Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005644 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
उपपात वर्णन |
Translated Chapter : |
उपपात वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 44 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ निग्गंइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी– जीवे णं भंते! असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते पावकम्मं अण्हाइ? हंता अण्हाइ। जीवे णं भंते! असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते मोहणिज्जं पावकम्मं अण्हाइ? हंता अण्हाइ। जीवे णं भंते! मोहणिज्जं कम्मं वेदेमाणे किं मोहणिज्जं कम्मं बंधइ? वेयणिज्जं कम्मं बंधइ? गोयमा! मोहणिज्जं पि कम्मं बंधइ, वेयणिज्जं पि कम्मं बंधइ, नन्नत्थ चरिममोहणिज्जं कम्मं वेदेमाणे वेयणिज्जं कम्मं बंधइ, नो मोहणिज्जं कम्मं बंधइ। जीवे णं भंते! असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते उस्सण्णं तसपाणघाई कालमासे कालं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ? हंता उववज्जइ। जीवे णं भंते! असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्च देवे सिया? गोयमा! अत्थेगइया देवे सिया, अत्थेगइया नो देवे सिया। से केणट्ठे भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया देवे सिया? अत्थेगइया नो देवे सिया? गोयमा! जे इमे जीवा गामागर-नयरनि-रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु अकामतण्हाए अकामछुहाए अकामबंभचेरवासेणं अकामअण्हाणग सीयायव दंसमसग सेय जल्ल मल पंक परितावेणं अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! दसवाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। से जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु मनुया भवंति, तं जहा–अंडुबद्धगा नियलबद्धगा हडिबद्धगा चारगबद्धगा हत्थछिन्नगा पायछिन्नगा कण्णछिन्नगा नक्कछिन्नगा ओट्ठछिन्नगा जिब्भछिन्नगा सीसछिन्नगा मुखछिन्नगा मज्झछिन्नगा वइकच्छछिन्नगा हियउप्पाडियगा नयनुप्पाडियगा दसनुप्पाडियगा वसनुप्पाडियगा तंदुलछिन्नगा कागणिमंसक्खावियगा ओलंबियगा लंबियगा घंसियगा घोलियगा फालियगा पीलियगा सूलाइयगा सूलभिन्नगा खारवत्तिया वज्झवत्तिया सीहपुच्छियगा दवग्गिदड्ढगा पंकोसन्नगा पंके खुत्तगा वलयमयगा वसट्टमयगा नियाणमयगा अंतोसल्लमयगा गिरिपडियगा तरुपडियगा मरुप-डियगा गिरिपक्खंदोलगा तरुपक्खंदोलगा मरुपक्खंदोलगा जलपवेसी जलणपवेसी विसभक्खियगा सत्थोवाडियगा वेहाणसिया गेद्धपट्ठगा कंतारमयगा दुब्भिक्खमयगा असंकिलिट्ठपरिणामा ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! बारसवाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। से जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संवाह सन्निवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा–पगइभद्दगा पगइउवसंता पगइपतनुकोहमानमायालोहा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा विनीया अम्मापिउसुस्सूसगा अम्मापिऊणं अणइक्कमणिज्जवयणा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणा बहूइं वासाइं आउयं पालेंति, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! चउद्दसवाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरि-सक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। से जाओ इमाओ गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संवाह सन्निवेसेसु इत्थियाओ भवंति, तं जहा–अंतोअंतेउरियाओ गयपइयाओ मयपइयाओ बालवि-हवाओ छड्डियल्लियाओ माइरक्खियाओ पियरक्खियाओ भायरक्खियाओ पइरक्खियाओ कुलघर-रक्खियाओ ससुरकुलरक्खियाओ परूढणह केस कक्खरोमाओ ववगयपुप्फगंधमल्लालंकाराओ अण्हाणग सेय जल्ल मल पंक परितावियाओ ववगय खीर दहिं नवणीय सप्पि तेल्ल गुल लोण महु मज्ज मंस परिचत्तकयाहाराओ अप्पिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गहाओ अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभ समारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणीओ अकामबंभचेरवासेणं तामेव पइसेज्जं णाइक्कमंति। ताओ णं इत्थियाओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहूइं वासाइं आउयं पालेंति पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! चउसट्ठिवाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। से जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु मनुया भवंति, तं जहा–दगबिइया दगतइया दगसत्तमा दगएक्कारसमा गोयम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढसावगप्पभितयो। तेसि णं मणुयाणं नो कप्पंति इमाओ नव रसविगईओ आहारेत्तए, तं जहा–खीरं दहिं नवणीयं सप्पिं तेल्लं फाणियं महुं मज्जं मंसं। नन्नत्थ एक्काए सरिसवविगईए। ते णं मणुया अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणा बहूइं वासाइं आउयं पालेंति, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! चउरासीइवाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। से जे इमे गंगाकूला वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा–होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सड्ढई थालई हुंबउट्ठा दंतुक्खलिया उम्मज्जगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपक्खाला दक्खिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा कूलधमगा मिगलुद्धगा हत्थितावसा उद्दंडगा दिसापोक्खिणो वाकवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो रुक्खमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुप्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडिय कंद मूल तय पत्त पुप्फ फलाहारा जलाभिसेयकढिणगाया आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्ठसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा बहूइं वासाइं परियागं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं जोइसिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! पलिओवमं वाससयसहस्समब्भ-हियं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। से जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–कंदप्पिया कुक्कुइया मोहरिया गीयरइप्पिया नच्चणसीला। ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा? हंता अत्थि। तेणं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। से जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु परिव्वाया भवंति, तं जहा–संखा जोगी काविला भिउव्वा हंसा परमहंसा बहुउदगा कुलिव्वया कण्हपरिव्वाया। तत्थ खलु इमे अट्ठ माहणपरिव्वाया भवंति, तं जहा– | ||
Sutra Meaning : | उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर एवं विपुल तप करने वाले थे, जो उराल साधना में सशक्त घोरगुण धारक, घोर तपस्वी, घोर ब्रह्मचर्यवासी, उत्क्षिप्तशरीर थे, जो विशाल तेजोलेश्या अपने शरीर के भीतर समेटे हुए थे, भगवान महावीर से न अधिक दूर न अधक समीप पर संस्थित हो, घुटने ऊंचे किये, मस्तक नीचे किये, ध्यान की मुद्रा में, संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अवस्थित थे। तब उन भगवान गौतम के मन में श्रद्धापूर्वक ईच्छा पैदा हुई, संशय – जिज्ञासा एवं कुतूहल पैदा हुआ। पुनः उनके मन में श्रद्धा का भाव उभरा, संशय उभरा, कुतूहल समुत्पन्न हुआ। उठकर जहाँ भगवान महावीर थे, आए। तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की, वन्दना – नमस्कार किया। भगवान के न अधिक समीप न अधिक दूर सूनने की ईच्छा रखते हुए, प्रणाम करते हुए, विनयपूर्वक सामने हाथ जोड़े हुए, उनकी पर्युपासना – करते हुए बोले। भगवन्! वह जीव, जो असंयत है, जो अविरत है, जिसने प्रत्याख्यान द्वारा पाप – कर्मों को प्रतिहत नहीं किया, जो सक्रिय है, जो असंवृत है, जो एकान्तदंड युक्त है, जो एकान्तबाल हैं, जो एकान्तसुप्त है, क्या वह पाप – कर्म से लिप्त होता है – हाँ, गौतम ! होता है। भगवन् ! वह जीव, जो असंयत है, जो अविरत है, जिससे प्रत्याख्यान द्वारा पाप कर्मों को प्रतिहत नहीं किया, जो सक्रिय हैं, जो असंवृत हैं, जो एकान्तदंडयुक्त हैं, जो एकान्त – बाल हैं, जो एकान्त – सुप्त हैं, क्या वह मोहनीय पाप – कर्म से लिप्त होता है – मोहनीय पाप – कर्म का बंध करता है ? हाँ गौतम ! करता है। भगवन् ! क्या जीव मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ मोहनीय कर्म का बंध करता है ? क्या वेदनीय कर्म का बंध करता है ? गौतम ! वह मोहनीय कर्म का बंध करता है, वेदनीय कर्म का भी बंध करता है। किन्तु चरम मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ जीव वेदनीय कर्म का ही बंध करता है, मोहनीय का नहीं। भगवन् ! जो जीव असंयत है, अविरत है, जिसने सम्यक्त्वपूर्वक पापकर्मों को प्रतिहत नहीं किया है, जो सक्रिय है, असंवृत है, एकान्त दण्ड है, एकान्तबाल है तथा एकान्तसुप्त है, त्रस – द्वीन्द्रिय आदि स्पन्दनशील, हिलने डुलनेवाले अथवा जिन्हें त्रास का वेदन करते हुए अनुभव किया जा सके, वैसे जीवों का प्रायः घात करता है – क्या वह मृत्यु – काल आने पर मरकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? हाँ, गौतम ! ऐसा होता है। भगवन् ! जिन्होंने संयम नहीं साधा, जो अवरित हैं, जिन्होंने प्रत्याख्यान द्वारा पाप – कर्मों को प्रतिहत नहीं किया, वे यहाँ से च्युत होकर आगे के जन्म में क्या देव होते हैं ? गौतम ! कईं देव होते हैं, कईं देव नहीं होते हैं। भगवन् ! आप किस अभिप्राय से ऐसा कहते हैं कि कईं देव होते हैं, कईं देव नहीं होते ? गौतम ! जो जीव मोक्ष की अभिलाषा के बिना या कर्म – क्षय के लक्ष्य के बिना ग्राम, आकर, नगर, खेट, गाँव, कर्बट, द्रोणमुख, मडंब, पत्तन, आश्रम, निगम, संवाह, सन्निवेश में तृषा, क्षुधा, ब्रह्मचर्य, अस्नान, शीत, आतप, डांस, स्वेद, जल्ल, मल्ल, पंक इन परितापों से अपने आपको थोड़ा या अधिक क्लेश देते हैं, कुछ समय तक अपने आप को क्लेशित कर मृत्यु का समय आने पर देह का त्याग कर वे वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी लोक में देव के रूप में पैदा होते हैं। वहाँ उनकी अपनी विशेष गति, स्थिति तथा उपपात होता है। भगवन् ! वहाँ उन देवों की स्थिति – आयु कितने समय की बतलाई गई है ? गौतम ! वहाँ उनकी स्थिति दस हजार वर्ष की बतलायी गई है। भगवन् ! क्या उन देवों की ऋद्धि, परिवार आदि संपत्ति, द्युति, यश – कीर्ति, बल, वीर्य, पुरुषकार, तथा पराक्रम – ये सब अपनी अपनी विशेषता के साथ होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा होता है। भगवन् ! क्या वे देव परलोक के आराधक होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। जो (ये) जीव ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडंब, पत्तन, आश्रम, निगम, संवाह, सन्निवेश, मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं, जिनके किसी अपराध के कारण काठ या लोहे के बंधन से हाथ पैर बाँध दिये जाते हैं, जो बेड़ियों से जकड़ दिये जाते हैं, जिनके पैर काठ के खोड़े में डाल दिये जाते हैं, जो कारागार में बंद कर दिये जाते हैं, जिनके हाथ, पैर, कान, नाक हैं, होठ, जिह्वाएं, मस्तक, मुँह, बायें कन्धे से लेकर दाहिनी काँख तक के देह – भाग मस्तक सहित विदीर्ण कर दिये जाते हैं, हृदय चीर दिये जाते हैं, आँखे नीकाल ली जाती हैं, दाँत तोड़ दिये जाते हैं, जिनके अंडकोष उखाड़ दिये जाते हैं, गर्दन तोड़ दी जाती है, चावलों की तरह जिनके शरीर के टुकड़े – टुकड़े कर दिये जाते हैं, जिनके शरीर का कोमल मांस उखाड़ कर जिन्हें खिलाया जाता है, जो रस्सी से बाँध कर कुए खड्डे आदि में लटका दिये जाते हैं, वृक्ष की शाखा में हाथ बाँध कर लटका दिये जाते हैं, चन्दन की तरह पथ्थर आदि पर घिस दिये जाते हैं, पात्र – स्थित दहीं की तरह जो मथ दिये जाते हैं, काठ की तरह कुल्हाड़े से फाड़ दिये जाते हैं, जो गन्ने की तरह कोल्हू में पेल दिये जाते हैं, जो सूली में पिरो दिये जाते हैं, जो सूली से बींध दिये जाते हैं – जिनके देह से लेकर मस्तक में से सूली नीकाल दी जाती है, जो खार के बर्तन में डाल दिये जाते हैं, जो – गीले चमड़े से बाँध दिये जाते हैं, जिनके जननेन्द्रिय काट दिये जाते हैं, जो दवाग्नि में जल जाते हैं, कीचड़ में डूब जाते हैं। संयम से भ्रष्ट होकर या भूख आदि से पीड़ित होकर मरते हैं, जो विषय – परतन्त्रता से पीड़ित या दुःखित होकर मरते हैं, जो सांसारिक ईच्छा पूर्ति के संकल्प के साथ अज्ञानमय तपपूर्वक मरते हैं, जो अन्तःशल्य को नीकाले बिना या भाले आदि से अपने आपको बेधकर मरते हैं, जो पर्वत से गिरकर मरते हैं, जो वृक्ष से गिरकर, मरुस्थल या निर्जल प्रदेश में, जो पर्वत से झंपापात कर, वृक्ष से छलांग लगा कर, मरुभूमि की बालू में गिरकर, जल में प्रवेश कर, अग्नि में प्रवेश कर, जहर खाकर, शस्त्रों से अपने को विदीर्ण कर और वृक्ष की डाली आदि से लटक कर फाँसी लगाकर मरते हैं, जो मरे हुए मनुष्य, हाथी, ऊंट, गधे आदि की देह में प्रविष्ट होकर गीधों की चांचों से विदारित होकर मरते हैं, जो जंगल में खोकर मर जाते हैं, दुर्भिक्ष में भूख, प्यास आदि से मर जाते हैं, यदि उनके परिणाम संक्लिष्ट हों तो उस प्रकार मृत्यु प्राप्त कर वे वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ उस लोक के अनुरूप उनकी गति, स्थिति तथा उत्पत्ति होती है, ऐसा बतलाया गया है। भगवन् ! उन देवों की वहाँ कितनी स्थिति होती है ? गौतम ! वहाँ उनकी स्थिति बारह हजार वर्ष की होती है। भगवन् ! उन देवों के वहाँ ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य तथा पुरुषकार – पराक्रम होता है या नहीं ? गौतम ! होता है। भगवन् ! क्या वे देव परलोक के आराधक होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। (वे) जो जीव ग्राम, आकर यावत् सन्निवेश में मनुष्यरूप में उत्पन्न होते हैं, जो प्रकृतिभद्र, शान्त, स्वभावतः क्रोध, मान, माया एवं लोभ की प्रतनुता लिये हुए, मृदु मार्दवसम्पन्न, स्वभावयुक्त, आलीन, आज्ञापालक, विनीत, माता – पिता की सेवा करने वाले, माता – पिता के वचनों का अतिक्रमण नहीं करने वाले, अल्पेच्छा, आवश्यकताएं रखने वाले, अल्पारंभ, अल्प परिग्रह, अल्पारंभ – अल्पसमारंभ बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हुए, आयुष्य पूरा कर, मृत्यु – काल आने पर देह – त्याग कर वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। अवशेष वर्णन पीछले सूत्र के सदृश है। केवल इतना अन्तर है – इनकी स्थिति – आयुष्यपरिमाण चौदह हजार वर्ष का होता है। जो ग्राम, सन्निवेश आदि में स्त्रियाँ होती हैं, जो अन्तःपुर के अन्दर निवास करती हों, जिनके पति परदेश गये हों, जिनके पति मर गये हों, बाल्यावस्था में ही विधवा हो गई हों, जो पतियों द्वारा परित्यक्त कर दी गई हों, जो मातृरक्षिता हों, जो पिता द्वारा रक्षित हों, जो भाइयों द्वारा रक्षित हों, जो कुलगृह द्वारा रक्षित हों, जो श्वसुर – कुल द्वारा रक्षित हों, जो पति या पिता आदि के मित्रों, अपने हितैषियों मामा, नाना आदि सम्बन्धियों, अपने सगोत्रीय देवर, जेठ आदि पारिवारिक जनों द्वारा रक्षित हों, विशेष संस्कार के अभाव में जिनके नख, केश, कांख के बाल बढ़ गये हों, जो धूप, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, मालाएं धारण नहीं करती हों, जो अस्नान, स्वेद जल्ल, मल्ल, पंक पारितापित हों, जो दूध दहीं मक्खन धृत तैल गुड़ नमक मधु मद्य और मांस रहित आहार करती हों, जिनकी ईच्छाएं बहुत कम हों, जिनके धन, धान्य आदि परिग्रह बहुत कम हो, जो अल्प आरम्भ समारंभ द्वारा अपनी जीविका चलाती हों, अकाम ब्रह्मचर्य का पालन करती हों, पति – शय्या का अतिक्रमण नहीं करती हों – इस प्रकार के आचरण द्वारा जीवनयापन करती हों, वे बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हुए, आयुष्य पूरा कर, मृत्यु काल आने पर देह – त्याग कर वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी में देवरूप में उत्पन्न होती हैं। प्राप्त देवलोक के अनुरूप उनकी गति, स्थिति तथा उत्पत्ति होती है। वहाँ उनकी स्थिति चौंसठ हजार वर्षों की होती है। जो ग्राम तथा सन्निवेश आदि पूर्वोक्त स्थानों में मनुष्य रूप में उत्पन्न होते हैं, जो एक भात तथा दूसरा जल, इन दो पदार्थों का आहार रूप में सेवन करने वाले, उदकतृतीय – भात आदि दो पदार्थ तथा तीसरे जल का सेवन करने वाले, उदकसप्तम, उदकैकादश, गौतम ! विशेष रूप से प्रशिक्षित ठिंगने बैल द्वारा विविध प्रकार के मनोरंजक प्रदर्शन प्रस्तुत कर भिक्षा मांगने वाले, गोव्रतिक, गृहधर्मी को ही कल्याणकारी मानने वाले एवं उसका अनुसरण करने वाले, धर्मचिन्तक, सभासद, विनयाश्रित भक्तिमार्गी, अक्रियावादी, वृद्ध, श्रावक, ब्राह्मण आदि, जो दूध, दहीं, मक्खन, घृत, तेल, गुड़, मधु, मद्य तथा माँस को अपने लिए अकल्प्य मानते हैं, सरसों के तैल के सिवाय इनमें से किसी का सेवन नहीं करते, जिनकी आकांक्षाएं बहुत कम होती है ऐसे मनुष्य पूर्व वर्णन के अनुरूप मरकर वानव्यन्तर देव होते हैं। वहाँ उनका आयुष्य ८४ हजार वर्ष का बतलाया गया है। गंगा के किनारे रहने वाले वानप्रस्थ तापस कईं प्रकार के होते हैं – जैसे होतृक, पोतृक, कौतृक, यज्ञ करने वाले, श्राद्ध करने वाले, पात्र धारण करने वाले, कुण्डी धारण करने वाले श्रमण, फल – भोजन करने वाले, उन्मज्जक, निमज्जक, संप्रक्षालक, दक्षिणकूलक, उत्तरकूलक, शंखध्मायक, कूलध्मायक, मृगलुब्धक, हस्ति – तापस, उद्दण्डक, दिशाप्रोक्षी, वृक्ष की छाल को वस्त्रों की तरह धारण करने वाले, बिलवासी, वेलवासी, जलवासी, वृक्षमूलक, अम्बुभक्षी, वायुभक्षी, शैवालभक्षी, मूलाहार, कन्दाहार, त्वचाहार, पत्राहार, पुष्पाहार, बीजाहार, अपने आप गिरे हुए, पृथक् हुए कन्द, मूल, छाल, पत्र, पुष्प तथा फल का आहार करने वाले, पंचाग्नि की आतापना से अपनी देह को अंगारों में पकी हुई सी, भाड़ में भुनी हुई सी बनाते हुए बहुत वर्षों तक वानप्रस्थ पर्याय का पालन करते हैं। मृत्यु – काल आने पर देह त्यागकर वे उत्कृष्ट ज्योतिष्क देवों में देव रूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ उनकी स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम – प्रमाण होती है। क्या वे परलोक के आराधक होते हैं ? नहीं ऐसा नहीं होता। अवशेष वर्णन पूर्व की तरह जानना चाहिए। (ये) जो ग्राम, सन्निवेश आदि में मनुष्य रूप में उत्पन्न होते हैं, प्रव्रजित होकर अनेक रूप में श्रमण होते हैं – जैसे कान्दर्पिक, कौकुचिक, मौखरिक, गीतरतिप्रिय, तथा नर्तनशील, जो अपने – अपने जीवन – क्रम के अनुसार आचरण करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण – जीवन का पालन करते हैं, पालन कर अन्त समय में अपने पाप – स्थानों का आलोचन – प्रतिक्रमण नहीं करते – वे मृत्युकाल आने पर देह – त्याग कर उत्कृष्ट सौधर्म – कल्प में – हास्यक्रीड़ा प्रधान देवों में उत्पन्न होते हैं। वहाँ उनकी गति आदि अपने पद के अनुरूप होती है। उनकी स्थति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है। जो ग्राम सन्निवेश आदि में अनेक प्रकार के परिव्राजक होते हैं, जैसे – सांख्य, योगी, कापिल, भार्गव, हंस, परमहंस, बहूदक तथा कुटीचर संज्ञक चार प्रकार के यति एवं कृष्ण परिव्राजक – उनमें आठ ब्राह्मण – परिव्राजक होते हैं, जो इस प्रकार हैं – | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare goyame gottenam sattussehe samachauramsasamthanasamthie vairarisahanarayasamghayane kanaga pulaga nighasa pamha gore uggatave dittatave tattatave mahatave orale ghore ghoragune ghoratavassi ghorabambhacheravasi uchchhudhasarire samkhittaviulateyalesse samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte uddhamjanu ahosire jhanakotthavagae samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam se bhagavam goyame jayasaddhe jayasamsae jayakouhalle, uppannasaddhe uppannasamsae uppannakouhalle, samjayasaddhe samjayasamsae samjayakouhalle, samuppannasaddhe samuppannasamsae samuppannakouhale utthae utthei, utthetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai niggami, vamditta namamsitta nachchasanne naidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliude pajjuvasamane evam vayasi– Jive nam bhamte! Asamjae avirae appadihayapachchakkhayapavakamme sakirie asamvude egamtadamde egamtabale egamtasutte pavakammam anhai? Hamta anhai. Jive nam bhamte! Asamjae avirae appadihayapachchakkhayapavakamme sakirie asamvude egamtadamde egamtabale egamtasutte mohanijjam pavakammam anhai? Hamta anhai. Jive nam bhamte! Mohanijjam kammam vedemane kim mohanijjam kammam bamdhai? Veyanijjam kammam bamdhai? Goyama! Mohanijjam pi kammam bamdhai, veyanijjam pi kammam bamdhai, nannattha charimamohanijjam kammam vedemane veyanijjam kammam bamdhai, no mohanijjam kammam bamdhai. Jive nam bhamte! Asamjae avirae appadihayapachchakkhayapavakamme sakirie asamvude egamtadamde egamtabale egamtasutte ussannam tasapanaghai kalamase kalam kichcha neraiesu uvavajjai? Hamta uvavajjai. Jive nam bhamte! Asamjae avirae appadihayapachchakkhayapavakamme io chue pechcha deve siya? Goyama! Atthegaiya deve siya, atthegaiya no deve siya. Se kenatthe bhamte! Evam vuchchai–atthegaiya deve siya? Atthegaiya no deve siya? Goyama! Je ime jiva gamagara-nayarani-rayahani kheda kabbada donamuha madamba pattanasama sambaha sannivesesu akamatanhae akamachhuhae akamabambhacheravasenam akamaanhanaga siyayava damsamasaga seya jalla mala pamka paritavenam appataro va bhujjataro va kalam appanam parikilesamti, parikilesitta kalamase kalam kichcha annayaresu vanamamtaresu devaloesu devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Dasavasasahassaim thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkaraparakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. Se je ime gamagara nayara nigama rayahani kheda kabbada donamuha madamba pattanasama sambaha sannivesesu manuya bhavamti, tam jaha–amdubaddhaga niyalabaddhaga hadibaddhaga charagabaddhaga hatthachhinnaga payachhinnaga kannachhinnaga nakkachhinnaga otthachhinnaga jibbhachhinnaga sisachhinnaga mukhachhinnaga majjhachhinnaga vaikachchhachhinnaga hiyauppadiyaga nayanuppadiyaga dasanuppadiyaga vasanuppadiyaga tamdulachhinnaga kaganimamsakkhaviyaga olambiyaga lambiyaga ghamsiyaga gholiyaga phaliyaga piliyaga sulaiyaga sulabhinnaga kharavattiya vajjhavattiya sihapuchchhiyaga davaggidaddhaga pamkosannaga pamke khuttaga valayamayaga vasattamayaga niyanamayaga amtosallamayaga giripadiyaga tarupadiyaga marupa-diyaga giripakkhamdolaga tarupakkhamdolaga marupakkhamdolaga jalapavesi jalanapavesi visabhakkhiyaga satthovadiyaga vehanasiya geddhapatthaga kamtaramayaga dubbhikkhamayaga asamkilitthaparinama te kalamase kalam kichcha annayaresu vanamamtaresu devaloesu devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Barasavasasahassaim thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkaraparakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. Se je ime gamagara nayara nigama rayahani kheda kabbada donamuha madamba pattanasama samvaha sannivesesu manuya bhavamti, tam jaha–pagaibhaddaga pagaiuvasamta pagaipatanukohamanamayaloha miumaddavasampanna allina viniya ammapiusussusaga ammapiunam anaikkamanijjavayana appichchha apparambha appapariggaha appenam arambhenam appenam samarambhenam appenam arambhasamarambhenam vittim kappemana bahuim vasaim auyam palemti, palitta kalamase kalam kichcha annayaresu vanamamtaresu devaloesu devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Chauddasavasasahassaim thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va puri-sakkaraparakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. Se jao imao gamagara nayara nigama rayahani kheda kabbada donamuha madamba pattanasama samvaha sannivesesu itthiyao bhavamti, tam jaha–amtoamteuriyao gayapaiyao mayapaiyao balavi-havao chhaddiyalliyao mairakkhiyao piyarakkhiyao bhayarakkhiyao pairakkhiyao kulaghara-rakkhiyao sasurakularakkhiyao parudhanaha kesa kakkharomao vavagayapupphagamdhamallalamkarao anhanaga seya jalla mala pamka paritaviyao vavagaya khira dahim navaniya sappi tella gula lona mahu majja mamsa parichattakayaharao appichchhao apparambhao appapariggahao appenam arambhenam appenam samarambhenam appenam arambha samarambhenam vittim kappemanio akamabambhacheravasenam tameva paisejjam naikkamamti. Tao nam itthiyao eyaruvenam viharenam viharamanio bahuim vasaim auyam palemti palitta kalamase kalam kichcha annayaresu vanamamtaresu devaloesu devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Chausatthivasasahassaim thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkaraparakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. Se je ime gamagara nayara nigama rayahani kheda kabbada donamuha madamba pattanasama sambaha sannivesesu manuya bhavamti, tam jaha–dagabiiya dagataiya dagasattama dagaekkarasama goyama govvaiya gihidhamma dhammachimtaga aviruddha viruddha vuddhasavagappabhitayo. Tesi nam manuyanam no kappamti imao nava rasavigaio aharettae, tam jaha–khiram dahim navaniyam sappim tellam phaniyam mahum majjam mamsam. Nannattha ekkae sarisavavigaie. Te nam manuya appichchha apparambha appapariggaha appenam arambhenam appenam samarambhenam appenam arambhasamarambhenam vittim kappemana bahuim vasaim auyam palemti, palitta kalamase kalam kichcha annayaresu vanamamtaresu devaloesu devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam thii pannatta? Goyama! Chaurasiivasasahassaim thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkaraparakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. Se je ime gamgakula vanapattha tavasa bhavamti, tam jaha–hottiya pottiya kottiya jannai saddhai thalai humbauttha damtukkhaliya ummajjaga sammajjaga nimajjaga sampakkhala dakkhinakulaga uttarakulaga samkhadhamaga kuladhamaga migaluddhaga hatthitavasa uddamdaga disapokkhino vakavasino bilavasino jalavasino rukkhamuliya ambubhakkhino vaubhakkhino sevalabhakkhino mulahara kamdahara tayahara pattahara pupphahara phalahara biyahara parisadiya kamda mula taya patta puppha phalahara jalabhiseyakadhinagaya ayavanahim pamchaggitavehim imgalasolliyam kamdusolliyam katthasolliyam piva appanam karemana bahuim vasaim pariyagam paunamti, paunitta kalamase kalam kichcha ukkosenam joisiesu devesu devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Paliovamam vasasayasahassamabbha-hiyam thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkaraparakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. Se je ime gamagara nayara nigama rayahani kheda kabbada donamuha madamba pattanasama sambaha sannivesesu pavvaiya samana bhavamti, tam jaha–kamdappiya kukkuiya mohariya giyaraippiya nachchanasila. Te nam eenam viharenam viharamana bahuim vasaim samannapariyagam paunamti, paunitta tassa thanassa analoiyapadikkamta kalamase kalam kichcha ukkosenam sohamme kappe kamdappiesu devesu devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Paliovamam vasasayasahassamabbhahiyam thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkaraparakkamei va? Hamta atthi. Tenam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. Se je ime gamagara nayara nigama rayahani kheda kabbada donamuha madamba pattanasama sambaha sannivesesu parivvaya bhavamti, tam jaha–samkha jogi kavila bhiuvva hamsa paramahamsa bahuudaga kulivvaya kanhaparivvaya. Tattha khalu ime attha mahanaparivvaya bhavamti, tam jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala, usa samaya shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha antevasi gautamagotriya indrabhuti namaka anagara, jinaki deha ki umchai sata hatha thi, jo samachaturasra – samsthana samsthita the – jo vajra – rishabha – naracha – samhanana the, kasauti para khachita svarna – rekha ki abha lie hue kamala ke samana jo gaura varna the, jo ugra tapasvi the, dipta tapasvi the, tapta tapasvi, jo kathora evam vipula tapa karane vale the, jo urala sadhana mem sashakta ghoraguna dharaka, ghora tapasvi, ghora brahmacharyavasi, utkshiptasharira the, jo vishala tejoleshya apane sharira ke bhitara samete hue the, bhagavana mahavira se na adhika dura na adhaka samipa para samsthita ho, ghutane umche kiye, mastaka niche kiye, dhyana ki mudra mem, samyama aura tapa se atma ko bhavita karate hue avasthita the. Taba una bhagavana gautama ke mana mem shraddhapurvaka ichchha paida hui, samshaya – jijnyasa evam kutuhala paida hua. Punah unake mana mem shraddha ka bhava ubhara, samshaya ubhara, kutuhala samutpanna hua. Uthakara jaham bhagavana mahavira the, ae. Tina bara adakshina – pradakshina ki, vandana – namaskara kiya. Bhagavana ke na adhika samipa na adhika dura sunane ki ichchha rakhate hue, pranama karate hue, vinayapurvaka samane hatha jore hue, unaki paryupasana – karate hue bole. Bhagavan! Vaha jiva, jo asamyata hai, jo avirata hai, jisane pratyakhyana dvara papa – karmom ko pratihata nahim kiya, jo sakriya hai, jo asamvrita hai, jo ekantadamda yukta hai, jo ekantabala haim, jo ekantasupta hai, kya vaha papa – karma se lipta hota hai – ham, gautama ! Hota hai. Bhagavan ! Vaha jiva, jo asamyata hai, jo avirata hai, jisase pratyakhyana dvara papa karmom ko pratihata nahim kiya, jo sakriya haim, jo asamvrita haim, jo ekantadamdayukta haim, jo ekanta – bala haim, jo ekanta – supta haim, kya vaha mohaniya papa – karma se lipta hota hai – mohaniya papa – karma ka bamdha karata hai\? Ham gautama ! Karata hai. Bhagavan ! Kya jiva mohaniya karma ka vedana karata hua mohaniya karma ka bamdha karata hai\? Kya vedaniya karma ka bamdha karata hai\? Gautama ! Vaha mohaniya karma ka bamdha karata hai, vedaniya karma ka bhi bamdha karata hai. Kintu charama mohaniya karma ka vedana karata hua jiva vedaniya karma ka hi bamdha karata hai, mohaniya ka nahim. Bhagavan ! Jo jiva asamyata hai, avirata hai, jisane samyaktvapurvaka papakarmom ko pratihata nahim kiya hai, jo sakriya hai, asamvrita hai, ekanta danda hai, ekantabala hai tatha ekantasupta hai, trasa – dvindriya adi spandanashila, hilane dulanevale athava jinhem trasa ka vedana karate hue anubhava kiya ja sake, vaise jivom ka prayah ghata karata hai – kya vaha mrityu – kala ane para marakara nairayikom mem utpanna hota hai\? Ham, gautama ! Aisa hota hai. Bhagavan ! Jinhomne samyama nahim sadha, jo avarita haim, jinhomne pratyakhyana dvara papa – karmom ko pratihata nahim kiya, ve yaham se chyuta hokara age ke janma mem kya deva hote haim\? Gautama ! Kaim deva hote haim, kaim deva nahim hote haim. Bhagavan ! Apa kisa abhipraya se aisa kahate haim ki kaim deva hote haim, kaim deva nahim hote\? Gautama ! Jo jiva moksha ki abhilasha ke bina ya karma – kshaya ke lakshya ke bina grama, akara, nagara, kheta, gamva, karbata, dronamukha, madamba, pattana, ashrama, nigama, samvaha, sannivesha mem trisha, kshudha, brahmacharya, asnana, shita, atapa, damsa, sveda, jalla, malla, pamka ina paritapom se apane apako thora ya adhika klesha dete haim, kuchha samaya taka apane apa ko kleshita kara mrityu ka samaya ane para deha ka tyaga kara ve vanavyantara devalokom mem se kisi loka mem deva ke rupa mem paida hote haim. Vaham unaki apani vishesha gati, sthiti tatha upapata hota hai. Bhagavan ! Vaham una devom ki sthiti – ayu kitane samaya ki batalai gai hai\? Gautama ! Vaham unaki sthiti dasa hajara varsha ki batalayi gai hai. Bhagavan ! Kya una devom ki riddhi, parivara adi sampatti, dyuti, yasha – kirti, bala, virya, purushakara, tatha parakrama – ye saba apani apani visheshata ke satha hote haim\? Ham, gautama ! Aisa hota hai. Bhagavan ! Kya ve deva paraloka ke aradhaka hote haim\? Gautama ! Aisa nahim hota. Jo (ye) jiva grama, akara, nagara, kheta, karbata, dronamukha, madamba, pattana, ashrama, nigama, samvaha, sannivesha, manushya ke rupa mem janma lete haim, jinake kisi aparadha ke karana katha ya lohe ke bamdhana se hatha paira bamdha diye jate haim, jo beriyom se jakara diye jate haim, jinake paira katha ke khore mem dala diye jate haim, jo karagara mem bamda kara diye jate haim, jinake hatha, paira, kana, naka haim, hotha, jihvaem, mastaka, mumha, bayem kandhe se lekara dahini kamkha taka ke deha – bhaga mastaka sahita vidirna kara diye jate haim, hridaya chira diye jate haim, amkhe nikala li jati haim, damta tora diye jate haim, jinake amdakosha ukhara diye jate haim, gardana tora di jati hai, chavalom ki taraha jinake sharira ke tukare – tukare kara diye jate haim, jinake sharira ka komala mamsa ukhara kara jinhem khilaya jata hai, jo rassi se bamdha kara kue khadde adi mem lataka diye jate haim, vriksha ki shakha mem hatha bamdha kara lataka diye jate haim, chandana ki taraha paththara adi para ghisa diye jate haim, patra – sthita dahim ki taraha jo matha diye jate haim, katha ki taraha kulhare se phara diye jate haim, jo ganne ki taraha kolhu mem pela diye jate haim, jo suli mem piro diye jate haim, jo suli se bimdha diye jate haim – jinake deha se lekara mastaka mem se suli nikala di jati hai, jo khara ke bartana mem dala diye jate haim, jo – gile chamare se bamdha diye jate haim, jinake jananendriya kata diye jate haim, jo davagni mem jala jate haim, kichara mem duba jate haim. Samyama se bhrashta hokara ya bhukha adi se pirita hokara marate haim, jo vishaya – paratantrata se pirita ya duhkhita hokara marate haim, jo samsarika ichchha purti ke samkalpa ke satha ajnyanamaya tapapurvaka marate haim, jo antahshalya ko nikale bina ya bhale adi se apane apako bedhakara marate haim, jo parvata se girakara marate haim, jo vriksha se girakara, marusthala ya nirjala pradesha mem, jo parvata se jhampapata kara, vriksha se chhalamga laga kara, marubhumi ki balu mem girakara, jala mem pravesha kara, agni mem pravesha kara, jahara khakara, shastrom se apane ko vidirna kara aura vriksha ki dali adi se lataka kara phamsi lagakara marate haim, jo mare hue manushya, hathi, umta, gadhe adi ki deha mem pravishta hokara gidhom ki chamchom se vidarita hokara marate haim, jo jamgala mem khokara mara jate haim, durbhiksha mem bhukha, pyasa adi se mara jate haim, yadi unake parinama samklishta hom to usa prakara mrityu prapta kara ve vanavyantara devalokom mem se kisi mem devarupa mem utpanna hote haim. Vaham usa loka ke anurupa unaki gati, sthiti tatha utpatti hoti hai, aisa batalaya gaya hai. Bhagavan ! Una devom ki vaham kitani sthiti hoti hai\? Gautama ! Vaham unaki sthiti baraha hajara varsha ki hoti hai. Bhagavan ! Una devom ke vaham riddhi, dyuti, yasha, bala, virya tatha purushakara – parakrama hota hai ya nahim\? Gautama ! Hota hai. Bhagavan ! Kya ve deva paraloka ke aradhaka hote haim\? Gautama ! Aisa nahim hota. (ve) jo jiva grama, akara yavat sannivesha mem manushyarupa mem utpanna hote haim, jo prakritibhadra, shanta, svabhavatah krodha, mana, maya evam lobha ki pratanuta liye hue, mridu mardavasampanna, svabhavayukta, alina, ajnyapalaka, vinita, mata – pita ki seva karane vale, mata – pita ke vachanom ka atikramana nahim karane vale, alpechchha, avashyakataem rakhane vale, alparambha, alpa parigraha, alparambha – alpasamarambha bahuta varshom ka ayushya bhogate hue, ayushya pura kara, mrityu – kala ane para deha – tyaga kara vanavyantara devalokom mem se kisi mem devarupa mem utpanna hote haim. Avashesha varnana pichhale sutra ke sadrisha hai. Kevala itana antara hai – inaki sthiti – ayushyaparimana chaudaha hajara varsha ka hota hai. Jo grama, sannivesha adi mem striyam hoti haim, jo antahpura ke andara nivasa karati hom, jinake pati paradesha gaye hom, jinake pati mara gaye hom, balyavastha mem hi vidhava ho gai hom, jo patiyom dvara parityakta kara di gai hom, jo matrirakshita hom, jo pita dvara rakshita hom, jo bhaiyom dvara rakshita hom, jo kulagriha dvara rakshita hom, jo shvasura – kula dvara rakshita hom, jo pati ya pita adi ke mitrom, apane hitaishiyom mama, nana adi sambandhiyom, apane sagotriya devara, jetha adi parivarika janom dvara rakshita hom, vishesha samskara ke abhava mem jinake nakha, kesha, kamkha ke bala barha gaye hom, jo dhupa, pushpa, sugandhita padartha, malaem dharana nahim karati hom, jo asnana, sveda jalla, malla, pamka paritapita hom, jo dudha dahim makkhana dhrita taila gura namaka madhu madya aura mamsa rahita ahara karati hom, jinaki ichchhaem bahuta kama hom, jinake dhana, dhanya adi parigraha bahuta kama ho, jo alpa arambha samarambha dvara apani jivika chalati hom, akama brahmacharya ka palana karati hom, pati – shayya ka atikramana nahim karati hom – isa prakara ke acharana dvara jivanayapana karati hom, ve bahuta varshom ka ayushya bhogate hue, ayushya pura kara, mrityu kala ane para deha – tyaga kara vanavyantara devalokom mem se kisi mem devarupa mem utpanna hoti haim. Prapta devaloka ke anurupa unaki gati, sthiti tatha utpatti hoti hai. Vaham unaki sthiti chaumsatha hajara varshom ki hoti hai. Jo grama tatha sannivesha adi purvokta sthanom mem manushya rupa mem utpanna hote haim, jo eka bhata tatha dusara jala, ina do padarthom ka ahara rupa mem sevana karane vale, udakatritiya – bhata adi do padartha tatha tisare jala ka sevana karane vale, udakasaptama, udakaikadasha, gautama ! Vishesha rupa se prashikshita thimgane baila dvara vividha prakara ke manoramjaka pradarshana prastuta kara bhiksha mamgane vale, govratika, grihadharmi ko hi kalyanakari manane vale evam usaka anusarana karane vale, dharmachintaka, sabhasada, vinayashrita bhaktimargi, akriyavadi, vriddha, shravaka, brahmana adi, jo dudha, dahim, makkhana, ghrita, tela, gura, madhu, madya tatha mamsa ko apane lie akalpya manate haim, sarasom ke taila ke sivaya inamem se kisi ka sevana nahim karate, jinaki akamkshaem bahuta kama hoti hai aise manushya purva varnana ke anurupa marakara vanavyantara deva hote haim. Vaham unaka ayushya 84 hajara varsha ka batalaya gaya hai. Gamga ke kinare rahane vale vanaprastha tapasa kaim prakara ke hote haim – jaise hotrika, potrika, kautrika, yajnya karane vale, shraddha karane vale, patra dharana karane vale, kundi dharana karane vale shramana, phala – bhojana karane vale, unmajjaka, nimajjaka, samprakshalaka, dakshinakulaka, uttarakulaka, shamkhadhmayaka, kuladhmayaka, mrigalubdhaka, hasti – tapasa, uddandaka, dishaprokshi, vriksha ki chhala ko vastrom ki taraha dharana karane vale, bilavasi, velavasi, jalavasi, vrikshamulaka, ambubhakshi, vayubhakshi, shaivalabhakshi, mulahara, kandahara, tvachahara, patrahara, pushpahara, bijahara, apane apa gire hue, prithak hue kanda, mula, chhala, patra, pushpa tatha phala ka ahara karane vale, pamchagni ki atapana se apani deha ko amgarom mem paki hui si, bhara mem bhuni hui si banate hue bahuta varshom taka vanaprastha paryaya ka palana karate haim. Mrityu – kala ane para deha tyagakara ve utkrishta jyotishka devom mem deva rupa mem utpanna hote haim. Vaham unaki sthiti eka lakha varsha adhika eka palyopama – pramana hoti hai. Kya ve paraloka ke aradhaka hote haim\? Nahim aisa nahim hota. Avashesha varnana purva ki taraha janana chahie. (ye) jo grama, sannivesha adi mem manushya rupa mem utpanna hote haim, pravrajita hokara aneka rupa mem shramana hote haim – jaise kandarpika, kaukuchika, maukharika, gitaratipriya, tatha nartanashila, jo apane – apane jivana – krama ke anusara acharana karate hue bahuta varshom taka shramana – jivana ka palana karate haim, palana kara anta samaya mem apane papa – sthanom ka alochana – pratikramana nahim karate – ve mrityukala ane para deha – tyaga kara utkrishta saudharma – kalpa mem – hasyakrira pradhana devom mem utpanna hote haim. Vaham unaki gati adi apane pada ke anurupa hoti hai. Unaki sthati eka lakha varsha adhika eka palyopama ki hoti hai. Jo grama sannivesha adi mem aneka prakara ke parivrajaka hote haim, jaise – samkhya, yogi, kapila, bhargava, hamsa, paramahamsa, bahudaka tatha kutichara samjnyaka chara prakara ke yati evam krishna parivrajaka – unamem atha brahmana – parivrajaka hote haim, jo isa prakara haim – |