Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005762
Scripture Name( English ): Rajprashniya Translated Scripture Name : राजप्रश्नीय उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Translated Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Section : Translated Section :
Sutra Number : 62 Category : Upang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से चित्ते सारही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कय नियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते साओ गिहाओ निग्गच्छइ, जेणेव पएसिस्स रन्नो गिहे जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं कंबोएहिं चत्तारि आसा उवायणं उवणीया, ते य मए देवानुप्पियाणं अन्नया चेव विणइया। तं एह णं सामी! ते आसे चिट्ठं पासह। तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी–गच्छाहि णं तुमं चित्ता! तेहिं चेव चउहिं आसेहिं चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेहि, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए उवट्ठवेइ, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, सेयवियाए नगरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ। तए णं से चित्ते सारही तं रहं णेगाइं जोयणाइं उब्भामेइ। तए णं से पएसी राया उण्हेण य तण्हाए य रहवाएण य परिकिलंते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी–चित्ता! परिकिलंते मे सरीरे, परावत्तेहि रहं। तए णं से चित्ते सारही रहं परावत्तेइ, जेणेव मियवने उज्जानेतेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं एवं वयासी–एस णं सामी! मियवने उज्जाणे, एत्थ णं आसाणं समं किलामं सम्मं अवणेमो। तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी–एवं होउ चित्ता! तए णं से चित्ते सारही जेणेव केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हेइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, तुरए मोएति, पएसिं रायं एवं वयासी–एह णं सामी! आसाणं समं किलामं सम्मं अवणेमो। तए णं से पएसी राया रहाओ पच्चोरुहइ, चित्तेण सारहिणा सद्धिं आसाणं समं किलामं सम्मं अवणेमाणे जत्थ तत्थ केसिं कुमारसमणं महइमहालियाए महच्चपरिसाए मज्झगए महया-महया सद्देणं धम्ममाइक्खमाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जहा खलु भो! जड्डं पज्जुवासंति। मुंडा खलु भो! मुंडं पज्जु वासंति। मूढा खलु भो! मूढं पज्जुवासंति। अपंडिया खलु भो! अपंडियं पज्जुवासंति। निव्विण्णाणा खलु भो! निव्विण्णाणं पज्जुवासंति। से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निव्विण्णाणे, सिरीए हिरीए उवगए, उत्तप्पसरीरे? एस णं पुरिसे किमाहारमा-हारेइ? किं परिणामेइ? किं खाइ? किं पियइ? किं दलयइ? किं पयच्छइ? जेणं एमहालियाए मनुस्सपरिसाए महया-महया सद्देणं बूया।साए वि णं उज्जानभूमीए नो संचाएमि सम्मं पकामं पवियरित्तए? एवं संपेहेइ, संपेहित्ता चित्तं सारहिं एवं वयासी – चित्ता! जड्डा खलु भो! जड्डं पज्जुवासंति। मुंडा खलु भो! मुंडं पज्जुवासंति। मूढा खलु भो! मूढं पज्जुवासंति। अपंडिया खलु भो! अपंडियं पज्जुवासंति। निव्विण्णाणा खलु भो! निव्विण्णाणं पज्जुवासंति। से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निव्विण्णाणे, सिरीए हिरीए उवगए, उत्तप्पसरीरे? एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेइ? किं परिणामेइ? किं खाइ? किं पियइ? किं दलयइ? किं पयच्छइ? जेणं एमहालियाए मनुस्सपरिसाए महया-महया सद्देणं बूया। साए वि णं उज्जानभूमीए नो संचाएमि सम्मं पकामं पवियरित्तए। तए णं से चित्ते सारही पएसिं रायं एवं वयासी–एस णं सामी! पासवच्चिज्जे केसी नामं कुमार-समणे जातिसंपन्ने जाव चउणाणोवगए अहोऽवहिए अन्नजीविए। तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी–अहोऽवहियं णं वयासि चित्ता! अन्नजीवियं णं वयासि चित्ता! हंता सामी! अहोऽवहियं णं वयामि, अन्नजीवियं णं वयामि। अभिगमणिज्जे णं चित्ता! एस पुरिसे? हंता सामी! अभिगमणिज्जे। अभिगच्छामो णं चित्ता! अम्हे एयं पुरिसं? हंता सामी! अभिगच्छामो।
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ कल रात्रि के प्रभात रूप में परिवर्तित हो जाने से जब कोमल उत्पल कमल विकसित हो चूके और धूप भी सुनहरी हो गई तब नियम एवं आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर जाज्वल्यमान तेज सहित सहस्ररश्मि दिनकर के चमकने के बाद चित्त सारथी अपने घर से नीकला। जहाँ प्रदेशी राजा था, वहाँ आया। दोनों हाथ जोड़ यावत्‌ अंजलि करके जय – विजय शब्दों से प्रदेशी राजा का अभिनन्दन किया और बोला – कम्बोज देशवासियों ने देवानुप्रिय के लिए जो चार घोड़े उपहार – स्वरूप भेजे थे, उन्हें मैंने आप देवानुप्रिय के योग्य प्रशिक्षित कर दिया है। अत एव स्वामिन्‌ ! पधारिए और उन घोड़ों की गति आदि चेष्टाओं का निरीक्षण कीजिए। तब प्रदेशी राजा ने कहा – हे चित्त ! तुम जाओ और उन्हीं चार घोड़ों को जोतकर अश्वरथ को यहाँ लाओ। चित्त सारथी प्रदेशी राजा के कथन को सूनकर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। यावत्‌ विकसितहृदय होते हुए उसने अश्वरथ उपस्थित किया और रथ ले आने की सूचना राजा को दी। तत्पश्चात्‌ वह प्रदेशी राजा चित्त सारथी की बात सूनकर और हृदय में धारण कर हृष्ट – तुष्ट हुआ यावत्‌ मूल्यवान अल्प आभूषणों से शरीर को अलंकृत करके अपने भवन से नीकला और आकर उस चार घंटों वाले अश्वरथ पर आरूढ़ होकर सेयविया नगरी के बीचों – बीच से नीकला। चित्त सारथी ने उस रथ को अनेक योजनों दूर तक बड़ी तेज चाल से दौड़ाया – तब गरमी, प्यास और रथ की चाल से लगती हवा से व्याकुल – परेशान – खिन्न होकर प्रदेशी राजा ने चित्त सारथी से कहा – हे चित्त ! मेरा शरीर थक गया है। रथ को वापस लौटा लो। तब चित्त सारथी ने रथ को लौटाया और जहाँ मृगवन उद्यान था वहाँ आकर प्रदेशी राजा से इस प्रकार कहा – हे स्वामिन्‌ ! यह मृगवन उद्यान है, यहाँ रथ को रोक कर हम घोड़ों के श्रम और अपनी थकावट को अच्छी तरह से दूर कर लें। इस पर प्रदेशी राजा ने कहा – हे चित्त ! ठीक, ऐसा ही करो। चित्त सारथी ने मृगवन उद्यान की ओर रथ को मोड़ा और फिर उस स्थान पर आया जो केशी कुमारश्रमण के निवासस्थान के पास था। वहाँ रथ को खड़ा किया, फिर घोड़ों को खोलकर प्रदेशी राजा से कहा – हे स्वामिन ! हम यहाँ घोड़ों के श्रम और अपनी थकावट को दूर कर लें। यह सूनकर प्रदेशी राजा रथ से नीचे ऊतरा, और चित्त सारथी के साथ घोड़ों की थकावट और अपनी व्याकुलता को मिटाते हुए उस ओर देखा जहाँ केशी कुमारश्रमण अतिविशाल परिषद्‌ को धर्मोपदेश कर रहे थे। यह देखकर उसे मन – ही – मन यह विचार एवं संकल्प उत्पन्न हुआ – जड़ ही जड़ की पर्युपासना करते हैं। मुंड ही मुंड की, मूढ ही मूढों की, अपंडित ही अपंडित की, और अज्ञानी ही अज्ञानी की उपासना करते हैं ! परन्तु यह कौन पुरुष है जो जड़, मुंड, मूढ़, अपंडित और अज्ञानी होते हुए भी श्री – ह्री से सम्पन्न है, शारीरिक कांति से सुशोभित है ? यह पुरुष किस प्रकार का आहार करता है ? किस रूप में खाये हुए भोजन को परिणमाता है ? यह क्या खाता है, क्या पीता है, लोगों को क्या देता है, समझाता है ? यह पुरुष इतने विशाल मानव – समूह के बीच बैठकर जोर – जोर से बोल रहा है और चित्त सारथी से कहा – चित्त ! जड़ पुरुष ही जड़ की पर्युपासना करते हैं आदि। यह कौन पुरुष है जो ऊंची ध्वनि से बोल रहा है ? इसके कारण हम अपनी ही उद्यानभूमि में भी ईच्छानुसार घूम नहीं सकते हैं। तब चित्त सारथी ने कहा – स्वामिन्‌ ! ये पार्श्वापत्य केशी कुमारश्रमण हैं, जो जातिसम्पन्न यावत्‌ मतिज्ञान आदि चार ज्ञानोंके धारक हैं। ये आधोऽवधिज्ञान से सम्पन्न एवं अन्नजीवी हैं। तब प्रदेशी राजा ने कहा – हे चित्त ! यह पुरुष आधोऽवधिज्ञान – सम्पन्न और अन्नजीवी है ? चित्त – हाँ स्वामिन ! हैं। प्रदेशी – हे चित्त ! तो क्या यह पुरुष अभिगमनीय है ? चित्त – हाँ स्वामिन्‌ , प्रदेशी – तो फिर, चित्त! इस पुरुषके पास चलें। चित्त – हाँ, स्वामिन्‌ ! चलें।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se chitte sarahi kallam pauppabhayae rayanie phulluppala kamala komalummiliyammi ahapamdure pabhae kaya niyamavassae sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte sao gihao niggachchhai, jeneva paesissa ranno gihe jeneva paesi raya teneva uvagachchhai, paesim rayam karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam baddhavei, baddhavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiyanam kamboehim chattari asa uvayanam uvaniya, te ya mae devanuppiyanam annaya cheva vinaiya. Tam eha nam sami! Te ase chittham pasaha. Tae nam se paesi raya chittam sarahim evam vayasi–gachchhahi nam tumam chitta! Tehim cheva chauhim asehim chaugghamtam asaraham juttameva uvatthavehi, eyamanattiyam pachchappinahi. Tae nam se chitte sarahi paesina ranna evam vutte samane hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamanahiyae uvatthavei, eyamanattiyam pachchappinai. Tae nam se paesi raya chittassa sarahissa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamanahiyae nhae kayabalikamme kayakouya mamgala-payachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihite appamahagghabharanalamkiyasarire sao gihao niggachchhai, jenameva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, chaugghamtam asaraham duruhai, seyaviyae nagarie majjhammajjhenam niggachchhai. Tae nam se chitte sarahi tam raham negaim joyanaim ubbhamei. Tae nam se paesi raya unhena ya tanhae ya rahavaena ya parikilamte samane chittam sarahim evam vayasi–chitta! Parikilamte me sarire, paravattehi raham. Tae nam se chitte sarahi raham paravattei, jeneva miyavane ujjaneteneva uvagachchhai, paesim rayam evam vayasi–esa nam sami! Miyavane ujjane, ettha nam asanam samam kilamam sammam avanemo. Tae nam se paesi raya chittam sarahim evam vayasi–evam hou chitta! Tae nam se chitte sarahi jeneva kesissa kumarasamanassa adurasamamte teneva uvagachchhai, turae niginhei, raham thavei, rahao pachchoruhai, turae moeti, paesim rayam evam vayasi–eha nam sami! Asanam samam kilamam sammam avanemo. Tae nam se paesi raya rahao pachchoruhai, chittena sarahina saddhim asanam samam kilamam sammam avanemane jattha tattha kesim kumarasamanam mahaimahaliyae mahachchaparisae majjhagae mahaya-mahaya saddenam dhammamaikkhamanam pasai, pasitta imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–jaha khalu bho! Jaddam pajjuvasamti. Mumda khalu bho! Mumdam pajju vasamti. Mudha khalu bho! Mudham pajjuvasamti. Apamdiya khalu bho! Apamdiyam pajjuvasamti. Nivvinnana khalu bho! Nivvinnanam pajjuvasamti. Se kesa nam esa purise jadde mumde mudhe apamdie nivvinnane, sirie hirie uvagae, uttappasarire? Esa nam purise kimaharama-harei? Kim parinamei? Kim khai? Kim piyai? Kim dalayai? Kim payachchhai? Jenam emahaliyae manussaparisae mahaya-mahaya saddenam buyA.Sae vi nam ujjanabhumie no samchaemi sammam pakamam paviyarittae? Evam sampehei, sampehitta chittam sarahim evam vayasi – Chitta! Jadda khalu bho! Jaddam pajjuvasamti. Mumda khalu bho! Mumdam pajjuvasamti. Mudha khalu bho! Mudham pajjuvasamti. Apamdiya khalu bho! Apamdiyam pajjuvasamti. Nivvinnana khalu bho! Nivvinnanam pajjuvasamti. Se kesa nam esa purise jadde mumde mudhe apamdie nivvinnane, sirie hirie uvagae, uttappasarire? Esa nam purise kimaharamaharei? Kim parinamei? Kim khai? Kim piyai? Kim dalayai? Kim payachchhai? Jenam emahaliyae manussaparisae mahaya-mahaya saddenam buya. Sae vi nam ujjanabhumie no samchaemi sammam pakamam paviyarittae. Tae nam se chitte sarahi paesim rayam evam vayasi–esa nam sami! Pasavachchijje kesi namam kumara-samane jatisampanne java chaunanovagae ahovahie annajivie. Tae nam se paesi raya chittam sarahim evam vayasi–ahovahiyam nam vayasi chitta! Annajiviyam nam vayasi chitta! Hamta sami! Ahovahiyam nam vayami, annajiviyam nam vayami. Abhigamanijje nam chitta! Esa purise? Hamta sami! Abhigamanijje. Abhigachchhamo nam chitta! Amhe eyam purisam? Hamta sami! Abhigachchhamo.
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat kala ratri ke prabhata rupa mem parivartita ho jane se jaba komala utpala kamala vikasita ho chuke aura dhupa bhi sunahari ho gai taba niyama evam avashyaka karyom se nivritta hokara jajvalyamana teja sahita sahasrarashmi dinakara ke chamakane ke bada chitta sarathi apane ghara se nikala. Jaham pradeshi raja tha, vaham aya. Donom hatha jora yavat amjali karake jaya – vijaya shabdom se pradeshi raja ka abhinandana kiya aura bola – kamboja deshavasiyom ne devanupriya ke lie jo chara ghore upahara – svarupa bheje the, unhem maimne apa devanupriya ke yogya prashikshita kara diya hai. Ata eva svamin ! Padharie aura una ghorom ki gati adi cheshtaom ka nirikshana kijie. Taba pradeshi raja ne kaha – he chitta ! Tuma jao aura unhim chara ghorom ko jotakara ashvaratha ko yaham lao. Chitta sarathi pradeshi raja ke kathana ko sunakara harshita evam santushta hua. Yavat vikasitahridaya hote hue usane ashvaratha upasthita kiya aura ratha le ane ki suchana raja ko di. Tatpashchat vaha pradeshi raja chitta sarathi ki bata sunakara aura hridaya mem dharana kara hrishta – tushta hua yavat mulyavana alpa abhushanom se sharira ko alamkrita karake apane bhavana se nikala aura akara usa chara ghamtom vale ashvaratha para arurha hokara seyaviya nagari ke bichom – bicha se nikala. Chitta sarathi ne usa ratha ko aneka yojanom dura taka bari teja chala se dauraya – taba garami, pyasa aura ratha ki chala se lagati hava se vyakula – pareshana – khinna hokara pradeshi raja ne chitta sarathi se kaha – he chitta ! Mera sharira thaka gaya hai. Ratha ko vapasa lauta lo. Taba chitta sarathi ne ratha ko lautaya aura jaham mrigavana udyana tha vaham akara pradeshi raja se isa prakara kaha – he svamin ! Yaha mrigavana udyana hai, yaham ratha ko roka kara hama ghorom ke shrama aura apani thakavata ko achchhi taraha se dura kara lem. Isa para pradeshi raja ne kaha – he chitta ! Thika, aisa hi karo. Chitta sarathi ne mrigavana udyana ki ora ratha ko mora aura phira usa sthana para aya jo keshi kumarashramana ke nivasasthana ke pasa tha. Vaham ratha ko khara kiya, phira ghorom ko kholakara pradeshi raja se kaha – he svamina ! Hama yaham ghorom ke shrama aura apani thakavata ko dura kara lem. Yaha sunakara pradeshi raja ratha se niche utara, aura chitta sarathi ke satha ghorom ki thakavata aura apani vyakulata ko mitate hue usa ora dekha jaham keshi kumarashramana ativishala parishad ko dharmopadesha kara rahe the. Yaha dekhakara use mana – hi – mana yaha vichara evam samkalpa utpanna hua – Jara hi jara ki paryupasana karate haim. Mumda hi mumda ki, mudha hi mudhom ki, apamdita hi apamdita ki, aura ajnyani hi ajnyani ki upasana karate haim ! Parantu yaha kauna purusha hai jo jara, mumda, murha, apamdita aura ajnyani hote hue bhi shri – hri se sampanna hai, sharirika kamti se sushobhita hai\? Yaha purusha kisa prakara ka ahara karata hai\? Kisa rupa mem khaye hue bhojana ko parinamata hai\? Yaha kya khata hai, kya pita hai, logom ko kya deta hai, samajhata hai\? Yaha purusha itane vishala manava – samuha ke bicha baithakara jora – jora se bola raha hai aura chitta sarathi se kaha – chitta ! Jara purusha hi jara ki paryupasana karate haim adi. Yaha kauna purusha hai jo umchi dhvani se bola raha hai\? Isake karana hama apani hi udyanabhumi mem bhi ichchhanusara ghuma nahim sakate haim. Taba chitta sarathi ne kaha – svamin ! Ye parshvapatya keshi kumarashramana haim, jo jatisampanna yavat matijnyana adi chara jnyanomke dharaka haim. Ye adhovadhijnyana se sampanna evam annajivi haim. Taba pradeshi raja ne kaha – he chitta ! Yaha purusha adhovadhijnyana – sampanna aura annajivi hai\? Chitta – ham svamina ! Haim. Pradeshi – he chitta ! To kya yaha purusha abhigamaniya hai\? Chitta – ham svamin, pradeshi – to phira, chitta! Isa purushake pasa chalem. Chitta – ham, svamin ! Chalem.