Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005716
Scripture Name( English ): Rajprashniya Translated Scripture Name : राजप्रश्नीय उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

सूर्याभदेव प्रकरण

Translated Chapter :

सूर्याभदेव प्रकरण

Section : Translated Section :
Sutra Number : 16 Category : Upang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे आभियोगस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं उत्तरवेउव्वियरूवं विउव्वति, विउव्वित्ता चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि, दोहिं अनिएहिं, तं जहा–गंधव्वाणिएण य नट्ठाणिएण य सद्धिं संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमानं अनुपयाहिणी-करेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहति, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासन-वरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसण्णे। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ तं दिव्वं जाणविमानं अनुपया- हिणीकरेमाणा उत्तरिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं दुरुहंति, दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वणत्थेहिं भद्दासणेहिं निसीयंति। अवसेसा देवा य देवीओ य तं दिव्वं जानविमानं अनुपयाहिणीकरेमाणा दाहिणिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं दुरुहंति, दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वणत्थेहिं भद्दासनेहिं निसीयंति। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स तं दिव्वं जाणविमानं दुरुढस्स समाणस्स अट्ठट्ठ मगला पुरतो अहानुपुव्वीए संपत्थिया, तं जहा–सोत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्धमाणग भद्दासन कलस मच्छ दप्पणा। तयनंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार दिव्वायवत्तपडागा सचामरा दंसणरइया आलोयदरिस-णिज्जा वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागा ऊसिया गगनतलमनुलिहंती पुरतो अहानुपुव्वीए संपत्थिया। तयनंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभितं चंदमंडलनिभं समुस्सियं विमलमायवत्तं पवरसीहासनं च मणिरयणभत्तिचित्तं सपायपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकरा-मरपरिग्गहियं पुरतो जहाणुपुव्वीए संपत्थियं। तयनंतरं च णं वइरामय वट्ट लट्ठ संठिय सुसिलिट्ठ परिघट्ठ मट्ठ सुपतिट्ठिए विसिट्ठे अनेगवरपंचवण्णकुडभी-सहस्स परिमंडियाभिरामे वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिच्छत्त-कलिए तुंगे गगनतलमनुलिहंतसिहरे जोयणसहस्समूसिए महतिमहालए महिंदज्झए पुरतो अहानुपव्वीए संपत्थिए। तयनंतरं च णं सुरूवने परिकच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारभूसिया महया भड चडगर पहगरेणं पंच अनीयाहिवइणो पुरतो अहानुपुव्वीए संपत्थिया। तयनंतरं च णं बहवे आभियोगिया देवा देवीओ य सएहिं-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं विसेसेहिं, सएहिं-सएहिं विहवेहिं, सएहिं-सएहिं निज्जोएहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं पुरतो अहानुपुव्वीए संपत्थिया। तयनंतरं च णं सूरियाभविमानवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सव्विड्ढीए जाव नाइयरवेणं सूरियाभं देवं पुरतो पासतो य मग्गतो य समनुगच्छंति।
Sutra Meaning : तदनन्तर आभियोगिक देव ने उस सिंहासन के पश्चिमोत्तर, उत्तर और उत्तर पूर्व दिग्भाग में सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देवों के बैठने के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। पूर्व दिशा में सूर्याभदेव की परिवार सहित चार अग्र महिषियों के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। दक्षिणपूर्व दिशा में सूर्याभदेव की आभ्यन्तर परिषद्‌ के आठ हजार देवों के लिए आठ हजार भद्रासनों की रचना की। दक्षिण दिशा में मध्यम परिषद्‌ के देवों के लिए दस हजार भद्रासनों की, दक्षिण – पश्चिम दिग्भाग में बाह्य परिषदा के बारह हजार देवों के लिए बारह हजार भद्रासनों की और पश्चिम दिशा में सप्त अनीकाधिपतियों के लिए सात भद्रासनों की रचना की। तत्पश्चात्‌ सूर्याभदेव के सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के लिए क्रमशः पूर्व, दक्षिण, पश्चिभ और उत्तर दिशा चार – चार हजार, इस प्रकार सोलह हजार भद्रासनों को स्थापित किया। उस दिव्य यान – विमान का रूप – सौन्दर्य क्या तत्काल उदित हेमन्त ऋतु के बाल सूर्य, रात्रि में प्रज्वलित खदिर के अंगारों, पूरी तरह से कुसुमित जपापुष्पवन, पलाशवन अथवा पारिजातवन जैसा लाल था ? यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! वह यानविमान तो इनसे भी अधिक इष्टतर यावत्‌ रक्तवर्ण वाला था। उसी प्रकार उसका गंध और स्पर्श भी पूर्व में किये गये मणियों के वर्णन से भी अधिक इष्टतर यावत्‌ रमणीय था। दिव्य यान – विमान की रचना करने के अनन्तर आभियोगिक देव सूर्याभदेवके पास आया। सूर्याभदेव को दोनों हाथ जोड़ कर यावत्‌ आज्ञा वापस लौटाई। आभियोगिक देव से दिव्य यान – विमान के निर्माण के समाचार सूनने के पश्चात्‌ इस सूर्याभदेव ने हर्षित, संतुष्ट यावत्‌ प्रफुल्लहृदय हो, जिनेन्द्र भगवान के सम्मुख गमन करने योग्य दिव्य उत्तरवैक्रिय रूप की विकुर्वणा की। उनके अपने परिवार सहित चार अग्र महिषियों एवं गंधर्व तथा नाट्य इन दो अनीकों को साथ लेकर उस दिव्य यान – विमान की अनुप्रदक्षिणा करके पूर्व दिशावर्ती अतीव मनोहर त्रिसोपानों से दिव्य यान – विमान पर आरूढ हुआ और सिंहासन के समीप आकर पूर्व की ओर मुख करके उस पर बैठ गया। तत्पश्चात्‌ सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव उस यान – विमान की प्रदक्षिणा करते हुए उत्तर दिग्वर्ती त्रिसोपान प्रतिरूपक द्वारा उस पर चढ़े और पहले से ही स्थापित भद्रासनों पर बैठे तथा दूसरे देव एवं देवियाँ भी प्रदक्षिणापूर्वक दक्षिण दिशा के सोपानों द्वारा उस दिव्य यान – विमान पर चढ़कर पहले से ही निश्चित भद्रासनों पर बेठे। उस दिव्य यान – विमान पर सूर्याभदेव आदि देव – देवियों के आरूढ़ हो जाने के पश्चात्‌ अनुक्रम से आठ अंगुल – द्रव्य उसके सामने चले। स्वस्तिक, श्रीवत्स यावत्‌ दर्पण। आठ मंगल द्रव्यों के अनन्तर पूर्ण कलश, भृंगार, चामर सहित दिव्य छत्र, पताका तथा इनके साथ गगन तल का स्पर्श करती हुई अतिशय सुन्दर, आलोकदर्शनीय और वायु से फरफराती हुई एक बहुत ऊंची विजय वैजयंती पताका अनुक्रम से उसके आगे चली। विजय वैजयंती पताका के अनन्तर वैडूर्यरत्नों से निर्मित देदीप्यमान, निर्मल दंड वाले लटकती हुई कोरंट पुष्पों को मालाओं से सुशोभित, चंद्रमंडल के समान निर्मल, श्वेत – धवल ऊंचा आतपत्र – छत्र और अनेक किंकर देवों द्वारा वहन किया जा रहा, मणिरत्नों से बने हुए वेलवूटों से उपशोभित, पादुकाद्वय युक्त पादपीठ सहित प्रवर – उत्तम सिंहासन अनुक्रम से उसके आगे चला। तत्पश्चात्‌ वज्ररत्नों से निर्मित गोलाकार कमनीय – मनो, दांडे वाला, शेष ध्वजाओं में विशिष्ट एवं और दूसरी बहुत सी मनोरम छोटी बड़ी अनेक प्रकार की रंगबिरंगी पंचरंगी ध्वजाओं से परिमंडित, वायु वेग से फहराती हुई विजयवैजयंती पताका, छत्रातिछत्र से युक्त, आकाशमंडल को स्पर्श करने वाला हजार योजन ऊंचा एक बहुत बड़ा इन्द्रध्वज नामक ध्वज अनुक्रम से उसके आगे चला। इन्द्रध्वज के अनन्तर सुन्दर वेषभूषा से सुसज्जित, समस्त आभूषण – अलंकारों से विभूषित और अत्यन्त प्रभावशाली सुभटों के समुदायों को साथ लेकर पाँच सेनापति अनुक्रम से आगे चले। तदनन्तर बहुत से आभियोगिक देव और देवियाँ अपनी – अपनी योग्य – विशिष्ट वेशभूषाओं और विशेषतादर्शक अपने – अपने प्रतीक चिह्नों से सजधज कर अपने – अपने परिकर, अपने – अपने नेजा और अपने अपने कार्यों के लिए कार्योपयोगी उपकरणों को साथ लेकर अनुक्रम से आगे चले। तत्पश्चात्‌ सबसे अंत में उस सूर्याभ विमान में रहने वाले बहुत से वैमानिक देव और देवियाँ अपनी अपनी समस्त ऋद्धि से, यावत्‌ प्रतिध्वनि से शोभित होते हुए उस सूर्याभदेव के आगे – पीछे, आजू – बाजू में साथ – साथ चले।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se suriyabhe deve abhiyogassa devassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamanahiyae divvam jinimdabhigamanajoggam uttaraveuvviyaruvam viuvvati, viuvvitta chauhim aggamahisihim saparivarahi, dohim aniehim, tam jaha–gamdhavvaniena ya natthaniena ya saddhim samparivude tam divvam janavimanam anupayahini-karemane puratthimillenam tisomanapadiruvaenam duruhati, duruhitta jeneva sihasane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasana-varagae puratthabhimuhe sannisanne. Tae nam tassa suriyabhassa devassa chattari samaniyasahassio tam divvam janavimanam anupaya- Hinikaremana uttarillenam tisovanapadiruvaenam duruhamti, duruhitta patteyam-patteyam puvvanatthehim bhaddasanehim nisiyamti. Avasesa deva ya devio ya tam divvam janavimanam anupayahinikaremana dahinillenam tisovanapadiruvaenam duruhamti, duruhitta patteyam-patteyam puvvanatthehim bhaddasanehim nisiyamti. Tae nam tassa suriyabhassa devassa tam divvam janavimanam durudhassa samanassa atthattha magala purato ahanupuvvie sampatthiya, tam jaha–sotthiya sirivachchha namdiyavatta vaddhamanaga bhaddasana kalasa machchha dappana. Tayanamtaram cha nam punnakalasabhimgara divvayavattapadaga sachamara damsanaraiya aloyadarisa-nijja vauddhuyavijayavejayamtipadaga usiya gaganatalamanulihamti purato ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam veruliyabhisamtavimaladamdam palambakoramtamalladamovasobhitam chamdamamdalanibham samussiyam vimalamayavattam pavarasihasanam cha manirayanabhattichittam sapayapidham sapauyajoyasamauttam bahukimkara-marapariggahiyam purato jahanupuvvie sampatthiyam. Tayanamtaram cha nam vairamaya vatta lattha samthiya susilittha parighattha mattha supatitthie visitthe anegavarapamchavannakudabhi-sahassa parimamdiyabhirame vauddhuyavijayavejayamtipadagachchhattatichchhatta-kalie tumge gaganatalamanulihamtasihare joyanasahassamusie mahatimahalae mahimdajjhae purato ahanupavvie sampatthie. Tayanamtaram cha nam suruvane parikachchhiya susajja savvalamkarabhusiya mahaya bhada chadagara pahagarenam pamcha aniyahivaino purato ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam bahave abhiyogiya deva devio ya saehim-saehim ruvehim, saehim-saehim visesehim, saehim-saehim vihavehim, saehim-saehim nijjoehim, saehim-saehim nevatthehim purato ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam suriyabhavimanavasino bahave vemaniya deva ya devio ya savviddhie java naiyaravenam suriyabham devam purato pasato ya maggato ya samanugachchhamti.
Sutra Meaning Transliteration : Tadanantara abhiyogika deva ne usa simhasana ke pashchimottara, uttara aura uttara purva digbhaga mem suryabhadeva ke chara hajara samanika devom ke baithane ke lie chara hajara bhadrasanom ki rachana ki. Purva disha mem suryabhadeva ki parivara sahita chara agra mahishiyom ke lie chara hajara bhadrasanom ki rachana ki. Dakshinapurva disha mem suryabhadeva ki abhyantara parishad ke atha hajara devom ke lie atha hajara bhadrasanom ki rachana ki. Dakshina disha mem madhyama parishad ke devom ke lie dasa hajara bhadrasanom ki, dakshina – pashchima digbhaga mem bahya parishada ke baraha hajara devom ke lie baraha hajara bhadrasanom ki aura pashchima disha mem sapta anikadhipatiyom ke lie sata bhadrasanom ki rachana ki. Tatpashchat suryabhadeva ke solaha hajara atmarakshaka devom ke lie kramashah purva, dakshina, pashchibha aura uttara disha chara – chara hajara, isa prakara solaha hajara bhadrasanom ko sthapita kiya. Usa divya yana – vimana ka rupa – saundarya kya tatkala udita hemanta ritu ke bala surya, ratri mem prajvalita khadira ke amgarom, puri taraha se kusumita japapushpavana, palashavana athava parijatavana jaisa lala tha\? Yaha artha samartha nahim hai. He ayushman shramanom ! Vaha yanavimana to inase bhi adhika ishtatara yavat raktavarna vala tha. Usi prakara usaka gamdha aura sparsha bhi purva mem kiye gaye maniyom ke varnana se bhi adhika ishtatara yavat ramaniya tha. Divya yana – vimana ki rachana karane ke anantara abhiyogika deva suryabhadevake pasa aya. Suryabhadeva ko donom hatha jora kara yavat ajnya vapasa lautai. Abhiyogika deva se divya yana – vimana ke nirmana ke samachara sunane ke pashchat isa suryabhadeva ne harshita, samtushta yavat praphullahridaya ho, jinendra bhagavana ke sammukha gamana karane yogya divya uttaravaikriya rupa ki vikurvana ki. Unake apane parivara sahita chara agra mahishiyom evam gamdharva tatha natya ina do anikom ko satha lekara usa divya yana – vimana ki anupradakshina karake purva dishavarti ativa manohara trisopanom se divya yana – vimana para arudha hua aura simhasana ke samipa akara purva ki ora mukha karake usa para baitha gaya. Tatpashchat suryabhadeva ke chara hajara samanika deva usa yana – vimana ki pradakshina karate hue uttara digvarti trisopana pratirupaka dvara usa para charhe aura pahale se hi sthapita bhadrasanom para baithe tatha dusare deva evam deviyam bhi pradakshinapurvaka dakshina disha ke sopanom dvara usa divya yana – vimana para charhakara pahale se hi nishchita bhadrasanom para bethe. Usa divya yana – vimana para suryabhadeva adi deva – deviyom ke arurha ho jane ke pashchat anukrama se atha amgula – dravya usake samane chale. Svastika, shrivatsa yavat darpana. Atha mamgala dravyom ke anantara purna kalasha, bhrimgara, chamara sahita divya chhatra, pataka tatha inake satha gagana tala ka sparsha karati hui atishaya sundara, alokadarshaniya aura vayu se pharapharati hui eka bahuta umchi vijaya vaijayamti pataka anukrama se usake age chali. Vijaya vaijayamti pataka ke anantara vaiduryaratnom se nirmita dedipyamana, nirmala damda vale latakati hui koramta pushpom ko malaom se sushobhita, chamdramamdala ke samana nirmala, shveta – dhavala umcha atapatra – chhatra aura aneka kimkara devom dvara vahana kiya ja raha, maniratnom se bane hue velavutom se upashobhita, padukadvaya yukta padapitha sahita pravara – uttama simhasana anukrama se usake age chala. Tatpashchat vajraratnom se nirmita golakara kamaniya – mano, damde vala, shesha dhvajaom mem vishishta evam aura dusari bahuta si manorama chhoti bari aneka prakara ki ramgabiramgi pamcharamgi dhvajaom se parimamdita, vayu vega se phaharati hui vijayavaijayamti pataka, chhatratichhatra se yukta, akashamamdala ko sparsha karane vala hajara yojana umcha eka bahuta bara indradhvaja namaka dhvaja anukrama se usake age chala. Indradhvaja ke anantara sundara veshabhusha se susajjita, samasta abhushana – alamkarom se vibhushita aura atyanta prabhavashali subhatom ke samudayom ko satha lekara pamcha senapati anukrama se age chale. Tadanantara bahuta se abhiyogika deva aura deviyam apani – apani yogya – vishishta veshabhushaom aura visheshatadarshaka apane – apane pratika chihnom se sajadhaja kara apane – apane parikara, apane – apane neja aura apane apane karyom ke lie karyopayogi upakaranom ko satha lekara anukrama se age chale. Tatpashchat sabase amta mem usa suryabha vimana mem rahane vale bahuta se vaimanika deva aura deviyam apani apani samasta riddhi se, yavat pratidhvani se shobhita hote hue usa suryabhadeva ke age – pichhe, aju – baju mem satha – satha chale.