Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Sr No : | 1005766 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 66 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! मम अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्माणुया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमुयाचारा धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणी समणोवासिया अभिगयजीवा जीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव संवर निज्जर किरिया-हिगरण बंधप्पमोक्खकुसला असहिज्जा देवासुर णाग सुवण्ण जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस गरुल गंधव्व महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा, निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया निव्वितिगिच्छा लद्धट्ठा गहियट्ठा अभिगयट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ता अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमट्ठे सेसे अणट्ठे ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियतंतेउरघरप्पवेसा चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अनु-पालेमाणी, समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असनपानखाइमसाइमेणं पीढ फलग सेज्जा संथारेणं वत्थ पडिग्गह कंबल पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेण य पडिलाभेमाणी-पडिलाभेमाणी, बहूहिं सीलव्वय गुण वेरमण पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। सा णं तुज्झं वत्तव्वयाए सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ना। तीसे णं अज्जि याए अहं नत्तुए होत्था–इट्ठे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययनंदिजणणे उंबरपुप्फं पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए, तं जइ णं सा अज्जिया आगंतुं एवं वएज्जा–एवं खलु नत्तुया! अहं तव अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए धम्मिया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्माणुया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमुयाचारा धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणी समणोवासिया जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरामि। तए णं अहं सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा, तं तुमं पि णत्तुया! भवाहि धम्मिए धम्मिट्ठे धम्मक्खाई धम्माणुए धम्मपलोई धम्मपलज्जणे धम्मसीलसमुयाचारे धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणे समणोवासए जाव अप्पाणं भावेमाणे विहराहि। तए णं तुमं पि एयं चेव सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जिहिसि। तं जइ णं अज्जिया मम आगंतुं एवं वएज्जा तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा सा अज्जिया ममं आगंतुं नो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं। तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–जति णं तुमं पएसी! ण्हायं कयबलिकम्मं कयकोउयमंगल-पायच्छित्तं उल्लापडगं भिंगार कडच्छुयहत्थगयं देवकुलमनुपविसमाणं केइ पुरिसे वच्चघरंसि ठिच्चा एवं वदेज्जा–एह ताव सामी! इह मुहुत्तागं आसयह वा चिट्ठह वा निसीयह वा तुयट्टह वा। तस्स णं तुमं पएसी! पुरिसस्स खणमवि एयमट्ठं पडिसुणिज्जासि? नो तिणट्ठे समट्ठे। कम्हा णं? जम्हाणं भंते! असुई असुइ-सामंतो। एवामेव पएसी! तव वि अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए धम्मिया जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरति। सा णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा। तीसे णं अज्जियाए तुमं णत्तुए होत्था–इट्ठे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेज्जे वेसा-सिए सम्मए बहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फं पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? सा णं इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। चउहिं ठाणेहिं पएसी! अहुणोववण्णए देवे देवलोएसु इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए– अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने, से णं माणुसे भोगे नो आढाति नो परि जाणाति। से णं इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने, तस्स णं मानुस्से पेम्मे वोच्छिन्नए भवति, दिव्वे पेम्मे संकंते भवति। से णं इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने, तस्स णं एवं भवइ–इयाणिं गच्छं मुहुत्ते गच्छं जाव इह अप्पाउया नरा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति, से णं इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने, तस्स मानुस्सए उराले दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे भवइ, उड्ढं पि य णं चत्तारि पंचजोअणसए असुभे मानुस्सए गंधे अभिसमागच्छति। से णं इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। इच्चेएहिं चउहिं ठाणेहिं पएसी! अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी! जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। | ||
Sutra Meaning : | पश्चात् प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! मेरी दादी थीं। वह इसी सेयविया नगरी में धर्मपरायण यावत् धार्मिक आचार – विचार पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने वाली, जीव – अजीव आदि तत्त्वों की ज्ञाता श्रमणोपासिक यावत् तप से आत्मा को भावित करती हुई अपना समय व्यतीत करती थी इत्यादि और आपके कथनानुसार वे पुण्य का उपार्जन कर कालमास में काल करके किसी देवलोक में देवरूप से उत्पन्न हुई है। उन दादी का मैं इष्ट, कान्त यावत् दुर्लभदर्शन पौत्र हूँ। अत एव वे आकर मुझसे कहें कि – हे पौत्र ! मैं तुम्हारी दादी थी और इसी सेयविया नगरी में धार्मिक जीवन व्यतीत करती हुई यावत् अपना समय बिताती थी। इस कारण मैं विपुल पुण्य का संचय करके यावत् देवलोक में उत्पन्न हुई हूँ। हे पौत्र ! तुम भी धार्मिक आचार – विचारपूर्वक अपना जीवन बीताओ। जिससे तुम भी विपुल पुण्य का उपार्जन करके यावत् देवरूप से उत्पन्न होओगे। इस प्रकार से यदि मेरी दादी आकर मुझसे कहें कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है किन्तु वही जीव वही शरीर नहीं, तो हे भदन्त ! मैं आपके कथन पर विश्वास कर सकता हूँ, प्रतीति कर सकता हूँ और अपनी रुचि का विषय बना सकता हूँ। परन्तु जब तक मेरी दादी आकर मुझसे नहीं कहतीं तब तक मेरी यह धारणा सुप्रतिष्ठित एवं समीचीन है कि जो जीव है वही शरीर है। किन्तु जीव और शरीर भिन्न – भिन्न नहीं हैं। केशी कुमारश्रमण ने पूछा – हे प्रदेशी ! यदि तुम स्नान, बलिकर्म और कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त करके गीली धोती पहन, झारी और धूपदान हाथ में लेकर देवकुल में प्रविष्ट हो रहे हो और उस समय कोई पुरुष विष्ठागृह में खड़े होकर यह कहे कि – हे स्वामिन् ! आओ और क्षणमात्र के लिए यहाँ बैठो, खड़े होओ और लेटो, तो क्या हे प्रदेशी ! एक क्षण के लिए भी तुम उस पुरुष की बात स्वीकार कर लोगे ? हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, कुमारश्रमण केशीस्वामी – उस पुरुष की बात क्यों स्वीकार नहीं करोगे ? क्योंकि भदन्त ! वह स्थान अपवित्र है और अपवित्र वस्तुओं से भरा हुआ – तो इसी प्रकार हे प्रदेशी ! इसी सेयविया नगरी में तुम्हारी जो दादी धार्मिक यावत् देवलोक में उत्पन्न हुई हैं तथा उन्हीं दादी के तुम इष्ट यावत् दुर्लभदर्शन जैसे पौत्र हो। वे तुम्हारी दादी भी शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की अभिलाषी हैं किन्तु आ नहीं सकतीं। हे प्रदेशी ! अधुनोत्पन्न देव देवलोक से मनुष्यलोक में आने के आकांक्षी होते हुए भी इन चार कारणों से आ नहीं पाते हैं – १. तत्काल उत्पन्न देव देवलोक के दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, आसक्त और तल्लीन हो जाने में माननीय भोगों के प्रति आकर्षित नहीं होते हैं, न ध्यान देते हैं और न उनकी इच्चा करते हैं। २. देवलोक संबंधी दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् तल्लीन हो जाने से अधुनोत्पन्नक देव का मनुष्य संबंधी प्रेम व्यवच्छिन्न सा हो जाता है और देवलोक संबंधी अनुराग संक्रांत हो जाता है। ३. अधुनोत्पन्न देव देवलोक में जब दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् तल्लीन हो जाते हैं तब वे सोचते हैं कि अब जाऊं, अब जाऊं, कुछ समय बाद जाऊंगा, किन्तु उतने समय में तो उनके इस मनुष्यलोक के अल्पआयुषी संबंधी कालधर्म को प्राप्त हो चूकते हैं। ४. वे अधुनोत्पन्नक देव देवलोक के दिव्य कामभोगों में यावत् तल्लीन हो जाते हैं कि जिससे उनको मर्त्यलोक संबंधी अतिशय तीव्र दुर्गन्ध प्रतिकूल और अनिष्टकर लगती है एवं उस मानवीय कुत्सित दुर्गन्ध के ऊपर आकाश में चार – पाँच सौ योजन तक फैल जाने से मनुष्यलोक में आने की ईच्छा रखते हुए भी वे आन में असमर्थ हो जाते हैं। अत एव हे प्रदेशी ! मनुष्यलोक में आने के ईच्छुक होने पर भी इन चार कारणों से अधुनोत्पन्न देव देवलोक से यहाँ आ नहीं सकते हैं। इसलिए प्रदेशी ! तुम यह श्रद्धा करो कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है, जीव शरीर नहीं है और न शरीर जीव है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se paesi raya kesim kumarasamanam evam vayasi–atthi nam bhamte! Esa pannao uvama, imena puna karanenam no uvagachchhai–evam khalu bhamte! Mama ajjiya hottha, iheva seyaviyae nagarie dhammiya dhammittha dhammakkhai dhammanuya dhammapaloi dhammapalajjani dhammasilasamuyachara dhammena cheva vittim kappemani samanovasiya abhigayajiva jiva uvaladdhapunnapava asava samvara nijjara kiriya-higarana bamdhappamokkhakusala asahijja devasura naga suvanna jakkha rakkhasa kinnara kimpurisa garula gamdhavva mahoragaiehim devaganehim niggamthao pavayanao anaikkamanijja, niggamthe pavayane nissamkiya nikkamkhiya nivvitigichchha laddhattha gahiyattha abhigayattha puchchhiyattha vinichchhiyattha atthimimjapemanuragaratta ayamauso! Niggamthe pavayane atthe paramatthe sese anatthe usiyaphaliha avamguyaduvara chiyatamteuragharappavesa chauddasatthamudditthapunnamasinisu padipunnam posaham sammam anu-palemani, samane niggamthe phasuesanijjenam asanapanakhaimasaimenam pidha phalaga sejja samtharenam vattha padiggaha kambala payapumchhanenam osaha-bhesajjena ya padilabhemani-padilabhemani, bahuhim silavvaya guna veramana pachchakkhana posahovavasehim appanam bhavemani viharai. Sa nam tujjham vattavvayae subahum punnovachayam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavanna. Tise nam ajji yae aham nattue hottha–itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae rayanakaramdagasamane jiviussavie hiyayanamdijanane umbarapuppham piva dullabhe savanayae, kimamga puna pasanayae, tam jai nam sa ajjiya agamtum evam vaejja–evam khalu nattuya! Aham tava ajjiya hottha, iheva seyaviyae nayarie dhammiya dhammittha dhammakkhai dhammanuya dhammapaloi dhammapalajjani dhammasilasamuyachara dhammena cheva vittim kappemani samanovasiya java appanam bhavemani viharami. Tae nam aham subahum punnovachayam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavanna, tam tumam pi nattuya! Bhavahi dhammie dhammitthe dhammakkhai dhammanue dhammapaloi dhammapalajjane dhammasilasamuyachare dhammena cheva vittim kappemane samanovasae java appanam bhavemane viharahi. Tae nam tumam pi eyam cheva subahum punnovachayam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavajjihisi. Tam jai nam ajjiya mama agamtum evam vaejja to nam aham saddahejja pattiejja roejja jaha–anno jivo annam sariram, no tajjivo tam sariram. Jamha sa ajjiya mamam agamtum no evam vayasi, tamha supaitthiya me painna jaha–tajjivo tam sariram, no anno jivo annam sariram. Tae nam kesi kumarasamane paesim rayam evam vayasi–jati nam tumam paesi! Nhayam kayabalikammam kayakouyamamgala-payachchhittam ullapadagam bhimgara kadachchhuyahatthagayam devakulamanupavisamanam kei purise vachchagharamsi thichcha evam vadejja–eha tava sami! Iha muhuttagam asayaha va chitthaha va nisiyaha va tuyattaha va. Tassa nam tumam paesi! Purisassa khanamavi eyamattham padisunijjasi? No tinatthe samatthe. Kamha nam? Jamhanam bhamte! Asui asui-samamto. Evameva paesi! Tava vi ajjiya hottha, iheva seyaviyae nayarie dhammiya java appanam bhavemani viharati. Sa nam amham vattavvayae subahum punnovachayam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavanna. Tise nam ajjiyae tumam nattue hottha–itthe kamte pie manunne maname thejje vesa-sie sammae bahumae anumae rayanakaramdagasamane jiviussavie hiyayanamdijanane umbarapuppham piva dullabhe savanayae, kimamga puna pasanayae? Sa nam ichchhai manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Chauhim thanehim paesi! Ahunovavannae deve devaloesu ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae– Ahunovavanne deve devaloesu divvehim kamabhogehim muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne, se nam manuse bhoge no adhati no pari janati. Se nam ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaeti havvamagachchhittae. Ahunovavanne deve devaloesu divvehim kamabhogehim muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne, tassa nam manusse pemme vochchhinnae bhavati, divve pemme samkamte bhavati. Se nam ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Ahunovavanne deve devaloesu divvehim kamabhogehim muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne, tassa nam evam bhavai–iyanim gachchham muhutte gachchham java iha appauya nara kaladhammuna samjutta bhavamti, se nam ichchhejja manussam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Ahunovavanne deve devaloesu divvehim kamabhogehim muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne, tassa manussae urale duggamdhe padikule padilome bhavai, uddham pi ya nam chattari pamchajoanasae asubhe manussae gamdhe abhisamagachchhati. Se nam ichchhejja manussam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Ichcheehim chauhim thanehim paesi! Ahunovavanne deve devaloesu ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Tam saddahahi nam tumam paesi! Jaha–anno jivo annam sariram, no tajjivo tam sariram. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pashchat pradeshi raja ne kaha – he bhadanta ! Meri dadi thim. Vaha isi seyaviya nagari mem dharmaparayana yavat dharmika achara – vichara purvaka apana jivana vyatita karane vali, jiva – ajiva adi tattvom ki jnyata shramanopasika yavat tapa se atma ko bhavita karati hui apana samaya vyatita karati thi ityadi aura apake kathananusara ve punya ka uparjana kara kalamasa mem kala karake kisi devaloka mem devarupa se utpanna hui hai. Una dadi ka maim ishta, kanta yavat durlabhadarshana pautra hum. Ata eva ve akara mujhase kahem ki – he pautra ! Maim tumhari dadi thi aura isi seyaviya nagari mem dharmika jivana vyatita karati hui yavat apana samaya bitati thi. Isa karana maim vipula punya ka samchaya karake yavat devaloka mem utpanna hui hum. He pautra ! Tuma bhi dharmika achara – vicharapurvaka apana jivana bitao. Jisase tuma bhi vipula punya ka uparjana karake yavat devarupa se utpanna hooge. Isa prakara se yadi meri dadi akara mujhase kahem ki jiva anya hai aura sharira anya hai kintu vahi jiva vahi sharira nahim, to he bhadanta ! Maim apake kathana para vishvasa kara sakata hum, pratiti kara sakata hum aura apani ruchi ka vishaya bana sakata hum. Parantu jaba taka meri dadi akara mujhase nahim kahatim taba taka meri yaha dharana supratishthita evam samichina hai ki jo jiva hai vahi sharira hai. Kintu jiva aura sharira bhinna – bhinna nahim haim. Keshi kumarashramana ne puchha – he pradeshi ! Yadi tuma snana, balikarma aura kautuka, mamgala, prayashchitta karake gili dhoti pahana, jhari aura dhupadana hatha mem lekara devakula mem pravishta ho rahe ho aura usa samaya koi purusha vishthagriha mem khare hokara yaha kahe ki – he svamin ! Ao aura kshanamatra ke lie yaham baitho, khare hoo aura leto, to kya he pradeshi ! Eka kshana ke lie bhi tuma usa purusha ki bata svikara kara loge\? He bhadanta ! Yaha artha samartha nahim hai, kumarashramana keshisvami – usa purusha ki bata kyom svikara nahim karoge\? Kyomki bhadanta ! Vaha sthana apavitra hai aura apavitra vastuom se bhara hua – to isi prakara he pradeshi ! Isi seyaviya nagari mem tumhari jo dadi dharmika yavat devaloka mem utpanna hui haim tatha unhim dadi ke tuma ishta yavat durlabhadarshana jaise pautra ho. Ve tumhari dadi bhi shighra hi manushyaloka mem ane ki abhilashi haim kintu a nahim sakatim. He pradeshi ! Adhunotpanna deva devaloka se manushyaloka mem ane ke akamkshi hote hue bhi ina chara karanom se a nahim pate haim – 1. Tatkala utpanna deva devaloka ke divya kamabhogom mem murchchhita, griddha, asakta aura tallina ho jane mem mananiya bhogom ke prati akarshita nahim hote haim, na dhyana dete haim aura na unaki ichcha karate haim. 2. Devaloka sambamdhi divya kamabhogom mem murchchhita yavat tallina ho jane se adhunotpannaka deva ka manushya sambamdhi prema vyavachchhinna sa ho jata hai aura devaloka sambamdhi anuraga samkramta ho jata hai. 3. Adhunotpanna deva devaloka mem jaba divya kamabhogom mem murchchhita yavat tallina ho jate haim taba ve sochate haim ki aba jaum, aba jaum, kuchha samaya bada jaumga, kintu utane samaya mem to unake isa manushyaloka ke alpaayushi sambamdhi kaladharma ko prapta ho chukate haim. 4. Ve adhunotpannaka deva devaloka ke divya kamabhogom mem yavat tallina ho jate haim ki jisase unako martyaloka sambamdhi atishaya tivra durgandha pratikula aura anishtakara lagati hai evam usa manaviya kutsita durgandha ke upara akasha mem chara – pamcha sau yojana taka phaila jane se manushyaloka mem ane ki ichchha rakhate hue bhi ve ana mem asamartha ho jate haim. Ata eva he pradeshi ! Manushyaloka mem ane ke ichchhuka hone para bhi ina chara karanom se adhunotpanna deva devaloka se yaham a nahim sakate haim. Isalie pradeshi ! Tuma yaha shraddha karo ki jiva anya hai aura sharira anya hai, jiva sharira nahim hai aura na sharira jiva hai. |