Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )

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Sr No : 1017087
Scripture Name( English ): Mahanishith Translated Scripture Name : महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

Translated Chapter :

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

Section : उद्देशक-३ Translated Section : उद्देशक-३
Sutra Number : 387 Category : Chheda-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं नो इत्थीणं निज्झाएज्जा। नो नमालवेज्जा। नो णं तीए सद्धिं परिवसेज्जा। नो णं अद्धाणं पडिवज्जेज्जा (२) गोयमा सव्व-प्पयारेहि णं सव्वित्थीयं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधुक्किज्जमाणी कामग्गिए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जइ। (३) तओ सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थियं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधु-क्किज्जमाणी कामग्गीए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जमाणी, अनुसमयं सव्व-दिसि-विदिसासुं णं सव्वत्थ विसए पत्थेज्जा (४) जावं णं सव्वत्थ-विसए पत्थेज्जा, ताव णं सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थ सव्वहा पुरिसं संकप्पिज्जा, (५) जाव णं पुरिसं संकप्पेज्जा, ताव णं सोइंदियोवओगत्ताए, चक्खुरिंदिओवओगत्ताए रसनिंदिओ-वओगत्ताए, घाणिंदिओवओगत्ताए, फासिंदिओवओ-गत्ताए। जत्थ णं केइ पुरीसे (६) कंत-रूवे इ वा, अकंत-रुवे इ वा, पडुप्पन्नजोव्वणे इ वा, अपडुप्पन्न-जोव्वणे इ वा, गय-जोव्वणे इ वा, दिट्ठ-पुव्वे इ वा, अदिट्ठ-पुव्वे इ वा, इड्ढिमंते इ वा, अनिड्ढिमंते इ वा, इड्ढिपत्ते इ वा, अनिड्ढी पत्ते इ वा, विसयाउरे इ वा, निव्विन्न-कामभोगे इ वा, उद्धय-बोंदीए इ वा, अनुद्धयबोंदीए इ वा, महासत्ते इ वा, हीन-सत्ते इ वा, महा-पुरिसे इ वा, कापुरिसे इ वा, समणे इ वा, माहणे इ वा, अन्नयरे इ वा, निंदियाहम-हीन-जाईए वा, (७) तत्थ णं इहा पोह-वीमंसं पउंजि-त्ताणं, जाव णं संजोग-संपत्तिं झाएज्जा (८) जाव णं संजोग-संपत्तिं परिकप्पे, ताव णं से चित्ते संखुद्दे भवेज्जा (९) जाव णं से चित्ते संखुद्दे भवेज्जा, ताव णं से चित्ते विसंवएज्जा (१०) जाव णं से चित्ते विसंवएज्जा, ताव णं से देहे मएणं अद्धासेज्जा (११) जाव णं से देहे मएणं अद्धासेज्जा, ताव णं से दरविदरे इह-परलोगावाए पम्हुसेज्जा, (१२) जाव णं से दर-विदरे इह-परलोगावाए पम्हुसेज्जा ताव णं चिच्चा लज्जं भयं अयसं अकित्तिं मेरं, उच्च-ठाणाओ नीय-ट्ठाणं ठाएज्जा, (१३) जाव णं उच्च-ठाणाओ नीय-ट्ठाणं ठाएज्जा ताव णं वच्चेज्जा असंखेयाओ समयावलियाओ (१४) जाव णं णीइंति असंखेज्जाओ समयावलियाओ, ताव णं जं पढमं समयाओ कम्मट्ठिइं तं बीयसमयं पडुच्चा, तइया दियाणं समयाणं संखेज्जं अनंतं वा अणुक्कमसो कम्मठिइं संचिणिज्जा (१५) जाव णं अनुकमसो अनंतं कम्मठिइं संचिणइ ताव णं असंखेज्जाइं अवसप्पिणी-ओसप्पिणी-कोडिलक्खाइं जावएणं कालेणं परिवत्तंति, तावइयं कालं दोसुं चेव निरयतिरिच्छासुं गतीसुं उक्कोस-ट्ठितीयं कम्मं आसंकलेज्जा। (१६) जाव णं उक्कोसट्ठितीयं कम्ममासंकलेज्जा ताव णं से विवन्न-जुइं विवन्न-कंतिं वियलिय- लावन्न-सिरीयं निन्नट्ठदित्ति-तेयं बोंदी भवेज्जा (१७) जाव णं चुय-कंति-लावन्न-सिरियं नित्तेय-बोंदी भवेज्जा, ताव णं से सीएज्जा फरिसिंदिए। जाव णं सीएज्जा फरिसिंदिए ताव णं सव्वट्ठा विवड्ढेज्जा सव्वत्थ चक्खुरागे। (१८) जाव णं सव्वत्थ विवड्ढेज्जा चक्खुरागे, ताव णं रागारुणे नयन-जुयले भवेज्जा (१९) जाव णं रागारुणे य नयनजुयले भवेज्जा ताव णं रागंधत्ताए, न गणेज्जा सुमहंत-गुरु-दोसे वयभंगे, न गणेज्जा सुमहंत-गुरु दोसे नियम-भंगे, न गणेज्जा सुमहंत-घोर-पाव-कम्म- समायरणं सील-खंडणं, न गणेज्जा सुमहंत-सव्व-गुरु-पाव-कम्म-समायरणं संजम-विराहणं (२०) न गणेज्जा घोरंधयारं पर-लोग-दुक्खभयं, न गणेज्जा आयई, न गणेज्जा सकम्म-गुणट्ठाणगं, न गणेज्जा ससुरासुरस्सा वि णं जगस्स अलंघणिज्जं आणं, न गणेज्जा अनंतहुत्तो चुलसीइ- जोणिलक्ख-परिवत्त-गब्भ-परंपरं, अलद्धणिमि-सद्ध-सोक्खं, चउगइ-संसार-दुक्खं। (२१) न पासिज्जा जं पासणिज्जं, न पासिज्जा, जं अपासणिज्जं, सव्व-जण-समूह-मज्झ- सन्निविट्ठट्ठियाणिवन्न-चक्कमिय-निरिक्खिज्जमाणी वा दिप्पंत-किरण-जाल-दस-दीसी-पयासिय -तवंत-तेयरासी-सूरिए वि तहा वि णं पासेज्जा सुन्नंधयारे सव्वे दिसा भाए (२२) जाव णं रागंध-त्ताए न गणेज्जा सुमहल्लगुरु-दोसे वय-भंगे नियम-भंगे सील-खडणे संजम- विराहणे परलोग-भए-आणा-भंगाइक्कमे अनंत-संसार-भए, पासेज्जा अपासणिज्जे, सव्व- जन-पयड-दिनयरे वि णं मन्निज्जा णं सुन्नंधयारे सव्वे दिसाभाए, [जाव णं भवे न गणेज्जा सुमहल्ल- गुरुदोसे वय-भंगे सील-खंडणिज्जा] ताव णं भवेज्जा अच्चंत-निब्भट्ठ-सोहग्गाइसए विच्छाए रागा-रुण-पंडुरे दुद्दंसणिज्जे अनिरिक्खणिज्जे वयण-कमले भवेज्जा (२३) जाव णं अच्चंत निब्भट्ठ-सोहग्गाइसए विच्छाए रागारुण-पंडुरे दुद्दंसणिज्जे अनिरिक्खणिज्जे वयण-कमले भवेज्जा ताव णं फुरुफुरेज्जा सणियं सणियं बोंद-पुड-नियंब-वच्छोरुह- बाहु-लइ-उरु-कंठ-पएसे। (२४) जाव णं फुरुफुरेंति बोंद-पुंड-नियंब-वच्छोरुह-बाहुलइ-उरु-कंठप्पएसे। ताव णं मोट्टायमाणी अंगपालियाहिं निरुवलक्खे वा सोवलक्खे वा भंजेज्जा सव्वंगोवंगे। (२५) जाव णं मोट्टायमाणी अंगपालियाहिं भंजेज्जा सव्वगोवंगे, ताव णं मयणसरसन्निवाएणं जज्जरियसंभिन्ने सव्वरोम-कूवे तणू भवेज्जा। (२६) जाव णं मयण-सर-सन्निवाएणं विद्धंसिए बोंदी भवेज्जा, ताव णं तहा परिणमेज्जा तणू जहा णं मनगं पयलंति धातूओ (२७) जाव णं मनगं पयलंति धातूओ, ताव णं अच्चत्थं वाहिज्जंति पोग्गल-नियंबोरु-बाहुलइयाओ। (२८) जाव णं अच्चत्थं वाहिज्जइ नियंबो ताव णं दुक्खेणं धरेज्जा गत्त-जट्ठिं, (२९) जाव णं दुक्खेणं धरेज्जा गत्त-यट्ठिं ताव णं से नोवलक्खेज्जा अत्तीयं सरीरावत्थं (३०) जाव णं नोवलक्खेज्जा अत्तीयं सरीरावत्थं, ताव णं दुवालसेहिं समएहिं दर-निच्चेट्ठं भवे बोंदी (३१) जाव णं दुवालसेहिं दर-निच्चेट्ठं भवे बोंदी, ताव णं पडिखलेज्जा से ऊसास-नीसासे। (३२) जाव णं पडिखलेज्जा ऊसास-नीसासे, ताव णं मंदं मंदं ऊससेज्जा मंदं मंदं नीससेज्जा, (३३) जाव णं एयाइं एत्तियाइं भावंतरं अवत्थंतराइं विहारेज्जा, ताव णं जहा महग्घत्थे केइ पुरिसे इ वा, इत्थि इ वा, विसुंठुलाए पिसायाए भारतीए असंबद्धं संलवियं विसंखुलंतं अव्वत्तं उल्लवेज्जा, (३४) एवं सिया णं इत्थीयं विसमावत्त-मोहण-मम्मणुल्लावेणं पुरिसे, (३५) दिट्ठ-पुव्वे इ वा, अदिट्ठ पुव्वे इ वा, कंतरूवे इ वा, अकंतरूवे इ वा, गय जोव्वणे इ वा, पडुप्पन्न-जोव्वणे इ वा, महासत्ते इ वा, हीनसत्ते इ वा, सप्पुरिसे इ वा, कापुरिसे इ वा, इड्ढिमंते इ वा, अनिड्ढिमंते इ वा, विसयाउरे इ वा, निव्विन्नकामभोगे इ वा, समणे इ वा, माहणे इ वा। जाव णं अन्नयरे वा केई निंदियाहम-नजाईए इ वा, (३६) अज्झत्थेणं ससज्झसेणं आमंतेमाणी उल्लावेज्जा, (३७) जाव णं संखेज्ज-भेदभिन्नेणं सरागेणं सरेणं दिट्ठिए इ वा पुरिसे उल्लावेज्जा निज्झाएज्ज वा, ताव णं जं तं असंखेज्जाइं अवसप्पिणी-ओसप्पिणी-कोडि-लक्खाइं दोसुं नरय-तिरिच्छासुं गतीसुं उक्कोस-ट्ठितीयं कम्मं आसंकलियं आसिओ तं निबंधेज्जा। नो णं बद्ध-पुट्ठं करेज्जा, (३८) से वि णं जं समयं पुरिसस्स न सरिरावयव-फरिसणाभिमुहं भवेज्जा नो णं फरिसेज्जा, तं समयं चेव तं कम्म-ठिइं बद्ध-पुट्ठं करेज्जा। नो णं बद्ध -पुट्ठ-निकायं ति।
Sutra Meaning : हे भगवंत ! आप ऐसा क्यों कहते हैं कि – स्त्री के मर्म अंग – उपांग की ओर नजर न करना, उसके साथ बात न करना, उसके साथ वास न करना, उसके साथ मार्ग में अकेले न चलना ? हे गौतम ! सभी स्त्री सर्व तरह से अति उत्कट मद और विषयाभिलाप के राग से उत्तेजित होती है। स्वभाव से उस का कामाग्नि हंमेशा सुलगता रहता है। विषय की ओर उसका चंचल चित्त दौड़ता रहता है। उस के हृदय में हंमेशा कामाग्नि दर्द देता हे, सर्व दिशा विदिशामें वो विषय की प्रार्थना करता है। इसलिए सर्व तरह से पुरुष का संकल्प और अभिलाष करनेवाली होती है उस कारण से जहाँ सुन्दर कंठ से कोई संगीत गाए तो वो शायद मनोहर रूपवाला या बदसूरत हो, तरो – ताजा जवानीवाला या बीती हुई जवानीवाला हो। पहले देखा हुआ हो या अनदेखा हो। ऋद्धिवाला या रहित हो, नई समृद्धि पाई हो या न पाई हो, कामभोग से ऊब गया हो या विषय पाने की अभिलाषा वाला हो, बुढ्ढे देहवाला या मजबूत शरीरवाला हो, महासत्त्वशाली हो या हीन सत्त्ववाला हो, महापराक्रमी हो या कायर हो, श्रमण हो या गृहस्थ हो, ब्राह्मन हो या निन्दित, अधम – नीच जातिवाला हो वहाँ अपनी श्रोत्रेन्द्रिय के उपयोग से, चक्षु – इन्द्रिय के उपयोग से, रसनेन्द्रिय के उपयोग से, घ्राणेन्द्रिय के उपयोग से, स्पर्शेन्द्रिय के उपयोग से तुरन्त ही विषय प्राप्ति के लिए, तर्क, वितर्क, विचार और एकाग्र चित्तवाली बनेगी। एकाग्र चित्तवाली होकर उसका चित्त शोभायमान होगा। और फिर चित्त में मुझे यह मिलेगा या नहीं ? ऐसी द्विधा में रहेंगे। उसके बाद शरीर में पसीना छूटेगा। उसके बाद आलोक – परलोक में ऐसी अशुभ सोच से नुकसान होगा। उसके विपाक मुझे कम – ज्यादा प्रमाण में भुगतने पड़ेंगे वो बात उस वक्त उसके दिमाग से नीकल जाए तब लज्जा, भय, अपयश, अपकीर्ति, मर्यादा का त्याग करके ऊंचे स्थान से नीचे स्थान में बैठ जाते हैं। जितने में ऊंचे स्थान से नीचे स्थान पर परिणाम की अपेक्षा से हलके परिणाम वाली उस स्त्री की आत्मा होती है। उतने में असंख्यात समय और आवलिका बीत जाते हैं। जितने में असंख्यात समय और आवलिका चली जाती है। उतने में प्रथम समय से जो कर्म की दशा होती है और दूसरे समय तीसरे समय उस प्रकार प्रत्येक समय यावत्‌ संख्याता समय असंख्यात समय, अनन्त समय क्रमशः पसार होता है। तब आगे के समय पर संख्यातगुण, असंख्यातगुण, अनन्तगुण कर्म की दशा इकट्ठी करता है। यावत्‌ असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी पूरी हो तब तक नारकी और तिर्यंच दोनों गति के लिए उत्कृष्ट कर्म स्थिति उपार्जन करे। इस प्रकार स्त्री विषयक संकल्पादिक योग से करोड़ लाख उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी तक भुगतना पड़े वैसे नरक तिर्यंच के उचित कर्मदशा उपार्जन करे। वहाँ से नीकलने के बाद भवान्तर में कैसे हालात सहने पड़ते हैं वो बताते हैं कि स्त्री की ओर दृष्टि या कामराग करने से उस पाप परम्परा से कदरूपता, श्याम देहवाला, तेज, कान्ति रहित, लावण्य और शोभा रहित, नष्ट होनेवाले तेज और सौभाग्यवाला और फिर उसे देखकर दूसरे उद्वेग पाए वैसे शरीरवाला होता है। उसकी स्पर्शइन्द्रिय सीदती है। उस के बाद उस के नेत्र – अंग उपांग देखने के लिए रागवाले और लाल वर्णवाले होते हैं। विजातीय की ओर नेत्र रागवाले होते हैं। जितने में नयनयुगल कामराग के लिए अरुण वर्णवाले मदपूर्ण बनते हैं। काम के रागांधपन से अति महान भारी दोष और ब्रह्मव्रत भंग, नियमभंग को नहीं गिनते, अति महान घोर पापकर्म के आचरण को, शीलखंड़न को नहीं गिनते अति महान सबसे भारी पापकर्म के आचरण, संयम विराधना की परवा नहीं करते। घोर अंधेरे समान नारकी रूप परलोक के भय को नहीं गिनते। आत्मा को भूल जाते हैं, अपने कर्म और गुणस्थानक को नहीं गिनते। देव और असुर सहित समग्र जगत को जिसकी आज्ञा अलंघनीय है उसकी भी परवा नहीं। ८४ लाख योनि में लाख बार परीवर्तन और गर्भ की परम्परा अनन्त बार करनी पड़ेगी। वो बात भी भूल जाते हैं। अर्ध पलक जितना काल भी जिसमें सुख नहीं है। और चारों गति में एकान्त दुःख है। वह जो देखनेलायक है वो नहीं देखते और न देखनेलायक देखते हैं। सर्वजन समुदाय इकट्ठे हुए हैं। उनके बीच बैठी हुई या खड़ी होनेवाली, भूमि पर लैटी हुई – सोई हुई या चलती हुई, सर्व लोग से दिखनेवाली झगमग करते सूर्य की किरणों के समूह से दश दिशा में तेज राशि फैल गई है तो भी जैसे खुद ऐसा मानती हो कि सर्व दिशा में शून्य अंधेरा ही है। रागान्ध और कामान्ध बनी खुद जैसे ऐसा न मानती हो कि जैसे कोई देखता या जानता नहीं। जब कि वो रागांध हुई अति महान भारी दोषवाले व्रतभंग, शीलखंड़न, संयम विराधना, परलोक भय, आज्ञा का भंग, आज्ञा का अतिक्रमण, संसार में अनन्त काल तक भ्रमण करने समान भय नहीं देखती या परवा नहीं करती। न देखनेलायक देखती है। सब लोगों को प्रकट दिखनेवाला सूर्य हाजिर होने के बाद भी सर्व दिशा में जैसे अंधेरा फैला हो ऐसा मानते हैं। जिसका सौभाग्यातिशय सर्वथा ऊड गया है, मुँह लटकानेवाली, लालीमावाली थी वो फीके – मुर्झा गए, दुर्दर्शनीय, नहीं देखनेलायक, वदनकमलवाली होती है। उस वक्त काफी तड़पती थी। और फिर उसके कमलपुर, नितम्ब, वत्सप्रदेश, जघन, बाहुलतिका, वक्षःस्थल, कंठप्रदेश धीरे – धीरे स्फुरायमान होते हैं। उसके बाद गुप्त और प्रकट अंग विकारवाले बना देते हैं। उसके अंग सर्व उपांग कामदेव के तीर से भेदित होकर जर्जरित होते हैं। पूरे देह पर का रोमांच खड़ा होता है, जितने में मदन के तीर से भेदित होकर शरीर जर्जरित होता है उतने में शरीर में रही धातु कुछ चलायमान होती है। उसके बाद शरीर पुद्‌गल नितम्ब साँथल बाहुलतिका कामदेव के तीर से पीड़ित होती है। शरीर पर का काबू स्वाधीन नहीं रहता। नितम्ब और शरीर को महा मुसीबत से धारण कर सकते हैं। और ऐसा करते हुए अपने शरीर अवस्था की दशा खुद पहचान या समझ नहीं सकती। वैसी अवस्था पाने के बाद बारह समय में शरीर से निश्चेष्ट दशा हो जाती है। साँस प्रतिस्खलित होती है। फिर मंद – मंद साँस ग्रहण करते हैं। इस प्रकार कही हुई इतनी विचित्र तरह की अवस्था काम की चेष्टा पाती है। और वो जैसे किसी पुरुष या स्त्री को ग्रह का वलगाड़ चीपका हो। होशियार पिशाच ने शरीर में प्रवेश किया हो तब चाहे कुछ भी बोला करे। इधर – ऊधर का मन चाहे ऐसा बकवास करे उसकी तरह कामपिशाच या ग्रस्त होनेवाली स्त्री भी कामावस्था में चाहे वैसे असंबद्ध वचन बोले, कामसमुद्र के विषमावर्त में भटकती, मोह उत्पन्न करनेवाले काम के वचन से देखते हुए या अनदेखे मनोहर रूपवाले या बगैर रूपवाले, जवान या बुढ्ढे पुरुष की खीलती जवानीवाली या महा पराक्रमी हो वैसे को हीन सत्त्ववाले या सत्पुरुष को या दूसरे किसी भी निन्दित अधम हीन जातिवाले पुरुष को काम के अभिप्राय से भय पानेवाली सिकुड़कर आमंत्रित करके बुलाती है ऐसे संख्याता भेदवाले रागयुक्त स्वर और कटाक्षवाली नजर से उस पुरुष को बुलाती है, उसका राग से निरीक्षण करती है। उस वक्त नारकी और तिर्यंच दोनों गति को उचित असंख्यात अवसर्पिणी – उत्सर्पिणी करोड़ लाख साल या कालचक्र प्रमाण की उत्कृष्ट – दशावाले पापकर्म उपार्जन करे यानि कर्म बाँधे, लेकिन कर्मबँध स्पृष्ट न करे। अब वो जिस वक्त पुरुष के शरीर के अवयव को छूने के लिए सन्मुख हो, लेकिन अभी स्पर्श नहीं किया उस वक्त कर्म की दशा बद्ध स्पृष्ट करे। लेकिन बद्ध स्पृष्ट निकाचित न करे।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] (1) se bhayavam kenam atthenam evam vuchchai jaha nam no itthinam nijjhaejja. No namalavejja. No nam tie saddhim parivasejja. No nam addhanam padivajjejja (2) goyama savva-ppayarehi nam savvitthiyam achchattham maukkadattae ragenam samdhukkijjamani Kamaggie sampalitta sahavao cheva visaehim bahijjai. (3) tao savva-payarehim nam savvatthiyam achchattham maukkadattae ragenam samdhu-kkijjamani kamaggie sampalitta sahavao cheva visaehim bahijjamani, anusamayam savva-disi-vidisasum nam savvattha visae patthejja (4) javam nam savvattha-visae patthejja, tava nam savva-payarehim nam savvattha savvaha purisam samkappijja, (5) java nam purisam samkappejja, tava nam soimdiyovaogattae, chakkhurimdiovaogattae rasanimdio-vaogattae, ghanimdiovaogattae, phasimdiovao-gattae. Jattha nam kei purise (6) kamta-ruve i va, akamta-ruve i va, paduppannajovvane i va, apaduppanna-jovvane i va, gaya-jovvane i va, dittha-puvve i va, adittha-puvve i va, iddhimamte i va, aniddhimamte i va, iddhipatte i va, aniddhi patte i va, visayaure i va, nivvinna-kamabhoge i va, uddhaya-bomdie i va, anuddhayabomdie i va, mahasatte i va, hina-satte i va, maha-purise i va, kapurise i va, samane i va, mahane i va, Annayare i va, nimdiyahama-hina-jaie va, (7) tattha nam iha poha-vimamsam paumji-ttanam, java nam samjoga-sampattim jhaejja (8) java nam samjoga-sampattim parikappe, tava nam se chitte samkhudde bhavejja (9) java nam se chitte samkhudde bhavejja, tava nam se chitte visamvaejja (10) java nam se chitte visamvaejja, tava nam se dehe maenam addhasejja (11) java nam se dehe maenam addhasejja, tava nam se daravidare iha-paralogavae pamhusejja, (12) java nam se dara-vidare iha-paralogavae pamhusejja tava nam chichcha lajjam bhayam ayasam akittim meram, uchcha-thanao niya-tthanam thaejja, (13) java nam uchcha-thanao niya-tthanam thaejja tava nam vachchejja asamkheyao samayavaliyao (14) java nam niimti asamkhejjao samayavaliyao, tava nam jam padhamam samayao kammatthiim tam biyasamayam paduchcha, taiya diyanam samayanam samkhejjam anamtam va anukkamaso kammathiim samchinijja (15) java nam anukamaso anamtam kammathiim samchinai tava nam asamkhejjaim avasappini-osappini-kodilakkhaim javaenam kalenam parivattamti, tavaiyam kalam dosum cheva nirayatirichchhasum gatisum ukkosa-tthitiyam kammam asamkalejja. (16) java nam ukkosatthitiyam kammamasamkalejja tava nam se vivanna-juim vivanna-kamtim viyaliya- lavanna-siriyam ninnatthaditti-teyam bomdi bhavejja (17) java nam chuya-kamti-lavanna-siriyam nitteya-bomdi bhavejja, tava nam se siejja pharisimdie. Java nam siejja pharisimdie tava nam savvattha vivaddhejja savvattha chakkhurage. (18) java nam savvattha vivaddhejja chakkhurage, tava nam ragarune nayana-juyale bhavejja (19) java nam ragarune ya nayanajuyale bhavejja tava nam ragamdhattae, na ganejja sumahamta-guru-dose vayabhamge, na ganejja sumahamta-guru dose niyama-bhamge, na ganejja sumahamta-ghora-pava-kamma- samayaranam sila-khamdanam, na ganejja sumahamta-savva-guru-pava-kamma-samayaranam samjama-virahanam (20) na ganejja ghoramdhayaram para-loga-dukkhabhayam, na ganejja ayai, na ganejja sakamma-gunatthanagam, na ganejja sasurasurassa vi nam jagassa alamghanijjam anam, na ganejja anamtahutto chulasii- jonilakkha-parivatta-gabbha-paramparam, aladdhanimi-saddha-sokkham, chaugai-samsara-dukkham. (21) na pasijja jam pasanijjam, na pasijja, jam apasanijjam, savva-jana-samuha-majjha- Sannivitthatthiyanivanna-chakkamiya-nirikkhijjamani va dippamta-kirana-jala-dasa-disi-payasiya -tavamta-teyarasi-surie vi taha vi nam pasejja sunnamdhayare savve disa bhae (22) java nam ragamdha-ttae na ganejja sumahallaguru-dose vaya-bhamge niyama-bhamge sila-khadane samjama- virahane paraloga-bhae-ana-bhamgaikkame anamta-samsara-bhae, pasejja apasanijje, savva- Jana-payada-dinayare vi nam mannijja nam sunnamdhayare savve disabhae, [java nam bhave na ganejja sumahalla- gurudose vaya-bhamge sila-khamdanijja] tava nam bhavejja achchamta-nibbhattha-sohaggaisae vichchhae raga-runa-pamdure duddamsanijje anirikkhanijje vayana-kamale bhavejja (23) java nam achchamta nibbhattha-sohaggaisae vichchhae ragaruna-pamdure duddamsanijje anirikkhanijje vayana-kamale bhavejja tava nam phuruphurejja saniyam saniyam bomda-puda-niyamba-vachchhoruha- bahu-lai-uru-kamtha-paese. (24) java nam phuruphuremti bomda-pumda-niyamba-vachchhoruha-bahulai-uru-kamthappaese. Tava nam mottayamani amgapaliyahim niruvalakkhe va sovalakkhe va bhamjejja savvamgovamge. (25) java nam mottayamani amgapaliyahim bhamjejja savvagovamge, tava nam mayanasarasannivaenam Jajjariyasambhinne savvaroma-kuve tanu bhavejja. (26) java nam mayana-sara-sannivaenam viddhamsie bomdi bhavejja, tava nam taha parinamejja tanu jaha nam managam payalamti dhatuo (27) java nam managam payalamti dhatuo, tava nam achchattham vahijjamti poggala-niyamboru-bahulaiyao. (28) java nam achchattham vahijjai niyambo tava nam dukkhenam dharejja gatta-jatthim, (29) java nam dukkhenam dharejja gatta-yatthim tava nam se novalakkhejja attiyam sariravattham (30) java nam novalakkhejja attiyam sariravattham, tava nam duvalasehim samaehim dara-nichchettham bhave bomdi (31) java nam duvalasehim dara-nichchettham bhave bomdi, tava nam padikhalejja se usasa-nisase. (32) java nam padikhalejja usasa-nisase, tava nam mamdam mamdam usasejja mamdam mamdam nisasejja, (33) java nam eyaim ettiyaim bhavamtaram avatthamtaraim viharejja, tava nam jaha mahagghatthe kei purise i va, itthi i va, visumthulae pisayae bharatie asambaddham samlaviyam visamkhulamtam avvattam ullavejja, (34) evam siya nam itthiyam visamavatta-mohana-mammanullavenam purise, (35) dittha-puvve i va, adittha puvve i va, kamtaruve i va, akamtaruve i va, gaya jovvane i va, Paduppanna-jovvane i va, mahasatte i va, hinasatte i va, sappurise i va, kapurise i va, iddhimamte i va, aniddhimamte i va, visayaure i va, nivvinnakamabhoge i va, samane i va, mahane i va. Java nam annayare va kei nimdiyahama-najaie i va, (36) ajjhatthenam sasajjhasenam amamtemani ullavejja, (37) java nam samkhejja-bhedabhinnenam saragenam sarenam ditthie i va purise ullavejja nijjhaejja va, tava nam jam tam asamkhejjaim avasappini-osappini-kodi-lakkhaim dosum naraya-tirichchhasum gatisum ukkosa-tthitiyam kammam asamkaliyam asio tam nibamdhejja. No nam baddha-puttham karejja, (38) se vi nam jam samayam purisassa na sariravayava-pharisanabhimuham bhavejja no nam pharisejja, tam samayam cheva tam kamma-thiim baddha-puttham karejja. No nam baddha -puttha-nikayam ti.
Sutra Meaning Transliteration : He bhagavamta ! Apa aisa kyom kahate haim ki – stri ke marma amga – upamga ki ora najara na karana, usake satha bata na karana, usake satha vasa na karana, usake satha marga mem akele na chalana\? He gautama ! Sabhi stri sarva taraha se ati utkata mada aura vishayabhilapa ke raga se uttejita hoti hai. Svabhava se usa ka kamagni hammesha sulagata rahata hai. Vishaya ki ora usaka chamchala chitta daurata rahata hai. Usa ke hridaya mem hammesha kamagni darda deta he, sarva disha vidishamem vo vishaya ki prarthana karata hai. Isalie sarva taraha se purusha ka samkalpa aura abhilasha karanevali hoti hai Usa karana se jaham sundara kamtha se koi samgita gae to vo shayada manohara rupavala ya badasurata ho, taro – taja javanivala ya biti hui javanivala ho. Pahale dekha hua ho ya anadekha ho. Riddhivala ya rahita ho, nai samriddhi pai ho ya na pai ho, kamabhoga se uba gaya ho ya vishaya pane ki abhilasha vala ho, budhdhe dehavala ya majabuta shariravala ho, mahasattvashali ho ya hina sattvavala ho, mahaparakrami ho ya kayara ho, shramana ho ya grihastha ho, brahmana ho ya nindita, adhama – nicha jativala ho vaham apani shrotrendriya ke upayoga se, chakshu – indriya ke upayoga se, rasanendriya ke upayoga se, ghranendriya ke upayoga se, sparshendriya ke upayoga se turanta hi vishaya prapti ke lie, tarka, vitarka, vichara aura ekagra chittavali banegi. Ekagra chittavali hokara usaka chitta shobhayamana hoga. Aura phira chitta mem mujhe yaha milega ya nahim\? Aisi dvidha mem rahemge. Usake bada sharira mem pasina chhutega. Usake bada aloka – paraloka mem aisi ashubha socha se nukasana hoga. Usake vipaka mujhe kama – jyada pramana mem bhugatane paremge vo bata usa vakta usake dimaga se nikala jae taba lajja, bhaya, apayasha, apakirti, maryada ka tyaga karake umche sthana se niche sthana mem baitha jate haim. Jitane mem umche sthana se niche sthana para parinama ki apeksha se halake parinama vali usa stri ki atma hoti hai. Utane mem asamkhyata samaya aura avalika bita jate haim. Jitane mem asamkhyata samaya aura avalika chali jati hai. Utane mem prathama samaya se jo karma ki dasha hoti hai aura dusare samaya tisare samaya usa prakara pratyeka samaya yavat samkhyata samaya asamkhyata samaya, ananta samaya kramashah pasara hota hai. Taba age ke samaya para samkhyataguna, asamkhyataguna, anantaguna karma ki dasha ikatthi karata hai. Yavat asamkhyata utsarpini – avasarpini puri ho taba taka naraki aura tiryamcha donom gati ke lie utkrishta karma sthiti uparjana kare. Isa prakara stri vishayaka samkalpadika yoga se karora lakha utsarpini – avasarpini taka bhugatana pare vaise naraka tiryamcha ke uchita karmadasha uparjana kare. Vaham se nikalane ke bada bhavantara mem kaise halata sahane parate haim vo batate haim ki stri ki ora drishti ya kamaraga karane se usa papa parampara se kadarupata, shyama dehavala, teja, kanti rahita, lavanya aura shobha rahita, nashta honevale teja aura saubhagyavala aura phira use dekhakara dusare udvega pae vaise shariravala hota hai. Usaki sparshaindriya sidati hai. Usa ke bada usa ke netra – amga upamga dekhane ke lie ragavale aura Lala varnavale hote haim. Vijatiya ki ora netra ragavale hote haim. Jitane mem nayanayugala kamaraga ke lie aruna varnavale madapurna banate haim. Kama ke ragamdhapana se ati mahana bhari dosha aura brahmavrata bhamga, niyamabhamga ko nahim ginate, ati mahana ghora papakarma ke acharana ko, shilakhamrana ko nahim ginate ati mahana sabase bhari papakarma ke acharana, samyama viradhana ki parava nahim karate. Ghora amdhere samana naraki rupa paraloka ke bhaya ko nahim ginate. Atma ko bhula jate haim, apane karma aura gunasthanaka ko nahim ginate. Deva aura asura sahita samagra jagata ko jisaki ajnya alamghaniya hai usaki bhi parava nahim. 84 lakha yoni mem lakha bara parivartana aura garbha ki parampara ananta bara karani paregi. Vo bata bhi bhula jate haim. Ardha palaka jitana kala bhi jisamem sukha nahim hai. Aura charom gati mem ekanta duhkha hai. Vaha jo dekhanelayaka hai vo nahim dekhate aura na dekhanelayaka dekhate haim. Sarvajana samudaya ikatthe hue haim. Unake bicha baithi hui ya khari honevali, bhumi para laiti hui – soi hui ya chalati hui, sarva loga se dikhanevali jhagamaga karate surya ki kiranom ke samuha se dasha disha mem teja rashi phaila gai hai to bhi jaise khuda aisa manati ho ki sarva disha mem shunya amdhera hi hai. Ragandha aura kamandha bani khuda jaise aisa na manati ho ki jaise koi dekhata ya janata nahim. Jaba ki vo ragamdha hui ati mahana bhari doshavale vratabhamga, shilakhamrana, samyama viradhana, paraloka bhaya, ajnya ka bhamga, ajnya ka atikramana, samsara mem ananta kala taka bhramana karane samana bhaya nahim dekhati ya parava nahim karati. Na dekhanelayaka dekhati hai. Saba logom ko prakata dikhanevala surya hajira hone ke bada bhi sarva disha mem jaise amdhera phaila ho aisa manate haim. Jisaka saubhagyatishaya sarvatha uda gaya hai, mumha latakanevali, lalimavali thi vo phike – murjha gae, durdarshaniya, nahim dekhanelayaka, vadanakamalavali hoti hai. Usa vakta kaphi tarapati thi. Aura phira usake kamalapura, nitamba, vatsapradesha, jaghana, bahulatika, vakshahsthala, kamthapradesha dhire – dhire sphurayamana hote haim. Usake bada gupta aura prakata amga vikaravale bana dete haim. Usake amga sarva upamga kamadeva ke tira se bhedita hokara jarjarita hote haim. Pure deha para ka romamcha khara hota hai, jitane mem madana ke tira se bhedita hokara sharira jarjarita hota hai utane mem sharira mem rahi dhatu kuchha chalayamana hoti hai. Usake bada sharira pudgala nitamba samthala bahulatika kamadeva ke tira se pirita hoti hai. Sharira para ka kabu svadhina nahim rahata. Nitamba aura sharira ko maha musibata se dharana kara sakate haim. Aura aisa karate hue apane sharira avastha ki dasha khuda pahachana ya samajha nahim sakati. Vaisi avastha pane ke bada baraha samaya mem sharira se nishcheshta dasha ho jati hai. Samsa pratiskhalita hoti hai. Phira mamda – mamda samsa grahana karate haim. Isa prakara kahi hui itani vichitra taraha ki avastha kama ki cheshta pati hai. Aura vo jaise kisi purusha ya stri ko graha ka valagara chipaka ho. Hoshiyara pishacha ne sharira mem pravesha kiya ho taba chahe kuchha bhi bola kare. Idhara – udhara ka mana chahe aisa bakavasa kare usaki taraha kamapishacha ya grasta honevali stri bhi kamavastha mem chahe vaise asambaddha vachana bole, kamasamudra ke vishamavarta mem bhatakati, moha utpanna karanevale kama ke vachana se dekhate hue ya anadekhe manohara rupavale ya bagaira rupavale, javana ya budhdhe purusha ki khilati javanivali ya maha parakrami ho vaise ko hina sattvavale ya satpurusha ko ya dusare kisi bhi nindita adhama hina jativale purusha ko kama ke abhipraya se bhaya panevali sikurakara amamtrita karake bulati hai aise samkhyata bhedavale ragayukta svara aura katakshavali najara se usa purusha ko bulati hai, usaka raga se nirikshana karati hai. Usa vakta naraki aura tiryamcha donom gati ko uchita asamkhyata avasarpini – utsarpini karora lakha sala ya kalachakra pramana ki utkrishta – dashavale papakarma uparjana kare yani karma bamdhe, lekina karmabamdha sprishta na kare. Aba vo jisa vakta purusha ke sharira ke avayava ko chhune ke lie sanmukha ho, lekina abhi sparsha nahim kiya usa vakta karma ki dasha baddha sprishta kare. Lekina baddha sprishta nikachita na kare.