Sutra Navigation: Kalpavatansika ( कल्पावतंसिका )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1008101 | ||
Scripture Name( English ): | Kalpavatansika | Translated Scripture Name : | कल्पावतंसिका |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-१ पद्म |
Translated Chapter : |
अध्ययन-१ पद्म |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1 | Category : | Upang-09 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– पउमे महापउमे, भद्दे सुभद्दे पउमभद्दे । पउमसेने पउमगुम्मे, नलिनिगुम्मे आनंदे नंदने ॥ जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा कूणियस्स रन्नो चुल्लमाउया काली नामं देवी होत्था–सूमाला। तीसे णं कालीए देवीए पुत्ते काले नामं कुमारे होत्था–सूमाले। तस्स णं कालस्स कुमारस्स पउमावई नामं देवी होत्था–सूमालपाणिपाया जाव विहरइ। तए णं सा पउमावई देवी अन्नया कयाइं तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अब्भिंतरओ सचित्तकम्मे जाव सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। एवं जम्मणं जहा महाबलस्स जाव नामधेज्जं–जम्हा णं अम्हं इमे दारए कालस्स कुमारस्स पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं पउमे-पउमे। सेसं जहा महाबलस्स, अट्ठओ दाओ जाव उप्पिं पासायवरगए विहरइ। सामी समोसरिए। परिसा निग्गया। कूणिए निग्गए। पउमेवि जहा महाबले निग्गए तहेव। अम्मापिइआपुच्छणा जाव पव्वइए, अनगारे जाए–इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। तए णं से पउमे अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइय-माइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ छट्ठट्ठम दसम दुवालसेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से पउमे अनगारे तेणं ओरालेणं जहा मेहो तहेव धम्मजागरिया चिंता एवं जहेव मेहो तहेव समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता विउले जाव पाओवगए कालं अनवकंखमाणे विहरइ तए णं से पउमे अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइय-माइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाइं पंच वासाइं सामन्नपरियागं पाउणित्ता, मासि-याए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदित्ता आनुपुव्वीए कालगए। थेरा ओइण्णा। भगवं गोयमे पुच्छइ, सामी कहेइ जाव सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदित्ता आलोइय-पडिक्कंते उड्ढं चंदिम सूर गहगण नक्खत्त तारारूवाणं सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने। दो सागराइं ठिई। से णं भंते! पउमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं पुच्छा गोयमा! महाविदेहे वासे जहा दढपइण्णो जाव अंतं काहिइ। तं एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाण – संप्राप्त भगवान् महावीर ने निरयावलिका नामक उपांग के प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा तो हे भदन्त ! दूसरे वर्ग कल्पवतंसिका का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! कल्पवतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं। – पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र, पद्मप्रभ, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनगुल्म, आनन्द और नन्दन भगवन् ! यदि कल्पवतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? उस काल और उस समय में चंपा नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। कूणिक राजा था। पद्मावती पटरानी थी। उस चंपा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कूणिक राजा की विमाता काली रानी थी, जो अतीव सुकुमार एवं स्त्री – उचित यावत् गुणों से सम्पन्न थी। उस काली देवी का पुत्र कालकुमार था। उस कालकुमार की पद्मावती पत्नी थी, जो सुकोमल थी यावत् मानवीय भोगों को भोगती हुई समय व्यतीत कर रही थी। किसी एक रात्रि में भीतरी भाग में चित्र – विचित्र चित्रामों से चित्रित वासगृह में शैया पर शयन करती हुई स्वप्न में सिंह को देखकर वह पद्मावती देवी जागृत हुई। पुत्र का जन्म हुआ, महाबल की तरह उसका जन्मोत्सव मनाया गया, यावत् नामकरण किया – हमारे इस बालक का नाम पद्म हो। शेष समस्त वर्णन महाबल के समान समझना, यावत् आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। यावत् पद्मकुमार ऊपरी श्रेष्ठ प्रासाद में रहकर भोग भोगते, विचरने लगा। भगवान महावीर स्वामी समवसृत हुए। परिषद् धर्म – देशना श्रवण करने नीकली। कूणिक भी वंदनार्थ नीकला। महाबल के समान पद्म भी दर्शन – वंदना करने के लिए नीकला। माता – पिता से अनुमति प्राप्त करके प्रव्रजित हुआ, यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया। पद्म अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, इत्यादि विविध प्रकार की तप – साधना से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगा। इसके बाद वह पद्म अनगार मेघकुमार के समान उस प्रभावक विपुल, सश्रीक, गुरु द्वारा प्रदत्त, कल्याणकारी, शिव, धन्य, प्रशंसनीय, मांगलिक, उदग्र, उदार, उत्तम, महाप्रभावशाली तप – आराधना से शुष्क, रूक्ष, अस्थिमात्राविशेष शरीर वाला एवं कृश हो गया। किसी समय मध्यरात्रि में धर्म – जागरण करते हुए पद्म अनगार को चिन्तन उत्पन्न हुआ। मेघकुमार के समान श्रमण भगवान से पूछकर विपुल पर्वत जा कर यावत पादोपगमन संस्थारा स्वीकार कर के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अंगों का श्रवण कर परिपूर्ण पाँच वर्ष की श्रमण पर्याय का पालन करके मासिक संलेखना को अंगीकार कर और अनशन द्वारा साठ भक्तों का त्याग करके अनुक्रम से कालगत हुआ। भगवान गौतम ने पद्ममुनि के भविष्य के विषय में प्रश्न किया। स्वामी ने उत्तर दिया कि यावत् भोजनों का छेदन कर, आलोचना – प्रतिक्रमण कर सुदूर चंद्र आदि ज्योतिष्क विमानों के ऊपर सौधर्मकल्प में देव रूप से उत्पन्न हुआ है। वहाँ दो सागरोपम की उसकी आयु है। भदन्त ! वह पद्मदेव आयुक्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा। दृढप्रतिज्ञ के समान यावत् जन्म – मरण का अंत करेगा। इस प्रकार हे आयुष्मन् जम्बू ! कल्पवतंसिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam uvamganam padhamassa vaggassa nirayavaliyanam ayamatthe pannatte, dochchassa nam bhamte! Vaggassa kappavadimsiyanam samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam kai ajjhayana pannatta? Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam kappavadimsiyanam dasa ajjhayana pannatta, tam jaha– Paume mahapaume, bhadde subhadde paumabhadde. Paumasene paumagumme, nalinigumme anamde namdane. Jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam kappavadimsiyanam dasa ajjhayana pannatta, padhamassa nam bhamte! Ajjhayanassa kappavadimsiyanam samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam ke atthe pannatte Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam champa namam nayari hottha. Punnabhadde cheie. Kunie raya. Paumavai devi. Tattha nam champae nayarie seniyassa ranno bhajja kuniyassa ranno chullamauya kali namam devi hottha–sumala. Tise nam kalie devie putte kale namam kumare hottha–sumale. Tassa nam kalassa kumarassa paumavai namam devi hottha–sumalapanipaya java viharai. Tae nam sa paumavai devi annaya kayaim tamsi tarisagamsi vasagharamsi abbhimtarao sachittakamme java siham sumine pasittanam padibuddha. Evam jammanam jaha mahabalassa java namadhejjam–jamha nam amham ime darae kalassa kumarassa putte paumavaie devie attae, tam hou nam amham imassa daragassa namadhejjam paume-paume. Sesam jaha mahabalassa, atthao dao java uppim pasayavaragae viharai. Sami samosarie. Parisa niggaya. Kunie niggae. Paumevi jaha mahabale niggae taheva. Ammapiiapuchchhana java pavvaie, anagare jae–iriyasamie java guttabambhayari. Tae nam se paume anagare samanassa bhagavao mahavirassa taharuvanam theranam amtie samaiya-maiyaim ekkarasa amgaim ahijjai, ahijjitta bahuhim chauttha chhatthatthama dasama duvalasehim masaddha-masakhamanehim vichittehim tavokammehim appanam bhavemane viharai. Tae nam se paume anagare tenam oralenam jaha meho taheva dhammajagariya chimta evam jaheva meho taheva samanam bhagavam mahaviram apuchchhitta viule java paovagae kalam anavakamkhamane viharai Tae nam se paume anagare samanassa bhagavao mahavirassa taharuvanam theranam amtie samaiya-maiyaim ekkarasa amgaim ahijjitta, bahupadipunnaim pamcha vasaim samannapariyagam paunitta, masi-yae samlehanae appanam jhosetta, satthim bhattaim anasanae chheditta anupuvvie kalagae. Thera oinna. Bhagavam goyame puchchhai, sami kahei java satthim bhattaim anasanae chheditta aloiya-padikkamte uddham chamdima sura gahagana nakkhatta tararuvanam sohamme kappe devattae uvavanne. Do sagaraim thii. Se nam bhamte! Paume deve tao devalogao aukkhaenam puchchha goyama! Mahavidehe vase jaha dadhapainno java amtam kahii. Tam evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam kappavadimsiyanam padhamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhadanta ! Yadi shramana yavat nirvana – samprapta bhagavan mahavira ne nirayavalika namaka upamga ke prathama varga ka yaha artha kaha to he bhadanta ! Dusare varga kalpavatamsika ka kya artha kaha hai\? Ayushman jambu ! Kalpavatamsika ke dasa adhyayana kahe haim. – padma, mahapadma, bhadra, subhadra, padmaprabha, padmasena, padmagulma, nalinagulma, ananda aura nandana Bhagavan ! Yadi kalpavatamsika ke dasa adhyayana kahe haim to prathama adhyayana ka kya artha bataya hai\? Usa kala aura usa samaya mem champa nagari thi. Purnabhadra chaitya tha. Kunika raja tha. Padmavati patarani thi. Usa champa nagari mem shrenika raja ki bharya, kunika raja ki vimata kali rani thi, jo ativa sukumara evam stri – uchita yavat gunom se sampanna thi. Usa kali devi ka putra kalakumara tha. Usa kalakumara ki padmavati patni thi, jo sukomala thi yavat manaviya bhogom ko bhogati hui samaya vyatita kara rahi thi. Kisi eka ratri mem bhitari bhaga mem chitra – vichitra chitramom se chitrita vasagriha mem shaiya para shayana karati hui svapna mem simha ko dekhakara vaha padmavati devi jagrita hui. Putra ka janma hua, mahabala ki taraha usaka janmotsava manaya gaya, yavat namakarana kiya – hamare isa balaka ka nama padma ho. Shesha samasta varnana mahabala ke samana samajhana, yavat atha kanyaom ke satha usaka panigrahana hua. Yavat padmakumara upari shreshtha prasada mem rahakara bhoga bhogate, vicharane laga. Bhagavana mahavira svami samavasrita hue. Parishad dharma – deshana shravana karane nikali. Kunika bhi vamdanartha nikala. Mahabala ke samana padma bhi darshana – vamdana karane ke lie nikala. Mata – pita se anumati prapta karake pravrajita hua, yavat gupta brahmachari anagara ho gaya. Padma anagara ne shramana bhagavan mahavira ke tatharupa sthavirom se samayika se lekara gyaraha amgom ka adhyayana kiya yavat chaturthabhakta, shashthabhakta, ashtamabhakta, ityadi vividha prakara ki tapa – sadhana se atma ko bhavita karate hue vicharane laga. Isake bada vaha padma anagara meghakumara ke samana usa prabhavaka vipula, sashrika, guru dvara pradatta, kalyanakari, shiva, dhanya, prashamsaniya, mamgalika, udagra, udara, uttama, mahaprabhavashali tapa – aradhana se shushka, ruksha, asthimatravishesha sharira vala evam krisha ho gaya. Kisi samaya madhyaratri mem dharma – jagarana karate hue padma anagara ko chintana utpanna hua. Meghakumara ke samana shramana bhagavana se puchhakara vipula parvata ja kara yavata padopagamana samsthara svikara kara ke tatharupa sthavirom se samayika adi se lekara gyaraha amgom ka shravana kara paripurna pamcha varsha ki shramana paryaya ka palana karake masika samlekhana ko amgikara kara aura anashana dvara satha bhaktom ka tyaga karake anukrama se kalagata hua. Bhagavana gautama ne padmamuni ke bhavishya ke vishaya mem prashna kiya. Svami ne uttara diya ki yavat bhojanom ka chhedana kara, alochana – pratikramana kara sudura chamdra adi jyotishka vimanom ke upara saudharmakalpa mem deva rupa se utpanna hua hai. Vaham do sagaropama ki usaki ayu hai. Bhadanta ! Vaha padmadeva ayukshaya ke anantara usa devaloka se chyavana karake kaham utpanna hoga\? Gautama ! Mahavideha kshetra mem utpanna hoga. Dridhapratijnya ke samana yavat janma – marana ka amta karega. Isa prakara he ayushman jambu ! Kalpavatamsika ke prathama adhyayana ka yaha artha prajnyapta kiya hai. |