Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007829 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 229 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से सक्के देविंदे देवराया हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं सव्वालंकारविभूसियं उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता अट्ठहिं अग्ग-महिसीहिं सपरिवाराहिं नट्टाणीएणं गंधव्वाणीएण य सद्धिं तं विमानं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे-अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुव्विल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने। एवं चेव सामानियावि उत्तरेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति। अवसेसा देवा य देवीओ य दाहिणिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासनेसु निसीयंति। तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो तंसि दिव्वंसि जाणविमानंसि दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठमंगलगा पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। तयनंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा य दंसणरइयआलोयदरिसणिज्जा वाउद्धुयविजयवेजयंती य समूसिया गगन-तलमनुलिहंती पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। तयनंतरं छत्तभिंगारं। तयनंतरं च णं वइरामय-वट्ट-लट्ठसंठियसुसिलिट्ठपरिघट्ठमट्ठसुपइट्ठिए विसिट्ठे अनेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागाछत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगनतलमनुलिहंतसिहरे जोयणसहस्समूसिए महइमहालए महिंदज्झए पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिए। तयनंतरं च णं सरूवणेवत्थपरियच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारविभूसिया पंच अनिया पंच अनियाहिवइणो पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। तयनंतरं च णं बहवे आभिओगिया देवा य देवीओ य सएहिं-सएहिं रूवेहिं सएहिं-सएहिं विहववेहिं सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं सएहिं-सएहिं निओगेहिं सक्कं देविंदं देवरायं पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। तयनंतरं च णं बहवे सोहम्मकप्पवासी देवा य देवीओ य सव्विड्ढीए जाव दुरुढा समाणा पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। तए णं से सक्के देविंदे देवराया तेणं पंचाणियपरिक्खित्तेणं जाव महिंदज्झएणं पुरओ पकड्ढिज्जमाणेणं चउरासीए सामानियसाहस्सीहिं जाव परिवुडे सव्विड्ढीए जाव नाइयरवेणं सोहम्मस्स कप्पस्स मज्झंमज्झेणं तं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवानुभावं उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे जेणेव सोहम्मस्स कप्पस्स उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जोयणसयसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं ओवयमाणे वीतिवयमाणे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झंमज्झेणं जेणेव नंदीसरवरे दीवे जेणेव दाहिणपुरत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवानुभावं दिव्वं जानविमानं पडिसाहरेमाणे-पडिसाहरेमाणे पडिसंखेवेमाणे-पडिसंखेवेमाणे... ...जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनणगरे, जेणेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मनभवने, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थगरस्स जम्मनभवनं तेणं दिव्वेणं जानविमानेणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवनस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे चउरंगुलमसंपत्तं धरणियले तं दिव्वं जाण-विमानं ठवेइ, ठवेत्ता अट्ठहिं अग्गमहिसीहिं दोहिं अनीएहिं–गंधव्वाणीएण य णट्टाणीएण य सद्धिं ताओ दिव्वाओ जानविमानाओ पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ। तए णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो चउरासीइं सामानियसाहस्सीओ ताओ दिव्वाओ जान-विमानाओ उत्तरिल्लेणं तिसोमानपडिरूवएणं पच्चोरुहंति। अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिव्वाओ जानविमानाओ दाहिणिल्लेणं तिसोमान पडिरूवएणं पच्चोरुहंति। तए णं से सक्के देविंदे देवराया चउरासीए सामानियसाहस्सीहिं जाव सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए चेव पणामं करेइ, करेत्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी – नमोत्थु ते रयणकुच्छिधारिए जगप्पईवदाइए सव्वजगमंगंलस्स चक्खुणो य मुत्तस्स सव्व-जगजीववच्छलस्स हियकारग मग्गदेसिय पागड्ढि विभुपभुस्स जिनस्स नाणिस्स नायगस्स बुद्धस्स बोहगस्स सव्वलोगनाहस्स निम्ममस्स पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स, जननी धन्नासि पुण्णासि तं कयत्थासि, अहन्नं देवानुप्पिए! सक्के नामं देविंदे देवराया भगवओ तित्थ- यरस्स जम्मनमहिमं करिस्सामि, तण्णं तुब्भाहिं ण भाइयव्वं तिकट्टु ओसोवणिं दलयइ, दलइत्ता तित्थयरपडिरूवगं विउव्वइ, विउवित्ता तित्थयरमाउयाए पासे ठवेइ, ठवेत्ता पंच सक्के विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे सक्के भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पगड्ढइ। तए णं से सक्के देविंदे देवराया अन्नेहिं बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइस वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव पंडगवने जेणेव अभिसेयसिला जेणेव अभिसेयसीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने। | ||
Sutra Meaning : | पालक देव द्वारा दिव्य यान की रचना को सुनकर शक्र मन में हर्षित होता है। जिनेन्द्र भगवान् के सम्मुख जाने योग्य, दिव्य, सर्वालंकारविभूषित, उत्तरवैक्रिय रूप की विकुर्वणा करता है। सपरिवार आठ अग्रमहिषियों, नाट्यानीक, गन्धर्वानीक के साथ उस यान – विमान की अनुप्रदक्षिणा करता हुआ पूर्वदिशावर्ती त्रिसोपनक से – विमान पर आरूढ होता है। पूर्वाभिमुख हो सिंहासन पर आसीन होता है। उसी प्रकार सामानिक देव, बाकी के देव – देवियाँ दक्षिणदिग्वर्ती त्रिसोपानक से विमान पर आरूढ होकर उसी तरह बैठ जात हैं। शक्र के यों विमानारूढ होने पर आगे आठ मंगलिक – द्रव्य प्रस्थित होते हैं। तत्पश्चात् शुभ शकुन के रूप में समायोजित, प्रयाण – प्रसंग में दर्शनीय जलपूर्ण कलश, जलपूर्ण झारी, चँवर सहित दिव्य छत्र, दिव्य पताका, वायु द्वारा उड़ाई जाती, अत्यन्त ऊंची, मानो आकाश को छूती हुई – सी विजय – वैजयन्ती से क्रमशः आगे प्रस्थान करते हैं। तदनन्तर छत्र, विशिष्ट वर्णकों एवं चित्रों द्वारा शोभित निर्जल झारी, फिर वज्ररत्नमय, वर्तुलाकार, लष्ट, सुश्लिष्ट, परिघृष्ट, स्निग्ध, मृष्ट, मृदुल, सुप्रतिष्ठित, विशिष्ट, अनेक उत्तम, पंचरंगी हजारों कुडभियों – से अलंकृत, सुन्दर, वायु द्वारा हिलती विजय – वैजयन्ती, ध्वजा, छत्र एवं अतिछत्र से सुशोभित, तुंग आकाश को छूते हुए से शिखर युक्त १००० योजन ऊंचा, अतिमहत् महेन्द्रध्वज यथाक्रम आगे प्रस्थान करता है। उसके बाद अपने कार्यानुरूप वेष से युक्त, सुसज्जित, सर्वविध अलंकारों से विभूषित पाँच सेनाएं, पाँच सेनापति – देव प्रस्थान करते हैं। फिर बहुत से आभियोगिक देव – देवियाँ अपने – अपने रूप, नियोग – सहित देवेन्द्र, देवराज शक्र के आगे, पीछे यथाक्रम प्रस्थान करते हैं। तत्पश्चात् सौधर्मकल्पवासी अनेक देव – देवियाँ विमानारूढ होते हैं, देवेन्द्र, देवराज शक्र के आगे पीछे तथा दोनों ओर प्रस्थान करते हैं। इस प्रकार विमानस्थ देवराज शक्र पाँच सेनाओं से परिवृत्त ८४००० सामानिक देवों आदि से संपरिवृत, सब प्रकार की ऋद्धि – के साथ, वाद्य – निनाद के साथ सौधर्मकल्प के बीचोंबीच होता हुआ, दिव्य देव – ऋद्धि उपदर्शित करता हुआ, जहाँ सौधर्मकल्प का उत्तरी निर्याण – मार्ग आता है, वहाँ आकर एक – एक लाख योजन – प्रमाण विग्रहों द्वारा आगे बढ़ता तिर्यक् – असंख्य द्वीपों एवं समुद्रों के बीच से होता हुआ, जहाँ नन्दीश्वर द्वीप है, आग्नेय कोणवर्ती रतिकर पर्वत है, वहाँ आता है। फिर शक्रेन्द्र दिव्य देव – ऋद्धि का दिव्य यान – विमान का प्रतिसंहरण करता है – जहाँ भगवान् तीर्थंकर का जन्म – भवन होता है, वहाँ आता है। तीन बार प्रदक्षिणा करता है। तीर्थंकर के जन्म – भवन के – ईशान कोण में अपने दिव्य विमान को भूमितल से चार अंगुल ऊंचा ठहराता है। उस दिव्य – यान से नीचे उतरता है यावत् सब नीचे उतरते हैं। तत्पश्चात् देवेन्द्र, देवराज शक्र अपने सहवर्ती देव – समुदाय से संपरिवृत, सर्व ऋद्धि – वैभव – समायुक्त, नगाड़ों के गूंजते हुए निर्घोष के साथ, तीर्थंकर थे और उनकी माता थी, वहाँ आता है। देखते ही प्रणाम करता है, प्रदक्षिणा करता है। वैसा कर, हाथ जोड़, अंजलि बाँधे तीर्थंकर की माता को कहता है – रत्नकुक्षिधारिके, जगत्प्र – दीपदायिके – आपको नमस्कार हो। आप धन्य, पुण्य एवं कृतार्थ – हैं। मैं देवेन्द्र, देवराज शक्र भगवान् तीर्थंकर का जन्म महोत्सव मनाऊंगा, अतः आप भयभीत मत होना।’ यों कहकर वह तीर्थंकर की माता को अवस्वापिनी निद्रा में सूला देता है। तीर्थंकर – सदृश प्रतिरूपक विकुर्वणा करता है। शक्र फिर पाँच शक्रों की विकुर्वणा करता है – एक शक्र भगवान् तीर्थंकर को हथेलियों के संपुट द्वारा उठाता है, एक छत्र धारण करता है, दो चँवर डुलाते हैं, एक हाथ में वज्र लिये आगे चलता है। तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र, अनेक भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिक देवदेवियों से घिरा हुआ, सब प्रकार ऋद्धि से शोभित, उत्कृष्ट, त्वरित देव – गति से चलता हुआ, जहाँ मन्दरपर्वत, पण्डकवन, अभिषेक – शिला एवं अभिषेक – सिंहासन हैं, वहाँ आता है, पूर्वाभिमुख हो सिंहासन पर बैठता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se sakke devimde devaraya hatthatuttha-chittamanamdie java harisavasavisappamanahiyae divvam jinimdabhigamanajoggam savvalamkaravibhusiyam uttaraveuvviyam ruvam viuvvai, viuvvitta atthahim agga-mahisihim saparivarahim nattanienam gamdhavvaniena ya saddhim tam vimanam anuppayahinikaremane-anuppayahinikaremane puvvillenam tisomanapadiruvaenam duruhai, duruhitta jeneva sihasane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanamsi puratthabhimuhe sannisanne. Evam cheva samaniyavi uttarenam tisomanapadiruvaenam duruhitta patteyam-patteyam puvvannatthesu bhaddasanesu nisiyamti. Avasesa deva ya devio ya dahinillenam tisomanapadiruvaenam duruhitta patteyam-patteyam puvvannatthesu bhaddasanesu nisiyamti. Tae nam tassa sakkassa devimdassa devaranno tamsi divvamsi janavimanamsi durudhassa samanassa ime atthatthamamgalaga purao ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam punnakalasabhimgaram divva ya chhattapadaga sachamara ya damsanaraiyaaloyadarisanijja vauddhuyavijayavejayamti ya samusiya gagana-talamanulihamti purao ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram chhattabhimgaram. Tayanamtaram cha nam vairamaya-vatta-latthasamthiyasusilitthaparighatthamatthasupaitthie visitthe anegavarapamchavannakudabhisahassaparimamdiyabhirame vauddhuyavijayavejayamtipadagachhattaichchhattakalie tumge gaganatalamanulihamtasihare joyanasahassamusie mahaimahalae mahimdajjhae purao ahanupuvvie sampatthie. Tayanamtaram cha nam saruvanevatthapariyachchhiya susajja savvalamkaravibhusiya pamcha aniya pamcha aniyahivaino purao ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam bahave abhiogiya deva ya devio ya saehim-saehim ruvehim saehim-saehim vihavavehim saehim-saehim nevatthehim saehim-saehim niogehim sakkam devimdam devarayam purao ya maggao ya pasao ya ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam bahave sohammakappavasi deva ya devio ya savviddhie java durudha samana purao ya maggao ya pasao ya ahanupuvvie sampatthiya. Tae nam se sakke devimde devaraya tenam pamchaniyaparikkhittenam java mahimdajjhaenam purao pakaddhijjamanenam chaurasie samaniyasahassihim java parivude savviddhie java naiyaravenam sohammassa kappassa majjhammajjhenam tam divvam deviddhim divvam devajutim divvam devanubhavam uvadamsemane-uvadamsemane jeneva sohammassa kappassa uttarille nijjanamagge teneva uvagachchhai, uvagachchhitta joyanasayasahassiehim viggahehim ovayamane vitivayamane tae ukkitthae turiyae chavalae jainae sihae sigghae uddhuyae divvae devagaie viivayamane-viivayamane tiriyamasamkhejjanam divasamuddanam majjhammajjhenam jeneva namdisaravare dive jeneva dahinapuratthimille raikaragapavvae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tam divvam deviddhim divvam devajutim divvam devanubhavam divvam janavimanam padisaharemane-padisaharemane padisamkhevemane-padisamkhevemane.. ..Jeneva bhagavao titthayarassa jammananagare, jeneva bhagavao titthagarassa jammanabhavane, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhagavao titthagarassa jammanabhavanam tenam divvenam janavimanenam tikkhutto ayahinapayahinam karei, karetta bhagavao titthayarassa jammanabhavanassa uttarapuratthime disibhage chauramgulamasampattam dharaniyale tam divvam jana-vimanam thavei, thavetta atthahim aggamahisihim dohim aniehim–gamdhavvaniena ya nattaniena ya saddhim tao divvao janavimanao puratthimillenam tisomanapadiruvaenam pachchoruhai. Tae nam sakkassa devimdassa devaranno chaurasiim samaniyasahassio tao divvao jana-vimanao uttarillenam tisomanapadiruvaenam pachchoruhamti. Avasesa deva ya devio ya tao divvao janavimanao dahinillenam tisomana padiruvaenam pachchoruhamti. Tae nam se sakke devimde devaraya chaurasie samaniyasahassihim java saddhim samparivude savviddhie java dumduhinigghosanaiyaravenam jeneva bhagavam titthayare titthayaramaya ya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta aloe cheva panamam karei, karetta bhagavam titthayaram titthayaramayaram cha tikkhutto ayahinapayahinam karei, karetta karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi – Namotthu te rayanakuchchhidharie jagappaivadaie savvajagamamgamlassa chakkhuno ya muttassa savva-jagajivavachchhalassa hiyakaraga maggadesiya pagaddhi vibhupabhussa jinassa nanissa nayagassa buddhassa bohagassa savvaloganahassa nimmamassa pavarakulasamubbhavassa jaie khattiyassa jamsi loguttamassa, janani dhannasi punnasi tam kayatthasi, ahannam devanuppie! Sakke namam devimde devaraya bhagavao tittha- yarassa jammanamahimam karissami, tannam tubbhahim na bhaiyavvam tikattu osovanim dalayai, dalaitta titthayarapadiruvagam viuvvai, viuvitta titthayaramauyae pase thavei, thavetta pamcha sakke viuvvai, viuvvitta ege sakke bhagavam titthayaram karayalapudenam ginhai, ege sakke pitthao ayavattam dharei, duve sakka ubhao pasim chamarukkhevam karemti, ege sakke purao vajjapani pagaddhai. Tae nam se sakke devimde devaraya annehim bahuhim bhavanavai vanamamtara joisa vemaniehim devehim devihi ya saddhim samparivude savviddhie java dumduhinigghosanaiyaravenam tae ukkitthae turiyae chavalae jainae sihae sigghae uddhuyae divvae devagaie viivayamane-viivayamane jeneva mamdare pavvae jeneva mamdare pavvae jeneva pamdagavane jeneva abhiseyasila jeneva abhiseyasihasane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaragae puratthabhimuhe sannisanne. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Palaka deva dvara divya yana ki rachana ko sunakara shakra mana mem harshita hota hai. Jinendra bhagavan ke sammukha jane yogya, divya, sarvalamkaravibhushita, uttaravaikriya rupa ki vikurvana karata hai. Saparivara atha agramahishiyom, natyanika, gandharvanika ke satha usa yana – vimana ki anupradakshina karata hua purvadishavarti trisopanaka se – vimana para arudha hota hai. Purvabhimukha ho simhasana para asina hota hai. Usi prakara samanika deva, baki ke deva – deviyam dakshinadigvarti trisopanaka se vimana para arudha hokara usi taraha baitha jata haim. Shakra ke yom vimanarudha hone para age atha mamgalika – dravya prasthita hote haim. Tatpashchat shubha shakuna ke rupa mem samayojita, prayana – prasamga mem darshaniya jalapurna kalasha, jalapurna jhari, chamvara sahita divya chhatra, divya pataka, vayu dvara urai jati, atyanta umchi, mano akasha ko chhuti hui – si vijaya – vaijayanti se kramashah age prasthana karate haim. Tadanantara chhatra, vishishta varnakom evam chitrom dvara shobhita nirjala jhari, phira vajraratnamaya, vartulakara, lashta, sushlishta, parighrishta, snigdha, mrishta, mridula, supratishthita, vishishta, aneka uttama, pamcharamgi hajarom kudabhiyom – se alamkrita, sundara, vayu dvara hilati vijaya – vaijayanti, dhvaja, chhatra evam atichhatra se sushobhita, tumga akasha ko chhute hue se shikhara yukta 1000 yojana umcha, atimahat mahendradhvaja yathakrama age prasthana karata hai. Usake bada apane karyanurupa vesha se yukta, susajjita, sarvavidha alamkarom se vibhushita pamcha senaem, pamcha senapati – deva prasthana karate haim. Phira bahuta se abhiyogika deva – deviyam apane – apane rupa, niyoga – sahita devendra, devaraja shakra ke age, pichhe yathakrama prasthana karate haim. Tatpashchat saudharmakalpavasi aneka deva – deviyam vimanarudha hote haim, devendra, devaraja shakra ke age pichhe tatha donom ora prasthana karate haim. Isa prakara vimanastha devaraja shakra pamcha senaom se parivritta 84000 samanika devom adi se samparivrita, saba prakara ki riddhi – ke satha, vadya – ninada ke satha saudharmakalpa ke bichombicha hota hua, divya deva – riddhi upadarshita karata hua, jaham saudharmakalpa ka uttari niryana – marga ata hai, vaham akara eka – eka lakha yojana – pramana vigrahom dvara age barhata tiryak – asamkhya dvipom evam samudrom ke bicha se hota hua, jaham nandishvara dvipa hai, agneya konavarti ratikara parvata hai, vaham ata hai. Phira shakrendra divya deva – riddhi ka divya yana – vimana ka pratisamharana karata hai – jaham bhagavan tirthamkara ka janma – bhavana hota hai, vaham ata hai. Tina bara pradakshina karata hai. Tirthamkara ke janma – bhavana ke – ishana kona mem apane divya vimana ko bhumitala se chara amgula umcha thaharata hai. Usa divya – yana se niche utarata hai yavat saba niche utarate haim. Tatpashchat devendra, devaraja shakra apane sahavarti deva – samudaya se samparivrita, sarva riddhi – vaibhava – samayukta, nagarom ke gumjate hue nirghosha ke satha, tirthamkara the aura unaki mata thi, vaham ata hai. Dekhate hi pranama karata hai, pradakshina karata hai. Vaisa kara, hatha jora, amjali bamdhe tirthamkara ki mata ko kahata hai – ratnakukshidharike, jagatpra – dipadayike – apako namaskara ho. Apa dhanya, punya evam kritartha – haim. Maim devendra, devaraja shakra bhagavan tirthamkara ka janma mahotsava manaumga, atah apa bhayabhita mata hona.’ yom kahakara vaha tirthamkara ki mata ko avasvapini nidra mem sula deta hai. Tirthamkara – sadrisha pratirupaka vikurvana karata hai. Shakra phira pamcha shakrom ki vikurvana karata hai – eka shakra bhagavan tirthamkara ko hatheliyom ke samputa dvara uthata hai, eka chhatra dharana karata hai, do chamvara dulate haim, eka hatha mem vajra liye age chalata hai. Tatpashchat devendra devaraja shakra, aneka bhavanapati, vanavyantara, jyotishka, vaimanika devadeviyom se ghira hua, saba prakara riddhi se shobhita, utkrishta, tvarita deva – gati se chalata hua, jaham mandaraparvata, pandakavana, abhisheka – shila evam abhisheka – simhasana haim, vaham ata hai, purvabhimukha ho simhasana para baithata hai. |