा, गर्हा, आलोचना, प्रायश्चित्त करके एकाग्र मानस से सूत्र, अर्थ और तदुभय को काफी भानेवाला उसके अर्थ सोचनेवाला, प्रतिक्रमण न करे तो उपस्थापन, ऐसा करते – करते सूरज का अस्त हुआ। चैत्य को वंदन किए बिना प्रतिक्रमण करे तो चोथ भक्त। प्रतिक्रमण करने के बाद रात को विधि सहित बिलकूल कम वक्त नहीं ऐसे प्रथम पहोर में स्वाध्याय न करे तो दुवालस, प्रथम पोरिसी पूर्ण होने से पहले, संथारो करने की विधि से आज्ञा माँगे तो छठ्ठ, संदिसाए बिना संथारा करके सो जाए तो चऊत्थ, प्रत्युपेक्षणा किए बिना संथारा करे तो दुवालस, अविधि से संथारा करे तो चऊत्थ, उत्तरपट्टा बिना संथारो करे तो चऊत्थ, दो पड़ का संथारो करे तो चऊत्थ, बीच में जगहवाला, डोरवाली खटियाँ में, नीचे गर्म हो वैसी खटियाँ में बिस्तर में संथारो करे तो १०० आयंबिल, सर्व श्रमणसंघ, सर्व साधर्मिक और सर्व जीवराशि के तमाम जीव को सर्व तरह के भाव से त्रिविध – त्रिविध से न खमाए, क्षमापना न दे और चैत्य की वंदना न की हो, गुरु के चरणकमल में उपधि देह आहारादिक के सागर पच्चक्खाण किए बिना कान के छिद्र में कपास की रूई लगाए बिना संथारा में बैठे तो हरएक में उपस्थापन, संथारा में बैठने के बाद यह धर्म – शरीर को गुरु परम्परा से प्राप्त इस ‘श्रेष्ठ मंत्राक्षर’ से दश दिशा में साँप, शेर, दुष्ट प्रान्त, हलके वाणमंतर, पिशाच आदि से रक्षा न करे तो उपस्थापन, दश दिशा में रक्षा करके बारह भावना भाखे बिना सो जाए तो पच्चीस आयंबिल। एक ही निद्रा पूर्ण करके जानकर इरियावही पड़िक्कमके प्रतिक्रमण के वक्त तक स्वाध्याय न करे तो दुवालस, सोने के बाद दुःस्वप्न या कुःस्वप्न आ जाए तो सौ साँस प्रमाण काऊसग्ग करना। रात में छींक या खाँसी खाए, खटिया, बिस्तर या दंड़ खिसके या आवाज करे तो खमण। दिन या रात को हँसी, क्रीड़ा, कंदर्प, नाथवाद करे तो उपस्थापन। उस तरह से जो भिक्षु सूत्र का अतिक्रमण करके आवश्यक करे तो हे गौतम ! कारणवाले को मिच्छामि दुक्कडम्‌ प्रायश्चित्त देना। जो अकारणिक हो उसे तो यथायोग्य चऊत्थ आदि प्रायश्चित्त कहना, जो भिक्षु शब्द करे, करवाए, गहरे या अगाढ़ शब्द से आवाज लगाए वो हरएक स्थानक में हरएक का हरएक पद में यथायोग्य रिश्ता जुड़कर प्रायश्चित्त देना। उस अनुसार जो भिक्षु अप्‌काय, अग्निकाय या स्त्री के शरीर के अवयव का संघट्टो करे लेकिन भुगते नहीं तो उसे २५ आयंबिल देना, और जो स्त्री को भुगते उस दुरन्त प्रान्त लक्षणवाले का मुँह भी मत देखना। ऐसे उस महापाप कर्म कर्ता को पारंचित प्रायश्चित्त। अब यदि वो महातपस्वी हो ७० मासक्षपण, १०० अधर्ममासक्षपण, १०० दुवालस, १०० चार उपवास, १०० अठ्ठम, १०० छठ्ठ, १०० उपवास, १०० आयंबिल, १०० एकाशन, १०० शुद्ध आचाम्ल, एकाशन (जिसमें लूण मरि या कुछ भी मिश्र न किया हो), १०० निर्विकृतिक, यावत्‌ उलट सूलट क्रम से प्रायश्चित्त बताना। यह दिया गया प्रायश्चित्त जो भिक्षु विसामा रहित पार लगाए उसे नजदीकी समय में आगे आनेवाला समझना। सूत्र – १३८३, १३८४
Mool Sutra Transliteration : [gatha] vajjemto biya-hariyaim, pane ya daga-mattiyam. Uvavayam visamam khanum ranno gihavainam cha.
Sutra Meaning Transliteration : Aise karate hue bhiksha ka samaya a pahumcha. He gautama ! Isa avasara para pimresana – shastra mem batae vidhi se dinata rahita manavala bhikshu bija aura vanaspatikaya, pani, kichara, prithvikaya ko varjate, raja aura grihastha ki ora se honevale vishama upadrava – kadagrahi ko chhoranevala, shamkasthana ka tyaga karanevala, pamcha samiti, tina gupti mem upayogavala, gocharacharya mem prabhritika nama ke doshavali bhiksha ka varjana na kare to usako chothabhakta prayashchitta. Yadi vo upavasi na ho to sthapana kula mem pravesha kare to upavasa, jaldabajhi mem pratikula chija grahana karane ke bada turanta hi nirupadrava sthana mem na parathave to upavasa, akalpya chija bhiksha mem grahana karane ke bada yatha – yogya upavasa adi, kalpya chija ka pratibamdha kare to upasthapana, gochari lene ke lie nikala bhikshu bate – vikatha ki prastavana kare, udirana kare, kahane lage, sune to chhaththa prayashchitta, gochari karake vapasa ane ke bada lae gae ahara, pani, aushadha jisane die hom, jisa taraha grahana kiya ho, usake anusara aura usa krama se na alove to purimaddha, iriya0 pratikrame bina chavala – pani na alove, to purimaddha, rajayukta pamva ka pramarjana kie bina iriya pratikrame to purimaddha, iriya0 parikkamane ki ichchhavale pamva ke niche ki bhumi ke hisse ki tina bara pramarjana na kare to nivi, kana taka aura hotha para muhapatti rakhe bina iriya pratikrame to michchhami dukkadam aura purimaddha. Sajjhaya parathavate – gochari alovate dhammo mamgalam ki gatha ka paravartana kie bina chaitya aura sadhu ko vande bina pachchakkhana pure kare to purimaddha, pachchakkhana pure kie bina bhojana, pani ya aushadha ka paribhoga kare to chothabhakta, guru ke sanmukha pachchakkhana na pare to, upayoga na kare, prabhritika na alove, sajjhaya na parathave, isa hara eka prasthapana mem, guru bhi shishya ki aura upayogavale na bane to unako paramchita prayashchitta, sadharmika, sadhu ko gochari mem se aharadika die bina bhakti kie bina kuchha aharadika paribhoga kare to chhaththa, bhojana karate, paromsate yadi niche gira jae to chhaththa, katu, tikhe, kashayela, khatte, madhura, khare rasa ka asvada kare, bara – bara asvada karake vaise svadavale bhojana kare to chotha bhakta, vaise svadishta rasa mem raga pae to khamana ya aththama, kaussagga kie bina vigai ka istamala kare to pamcha ayambila, do vigai se jyada vigai ka istamala kare to pamcha nirvikritika, nishkarana vigai ka istamala kare to aththama, glana ke lie ashana, pana, pathya, anupana hi ae ho aura bina diya gaya istamala kare to paramchita. Glana ki seva – mavajata kie bina bhojana kare to upasthapana, apane – apane sare kartavya ka tyaga karake glana ke karya ka alambana lekara apane kartavya mem pramada ka sevana kare to vo avamdaniya, glana ke uchita jo karane layaka karya na kara de to aththama, glana, bulae aura eka shabda bolane ke satha turanta jakara jo ajnya de usaka amala na kare to paramchita, lekina yadi vo glana sadhu svastha chittavala ho to. Yadi sanepata adi karana se bhramita manasavale ho to usa glana se kaha ho vaisa na karana ho. Usake uchita hitakari jo hota ho vo hi karana, glana ke karya na kare use samgha ke bahara nikalana. Adhakarma, audeshika, purtikarma, mishrajata, sthapana, prabhritika, pradushkarana, krita, pramityaka, abhyahrita, udbhinna, malopahrita, achhedya, anisrishta, adhyavapuraka, dhatri, dutti, nimitta, ajivaka, vanipaka, chikitsa, krodha, mana, maya, lobha, purvapashchat samstava, vidya, mamtra, churna, yoga, mula karmashakti, mrakshita, nikshipta, pihita, samhrita, dayaka, udbhinna, aparinata, lipta, chhardita, ina biyalisha ahara ke dosha mem se kisi bhi dosha se dushita aharapani aushadha ka paribhoga kare to yathayogya kramika upavasa, ayambila ka prayashchitta dena. Chha karana ke gairamojudagi mem bhojana kare to aththama, dhumradosha aura amgara doshayukta, ahara ka bhogavata kare to upasthapana, alaga – alaga ahara ya svadavale samyoga karake jihva ke svada ke poshana ke lie bhojana kare to ayambila aura bala, virya, purushakara, parakrama hone ke bavajuda ashtami, chaturdashi, jnyanapamchami, paryushana dhokara pani na pie to chauttha, patra dhoe hue pani parathave to duvalasa, patra, matraka, tarapani ya kisi bhi taraha ke bhajana upakarana ko gilapana dura karake sukhakara chikanaivale ya chikanai rahita bina sapha kie sthapita karake rakhe to chothabhakta, patrabamdha ki gathana na chhore, usaki parilehana na kare to chotha bhakta. Bhojana mamrali mem hatha dhoe, usake pani mem pamva ka samghatta karake chale, bhojana karane ki jagaha sapha karake damrapuchchhanaka se kaja na le to nivi, bhojana mamrali ke sthana mem jagaha sapha karake kaja ikattha karake iriya na pratikrame to nivi. Usa prakara iriyavahi kaha kara baki rahe dina ka yani tivihara ya chovihara ka pratyakhyana na kare to ayambila guru ke samaksha vo pachchakkhana na kare to purimaddha, avidhi se pachchakkhana kare to ayambila, pachchakkhana karane ke bada chaitya aura sadhu ko na vamde to purimaddha, kushila ko vamdana kare to avamdaniya, usake bada ke samyama mem bahara thamrila bhumi para jane ke lie pani lene ke lie jae, bari niti karake vapasa ae to usa vakta kuchha nyuna tisari porisi purna bane. Usamem bhi iriyavahi pratikrama karake vidhi se gamanagamana ki alochana karake patra, matraka adi bhajana aura upakarana vyavasthita kare taba tisari porisi achchhi taraha se purna bane. Isa prakara tisari porisi bita jane ke bada he gautama ! Jo bhikshu upadhi aura sthamrila vidhivat guru ke sanmukha samdisaum – aise ajnya mamgakara pani pine ke bhi pachchakkhana lekara kala vakta taka svadhyaya na kare use chhaththa prayashchitta samajhana. Isa prakara kalavela a pahumche taba guru ki upadhi aura sthamrila, vamdana, pratikramana, sajjhaya, mamrali adi vasati ki pratyupekshana karake samadhipurvaka chitta ke vikshepa bina samyamita hokara apani upadhi aura sthamrila ki pratyupekshana karake gochara charita aura kala pratikrama karake gocharacharya ghoshana karake usake bada daivasika atichara se vishuddhi nimitta kausagga kare. Isa haraeka mem kramika upasthapana purimaddha ekasana aura upasthapana prayashchitta janana. Isake anusara kausagga karake muhapatti ki pratilekhana karake vidhivat guru maharaja ko kritikarma vamdana karake suryodaya se lekara kisi bhi sthana mem jaise ki baithate, jate, chalate, ghumate, jaldabajhi karate, prithvi, pani, agni, vayu, vanaspati, hariyali, trina, bija, pushpa, phula, kupala – amkura, pravala, patra, do, tina, chara, pamcha indriya vale jiva ka samghatta, paritapana, kilamana, upadrava adi kie hom aura tina gupti, chara kashaya, pamcha mahavrata, chha jivanikaya, sata taraha ke pani aura aharadika ki eshana, amtha pravachanamata, nau brahmacharya ki gupti, dasha taraha ka shramanadharma, jnyana, darshana, charitra ki jisa khamra se viradhana hue ho usaki nimda, garha, alochana, prayashchitta karake ekagra manasa se sutra, artha aura tadubhaya ko kaphi bhanevala usake artha sochanevala, pratikramana na kare to upasthapana, aisa karate – karate suraja ka asta hua. Chaitya ko vamdana kie bina pratikramana kare to chotha bhakta. Pratikramana karane ke bada rata ko vidhi sahita bilakula kama vakta nahim aise prathama pahora mem svadhyaya na kare to duvalasa, prathama porisi purna hone se pahale, samtharo karane ki vidhi se ajnya mamge to chhaththa, samdisae bina samthara karake so jae to chauttha, pratyupekshana kie bina samthara kare to duvalasa, avidhi se samthara kare to chauttha, uttarapatta bina samtharo kare to chauttha, do para ka samtharo kare to chauttha, bicha mem jagahavala, doravali khatiyam mem, niche garma ho vaisi khatiyam mem bistara mem samtharo kare to 100 ayambila, sarva shramanasamgha, sarva sadharmika aura sarva jivarashi ke tamama jiva ko sarva taraha ke bhava se trividha – trividha se na khamae, kshamapana na de aura chaitya ki vamdana na ki ho, guru ke charanakamala mem upadhi deha aharadika ke sagara pachchakkhana kie bina kana ke chhidra mem kapasa ki rui lagae bina samthara mem baithe to haraeka mem upasthapana, samthara mem baithane ke bada yaha dharma – sharira ko guru parampara se prapta isa ‘shreshtha mamtrakshara’ se dasha disha mem sampa, shera, dushta pranta, halake vanamamtara, pishacha adi se raksha na kare to upasthapana, dasha disha mem raksha karake baraha bhavana bhakhe bina so jae to pachchisa ayambila. Eka hi nidra purna karake janakara iriyavahi parikkamake pratikramana ke vakta taka svadhyaya na kare to duvalasa, sone ke bada duhsvapna ya kuhsvapna a jae to sau samsa pramana kausagga karana. Rata mem chhimka ya khamsi khae, khatiya, bistara ya damra khisake ya avaja kare to khamana. Dina ya rata ko hamsi, krira, kamdarpa, nathavada kare to upasthapana. Usa taraha se jo bhikshu sutra ka atikramana karake avashyaka kare to he gautama ! Karanavale ko michchhami dukkadam prayashchitta dena. Jo akaranika ho use to yathayogya chauttha adi prayashchitta kahana, jo bhikshu shabda kare, karavae, gahare ya agarha shabda se avaja lagae vo haraeka sthanaka mem haraeka ka haraeka pada mem yathayogya rishta jurakara prayashchitta dena. Usa anusara jo bhikshu apkaya, agnikaya ya stri ke sharira ke avayava ka samghatto kare lekina bhugate nahim to use 25 ayambila dena, aura jo stri ko bhugate usa duranta pranta lakshanavale ka mumha bhi mata dekhana. Aise usa mahapapa karma karta ko paramchita prayashchitta. Aba yadi vo mahatapasvi ho 70 masakshapana, 100 adharmamasakshapana, 100 duvalasa, 100 chara upavasa, 100 aththama, 100 chhaththa, 100 upavasa, 100 ayambila, 100 ekashana, 100 shuddha achamla, ekashana (jisamem luna mari ya kuchha bhi mishra na kiya ho), 100 nirvikritika, yavat ulata sulata krama se prayashchitta batana. Yaha diya gaya prayashchitta jo bhikshu visama rahita para lagae use najadiki samaya mem age anevala samajhana. Sutra – 1383, 1384