Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007826 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 226 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तहेव जाव वंदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसिरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जाव विहरंति, तं जहा– चित्ता य चित्तकनगा, सतेरा य सोदामिणी ॥ तहेव जाव ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा–रूया रूयंसा सुरूया रूयगावई। तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स चउरंगुलवज्जं नाभिणालं कप्पेंति, कप्पेत्ता वियरगं खणंति, खणित्ता वियरगे नाभि निहणंति, निहणित्ता रयणाण य वइराण य पूरेंति, पूरेत्ता हरियालियाए पेढं बंधंति, बंधित्ता तिदिसिं तओ कयलीहरगे विउव्वंति। तए णं तेसिं कयलीहरगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ चाउस्सालए विउव्वंति। तए णं तेसिं चाउस्सालगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ सीहासने विउव्वंति। तेसि णं सीहासनाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, सव्वो वण्णगो भाणियव्वो। तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जेणेव भयवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हंति तित्थयर-मायरं च बाहाहिं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव दाहिणिल्ले कयलीहरगे जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासने निसीयावेंति, निसीयवेत्ता सयपाग सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेंति, अब्भंगेत्ता सुरभिणा गंधट्टएणं उवट्टेंति, उवट्टेत्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहासु गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरत्थिमिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासने निसीयावेंति, निसीयावेत्ता तिहिं उदएहिं मज्जावेंति, तं जहा– गंधोदएणं पुप्फोदएणं सुद्धोदएणं मज्जावेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयर-मायरं च बाहाहिं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव उत्तरिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासने णिसीयाविंति, णिसीयावित्ता आभिओगे देवे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीसचंदनकट्ठाइं साहरह। तए णं ते आभिओगा देवा ताहिं रुयगमज्झवत्थव्वाहिं चउहिं दिसाकुमारीमहत्तरियाहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव विनएणं वयणं पडिच्छंति, पडिच्छित्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीसचंदनकट्ठाइं साहरंति। तए णं ताओ मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सरगं करेंति, करेत्ता अरणिं घडेंति, घडेत्ता सरएणं अरणिं महिंति महित्ता अग्गिं पाडेंति, पाडेत्ता अग्गिं संधुक्खंति, संधुक्खित्ता गोसीसचंदनकट्ठे पक्खिवंति, पक्खिवित्ता अग्गिं उज्जालंति, उज्जालित्ता समिहाकट्ठाइं पक्खिवंति, पक्खिवित्ता अग्गिहोमं करेंति, करेत्ता भुतिकम्मं करेंति, करेत्ता रक्खापो-ट्टलियं बंधंति, बंधेत्ता नानामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे गहाय भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंसि टिट्टियावेंति– भवउ भयवं पव्वयाउए। तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहाहिं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवने तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थयरमायरं सयणिज्जंसि निसीयावेंति, निसीयावेत्ता भयवं तित्थयरं माऊए पासे ठवेंति, ठवेत्ता आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। | ||
Sutra Meaning : | वे भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ में लिए आगान – परिगान करती हैं। उस काल, उस समय रुचककूट के मस्तक पर – चारों विदिशाओं में निवास करने वाली चार दिक्कुमारि – काएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – चित्रा, चित्रकनका, श्वेता तथा सौदामिनी। वे आकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के चारों विदिशाओं में अपने हाथों में दीपक लिये आगान – परिगान करती हैं। उस काल, उस समय मध्य रुचककूट पर निवास करनेवाली चार दिक्कुमारिकाएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – रूपा, रूपासिका, सुरूपा तथा रूपकावती। वे उपस्थित होकर तीर्थंकर के नाभिनाल को चार अंगुल छोड़कर काटती हैं। जमीनमें गड्ढा खोदती हैं नाभि – नाल को उनमें गाड़ देती हैं, उस गड्ढे को रत्नों से, हीरों से भर देती हैं। गड्ढा भरकर मिट्टी जमा देती हैं, उन कदलीगृहों के बीचमें तीन चतुःशालाओं – की तथा उन भवनों के बीचोंबीच तीन सिंहासनो की विकुर्वणा करती हैं। फिर वे मध्यरुचकवासिनी महत्तरा दिक्कुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर तथा उसकी माता के पास आती हैं। तीर्थंकर को अपनी हथेलियों के संपुट द्वारा उठाती हैं और तीर्थंकर की माता को भुजाओं द्वारा उठाती हैं। दक्षिण – दिग्वर्ती कदलीगृह में तीर्थंकर एवं उनकी माता को सिंहासन पर बिठाती हैं। उनके शरीर पर शतपाक एवं सहस्र पाक तैल द्वारा अभ्यंगन करती हैं। फिर सुगन्धित गन्धाटक से – तैयार किये गये उबटन से – तैल की चिकनाई दूर करती हैं। वे भगवान् तीर्थंकर को पूर्वदिशावर्ती कदलीगृह में लाकर तीर्थंकर एवं उनकी माता को सिंहासन पर बिठाती हैं। गन्धोदक, पुष्पोदक तथा शुद्ध जल के द्वारा स्नान कराती हैं। सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित करती हैं। तत्पश्चात् भगवान् तीर्थंकर और उनकी माता को उत्तरदिशावर्ती कदलीगृह में लाती हैं। उन्हें सिंहासन पर बिठाकर अपने आभियोगिक देवों को बुलाकर कहती हैं – देवानुप्रियों ! चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत से गोशीर्ष – चन्दन – काष्ठ लाओ।’ वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परितुष्ट होते हैं, शीघ्र ही चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत से ताजा गोशीर्ष चन्दन ले आते हैं। तब वे मध्य रुचकनिवासिनी दिक्कुमारिकाएं शरक, अग्नि – उत्पादक काष्ठ – विशेष तैयार करती हैं। उसके साथ अरणि काष्ठ को संयोजित करती हैं। अग्नि उत्पन्न करती हैं। उद्दीप्त करती हैं। उसमें गोशीर्ष चन्दन के टुकड़े डालती हैं। अग्नि को प्रज्वलित कर उसमें समिधा डालती हैं, हवन करती हैं, भूतिकर्म करती हैं – वे डाकिनी, शाकिनी आदि से, दृष्टिदोष रक्षा हेतु भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता के भस्म की पोटलियाँ बाँधती हैं। फिर नानाविध मणि – रत्नांकित दो पाषाण – गोलक लेकर वे भगवान् तीर्थंकर के कर्णमूल में उन्हें परस्पर ताडित कर बजाती हैं, जिससे बाललीलावश अन्यत्र आसक्त भगवान् तीर्थंकर उन द्वारा वक्ष्यमाण आशीर्वचन सूनने में दत्तावधान हो सकें। वे आशीर्वाद देती हैं – भगवन् ! आप पर्वत के सदृश दीर्घायु हों।’ फिर मध्य रुचकनिवासिनी वे चार महत्तरा दिक्कुमारिकाएं भगवान् को तथा भगवान् की माता को तीर्थंकर के जन्म – भवन में ले आती हैं। भगवन् की माता को वे शय्या पर सूला देती हैं। शय्या पर सूलाकर भगवान् को माता की बगल में रख देती हैं – । फिर वे मंगल – गीतों का आगान, परिगान करती हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] taheva java vamditta bhagavao titthayarassa titthayaramaue ya uttarenam chamarahatthagayao agaya-manio parigayamanio chitthamti Tenam kalenam tenam samaenam vidisiruyagavatthavvao chattari disakumarimahattariyao java viharamti, tam jaha– Chitta ya chittakanaga, satera ya sodamini. Taheva java na bhaiyavvamtikattu bhagavao titthayarassa titthayaramaue ya chausu vidisasu diviyahatthagayao agayamanio parigayamanio chitthamti. Tenam kalenam tenam samaenam majjhimaruyagavatthavvao chattari disakumarimahattariyao saehim-saehim kudehim taheva java viharamti, tam jaha–ruya ruyamsa suruya ruyagavai. Taheva java tubbhahim na bhaiyavvamtikattu bhagavao titthayarassa chauramgulavajjam nabhinalam kappemti, kappetta viyaragam khanamti, khanitta viyarage nabhi nihanamti, nihanitta rayanana ya vairana ya puremti, puretta hariyaliyae pedham bamdhamti, bamdhitta tidisim tao kayaliharage viuvvamti. Tae nam tesim kayaliharaganam bahumajjhadesabhae tao chaussalae viuvvamti. Tae nam tesim chaussalaganam bahumajjhadesabhae tao sihasane viuvvamti. Tesi nam sihasananam ayameyaruve vannavase pannatte, savvo vannago bhaniyavvo. Tae nam tao ruyagamajjhavatthavvao chattari disakumarimahattariyao jeneva bhayavam titthayare titthayaramaya ya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavam titthayaram karayalapudenam ginhamti titthayara-mayaram cha bahahim ginhamti, ginhitta jeneva dahinille kayaliharage jeneva chaussalae jeneva sihasane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavam titthayaram titthayaramayaram cha sihasane nisiyavemti, nisiyavetta sayapaga sahassapagehim tellehim abbhamgemti, abbhamgetta surabhina gamdhattaenam uvattemti, uvattetta bhagavam titthayaram karayalapudenam titthayaramayaram cha bahasu ginhamti, ginhitta jeneva puratthimille kayaliharae jeneva chaussalae jeneva sihasane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavam titthayaram titthayaramayaram cha sihasane nisiyavemti, nisiyavetta tihim udaehim majjavemti, tam jaha– Gamdhodaenam pupphodaenam suddhodaenam majjavetta savvalamkaravibhusiyam karemti, karetta bhagavam titthayaram karayalapudenam titthayara-mayaram cha bahahim ginhamti, ginhitta jeneva uttarille kayaliharae jeneva chaussalae jeneva sihasane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavam titthayaram titthayaramayaram cha sihasane nisiyavimti, nisiyavitta abhioge deve saddavemti, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Chullahimavamtao vasaharapavvayao sarasaim gosisachamdanakatthaim saharaha. Tae nam te abhioga deva tahim ruyagamajjhavatthavvahim chauhim disakumarimahattariyahim evam vutta samana hatthatutthachittamanamdiya java vinaenam vayanam padichchhamti, padichchhitta khippameva chullahimavamtao vasaharapavvayao sarasaim gosisachamdanakatthaim saharamti. Tae nam tao majjhimaruyagavatthavvao chattari disakumarimahattariyao saragam karemti, karetta aranim ghademti, ghadetta saraenam aranim mahimti mahitta aggim pademti, padetta aggim samdhukkhamti, samdhukkhitta gosisachamdanakatthe pakkhivamti, pakkhivitta aggim ujjalamti, ujjalitta samihakatthaim pakkhivamti, pakkhivitta aggihomam karemti, karetta bhutikammam karemti, karetta rakkhapo-ttaliyam bamdhamti, bamdhetta nanamanirayanabhattichitte duvihe pahanavattage gahaya bhagavao titthayarassa kannamulamsi tittiyavemti– bhavau bhayavam pavvayaue. Tae nam tao ruyagamajjhavatthavvao chattari disakumarimahattariyao bhayavam titthayaram karayalapudenam titthayaramayaram cha bahahim ginhamti, ginhitta jeneva bhagavao titthayarassa jammanabhavane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta titthayaramayaram sayanijjamsi nisiyavemti, nisiyavetta bhayavam titthayaram maue pase thavemti, thavetta agayamanio parigayamanio chitthamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ve bhagavan tirthamkara tatha unaki mata ko pranama kara unake uttara mem chamvara hatha mem lie agana – parigana karati haim. Usa kala, usa samaya ruchakakuta ke mastaka para – charom vidishaom mem nivasa karane vali chara dikkumari – kaem haim. Unake nama isa prakara haim – chitra, chitrakanaka, shveta tatha saudamini. Ve akara tirthamkara tatha unaki mata ke charom vidishaom mem apane hathom mem dipaka liye agana – parigana karati haim. Usa kala, usa samaya madhya ruchakakuta para nivasa karanevali chara dikkumarikaem haim. Unake nama isa prakara haim – rupa, rupasika, surupa tatha rupakavati. Ve upasthita hokara tirthamkara ke nabhinala ko chara amgula chhorakara katati haim. Jaminamem gaddha khodati haim nabhi – nala ko unamem gara deti haim, usa gaddhe ko ratnom se, hirom se bhara deti haim. Gaddha bharakara mitti jama deti haim, una kadaligrihom ke bichamem tina chatuhshalaom – ki tatha una bhavanom ke bichombicha tina simhasano ki vikurvana karati haim. Phira ve madhyaruchakavasini mahattara dikkumarikaem bhagavan tirthamkara tatha usaki mata ke pasa ati haim. Tirthamkara ko apani hatheliyom ke samputa dvara uthati haim aura tirthamkara ki mata ko bhujaom dvara uthati haim. Dakshina – digvarti kadaligriha mem tirthamkara evam unaki mata ko simhasana para bithati haim. Unake sharira para shatapaka evam sahasra paka taila dvara abhyamgana karati haim. Phira sugandhita gandhataka se – taiyara kiye gaye ubatana se – taila ki chikanai dura karati haim. Ve bhagavan tirthamkara ko purvadishavarti kadaligriha mem lakara tirthamkara evam unaki mata ko simhasana para bithati haim. Gandhodaka, pushpodaka tatha shuddha jala ke dvara snana karati haim. Saba prakara ke alamkarom se vibhushita karati haim. Tatpashchat bhagavan tirthamkara aura unaki mata ko uttaradishavarti kadaligriha mem lati haim. Unhem simhasana para bithakara apane abhiyogika devom ko bulakara kahati haim – devanupriyom ! Chulla himavan varshadhara parvata se goshirsha – chandana – kashtha lao.’ Ve abhiyogika deva harshita evam paritushta hote haim, shighra hi chulla himavan varshadhara parvata se taja goshirsha chandana le ate haim. Taba ve madhya ruchakanivasini dikkumarikaem sharaka, agni – utpadaka kashtha – vishesha taiyara karati haim. Usake satha arani kashtha ko samyojita karati haim. Agni utpanna karati haim. Uddipta karati haim. Usamem goshirsha chandana ke tukare dalati haim. Agni ko prajvalita kara usamem samidha dalati haim, havana karati haim, bhutikarma karati haim – ve dakini, shakini adi se, drishtidosha raksha hetu bhagavan tirthamkara tatha unaki mata ke bhasma ki potaliyam bamdhati haim. Phira nanavidha mani – ratnamkita do pashana – golaka lekara ve bhagavan tirthamkara ke karnamula mem unhem paraspara tadita kara bajati haim, jisase balalilavasha anyatra asakta bhagavan tirthamkara una dvara vakshyamana ashirvachana sunane mem dattavadhana ho sakem. Ve ashirvada deti haim – bhagavan ! Apa parvata ke sadrisha dirghayu hom.’ phira madhya ruchakanivasini ve chara mahattara dikkumarikaem bhagavan ko tatha bhagavan ki mata ko tirthamkara ke janma – bhavana mem le ati haim. Bhagavan ki mata ko ve shayya para sula deti haim. Shayya para sulakara bhagavan ko mata ki bagala mem rakha deti haim –\. Phira ve mamgala – gitom ka agana, parigana karati haim. |