Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017102 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
Translated Chapter : |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
Section : | उद्देशक-३ | Translated Section : | उद्देशक-३ |
Sutra Number : | 402 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] (२) एवं तु गोयमा जीए इत्थीए-ति कालं पुरिससंजोग-संपत्ती न संजाया। अहा णं पुरिस-संजोग-संपत्तीए वि साहीणाए जाव णं तेरसमे चोद्दसमे पन्नरसमे णं च समएणं पुरिसेणं सद्धिं न संजुत्ता नो वियम्मं समायरियं, (३) से णं, जहा घन-कट्ठ-तण-दारु-समिद्धे केई गामे इ वा नगरे इ वा, रन्ने इ वा, संपलित्ते चंडानिल-संधुक्किए पयलित्ताणं पय-लित्ताणं णिडज्झिय निडज्झिय चिरेणं उवसमेज्जा (४) एवं तु णं गोयमा से इत्थी कामग्गी संपलित्ता समाणी णिडज्झिय-निडज्झिय समय-चउक्केणं उवसमेज्जा (५) एवं इगवीसमे वावीसमे जाव णं सत्ततीसइमे समए जहा णं पदीव-सिहा वावण्णा पुन-रवि सयं वा तहाविहेणं चुन्न-जोगेणं वा पयलिज्जा वा। एवं सा इत्थी-पुरिस-दंसणेण वा पुरिसा-लावग-सवणेण वा मदेणं कंदप्पेणं कामग्गिए पुनरवि उ पयलेज्जा॥ | ||
Sutra Meaning : | हे गौतम ! उसी तरह जिस स्त्री को तीन काल पुरुष संयोग की प्राप्ति नहीं हुई। पुरुष संयोग संप्राप्ति स्वाधीन होने के बावजूद भी तेरहवे – चौदहवे, पंद्रहवे समय में भी पुरुष के साथ मिलाप न हुआ। यानि संभोग कार्य आचरण न किया। तो जिस तरह कईं काष्ठ लकड़े, ईंधण से भरे किसी गाँव, नगर या अरण्य में अग्नि फैल उठा और उस वक्त प्रचंड़ पवन फेंका गया तो अग्नि विशेष प्रदीप्त हुआ। जला – जलाकर लम्बे अरसे के बाद वो अग्नि अपने – आप बुझकर शान्त हो जाए। उस प्रकार हे गौतम ! स्त्री का कामाग्नि प्रदीप्त होकर वृद्धि पाते हैं। लेकिन चौथे वक्त शान्त हो उस मुताबिक इक्कीसवे, बाईसवे यावत् सत्ताईसवे समय में शान्त बने, जिस तरह दीए की शिखा अदृश्य दिखे लेकिन फिर तेल ड़ालने से अगर अपने आप अगर उस तरह के चूर्ण के योग से वापस प्रकट होकर चलायमान होकर जलने लगे। उसी तरह स्त्री भी पुरुष के दर्शन से या पुरुष के साथ बातचीत करने से उसके आकर्षण से, मद से, कंदर्प से उसके कामाग्नि से सतेज होती है। फिर से भी जागृत होती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] (2) evam tu goyama jie itthie-ti kalam purisasamjoga-sampatti na samjaya. Aha nam purisa-samjoga-sampattie vi sahinae java nam terasame choddasame pannarasame nam cha samaenam purisenam saddhim na samjutta no viyammam samayariyam, (3) se nam, jaha ghana-kattha-tana-daru-samiddhe kei game i va nagare i va, ranne i va, sampalitte chamdanila-samdhukkie payalittanam paya-littanam nidajjhiya nidajjhiya chirenam uvasamejja (4) evam tu nam goyama se itthi kamaggi sampalitta samani nidajjhiya-nidajjhiya samaya-chaukkenam uvasamejja (5) evam igavisame vavisame java nam sattatisaime samae jaha nam padiva-siha vavanna puna-ravi sayam va tahavihenam chunna-jogenam va payalijja va. Evam sa itthi-purisa-damsanena va purisa-lavaga-savanena va madenam kamdappenam kamaggie punaravi u payalejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He gautama ! Usi taraha jisa stri ko tina kala purusha samyoga ki prapti nahim hui. Purusha samyoga samprapti svadhina hone ke bavajuda bhi terahave – chaudahave, pamdrahave samaya mem bhi purusha ke satha milapa na hua. Yani sambhoga karya acharana na kiya. To jisa taraha kaim kashtha lakare, imdhana se bhare kisi gamva, nagara ya aranya mem agni phaila utha aura usa vakta prachamra pavana phemka gaya to agni vishesha pradipta hua. Jala – jalakara lambe arase ke bada vo agni apane – apa bujhakara shanta ho jae. Usa prakara he gautama ! Stri ka kamagni pradipta hokara vriddhi pate haim. Lekina chauthe vakta shanta ho usa mutabika ikkisave, baisave yavat sattaisave samaya mem shanta bane, jisa taraha die ki shikha adrishya dikhe lekina phira tela ralane se agara apane apa agara usa taraha ke churna ke yoga se vapasa prakata hokara chalayamana hokara jalane lage. Usi taraha stri bhi purusha ke darshana se ya purusha ke satha batachita karane se usake akarshana se, mada se, kamdarpa se usake kamagni se sateja hoti hai. Phira se bhi jagrita hoti hai. |