Sutra Navigation: Pushpachulika ( पुष्पचूला )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1008303
Scripture Name( English ): Pushpachulika Translated Scripture Name : पुष्पचूला
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-१ थी १०

Translated Chapter :

अध्ययन-१ थी १०

Section : Translated Section :
Sutra Number : 3 Category : Upang-11
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फचूलियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिवडिंसयंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं जहा बहुपुत्तिया जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया, नवरं–दारियाओ नत्थि। पुव्वभवपुच्छा। एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं रायगिहे नयरे सुदंसणे नामं गाहावई परिवसई–अड्ढे। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया, पियाए गाहावइणीए अत्तया भूया नामं दारिया होत्था–‘वुड्ढा वुड्ढकुमारी’ जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुतत्थणी वरगपरिवज्जिया यावि होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जाव नवरयणिए वण्णओ सो चेव समोसरणं। परिसा निग्गया। तए णं सा भूया दारिया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी– एवं खलु अम्मताओ! पासे अरहा पुरिसादानीए पुव्वानुपुव्विं चरमाणे जाव गणपरिवुडे विहरइ, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादानीयस्स पायवंदिया गमित्तए। अहासुहं देवानुप्पिए! मा पडिबंधं। तए णं सा भूया दारिया ण्हाया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडीचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जानप्पवरं दुरूढा। तए णं सा भूया दारिया नियगपरिवारपरिवुडा रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताईए तित्थयराइसए पासइ, पासित्ता धम्मियाओ जानप्पवराओ पच्चोरुभित्ता चेडीचक्कवालपरिकिन्ना जेणेव पासे अरहा पुरिसादानीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो अयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ जाव पज्जुवासइ। तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए भूयाए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ, धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, से जहेयं तुब्भे वयह, जं नवरं भंते! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिए! तए णं सा भूया दारिया तमेव धम्मियं जानप्पवरं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागया, रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया, रहाओ पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागया, करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जहा जमाली आपुच्छइ। अहासुहं देवाणुप्पिए! तए णं से सुदंसणे गाहावई विउलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणं आमंतेइ, आमंतेत्ता जाव जिमियभुत्तुत्तरकाले सुईभूए निक्खमणमाणेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! भूयाए दारियाए पुरिस-सहस्सवाहिणिं सीयं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से सुदंसणे गाहावई भूयं दारियं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियसरीरं पुरिससहस्स-वाहिणिं सीयं दुरूहेइ, दुरूहेत्ता मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणेण सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि निग्घोसणानाइयरवेणं रायगिहं नयरं मज्झं-मज्झेणं जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागए छत्तातीए तित्थयरातिसए पासइ, पासित्ता सीयं ठवेइ, ठवेत्ता भूयं दारियं सीयाओ पच्चोरुहेइ। तए णं तं भूयं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव अरहा पुरिसादानीए तेणेव उवागया तिक्खुत्तो ‘वंदंति नमंसंति’, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! भूया दारिया अम्हं धूया इट्ठा, एस णं देवानुप्पिया! संसारभउव्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयाइ। तं एयं णं देवानुप्पिया! सिस्सिणीभिक्खं दलयामो। पडिच्छंतु णं देवाणुनुप्पिया! सिस्सिणि-भिक्खं। अहासुहं देवानुप्पिया! तए णं सा भूया दारिया पासेणं अरहा एवं वुत्ता समाणी हट्ठतुट्ठा उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कम्मइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, जहा देवानंदा, पुप्फचूलाणं अंतिए जाव गुत्तबंभयारिणी। तए णं सा भूया अज्जा अन्नया कयाइ सरीरबाओसिया जाया यावि होत्था–अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवइ, पाए धोवइ, सीसं धोवइ, मुहं धोवइ, थणगंतराइं धोवइ, कक्खंतराइं धोवइ, गुज्झंतराइं धोवइ, जत्थ-जत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहंपि वा चेएइ, तत्थ-तत्थ वि य णं पुव्वामेव पाणएणं अब्भुक्खेइ, तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ। तए णं ताओ पुप्फचूलाओ अज्जाओ भूयं अज्जं एवं वयासी– अम्हे णं देवाणुप्पिए! समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभयारिणीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं सरीरबाओसियाणं होत्तए। तुमं च णं देवाणुप्पिए! सरीरबाओसिया अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवसि जाव निसीहियं चेएसि। तं णं तुमं देवाणुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहि, सेसं जहा सुभद्दाए जाव पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं सा भूया अज्जा अणोहट्टिया अनिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवइ जाव निसीहियं वा चेएइ। तए णं सा भूया अज्जा बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सिरिवडेंसए विमाने उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्ताए ओगाहणाए सिरिदेवित्ताए उववन्ना पंचविहाए पज्जत्तीए जाव भासमनपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गया। एवं खलु गोयमा! सिरीए देवीए एसा दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता। ठिई एगं पलिओवमं। सिरी णं भंते! देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फचूलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। एवं सेसाणवि नवण्हं भाणियव्वं। सरिनामा विमाणा। सोहम्मे कप्पे। पुव्वभवे नयरचेइय-पियमाईणं अप्पणो य नामाइं जहा संगहणीए। सव्वा पासस्स अंतिए निक्खंता। पुप्फचूलाणं सिस्सिणीयाओ सरीरबाउसियाओ सव्वाओ अनंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिंति।
Sutra Meaning : हे भदन्त ! श्रमण यावत्‌ मोक्षप्राप्त भगवान महावीर ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय बताया है ? हे जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा था। श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। परिषद्‌ नीकली। उस काल और उस समय श्रीदेवी सौधर्मकल्प में श्री अवतंसक विमान की सुधर्मासभा में बहुपुत्रिका देवी के समान श्रीसिंहासन पर बैठी हुई थी उसने अवधिज्ञान से भगवान को देखा। यावत्‌ नृत्य – विधि को प्रदर्शित कर वापिस लौट गई। यहाँ इतना विशेष है कि श्रीदेवी ने अपनी नृत्यविधि में बालिकाओं की विकुर्वणा नहीं की थी। गौतमस्वामी ने भगवान से पूर्वभव के विषय में पूछा। हे गौतम ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था, राजा जितशत्रू था। उस राजगृह नगर में धनाढ्य सुदर्शन नाम का गाथापति था। उसकी सुकोमल अंगोपांग, सुन्दर शरीर वाली आदि विशेषणों से विशिष्ट प्रिया नाम की भार्या थी। उस सुदर्शन गाथापति की पुत्री, प्रिया गाथापत्नी की आत्मजा भूता नाम की दारिका थी। जो वृद्ध – शरीर और वृद्धकुमारी, जीर्णशरीर वाली और जीर्णकुमारी, शिथिल नितम्ब और स्तनवाली तथा वरविहीन थी। उस काल और उस समय में पुरुषादानीय एवं नौ हाथ की अवगाहनावाले इत्यादि रूप से वर्णनीय अर्हत्‌ पार्श्व प्रभु पधारे। परिषद्‌ नीकली। भूता दारिका इस संवाद को सूनकर हर्षित और संतुष्ट हुई और माता – पिता से आज्ञा माँगी – ‘हे मात – तात ! पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत्‌ यावत्‌ शिष्यगण से परिवृत होकर बिराजमान हैं। आप की आज्ञा – अनुमति लेकर मैं वंदना के लिए जाना चाहती हूँ। ‘देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो।’ तत्पश्चात्‌ भूता दारिका ने स्नान किया यावत्‌ शरीर को अलंकृत करके दासियों के समूह के साथ अपने घर से नीकली। उत्तम धार्मिक यान – पर आसीन हुई। इस के बाद वह भूता दारिका अपने स्वजन – परिवार को साथ ले कर राजगृह नगर के मध्यभागमें से नीकली। पार्श्व प्रभु बिराजमान थे, वहाँ आई। तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा कर के वंदना की यावत्‌ पर्युपासना करने लगी। तदनन्तर पुरुषादानीय अर्हत्‌ पार्श्वप्रभु ने उस भूता बालिका और अति विशाल परिषद्‌ को धर्मदेशना सुनाई। धर्मदेशना सूनकर और उसे हृदयंगम करके वह हृष्ट – तुष्ट हुई। फिर भूता दारिका ने वंदन – नमस्कार किया और कहा – ‘भगवन्‌ ! मैं निर्ग्रन्थ – प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ – यावत्‌ निर्ग्रन्थ – प्रवचन को अंगीकार करने के लिए तत्पर हूँ। हे भदन्त ! माता – पिता से आज्ञा प्राप्त कर लूँ, तब मैं यावत्‌ प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ।’ अर्हत्‌ पार्श्व प्रभु ने उत्तर दिया – ‘देवानुप्रिये ! ईच्छानुसार करो।’ इसके बाद वह भूता दारिका यावत्‌ उसी धार्मिक श्रेष्ठ यान पर आरूढ हुई। जहाँ राजगृह नगर था, जहाँ अपना आवास स्थान – वहाँ आई। रथ से नीचे उतर कर माता – पिता के समीप आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत्‌ जमालि की तरह माता – पिता से आज्ञा माँगी। तदनन्तर सुदर्शन गाथापति ने विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम भोजन बनवाया और मित्रों, ज्ञातिजनों आदि को आमंत्रित किया यावत्‌ भोजन करने के पश्चात्‌ शुद्ध – स्वच्छ होकर अभिनिष्क्रमण कराने के लिए कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी – शीघ्र ही भूता दारिका के लिए सहस्र पुरुषों द्वारा वहन की जाए ऐसी शिबिका लाओ। तत्पश्चात्‌ उस सुदर्शन गाथापति ने स्नान की हुई और आभूषणों से विभूषित शरीरवाली भूता दारिका को पुरुषसहस्रवाहिनी शिबिका पर आरूढ किया यावत्‌ गुणशिलक चैत्य था, वहाँ आया और छत्रादि तीर्थंकरातिशयों को देखकर पालकी को रोका और उससे भूता दारिका को उतारा। इसके बाद माता – पिता उस भूता दारिका को आगे करके जहाँ पुरुषादानीय अर्हत्‌ पार्श्वप्रभु बिराजमान थे, वहाँ आए और तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा करके वंदन – नमस्कार किया तथा कहा – यह भूता दारिका हमारी एकलौती पुत्री है। यह हमें इष्ट – है। यह संसार के भय से उद्विग्न होकर आप देवानुप्रिय के निकट मुंडित होकर यावत्‌ प्रव्रजित होना चाहती है। हम इसे शिष्या – भिक्षा के रूप में आपको समर्पित करते हैं। पार्श्व प्रभु ने उत्तर दिया – ‘देवानुप्रिय ! जैसे सुख उपजे वैसा करो।’ तब उस भूता दारिका ने पार्श्व अर्हत्‌ की अनुमति – सूनकर हर्षित हो, उत्तर – पूर्व दिशा में जाकर स्वयं आभरण – उतारे। यह वृत्तान्त देवानन्दा के समान कह लेना। अर्हत्‌ प्रभु पार्श्व ने उसे प्रव्रजित किया और पुष्पचूलिका आर्या को शिष्या के रूप में सौंप दिया। उसने पुष्पचूलिका आर्या से शिक्षा प्राप्त की यावत्‌ वह गुप्त ब्रह्मचारिणी हो गई। कुछ काल के पश्चात्‌ वह भूता आर्यिका शरीरबकुशिका हो गई। वह बारबार हाथ, पैर, शिर, मुख, स्तनान्तर, कांख, गुह्यान्तर धोती और जहाँ कहीं भी खड़ी होती, सोती, बैठती अथवा स्वाध्याय करती उस – उस स्थान पर पहले पानी छिड़कती और उसके बाद खड़ी होती, सोती, बैठती या स्वाध्याय करती। तब पुष्पचूलिका आर्या ने समझाया – देवानुप्रिये ! हम ईर्यासमिति से समित यावत्‌ गुप्त ब्रह्मचारिणी निर्ग्रन्थ श्रमणी हैं। इसलिए हमें शरीरबकुशिका होना नहीं कल्पता है, तुम इस स्थान – की आलोचना करो। इत्यादि शेष वर्णन सुभद्रा के समान जानना। यावत्‌ एक दिन उपाश्रय से नीकल कर वह बिल्कुल अकेले उपाश्रय में जाकर निवास करने लगी। तत्पश्चात्‌ वह भूता आर्या निरंकुश, बिना रोकटोक के स्वच्छन्दमति होकर बार – बार हाथ धोने लगी यावत्‌ स्वाध्याय करने लगी। तब वह भूता आर्या विविध प्रकार की चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त आदि तपश्चर्या करके और बहुत वर्षों तक श्रमणीपर्याय का पालन करके एवं अपनी अनुचित अयोग्य कायप्रवृत्ति की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किए बिना ही मरण करके सौधर्मकल्प के श्रीअवतंसक विमान की उपपातसभा में यावत्‌ श्रीदेवी के रूप में उत्पन्न हुई, यावत्‌ पाँच – पर्याप्ति से पर्याप्त हुई। इस प्रकार हे गौतम ! श्रीदेवी ने यह दिव्य देवऋद्धि, लब्धि और प्राप्ति की है। वहाँ उसकी एक पल्योपम की आयु – स्थिति है। वह आयुष्य पूर्ण करके ‘महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगी और सिद्धि प्राप्त करेंगी।’ इसी प्रकार शेष नौ अध्ययनों का भी वर्णन करना। मरण के पश्चात्‌ अपने – अपने नाम के अनुरूप नामवाले विमानों में उनकी उत्पत्ति हुई। सभी का सौधर्मकल्प में उत्पाद हुआ। उनका पूर्वभव भूता के समान है। नगर, चैत्य, माता – पिता और अपने नाम आदि संग्रहणीगाथा के अनुसार है। सभी पार्श्व अर्हत्‌ से प्रव्रजित हुई और वे पुष्पचूला आर्या की शिष्याएं हुई। सभी शरीरबकुशिका हुईं और देवलोक के भव के अनन्तर च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होंगी।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam uvamganam chautthassa vaggassa pupphachuliyanam dasa ajjhayana pannatta, padhamassa nam bhamte! Ajjhayanassa pupphachuliyanam samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nayare. Gunasilae cheie. Senie raya. Sami samosadhe. Parisa niggaya. Tenam kalenam tenam samaenam siridevi sohamme kappe sirivadimsae vimane sabhae suhammae sirivadimsayamsi sihasanamsi chauhim samaniyasahassihim chauhim mahattariyahim saparivarahim jaha bahuputtiya java nattavihim uvadamsitta padigaya, Navaram–dariyao natthi. Puvvabhavapuchchha. Evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nayare. Gunasilae cheie. Jiyasattu raya. Tattha nam rayagihe nayare sudamsane namam gahavai parivasai–addhe. Tassa nam sudamsanassa gahavaissa piya namam bhariya hottha–sumalapanipaya. Tassa nam sudamsanassa gahavaissa dhuya, piyae gahavainie attaya bhuya namam dariya hottha–‘vuddha vuddhakumari’ junna junnakumari padiyaputatthani varagaparivajjiya yavi hottha. Tenam kalenam tenam samaenam pase araha purisadanie java navarayanie vannao so cheva samosaranam. Parisa niggaya. Tae nam sa bhuya dariya imise kahae laddhattha samani hatthatuttha jeneva ammapiyaro teneva uvagachchhai, uvagachchhitta evam vayasi– Evam khalu ammatao! Pase araha purisadanie puvvanupuvvim charamane java ganaparivude viharai, tam ichchhami nam ammatao! Tubbhehim abbhanunnaya samani pasassa arahao purisadaniyassa payavamdiya gamittae. Ahasuham devanuppie! Ma padibamdham. Tae nam sa bhuya dariya nhaya appamahagghabharanalamkiyasarira chedichakkavalaparikinna sao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dhammiyam janappavaram durudha. Tae nam sa bhuya dariya niyagaparivaraparivuda rayagiham nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva gunasilae cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chhattaie titthayaraisae pasai, pasitta dhammiyao janappavarao pachchorubhitta chedichakkavalaparikinna jeneva pase araha purisadanie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai java pajjuvasai. Tae nam pase araha purisadanie bhuyae dariyae tise ya mahaimahaliyae parisae dhammam parikahei, dhammam sochcha nisamma hatthatuttha vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam java abbhutthemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam, se jaheyam tubbhe vayaha, jam navaram bhamte! Ammapiyaro apuchchhami, tae nam aham devanuppiyanam amtie mumda bhavitta agarao anagariyam pavvayami. Ahasuham devanuppie! Tae nam sa bhuya dariya tameva dhammiyam janappavaram duruhai, duruhitta jeneva rayagihe nayare teneva uvagaya, rayagiham nayaram majjhammajjhenam jeneva sae gihe teneva uvagaya, rahao pachchoruhitta jeneva ammapiyaro teneva uvagaya, karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaha jamali apuchchhai. Ahasuham devanuppie! Tae nam se sudamsane gahavai viulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavei, mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanam amamtei, amamtetta java jimiyabhuttuttarakale suibhue nikkhamanamanetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Bhuyae dariyae purisa-sahassavahinim siyam uvatthaveha, uvatthavetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se sudamsane gahavai bhuyam dariyam nhayam java savvalamkaravibhusiyasariram purisasahassa-vahinim siyam duruhei, duruhetta mitta nai niyaga sayana sambamdhi pariyanena saddhim samparivude savviddhie java dumduhi nigghosananaiyaravenam rayagiham nayaram majjham-majjhenam jeneva gunasilae cheie teneva uvagae chhattatie titthayaratisae pasai, pasitta siyam thavei, thavetta bhuyam dariyam siyao pachchoruhei. Tae nam tam bhuyam dariyam ammapiyaro purao kaum jeneva araha purisadanie teneva uvagaya tikkhutto ‘vamdamti namamsamti’, vamditta namamsitta evam vayasi– Evam khalu devanuppiya! Bhuya dariya amham dhuya ittha, esa nam devanuppiya! Samsarabhauvvigga bhiya jammanamarananam devanuppiyanam amtie mumda bhavitta agarao anagariyam pavvayai. Tam eyam nam devanuppiya! Sissinibhikkham dalayamo. Padichchhamtu nam devanunuppiya! Sissini-bhikkham. Ahasuham devanuppiya! Tae nam sa bhuya dariya pasenam araha evam vutta samani hatthatuttha uttarapuratthimam disibhagam avakkammai, avakkamitta sayameva abharanamallalamkaram omuyai, jaha devanamda, pupphachulanam amtie java guttabambhayarini. Tae nam sa bhuya ajja annaya kayai sarirabaosiya jaya yavi hottha–abhikkhanam-abhikkhanam hatthe dhovai, pae dhovai, sisam dhovai, muham dhovai, thanagamtaraim dhovai, kakkhamtaraim dhovai, gujjhamtaraim dhovai, jattha-jattha vi ya nam thanam va sejjam va nisihampi va cheei, tattha-tattha vi ya nam puvvameva panaenam abbhukkhei, tao pachchha thanam va sejjam va nisihiyam va cheei. Tae nam tao pupphachulao ajjao bhuyam ajjam evam vayasi– Amhe nam devanuppie! Samanio niggamthio iriyasamiyao java guttabambhayarinio. No khalu kappai amham sarirabaosiyanam hottae. Tumam cha nam devanuppie! Sarirabaosiya abhikkhanam-abhikkhanam hatthe dhovasi java nisihiyam cheesi. Tam nam tumam devanuppie! Eyassa thanassa aloehi, sesam jaha subhaddae java padiekkam uvassayam uvasampajjittanam viharai. Tae nam sa bhuya ajja anohattiya anivariya sachchhamdamai abhikkhanam-abhikkhanam hatthe dhovai java nisihiyam va cheei. Tae nam sa bhuya ajja bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddhamasakhamanehim vichittehim tavokammehim appanam bhavemani bahuim vasaim samannapariyagam paunitta, tassa thanassa analoiyapadikkamta kalamase kalam kichcha sohamme kappe sirivademsae vimane uvavayasabhae devasayanijjamsi devadusamtariya amgulassa asamkhejjaibhagamettae ogahanae siridevittae uvavanna pamchavihae pajjattie java bhasamanapajjattie pajjattabhavam gaya. Evam khalu goyama! Sirie devie esa divva deviddhi laddha patta. Thii egam paliovamam. Siri nam bhamte! Devi tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam anamtaram chayam chaitta kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Mahavidehe vase sijjhihii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam pupphachuliyanam padhamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. Evam sesanavi navanham bhaniyavvam. Sarinama vimana. Sohamme kappe. Puvvabhave nayaracheiya-piyamainam appano ya namaim jaha samgahanie. Savva pasassa amtie nikkhamta. Pupphachulanam sissiniyao sarirabausiyao savvao anamtaram chayam chaitta mahavidehe vase sijjhihimti.
Sutra Meaning Transliteration : He bhadanta ! Shramana yavat mokshaprapta bhagavana mahavira ne prathama adhyayana ka kya ashaya bataya hai\? He jambu! Usa kala aura usa samaya mem rajagriha nagara tha. Gunashilaka chaitya tha. Shrenika raja tha. Shramana bhagavana mahavira svami vaham padhare. Parishad nikali. Usa kala aura usa samaya shridevi saudharmakalpa mem shri avatamsaka vimana ki sudharmasabha mem bahuputrika devi ke samana shrisimhasana para baithi hui thi usane avadhijnyana se bhagavana ko dekha. Yavat nritya – vidhi ko pradarshita kara vapisa lauta gai. Yaham itana vishesha hai ki shridevi ne apani nrityavidhi mem balikaom ki vikurvana nahim ki thi. Gautamasvami ne bhagavana se purvabhava ke vishaya mem puchha. He gautama ! Usa kala aura usa samaya mem rajagriha nagara tha. Gunashilaka chaitya tha, raja jitashatru tha. Usa rajagriha nagara mem dhanadhya sudarshana nama ka gathapati tha. Usaki sukomala amgopamga, sundara sharira vali adi visheshanom se vishishta priya nama ki bharya thi. Usa sudarshana gathapati ki putri, priya gathapatni ki atmaja bhuta nama ki darika thi. Jo vriddha – sharira aura vriddhakumari, jirnasharira vali aura jirnakumari, shithila nitamba aura stanavali tatha varavihina thi. Usa kala aura usa samaya mem purushadaniya evam nau hatha ki avagahanavale ityadi rupa se varnaniya arhat parshva prabhu padhare. Parishad nikali. Bhuta darika isa samvada ko sunakara harshita aura samtushta hui aura mata – pita se ajnya mamgi – ‘he mata – tata ! Purushadaniya parshva arhat yavat shishyagana se parivrita hokara birajamana haim. Apa ki ajnya – anumati lekara maim vamdana ke lie jana chahati hum. ‘devanupriye ! Jaise tumhem sukha ho vaisa karo, kintu vilamba mata karo.’ tatpashchat bhuta darika ne snana kiya yavat sharira ko alamkrita karake dasiyom ke samuha ke satha apane ghara se nikali. Uttama dharmika yana – para asina hui. Isa ke bada vaha bhuta darika apane svajana – parivara ko satha le kara rajagriha nagara ke madhyabhagamem se nikali. Parshva prabhu birajamana the, vaham ai. Tina bara adakshina pradakshina kara ke vamdana ki yavat paryupasana karane lagi. Tadanantara purushadaniya arhat parshvaprabhu ne usa bhuta balika aura ati vishala parishad ko dharmadeshana sunai. Dharmadeshana sunakara aura use hridayamgama karake vaha hrishta – tushta hui. Phira bhuta darika ne vamdana – namaskara kiya aura kaha – ‘bhagavan ! Maim nirgrantha – pravachana para shraddha karati hum – yavat nirgrantha – pravachana ko amgikara karane ke lie tatpara hum. He bhadanta ! Mata – pita se ajnya prapta kara lum, taba maim yavat pravrajya amgikara karana chahati hum.’ arhat parshva prabhu ne uttara diya – ‘devanupriye ! Ichchhanusara karo.’ Isake bada vaha bhuta darika yavat usi dharmika shreshtha yana para arudha hui. Jaham rajagriha nagara tha, jaham apana avasa sthana – vaham ai. Ratha se niche utara kara mata – pita ke samipa akara donom hatha jorakara yavat jamali ki taraha mata – pita se ajnya mamgi. Tadanantara sudarshana gathapati ne vipula ashana, pana, khadima, svadima bhojana banavaya aura mitrom, jnyatijanom adi ko amamtrita kiya yavat bhojana karane ke pashchat shuddha – svachchha hokara abhinishkramana karane ke lie kautumbika purushom ko bulakara unhem ajnya di – shighra hi bhuta darika ke lie sahasra purushom dvara vahana ki jae aisi shibika lao. Tatpashchat usa sudarshana gathapati ne snana ki hui aura abhushanom se vibhushita shariravali bhuta darika ko purushasahasravahini shibika para arudha kiya yavat gunashilaka chaitya tha, vaham aya aura chhatradi tirthamkaratishayom ko dekhakara palaki ko roka aura usase bhuta darika ko utara. Isake bada mata – pita usa bhuta darika ko age karake jaham purushadaniya arhat parshvaprabhu birajamana the, vaham ae aura tina bara adakshina – pradakshina karake vamdana – namaskara kiya tatha kaha – yaha bhuta darika hamari ekalauti putri hai. Yaha hamem ishta – hai. Yaha samsara ke bhaya se udvigna hokara apa devanupriya ke nikata mumdita hokara yavat pravrajita hona chahati hai. Hama ise shishya – bhiksha ke rupa mem apako samarpita karate haim. Parshva prabhu ne uttara diya – ‘devanupriya ! Jaise sukha upaje vaisa karo.’ taba usa bhuta darika ne parshva arhat ki anumati – sunakara harshita ho, uttara – purva disha mem jakara svayam abharana – utare. Yaha vrittanta devananda ke samana kaha lena. Arhat prabhu parshva ne use pravrajita kiya aura pushpachulika arya ko shishya ke rupa mem saumpa diya. Usane pushpachulika arya se shiksha prapta ki yavat vaha gupta brahmacharini ho gai. Kuchha kala ke pashchat vaha bhuta aryika sharirabakushika ho gai. Vaha barabara hatha, paira, shira, mukha, stanantara, kamkha, guhyantara dhoti aura jaham kahim bhi khari hoti, soti, baithati athava svadhyaya karati usa – usa sthana para pahale pani chhirakati aura usake bada khari hoti, soti, baithati ya svadhyaya karati. Taba pushpachulika arya ne samajhaya – devanupriye ! Hama iryasamiti se samita yavat gupta brahmacharini nirgrantha shramani haim. Isalie hamem sharirabakushika hona nahim kalpata hai, tuma isa sthana – ki alochana karo. Ityadi shesha varnana subhadra ke samana janana. Yavat eka dina upashraya se nikala kara vaha bilkula akele upashraya mem jakara nivasa karane lagi. Tatpashchat vaha bhuta arya niramkusha, bina rokatoka ke svachchhandamati hokara bara – bara hatha dhone lagi yavat svadhyaya karane lagi. Taba vaha bhuta arya vividha prakara ki chaturthabhakta, shashthabhakta adi tapashcharya karake aura bahuta varshom taka shramaniparyaya ka palana karake evam apani anuchita ayogya kayapravritti ki alochana evam pratikramana kie bina hi marana karake saudharmakalpa ke shriavatamsaka vimana ki upapatasabha mem yavat shridevi ke rupa mem utpanna hui, yavat pamcha – paryapti se paryapta hui. Isa prakara he gautama ! Shridevi ne yaha divya devariddhi, labdhi aura prapti ki hai. Vaham usaki eka palyopama ki ayu – sthiti hai. Vaha ayushya purna karake ‘mahavideha kshetra mem utpanna homgi aura siddhi prapta karemgi.’ Isi prakara shesha nau adhyayanom ka bhi varnana karana. Marana ke pashchat apane – apane nama ke anurupa namavale vimanom mem unaki utpatti hui. Sabhi ka saudharmakalpa mem utpada hua. Unaka purvabhava bhuta ke samana hai. Nagara, chaitya, mata – pita aura apane nama adi samgrahanigatha ke anusara hai. Sabhi parshva arhat se pravrajita hui aura ve pushpachula arya ki shishyaem hui. Sabhi sharirabakushika huim aura devaloka ke bhava ke anantara chyavana karake mahavideha kshetra mem janma lekara siddha homgi.