Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )

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Sr No : 1006197
Scripture Name( English ): Jivajivabhigam Translated Scripture Name : जीवाभिगम उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

सर्व जीव प्रतिपत्ति

Translated Chapter :

सर्व जीव प्रतिपत्ति

Section : ४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Translated Section : ४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव
Sutra Number : 397 Category : Upang-03
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अनिंदिया। पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउकाइए। वणस्सतिकाइए णं भंते! वणस्सतिकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं। बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। एवं तेइंदिएवि चउरिंदिएवि। पंचेंदिए णं भंते! पंचेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं। अनिंदिए णं भंते! अणिंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। पुढविकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स। वणस्सइकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जा चेव पुढविकाइयस्स संचिट्ठणा। बेइंदियतेइंदियचउरिंदियपंचेंदियाणं एतेसिं चउण्हंपि अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अनिंदियस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिरं होति? गोयमा! सादीयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेंदिया विसेसाहिया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अनिंदिया अनंतगुणा, वणस्सतिकाइया अनंतगुणा।
Sutra Meaning : जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक, जो असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी रूप से है और क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाशप्रदेशों के निर्लेपकाल के तुल्य हैं। इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक की संचिट्ठणा जानना। वनस्पतिकायिक की संचिट्ठणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रह सकता है। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को भी जानना। पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय रूप में जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त और उत्कर्ष साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है। अनिन्द्रिय, सादि – अपर्यवसित है। पृथ्वीकायिक का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक को भी जानना। वनस्पतिकायिकों का अन्तर वहीं है जो पृथ्वी – कायिक की संचिट्ठणा है, इसी प्रकार द्वीन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रिय का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पति काल है। अनिन्द्रिय सादि – अपर्यवसित है। अल्पबहुत्व – गौतम ! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक असंख्यगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अनिन्द्रिय अनन्तगुण हैं और उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुण हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tattha nam jete evamahamsu dasavidha savvajiva pannatta te evamahamsu, tam jaha–pudhavikaiya aukaiya teukaiya vaukaiya vanassatikaiya bemdiya temdiya chaurimdiya pamchemdiya animdiya. Pudhavikaie nam bhamte! Pudhavikaietti kalao kevachiram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam asamkhejjam kalam– asamkhejjao ussappiniosappinio kalao, khettao asamkhejja loya. Evam auteuvaukaie. Vanassatikaie nam bhamte! Vanassatikaietti kalao kevachiram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam. Bemdie nam bhamte! Bemdietti kalao kevachiram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam samkhejjam kalam. Evam teimdievi chaurimdievi. Pamchemdie nam bhamte! Pamchemdietti kalao kevachiram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam sagarovamasahassam satiregam. Animdie nam bhamte! Animdietti kalao kevachiram hoti? Goyama! Sadie apajjavasie. Pudhavikaiyassa nam bhamte! Amtaram kalao kevachiram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Evam aukaiyassa teukaiyassa vaukaiyassa. Vanassaikaiyassa nam bhamte! Amtaram kalao kevachiram hoti? Goyama! Ja cheva pudhavikaiyassa samchitthana. Beimdiyateimdiyachaurimdiyapamchemdiyanam etesim chaunhampi amtaram jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassaikalo. Animdiyassa nam bhamte! Amtaram kalao kevachiram hoti? Goyama! Sadiyassa apajjavasiyassa natthi amtaram. Appabahuyam–savvatthova pamchemdiya, chaurimdiya visesahiya, teimdiya visesahiya, bemdiya visesahiya, teukaiya asamkhejjaguna, pudhavikaiya visesahiya, aukaiya visesahiya, vaukaiya visesahiya, animdiya anamtaguna, vanassatikaiya anamtaguna.
Sutra Meaning Transliteration : Jo aisa kahate haim ki sarva jiva dasa prakara ke haim, ve isa prakara kahate haim, yatha – prithvikayika, apkayika, tejaskayika, vayukayika, vanaspatikayika, dvindriya, trindriya, chaturindriya, pamchendriya aura anindriya. Bhagavan ! Prithvikayika, prithvikayika ke rupa mem jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se asamkhyatakala taka, jo asamkhyata utsarpini – avasarpini rupa se hai aura kshetramargana se asamkhyeya lokakashapradeshom ke nirlepakala ke tulya haim. Isi prakara apkayika, tejaskayika aura vayukayika ki samchitthana janana. Vanaspatikayika ki samchitthana jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta vanaspatikala hai. Dvindriya, dvindriya rupa mem jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta samkhyatakala taka raha sakata hai. Isi prakara trindriya aura chaturindriya ko bhi janana. Pamchendriya, pamchendriya rupa mem jaghanya anta – rmuhurtta aura utkarsha sadhika eka hajara sagaropama taka raha sakata hai. Anindriya, sadi – aparyavasita hai. Prithvikayika ka antara kitana hai\? Gautama ! Jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta vanaspatikala hai. Isi prakara apkayika, tejaskayika aura vayukayika ko bhi janana. Vanaspatikayikom ka antara vahim hai jo prithvi – kayika ki samchitthana hai, isi prakara dvindriya yavat pamchendriya ka antara jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta vanaspati kala hai. Anindriya sadi – aparyavasita hai. Alpabahutva – gautama ! Sabase thore pamchendriya haim, unase chaturindriya visheshadhika haim, unase trindriya visheshadhika haim, unase dvindriya visheshadhika haim, unase tejaskayika asamkhyaguna haim, unase prithvikayika visheshadhika haim, unase apkayika visheshadhika haim, unase vayukayika visheshadhika haim, unase anindriya anantaguna haim aura unase vanaspatikayika anantaguna haim.