Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )

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Sr No : 1007643
Scripture Name( English ): Jambudwippragnapati Translated Scripture Name : जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

वक्षस्कार २ काळ

Translated Chapter :

वक्षस्कार २ काळ

Section : Translated Section :
Sutra Number : 43 Category : Upang-07
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] नाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिंसि, एत्थ णं उसहे नामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था। तए णं उसभे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारावासमज्झावसइ, अज्झावसित्ता तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसइ, तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झा-वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चोसट्ठिं महिला गुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिन्नि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावस, अज्झावसत्ता... ...जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स नवमीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे चइत्ता हिरण्णं चइत्ता सुवण्णं चइत्ता कोसं चइत्ता कोट्ठागारं चइत्ता बलं चइत्ता वाहणं चइत्ता पुरं चइत्ता अंतेउरं चइत्ता विउलधण-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावइज्जं विच्छड्डयित्ता विगोवइत्ता दायं दाइयाणं परिभाएत्ता सुदंसणाए सीयाए सदेवमनुयासुराए परिसाए समनुगम्ममानमग्गे संखिय-चक्किय-नंगलिय-मुहमंगलिय-पूसमानव वद्धमाणग-आइक्खग-लंख-मंख-घंटियगणेहिं, ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरियाहिं हिययगमणिज्जाहिं हियय-पल्हायणिज्जाहिं कण्णमणनिव्वुइकरीहिं अपुनरुत्ताहिं अट्ठसइयाहिं वग्गूहिं अनवरयं अभिनंदंता य अभिथुणंता य एवं वयासी–जय जय नंदा! जय जय भद्दा! धम्मेणं, अभीए परीसहोवसग्गाणं, खंतिखमे भयभेरवाणं, धम्मे ते अविग्घं भवउत्ति कट्टु अभिनंदंति य अभिथुणंति य। तए णं उसभे अरहा कोसलिए नयनमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे हियय-मालासहस्सेहिं अभिनंदिज्जमाने-अभिनंदिज्जमाने मनोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे- विच्छिप्प माणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे कंतिसोहग्गगुणेहिं पत्थिज्जमाणे-पत्थि-ज्जमाणे बहूणं नरनारीसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणे-आपडिपुच्छमाणे भवनपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे-समइच्छ माणे तंतीतलतालतुडियगीयवा-इयरवेणं महुरेणं मनहरेणं जयसद्दुग्घोसविसएणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे कंदरगिरिविवर-कुहरगिरिवर-पासादुद्धघनभवन-देवकुलसिंघाडग तिगचउक्क-चच्चरआरामुज्जान-काननसभापवापदेसभागे पडिसुयासयसहस्ससंकुलं करेंते हयहेसियहत्थि-गुलगुलाइयरहघणघणसद्दमीसएणं महया कलकलरवेण जनस्स महुरेणं पूरयंते सुगंधवरकुसुम- चुण्णउव्विद्धवासरेणुकविलं नभं करेंते कालागुरुकुंदुरुक्कतुरुक्कधूव निवहेणंजीवलोगमिव वासयंते समंतओ खुभियचक्कबालं-पउरजनबालं वुड्ढयपमुइयतुरियपहाविय-विउल आउलबोलबहुलं नभं करेंते विनीयाए रायहानीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, ... ...निग्गच्छित्ता आसिय-संमज्जिय-सित्तसुइकपुप्फोवयारकलियं सिद्धत्थवणविउलरायमग्गं करेमाणे हयगयरहपहकरेण पाइक्कचडकरेण य मंदं मंदायं उद्धतरेणुयं करेमाणे-करेमाणे जेणेव सिद्धत्थवने उज्जाने जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठवेइ, ठवेत्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेवाभरणालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव चउहिं अट्ठाहिं लोयं करेइ, करेत्ता छट्ठे भत्तेणं अपानएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं खत्तियाणं चउहिं सहस्सेहिं सद्धिं एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
Sutra Meaning : नाभि कुलकर के, उन की भार्या मरुदेवी की कोख से उस समय ऋषभ नामक अर्हत्‌, कौशलिक, प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर चतुर्दिग्व्याप्त अथवा चार गतियों का अन्त करने में सक्षम धर्म – साम्राज्य के प्रथम चक्रवर्ती उत्पन्न हुए। कौशलिक अर्हत्‌ ऋषभ ने बीस लाख पूर्व कुमार – अवस्था में व्यतीत किए। तिरेसठ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहते हुए उन्होंने लेखन से लेकर पक्षियों की बोली तक का जिनमें पुरुषों की बहत्तर कलाओं, स्त्रियों के चौंसठ गुणों तथा सौ प्रकार के कार्मिक शिल्पविज्ञान का समावश है, प्रजा के हित के लिए उपदेश किया। अपने सौ पुत्रों को सौ राज्यों में अभिषिक्त किया। वे तियासी लाख पूर्व गृहस्थ – वास में रहे। ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास – चैत्र मास में प्रथम पक्ष – कृष्ण पक्ष में नवमी तिथि के उत्तरार्ध में – मध्याह्न के पश्चात्‌ रजत, स्वर्ण, कोश, कोष्ठागार, बल, सेना, वाहन, पुर, अन्तःपुर, धन, स्वर्ण, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिला, राजपट्ट आदि, प्रवाल, पद्मराग आदि लोक के सारभूत पदार्थों का परित्याग कर, उनसे ममत्व भाग हटाकर अपने दायिक, जनों में बंटवारा कर वे सुदर्शना नामक शिबिका में बैठे। देवों, मनुष्यों तथा असुरों की परिषद्‌ उनके साथसाथ चली। शांखिक, चाक्रिक, लांगलिक, मुखमांगलिक, पुष्पमाणव, भाग, चारण आदि स्तुतिगायक, वर्धमानक, आख्यायक, लंख, मंख, घाण्टिक, पीछे – पीछे चले। वे इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोरम, उदार, दृष्टि से वैशद्ययुक्त, कल्याण, शिव, धन्य, मांगल्य, सश्रीक, हृदयगमनीय, सुबोध, हृदय प्रह्लादनीय, कर्ण – मननिर्वृतिकार, अनुपरुक्त, अर्थशतिक, वाणी द्वारा वे निरन्तर उनका इस प्रकार अभिनन्दन तथा अभिस्तवन करते थे – जगन्नंद ! भद्र ! प्रभुवर ! आपकी जय हो, आपकी जय हो। आप धर्म के प्रभाव से परिषहों एवं उपसर्गों से अभीत रहें, भय, भैरव का सहिष्णुता पूर्वक सामना करने में सक्षम रहें। आपकी धर्मसाधना निर्विघ्न हो। उन आकुल पौरजनों के शब्दों से आकाश आपूर्ण था। इस स्थिति में भगवान्‌ ऋषभ राजधानी के बीचोंबीच होते हुए निकले। सहस्रों नर – नारी अपने नेत्रों से बार – बार उनके दर्शन कर रहे थे, यावत्‌ वे घरों की हजारों पंक्तियों को लांघते हुए आगे बढ़े। सिद्धार्थवन, जहाँ वे गमनोद्यत थे, की ओर जानेवाले राजमार्ग पर जल का छिड़काव कराया था। वह झाड़ – बुहारकर स्वच्छ कराया हुआ था, सुरभित जल से सिक्त था, शुद्ध था, वह स्थान – स्थान पर पुष्पों से सजाया गया था, घोड़ों, हाथियों तथा रथों के समूह, पदातियों – के पदाघात से – जमीन पर जमी हुई धूल धीरे – धीरे ऊपर की ओर उड़ रही थी। इस प्रकार चलते वे सिद्धार्थवन उद्यान था, जहाँ उत्तम अशोकवृक्ष था, वहाँ आये। उस उत्तम वृक्ष के नीचे शिबिका को रखवाया, नीचे उतरकर स्वयं अपने गहने उतारे। स्वयं आस्थापूर्वक चार मुष्टियों द्वारा अपने केशों को लोच किया। निर्जन बेला किया। उत्तराषाढा नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर अपने चार उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय के साथ एक देव – दूष्य ग्रहण कर मुण्डित होकर अगार से – अनगारिता में प्रव्रजित हो गये
Mool Sutra Transliteration : [sutra] nabhissa nam kulagarassa marudevae bhariyae kuchchhimsi, ettha nam usahe namam araha kosalie padhamaraya padhamajine padhamakevali padhamatitthakare padhamadhammavarachakkavatti samuppajjittha. Tae nam usabhe araha kosalie visam puvvasayasahassaim kumaravasamajjhavasai, ajjhavasitta tevatthim puvvasayasahassaim maharayavasamajjhavasai, tevatthim puvvasayasahassaim maharayavasamajjha-vasamane lehaiyao ganiyappahanao saunaruyapajjavasanao bavattarim kalao, chosatthim mahila gune sippasayam cha kammanam tinni vi payahiyae uvadisai, uvadisitta puttasayam rajjasae abhisimchai, abhisimchitta tesiim puvvasayasahassaim maharayavasamajjhavasa, ajjhavasatta.. ..Jese gimhanam padhame mase padhame pakkhe chittabahule, tassa nam chittabahulassa navamipakkhenam divasassa pachchhime bhage chaitta hirannam chaitta suvannam chaitta kosam chaitta kotthagaram chaitta balam chaitta vahanam chaitta puram chaitta amteuram chaitta viuladhana-kanaga-rayana-mani-mottiya-samkha-sila-ppavala-rattarayana-samtasara-savaijjam vichchhaddayitta vigovaitta dayam daiyanam paribhaetta sudamsanae siyae sadevamanuyasurae parisae samanugammamanamagge samkhiya-chakkiya-namgaliya-muhamamgaliya-pusamanava vaddhamanaga-aikkhaga-lamkha-mamkha-ghamtiyaganehim, tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim oralahim kallanahim sivahim dhannahim mamgallahim sassiriyahim hiyayagamanijjahim hiyaya-palhayanijjahim kannamananivvuikarihim apunaruttahim atthasaiyahim vagguhim anavarayam abhinamdamta ya abhithunamta ya evam vayasi–jaya jaya namda! Jaya jaya bhadda! Dhammenam, abhie parisahovasagganam, khamtikhame bhayabheravanam, dhamme te aviggham bhavautti kattu abhinamdamti ya abhithunamti ya. Tae nam usabhe araha kosalie nayanamalasahassehim pechchhijjamane-pechchhijjamane hiyaya-malasahassehim abhinamdijjamane-abhinamdijjamane manorahamalasahassehim vichchhippamane- vichchhippa mane vayanamalasahassehim abhithuvvamane-abhithuvvamane kamtisohaggagunehim patthijjamane-patthi-jjamane bahunam naranarisahassanam dahinahatthenam amjalimalasahassaim padichchhamane-padichchhamane mamjumamjuna ghosenam apadipuchchhamane-apadipuchchhamane bhavanapamtisahassaim samaichchhamane-samaichchha mane tamtitalatalatudiyagiyava-iyaravenam mahurenam manaharenam jayasaddugghosavisaenam mamjumamjuna ghosenam apadibujjhamane kamdaragirivivara-kuharagirivara-pasaduddhaghanabhavana-devakulasimghadaga tigachaukka-chachcharaaramujjana-kananasabhapavapadesabhage padisuyasayasahassasamkulam karemte hayahesiyahatthi-gulagulaiyarahaghanaghanasaddamisaenam mahaya kalakalaravena janassa mahurenam purayamte sugamdhavarakusuma- chunnauvviddhavasarenukavilam nabham karemte kalagurukumdurukkaturukkadhuva nivahenamjivalogamiva vasayamte samamtao khubhiyachakkabalam-paurajanabalam vuddhayapamuiyaturiyapahaviya-viula aulabolabahulam nabham karemte viniyae rayahanie majjhammajjhenam niggachchhai,.. ..Niggachchhitta asiya-sammajjiya-sittasuikapupphovayarakaliyam siddhatthavanaviularayamaggam karemane hayagayarahapahakarena paikkachadakarena ya mamdam mamdayam uddhatarenuyam karemane-karemane jeneva siddhatthavane ujjane jeneva asogavarapayave teneva uvagachchhati, uvagachchhitta asogavarapayavassa ahe siyam thavei, thavetta siyao pachchoruhai, pachchoruhitta sayamevabharanalamkaram omuyai, omuitta sayameva chauhim atthahim loyam karei, karetta chhatthe bhattenam apanaenam asadhahim nakkhattenam jogamuvagaenam ugganam bhoganam rainnanam khattiyanam chauhim sahassehim saddhim egam devadusamadaya mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie.
Sutra Meaning Transliteration : Nabhi kulakara ke, una ki bharya marudevi ki kokha se usa samaya rishabha namaka arhat, kaushalika, prathama raja, prathama jina, prathama kevali, prathama tirthamkara chaturdigvyapta athava chara gatiyom ka anta karane mem sakshama dharma – samrajya ke prathama chakravarti utpanna hue. Kaushalika arhat rishabha ne bisa lakha purva kumara – avastha mem vyatita kie. Tiresatha lakha purva maharajavastha mem rahate hue unhomne lekhana se lekara pakshiyom ki boli taka ka jinamem purushom ki bahattara kalaom, striyom ke chaumsatha gunom tatha sau prakara ke karmika shilpavijnyana ka samavasha hai, praja ke hita ke lie upadesha kiya. Apane sau putrom ko sau rajyom mem abhishikta kiya. Ve tiyasi lakha purva grihastha – vasa mem rahe. Grishma ritu ke prathama masa – chaitra masa mem prathama paksha – krishna paksha mem navami tithi ke uttarardha mem – madhyahna ke pashchat rajata, svarna, kosha, koshthagara, bala, sena, vahana, pura, antahpura, dhana, svarna, ratna, mani, moti, shamkha, shila, rajapatta adi, pravala, padmaraga adi loka ke sarabhuta padarthom ka parityaga kara, unase mamatva bhaga hatakara apane dayika, janom mem bamtavara kara ve sudarshana namaka shibika mem baithe. Devom, manushyom tatha asurom ki parishad unake sathasatha chali. Shamkhika, chakrika, lamgalika, mukhamamgalika, pushpamanava, bhaga, charana adi stutigayaka, vardhamanaka, akhyayaka, lamkha, mamkha, ghantika, pichhe – pichhe chale. Ve ishta, kanta, priya, manojnya, manorama, udara, drishti se vaishadyayukta, kalyana, shiva, dhanya, mamgalya, sashrika, hridayagamaniya, subodha, hridaya prahladaniya, karna – mananirvritikara, anuparukta, arthashatika, vani dvara ve nirantara unaka isa prakara abhinandana tatha abhistavana karate the – jagannamda ! Bhadra ! Prabhuvara ! Apaki jaya ho, apaki jaya ho. Apa dharma ke prabhava se parishahom evam upasargom se abhita rahem, bhaya, bhairava ka sahishnuta purvaka samana karane mem sakshama rahem. Apaki dharmasadhana nirvighna ho. Una akula paurajanom ke shabdom se akasha apurna tha. Isa sthiti mem bhagavan rishabha rajadhani ke bichombicha hote hue nikale. Sahasrom nara – nari apane netrom se bara – bara unake darshana kara rahe the, yavat ve gharom ki hajarom pamktiyom ko lamghate hue age barhe. Siddharthavana, jaham ve gamanodyata the, ki ora janevale rajamarga para jala ka chhirakava karaya tha. Vaha jhara – buharakara svachchha karaya hua tha, surabhita jala se sikta tha, shuddha tha, vaha sthana – sthana para pushpom se sajaya gaya tha, ghorom, hathiyom tatha rathom ke samuha, padatiyom – ke padaghata se – jamina para jami hui dhula dhire – dhire upara ki ora ura rahi thi. Isa prakara chalate ve siddharthavana udyana tha, jaham uttama ashokavriksha tha, vaham aye. Usa uttama vriksha ke niche shibika ko rakhavaya, niche utarakara svayam apane gahane utare. Svayam asthapurvaka chara mushtiyom dvara apane keshom ko locha kiya. Nirjana bela kiya. Uttarashadha nakshatra ke satha chandrama ka yoga hone para apane chara ugra, bhoga, rajanya, kshatriya ke satha eka deva – dushya grahana kara mundita hokara agara se – anagarita mem pravrajita ho gaye