Sutra Navigation: Chandrapragnapati ( चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007330 | ||
Scripture Name( English ): | Chandrapragnapati | Translated Scripture Name : | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्राभृत-१ |
Translated Chapter : |
प्राभृत-१ |
Section : | प्राभृत-प्राभृत-१ | Translated Section : | प्राभृत-प्राभृत-१ |
Sutra Number : | 30 | Category : | Upang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] ता केवतियं ते दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु– ता एगं जोयणसहस्सं एगं च चउत्तीसं जोयणसयं दीवं समुद्दं वा ओगा-हित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता अवड्ढं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु–ता किंचि दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु ५ तत्थ जेते एवमाहंसु– ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसु–ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं जंबुद्दीवं दीवं एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं लवणसमुद्दं एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जह-ण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ १ एवं चोत्तीसं जोयणसयं २ एवं पणतीसं जोयणसयं ३ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अवड्ढं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसु–ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अवड्ढं जंबुद्दीवं दीवं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एवं सव्वबाहिरएवि, नवरं–अवड्ढं लवणसमुद्दं, तया णं राइंदियं तहेव ४ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता नो किंचि दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसु–ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं नो किंचि दीवं समुद्दं वा ओगा-हित्ता सूरिए चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तहेव। एवं सव्व-बाहिरए मंडले, नवरं–नो किंचि लवणसमुद्दं ओगाहित्ता चारं चरइ, राइंदियं तहेव, एगे एवमाहंसु ५ | ||
Sutra Meaning : | वहाँ कितने द्वीप और समुद्र के अन्तर से सूर्य गति करता है ? यह बताईए। इस विषय में पाँच प्रतिपत्तियाँ हैं। कोई एक कहता है कि सूर्य एक हजार योजन एवं १३३ योजन द्वीप समुद्र को अवगाहन करके सूर्य गति करता है। कोई फिर ऐसा प्रतिपादन करता है की एक हजार योजन एवं १३४ योजन परिमित द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके सूर्य गति करता है। कोई एक बताता है की यह अन्तर एक हजार योजन एवं १३५ योजन का है। चौथा परमतवादी का मत है की अर्धद्वीप समुद्र को अवगाहन करता है। पाँचवा कहता है की कोई भी द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके सूर्य गति नहीं करता। इन पाँच मतों में जो यह कहता है की ११३३ योजन परिमित द्वीप समुद्रों को व्याप्त करके सूर्य गति करता है, उनके कथन का हेतु यह है की जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब ११३३ योजन अवगाहीत करके गति करने के समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त्त प्रमाण रात्रि होती है। जब सूर्य सर्वबाह्य मंडल के उपसंक्रमण कर के गति करता है, तब लवणसमुद्र को ११३३ योजन का अवगाहन कर गति करता है। उस समय उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त्त का दिन होता है। इसी प्रकार १३४ एवं १३५ योजन प्रमाण क्षेत्र के विषय में भी है। जो अर्ध द्वीप – समुद्र के अवगाहन कर के सूर्य की गति बतलाता है, उन का अभिप्राय यह है कि सूर्य सर्वा – भ्यन्तर मंडल में उपसंक्रमण कर के गति करता है तब अर्द्ध जम्बूद्वीप की अवगाहना कर के गति करता है, उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। इसी प्रकार सर्व – बाह्यमंडल में भी समझना। विशेष यह कि लवणसमुद्र के अर्द्ध भाग को छोड़कर जब सूर्य अवगाहन करता है तब रात्रि दिन की व्यवस्था उसी प्रकार होती है। जिन मतवादी का कथन यह है कि सूर्य किसी भी द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके गति नहीं करता उनके मतानुसार तब ही उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाण दिन और जघन्या बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। सर्व बाह्यमंडल के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार से समझना, विशेष यह कि लवणसमुद्र को अवगाहीत करके भी सूर्य गति नहीं करता। रात्रिदिन उसी प्रकार होते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ta kevatiyam te divam samuddam va ogahitta surie charam charai ahiteti vaejja? Tattha khalu imao pamcha padivattio pannattao. Tattha ege evamahamsu–ta egam joyanasahassam egam cha tettisam joyanasayam divam samuddam va ogahitta surie charam charai ahiteti vaejja–ege evamahamsu 1 Ege puna evamahamsu– ta egam joyanasahassam egam cha chauttisam joyanasayam divam samuddam va oga-hitta surie charam charai ahiteti vaejja–ege evamahamsu 2 Ege puna evamahamsu–ta egam joyanasahassam egam cha panatisam joyanasayam divam samuddam va ogahitta surie charam charai ahiteti vaejja–ege evamahamsu 3 Ege puna evamahamsu–ta avaddham divam samuddam va ogahitta surie charam charai ahiteti vaejja–ege evamahamsu 4 Ege puna evamahamsu–ta kimchi divam samuddam va ogahitta surie charam charai ahiteti vaejja–ege evamahamsu 5 Tattha jete evamahamsu– ta egam joyanasahassam egam cha tettisam joyanasayam divam samuddam va ogahitta surie charam charai, te evamahamsu–ta jaya nam surie savvabbhamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam jambuddivam divam egam joyanasahassam egam cha tettisam joyanasayam ogahitta surie charam charai, taya nam uttamakatthapatte ukkosae attharasamuhutte divase bhavai, jahanniya duvalasamuhutta rati bhavati, ta jaya nam surie savvabahiram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam lavanasamuddam egam joyanasahassam egam cha tettisam joyanasayam ogahitta charam charai, taya nam uttamakatthapatta ukkosiya attharasamuhutta rati bhavati, jaha-nnae duvalasamuhutte divase bhavai 1 Evam chottisam joyanasayam 2 evam panatisam joyanasayam 3 Tattha jete evamahamsu–ta avaddham divam samuddam va ogahitta surie charam charai, te evamahamsu–ta jaya nam surie savvabbhamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam avaddham jambuddivam divam ogahitta charam charai, taya nam uttamakatthapatte ukkosae attharasamuhutte divase bhavai, jahanniya duvalasamuhutta rati bhavati, evam savvabahiraevi, navaram–avaddham lavanasamuddam, taya nam raimdiyam taheva 4 Tattha jete evamahamsu–ta no kimchi divam samuddam va ogahitta surie charam charai, te evamahamsu–ta jaya nam surie savvabbhamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam no kimchi divam samuddam va oga-hitta surie charam charai, taya nam uttamakatthapatte ukkosae attharasamuhutte divase bhavai, taheva. Evam savva-bahirae mamdale, navaram–no kimchi lavanasamuddam ogahitta charam charai, raimdiyam taheva, ege evamahamsu 5 | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaham kitane dvipa aura samudra ke antara se surya gati karata hai\? Yaha bataie. Isa vishaya mem pamcha pratipattiyam haim. Koi eka kahata hai ki surya eka hajara yojana evam 133 yojana dvipa samudra ko avagahana karake surya gati karata hai. Koi phira aisa pratipadana karata hai ki eka hajara yojana evam 134 yojana parimita dvipa samudra ko avagahita karake surya gati karata hai. Koi eka batata hai ki yaha antara eka hajara yojana evam 135 yojana ka hai. Chautha paramatavadi ka mata hai ki ardhadvipa samudra ko avagahana karata hai. Pamchava kahata hai ki koi bhi dvipa samudra ko avagahita karake surya gati nahim karata. Ina pamcha matom mem jo yaha kahata hai ki 1133 yojana parimita dvipa samudrom ko vyapta karake surya gati karata hai, unake kathana ka hetu yaha hai ki jaba surya sarvabhyantara mamdala ko upasamkramita karake gati karata hai taba 1133 yojana avagahita karake gati karane ke samaya paramaprakarsha prapta utkrishta attharaha muhurtta ka dina aura jaghanya baraha muhurtta pramana ratri hoti hai. Jaba surya sarvabahya mamdala ke upasamkramana kara ke gati karata hai, taba lavanasamudra ko 1133 yojana ka avagahana kara gati karata hai. Usa samaya utkrishta attharaha muhurtta ki ratri aura jaghanya baraha muhurtta ka dina hota hai. Isi prakara 134 evam 135 yojana pramana kshetra ke vishaya mem bhi hai. Jo ardha dvipa – samudra ke avagahana kara ke surya ki gati batalata hai, una ka abhipraya yaha hai ki surya sarva – bhyantara mamdala mem upasamkramana kara ke gati karata hai taba arddha jambudvipa ki avagahana kara ke gati karata hai, usa samaya paramaprakarsha prapta utkrishta attharaha muhurtta ka dina aura jaghanya baraha muhurtta ki ratri hoti hai. Isi prakara sarva – bahyamamdala mem bhi samajhana. Vishesha yaha ki lavanasamudra ke arddha bhaga ko chhorakara jaba surya avagahana karata hai taba ratri dina ki vyavastha usi prakara hoti hai. Jina matavadi ka kathana yaha hai ki surya kisi bhi dvipa samudra ko avagahita karake gati nahim karata unake matanusara taba hi utkrishta attharaha muhurtta pramana dina aura jaghanya baraha muhurtta ki ratri hoti hai. Sarva bahyamamdala ke sambandha mem bhi isi prakara se samajhana, vishesha yaha ki lavanasamudra ko avagahita karake bhi surya gati nahim karata. Ratridina usi prakara hote haim. |