Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005767 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 67 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छति– एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेगगनणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणगदोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि। तए णं मम णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेंति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतं चेव अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि। तए णं अहं अन्नया कयाइं जेणामेव सा अओकुंभी तेणामेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता तं अओकुंभिं उग्गलच्छावेमि, उग्ग लच्छावित्ता तं पुरिसं सयमेव पासामि, नो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहिंतो बहिया निग्गए। जइ णं भंते! तीसे अओकुंभीए होज्ज केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहिंतो बहिया निग्गए, तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते! तीसे अओकुंभीए नत्थि केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा, राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहिंतो बहिया निग्गए, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं। तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी–पएसी! से जहानामए कुडागारसाला सिया–दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा। अह णं केइ पुरिसे भेरिं च दंडं च गहाड कूडागारसालाए अंतो-अंतो अनुप्पविसति, अनुप्पविसित्ता तीसे कूडागारसालाए सव्वतो समंता घण निचिय निरंतर णिच्छिड्डाइं दुवारवयणाइं पिहेइ। तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए ठिच्चा तं भेरिं दंडएणं महया-महया सद्देणं तालेज्जा। से णूणं पएसी! से सद्दे णं अंतोहिंतो बहिया निग्गच्छइ? हंता निग्गच्छइ। अत्थि णं पएसी! तीसे कूडागारसालाए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से सद्दे अंतोहिंतो बहिया निग्गए? नो तिणट्ठे समट्ठे। एवामेव पएसी! जीवे वि अप्पडिहयगई पुढविं भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा अंतोहिंतो बहिया निग्गच्छइ, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी! अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। | ||
Sutra Meaning : | राजा प्रदेशी ने कहा – हे भदन्त ! जीव और शरीर की भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए अपने देवों के नहीं आने के कारण रूप में जो उपमा दी, वह तु बुद्धि से कल्पित एक दृष्टान्त मात्र है। परन्तु भदन्त ! किसी एक दिन मैं अपने अनेक गणनायक, दंड़नायक, राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इब्भ, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, मंत्री, महामंत्री, गणक, दौवारिक, अमात्य, चेट, पीठमर्दक, नागरिक, व्यापारी, दूत, संधिपाल आदि के साथ अपनी बाह्य उपस्थानशाला में बैठा हुआ था। उसी समय नगर – रक्षक चुराई हुई वस्तु और साक्षी सहित गरदन और पीछे दोनों हाथ बांधे एक चोर को पकड़ कर मेरे सामने लाये। तब मैंने उसे जीवित ही एक लोहे की कुंबी में बंद करवा कर अच्छी तरह लोहे के ढक्कन से उसका मुख ढँक दिया। फिर गरम लोहे एवं रांगे से उस पर लेप करा दिया और देखरेख के लिए अपने विश्वासपात्र पुरुषों को नियुक्त कर दिया। तत्पश्चात् किसी दिन मैं उस लोहे की कुंभी के पास गया। कुंभी को खुलवाया। मैंने स्वयं उस पुरुष को देखा तो वह मर चूका था। किन्तु उस लोह कुंभी में राई जितना न कोई छेद था, न कोई विवर था, न कोई अंतर था और न कोई दरार थी कि जिस में से उस पुरुष का जीव बाहर नीकल जाता। यदि उस लोहकुंभी में कोइ छिद्र यावत् दरार होती तो हे भदन्त ! मैं यह मान लेता कि भीतर बंद पुरुष का जीव बाहर नीकल गया है तब आपकी बात पर विश्वास कर लेता, प्रतीति कर लेता एवं अपनी रुचि का विषय बना लेता कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है, किन्तु जीव शरीर रूप नहीं और शरीर जीव रूप नहीं। लेकिन उस लोहकुंभीमें जब कोइ छिद्र ही नहीं है यावत् जीव नहीं है तो हे भदन्त ! मेरा यह मंतव्य ठीक है जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है केशी कुमारश्रमण ने कहा – जैसे कोई कूटाकारशाला हो और वह भीतर – बाहर चारों ओर लीपी हुई हो, अच्छी तरह से आच्छादित हो, उसका द्वार भी गुप्त हो और हवा का प्रवेश भी जिसमें नहीं हो सके, ऐसी गहरी हो। अब यदि उस कूटाकारशाला में कोई पुरुष भेरी और बजाने के लिए डंडा लेकर घूस जाए और घूसकर उस कूटा – कारशाला के द्वार आदि को चारों ओर से बंद कर दे कि जिससे कहीं पर भी थोड़ा – सा अंतर नहीं रहे और उसके बाद उस कूटाकारशाला के बीचों – बीच खड़े होकर डंडे से भेरी को जोर – जोर से बजाए तो हे प्रदेशी ! तुम्हीं बताओ कि वह भीतर की आवाज बाहर नीकलती है अथवा नहीं ? हाँ, भदन्त ! नीकलती है। हे प्रदेशी ! क्या उस कूटा – कारशाला में कोई छिद्र यावत् दरार है कि जिसमें से वह शब्द बाहर नीकलता हो ? हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार प्रदेशी ! जीव भी अप्रतिहत गति वाला है। वह पृथ्वी का भेदन कर, शिला का भेदन कर, पर्वत का भेदन कर भीतर से बाहर नीकल जाता है। इसीलिए हे प्रदेशी ! तुम यह श्रद्धा करो की जीव और शरीर भिन्न – भिन्न हैं, जीव शरीर नहीं है और शरीर जीव नहीं है। प्रदेशी राजा ने कहा – भदन्त ! यह आप द्वारा प्रयुक्त उपमा तो बुद्धिविशेष रूप है, इससे मेरे मन में जीव और शरीर की भिन्नता का विचार युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि किसी समय मैं अपनी बाहरी उपस्थान – शाला में गणनायक आदि के साथ बैठा था। तब मेरे नगररक्षकों ने साक्षी सहित यावत् एक चोर पुरुष को उपस्थित किया। मैंने उस पुरुष को प्राणरहित कर दिया और लोहकुंभी में डलवा दिया, ढक्कन से ढाँक दिया यावत् अपने विश्वासपात्र पुरुषों को रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया। बाद किसी दिन जहाँ वह कुंभी थी, मैं वहाँ आया। उस लोहकुंभी को उघाड़ा तो उसे कृमिकुल से व्याप्त देखा। लेकिन उस लोहकुंभी में न तो कोई छेद था, न कोई दरार थी कि जिसमें से वे जीव बाहर से उसमें प्रविष्ट हो सके। यदि उस लोहकुंभी में कोई छेद होता यावत् दरार होती तो यह माना जा सकता था – वे जीव उसमें से होकर कुंभी में प्रविष्ट हुए हैं और तब मैं श्रद्धा कर लेता कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है। लेकिन जब उस लोहकुंभी में कोई छेद आदि नहीं थे, फिर भी उसमें जीव प्रविष्ट हो गए। अतः मेरी यह प्रतीति सुप्रतिष्ठित है कि जीव और शरीर एक ही हैं। केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी ! क्या तुमने पहले कभी अग्नि से तपाया हुआ लोहा देखा है ? हाँ, भदन्त ! देखा है। तब हे प्रदेशी ! तपाये जाने पर वह लोहा पूर्णतया अग्नि रूप में परिणत हो जाता है या नहीं ? हाँ, हो जाता है। हे प्रदेशी ! उस लोहे में कोई छिद्र आदि हैं क्या, जिससे वह अग्नि बाहर से उसके भीतर प्रविष्ट हो गई ? भदन्त ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। तो इसी प्रकार हे प्रदेशी ! जीव भी अप्रतिहत गतिवाला है, जिससे वह पृथ्वी, शिला आदि का भेदन करके बाहर से भीतर प्रविष्ट हो जाता है। इसीलिए हे प्रदेशी ! तुम इस बात की श्रद्धा करो कि जीव और शरीर भिन्न हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se paesi raya kesim kumarasamanam evam vayasi–atthi nam bhamte! Esa pannao uvama, imenam puna karanenam no uvagachchhati– Evam khalu bhamte! Aham annaya kayai bahiriyae uvatthanasalae anegagananayaka damdanayaga raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavaha mamti mahamamti ganagadovariya amachcha cheda pidhamadda nagara nigama duya samdhivalehim saddhim samparivude viharami. Tae nam mama nagaraguttiya sasakkham sahodham saloddam sagevejjam avaudagabamdhanabaddham choram uvanemti. Tae nam aham tam purisam jivamtam cheva aokumbhie pakkhivavemi, aomaenam pihanaenam pihavemi, aena ya tauena ya kayavemi, ayapachchaiehim purisehim rakkhavemi. Tae nam aham annaya kayaim jenameva sa aokumbhi tenameva uvagachchhami, uvagachchhitta tam aokumbhim uggalachchhavemi, ugga lachchhavitta tam purisam sayameva pasami, no cheva nam tise aokumbhie kei chhidde i va vivare i va amtare i va rai va, jao nam se jive amtohimto bahiya niggae. Jai nam bhamte! Tise aokumbhie hojja kei chhidde i va vivare i va amtare i va rai va, jao nam se jive amtohimto bahiya niggae, to nam aham saddahejja pattiejja roejja jaha–anno jivo annam sariram, no tajjivo tam sariram. Jamha nam bhamte! Tise aokumbhie natthi kei chhidde i va vivare i va amtare i va, rai va, jao nam se jive amtohimto bahiya niggae, tamha supatitthiya me painna jaha–tajjivo tam sariram, no anno jivo annam sariram. Tae nam kesi kumara-samane paesim rayam evam vayasi–paesi! Se jahanamae kudagarasala siya–duhao litta gutta guttaduvara nivaya nivayagambhira. Aha nam kei purise bherim cha damdam cha gahada kudagarasalae amto-amto anuppavisati, anuppavisitta tise kudagarasalae savvato samamta ghana nichiya niramtara nichchhiddaim duvaravayanaim pihei. Tise kudagarasalae bahumajjhadesabhae thichcha tam bherim damdaenam mahaya-mahaya saddenam talejja. Se nunam paesi! Se sadde nam amtohimto bahiya niggachchhai? Hamta niggachchhai. Atthi nam paesi! Tise kudagarasalae kei chhidde i va vivare i va amtare i va rai va, jao nam se sadde amtohimto bahiya niggae? No tinatthe samatthe. Evameva paesi! Jive vi appadihayagai pudhavim bhichcha silam bhichcha pavvayam bhichcha amtohimto bahiya niggachchhai, tam saddahahi nam tumam paesi! Anno jivo annam sariram, no tajjivo tam sariram. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Raja pradeshi ne kaha – he bhadanta ! Jiva aura sharira ki bhinnata pradarshita karane ke lie apane devom ke nahim ane ke karana rupa mem jo upama di, vaha tu buddhi se kalpita eka drishtanta matra hai. Parantu bhadanta ! Kisi eka dina maim apane aneka gananayaka, damranayaka, raja, ishvara, talavara, madambika, kautumbika, ibbha, shreshthi, senapati, sarthavaha, mamtri, mahamamtri, ganaka, dauvarika, amatya, cheta, pithamardaka, nagarika, vyapari, duta, samdhipala adi ke satha apani bahya upasthanashala mem baitha hua tha. Usi samaya nagara – rakshaka churai hui vastu aura sakshi sahita garadana aura pichhe donom hatha bamdhe eka chora ko pakara kara mere samane laye. Taba maimne use jivita hi eka lohe ki kumbi mem bamda karava kara achchhi taraha lohe ke dhakkana se usaka mukha dhamka diya. Phira garama lohe evam ramge se usa para lepa kara diya aura dekharekha ke lie apane vishvasapatra purushom ko niyukta kara diya. Tatpashchat kisi dina maim usa lohe ki kumbhi ke pasa gaya. Kumbhi ko khulavaya. Maimne svayam usa purusha ko dekha to vaha mara chuka tha. Kintu usa loha kumbhi mem rai jitana na koi chheda tha, na koi vivara tha, na koi amtara tha aura na koi darara thi ki jisa mem se usa purusha ka jiva bahara nikala jata. Yadi usa lohakumbhi mem koi chhidra yavat darara hoti to he bhadanta ! Maim yaha mana leta ki bhitara bamda purusha ka jiva bahara nikala gaya hai taba apaki bata para vishvasa kara leta, pratiti kara leta evam apani ruchi ka vishaya bana leta ki jiva anya hai aura sharira anya hai, kintu jiva sharira rupa nahim aura sharira jiva rupa nahim. Lekina usa lohakumbhimem jaba koi chhidra hi nahim hai yavat jiva nahim hai to he bhadanta ! Mera yaha mamtavya thika hai jo jiva hai vahi sharira hai aura jo sharira hai vahi jiva hai Keshi kumarashramana ne kaha – jaise koi kutakarashala ho aura vaha bhitara – bahara charom ora lipi hui ho, achchhi taraha se achchhadita ho, usaka dvara bhi gupta ho aura hava ka pravesha bhi jisamem nahim ho sake, aisi gahari ho. Aba yadi usa kutakarashala mem koi purusha bheri aura bajane ke lie damda lekara ghusa jae aura ghusakara usa kuta – karashala ke dvara adi ko charom ora se bamda kara de ki jisase kahim para bhi thora – sa amtara nahim rahe aura usake bada usa kutakarashala ke bichom – bicha khare hokara damde se bheri ko jora – jora se bajae to he pradeshi ! Tumhim batao ki vaha bhitara ki avaja bahara nikalati hai athava nahim\? Ham, bhadanta ! Nikalati hai. He pradeshi ! Kya usa kuta – karashala mem koi chhidra yavat darara hai ki jisamem se vaha shabda bahara nikalata ho\? He bhadanta ! Yaha artha samartha nahim hai. Isi prakara pradeshi ! Jiva bhi apratihata gati vala hai. Vaha prithvi ka bhedana kara, shila ka bhedana kara, parvata ka bhedana kara bhitara se bahara nikala jata hai. Isilie he pradeshi ! Tuma yaha shraddha karo ki jiva aura sharira bhinna – bhinna haim, jiva sharira nahim hai aura sharira jiva nahim hai. Pradeshi raja ne kaha – bhadanta ! Yaha apa dvara prayukta upama to buddhivishesha rupa hai, isase mere mana mem jiva aura sharira ki bhinnata ka vichara yuktiyukta pratita nahim hota hai. Kyomki kisi samaya maim apani bahari upasthana – shala mem gananayaka adi ke satha baitha tha. Taba mere nagararakshakom ne sakshi sahita yavat eka chora purusha ko upasthita kiya. Maimne usa purusha ko pranarahita kara diya aura lohakumbhi mem dalava diya, dhakkana se dhamka diya yavat apane vishvasapatra purushom ko raksha ke lie niyukta kara diya. Bada kisi dina jaham vaha kumbhi thi, maim vaham aya. Usa lohakumbhi ko ughara to use krimikula se vyapta dekha. Lekina usa lohakumbhi mem na to koi chheda tha, na koi darara thi ki jisamem se ve jiva bahara se usamem pravishta ho sake. Yadi usa lohakumbhi mem koi chheda hota yavat darara hoti to yaha mana ja sakata tha – ve jiva usamem se hokara kumbhi mem pravishta hue haim aura taba maim shraddha kara leta ki jiva anya hai aura sharira anya hai. Lekina jaba usa lohakumbhi mem koi chheda adi nahim the, phira bhi usamem jiva pravishta ho gae. Atah meri yaha pratiti supratishthita hai ki jiva aura sharira eka hi haim. Keshi kumarashramana ne kaha – he pradeshi ! Kya tumane pahale kabhi agni se tapaya hua loha dekha hai\? Ham, bhadanta ! Dekha hai. Taba he pradeshi ! Tapaye jane para vaha loha purnataya agni rupa mem parinata ho jata hai ya nahim\? Ham, ho jata hai. He pradeshi ! Usa lohe mem koi chhidra adi haim kya, jisase vaha agni bahara se usake bhitara pravishta ho gai\? Bhadanta ! Yaha artha samartha nahim hai. To isi prakara he pradeshi ! Jiva bhi apratihata gativala hai, jisase vaha prithvi, shila adi ka bhedana karake bahara se bhitara pravishta ho jata hai. Isilie he pradeshi ! Tuma isa bata ki shraddha karo ki jiva aura sharira bhinna haim. |