Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005655 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
उपपात वर्णन |
Translated Chapter : |
उपपात वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 55 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं पाउणइ, पाउणित्ता ईसिंसहस्सपंचक्खरुच्चारणद्धाए असंखेज्जसमइयं अंतो-मुहुत्तियं सेलेसिं पडिवज्जइ। पुव्वरइयगुणसेढीयं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढीहिं अनंते कम्मंसे खवयंतो वेयणिज्जाउयणामगोए इच्चेते चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ, खवेत्ता ओरालियतेयकम्माइं सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढीपडिवण्णे अफुसमाण-गई उड्ढ एक्कसमएणं अविग्गहेणं गंता सागरोवउत्ते सिज्झइ। ते णं तत्थ सिद्धा हवंति सादीया अपज्जवसिया असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता निट्ठियट्ठा निरेयणा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं चिट्ठंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–ते णं तत्थ सिद्धा भवंति सादीया अपज्जवसिया असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता निट्ठियट्ठा निरेयणा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं चिट्ठंति? गोयमा! से जहाणामए बीयाणं अग्गिदड्ढाणं पुणरवि अंकुरुप्पत्ती ण भवइ, एवामेव सिद्धाणं कम्मबीए दड्ढे पुणरवि जम्मुप्पत्ती न भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–ते णं तत्थ सिद्धा भवंति सादीया अपज्जवसिया असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता निट्ठियट्ठा निरेयणा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं चिट्ठंति। जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि संघयणे सिज्झंति? गोयमा! वइरोसभणारायसंघयणे सिज्झंति। जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि संठाणे सिज्झंति? गोयमा! छण्हं संठाणाणं अण्णयरे संठाणे सिज्झंति। जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि उच्चत्ते सिज्झंति? गोयमा! जहण्णेणं सत्तरयणीए उक्कोसेणं पंचधणुसइए सिज्झंति। जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि आउए सिज्झंति? गोयमा! जहण्णेणं साइरेग-ट्ठवासाउए, उक्कोसेणं पुव्वकोडियाउए सिज्झंति। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति? नो इणट्ठे समट्ठे। एवं जाव अहेसत्तमाए। अत्थि णं भंते! सोहम्मस्स कप्पस्स अहे सिद्धा परिवसंति? नो इणट्ठे समट्ठे। एवं सव्वेसिं पुच्छा–ईसानस्स सणंकुमारस्स जाव अच्चुयस्स गेवेज्जविमाणाणं अनुत्तरविमाणाणं। अत्थि णं भंते! ईसीपब्भाराए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति? नो इणट्ठे समट्ठे। से कहिं खाइ णं भंते! सिद्धा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम सूरिय ग्गहगण णक्खत्त तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं, बहूइं जोयणसयाइं, बहूइं जोयणसहस्साइं, बहुइं जोयणसयसहस्साइं, बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण सणंकुमार माहिंद बंभ लंतग महासुक्क सहस्सार आणय पाणय आरण अच्चुए तिन्नि य अट्ठारे गेविज्जविमानावाससए वीईवइत्ता विजय वेजयंत जयंत अपराजिय सव्वट्ठसिद्धस्स य महाविमानस्स सव्वुवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालसजोयणाइं अबाहाए एत्थ णं ईसीपब्भारा नाम पुढवी पन्नत्ता– ..... ..... पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिरएणं। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं, तयानंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणी-परिहायमाणी सव्वेसु चरिम पेरंतेसु मच्छियपत्ताओ तनुयतरी अंगुलस्स असंखेज्जइभागं बाहल्लेणं पन्नत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए दुवालस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–ईसीइ वा ईसीपब्भाराइ वा तनूइ वा तनुयरीइ वा सिद्धीइ वा सिद्धालएइ वा मुत्तीइ वा मुत्तालएइ वा लोयग्गेइ वा लोयग्गथूभिगाइ वा लोयग्गपडिबुज्झणाइ वा सव्वपाण भूय जीव सत्तसुहावहाइ वा। ईसीपब्भारा णं पुढवी सेया संखतल-विमलसोल्लिय-मुणाल दगरय तुसार गोक्खीर हारवन्ना उत्ताणयछत्तसंठाणसंठिया सव्वज्जुणसुवण्णगमई अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया समरीचिया सुप्पभा पासादीया दसिणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए सीयाए जोयणंमि लोगंतो। तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, तत्थ णं सिद्धा भगवंतो सादीया अपज्जवसिया अनेगजाइ जरा मरण जोणि वेयणं संसारकलंकलीभाव-पुनब्भव-गब्भवासवसही-पवंचं अइक्कंता सासय-मनागयद्धं चिट्ठंति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग का निरोध करते हैं। तदनन्तर अपर्याप्त – सूक्ष्म पनक जीव के जघन्य योग के नीचे के स्तर से असंख्यात गुण हीन काय – योग का निरोध करते हैं। इस उपाय या उपक्रम द्वारा वे पहले मनोयोग का निरोध करते हैं। फिर वचन – योग का निरोध करते हैं। काय – योग का निरोध करते हैं। फिर सर्वथा योगनिरोध करते हैं। इस प्रकार – योग निरोध कर वे अयोगत्व प्राप्त करते हैं। फिर ईषत्स्पृष्ट पाँच ह्रस्व अक्षर के उच्चारण के असंख्यात कालवर्ती अन्तर्मुहूर्त्त तक होने वाली शैलेशी अवस्था प्राप्त करते हैं। उस शैलेशी – काल में पूर्वविरचित गुण – श्रेणी के रूप में रहे कर्मों को असंख्यात गुण – श्रेणियों में अनन्त कर्मांशों के रूप में क्षीण करते हुए वेदनीय आयुष्य, नाम तथा गोत्र – एक साथ क्षय करते हैं। फिर औदारिक, तैजस तथा कार्मण शरीर का पूर्ण रूप से परित्याग कर देते हैं। वैसा कर ऋजु श्रेणि प्रतिपन्न हो अस्पृश्यमान गति द्वारा एक समय में ऊर्ध्व – गमन कर साकारोपयोग में सिद्ध होते हैं। वहाँ सादि, अपर्यवसित, अशरीर, जीवधन, आत्मप्रदेश युक्त, ज्ञान तथा दर्शन उपयोग सहित, निष्ठितार्थ, निरेजन, नीरज, निर्मल, वितिमिर, विशुद्ध, शाश्वतकाल पर्यन्त संस्थित रहते हैं। भगवन् ! वहाँ वे सिद्ध होते हैं, सादि – अपर्यवसित, यावत् शाश्वतकाल पर्यन्त स्थित रहते हैं – इत्यादि आप किस आशय से फरमाते हैं ? गौतम ! जैसे अग्नि से दग्ध बीजों की पुनः अंकुरों के रूप में उत्पत्ति नहीं होती, उसी प्रकार कर्म – बीज दग्ध होने के कारण सिद्धों की भी फिर जन्मोत्पत्ति नहीं होती। गौतम ! मैं इसी आशय से यह कह रहा हूँ कि सिद्ध सादि, अपर्यवसित होते हैं। भगवन् ! सिद्ध होते हैं ? गौतम ! वे वज्र – ऋषभ – नाराच संहनन में सिद्ध होते हैं। भगवन् ! सिद्ध होते हुए जीव किस संस्थान में सिद्ध होते हैं ? गौतम ! छह संस्थानों में से किसी भी संस्थान में सिद्ध हो सकते हैं। भगवन् ! सिद्ध होते हुए जीव कितनी अवगाहना में सिद्ध होते हैं ? गौतम ! जघन्य सात हाथ तथा उत्कृष्ट – पाँच सौ धनुष की अवगाहना में सिद्ध होते हैं। भगवन् ! सिद्ध होते हुए जीव कितने आयुष्य में सिद्ध होते हैं ? गौतम ! कम से कम आठ वर्ष से कुछ अधिक आयुष्य में तथा अधिक से अधिक करोड़ पूर्व के आयुष्य में सिद्ध होते हैं। भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे सिद्ध निवास करते हैं ? नहीं, ऐसा अर्थ – ठीक नहीं है। रत्नप्रभा के साथ – साथ शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, तमःप्रभा तथा तमस्तमःप्रभा के सम्बन्ध में ऐसा ही समझना चाहिए। भगवन् ! क्या सिद्ध सौधर्मकल्प के नीचे निवास करते हैं ? नहीं, ऐसा अभिप्राय ठीक नहीं है। ईशान, सनत्कुमार यावत् अच्युत तक, ग्रैवेयक विमानों तथा अनुत्तर विमानों के सम्बन्ध में ऐसा ही समझना चाहिए। भगवन् ! क्या सिद्ध ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे निवास करते हैं ? नहीं, ऐसा अभिप्राय ठीक नहीं है। भगवन् ! फिर सिद्ध कहाँ निवास करते हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा भूमि के बहुसम रमणीय भूभाग से ऊपर, चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र तथा तारों के भवनों से बहुत योजन, बहुत सैकड़ों योजन, बहुत हजारों योजन, बहुत लाखों योजन, बहुत करोड़ों योजन तथा बहुत क्रोड़ाक्रोड़ योजन से ऊर्ध्वतर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत कल्प तथा तीन सौ अठारह ग्रैवेयक विमान – आवास से भी ऊपर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध महाविमान के सर्वोच्च शिखर के अग्रभाग से बारह योजन के अन्तर पर ऊपर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी कही गई है। वह पृथ्वी पैंतालीस लाख योजन लम्बी तथा चौड़ी है। उसकी परिधि एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ उनचास योजन से कुछ अधिक है। ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी अपने ठीक मध्य भाग में आठ योजन क्षेत्र में आठ योजन मोटी है। तत्पश्चात् मोटेपन में क्रमशः कुछ कुछ कम होती हुई सबसे अन्तिम किनारों पर मक्खी की पाँख से पतली है। उन अन्तिम किनारों की मोटाई अंगुल के असंख्यातवें भाग के तुल्य है। ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के बारह नाम बतलाए गए हैं – ईषत्, ईषत्प्राग्भारा, तनु, तनुतनु, सिद्धि, सिद्धालय, मुक्ति, मुक्तालय, लोकाग्र, लोकाग्रस्तूपिका, लोकाग्रपतिबोधना और सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वसुखावहा। ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी दर्पणतल के जैसी निर्मल, सोल्लिय पुष्प, कमलनाल, जलकण, तुषार, गाय के दूध तथा हार के समान श्वेत वर्णयुक्त है। वह उलटे छत्र जैसे आकार में अवस्थित है। वह अर्जुन स्वर्ण जैसी द्युति लिये हुए है। वह आकाश या स्फटिक जैसी स्वच्छ, श्लक्ष्ण कोमल परमाणु – स्कन्धों से निष्पन्न होने के कारण कोमल तन्तुओं से बुने हुए वस्त्र के समान मुलायम, लष्ट, ललित आकृतियुक्त, घृष्ट, मृष्ट, नीरज, निर्मल, निष्पंक शोभायुक्त, समरीचिका, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप है। ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के तल से उत्सोधांगुल द्वारा एक योजन पर लोकान्त है। उस योजन के ऊपर के कोस के छठे भाग पर सिद्ध भगवान्, जो सादि, अपर्यवसित हैं, जो जन्म, बुढ़ापा, मृत्यु आदि अनेक योनियों की वेदना, संसार के भीषण दुःख, पुनः पुनः होने वाले गर्भवास रूप प्रपंच अतिक्रान्त कर चूके हैं, अपने शाश्वत, भविष्य में सदा सुस्थिर स्वरूप में संस्थित रहते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se nam bhamte! Taha sajogi sijjhai bujjhai muchchai parinivvai savvadukkhanamamtam karei? No inatthe samatthe. Se nam puvvameva sannissa pamchimdiyassa pajjattagassa jahannajogissa hettha asamkhejjagunaparihinam padhamam manajogam nirumbhai, tayanamtaram cha nam vidiyassa pajjattagassa jahannajogissa hettha, asamkhejja-gunaparihinam viiyam vaijogam nirumbhai, tayanamtaram cha nam suhumassa panagajivassa apajjattagassa jahanna-jogissa hettha asamkhejjagunaparihinam taiyam kayajogam nirumbhai. Se nam eenam uvaenam padhamam manajogam nirumbhai, nirumbhitta vayajogam nirumbhai, nirumbhitta kayajogam nirumbhai, nirumbhitta joganiroham karei, karetta ajogattam paunai, paunitta isimsahassapamchakkharuchcharanaddhae asamkhejjasamaiyam amto-muhuttiyam selesim padivajjai. Puvvaraiyagunasedhiyam cha nam kammam tise selesimaddhae asamkhejjahim gunasedhihim anamte kammamse khavayamto veyanijjauyanamagoe ichchete chattari kammamse jugavam khavei, khavetta oraliyateyakammaim savvahim vippajahanahim vippajahitta ujjusedhipadivanne aphusamana-gai uddha ekkasamaenam aviggahenam gamta sagarovautte sijjhai. Te nam tattha siddha havamti sadiya apajjavasiya asarira jivaghana damsanananovautta nitthiyattha nireyana niraya nimmala vitimira visuddha sasayamanagayaddham chitthamti. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–te nam tattha siddha bhavamti sadiya apajjavasiya asarira jivaghana damsanananovautta nitthiyattha nireyana niraya nimmala vitimira visuddha sasayamanagayaddham chitthamti? Goyama! Se jahanamae biyanam aggidaddhanam punaravi amkuruppatti na bhavai, evameva siddhanam kammabie daddhe punaravi jammuppatti na bhavai. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–te nam tattha siddha bhavamti sadiya apajjavasiya asarira jivaghana damsanananovautta nitthiyattha nireyana niraya nimmala vitimira visuddha sasayamanagayaddham chitthamti. Jiva nam bhamte! Sijjhamana kayarammi samghayane sijjhamti? Goyama! Vairosabhanarayasamghayane sijjhamti. Jiva nam bhamte! Sijjhamana kayarammi samthane sijjhamti? Goyama! Chhanham samthananam annayare samthane sijjhamti. Jiva nam bhamte! Sijjhamana kayarammi uchchatte sijjhamti? Goyama! Jahannenam sattarayanie ukkosenam pamchadhanusaie sijjhamti. Jiva nam bhamte! Sijjhamana kayarammi aue sijjhamti? Goyama! Jahannenam sairega-tthavasaue, ukkosenam puvvakodiyaue sijjhamti. Atthi nam bhamte! Imise rayanappahae pudhavie ahe siddha parivasamti? No inatthe samatthe. Evam java ahesattamae. Atthi nam bhamte! Sohammassa kappassa ahe siddha parivasamti? No inatthe samatthe. Evam savvesim puchchha–isanassa sanamkumarassa java achchuyassa gevejjavimananam anuttaravimananam. Atthi nam bhamte! Isipabbharae pudhavie ahe siddha parivasamti? No inatthe samatthe. Se kahim khai nam bhamte! Siddha parivasamti? Goyama! Imise rayanappahae pudhavie bahusamaramanijjao bhumibhagao uddham chamdima suriya ggahagana nakkhatta tararuvanam bahuim joyanaim, bahuim joyanasayaim, bahuim joyanasahassaim, bahuim joyanasayasahassaim, bahuo joyanakodio bahuo joyanakodakodio uddham duram uppaitta sohammisana sanamkumara mahimda bambha lamtaga mahasukka sahassara anaya panaya arana achchue tinni ya atthare gevijjavimanavasasae viivaitta vijaya vejayamta jayamta aparajiya savvatthasiddhassa ya mahavimanassa savvuvarillao thubhiyaggao duvalasajoyanaim abahae ettha nam isipabbhara nama pudhavi pannatta–... ... Panayalisam joyanasayasahassaim ayamavikkhambhenam, ega joyanakodi bayalisam cha sayasahassaim tisam cha sahassaim donni ya aunapanne joyanasae kimchi visesahie pariraenam. Isipabbharae nam pudhavie bahumajjhadesabhae atthajoyanie khette attha joyanaim bahallenam, tayanamtaram cha nam mayae-mayae parihayamani-parihayamani savvesu charima peramtesu machchhiyapattao tanuyatari amgulassa asamkhejjaibhagam bahallenam pannatta. Isipabbharae nam pudhavie duvalasa namadhejja pannatta, tam jaha–isii va isipabbharai va tanui va tanuyarii va siddhii va siddhalaei va muttii va muttalaei va loyaggei va loyaggathubhigai va loyaggapadibujjhanai va savvapana bhuya jiva sattasuhavahai va. Isipabbhara nam pudhavi seya samkhatala-vimalasolliya-munala dagaraya tusara gokkhira haravanna uttanayachhattasamthanasamthiya savvajjunasuvannagamai achchha sanha lanha ghattha mattha niraya nimmala nippamka nikkamkadachchhaya samarichiya suppabha pasadiya dasinijja abhiruva padiruva. Isipabbharae nam pudhavie siyae joyanammi logamto. Tassa joyanassa je se uvarille gaue, tassa nam gauyassa je se uvarille chhabbhage, tattha nam siddha bhagavamto sadiya apajjavasiya anegajai jara marana joni veyanam samsarakalamkalibhava-punabbhava-gabbhavasavasahi-pavamcham aikkamta sasaya-managayaddham chitthamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Kya sayogi siddha hote haim\? Yavat saba duhkhom ka anta karate haim\? Gautama ! Aisa nahim hota. Ve sabase pahale paryapta, samjnyi, pamchendriya jiva ke jaghanya manoyoga ke niche ke stara se asamkhyatagunahina manoyoga ka nirodha karate haim. Usake bada paryapta beindriya jiva ke jaghanya vachana – yoga ke niche ke stara se asamkhyatagunahina vachana – yoga ka nirodha karate haim. Tadanantara aparyapta – sukshma panaka jiva ke jaghanya yoga ke niche ke stara se asamkhyata guna hina kaya – yoga ka nirodha karate haim. Isa upaya ya upakrama dvara ve pahale manoyoga ka nirodha karate haim. Phira vachana – yoga ka nirodha karate haim. Kaya – yoga ka nirodha karate haim. Phira sarvatha yoganirodha karate haim. Isa prakara – yoga nirodha kara ve ayogatva prapta karate haim. Phira ishatsprishta pamcha hrasva akshara ke uchcharana ke asamkhyata kalavarti antarmuhurtta taka hone vali shaileshi avastha prapta karate haim. Usa shaileshi – kala mem purvavirachita guna – shreni ke rupa mem rahe karmom ko asamkhyata guna – shreniyom mem ananta karmamshom ke rupa mem kshina karate hue vedaniya ayushya, nama tatha gotra – eka satha kshaya karate haim. Phira audarika, taijasa tatha karmana sharira ka purna rupa se parityaga kara dete haim. Vaisa kara riju shreni pratipanna ho asprishyamana gati dvara eka samaya mem urdhva – gamana kara sakaropayoga mem siddha hote haim. Vaham sadi, aparyavasita, asharira, jivadhana, atmapradesha yukta, jnyana tatha darshana upayoga sahita, nishthitartha, nirejana, niraja, nirmala, vitimira, vishuddha, shashvatakala paryanta samsthita rahate haim. Bhagavan ! Vaham ve siddha hote haim, sadi – aparyavasita, yavat shashvatakala paryanta sthita rahate haim – ityadi apa kisa ashaya se pharamate haim\? Gautama ! Jaise agni se dagdha bijom ki punah amkurom ke rupa mem utpatti nahim hoti, usi prakara karma – bija dagdha hone ke karana siddhom ki bhi phira janmotpatti nahim hoti. Gautama ! Maim isi ashaya se yaha kaha raha hum ki siddha sadi, aparyavasita hote haim. Bhagavan ! Siddha hote haim\? Gautama ! Ve vajra – rishabha – naracha samhanana mem siddha hote haim. Bhagavan ! Siddha hote hue jiva kisa samsthana mem siddha hote haim\? Gautama ! Chhaha samsthanom mem se kisi bhi samsthana mem siddha ho sakate haim. Bhagavan ! Siddha hote hue jiva kitani avagahana mem siddha hote haim\? Gautama ! Jaghanya sata hatha tatha utkrishta – pamcha sau dhanusha ki avagahana mem siddha hote haim. Bhagavan ! Siddha hote hue jiva kitane ayushya mem siddha hote haim\? Gautama ! Kama se kama atha varsha se kuchha adhika ayushya mem tatha adhika se adhika karora purva ke ayushya mem siddha hote haim. Bhagavan ! Kya isa ratnaprabha prithvi ke niche siddha nivasa karate haim\? Nahim, aisa artha – thika nahim hai. Ratnaprabha ke satha – satha sharkaraprabha, balukaprabha, pankaprabha, tamahprabha tatha tamastamahprabha ke sambandha mem aisa hi samajhana chahie. Bhagavan ! Kya siddha saudharmakalpa ke niche nivasa karate haim\? Nahim, aisa abhipraya thika nahim hai. Ishana, sanatkumara yavat achyuta taka, graiveyaka vimanom tatha anuttara vimanom ke sambandha mem aisa hi samajhana chahie. Bhagavan ! Kya siddha ishatpragbhara prithvi ke niche nivasa karate haim\? Nahim, aisa abhipraya thika nahim hai. Bhagavan ! Phira siddha kaham nivasa karate haim\? Gautama ! Isa ratnaprabha bhumi ke bahusama ramaniya bhubhaga se upara, chandra, surya, grahagana, nakshatra tatha tarom ke bhavanom se bahuta yojana, bahuta saikarom yojana, bahuta hajarom yojana, bahuta lakhom yojana, bahuta karorom yojana tatha bahuta krorakrora yojana se urdhvatara saudharma, ishana, sanatkumara, mahendra, brahma, lantaka, mahashukra, sahasrara, anata, pranata, arana, achyuta kalpa tatha tina sau atharaha graiveyaka vimana – avasa se bhi upara vijaya, vaijayanta, jayanta, aparajita aura sarvarthasiddha mahavimana ke sarvochcha shikhara ke agrabhaga se baraha yojana ke antara para upara ishatpragbhara prithvi kahi gai hai. Vaha prithvi paimtalisa lakha yojana lambi tatha chauri hai. Usaki paridhi eka karora bayalisa lakha tisa hajara do sau unachasa yojana se kuchha adhika hai. Ishatpragbhara prithvi apane thika madhya bhaga mem atha yojana kshetra mem atha yojana moti hai. Tatpashchat motepana mem kramashah kuchha kuchha kama hoti hui sabase antima kinarom para makkhi ki pamkha se patali hai. Una antima kinarom ki motai amgula ke asamkhyatavem bhaga ke tulya hai. Ishatpragbhara prithvi ke baraha nama batalae gae haim – ishat, ishatpragbhara, tanu, tanutanu, siddhi, siddhalaya, mukti, muktalaya, lokagra, lokagrastupika, lokagrapatibodhana aura sarvapranabhutajivasattvasukhavaha. Ishatpragbhara prithvi darpanatala ke jaisi nirmala, solliya pushpa, kamalanala, jalakana, tushara, gaya ke dudha tatha hara ke samana shveta varnayukta hai. Vaha ulate chhatra jaise akara mem avasthita hai. Vaha arjuna svarna jaisi dyuti liye hue hai. Vaha akasha ya sphatika jaisi svachchha, shlakshna komala paramanu – skandhom se nishpanna hone ke karana komala tantuom se bune hue vastra ke samana mulayama, lashta, lalita akritiyukta, ghrishta, mrishta, niraja, nirmala, nishpamka shobhayukta, samarichika, prasadiya, darshaniya, abhirupa tatha pratirupa hai. Ishatpragbhara prithvi ke tala se utsodhamgula dvara eka yojana para lokanta hai. Usa yojana ke upara ke kosa ke chhathe bhaga para siddha bhagavan, jo sadi, aparyavasita haim, jo janma, burhapa, mrityu adi aneka yoniyom ki vedana, samsara ke bhishana duhkha, punah punah hone vale garbhavasa rupa prapamcha atikranta kara chuke haim, apane shashvata, bhavishya mem sada susthira svarupa mem samsthita rahate haim. |