Sutra Navigation: Dashashrutskandha ( दशाश्रुतस्कंध सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1014235 | ||
Scripture Name( English ): | Dashashrutskandha | Translated Scripture Name : | दशाश्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Translated Chapter : |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 35 | Category : | Chheda-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ। कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ? इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, नो पच्चायंति जीवा, नत्थि निरयादि ह्व नत्थि सिद्धी। से एवंवादी एवंपण्णे एवंदिट्ठी एवंछंदरागमभिनिविट्ठे यावि भवति। से य भवति महिच्छे महारंभे महापरिग्गहे अहम्मिए अहम्माणुए अहम्मसेवी अहम्मिट्ठे अधम्मक्खाई अधम्मरागी अधम्मपलोई अधम्मजीवी अधम्मपलज्जणे अधम्मसीलसमुदाचारे, अधम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ, हण छिंद भिंद वेकत्तए लोहियपाणी पावो चंडो रुद्दो खुद्दो साहस्सिओ उक्कंचण-वंचण-माया-निअडी-कवड-कूड-साति-संपयोगबहुले दुस्सीले दुपरिचए दुरणुणेए दुव्वए दुप्पडियानंदे निस्सीले निग्गुणे निम्मेरे निपच्चक्खाणपोसहोववासे असाहू सव्वाओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए, ... ... एवं जाव सव्वाओ कोहाओ सव्वाओ मानाओ सव्वाओ मायाओ सव्वाओ लोभाओ सव्वाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ, पेसुन्न-परपरिवादाओ अरतिरति-मायामोसाओ मिच्छादंसणसल्लाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ ण्हाणुम्मद्दणा-अब्भंगण-वण्णग विलेवण-सद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीया-संदमाणिय-सयणासण-जाण-वाहण-भोयण-पवित्थर-विधीओ अपडिविरए जावज्जीवाए, ... ... सव्वाओ आस-हत्थि-गो-महिस-गवेलय-दासी-दास-कम्मकरपोरुसाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ कय-विक्कय-मासद्धमास-रूव-गसंववहाराओ अपडिविरए जावज्जीवाए, हिरण्ण-सुवण्ण-धन-धन्न-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ कूडतुल-कूडमाणाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ आरंभ-समारंभाओ अपडिविरए जाव-ज्जीवाए, सव्वाओ करण-कारावणाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ पयण-पयावणाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह-बंध-परिकिलेसाओ अप-डिविरए जावज्जीवाए, जेयावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोधिआ कम्मंता परपाणपरितावणकडा कज्जंति (ततो वि अ णं अपडिविरए जावज्जीवाए,) से जहानामए केइ पुरिसे कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-निप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सईणा-पलिमंथ एमादिएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजइ, एवामेव तहप्पगारे पुरिसज्जाते तित्तिर-वट्टा-लावय-कपोत-कपिंजल-मिय-महिस-वराह-गाह-गोध-कुम्म-सिरी-सवादिएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजइ। जावि य से बाहिरिया परिसा भवति, तं जहा–दासेति वा पेसेति वा भतएति वा भाइल्लेति वा कम्मारएति वा भोगपुरिसेति वा, तेसिंपि य णं अन्नयरगंसि अहालघुयंसि अवराधंसि सयमेव गरुयं दंडं वत्तेति, तं जहा– इमं दंडेह, इमं मुंडेह, इमं वज्झेह इमं तालेह, इमं अंदुबंधनं करेह, इमं नियलबंधनं करेह, इमं हडिबंधनं करेह, इमं चारगबंधनं करेह, इमं नियलजुयल-संकोडियमो-डितं करेह, इमं हत्थच्छिन्नं करेह, इमं पायच्छिन्नं करेह, इमं कन्नच्छिन्नं करेह, इमं नक्कच्छिन्नं करेह, इमं ओट्ठच्छिन्नं करेह, इमं सीसच्छिन्नं करेह, इमं मुखच्छिन्नं करेह, इमं मज्झच्छिन्नं करेह, इमं वेयच्छिन्नं करेह, इमं हियउप्पाडियं करेह, एवं नयन-दसन-वसन-जिब्भुप्पाडियं करेह, इमं ओलंबितं करेह, इमं उल्लंबितं करेह, इमं घंससियं करेह, इमं घोलितयं करेह, इमं सूलाइतयं करेह, इमं सूलाभिन्नं करेह, इमं खारवत्तियं करेह, इमं दब्भवत्तियं करेह, इमं सीहपुच्छितयं करेह, इमं वसभपुच्छितयं करेह, इमं कडग्गिदड्ढयं करेह, इमं काकिणिमंसखाविततं करेह, इमं भत्तपाणनिरुद्धयं करेह, इमं जावज्जीवबंधनं करेह, इमं अन्नतरेणं असुभेणं कुमारेणं मारेह। जावि य से अब्भिंतरिया परिसा भवति, तं जहा– माताति वा पिताति वा भायाति वा भगिनिति वा भज्जाति वा धूयाति वा सुण्हाति वा, तेसिं पि य णं अन्नयरंसि अहालहुसगंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं डंडं वत्तेति, तं जहा– सीतोदगंसि कायं ओबोलित्ता भवति, उसिणोदगवियडेण कायं ओसिंचित्ता भवति, अगनि-काएणं कायं ओडहित्ता भवति, जोत्तेण वा वेत्तेण वा नेत्तेण वा कसेण वा छिवाए वा लताए वा पासाइं उद्दालित्ता भवति, डंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा कायं आओडेत्ता भवति। तहप्पगारे पुरिसज्जाते संवसमाणे दुमणा भवंति, तहप्पगारे पुरिसज्जाते विप्पवसमाणे सुमणा भवंति, तहप्पगारे पुरिसज्जाते दंडमासी दंडगरुए दंडपुरक्खडे अहिते अस्सिं लोयंसि, अहिते परंसि लोयंसि। से दुक्खेति से सोयति एवं जूरेति तिप्पेति पिट्टेति परितप्पति। से दुक्खण-सोयण-जूरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंध-परिकिलेसाओ अप्पडिविरते भवति। एवामेव से इत्थिकामभोगेहिं मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाणि वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं भुंजित्ता भोगभोगाइं, पसवित्ता वेरायतणाइं, संचिणित्ता बहूइं कूराइं कम्माइं ओसन्नं संभारकडेण कम्मुणा– से जहानामए अयगोलेति वा सेलगोलेति वा उदयंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमतिवतित्ता अहे धरणितलपतिट्ठाणे भवति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसज्जाते वज्जबहुले धुतबहुले पंकबहुले वेरबहुले दंभ-नियडि-साइबहुले अयसबहुले अप्पत्तियबहुले उस्सण्णं तसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमतिवतित्ता अहे णरगतलपतिट्ठाणे भवति। ते णं नरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरसंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिया निच्चंधकारतमसा ववगय-गह-चंद-सूर-नक्खत्त-जोइसपहा मेद-वसा-मंस-रुहिर-पूयपडल-चिक्खिल्ललित्ताणुलेवतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काउ अगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा। असुभा नरयस्स वेदणाओ। नो चेव णं नरएसु नेरइया निद्दायंति वा पयलायंति वा सुतिं वा रतिं वा धितिं वा मतिं वा उवलभंति। ते णं तत्थ उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं चंडं रुक्खं दुग्गं तिव्वं दुरहियासं नरएसु नेरइया निरयवेयणं पच्चनुभवमाणा विहरंति। से जहानामए रुक्खे सिया पव्वतग्गे जाते मूलच्छिन्ने अग्गे गुरुए जतो निन्नं जतो दुग्गं जतो विसमं ततो पवडति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसज्जाते गब्भातो गब्भं जम्मातो जम्मं मारातो मारं दुक्खातो दुक्खं दाहिणगामिए नेरइए किण्हपक्खिते आगमेस्साणं दुल्लभबोधिते यावि भवति। से तं अकिरियावादि। | ||
Sutra Meaning : | हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। यह (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है। स्थविर भगवंत ने कौन – सी ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है? स्थविर भगवंत ने जो ११ उपासक प्रतिमा बताई है, वो इस प्रकार है – (दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, दिन में ब्रह्मचर्य, दिन – रात ब्रह्मचर्य, सचित्त – परित्याग, आरम्भ परित्याग, प्रेष्य परित्याग, उपधिभक्त – परित्याग, श्रमण – भूत) (प्रतिमा यानि विशिष्ट प्रतिज्ञा) जो अक्रियावादी हैं और जीव आदि चीज के अस्तित्व का अपलाप करते हैं। वो नास्तिकवादी हैं, नास्तिक मतिवाला है, नास्तिक दृष्टि रखते हैं, जो सम्यक्वादी नहीं है, नित्यवादी नहीं है यानि क्षणिकवादी है, जो परलोक वादी नहीं है जो कहते हैं कि यह लोक नहीं है, परलोक नहीं है, माता नहीं, पिता नहीं, अरिहंत नहीं, चक्रवर्ती नहीं, बलदेव नहीं, वासुदेव नहीं, नर्क नहीं, नारकी नहीं, सुकृत और दुष्कृत कर्म की फलवृत्ति विशेष नहीं, सम्यक् प्रकार से आचरण किया गया कर्म शुभ फल नहीं देता, कुत्सित प्रकार से आचरण किया गया कर्म अशुभ फल नहीं देता, कल्याण कर्म और पाप कर्म फलरहित हैं। जीव परलोक में जाकर उत्पन्न नहीं होता, नरक आदि चार गति नहीं है, सिद्धि नहीं जो इस प्रकार कहता है, इस प्रकार की बुद्धिवाला है, इस प्रकार की दृष्टिवाला है, जो ऐसी उम्मीद और राग या कदाग्रह युक्त है वो मिथ्यादृष्टि जीव है। ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव महा ईच्छवाला, महारंभी, महापरिग्रही, अधार्मिक, अधर्मानुगामी, अधर्मसेवी, अधर्म ख्यातिवाला, अधर्मानुरागी, अधर्मद्रष्टा, अधर्मजीवी, अधर्म अनुरक्त, अधार्मिक शीलवाला, अधार्मिक आचरणवाला और अधर्म से आजीविका करते हुए विचरता है। वो मिथ्यादृष्टि नास्तिक आजीविक के लिए दूसरों को कहता है, जीव को मार डालो, उसके अंग छेदन करो, सर, पेट आदि भेदन करो, काट दो। उसके अपने हाथ लहू से भरे रहते हैं, वो चंड, रौद्र और शूद्र होता है। सोचे बिना काम करता है, साहसिक होता है, लोगों से रिश्वत लेता है। धोखा, माया, छल, कूड़, कपट और मायाजाल बनाने में माहिर होता है। वो दुःशील, दुष्टजन का परिचित, दुश्चरित, दारूण स्वभावी, दुष्टव्रती, दुष्कृत करने में आनन्दित रहता है। शील रहित, गुण प्रत्याख्यान – पौषध – उपवास न करनेवाला और असाधु होता है। वो जावज्जीव के लिए सर्व प्रकार के प्राणातिपात से अप्रतिविरत रहता है यानि हिंसक रहता है। उसी प्रकार सर्व प्रकार से मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह का भी त्याग नहीं करता। सर्व प्रकार से क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, आल, चुगली, निंदा, रति – अरति, माया – मृषा और मिथ्या दर्शन शल्य से जावज्जीव अविरत रहता है। यानि इस १८ पापस्थानक का सेवन करता रहता है। वो सर्व प्रकार से स्नान, मर्दन, विलेपन, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, माला, अलंकार से यावज्जीव अप्रतिविरत रहता है, शकट, रथ, यान, युग, गिल्ली, थिल्ली, शिबिका, स्यन्दमानिका, शयन, आसन, यानवाहन, भोजन, गृह सम्बन्धी वस्त्र – पात्र आदि से यावज्जीव अप्रतिविरत रहता है। सर्व, अश्व, हाथी, गाय, भैंस, भेड़ – बकरे, दास – दासी, नौकर – पुरुष, सोना, धन, धान्य, मणि – मोती, शंख, मूगा से यावज्जीवन अप्रतिविरत रहता है। यावज्जीव के लिए हिनाधिक तोलमाप, सर्व आरम्भ, समारम्भ, सर्व कार्य करना – करवाना, पचन – पाचन, कूटना, पीसना, तर्जन – ताड़न, वध – बन्ध, परिक्लेश यावत् वैसे प्रकार के सावद्य और मिथ्यात्ववर्धक, दूसरे जीव के प्राणों को परिताप पहुँचानेवाला कर्म करते हैं। यह सभी पाप कार्य से अप्रतिविरत यानि जुड़ा रहता है। जिस प्रकार कोई पुरुष कलम, मसुर, तल, मुग, ऊड़द, बालोल, कलथी, तुवर, काले चने, ज्वार और उस प्रकार के अन्य धान्य को जीव रक्षा के भाव के सिवा क्रूरतापूर्वक उपपुरुषन करते हुए मिथ्यादंड़ प्रयोग करता है, उसी प्रकार कोई पुरुष विशेष तीतर, वटेर, लावा, कबूतर, कपिंजल, मृग, भैंस, सुकर, मगरमच्छ, गोधा, कछुआ और सर्प आदि निर्दोष जीव को क्रूरता से मिथ्या – दंड़ का प्रयोग करते हैं, यानि कि निर्दोषता से घात करते हैं। और फिर उसकी जो बाह्य पर्षदा है, जैसे कि – दास, दूत, वेतन से काम करनेवाले, हिस्सेदार, कर्मकर, भोग पुरुष आदि से हुए छोटे अपराध का भी खुद ही बड़ा दंड़ देते हैं। इसे दंड़ दो, इसे मुंड़न कर दो, इसकी तर्जना करो – ताड़न करो, इसे हाथ में – पाँव में, गले में सभी जगह बेड़ियाँ लगाओ, उसके दोनों पाँव में बेड़ी बाँधकर, पाँव की आँटी लगा दो, इसके हाथ काट दो, पाँव काट दो, कान काट दो, नाखून छेद दो, होठ छेद दो, सर उड़ा दो, मुँह तोड़ दो, पुरुष चिह्न काट दो, हृदय चीर दो, उसी प्रकार आँख – दाँत – मुँह – जीह्वा उखेड़ दो, इसे रस्सी से बाँधकर पेड़ पर लटका दो, बाँधकर जमीं पर घिसो, दहीं की प्रकार मंथन करो, शूली पर चड़ाओ, त्रिशूल से भेदन करो, शस्त्र से छिन्न – भिन्न कर दो, भेदन किए शरीर पर क्षार डालो, उसके झख्म पर घास ड़ालो, उसे शेर, वृषभ, साँड़ की पूँछ से बाँध दो, दावाग्नि में जला दो, टुकड़े कर के कौए को माँस खिला दो, खाना – पीना बन्द कर दो, जावज्जीव के बँधन में रखो, अन्य किसी प्रकार से कुमौत से मार ड़ालो। उस मिथ्यादृष्टि की जो अभ्यंतर पर्षदा है। जैसे कि माता, पिता, भाई, बहन, भार्या, पुत्री, पुत्रवधू आदि उनमें से किसी का भी थोड़ा अपराध हो तो खुद ही भारी दंड़ देते हैं। जैसे कि ठंड़े पानी में डूबोए, गर्म पानी शरीर पर ड़ाले, आग से उनके शरीर जलाए, जोत – बेंत – नेत्र आदि की रस्सी से, चाबूक से, छिवाड़ी से, मोटी वेल से, मार – मारकर दोनों बगल के चमड़े उखेड़ दे, दंड़, हड्डी, मूंड़ी, पत्थर, खप्पर से उनके शरीर को कूटे, पीसे, इस प्रकार के पुरुष वर्ग के साथ रहनेवाले मानव दुःखी रहते हैं। दूर रहे तो प्रसन्न रहते हैं। इस प्रकार का पुरुष वर्ग हंमेशा डंड़ा साथ रखते हैं। और किसी से थोड़ा भी अपराध हो तो अधिकाधिक दंड़ देने का सोचते हैं। दंड़ को आगे रखकर ही बात करते हैं। ऐसा पुरुष यह लोक और परलोक दोनों में अपना अहित करता है। ऐसे लोग दूसरों को दुःखी करते हैं, शोक संतप्त करते हैं, तड़पाते हैं, सताते हैं, दर्द देते हैं, पीटते हैं, परिताप पहुँचाते हैं, उस प्रकार से वध, बन्ध, क्लेश आदि पहुँचाने में जुड़े रहते हैं। इस प्रकार से वो स्त्री सम्बन्धी काम – भोग में मूर्छित, गृद्ध, आसक्त और पंचेन्द्रिय के विषय में डूबे रहते हैं। उस प्रकार से वो चार, पाँच, छ यावत् दश साल या उससे कम – ज्यादा काल कामभोग भुगतकर वैरभाव के सभी स्थान करके कईं अशुभ कर्म ईकट्ठे करके, जिस प्रकार लोहा या पत्थर का गोला पानी में फेंकने से जल – तल का अतिक्रमण करके नीचे तलवे में पहुँच जाए उस प्रकार से इस प्रकार का पुरुष वर्ग वज्र जैसे कईं पाप, क्लेश, कीचड़, बैर, दंभ, माया, प्रपंच, आशातना, अयश, अप्रतीतिवाला होकर प्रायः त्रसप्राणी का घात करते हुए भूमितल का अतिक्रमण करके नीचे नरकभूमि में स्थान पाते हैं। वो नरक भीतर से गोल और बाहर से चोरस है। नीचे छरा – अस्तरा के आकारवाली है। नित्य घोर अंधकार से व्याप्त है। चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, ज्योतिष्क की प्रभा से रहित हैं। उस नरक की भूमि चरबी, माँस, लहू, परू का समूह जैसे कीचड़ से लेपी हुई है। मल – मूत्र आदि अशुचि पदार्थ से भरी और परम गंधमय है। काली या कपोत वर्णवाली, अग्नि के वर्ण की आभावाली है, कर्कश स्पर्शवाली होने से असह्य है, अशुभ होने से वहाँ अशुभ दर्द होता है, वहाँ निद्रा नहीं ले सकते, उस नारकी के जीव उस नरक में अशुभ दर्द का प्रति वक्त अहसास करते हुए विचरते हैं। जिस प्रकार पर्वत के अग्र हिस्से पर पैदा हुआ पेड़ जड़ काटने से ऊपर का हिस्सा भारी होने से जहाँ नीचा स्थान है, जहाँ दुर्गम प्रवेश करता है या विषम जगह है वहाँ गिरता है, उसी प्रकार उपर कहने के मुताबिक मिथ्यात्वी, घोर पापी पुरुष वर्ग एक गर्भ में से दूसरे गर्भ में, एक जन्म में से दूसरे जन्म में, एक मरण में से दूसरे मरण में, एक दुःख में से दूसरे दुःख में गिरते हैं। इस कृष्णपाक्षिक नारकी भावि में दुर्लभबोधि होती है। इस प्रकार का जीव अक्रियावादी है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] suyam me ausam! Tenam bhagavaya evamakkhatam–iha khalu therehim bhagavamtehim ekkarasa uvasagapadimao pannattao. Kayara khalu tao therehim bhagavamtehim ekkarasa uvasagapadimao pannattao? Imao khalu tao therehim bhagavamtehim ekkarasa uvasagapadimao pannattao, tam jaha– Akiriyavadi yavi bhavati–nahiyavadi nahiyapanne nahiyadiththi, no sammavadi, no nitiyavadi, nasamti-paralogavadi, natthi ihaloe natthi paraloe natthi mata natthi pita natthi arahamta natthi chakkavatti natthi baladeva natthi vasudeva natthi sukkada-dukkadanam phalavittiviseso, no suchinna kamma suchinnaphala bhavamti, no duchinna kamma duchinnaphala bhavamti, aphale kallanapavae, no pachchayamti jiva, natthi nirayadi hva natthi siddhi. Se evamvadi evampanne evamditthi evamchhamdaragamabhinivitthe yavi bhavati. Se ya bhavati mahichchhe maharambhe mahapariggahe ahammie ahammanue ahammasevi ahammitthe adhammakkhai adhammaragi adhammapaloi adhammajivi adhammapalajjane adhammasilasamudachare, adhammenam cheva vittim kappemane viharai, hana chhimda bhimda vekattae lohiyapani pavo chamdo ruddo khuddo sahassio ukkamchana-vamchana-maya-niadi-kavada-kuda-sati-sampayogabahule dussile duparichae duranunee duvvae duppadiyanamde nissile niggune nimmere nipachchakkhanaposahovavase asahu savvao panaivayao appadivirae javajjivae,.. .. Evam java savvao kohao savvao manao savvao mayao savvao lobhao savvao pejjao dosao kalahao abbhakkhanao, pesunna-paraparivadao aratirati-mayamosao michchhadamsanasallao apadivirae javajjivae, savvao nhanummaddana-abbhamgana-vannaga vilevana-sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdha-mallalamkarao apadivirae javajjivae, savvao sagada-raha-jana-jugga-gilli-thilli-siya-samdamaniya-sayanasana-jana-vahana-bhoyana-pavitthara-vidhio apadivirae javajjivae,.. .. Savvao asa-hatthi-go-mahisa-gavelaya-dasi-dasa-kammakaraporusao apadivirae javajjivae, savvao kaya-vikkaya-masaddhamasa-ruva-gasamvavaharao apadivirae javajjivae, hiranna-suvanna-dhana-dhanna-mani-mottiya-samkha-silappavalao apadivirae javajjivae, savvao kudatula-kudamanao apadivirae javajjivae, savvao arambha-samarambhao apadivirae java-jjivae, savvao karana-karavanao apadivirae javajjivae, savvao payana-payavanao apadivirae javajjivae, savvao kuttana-pittana-tajjana-talana-vaha-bamdha-parikilesao apa-divirae javajjivae, jeyavanne tahappagara savajja abodhia kammamta parapanaparitavanakada kajjamti (tato vi a nam apadivirae javajjivae,) Se jahanamae kei purise kala-masura-tila-mugga-masa-nipphava-kulattha-alisamdaga-saina-palimamtha emadiehim ayate kure michchhadamdam paumjai, evameva tahappagare purisajjate tittira-vatta-lavaya-kapota-kapimjala-miya-mahisa-varaha-gaha-godha-kumma-siri-savadiehim ayate kure michchhadamdam paumjai. Javi ya se bahiriya parisa bhavati, tam jaha–daseti va peseti va bhataeti va bhailleti va kammaraeti va bhogapuriseti va, tesimpi ya nam annayaragamsi ahalaghuyamsi avaradhamsi sayameva garuyam damdam vatteti, tam jaha– Imam damdeha, imam mumdeha, imam vajjheha imam taleha, imam amdubamdhanam kareha, imam niyalabamdhanam kareha, imam hadibamdhanam kareha, imam charagabamdhanam kareha, imam niyalajuyala-samkodiyamo-ditam kareha, imam hatthachchhinnam kareha, imam payachchhinnam kareha, imam kannachchhinnam kareha, imam nakkachchhinnam kareha, imam otthachchhinnam kareha, imam sisachchhinnam kareha, imam mukhachchhinnam kareha, imam majjhachchhinnam kareha, imam veyachchhinnam kareha, imam hiyauppadiyam kareha, evam nayana-dasana-vasana-jibbhuppadiyam kareha, imam olambitam kareha, imam ullambitam kareha, imam ghamsasiyam kareha, imam gholitayam kareha, imam sulaitayam kareha, imam sulabhinnam kareha, imam kharavattiyam kareha, imam dabbhavattiyam kareha, imam sihapuchchhitayam kareha, imam vasabhapuchchhitayam kareha, imam kadaggidaddhayam kareha, imam kakinimamsakhavitatam kareha, imam bhattapananiruddhayam kareha, imam javajjivabamdhanam kareha, imam annatarenam asubhenam kumarenam mareha. Javi ya se abbhimtariya parisa bhavati, tam jaha– matati va pitati va bhayati va bhaginiti va bhajjati va dhuyati va sunhati va, tesim pi ya nam annayaramsi ahalahusagamsi avarahamsi sayameva garuyam damdam vatteti, tam jaha– Sitodagamsi kayam obolitta bhavati, usinodagaviyadena kayam osimchitta bhavati, agani-kaenam kayam odahitta bhavati, jottena va vettena va nettena va kasena va chhivae va latae va pasaim uddalitta bhavati, damdena va atthina va mutthina va leluna va kavalena va kayam aodetta bhavati. Tahappagare purisajjate samvasamane dumana bhavamti, tahappagare purisajjate vippavasamane sumana bhavamti, tahappagare purisajjate damdamasi damdagarue damdapurakkhade ahite assim loyamsi, ahite paramsi loyamsi. Se dukkheti se soyati evam jureti tippeti pitteti paritappati. Se dukkhana-soyana-jurana-tippana-pittana-paritappana-vaha-bamdha-parikilesao appadivirate bhavati. Evameva se itthikamabhogehim muchchhite giddhe gadhite ajjhovavanne java vasaim chaupamchamaim chhaddasamani va appataro va bhujjataro va kalam bhumjitta bhogabhogaim, pasavitta verayatanaim, samchinitta bahuim kuraim kammaim osannam sambharakadena kammuna– Se jahanamae ayagoleti va selagoleti va udayamsi pakkhitte samane udagatalamativatitta ahe dharanitalapatitthane bhavati, evameva tahappagare purisajjate vajjabahule dhutabahule pamkabahule verabahule dambha-niyadi-saibahule ayasabahule appattiyabahule ussannam tasapanaghati kalamase kalam kichcha dharanitalamativatitta ahe naragatalapatitthane bhavati. Te nam naraga amto vatta bahim chaurasamsa ahe khurappasamthanasamthiya nichchamdhakaratamasa vavagaya-gaha-chamda-sura-nakkhatta-joisapaha meda-vasa-mamsa-ruhira-puyapadala-chikkhillalittanulevatala asui visa paramadubbhigamdha kau aganivannabha kakkhadaphasa durahiyasa asubha naraga. Asubha narayassa vedanao. No cheva nam naraesu neraiya niddayamti va payalayamti va sutim va ratim va dhitim va matim va uvalabhamti. Te nam tattha ujjalam viulam pagadham kakkasam kaduyam chamdam rukkham duggam tivvam durahiyasam naraesu neraiya nirayaveyanam pachchanubhavamana viharamti. Se jahanamae rukkhe siya pavvatagge jate mulachchhinne agge gurue jato ninnam jato duggam jato visamam tato pavadati, evameva tahappagare purisajjate gabbhato gabbham jammato jammam marato maram dukkhato dukkham dahinagamie neraie kinhapakkhite agamessanam dullabhabodhite yavi bhavati. Se tam akiriyavadi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He ayushman ! Vo nirvana prapta bhagavamta ke svamukha se maimne aisa suna hai. Yaha (jina pravachana mem) sthavira bhagavamta ne nishchaya se gyaraha upasaka pratima batai hai. Sthavira bhagavamta ne kauna – si gyaraha upasaka pratima batai hai? Sthavira bhagavamta ne jo 11 upasaka pratima batai hai, Vo isa prakara hai – (darshana, vrata, samayika, paushadha, dina mem brahmacharya, dina – rata brahmacharya, sachitta – parityaga, arambha parityaga, preshya parityaga, upadhibhakta – parityaga, shramana – bhuta) (pratima yani vishishta pratijnya) Jo akriyavadi haim aura jiva adi chija ke astitva ka apalapa karate haim. Vo nastikavadi haim, nastika mativala hai, nastika drishti rakhate haim, jo samyakvadi nahim hai, nityavadi nahim hai yani kshanikavadi hai, jo paraloka vadi nahim hai jo kahate haim ki yaha loka nahim hai, paraloka nahim hai, mata nahim, pita nahim, arihamta nahim, chakravarti nahim, baladeva nahim, vasudeva nahim, narka nahim, naraki nahim, sukrita aura dushkrita karma ki phalavritti vishesha nahim, samyak prakara se acharana kiya gaya karma shubha phala nahim deta, kutsita prakara se acharana kiya gaya karma ashubha phala nahim deta, kalyana karma aura papa karma phalarahita haim. Jiva paraloka mem jakara utpanna nahim hota, naraka adi chara gati nahim hai, siddhi nahim jo isa prakara kahata hai, isa prakara ki buddhivala hai, isa prakara ki drishtivala hai, jo aisi ummida aura raga ya kadagraha yukta hai vo mithyadrishti jiva hai. Aisa mithyadrishti jiva maha ichchhavala, maharambhi, mahaparigrahi, adharmika, adharmanugami, adharmasevi, adharma khyativala, adharmanuragi, adharmadrashta, adharmajivi, adharma anurakta, adharmika shilavala, adharmika acharanavala aura adharma se ajivika karate hue vicharata hai. Vo mithyadrishti nastika ajivika ke lie dusarom ko kahata hai, jiva ko mara dalo, usake amga chhedana karo, sara, peta adi bhedana karo, kata do. Usake apane hatha lahu se bhare rahate haim, vo chamda, raudra aura shudra hota hai. Soche bina kama karata hai, sahasika hota hai, logom se rishvata leta hai. Dhokha, maya, chhala, kura, kapata aura mayajala banane mem mahira hota hai. Vo duhshila, dushtajana ka parichita, dushcharita, daruna svabhavi, dushtavrati, dushkrita karane mem anandita rahata hai. Shila rahita, guna pratyakhyana – paushadha – upavasa na karanevala aura asadhu hota hai. Vo javajjiva ke lie sarva prakara ke pranatipata se aprativirata rahata hai yani himsaka rahata hai. Usi prakara sarva prakara se mrishavada, adattadana, maithuna, parigraha ka bhi tyaga nahim karata. Sarva prakara se krodha, mana, maya, lobha, raga, dvesha, kalaha, ala, chugali, nimda, rati – arati, maya – mrisha aura mithya darshana shalya se javajjiva avirata rahata hai. Yani isa 18 papasthanaka ka sevana karata rahata hai. Vo sarva prakara se snana, mardana, vilepana, shabda, sparsha, rasa, rupa, gandha, mala, alamkara se yavajjiva aprativirata rahata hai, shakata, ratha, yana, yuga, gilli, thilli, shibika, syandamanika, shayana, asana, yanavahana, bhojana, griha sambandhi vastra – patra adi se yavajjiva aprativirata rahata hai. Sarva, ashva, hathi, gaya, bhaimsa, bhera – bakare, dasa – dasi, naukara – purusha, sona, dhana, dhanya, mani – moti, shamkha, muga se yavajjivana aprativirata rahata hai. Yavajjiva ke lie hinadhika tolamapa, sarva arambha, samarambha, sarva karya karana – karavana, pachana – pachana, kutana, pisana, tarjana – tarana, vadha – bandha, pariklesha yavat vaise prakara ke savadya aura mithyatvavardhaka, dusare jiva ke pranom ko paritapa pahumchanevala karma karate haim. Yaha sabhi papa karya se aprativirata yani jura rahata hai. Jisa prakara koi purusha kalama, masura, tala, muga, urada, balola, kalathi, tuvara, kale chane, jvara aura usa prakara ke anya dhanya ko jiva raksha ke bhava ke siva kruratapurvaka upapurushana karate hue mithyadamra prayoga karata hai, usi prakara koi purusha vishesha titara, vatera, lava, kabutara, kapimjala, mriga, bhaimsa, sukara, magaramachchha, godha, kachhua aura sarpa adi nirdosha jiva ko krurata se mithya – damra ka prayoga karate haim, yani ki nirdoshata se ghata karate haim. Aura phira usaki jo bahya parshada hai, jaise ki – dasa, duta, vetana se kama karanevale, hissedara, karmakara, bhoga purusha adi se hue chhote aparadha ka bhi khuda hi bara damra dete haim. Ise damra do, ise mumrana kara do, isaki tarjana karo – tarana karo, ise hatha mem – pamva mem, gale mem sabhi jagaha beriyam lagao, usake donom pamva mem beri bamdhakara, pamva ki amti laga do, isake hatha kata do, pamva kata do, kana kata do, nakhuna chheda do, hotha chheda do, sara ura do, mumha tora do, purusha chihna kata do, hridaya chira do, usi prakara amkha – damta – mumha – jihva ukhera do, ise rassi se bamdhakara pera para lataka do, bamdhakara jamim para ghiso, dahim ki prakara mamthana karo, shuli para charao, trishula se bhedana karo, shastra se chhinna – bhinna kara do, bhedana kie sharira para kshara dalo, usake jhakhma para ghasa ralo, use shera, vrishabha, samra ki pumchha se bamdha do, davagni mem jala do, tukare kara ke kaue ko mamsa khila do, khana – pina banda kara do, javajjiva ke bamdhana mem rakho, anya kisi prakara se kumauta se mara ralo. Usa mithyadrishti ki jo abhyamtara parshada hai. Jaise ki mata, pita, bhai, bahana, bharya, putri, putravadhu adi unamem se kisi ka bhi thora aparadha ho to khuda hi bhari damra dete haim. Jaise ki thamre pani mem duboe, garma pani sharira para rale, aga se unake sharira jalae, jota – bemta – netra adi ki rassi se, chabuka se, chhivari se, moti vela se, mara – marakara donom bagala ke chamare ukhera de, damra, haddi, mumri, patthara, khappara se unake sharira ko kute, pise, isa prakara ke purusha varga ke satha rahanevale manava duhkhi rahate haim. Dura rahe to prasanna rahate haim. Isa prakara ka purusha varga hammesha damra satha rakhate haim. Aura kisi se thora bhi aparadha ho to adhikadhika damra dene ka sochate haim. Damra ko age rakhakara hi bata karate haim. Aisa purusha yaha loka aura paraloka donom mem apana ahita karata hai. Aise loga dusarom ko duhkhi karate haim, shoka samtapta karate haim, tarapate haim, satate haim, darda dete haim, pitate haim, paritapa pahumchate haim, usa prakara se vadha, bandha, klesha adi pahumchane mem jure rahate haim. Isa prakara se vo stri sambandhi kama – bhoga mem murchhita, griddha, asakta aura pamchendriya ke vishaya mem dube rahate haim. Usa prakara se vo chara, pamcha, chha yavat dasha sala ya usase kama – jyada kala kamabhoga bhugatakara vairabhava ke sabhi sthana karake kaim ashubha karma ikatthe karake, jisa prakara loha ya patthara ka gola pani mem phemkane se jala – tala ka atikramana karake niche talave mem pahumcha jae usa prakara se isa prakara ka purusha varga vajra jaise kaim papa, klesha, kichara, baira, dambha, maya, prapamcha, ashatana, ayasha, apratitivala hokara prayah trasaprani ka ghata karate hue bhumitala ka atikramana karake niche narakabhumi mem sthana pate haim. Vo naraka bhitara se gola aura bahara se chorasa hai. Niche chhara – astara ke akaravali hai. Nitya ghora amdhakara se vyapta hai. Chandra, surya, graha, nakshatra, jyotishka ki prabha se rahita haim. Usa naraka ki bhumi charabi, mamsa, lahu, paru ka samuha jaise kichara se lepi hui hai. Mala – mutra adi ashuchi padartha se bhari aura parama gamdhamaya hai. Kali ya kapota varnavali, agni ke varna ki abhavali hai, karkasha sparshavali hone se asahya hai, ashubha hone se vaham ashubha darda hota hai, vaham nidra nahim le sakate, usa naraki ke jiva usa naraka mem ashubha darda ka prati vakta ahasasa karate hue vicharate haim. Jisa prakara parvata ke agra hisse para paida hua pera jara katane se upara ka hissa bhari hone se jaham nicha sthana hai, jaham durgama pravesha karata hai ya vishama jagaha hai vaham girata hai, usi prakara upara kahane ke mutabika mithyatvi, ghora papi purusha varga eka garbha mem se dusare garbha mem, eka janma mem se dusare janma mem, eka marana mem se dusare marana mem, eka duhkha mem se dusare duhkha mem girate haim. Isa krishnapakshika naraki bhavi mem durlabhabodhi hoti hai. Isa prakara ka jiva akriyavadi hai. |