Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007661 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 61 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्द-सन्नि-नाएणं आपूरेंते चेव अंबरतलं विनीयाए रायहानीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहे पयाते यावि होत्था। तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनु-पविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवल महामेह निग्गए इव गहगण दिप्पंत रिक्ख तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे नरवई मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता हय गय रह पवरवाहण भड चडगर पहकरसंकुलाए सेनाए पहियकित्ती जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण-साला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजनगिरिकडगसन्निभं गयवइं नरवई दुरुढे। तए णं से भरहाहिवे नरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए नरसीहे नरवई नरिंदे नरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगल-सएहिं संथुव्वमाणे जयसद्दकयालोए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं–उद्धुव्वमाणीहिं जक्खसहस्ससंपरिवुडे वेसमणे चेव धनवई अमर-वइसन्निभाए इड्ढीए पहियकित्ती गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासम संबाह सहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिनमाणे-अभिजिनमाणे अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अनुगच्छमाणे-अनुगच्छमाणे जोयणंतरियाहिं वसहीहिं वसमाणे-वसमाणे जेणेव मागहतित्थे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मागहतित्थस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधा-वारनिवेसं करेइ, करेत्ता वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुनेइ, पडि सुणेत्ता भरहस्स रन्नो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति। तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसह-साला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवने णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए एगे अबीए अट्ठमभत्तं पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडि-निक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेइ, चाउग्घंटं अस्सरहं पडिकप्पेहत्ति कट्टु मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजाला-कुलाभिरामे तहेव जाव धवल महामेहनिग्गए इव गहगण दिप्पंत रिक्ख तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे नरवई धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता हय गय रह पवरवाहण भड चडगर पहकरसंकुलाए सेनाए पहियकित्ति जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे अस्सरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं अस्सरहं दुरुढे। | ||
Sutra Meaning : | अष्ट दिवसीय महोत्सव के संपन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न आयुधगृहशाला – से निकला। निकलकर आकाश में प्रतिपन्न हुआ। वह एक सहस्र यक्षों से संपरिवृत था। दिव्य वाद्यों की ध्वनि एवं निनाद से आकाश व्याप्त था। वह चक्ररत्न विनीता राजधानी के बीच से निकला। निकलकर गंगा महानदी के दक्षिणी किनारे से होता हुआ पूर्व दिशा में मागध तीर्थ की ओर चला। राजा भरत ने उस दिव्य चक्ररत्न को गंगा महानदी के दक्षिणी तट से होते हुए पूर्व दिशा में मागध तीर्थ की ओर बढ़ते हुए देखा, वह हर्षित व परितुष्ट हुआ, उसके कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – आभिषेक्य – हस्तिरत्न को शीघ्र ही सुसज्ज करो। घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं – से परिगठित चतुरंगिणी सेना को तैयार करो। यथावत् आज्ञापालन कर मुझे सूचित करो। तत्पश्चात् राजा भरत स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। वह स्नानघर मुक्ताजाल युक्त – झरोखों के कारण बड़ा सुन्दर था। यावत् वह राजा स्नानघर से निकला। निकलकर घोड़े, हाथी, रथ, अन्यान्य उत्तम वाहन तथा योद्धाओं के विस्तार से युक्त सेना से सुशोभित वह राजा जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, आभिषेक्य हस्तिरत्न था, वहाँ आया और अंजनगिरि के शिखर के समान विशाल गजपति पर आरूढ हुआ। भरताधिप – राजा भरत का वक्षस्थल हारों से व्याप्त, सुशोभित एवं प्रीतिकर था। उसका मुख कुंड़लों से उद्योतित था। मस्तक मुकुट से देदीप्यमान था। नरसिंह, नरपति, परिपालक, नरेन्द्र, परम ऐश्वर्यशाली अभिनायक, नरवृषभ, कार्यभार के निर्वाहक, मरुद्राजवृषभ – कल्प, इन्द्रों के मध्य वृषभ सदृश, दीप्तिमय, वंदिजनों द्वारा संस्तुत, जयनाद से सुशोभित, गजारूढ राजा भरत सहस्रों यक्षों से संपरिवृत धनपति यक्षराज कुबेर सदृश लगता था। देवराज इन्द्र के तुल्य उसकी समृद्धि थी, जिससे उसका यश सर्वत्र विश्रुत था। कोरंट के पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र उस पर तना था। श्रेष्ठ, श्वेत चँवर डुलाये जा रहे थे। राजा भरत गंगा महानदी के दक्षिणी तट से होता हुआ सहस्रों ग्राम, यावत् संबाध – से सुशोभित, प्रजाजन युक्त पृथ्वी को – जीतता हुआ, उत्कृष्ट, श्रेष्ठ रत्नों को भेंट के रूप में ग्रहण करता हुआ, दिव्य चक्ररत्न का अनुगमन करता हुआ, एक – एक योजन पर अपने पड़ाव डालता हुआ, दिव्य चक्ररत्न का अनुगमन करता हुआ जहाँ मागध तीर्थ था, वहाँ आया। आकर मागध तीर्थ के न अधिक दूर, न अधिक समीप, बारह योजन लम्बा तथा नौ योजन चौड़ा उत्तम नगर जैसा विजय स्कन्धावार लगाया। फिर राजा ने वर्धकिरत्न – को बुलाकर कहा – देवानुप्रिय ! शीघ्र ही मेरे लिए आवास – स्थान एवं पोषधशाला का निर्माण करो। उसने राजा के लिए आवास – स्थान तथा पोषधशाला का निर्माण किया। तब राज भरत आभिषेक्य हस्तिरत्न से नीचे उतरा। पोषधशाला में प्रविष्ट हुआ, पोषधशाला का प्रमार्जन किया, सफाई की। डाभ का बिछौना बिछाया। उस पर बैठा। मागध तीर्थकुमार देव को उद्दिष्ट कर तत्साधना हेतु तेल की तपस्या की। पोषधशाला में पोषध लिया। आभूषण शरीर से उतार दिये। माला, वर्णक आदि दूर किये, शस्त्र, मूसल आदि हथियार एक ओर रखे। यों डाभ के बिछौने पर अवस्थित राजा भरत निर्भीकता – से आत्मबलपूर्वक तेले की तपस्या में प्रतिजागरित हुआ। तपस्या पूर्ण होने पर राजा भरत पौषधशाला से बाहर निकला। कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – घोड़े, हाथी, रथ एवं उत्तम योद्धाओंसे सुशोभित चतुरंगिणी सेना शीघ्र सुसज्ज करो। चातुर्घंट – अश्वरथ तैयार करो। स्नानादि से निवृत्त होकर राजा स्नानघर से निकला। घोड़े, हाथी, रथ, अन्यान्य उत्तम वाहन तथा सेना से सुशोभित वह राजा रथारूढ हुआ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se divve chakkarayane atthahiyae mahamahimae nivvattae samanie auhagharasalao padinikkhamai, padinikkhamitta amtalikkhapadivanne jakkhasahassasamparivude divvatudiyasadda-sanni-naenam apuremte cheva ambaratalam viniyae rayahanie majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta gamgae mahanaie dahinillenam kulenam puratthimam disim magahatitthabhimuhe payate yavi hottha. Tae nam se bharahe raya tam divvam chakkarayanam gamgae mahanaie dahinillenam kulenam puratthimam disim magahatitthabhimuham payatam pasai, pasitta hatthatutthachittamanamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– Khippameva bho devanuppiya! Abhisekkam hatthirayanam padikappeha, hayagayarahapavarajohakaliyam chauramginim sennam sannaheha, etamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa java pachchappinamti. Tae nam se bharahe raya jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta majjanagharam anu-pavisai, anupavisitta samuttajalakulabhirame taheva java dhavala mahameha niggae iva gahagana dippamta rikkha taraganana majjhe sasivva piyadamsane naravai majjanagharao padinikkhamai, padinikkhamitta haya gaya raha pavaravahana bhada chadagara pahakarasamkulae senae pahiyakitti jeneva bahiriya uvatthana-sala jeneva abhisekke hatthirayane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta amjanagirikadagasannibham gayavaim naravai durudhe. Tae nam se bharahahive narimde harotthayasukayaraiyavachchhe kumdalaujjoiyanane maudadittasirae narasihe naravai narimde naravasabhe maruyarayavasabhakappe abbhahiyarayateyalachchhie dippamane pasatthamamgala-saehim samthuvvamane jayasaddakayaloe hatthikhamdhavaragae sakoramtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim uddhuvvamanihim–uddhuvvamanihim jakkhasahassasamparivude vesamane cheva dhanavai amara-vaisannibhae iddhie pahiyakitti gamgae mahanaie dahinillenam kulenam gamagara nagara kheda kabbada madamba donamuha pattanasama sambaha sahassamamdiyam thimiyameiniyam vasuham abhijinamane-abhijinamane aggaim varaim rayanaim padichchhamane-padichchhamane tam divvam chakkarayanam anugachchhamane-anugachchhamane joyanamtariyahim vasahihim vasamane-vasamane jeneva magahatitthe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta magahatitthassa adurasamamte duvalasajoyanayamam navajoyanavichchhinnam varanagarasarichchham vijayakhamdha-varanivesam karei, karetta vaddhairayanam saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Mama avasam posahasalam cha karehi, karetta mameyamanattiyam pachchappinahi. Tae nam se vaddhairayane bharahenam ranna evam vutte samane hatthatuttha-chittamanamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunei, padi sunetta bharahassa ranno avasaham posahasalam cha karei, karetta eyamanattiyam khippameva pachchappinati. Tae nam se bharahe raya abhisekkao hatthirayanao pachchoruhai, pachchoruhitta jeneva posaha-sala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta posahasalam anupavisai, anupavisitta posahasalam pamajjai, pamajjitta dabbhasamtharagam samtharai, samtharitta dabbhasamtharagam duruhai, duruhitta magahatitthakumarassa devassa atthamabhattam paginhai, paginhitta posahasalae posahie bambhayari ummukkamanisuvanne vavagayamalavannagavilevane nikkhittasatthamusale dabbhasamtharovagae ege abie atthamabhattam padijagaramane-padijagaramane viharai. Tae nam se bharahe raya atthamabhattamsi parinamamanamsi posahasalao padinikkhamai, padi-nikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Haya gaya raha pavarajohakaliyam chauramginim sennam sannahei, chaugghamtam assaraham padikappehatti kattu majjanagharam anupavisai, anupavisitta samuttajala-kulabhirame taheva java dhavala mahamehaniggae iva gahagana dippamta rikkha taraganana majjhe sasivva piyadamsane naravai dhuvapupphagamdhamallahatthagae majjanagharao padinikkhamai, padinikkhamitta haya gaya raha pavaravahana bhada chadagara pahakarasamkulae senae pahiyakitti jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva chaugghamte assarahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam assaraham durudhe. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ashta divasiya mahotsava ke sampanna ho jane para vaha divya chakraratna ayudhagrihashala – se nikala. Nikalakara akasha mem pratipanna hua. Vaha eka sahasra yakshom se samparivrita tha. Divya vadyom ki dhvani evam ninada se akasha vyapta tha. Vaha chakraratna vinita rajadhani ke bicha se nikala. Nikalakara gamga mahanadi ke dakshini kinare se hota hua purva disha mem magadha tirtha ki ora chala. Raja bharata ne usa divya chakraratna ko gamga mahanadi ke dakshini tata se hote hue purva disha mem magadha tirtha ki ora barhate hue dekha, vaha harshita va paritushta hua, usake kautumbika purushom ko bulakara kaha – abhishekya – hastiratna ko shighra hi susajja karo. Ghore, hathi, ratha tatha shreshtha yoddhaom – se parigathita chaturamgini sena ko taiyara karo. Yathavat ajnyapalana kara mujhe suchita karo. Tatpashchat raja bharata snanaghara mem pravishta hua. Vaha snanaghara muktajala yukta – jharokhom ke karana bara sundara tha. Yavat vaha raja snanaghara se nikala. Nikalakara ghore, hathi, ratha, anyanya uttama vahana tatha yoddhaom ke vistara se yukta sena se sushobhita vaha raja jaham bahya upasthanashala thi, abhishekya hastiratna tha, vaham aya aura amjanagiri ke shikhara ke samana vishala gajapati para arudha hua. Bharatadhipa – raja bharata ka vakshasthala harom se vyapta, sushobhita evam pritikara tha. Usaka mukha kumralom se udyotita tha. Mastaka mukuta se dedipyamana tha. Narasimha, narapati, paripalaka, narendra, parama aishvaryashali abhinayaka, naravrishabha, karyabhara ke nirvahaka, marudrajavrishabha – kalpa, indrom ke madhya vrishabha sadrisha, diptimaya, vamdijanom dvara samstuta, jayanada se sushobhita, gajarudha raja bharata sahasrom yakshom se samparivrita dhanapati yaksharaja kubera sadrisha lagata tha. Devaraja indra ke tulya usaki samriddhi thi, jisase usaka yasha sarvatra vishruta tha. Koramta ke pushpom ki malaom se yukta chhatra usa para tana tha. Shreshtha, shveta chamvara dulaye ja rahe the. Raja bharata gamga mahanadi ke dakshini tata se hota hua sahasrom grama, yavat sambadha – se sushobhita, prajajana yukta prithvi ko – jitata hua, utkrishta, shreshtha ratnom ko bhemta ke rupa mem grahana karata hua, divya chakraratna ka anugamana karata hua, eka – eka yojana para apane parava dalata hua, divya chakraratna ka anugamana karata hua jaham magadha tirtha tha, vaham aya. Akara magadha tirtha ke na adhika dura, na adhika samipa, baraha yojana lamba tatha nau yojana chaura uttama nagara jaisa vijaya skandhavara lagaya. Phira raja ne vardhakiratna – ko bulakara kaha – Devanupriya ! Shighra hi mere lie avasa – sthana evam poshadhashala ka nirmana karo. Usane raja ke lie avasa – sthana tatha poshadhashala ka nirmana kiya. Taba raja bharata abhishekya hastiratna se niche utara. Poshadhashala mem pravishta hua, poshadhashala ka pramarjana kiya, saphai ki. Dabha ka bichhauna bichhaya. Usa para baitha. Magadha tirthakumara deva ko uddishta kara tatsadhana hetu tela ki tapasya ki. Poshadhashala mem poshadha liya. Abhushana sharira se utara diye. Mala, varnaka adi dura kiye, shastra, musala adi hathiyara eka ora rakhe. Yom dabha ke bichhaune para avasthita raja bharata nirbhikata – se atmabalapurvaka tele ki tapasya mem pratijagarita hua. Tapasya purna hone para raja bharata paushadhashala se bahara nikala. Kautumbika purushom ko bulakara kaha – ghore, hathi, ratha evam uttama yoddhaomse sushobhita chaturamgini sena shighra susajja karo. Chaturghamta – ashvaratha taiyara karo. Snanadi se nivritta hokara raja snanaghara se nikala. Ghore, hathi, ratha, anyanya uttama vahana tatha sena se sushobhita vaha raja ratharudha hua. |