Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1005765
Scripture Name( English ): Rajprashniya Translated Scripture Name : राजप्रश्नीय उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Translated Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Section : Translated Section :
Sutra Number : 65 Category : Upang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अह णं भंते! इहं उवविसामि? पएसी! साए उज्जानभूमीए तुमंसि चेव जाणए। तए णं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धिं केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते उवविसइ, केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–तुब्भं णं भंते! समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं? तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पएसी! अम्हं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं। तए णं से पएसी राया केसिं कुमार-समणं एवं वयासी–जति णं भंते! तुब्भं समणाणं निग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं– एवं खलु ममं अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए नगरीए अधम्मिए जाव सयस्स वि य णं जनवयस्स नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेति से णं तुब्भं वत्तव्वयाए सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। तस्स णं अज्जगस्स अहं नत्तुए होत्था– इट्ठे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए रयणकरंडग-समाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फं पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? तं जति णं से अज्जए ममं आगंतुं वएज्जा– एवं खलु नत्तुया! अहं तव अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेमि। तए णं अहं सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ने तं मा णं नत्तुया! तुमं पि भवाहि अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेहि। मा णं तुमं पि एवं चेव सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु नरएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि। तं जइ णं से अज्जए ममं आगंतुं वएज्जा तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं। जम्हा णं से अज्जए ममं आगंतुं नो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मम पइण्णा समणाउसो! जहा तज्जीवो तं सरीरं। तए णं से केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–अत्थि णं पएसी! तव सूरियकंता नामं देवी? हंता अत्थि। जइ णं तुमं पएसी तं सूरियकंतं देविं ण्हायं कयबलिकम्मं कयकोउयमंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारभूसियं केणइ पुरिसेणं ण्हाएणं कयबलिकम्मेणं कयकोउयमंगलपायच्छित्तेणं सव्वालंकारभूसिएणं सद्धिं इट्ठे सद्द फरिस रस रूव गंधे पंचविहे माणुस्सते कामभोगे पच्चणुब्भवमाणिं पासिज्जासि, तस्स णं तुमं पएसी! पुरिसस्स कं डंडं निव्वत्तेज्जासि? अहं णं भंते! तं पुरिसं हत्थच्छिन्नगं वा पायच्छिन्नगं वा सूलाइगं वा सूलभिण्णगं वा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवएज्जा। अह णं पएसी से पुरिसे तुमं एवं वदेज्जा–मा ताव मे सामी! मुहुत्तागं हत्थच्छिन्नगं वा पायछिण्णगं वा सूलाइगं वा सूल-भिण्णगं वा एगाहच्चं कुडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेहि जाव ताव अहं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परिजनं एवं वयामि–एवं खलु देवानुप्पिया! पावाइं कम्माइं समायरेत्ता इमेयारूवं आवइं पाविज्जामि, तं मा णं देवानुप्पिया! तुब्भे वि केइ पावाइं कम्माइं समायरह, मा णं से वि एवं चेव आवइं पाविज्जिहिह, जहा णं अहं। तस्स णं तुमं पएसी! पुरिसस्स खणमवि एयमट्ठं पडिसुणेज्जासि? नो तिणट्ठे समट्ठे। कम्हा णं? जम्हा णं भंते! अवराही णं से पुरिसे। एवामेव पएसी! तव वि अज्जए होत्था इहेव सेय-वियाए नयरीए अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेइ। से णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। तस्स णं अज्जगस्स तुमं णत्तुए होत्था–इट्ठे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययनंदिजणणे उंबरपुप्फं पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए! से णं इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। चउहिं च णं ठाणेहिं पएसी! अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए से णं तत्थ महब्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचा-एइ हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए नरयपालेहिं भुज्जो-भुज्जो समहिट्ठिज्जमाणे इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए निरयवेयणिज्जंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए निरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अनिज्जिण्णंसि इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। इच्चेएहिं चउहिं ठाणेहिं पएसी अहुणोववन्ने नरएसु नेरइए इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। तं सद्दहाहि णं पएसी! जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं।
Sutra Meaning : प्रदेशी राजा ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया – भदन्त ! क्या मैं यहाँ बैठ जाऊं ? हे प्रदेशी ! यह उद्यानभूमि तुम्हारी अपनी है, अत एव बैठने के विषय में तुम स्वयं समझ लो। तत्पश्चात्‌ चित्त सारथी के साथ प्रदेशी राजा केशी कुमारश्रमण के समीप बैठ गया और पूछा – भदन्त ! क्या आप श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा है, प्रतिज्ञा है, दृष्टि है, रुचि है, हेतु है, उपदेश है, संकल्प है, तुला है, धारणा है, प्रमाणसंगत मंतव्य है और स्वीकृत सिद्धान्त है कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है ? शरीर और जीव दोनों एक नहीं है ? केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी ! हम श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा यावत्‌ समोसरण है कि जीव भिन्न है और शरीर भिन्न है, परन्तु जो जीव है वही शरीर है, ऐसी धारणा नहीं है। तब प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! यदि आप श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा यावत्‌ सिद्धान्त है, तो मेरे पितामह, जो इसी जम्बूद्वीप की सेयविया नगरी में अधार्मिक यावत्‌ राजकर लेकर भी अपने जनपद का भली – भाँति पालन, रक्षण नहीं करते थे, वे आपके कथनानुसार पापकर्मों को उपार्जित करके मरण करके किसी एक नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुए हैं। उन पितामह का मैं इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मणाम, धैर्य और विश्वास का स्थान, कार्य करने में सम्मत तथा कार्य करने के बाद भी अनुमत्त, रत्नकरंडक के समान, जीवन की श्वासोच्छ्‌वास के समान, हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाला, गूलर के फूल के समान जिसका नाम सूनना भी दुर्लभ है तो फिर दर्शन की बात ही क्या है, ऐसा पौत्र हूँ। इसलिए यदि मेरे पितामह आकर मुझे इस प्रकार कहे की – ‘हे पौत्र ! मैं तुम्हारा पितामह था और इसी सेयविया नगरी में अधार्मिक यावत्‌ प्रजाजनों का रक्षण नहीं करता था। इस कारण मैं कलूषित पापकर्मों का संचय करके नरक में उत्पन्न हुआ हूँ। किन्तु हे पौत्र ! तुम अधार्मिक नहीं होना, प्रजाजनों से कर लेकर उनके पालन, रक्षण में प्रमाद मत करना और न बहुत से मलिन पापकर्मों का उपार्जन करना।’ तो मैं आपके कथन पर श्रद्धा कर सकता हूँ, प्रतीति कर सकता हूँ एवं उसे अपनी रुचि का विषय बना सकता हूँ कि जीव भिन्न है और शरीर भिन्न है। जीव और शरीर एक रूप नहीं हैं। लेकिन जब तक मेरे पितामह आकर मुझसे ऐसा नहीं कहते हैं तब तक हे आयुष्मन्‌ श्रमण ! मेरी यह धारणा सुप्रतिष्ठित है कि जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है। केशी श्रमणकुमार ने कहा – हे प्रदेशी ! तुम्हारी सूर्यकान्ता नाम की रानी है ? प्रदेशी – हाँ, भदन्त ! है। तो हे प्रदेशी ! यदि तुम उस सूर्यकान्ता देवी को स्नान, बलिकर्म और कौतुक – मंगल – प्रायश्चित्त करके एवं समस्त आभरण – अलंकारों से विभूषित पुरुष के साथ इष्ट – मनोनुकूल शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंधमूलक पाँच प्रकार के मानवीय कामभोगों को भोगते हुए देख लो तो, उस पुरुष के लिए तुम क्या दण्ड निश्चित करोगे ? हे भगवन्‌ ! मैं उस पुरुष के हाथ काट दूँगा, उसे शूली पर चढ़ा दूँगा, काँटों से छेद दूँगा, पैर काट दूँगा अथवा एक ही वार से जीवनरहित कर दूँगा। हे प्रदेशी ! यदि वह पुरुष तुमसे यह कहे कि – ‘हे स्वामिन्‌ ! आप घड़ी भर रुक जाओ, तब तक आप मेरे हाथ न काँटे, यावत्‌ मुझे जीवनरहित न करें जब तक मैं अपने मित्र, ज्ञातिजन, निजक और परिचितों से यह कह आऊं कि हे देवानुप्रियो ! मैं इस प्रकार के पापकर्मों का आचरण करने के कारण यह दण्ड भोग रहा हूँ, अत एव हे देवानुप्रियो ! तुम कोई ऐसे पापकर्मों में प्रवृत्ति मत करना, जिससे तुमको इस प्रकार का दण्ड भोगना पड़े, जैसा कि मैं भोग रहा हूँ।’ तो हे प्रदेशी ! क्या तुम क्षणमात्र के लिए भी उस पुरुष की यह बात मानोगे ? प्रदेशी – हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। केशी कुमारश्रमण – उसकी बात क्यों नहीं मानोगे ? क्योंकि हे भदन्त ! वह पुरुष अपराधी है। तो इसी प्रकार हे प्रदेशी ! तुम्हारे पितामह भी हैं, जिन्होंने इसी सेयविया नगरी में अधार्मिक होकर जीवन व्यतीत किया यावत्‌ बहुत से पापकर्मों का उपार्जन करके नरक में उत्पन्न हुए हैं। उन्हीं पितामह के तुम इष्ट, कान्त यावत्‌ दुर्लभ पौत्र हो। यद्यपि वे शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहते हैं किन्तु वहाँ से आने में समर्थ नहीं हैं। क्योंकि – प्रदेशी ! तत्काल नरक में नारक रूप से उत्पन्न जीव शीघ्र ही चार कारणों से मनुष्य लोक में आने की ईच्छा तो करते हैं, किन्तु वहाँ से आ नहीं पाते हैं। १. नरक में अधुनोत्पन्न नारक वहाँ की तीव्र वेदना के वेदन के कारण, २. नरक में तत्काल नैरयिक रूप से उत्पन्न जीव परमाधार्मिक नरकपालों द्वारा बारंबार ताडित – प्रताड़ित किये जाने से, ३. अधुनोपपन्नक नारक मनुष्यलोक में आने की अभिलाषा तो रखते हैं किन्तु नरक सम्बन्धी असातावेदनीय कर्म के क्षय नहीं होने, अननुभूत एवं अनिर्जीर्ण होने से, तथा ४. इसी प्रकार नरक संबंधी आयुकर्म क्षय नहीं होने से, अननुभूत एवं अनिर्जीर्ण होने से नारक जीव मनुष्यलोक में आने की अभिलाषा रखते हुए भी वहाँ से आ नहीं सकते हैं। अत एव हे प्रदेशी ! तुम इस बात पर विश्वास करो, श्रद्धा रखो कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है, किन्तु यह मत मानो कि जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se paesi raya kesim kumarasamanam evam vayasi–aha nam bhamte! Iham uvavisami? Paesi! Sae ujjanabhumie tumamsi cheva janae. Tae nam se paesi raya chittenam sarahina saddhim kesissa kumarasamanassa adurasamamte uvavisai, kesim kumarasamanam evam vayasi–tubbham nam bhamte! Samananam niggamthanam esa sanna esa painna esa ditthi esa rui esa uvaese esa samkappe esa tula esa mane esa pamane esa samosarane, jaha–anno jivo annam sariram, no tam jivo tam sariram? Tae nam kesi kumarasamane paesim rayam evam vayasi–paesi! Amham samananam niggamthanam esa sanna esa painna esa ditthi esa rui esa heu esa uvaese esa samkappe esa tula esa mane esa pamane esa samosarane, jaha–anno jivo annam sariram, no tam jivo tam sariram. Tae nam se paesi raya kesim kumara-samanam evam vayasi–jati nam bhamte! Tubbham samananam niggamthanam esa sanna esa painna esa ditthi esa rui esa heu esa uvaese esa samkappe esa tula esa mane esa pamane esa samosarane, jaha–anno jivo annam sariram, no tam jivo tam sariram– Evam khalu mamam ajjae hottha, iheva seyaviyae nagarie adhammie java sayassa vi ya nam janavayassa no sammam karabharavittim pavatteti se nam tubbham vattavvayae subahum pavakammam kalikalusam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu naraesu neraiyattae uvavanne. Tassa nam ajjagassa aham nattue hottha– itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae rayanakaramdaga-samane jiviussavie hiyayanamdijanane umbarapuppham piva dullabhe savanayae, kimamga puna pasanayae? Tam jati nam se ajjae mamam agamtum vaejja– Evam khalu nattuya! Aham tava ajjae hottha, iheva seyaviyae nayarie adhammie java no sammam karabharavittim pavattemi. Tae nam aham subahum pavakammam kalikalusam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu naraesu neraiyattae uvavanne tam ma nam nattuya! Tumam pi bhavahi adhammie java no sammam karabharavittim pavattehi. Ma nam tumam pi evam cheva subahum pavakammam kalikalusam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu naraesu neraiyattae uvavajjihisi. Tam jai nam se ajjae mamam agamtum vaejja to nam aham saddahejja pattiejja roejja jaha–anno jivo annam sariram, no tam jivo tam sariram. Jamha nam se ajjae mamam agamtum no evam vayasi, tamha supaitthiya mama painna samanauso! Jaha tajjivo tam sariram. Tae nam se kesi kumarasamane paesim rayam evam vayasi–atthi nam paesi! Tava suriyakamta namam devi? Hamta atthi. Jai nam tumam paesi tam suriyakamtam devim nhayam kayabalikammam kayakouyamamgala-payachchhittam savvalamkarabhusiyam kenai purisenam nhaenam kayabalikammenam kayakouyamamgalapayachchhittenam savvalamkarabhusienam saddhim itthe sadda pharisa rasa ruva gamdhe pamchavihe manussate kamabhoge pachchanubbhavamanim pasijjasi, tassa nam tumam paesi! Purisassa kam damdam nivvattejjasi? Aham nam bhamte! Tam purisam hatthachchhinnagam va payachchhinnagam va sulaigam va sulabhinnagam va egahachcham kudahachcham jiviyao vavarovaejja. Aha nam paesi se purise tumam evam vadejja–ma tava me sami! Muhuttagam hatthachchhinnagam va payachhinnagam va sulaigam va sula-bhinnagam va egahachcham kudahachcham jiviyao vavarovehi java tava aham mitta nai niyaga sayana sambamdhi parijanam evam vayami–evam khalu devanuppiya! Pavaim kammaim samayaretta imeyaruvam avaim pavijjami, tam ma nam devanuppiya! Tubbhe vi kei pavaim kammaim samayaraha, ma nam se vi evam cheva avaim pavijjihiha, jaha nam aham. Tassa nam tumam paesi! Purisassa khanamavi eyamattham padisunejjasi? No tinatthe samatthe. Kamha nam? Jamha nam bhamte! Avarahi nam se purise. Evameva paesi! Tava vi ajjae hottha iheva seya-viyae nayarie adhammie java no sammam karabharavittim pavattei. Se nam amham vattavvayae subahum pavakammam kalikalusam samajjinitta kalamase kalam kichcha annayaresu naraesu neraiyattae uvavanne. Tassa nam ajjagassa tumam nattue hottha–itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae rayanakaramdagasamane jiviussavie hiyayanamdijanane umbarapuppham piva dullabhe savanayae, kimamga puna pasanayae! Se nam ichchhai manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Chauhim cha nam thanehim paesi! Ahunovavannae naraesu neraie ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae Ahunovavannae naraesu neraie se nam tattha mahabbhuyam veyanam vedemane ichchhejja manussam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samcha-ei havvamagachchhittae. Ahunovavannae naraesu neraie narayapalehim bhujjo-bhujjo samahitthijjamane ichchhai manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Ahunovavannae naraesu neraie nirayaveyanijjamsi kammamsi akkhinamsi aveiyamsi anijjinnamsi ichchhai manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Ahunovavannae naraesu neraie nirayauyamsi kammamsi akkhinamsi aveiyamsi anijjinnamsi ichchhai manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Ichcheehim chauhim thanehim paesi ahunovavanne naraesu neraie ichchhai manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaei havvamagachchhittae. Tam saddahahi nam paesi! Jaha–anno jivo annam sariram, no tam jivo tam sariram.
Sutra Meaning Transliteration : Pradeshi raja ne keshi kumarashramana se nivedana kiya – bhadanta ! Kya maim yaham baitha jaum\? He pradeshi ! Yaha udyanabhumi tumhari apani hai, ata eva baithane ke vishaya mem tuma svayam samajha lo. Tatpashchat chitta sarathi ke satha pradeshi raja keshi kumarashramana ke samipa baitha gaya aura puchha – bhadanta ! Kya apa shramana nirgranthom ki aisi samjnya hai, pratijnya hai, drishti hai, ruchi hai, hetu hai, upadesha hai, samkalpa hai, tula hai, dharana hai, pramanasamgata mamtavya hai aura svikrita siddhanta hai ki jiva anya hai aura sharira anya hai\? Sharira aura jiva donom eka nahim hai\? Keshi kumarashramana ne kaha – he pradeshi ! Hama shramana nirgranthom ki aisi samjnya yavat samosarana hai ki jiva bhinna hai aura sharira bhinna hai, parantu jo jiva hai vahi sharira hai, aisi dharana nahim hai. Taba pradeshi raja ne kaha – he bhadanta ! Yadi apa shramana nirgranthom ki aisi samjnya yavat siddhanta hai, to mere pitamaha, jo isi jambudvipa ki seyaviya nagari mem adharmika yavat rajakara lekara bhi apane janapada ka bhali – bhamti palana, rakshana nahim karate the, ve apake kathananusara papakarmom ko uparjita karake marana karake kisi eka naraka mem naraka rupa se utpanna hue haim. Una pitamaha ka maim ishta, kanta, priya, manojnya, manama, dhairya aura vishvasa ka sthana, karya karane mem sammata tatha karya karane ke bada bhi anumatta, ratnakaramdaka ke samana, jivana ki shvasochchhvasa ke samana, hridaya mem ananda utpanna karane vala, gulara ke phula ke samana jisaka nama sunana bhi durlabha hai to phira darshana ki bata hi kya hai, aisa pautra hum. Isalie yadi mere pitamaha akara mujhe isa prakara kahe ki – ‘he pautra ! Maim tumhara pitamaha tha aura isi seyaviya nagari mem adharmika yavat prajajanom ka rakshana nahim karata tha. Isa karana maim kalushita papakarmom ka samchaya karake naraka mem utpanna hua hum. Kintu he pautra ! Tuma adharmika nahim hona, prajajanom se kara lekara unake palana, rakshana mem pramada mata karana aura na bahuta se malina papakarmom ka uparjana karana.’ to maim apake kathana para shraddha kara sakata hum, pratiti kara sakata hum evam use apani ruchi ka vishaya bana sakata hum ki jiva bhinna hai aura sharira bhinna hai. Jiva aura sharira eka rupa nahim haim. Lekina jaba taka mere pitamaha akara mujhase aisa nahim kahate haim taba taka he ayushman shramana ! Meri yaha dharana supratishthita hai ki jo jiva hai vahi sharira hai aura jo sharira hai vahi jiva hai. Keshi shramanakumara ne kaha – he pradeshi ! Tumhari suryakanta nama ki rani hai\? Pradeshi – ham, bhadanta ! Hai. To he pradeshi ! Yadi tuma usa suryakanta devi ko snana, balikarma aura kautuka – mamgala – prayashchitta karake evam samasta abharana – alamkarom se vibhushita purusha ke satha ishta – manonukula shabda, sparsha, rasa, rupa aura gamdhamulaka pamcha prakara ke manaviya kamabhogom ko bhogate hue dekha lo to, usa purusha ke lie tuma kya danda nishchita karoge\? He bhagavan ! Maim usa purusha ke hatha kata dumga, use shuli para charha dumga, kamtom se chheda dumga, paira kata dumga athava eka hi vara se jivanarahita kara dumga. He pradeshi ! Yadi vaha purusha tumase yaha kahe ki – ‘he svamin ! Apa ghari bhara ruka jao, taba taka apa mere hatha na kamte, yavat mujhe jivanarahita na karem jaba taka maim apane mitra, jnyatijana, nijaka aura parichitom se yaha kaha aum ki he devanupriyo ! Maim isa prakara ke papakarmom ka acharana karane ke karana yaha danda bhoga raha hum, ata eva he devanupriyo ! Tuma koi aise papakarmom mem pravritti mata karana, jisase tumako isa prakara ka danda bhogana pare, jaisa ki maim bhoga raha hum.’ to he pradeshi ! Kya tuma kshanamatra ke lie bhi usa purusha ki yaha bata manoge\? Pradeshi – he bhadanta ! Yaha artha samartha nahim hai. Keshi kumarashramana – usaki bata kyom nahim manoge\? Kyomki he bhadanta ! Vaha purusha aparadhi hai. To isi prakara he pradeshi ! Tumhare pitamaha bhi haim, jinhomne isi seyaviya nagari mem adharmika hokara jivana vyatita kiya yavat bahuta se papakarmom ka uparjana karake naraka mem utpanna hue haim. Unhim pitamaha ke tuma ishta, kanta yavat durlabha pautra ho. Yadyapi ve shighra hi manushya loka mem ana chahate haim kintu vaham se ane mem samartha nahim haim. Kyomki – pradeshi ! Tatkala naraka mem naraka rupa se utpanna jiva shighra hi chara karanom se manushya loka mem ane ki ichchha to karate haim, kintu vaham se a nahim pate haim. 1. Naraka mem adhunotpanna naraka vaham ki tivra vedana ke vedana ke karana, 2. Naraka mem tatkala nairayika rupa se utpanna jiva paramadharmika narakapalom dvara barambara tadita – pratarita kiye jane se, 3. Adhunopapannaka naraka manushyaloka mem ane ki abhilasha to rakhate haim kintu naraka sambandhi asatavedaniya karma ke kshaya nahim hone, ananubhuta evam anirjirna hone se, tatha 4. Isi prakara naraka sambamdhi ayukarma kshaya nahim hone se, ananubhuta evam anirjirna hone se naraka jiva manushyaloka mem ane ki abhilasha rakhate hue bhi vaham se a nahim sakate haim. Ata eva he pradeshi ! Tuma isa bata para vishvasa karo, shraddha rakho ki jiva anya hai aura sharira anya hai, kintu yaha mata mano ki jo jiva hai vahi sharira hai aura jo sharira hai vahi jiva hai.