Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005905 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | नैरयिक उद्देशक-२ | Translated Section : | नैरयिक उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 105 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्व-पोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा नो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहुत्तंपि पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एगं महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं– मोग्गरमुसुंढिकरवतअसिसत्तीहलगतामुसलचक्का। नारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला य। जाव भिंडमालरूवं वा पुहत्तं विउव्वेमाणा मोग्गररूवाणि वा जाव भिंडमालरूवाणि वा ताइं संखेज्जाइं नो असंखेज्जाइं संबद्धाइं नो असंबद्धाइं सरिसाइं नो असरिसाइं विउव्वंति, विउव्वित्ता अन्नमन्नस्स कायं अभिहणमाणाअभिहणमाणा वेयणं उदीरेंति –उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं फरुसं निट्ठुरं चंडं तिव्वं दुक्खं दुग्गं दुरहियासं। एवं जाव धूमप्पभाए पुढवीए। छट्ठसत्तमासु णं पुढवीसु नेरइया बहू महंताइं लोहियकुंथुरूवाइं वइरामयतुंडाइं गोमय-कीडसमाणाइं विउव्वंति, विउव्वित्ता अन्नमन्नस्स कायं समतुरंगेमाणासमतुरंगेमाणा खायमाणा-खायमाणा सयपोरागकिमिया विव चालेमाणाचालेमाणा अंतोअंतो अनुप्पविसमाणा-अनुप्पवि-समाणा वेदनं उदीरेंति–उज्जलं जाव दुरहियासं। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं सीतवेदनं वेदेंति? उसिणवेदनं वेदेंति? सीओसिणवेदनं वेदेंति? गोयमा! नो सीयं वेदनं वेदेंति, उसिणं वेदेंति, नो सीतोसिणं वेदनं वेदेंति। एवं जाव वालुयप्पभाए। पंकप्पभाए पुच्छा। गोयमा! सीयंपि वेदनं वेदेंति, उसिणंपि वेदनं वेदेंति, नो सीओसिणवेदनं वेदेंति। ते बहुतरगा जे उसिणं वेदनं वेदेंति, ते थोवतरगा जे सीतं वेदनं वेदेंति। धूमप्पभाए पुच्छा। गोयमा! सीतंपि वेदनं वेदेंति, उसिणंपि वेदनं वेदेंति, नो सीओसिणवेदनं वेदेंति। ते बहुतरगा जे सीतवेदनं वेदेंति, ते थोवतरका जे उसिणवेदनं वेदेंति। तमाए पुच्छा। गोयमा! सीयं वेदनं वेदेंति, नो उसिणं वेदनं वेदेंति, नो सीतोसिणं वेदनं वेदेंति। एवं अहेसत्तमाए, नवरं–परमसीयं। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं निरयभवं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! ते णं तत्थ निच्चं भीता निच्चं छुहिया निच्चं तत्था निच्चं तसिता निच्चं उव्विग्गा निच्चं उप-प्पुआ निच्चं परममसुभमउलमणुबद्धं निरयभवं पच्चणुभवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए। अहेसत्तमाए णं पुढवीए पंच अनुत्तरा महतिमहालया महानरगा पन्नत्ता, तं जहा–काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पतिट्ठाणे। तत्थ इमे पंच महापुरिसा अनुत्तरेहिं दंडसमादाणेहिं कालमासे कालं किच्चा अप्पतिट्ठाणे नरए नेरइयत्ताए उववन्ना, तं जहा–रामे जमदग्गिपुत्ते दाढाऊलेच्छतिपुत्ते, वसू उवरिचरे, सुभूमे कोरव्वे, बंभदत्ते चुलणिसुते। ते णं तत्थ वेदनं वेदेंति–उज्जलं विउलं जाव दुरहियासं। उसिणवेदणिज्जेसु णं भंते! नरएसु नेरइया केरिसयं उसिणवेदनं पच्चणुब्भवमाणा विहरति? गोयमा! से जहानामए– कम्मारदारए सिता तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढ-पाणि पाय पास पिट्ठंतरोरुपरिणए घननिचियवलियवट्टखंधे चम्मेट्ठग दुघण मुट्ठिय समाहयनिचिय-गायगत्ते उरस्सबलसमन्नागए तलजमलजुयलबाहू लंघण पवण जवण पमद्दणसमत्थे छेए पट्ठे कुसले मेहावी निउणसिप्पोवगए एगं महं अयपिंडं उदगवारगसमाणं गहाय तं तावियताविय कोट्टियकोट्टिय जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं अद्धमासं साहणेज्जा, से णं तं सीतं सीतीभूतं अओमएणं संडासएणं गहाय असब्भावपट्ठवणाए उसिणवेदणिज्जेसु नरएसु पक्खिवेज्जा, ... ...से णं तं उम्मिसियणिमिसियंतरेणं पुनरवि पच्चुद्धरिस्सामित्तिकट्टु पविरायमेव पासेज्जा पविलीणमेव पासेज्जा पविद्धत्थमेव पासेज्जा नो चेव णं संचाएति अविरायं वा अविलीणं वा अविद्धत्थं वा पुनरवि पच्चुद्धरित्तए। से जहा वा मत्तमातंगे दुपाए कुंजरे सट्ठिहायणे पढमसरयकालसमयंसि वा चरमनिदाघकाल-समयंसि वा उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए आउरे झूसिए पिवासिए नुब्बले किलंते एक्कं महं पुक्खरिणिं पासेज्जाचाउक्कोणं समतीरं अनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीतलजलं संछन्न-पत्तभिसमुणालं बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पुंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त केसर फुल्लो-वचियं छप्पयपरिभुज्जमाणकमलं अच्छविमलसलिलपुण्णं परिहत्थभमंतमच्छकच्छभं अनेगसउण-गणमिहुणय विरचिय सद्दुन्नइयमहुरसरनाइयं तं पासइ, पासित्ता तं ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा निद्दाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सतिं वा रतिं वा धितिं वा मतिं वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणेसंकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, एवामेव गोयमा! असब्भावपट्ठवणाए उसिणवेदणिज्जेहिंतो नरएहिंतो नेरइए उव्वट्टिए समाणे जाइं इमाइं मनुस्सलोयंसि भवंति, तं जहा– गोलियालिंछाणि वा सोंडियालिंछाणि वा भंडियालिंछाणि वा तिलागणीति वा तुसागणीति वा भुसागणीति वा नलागणीति वा अयागराणि वा तंबागराणि वा तउयागराणि वा सीसागराणि वा रुप्पागराणि वा सुवण्णागराणि वा इट्टावाएति वा कुंभारावाएति वा कवेल्लुयावाएति वा लोहारंब-रिसेति वा जंतवाडचुल्लीति वा–तत्ताइं समजोतिभूयाइं फुल्लकिंसुयसमाणाइं उक्कासहस्साइं विणिम्मुयमाणाइं जालासहस्साइं पमुच्चमाणाइं इंगालसहस्साइं पविक्खिरमाणाइं अंतोअंतो हुहुयमाणाइं चिट्ठंति ताइं पासइ, पासित्ता ताइं ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा निद्दाएज्ज वा पयला-एज्ज वा सतिं वा रतिं वा धिइं वा मतिं वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणे-संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, भवेयारूवे सिया? नो इणट्ठे समट्ठे, गोयमा! उसिणवेदणिज्जेसु नरएसु नेरइया एत्तो अनिट्ठतरियं चेव उसिणवेदनं पच्चणुभवमाणा विहरंति। सीयवेदणिज्जेसु णं भंते! नरएसु नेरइया केरिसयं सीयवेदनं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! से जहानामए कम्मारदारए सिया तरुणे जुगवं बलवं जाव णिउणसिप्पोवगते एगं महं अयपिंडं दगवारसमाणं गहाय तावियंतावियं कोट्टियकोट्टिय जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं मासं साहणेज्जा, से णं तं उसिणं उसिणभूतं अयोमएणं संडासएणं गहाय असब्भावपट्ठवणाए सीयवेदणिज्जेसु नरएसु पक्खिवेज्जा, से तं उम्मिसियनिमिसियंतरेण पुनरवि पच्चुद्धरिस्सामीति कट्टु पविरायमेव पासेज्जा पविलीणमेव पासेज्जा पविद्धत्थमेव पासेज्जा नो चेव णं संचाएज्जा पुनरवि पच्चुद्धरित्तए। से जहानामए मत्तमायंगे दुपाए कुंजरे सट्टिहायणे पढमसरयकालसमयंसि वा चरमनिदाघ-कालसमयंसि वा उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए आउरे झुसिए पिवासिए दुब्बले किलंते एक्कं महं पुक्खरिणिं पासेज्जा–चाउक्कोणं समतीरं अनुपुव्वसुजायवप्पगंभीर सीतलजलं संछण्णपत्तभिसमुणालं बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पुंडरीय महापुंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त केसर फुल्लोवचियं छप्पयपरिभुज्जमाणकमलं अच्छविमलसलिलपुण्णं परिहत्थभमंत-मच्छकच्छभं अनेगसउणगणमिहुणय विचरिय सद्दुन्नइय महुरसरनाइयं तं पासइ, पासित्त तं ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा णिद्दाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सतिं वा रतिं वा धितिं वा मतिं वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणे-संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, एवामेव गोयमा! असब्भावपट्ठवणाए सीतवेदणेहिंतो नरएहिंतो नेरइए उव्वट्टिए समाणे जाइं इमाइं इहं माणुस्सलोए हवंति, तं जहा–हिमाणि वा हिमपुंजाणि वा हिमपडलाणि वा हिमकूडाणि वा सीयाणि वा सीयपुंजाणि वा सीयपडलाणि वा सीयकूडाणि वा तुसाराणि वा तुसारपुंजाणि वा तुसारपडलाणि वा तुसारकूडाणि वा ताइं पासति, पासित्ता ताइं ओगाहति, ओगाहित्ता से णं तत्थ सीतंपि पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा निद्दाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सतिं वा रतिं वा धितिं वा मतिं वा उवलभेज्जा, उसिणे उसिणभूए संकसमाणेसंकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, गोयमा! सीयवेयणिज्जेसु नरएसु नेरइया एत्तो अनिट्ठतरियं चेव सीतवेदनं पच्चणुभवमाणा विहरंति। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! असत् कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्य पुद्गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो सकती है। इसी तरह सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों के सम्बन्ध में भी जानना। हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक क्या एक या बहुत से रूप बनाने में समर्थ हैं ? गौतम ! वे एक रूप भी बना सकते हैं और बहुत रूप भी बना सकते हैं। एक रूप बनाते हुए वे एक मुद्गर रूप बनाने में समर्थ हैं, इसी प्रकार एक भुसंडी, करवत, तलवार, शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, बाण, भाला, तोमर, शूल, लकुट और भिण्डमाल बनाते हैं और बहुत रूप बनाते हुए बहुत से मुद्गर भुसंढी यावत् भिण्डमाल बनाते हैं। इन बहुत शस्त्र रूपों की विकुर्वणा करते हुए वे संख्यात शस्त्रों की ही विकुर्वणा कर सकते हैं, असंख्यात की नहीं। अपने शरीर से सम्बद्ध की विकुर्वणा कर सकते हैं, असम्बद्ध की नहीं, सदृश की रचना कर सकते हैं, असदृश की नहीं। इन विविध शस्त्रों की रचना करके एक दूसरे नैरयिक पर प्रहार करके वेदना उत्पन्न करते हैं। वह वेदना उज्ज्जवल, विपुल, प्रगाढ, कर्कश, कटुक, कठोर, निष्ठुर, चण्ड, तीव्र, दुःखरूप, दुर्लघ्य और दुःसह्य होती है। इसी प्रकार धूम प्रभापृथ्वी तक कहना। छठी और सातवीं पृथ्वी के नैरयिक बहुत और बड़े लाल कुन्थुओं की रचना करते हैं, जिनका मुख मानो वज्र जैसा होता है और जो गोबर के कीड़े जैसे होते हैं। ऐसे कुन्थुरूप की विकुर्वणा करके वे एक दूसरे के शरीर पर चढ़ते हैं, उनके शरीर को बार बार काटते हैं और सौ पर्व वाले इक्षु के कीड़ों की तरह भीतर ही भीतर सनसनाहट करते हुए घुस जाते हैं और उनको उज्ज्वल यावत् असह्य वेदना उत्पन्न करते हैं। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक क्या शीत वेदना वेदते हैं, उष्ण वेदना वेदते हैं, या शीतोष्ण वेदना वेदते हैं ? गौतम ! वे सिर्फ उष्ण वेदना वेदते हैं। इस प्रकार शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा के नैरयिकों में भी जानना पंकप्रभा में शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्णवेदना भी वेदते हैं। वे नैरयिक बहुत हैं जो उष्णवेदना वेदते हैं और वे कम हैं जो शीत वेदना वेदते हैं। धूमप्रभा में शीत वेदना भी वेदते हैं और उष्ण वेदना भी वेदते हैं। वे नारकजीव अधिक हैं जो शीत वेदना वेदते हैं और वे थोड़े हैं जो उष्ण वेदना वेदते हैं। तमःप्रभा में सिर्फ शीत वेदना वेदते हैं। तमस्तमा में परमशीत वेदना वेदते हैं। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के नरक भव का अनुभव करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! वे वहाँ नित्य डरे हुए, त्रसित, भूखे, उद्विग्न और उपद्रवग्रस्त रहते हैं, नित्य वधिक के समान क्रूर परिणाम वाले, नित्य परम अशुभ, अनन्य सदृश अशुभ और निरन्तर अशुभ रूप से उपचित नरकभव का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। सप्तम पृथ्वी में पाँच अनुत्तर बड़े से बड़े महानरक कहे गए हैं, यथा – काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान। वहाँ ये पाँच महापुरुष सर्वोत्कृष्ट हिंसादि पाप कर्मों को एकत्रित कर मृत्यु के समय मरकर अप्रतिष्ठान नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुए – जमदग्नि का पुत्र परशुराम, लच्छतिपुत्र दृढायु, उपरिचर वसुराज, कौरव्य सुभूम और चुणणिसुत ब्रह्मदत्त। वहाँ वर्ण से काले, काली छबि वाले यावत् अत्यन्त काले हैं, इत्यादि वर्णन करना यावत् ये अत्यन्त जाज्वल्यमान विपुल एवं यावत् असह्य वेदना को वेदते हैं। हे भगवन् ! उष्णवेदना वाले नरकों में नारक किस प्रकार की उष्णवेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम ! जैसे कोई लुहार का लड़का, जो तरुण हो, बलवान हो, युगवान् हो, रोग रहित हो, जिसके दोनों हाथ का अग्रभाग स्थिर हो, जिसके हाथ, पाँव, पसलियाँ, पीठ और जंघाए सुदृढ और मजबूत हों, जो लाँघने में, कूदने में, वेग के साथ चलने में, फांदने में समर्थ हो और जो कठिन वस्तु को भी चूर – चूर कर सकता हो, जो दो ताल वृक्ष जैसे सरल लम्बे पुष्ट बाहुवाला हो, जिसके कंधे घने, पुष्ट और गोल हों, चमड़े की बेंत, मुद्गर तथा मुट्ठी के आघात से घने और पुष्ट बने हुए अवयवों वाला हो, जो आन्तरिक उत्साह से युक्त हो, जो छेक, दक्ष, प्रष्ठ, कुशल, निपुण, बुद्धिमान्, निपुणशिल्पयुक्त हो, वह एक छोटे घड़े के समान बड़े लोहे के पिण्ड को लेकर उसे तपा – तपा कर कूट कूट कर काट – काट कर उसका चूर्ण बनावे, ऐसा एक दिन, दो दिन, तीन दिन यावत् अधिक से अधिक पन्द्रह दिन तक ऐसा ही करता रहे। फिर उसे ठंड़ा करे। उस ठंड़े लोहे के गोले को लोहे की संडासी से पकड़ कर असत् कल्पना से उष्णवेदना वाला नरकों में रख दे, इस विचार के साथ कि मैं एक उन्मेष – निमेष में उसे फिर निकाल लूँगा। परन्तु वह क्षणभर में ही उसे फूटता, मक्खन की तरह पिघलता, सर्वथा भस्मीभूत होते हुए देखता है। वह लुहार का लड़का उस लोहे के गोले को अस्फुटित, अगलित और अविध्वस्त रूप में पुनः निकाल लेने में समर्थ नहीं होता। (दूसरा दृष्टान्त) कोई मदवाला मातंग हाथी जो साठ वर्ष का है प्रथम शरत् काल अथवा अन्तिम ग्रीष्मकाल समय में गरमी से पीड़ित होकर, तृषा से बाधित होकर, दावाग्नि की ज्वालाओं से झुलसता हुआ, आतुर, शुषित, पिपासित, दुर्बल और क्लान्त बना हुआ एक बड़ी पुष्करिणी को देखता है, जिसके चार कोने हैं, जो समान किनारे वाली है, जो क्रमशः आगे – आगे गहरी है, जिसका जलस्थान अथाह है, जिसका जल शीतल है, जो कमलपत्र कंद और मृणाल से ढंकी हुई है। जो बहुत से खिले हुए केसरप्रधान उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र आदि विविध कमल की जातियों से युक्त है, जिसके कमलों पर भ्रमर रसपान कर रहे हैं, जो स्वच्छ निर्मल जल से भरी हुई है, जिसमें बहुत से मच्छ और कछुए इधर – उधर घूम रहे हों, अनेक पक्षियों के जोड़ों के चहचहाने के शब्दों के कारण से जो मधुर स्वर से सुनिनादित हो रही है, ऐसी पुष्पकरिणी को देखकर वह उसमें प्रवेश करता है, अपनी गरमी को शान्त करता है, तृषा को दूर करता है, भूख को मिटाता है, तापजनित ज्वर को नष्ट करता है और दाह को उपशान्त करता है। इस प्रकार उष्णता आदि के उपशान्त होने पर वह वहाँ निद्रा लेने लगता है, आँखें मूँदने लगता है, उसकी स्मृति, रति, धृति तथा मति लौट आती है, शीतल और शान्त हो कर धीरे – धीरे वहाँ से निकलता – निकलता अत्यन्त शाता – सुख का अनुभव करता है। इसी प्रकार हे गौतम ! असत् कल्पना के अनुसार उष्णवेदनीय नरकों से नीकल कर कोई नैरयिक जीव इस मनुष्यलोक में जो गुड़ पकाने की, शराब बनाने की, बकरी की लिण्डियों की अग्निवाली, लोहा – ताँबा, रांगा – सीसा, चाँदी, सोना हिरण्य को गलाने की भट्ठियाँ, कुम्भकार के भट्ठे की अग्नि, मूस की अग्नि, इंटे पकाने के भट्ठे की अग्नि, कवेलु पकाने के भट्ठे की अग्नि, लोहार के भट्ठे की अग्नि, इक्षुरस पकाने की चूल की अग्नि, तिल की अग्नि, तुष की अग्नि, नड – बांस की अग्नि आदि जो अग्नि और अग्नि के स्थान हैं, जो तप्त हैं और तपकर अग्नि – तुल्य हो गये हैं, फूले हुए पलास के फूलों की तरह लाल – लाल हो गये हैं, जिनमें से हजारों चिनगारियाँ निकल रही हैं, हजारों ज्वालाएं निकल रही हैं, हजारों अंगारे जहाँ बिखर रहे हैं और जो अत्यन्त जाज्वल्यमान हैं, जो अन्दर ही अन्दर धू – धू धधकते हैं, ऐसे अग्निस्थानों और अग्नियों को वह नारक जीव देखे और उनमें प्रवेश करे तो वह अपनी उष्णता को शान्त करता है, तृषा, क्षुधा और दाह को दूर करता है और ऐसा होने से वह वहाँ नींद भी लेता है, आँखे भी मूँदता है, स्मृति, रति, धृति और मति प्राप्त करता है और ठंड़ा होकर अत्यन्त शान्ति का अनुभव करता हुआ धीरे – धीरे वहाँ से निकलता हुआ अत्यन्त सुख – शाता का अनुभव करता है। भगवन् ! क्या नारकों की ऐसी उष्णवेदना है? भगवन् ने कहा – नहीं, यह बात नहीं है; इससे भी अनिष्टतर उष्णवेदना नारक जीव अनुभव करते हैं हे भगवन् ! शीतवेदनीय नरकों में नैरयिक जीव कैसी शीतवेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम ! जैसे कोई लुहार का लड़का जो तरुण, युगवान् यावत् शिल्पयुक्त हो, एक बड़े लोहे के पिण्ड को जो पानी के छोटे घड़े के बराबर हो, लेकर उसे तपा – तपाकर, कूट – कूटकर जघन्य एक, दो, तीन दिन उत्कृष्ट से एक मास तक पूर्ववत् सब क्रियाएं करता रहे तथा पूरी तरह उष्ण गोले को लोहे की संडासी से पकड़ कर असत् कल्पना द्वारा उसे शीत – वेदनीय नरकों में डाले इत्यादि। इसी प्रकार हे गौतम ! असत् कल्पना से शीतवेदना वाले नरकों से नीकला हुआ नैरयिक इस मनुष्यलोक में शीतप्रधान जो स्थान हैं जैसे की हिम, हिमपुंज, हिमपटल, हिमपटल के पुंज, तुषार, तुषार के पुंज, हिमकुण्ड, हिमकुण्ड के पुंज, शीत और शीतपुंज आदि को देखता है, देखकर उनमें प्रवेश करता है; वह वहाँ अपने नारकीय शीत को, तृषा को, भूख को, ज्वर को, दाह को मिटा लेता है और शान्ति के अनुभव से नींद भी लेता है, नींद से आँखे बंद कर लेता है यावत् गरम होकर अति गरम होकर वहाँ से धीरे – धीरे नीकल कर शाता – सुख का अनुभव करता है। हे गौतम ! शीतवेदनीय नरकों में नैरयिक इससे भी अनिष्टतर शीतवेदना का अनुभव करते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie neraiya kerisayam khuhappivasam pachchanubbhavamana viharamti? Goyama! Egamegassa nam rayanappabhapudhavineraiyassa asabbhavapatthavanae savvodadhi va savva-poggale va asagamsi pakkhivejja no cheva nam se rayanappabhae pudhavie neraie titte va sita vitanhe va sita, erisaya nam goyama! Rayanappabhae neraiya khudhappivasam pachchanubbhavamana viharamti. Evam java adhesattamae. Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie neraiya kim ekattam pabhu viuvvittae? Puhuttampi pabhu viuvvittae? Goyama! Egattampi pabhu viuvvittae. Egattam viuvvemana egam maham moggararuvam va musumdhiruvam va, evam– moggaramusumdhikaravataasisattihalagatamusalachakka. Narayakumtatomarasulalaudabhimdamala ya. Java bhimdamalaruvam va puhattam viuvvemana moggararuvani va java bhimdamalaruvani va taim samkhejjaim no asamkhejjaim sambaddhaim no asambaddhaim sarisaim no asarisaim viuvvamti, viuvvitta annamannassa kayam abhihanamanaabhihanamana veyanam udiremti –ujjalam viulam pagadham kakkasam kaduyam pharusam nitthuram chamdam tivvam dukkham duggam durahiyasam. Evam java dhumappabhae pudhavie. Chhatthasattamasu nam pudhavisu neraiya bahu mahamtaim lohiyakumthuruvaim vairamayatumdaim gomaya-kidasamanaim viuvvamti, viuvvitta annamannassa kayam samaturamgemanasamaturamgemana khayamana-khayamana sayaporagakimiya viva chalemanachalemana amtoamto anuppavisamana-anuppavi-samana vedanam udiremti–ujjalam java durahiyasam. Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie neraiya kim sitavedanam vedemti? Usinavedanam vedemti? Siosinavedanam vedemti? Goyama! No siyam vedanam vedemti, usinam vedemti, no sitosinam vedanam vedemti. Evam java valuyappabhae. Pamkappabhae puchchha. Goyama! Siyampi vedanam vedemti, usinampi vedanam vedemti, no siosinavedanam vedemti. Te bahutaraga je usinam vedanam vedemti, te thovataraga je sitam vedanam vedemti. Dhumappabhae puchchha. Goyama! Sitampi vedanam vedemti, usinampi vedanam vedemti, no siosinavedanam vedemti. Te bahutaraga je sitavedanam vedemti, te thovataraka je usinavedanam vedemti. Tamae puchchha. Goyama! Siyam vedanam vedemti, no usinam vedanam vedemti, no sitosinam vedanam vedemti. Evam ahesattamae, navaram–paramasiyam. Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie neraiya kerisayam nirayabhavam pachchanubhavamana viharamti? Goyama! Te nam tattha nichcham bhita nichcham chhuhiya nichcham tattha nichcham tasita nichcham uvvigga nichcham upa-ppua nichcham paramamasubhamaulamanubaddham nirayabhavam pachchanubhavamana viharamti. Evam java adhesattamae. Ahesattamae nam pudhavie pamcha anuttara mahatimahalaya mahanaraga pannatta, tam jaha–kale mahakale rorue maharorue appatitthane. Tattha ime pamcha mahapurisa anuttarehim damdasamadanehim kalamase kalam kichcha appatitthane narae neraiyattae uvavanna, tam jaha–rame jamadaggiputte dadhaulechchhatiputte, vasu uvarichare, subhume koravve, bambhadatte chulanisute. Te nam tattha vedanam vedemti–ujjalam viulam java durahiyasam. Usinavedanijjesu nam bhamte! Naraesu neraiya kerisayam usinavedanam pachchanubbhavamana viharati? Goyama! Se jahanamae– kammaradarae sita tarune balavam jugavam juvane appayamke thiraggahatthe dadha-pani paya pasa pitthamtaroruparinae ghananichiyavaliyavattakhamdhe chammetthaga dughana mutthiya samahayanichiya-gayagatte urassabalasamannagae talajamalajuyalabahu lamghana pavana javana pamaddanasamatthe chhee patthe kusale mehavi niunasippovagae egam maham ayapimdam udagavaragasamanam gahaya tam taviyataviya kottiyakottiya java egaham va duyaham va tiyaham va ukkosenam addhamasam sahanejja, se nam tam sitam sitibhutam aomaenam samdasaenam gahaya asabbhavapatthavanae usinavedanijjesu naraesu pakkhivejja,.. ..Se nam tam ummisiyanimisiyamtarenam punaravi pachchuddharissamittikattu pavirayameva pasejja pavilinameva pasejja paviddhatthameva pasejja no cheva nam samchaeti avirayam va avilinam va aviddhattham va punaravi pachchuddharittae. Se jaha va mattamatamge dupae kumjare satthihayane padhamasarayakalasamayamsi va charamanidaghakala-samayamsi va unhabhihae tanhabhihae davaggijalabhihae aure jhusie pivasie nubbale kilamte ekkam maham pukkharinim pasejjachaukkonam samatiram anupuvvasujayavappagambhirasitalajalam samchhanna-pattabhisamunalam bahuuppala kumuda nalina subhaga sogamdhiya pumdariya sayapatta sahassapatta kesara phullo-vachiyam chhappayaparibhujjamanakamalam achchhavimalasalilapunnam parihatthabhamamtamachchhakachchhabham anegasauna-ganamihunaya virachiya saddunnaiyamahurasaranaiyam tam pasai, pasitta tam ogahai, ogahitta se nam tattha unhampi pavinejja tanhampi pavinejja khuhampi pavinejja jarampi pavinejja dahampi pavinejja niddaejja va payalaejja va satim va ratim va dhitim va matim va uvalabhejja, sie siyabhue samkasamanesamkasamane sayasokkhabahule yavi viharejja, evameva goyama! Asabbhavapatthavanae usinavedanijjehimto naraehimto neraie uvvattie samane jaim imaim manussaloyamsi bhavamti, tam jaha– Goliyalimchhani va somdiyalimchhani va bhamdiyalimchhani va tilaganiti va tusaganiti va bhusaganiti va nalaganiti va ayagarani va tambagarani va tauyagarani va sisagarani va ruppagarani va suvannagarani va ittavaeti va kumbharavaeti va kavelluyavaeti va loharamba-riseti va jamtavadachulliti va–tattaim samajotibhuyaim phullakimsuyasamanaim ukkasahassaim vinimmuyamanaim jalasahassaim pamuchchamanaim imgalasahassaim pavikkhiramanaim amtoamto huhuyamanaim chitthamti taim pasai, pasitta taim ogahai, ogahitta se nam tattha unhampi pavinejja tanhampi pavinejja khuhampi pavinejja jarampi pavinejja dahampi pavinejja niddaejja va payala-ejja va satim va ratim va dhiim va matim va uvalabhejja, sie siyabhue samkasamane-samkasamane sayasokkhabahule yavi viharejja, bhaveyaruve siya? No inatthe samatthe, goyama! Usinavedanijjesu naraesu neraiya etto anitthatariyam cheva usinavedanam pachchanubhavamana viharamti. Siyavedanijjesu nam bhamte! Naraesu neraiya kerisayam siyavedanam pachchanubbhavamana viharamti? Goyama! Se jahanamae kammaradarae siya tarune jugavam balavam java niunasippovagate egam maham ayapimdam dagavarasamanam gahaya taviyamtaviyam kottiyakottiya java egaham va duyaham va tiyaham va ukkosenam masam sahanejja, se nam tam usinam usinabhutam ayomaenam samdasaenam gahaya asabbhavapatthavanae siyavedanijjesu naraesu pakkhivejja, se tam ummisiyanimisiyamtarena punaravi pachchuddharissamiti kattu pavirayameva pasejja pavilinameva pasejja paviddhatthameva pasejja no cheva nam samchaejja punaravi pachchuddharittae. Se jahanamae mattamayamge dupae kumjare sattihayane padhamasarayakalasamayamsi va charamanidagha-kalasamayamsi va unhabhihae tanhabhihae davaggijalabhihae aure jhusie pivasie dubbale kilamte ekkam maham pukkharinim pasejja–chaukkonam samatiram anupuvvasujayavappagambhira sitalajalam samchhannapattabhisamunalam bahuuppala kumuda nalina subhaga sogamdhiya pumdariya mahapumdariya sayapatta sahassapatta kesara phullovachiyam chhappayaparibhujjamanakamalam achchhavimalasalilapunnam parihatthabhamamta-machchhakachchhabham anegasaunaganamihunaya vichariya saddunnaiya mahurasaranaiyam tam pasai, pasitta tam ogahai, ogahitta se nam tattha unhampi pavinejja tanhampi pavinejja khuhampi pavinejja jarampi pavinejja dahampi pavinejja niddaejja va payalaejja va satim va ratim va dhitim va matim va uvalabhejja, sie siyabhue samkasamane-samkasamane sayasokkhabahule yavi viharejja, Evameva goyama! Asabbhavapatthavanae sitavedanehimto naraehimto neraie uvvattie samane jaim imaim iham manussaloe havamti, tam jaha–himani va himapumjani va himapadalani va himakudani va siyani va siyapumjani va siyapadalani va siyakudani va tusarani va tusarapumjani va tusarapadalani va tusarakudani va taim pasati, pasitta taim ogahati, ogahitta se nam tattha sitampi pavinejja tanhampi pavinejja khuhampi pavinejja jarampi pavinejja dahampi pavinejja niddaejja va payalaejja va satim va ratim va dhitim va matim va uvalabhejja, usine usinabhue samkasamanesamkasamane sayasokkhabahule yavi viharejja, goyama! Siyaveyanijjesu naraesu neraiya etto anitthatariyam cheva sitavedanam pachchanubhavamana viharamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Isa ratnaprabhaprithvi ke nairayika bhukha aura pyasa ki kaisi vedana ka anubhava karate haim\? Gautama! Asat kalpana ke anusara yadi kisi eka ratnaprabhaprithvi ke nairayika ke mukha mem saba samudrom ka jala tatha saba khadya pudgalom ko dala diya jaya to bhi usa ratnaprabhaprithvi ke nairayika ki bhukha tripta nahim ho sakati aura na usaki pyasa hi shanta ho sakati hai. Isi taraha saptamaprithvi taka ke nairayikom ke sambandha mem bhi janana. He bhagavan ! Ratnaprabhaprithvi ke nairayika kya eka ya bahuta se rupa banane mem samartha haim\? Gautama ! Ve eka rupa bhi bana sakate haim aura bahuta rupa bhi bana sakate haim. Eka rupa banate hue ve eka mudgara rupa banane mem samartha haim, isi prakara eka bhusamdi, karavata, talavara, shakti, hala, gada, musala, chakra, bana, bhala, tomara, shula, lakuta aura bhindamala banate haim aura bahuta rupa banate hue bahuta se mudgara bhusamdhi yavat bhindamala banate haim. Ina bahuta shastra rupom ki vikurvana karate hue ve samkhyata shastrom ki hi vikurvana kara sakate haim, asamkhyata ki nahim. Apane sharira se sambaddha ki vikurvana kara sakate haim, asambaddha ki nahim, sadrisha ki rachana kara sakate haim, asadrisha ki nahim. Ina vividha shastrom ki rachana karake eka dusare nairayika para prahara karake vedana utpanna karate haim. Vaha vedana ujjjavala, vipula, pragadha, karkasha, katuka, kathora, nishthura, chanda, tivra, duhkharupa, durlaghya aura duhsahya hoti hai. Isi prakara dhuma prabhaprithvi taka kahana. Chhathi aura satavim prithvi ke nairayika bahuta aura bare lala kunthuom ki rachana karate haim, jinaka mukha mano vajra jaisa hota hai aura jo gobara ke kire jaise hote haim. Aise kunthurupa ki vikurvana karake ve eka dusare ke sharira para charhate haim, unake sharira ko bara bara katate haim aura sau parva vale ikshu ke kirom ki taraha bhitara hi bhitara sanasanahata karate hue ghusa jate haim aura unako ujjvala yavat asahya vedana utpanna karate haim. He bhagavan ! Isa ratnaprabhaprithvi ke nairayika kya shita vedana vedate haim, ushna vedana vedate haim, ya shitoshna vedana vedate haim\? Gautama ! Ve sirpha ushna vedana vedate haim. Isa prakara sharkaraprabha aura balukaprabha ke nairayikom mem bhi janana pamkaprabha mem shitavedana bhi vedate haim aura ushnavedana bhi vedate haim. Ve nairayika bahuta haim jo ushnavedana vedate haim aura ve kama haim jo shita vedana vedate haim. Dhumaprabha mem shita vedana bhi vedate haim aura ushna vedana bhi vedate haim. Ve narakajiva adhika haim jo shita vedana vedate haim aura ve thore haim jo ushna vedana vedate haim. Tamahprabha mem sirpha shita vedana vedate haim. Tamastama mem paramashita vedana vedate haim. He bhagavan ! Isa ratnaprabha prithvi ke nairayika kisa prakara ke naraka bhava ka anubhava karate hue vicharate haim\? Gautama ! Ve vaham nitya dare hue, trasita, bhukhe, udvigna aura upadravagrasta rahate haim, nitya vadhika ke samana krura parinama vale, nitya parama ashubha, ananya sadrisha ashubha aura nirantara ashubha rupa se upachita narakabhava ka anubhava karate haim. Isi prakara saptama prithvi taka kahana. Saptama prithvi mem pamcha anuttara bare se bare mahanaraka kahe gae haim, yatha – kala, mahakala, raurava, maharaurava aura apratishthana. Vaham ye pamcha mahapurusha sarvotkrishta himsadi papa karmom ko ekatrita kara mrityu ke samaya marakara apratishthana naraka mem nairayika ke rupa mem utpanna hue – jamadagni ka putra parashurama, lachchhatiputra dridhayu, uparichara vasuraja, kauravya subhuma aura chunanisuta brahmadatta. Vaham varna se kale, kali chhabi vale yavat atyanta kale haim, ityadi varnana karana yavat ye atyanta jajvalyamana vipula evam yavat asahya vedana ko vedate haim. He bhagavan ! Ushnavedana vale narakom mem naraka kisa prakara ki ushnavedana ka anubhava karate haim\? Gautama ! Jaise koi luhara ka laraka, jo taruna ho, balavana ho, yugavan ho, roga rahita ho, jisake donom hatha ka agrabhaga sthira ho, jisake hatha, pamva, pasaliyam, pitha aura jamghae sudridha aura majabuta hom, jo lamghane mem, kudane mem, vega ke satha chalane mem, phamdane mem samartha ho aura jo kathina vastu ko bhi chura – chura kara sakata ho, jo do tala vriksha jaise sarala lambe pushta bahuvala ho, jisake kamdhe ghane, pushta aura gola hom, chamare ki bemta, mudgara tatha mutthi ke aghata se ghane aura pushta bane hue avayavom vala ho, jo antarika utsaha se yukta ho, jo chheka, daksha, prashtha, kushala, nipuna, buddhiman, nipunashilpayukta ho, vaha eka chhote ghare ke samana bare lohe ke pinda ko lekara use tapa – tapa kara kuta kuta kara kata – kata kara usaka churna banave, aisa eka dina, do dina, tina dina yavat adhika se adhika pandraha dina taka aisa hi karata rahe. Phira use thamra kare. Usa thamre lohe ke gole ko lohe ki samdasi se pakara kara asat kalpana se ushnavedana vala narakom mem rakha de, isa vichara ke satha ki maim eka unmesha – nimesha mem use phira nikala lumga. Parantu vaha kshanabhara mem hi use phutata, makkhana ki taraha pighalata, sarvatha bhasmibhuta hote hue dekhata hai. Vaha luhara ka laraka usa lohe ke gole ko asphutita, agalita aura avidhvasta rupa mem punah nikala lene mem samartha nahim hota. (dusara drishtanta) koi madavala matamga hathi jo satha varsha ka hai prathama sharat kala athava antima grishmakala samaya mem garami se pirita hokara, trisha se badhita hokara, davagni ki jvalaom se jhulasata hua, atura, shushita, pipasita, durbala aura klanta bana hua eka bari pushkarini ko dekhata hai, jisake chara kone haim, jo samana kinare vali hai, jo kramashah age – age gahari hai, jisaka jalasthana athaha hai, jisaka jala shitala hai, jo kamalapatra kamda aura mrinala se dhamki hui hai. Jo bahuta se khile hue kesarapradhana utpala, kumuda, nalina, subhaga, saugamdhika, pundarika, mahapundarika, shatapatra, sahasrapatra adi vividha kamala ki jatiyom se yukta hai, jisake kamalom para bhramara rasapana kara rahe haim, jo svachchha nirmala jala se bhari hui hai, jisamem bahuta se machchha aura kachhue idhara – udhara ghuma rahe hom, aneka pakshiyom ke jorom ke chahachahane ke shabdom ke karana se jo madhura svara se suninadita ho rahi hai, aisi pushpakarini ko dekhakara vaha usamem pravesha karata hai, apani garami ko shanta karata hai, trisha ko dura karata hai, bhukha ko mitata hai, tapajanita jvara ko nashta karata hai aura daha ko upashanta karata hai. Isa prakara ushnata adi ke upashanta hone para vaha vaham nidra lene lagata hai, amkhem mumdane lagata hai, usaki smriti, rati, dhriti tatha mati lauta ati hai, shitala aura shanta ho kara dhire – dhire vaham se nikalata – nikalata atyanta shata – sukha ka anubhava karata hai. Isi prakara he gautama ! Asat kalpana ke anusara ushnavedaniya narakom se nikala kara koi nairayika jiva isa manushyaloka mem jo gura pakane ki, sharaba banane ki, bakari ki lindiyom ki agnivali, loha – tamba, ramga – sisa, chamdi, sona hiranya ko galane ki bhatthiyam, kumbhakara ke bhatthe ki agni, musa ki agni, imte pakane ke bhatthe ki agni, kavelu pakane ke bhatthe ki agni, lohara ke bhatthe ki agni, ikshurasa pakane ki chula ki agni, tila ki agni, tusha ki agni, nada – bamsa ki agni adi jo agni aura agni ke sthana haim, jo tapta haim aura tapakara agni – tulya ho gaye haim, phule hue palasa ke phulom ki taraha lala – lala ho gaye haim, jinamem se hajarom chinagariyam nikala rahi haim, hajarom jvalaem nikala rahi haim, hajarom amgare jaham bikhara rahe haim aura jo atyanta jajvalyamana haim, jo andara hi andara dhu – dhu dhadhakate haim, aise agnisthanom aura agniyom ko vaha naraka jiva dekhe aura unamem pravesha kare to vaha apani ushnata ko shanta karata hai, trisha, kshudha aura daha ko dura karata hai aura aisa hone se vaha vaham nimda bhi leta hai, amkhe bhi mumdata hai, smriti, rati, dhriti aura mati prapta karata hai aura thamra hokara atyanta shanti ka anubhava karata hua dhire – dhire vaham se nikalata hua atyanta sukha – shata ka anubhava karata hai. Bhagavan ! Kya narakom ki aisi ushnavedana hai? Bhagavan ne kaha – nahim, yaha bata nahim hai; isase bhi anishtatara ushnavedana naraka jiva anubhava karate haim He bhagavan ! Shitavedaniya narakom mem nairayika jiva kaisi shitavedana ka anubhava karate haim\? Gautama ! Jaise koi luhara ka laraka jo taruna, yugavan yavat shilpayukta ho, eka bare lohe ke pinda ko jo pani ke chhote ghare ke barabara ho, lekara use tapa – tapakara, kuta – kutakara jaghanya eka, do, tina dina utkrishta se eka masa taka purvavat saba kriyaem karata rahe tatha puri taraha ushna gole ko lohe ki samdasi se pakara kara asat kalpana dvara use shita – vedaniya narakom mem dale ityadi. Isi prakara he gautama ! Asat kalpana se shitavedana vale narakom se nikala hua nairayika isa manushyaloka mem shitapradhana jo sthana haim jaise ki hima, himapumja, himapatala, himapatala ke pumja, tushara, tushara ke pumja, himakunda, himakunda ke pumja, shita aura shitapumja adi ko dekhata hai, dekhakara unamem pravesha karata hai; vaha vaham apane narakiya shita ko, trisha ko, bhukha ko, jvara ko, daha ko mita leta hai aura shanti ke anubhava se nimda bhi leta hai, nimda se amkhe bamda kara leta hai yavat garama hokara ati garama hokara vaham se dhire – dhire nikala kara shata – sukha ka anubhava karata hai. He gautama ! Shitavedaniya narakom mem nairayika isase bhi anishtatara shitavedana ka anubhava karate haim. |