Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007814 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 214 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तासिं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति। तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलियाइं पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमनागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं जम्मनमहिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवओ जम्मनमहिमं करेमो त्तिकट्टु एवं वयंति, वइत्ता पत्तेयं-पत्तेयं आभिओगिए देवे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अनेगखंभसय-सन्निविट्ठे लीलट्ठियसालभंजियागे, एवं विमानवण्णओ भाणियव्वो जाव जोयणविच्छिन्नेदिव्वे जानविमाने विउव्वह, विउव्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते आभिओगिया देवा अनेगखंभसयसन्निविट्ठे जाव पच्चप्पिणंति। तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठदिसाकुमारीमहत्तरियाओ हट्ठतुट्ठचित्तमानंदियाओ पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामाणिणयसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं जाव अन्नेहि य बहूहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडाओ ते दिव्वे जानविमाने दुरुहंति, दुरुहित्ता सव्विड्ढीए सव्वजुईए घनमुइंग-पणवपवाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए जेणेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मननगरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवने तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवनं तेहिं दिव्वेहिं जानविमानेहिं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए ईसिं चउरंगुलमसंपत्ते धरणियले ते दिव्वे जानविमाने ठवेंति, ठवेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव सद्धिं संपरिवुडाओ दिव्वेहिंतो जानविमानेहिंतो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइएणं जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु ते रयणकुच्छिधारिए जगप्पईवदाईए सव्वजगमंगलस्स चक्खुणो य मुत्तस्स सव्व-जगजीववच्छलस्स हियकारग मग्गदेसिय पागड्ढि विभुपभुस्स जिनस्स नाणिस्स नायगस्स बुद्धस्स बोहगस्स सव्वलोगनाहस्स निम्ममस्स पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स जननी धन्नासि पुण्णासि तं कयत्थासि, अम्हे णं देवानुप्पिए! अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी-महत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मनमहिमं करिस्सामो, तण्णं तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखिज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसार-गल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईसरयाणं अंजणाणं अंजनपुलगाणं रययाणं जाय-रूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चंपि वेउव्विय-समुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संवट्टगवाए विउव्वंति, ... ... विउव्वित्ता तेणं सिवेणं मउएणं मारुएणं अणुद्धुएणं भूमितलविमलकरणेणं मनहरेणं सव्वोउयसुरभिकुसुमगंधाणुवासिएणं पिंडिमणीहारिमेणं गंधद्धुरेणं तिरियं पवाइएणं भगवओ तित्थयरस्स जम्मनभवनस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं, से जहानामए– कम्मगरदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि पाय पिट्ठंतरोरु परिणए घण निचिय वट्ट वलियखंधे चम्मेट्ठग दुघण मुट्ठिय समाहय निचियगत्ते उरस्सबलसमन्नागए तलजमल जुयलबाहु लंघण पवण जइण पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेधावी निउणसिप्पोवगए एगं महं दंडसंपुच्छणिं वा सलागाहत्थगं वा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेउरं वा आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पयं वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता संपमज्जेज्जा। एवामेव ताओ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा कयवरं वा असुइमचोक्खं पूइयं दुब्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय एगंते एडेंति, एडेत्ता जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य अदूरसामंते आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति। | ||
Sutra Meaning : | जब वे अधोलोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने आसनों को चलित होते देखती हैं, वे अपने अवधिज्ञान का प्रयोग करती हैं। तीर्थंकर को देखती हैं। कहती हैं – जम्बूद्वीप में तीर्थंकर उत्पन्न हुए हैं। अतीत, प्रत्युत्पन्न तथा अनागत – अधोलोकवास्तव्या हम आठ महत्तरिका दिशाकुमारियों का यह परंपरागत आचार है कि हम भगवान् तीर्थंकर का जन्म – महोत्सव मनाएं, अतः हम चलें, भगवान् का जन्मोत्सव आयोजित करें। यों कहकर आभियोगिक देवों को कहती हैं – देवानुप्रियों ! सैकड़ों खंभों पर अवस्थित सुन्दर यान – विमान की विकुर्वणा करो – वे आभियोगिक देव सैकड़ों खंभों पर अवस्थित यान – विमानों की रचना करते हैं, यह जानकर वे अधोलोकवास्तव्या गौरवशीला दिक्कुमारियाँ हर्षित एवं परितुष्ट होती हैं। उनमें से प्रत्येक अपने – अपने ४००० सामानिक देवों यावत् तथा अन्य अनेक देव – देवियों के साथ दिव्य यान – विमानों पर आरूढ होती हैं। सब प्रकार की ऋद्धि एवं द्युति से समायुक्त, बादल की ज्यों घहराते – गूंजते मृदंग, ढोल आदि वाद्यों की ध्वनि के साथ उत्कृष्ट दिव्य गति द्वारा जहाँ तीर्थंकर का जन्मभवन होता है, वहाँ आती हैं। दिव्य विमानों में अवस्थित वे भगवान् तीर्थंकर के जन्मभवन की तीन बार प्रदक्षिणा करती हैं। ईशान कोण में अपने विमानों को, जब वे भूतल से चार अंगुल ऊंचे रह जाते हैं, ठहराती हैं। ४००० सामानिक देवों यावत् देव – देवियों से संपरिवृत्त वे दिव्य विमानों से नीचे उतरती हैं। सब प्रकारकी समृद्धि लिए, जहाँ तीर्थंकर तथा उनकी माता होती है, वहाँ आती हैं। तीन प्रदक्षिणाएं करती हैं, हाथ जोड़े, अंजलि बाँधे, तीर्थंकरमाता से कहती हैं – ‘रत्नकुक्षिधारिके, जगत्प्रदीपदायिके, हम आपको नमस्कार करती हैं। समस्त जगत् के लिए मंगलमय, नेत्रस्वरूप, मूर्त्त, समस्त जगत् के प्राणियों के लिए वात्सल्यमय, हितप्रद मार्ग उपदिष्ट करनेवाली, विभु, जिन, ज्ञानी, नायक, बुद्ध, बोधक, योग – क्षेमकारी, निर्मम, उत्तम कुल, क्षत्रिय – जाति में उद्भूत, लोकोत्तम की आप जननी हैं। आप धन्य, पुण्य एवं कृतार्थ – हैं। अधोलोक – निवासिनी हम आठ प्रमुख दिशाकुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर का जन्ममहोत्सव मनायेंगी अतः आप भयभीत मत होना। यों कहकर वे ईशान – कोण में जाती हैं। वैक्रिय समुद्घात द्वारा अपने आत्म – प्रदेशों को शरीर से बाहर निकालती हैं। उन्हें संख्यात योजन तक दण्डाकार परिणत करती हैं। फिर दूसरी बार वैक्रिय समुद्घात करती हैं, संवर्तक वायु की विकुर्वणा करती हैं। उस शिव, मृदुल, अनुद्धूत, भूमितल को निर्मल, स्वच्छ करनेवाले, मनोहर, पुष्पों की सुगन्ध से सुवासित, तिर्यक्, वायु द्वारा भगवान् तीर्थंकर के योजन परिमित परिमण्डल को – चारों ओर से सम्मार्जित करती हैं। जैसे एक तरुण, बलिष्ठ, युगवान्, युवा, अल्पातंक, नीरोग, स्थिराग्रहस्त, दृढपाणिपाद, पृष्ठान्तोरुपरिणत्, अहीनांग, जिसके कंधे गठीले, वृत्त – एवं वलित – हुए, हृदय की ओर झुके हुए मांसल एवं सुपुष्ट हो, चमड़े के बन्धनों के युक्त मुद्गर आदि उपकरण ज्यों जिनके अंग मजबूत हों, दोनों भुजाएं दो एक – जैसे ताड़ वृक्षों की ज्यों हों, जो गर्त आदि लांघने में, कूदने में, तेज चलने में, प्रमर्दन से – कड़ी वस्तु को चूर – चूर कर डालने में सक्षम हों, जो छेक, दक्ष, प्रष्ठ, कुशल, मेघावी, निपुण, ऐसा कर्मकर लकड़ा खजूर के पत्तों से बनी बड़ी झाड़ू को, दण्डयुक्त लेकर राजमहल के आंग, राजान्तःपुर, देव – मन्दिर, सभा, प्रपा, जलस्थान, आराम, उद्यान, बाग को सब ओर से झाड़ कर साफ कर देता है, उसी प्रकार वे दिक्कुमारियाँ संवर्तक वायु द्वारा तिनके, पत्ते, लकड़ियाँ, कचरा, अशुचि, अचोक्ष, पूतिक, दुर्गन्धयुक्त पदार्थों को उठाकर, परिमण्डल से बाहर एकान्त में डाल देती हैं – । फिर वे दिक्कुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता के पास आती हैं। उनसे न अधिक समीप तथा न अधिक दूर अवस्थित हो आगान और परिगान – करती हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tasim ahelogavatthavvanam atthanham disakumarimahattariyanam patteyam-patteyam asanaim chalamti. Tae nam tao ahelogavatthavvao attha disakumario mahattariyao patteyam-patteyam asanaim chaliyaim pasamti, pasitta ohim paumjamti, paumjitta bhagavam titthayaram ohina abhoemti, abhoetta annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi– uppanne khalu bho! Jambuddive dive bhayavam titthayare, tam jiyameyam tiyapachchuppannamanagayanam ahelogavatthavvanam atthanham disakumarimahattariyanam jammanamahimam karettae, tam gachchhamo nam amhevi bhagavao jammanamahimam karemo ttikattu evam vayamti, vaitta patteyam-patteyam abhiogie deve saddavemti, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Anegakhambhasaya-sannivitthe lilatthiyasalabhamjiyage, evam vimanavannao bhaniyavvo java joyanavichchhinnedivve janavimane viuvvaha, viuvvitta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te abhiogiya deva anegakhambhasayasannivitthe java pachchappinamti. Tae nam tao ahelogavatthavvao atthadisakumarimahattariyao hatthatutthachittamanamdiyao patteyam-patteyam chauhim samaninayasahassihim chauhim mahattariyahim java annehi ya bahuhim devehim devihi ya saddhim samparivudao te divve janavimane duruhamti, duruhitta savviddhie savvajuie ghanamuimga-panavapavaiyaravenam tae ukkitthae turiyae chavalae jainae sihae sigghae uddhuyae divvae devagaie jeneva bhagavao titthagarassa jammananagare jeneva bhagavao titthayarassa jammanabhavane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavao titthayarassa jammanabhavanam tehim divvehim janavimanehim tikkhutto ayahina-payahinam karemti, karetta uttarapuratthime disibhae isim chauramgulamasampatte dharaniyale te divve janavimane thavemti, thavetta patteyam-patteyam chauhim samaniyasahassihim java saddhim samparivudao divvehimto janavimanehimto pachchoruhamti, pachchoruhitta savviddhie java dumduhinigghosanaienam jeneva bhagavam titthayare titthayaramaya ya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavam titthayaram titthayaramayaram cha tikkhutto ayahina-payahinam karemti, karetta patteyam-patteyam karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Namotthu te rayanakuchchhidharie jagappaivadaie savvajagamamgalassa chakkhuno ya muttassa savva-jagajivavachchhalassa hiyakaraga maggadesiya pagaddhi vibhupabhussa jinassa nanissa nayagassa buddhassa bohagassa savvaloganahassa nimmamassa pavarakulasamubbhavassa jaie khattiyassa jamsi loguttamassa janani dhannasi punnasi tam kayatthasi, amhe nam devanuppie! Ahelogavatthavvao attha disakumari-mahattariyao bhagavao titthagarassa jammanamahimam karissamo, tannam tubbhahim na bhaiyavvamtikattu uttarapuratthimam disibhagam avakkamamti, avakkamitta veuvviyasamugghaenam samohannamti, samohanitta samkhijjaim joyanaim damdam nisiramti, tam jaha–rayananam vairanam veruliyanam lohiyakkhanam masara-gallanam hamsagabbhanam pulaganam sogamdhiyanam joisarayanam amjananam amjanapulaganam rayayanam jaya-ruvanam amkanam phalihanam ritthanam ahabayare poggale parisademti, parisadetta dochchampi veuvviya-samugghaenam samohannamti, samohanitta samvattagavae viuvvamti,.. .. Viuvvitta tenam sivenam mauenam maruenam anuddhuenam bhumitalavimalakaranenam manaharenam savvouyasurabhikusumagamdhanuvasienam pimdimaniharimenam gamdhaddhurenam tiriyam pavaienam bhagavao titthayarassa jammanabhavanassa savvao samamta joyanaparimamdalam, se jahanamae– kammagaradarae siya tarune balavam jugavam juvane appayamke thiraggahatthe dadhapani paya pitthamtaroru parinae ghana nichiya vatta valiyakhamdhe chammetthaga dughana mutthiya samahaya nichiyagatte urassabalasamannagae talajamala juyalabahu lamghana pavana jaina pamaddanasamatthe chhee dakkhe pattatthe kusale medhavi niunasippovagae egam maham damdasampuchchhanim va salagahatthagam va venusalaiyam va gahaya rayamganam va rayamteuram va aramam va ujjanam va devaulam va sabham va payam va aturiyamachavalamasambhamtam niramtaram suniunam savvato samamta sampamajjejja. Evameva tao disakumarimahattariyao jam tattha tanam va pattam va kattham va kayavaram va asuimachokkham puiyam dubbhigamdham tam savvam ahuniya-ahuniya egamte edemti, edetta jeneva bhagavam titthayare titthayaramaya ya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavao titthayarassa titthayaramayae ya adurasamamte agayamanio parigayamanio chitthamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jaba ve adholokavasini atha dikkumarikaem apane asanom ko chalita hote dekhati haim, ve apane avadhijnyana ka prayoga karati haim. Tirthamkara ko dekhati haim. Kahati haim – jambudvipa mem tirthamkara utpanna hue haim. Atita, pratyutpanna tatha anagata – adholokavastavya hama atha mahattarika dishakumariyom ka yaha paramparagata achara hai ki hama bhagavan tirthamkara ka janma – mahotsava manaem, atah hama chalem, bhagavan ka janmotsava ayojita karem. Yom kahakara abhiyogika devom ko kahati haim – devanupriyom ! Saikarom khambhom para avasthita sundara yana – vimana ki vikurvana karo – ve abhiyogika deva saikarom khambhom para avasthita yana – vimanom ki rachana karate haim, yaha janakara ve adholokavastavya gauravashila dikkumariyam harshita evam paritushta hoti haim. Unamem se pratyeka apane – apane 4000 samanika devom yavat tatha anya aneka deva – deviyom ke satha divya yana – vimanom para arudha hoti haim. Saba prakara ki riddhi evam dyuti se samayukta, badala ki jyom ghaharate – gumjate mridamga, dhola adi vadyom ki dhvani ke satha utkrishta divya gati dvara jaham tirthamkara ka janmabhavana hota hai, vaham ati haim. Divya vimanom mem avasthita ve bhagavan tirthamkara ke janmabhavana ki tina bara pradakshina karati haim. Ishana kona mem apane vimanom ko, jaba ve bhutala se chara amgula umche raha jate haim, thaharati haim. 4000 samanika devom yavat deva – deviyom se samparivritta ve divya vimanom se niche utarati haim. Saba prakaraki samriddhi lie, jaham tirthamkara tatha unaki mata hoti hai, vaham ati haim. Tina pradakshinaem karati haim, hatha jore, amjali bamdhe, tirthamkaramata se kahati haim – ‘ratnakukshidharike, jagatpradipadayike, hama apako namaskara karati haim. Samasta jagat ke lie mamgalamaya, netrasvarupa, murtta, samasta jagat ke praniyom ke lie vatsalyamaya, hitaprada marga upadishta karanevali, vibhu, jina, jnyani, nayaka, buddha, bodhaka, yoga – kshemakari, nirmama, uttama kula, kshatriya – jati mem udbhuta, lokottama ki apa janani haim. Apa dhanya, punya evam kritartha – haim. Adholoka – nivasini hama atha pramukha dishakumarikaem bhagavan tirthamkara ka janmamahotsava manayemgi atah apa bhayabhita mata hona. Yom kahakara ve ishana – kona mem jati haim. Vaikriya samudghata dvara apane atma – pradeshom ko sharira se bahara nikalati haim. Unhem samkhyata yojana taka dandakara parinata karati haim. Phira dusari bara vaikriya samudghata karati haim, samvartaka vayu ki vikurvana karati haim. Usa shiva, mridula, anuddhuta, bhumitala ko nirmala, svachchha karanevale, manohara, pushpom ki sugandha se suvasita, tiryak, vayu dvara bhagavan tirthamkara ke yojana parimita parimandala ko – charom ora se sammarjita karati haim. Jaise eka taruna, balishtha, yugavan, yuva, alpatamka, niroga, sthiragrahasta, dridhapanipada, prishthantoruparinat, ahinamga, jisake kamdhe gathile, vritta – evam valita – hue, hridaya ki ora jhuke hue mamsala evam supushta ho, chamare ke bandhanom ke yukta mudgara adi upakarana jyom jinake amga majabuta hom, donom bhujaem do eka – jaise tara vrikshom ki jyom hom, jo garta adi lamghane mem, kudane mem, teja chalane mem, pramardana se – kari vastu ko chura – chura kara dalane mem sakshama hom, jo chheka, daksha, prashtha, kushala, meghavi, nipuna, aisa karmakara lakara khajura ke pattom se bani bari jharu ko, dandayukta lekara rajamahala ke amga, rajantahpura, deva – mandira, sabha, prapa, jalasthana, arama, udyana, baga ko saba ora se jhara kara sapha kara deta hai, usi prakara ve dikkumariyam samvartaka vayu dvara tinake, patte, lakariyam, kachara, ashuchi, achoksha, putika, durgandhayukta padarthom ko uthakara, parimandala se bahara ekanta mem dala deti haim –\. Phira ve dikkumarikaem bhagavan tirthamkara tatha unaki mata ke pasa ati haim. Unase na adhika samipa tatha na adhika dura avasthita ho agana aura parigana – karati haim. |