Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005524 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-४ शकट |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-४ शकट |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 24 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू-अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं साहंजणी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा। तीसे णं साहंजनीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए देवरमणे नामं उज्जाने होत्था। तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे। तत्थ णं साहंजणीए नयरीए महचंदे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे। तस्स णं महचंदस्स रन्नो सुसेने नामं अमच्चे होत्था–साम भेय दंड उवप्पयाण नीति सुप्पउत्त नयविहण्णू। तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुदरिसणा नामं गणिया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुभद्दे नामं सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा नामं भारिया होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा। तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सगडे नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा राया य निग्गए। धम्मो कहिओ। परिसा गया तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव रायमग्गं ओगाढे। तत्थ णं हत्थी, आसे, अन्ने य बहवे पुरिसे पासइ। तेसिं च णं पुरिसाणं मज्झगयं पासइ एगं सइत्थियं पुरिसं अवओडयबंधणं उक्खित्त कण्णनासं जाव खंडपडहेण उग्घोसिज्जमाणं इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ–नो खलु देवानुप्पिया! सगडस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाइं कम्माइं अवरज्झंति। तए णं भगवओ गोयमस्स चिंता तहेव जाव भगवं वागरेइ–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे छगलपुरे नामं नयरे होत्था। तत्थ णं सीहगिरी नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे। तत्थ णं छगलपुरे नयरे छन्निए नामं छागलिए परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्स णं छन्नियस्स छागलियस्स बहवे [बहूणि?] अयाण य एलयाण य रोज्झाण य वसभाण य ससयाण य सूयराण य पसयाण य सिंहाण य हरिणाण य मयूराण य महिसाण य सयबद्धाणि सहस्सबद्धाणि य जूहाणि वाडगंसि संनिरुद्धाइं चिट्ठंति। अन्ने य तत्थ बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्त वेयणा बहवे अए य जाव महिसे य सारक्खमाणा संगोवेमाणा चिट्ठंति। अन्ने य से बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्त वेयणा बहवे अए य जाव महिसे य जीवियाओ ववरोवेंति, ववरोवेत्ता मंसाइं कप्पणी कप्पियाइं करेंति, करेत्ता छन्नियस्स छागलियस्स उवणेंति। अन्ने य से बहवे पुरिसा ताइं बहुयाइं अयमंसाइं जाव महिसमंसाइ य तवएसु य कवल्लीसु य कंदुसु य भज्जणेसु य इंगालेसु य तलेंति य भज्जेंति य सोल्लेंति य, तलेत्ता य भज्जेत्ता य सोल्लेत्ता य तओ रायमग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। अप्पणा वि य णं से छन्निए छागलिए तेहिं बहूहिं अयमंसेहि य जाव महिसमंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। तए णं से छन्निए छागलिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता सत्त वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा चोत्थीए पुढवीए उक्कोसेणं दससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। | ||
Sutra Meaning : | जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया – भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने, जो यावत् निर्वाणप्राप्त हैं, यदि तीसरे अध्ययन का यह अर्थ कहा तो भगवान ने चौथे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? तब सुधर्मा स्वामी ने जम्बू अनगार से इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! उस काल उस समय में साहंजनी नाम की एक ऋद्ध – भवनादि की सम्पत्ति से सम्पन्न, स्तिमित तथा समृद्ध नगरी थी। उसके बाहर ईशानकोण में देवरमण नाम का एक उद्यान था। उस उद्यान में अमोघ नामक यक्ष का एक पुरातन यक्षायतन था। उस नगरी में महचन्द्र राजा था। वह हिमालय के समान दूसरे राजाओं से महान था। उस महचन्द्र नरेश का सुषेण मन्त्री था, जो सामनीति, भेदनीति, दण्डनीति और उपप्रदाननीति के प्रयोग को और न्याय नीतियों की विधि को जानने वाला तथा निग्रह में कुशल था। उस नगर में सुदर्शना नाम की एक सुप्रसिद्ध गणिका – वेश्या रहती थी। उस नगरी में सुभद्र नाम का सार्थवाह था। उस सुभद्र सार्थवाह की निर्दोष सर्वाङ्गसुन्दर शरीरवाली भद्रा भार्या थी। समुद्र सार्थवाह का पुत्र व भद्रा भार्या का आत्मज शकट नाम का बालक था। वह भी पंचेन्द्रियों से परिपूर्ण – सुन्दर शरीर से सम्पन्न था। उस काल, उस समय साहंजनी नगरी के बाहर देवरमण उद्यान में श्रमण भगवान महावीर पधारे। नगर से जनता और राजा नीकले। भगवान ने धर्मदेशना दी। राजा और प्रजा सब वापस लौट गए। उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर ने ज्येष्ठ अन्तेवासी श्री गौतम स्वामी यावत् राजमार्ग में पधारे। वहाँ उन्होंने हाथी, घोड़े और बहुतेरे पुरुषों को देखा। उन पुरुषों के मध्य में अवकोटक बन्धन से युक्त, कटे कान और नाक वाले यावत् उद्घोषणा सहित एक सस्त्रीक पुरुष को देखा। देखकर गौतम स्वामी ने पूर्ववत् विचार किया और भगवान से आकर प्रश्न किया। भगवान ने इस प्रकार कहा – हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इसी जम्बूद्वीप अन्तर्गत भारतवर्ष में छगलपुर नगर था। वहाँ सिंहगिरि राजा राज्य करता था। वह हिमालयादि पर्वतों के समान महान था। उस नगर में छण्णिक नामक एक छागलिक कसाई रहता था, जो धनाढ्य, अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द था। उस छण्णिक छागलिक के अनेक अजो, रोझो, वृषभों, खरगोशो, मृगशिशुओं, शूकरो, सिंहो, हरिणो, मयूरो और महषि के शतबद्ध तथा सहस्रबद्ध यूथ, बाड़े में सम्यक् प्रकार से रोके हुए रहते थे। वहाँ जिनको वेतन के रूप में भोजन तथा रुपया पैसा दिया जाता था, ऐसे उसके अनेक आदमी अजादि और महिषादि पशुओं का संरक्षण – संगोपन करते हुए उन पशुओं को बाड़े में रोके रहते थे। अनेक नौकर पुरुष सैकड़ों तथा हजारों अजों तथा भैसों को मारकर उनके माँसों को कैंची तथा छूरी से काटकर छण्णिक छागलिक को दिया करते थे। उसके अन्य अनेक नौकर उन बहुत से बकरों के माँसों तथा महिषों के माँसों को तवों पर, कड़ाहों में, हांडों में अथवा कड़ाहियों या लोहे के पात्रविशेषों में, भूनने के पात्रों में, अंगारों पर तलते, भूनते और शूल द्वारा पकाते हुए अपनी आजीविका चलाते थे। वह छण्णिक स्वयं भी उन माँसों के साथ सूरा आदि पाँच प्रकार के मद्यों का आस्वादन विस्वादन करता हुआ वह जीवनयापन कर रहा था। उस छण्णिक छागलिक ने अजादि पशुओं के माँसों को खाना तथा मदिराओं का पीना अपना कर्तव्य बना लिया था। इन्हीं पापपूर्ण प्रवृत्तियों में वह सदा तत्पर रहता था। और ऐसे ही पापपूर्ण कर्मों को उसने अपना सर्वोत्तम आचरण बना रखा था। अत एव वह क्लेशोत्पादक और कालुष्य पूर्ण अत्यधिक क्लिष्ट कर्मों का उपार्जन कर, सात सौ वर्ष की आयु पालकर कालमास में काल करके चतुर्थ नरक में, उत्कृष्ट दस सागरोपम स्थिति वाले नारकियों में नारक रूप से उत्पन्न हुआ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam tachchassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte, chautthassa nam bhamte! Ajjhayanassa samanenam bhagavaya mahavirenam ke atthe pannatte? Tae nam se suhamme anagare jambu-anagaram evam vayasi–evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam sahamjani namam nayari hottha–riddhatthimiyasamiddha. Tise nam sahamjanie nayarie bahiya uttarapuratthime disibhae devaramane namam ujjane hottha. Tattha nam amohassa jakkhassa jakkhayayane hottha–porane. Tattha nam sahamjanie nayarie mahachamde namam raya hottha–mahayahimavamta mahamta malaya mamdara mahimdasare. Tassa nam mahachamdassa ranno susene namam amachche hottha–sama bheya damda uvappayana niti suppautta nayavihannu. Tattha nam sahamjanie nayarie sudarisana namam ganiya hottha–vannao. Tattha nam sahamjanie nayarie subhadde namam satthavahe hottha–addhe. Tassa nam subhaddassa satthavahassa bhadda namam bhariya hottha–ahina padipunna pamchimdiyasarira. Tassa nam subhaddassa satthavahassa putte bhaddae bhariyae attae sagade namam darae hottha–ahina padipunna pamchimdiyasarire. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire samosarie. Parisa raya ya niggae. Dhammo kahio. Parisa gaya Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi java rayamaggam ogadhe. Tattha nam hatthi, ase, anne ya bahave purise pasai. Tesim cha nam purisanam majjhagayam pasai egam saitthiyam purisam avaodayabamdhanam ukkhitta kannanasam java khamdapadahena ugghosijjamanam imam cha nam eyaruvam ugghosanam sunei–no khalu devanuppiya! Sagadassa daragassa kei raya va rayaputto va avarajjhai, appano se sayaim kammaim avarajjhamti. Tae nam bhagavao goyamassa chimta taheva java bhagavam vagarei–evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase chhagalapure namam nayare hottha. Tattha nam sihagiri namam raya hottha–mahayahimavamta mahamta malaya mamdara mahimdasare. Tattha nam chhagalapure nayare chhannie namam chhagalie parivasai–addhe java aparibhue, ahammie java duppadiyanamde. Tassa nam chhanniyassa chhagaliyassa bahave [bahuni?] ayana ya elayana ya rojjhana ya vasabhana ya sasayana ya suyarana ya pasayana ya simhana ya harinana ya mayurana ya mahisana ya sayabaddhani sahassabaddhani ya juhani vadagamsi samniruddhaim chitthamti. Anne ya tattha bahave purisa dinnabhai bhatta veyana bahave ae ya java mahise ya sarakkhamana samgovemana chitthamti. Anne ya se bahave purisa dinnabhai bhatta veyana bahave ae ya java mahise ya jiviyao vavarovemti, vavarovetta mamsaim kappani kappiyaim karemti, karetta chhanniyassa chhagaliyassa uvanemti. Anne ya se bahave purisa taim bahuyaim ayamamsaim java mahisamamsai ya tavaesu ya kavallisu ya kamdusu ya bhajjanesu ya imgalesu ya talemti ya bhajjemti ya sollemti ya, taletta ya bhajjetta ya solletta ya tao rayamaggamsi vittim kappemana viharamti. Appana vi ya nam se chhannie chhagalie tehim bahuhim ayamamsehi ya java mahisamamsehi ya sollehi ya taliehi ya bhajjiehi ya suram cha mahum cha meragam cha jaim cha sidhum cha pasannam cha asaemane visaemane paribhaemane paribhumjemane viharai. Tae nam se chhannie chhagalie eyakamme eyappahane eyavijje eyasamayare subahum pavakammam kalikalusam samajjinitta satta vasasayaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha chotthie pudhavie ukkosenam dasasagarovamathiiesu neraiesu neraiyattae uvavanne. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jambusvami ne prashna kiya – bhante ! Yadi shramana bhagavana mahavira ne, jo yavat nirvanaprapta haim, yadi tisare adhyayana ka yaha artha kaha to bhagavana ne chauthe adhyayana ka kya artha kaha hai\? Taba sudharma svami ne jambu anagara se isa prakara kaha – he jambu ! Usa kala usa samaya mem sahamjani nama ki eka riddha – bhavanadi ki sampatti se sampanna, stimita tatha samriddha nagari thi. Usake bahara ishanakona mem devaramana nama ka eka udyana tha. Usa udyana mem amogha namaka yaksha ka eka puratana yakshayatana tha. Usa nagari mem mahachandra raja tha. Vaha himalaya ke samana dusare rajaom se mahana tha. Usa mahachandra naresha ka sushena mantri tha, jo samaniti, bhedaniti, dandaniti aura upapradananiti ke prayoga ko aura nyaya nitiyom ki vidhi ko janane vala tatha nigraha mem kushala tha. Usa nagara mem sudarshana nama ki eka suprasiddha ganika – veshya rahati thi. Usa nagari mem subhadra nama ka sarthavaha tha. Usa subhadra sarthavaha ki nirdosha sarvangasundara shariravali bhadra bharya thi. Samudra sarthavaha ka putra va bhadra bharya ka atmaja shakata nama ka balaka tha. Vaha bhi pamchendriyom se paripurna – sundara sharira se sampanna tha. Usa kala, usa samaya sahamjani nagari ke bahara devaramana udyana mem shramana bhagavana mahavira padhare. Nagara se janata aura raja nikale. Bhagavana ne dharmadeshana di. Raja aura praja saba vapasa lauta gae. Usa kala tatha usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ne jyeshtha antevasi shri gautama svami yavat rajamarga mem padhare. Vaham unhomne hathi, ghore aura bahutere purushom ko dekha. Una purushom ke madhya mem avakotaka bandhana se yukta, kate kana aura naka vale yavat udghoshana sahita eka sastrika purusha ko dekha. Dekhakara gautama svami ne purvavat vichara kiya aura bhagavana se akara prashna kiya. Bhagavana ne isa prakara kaha – he gautama ! Usa kala tatha usa samaya mem isi jambudvipa antargata bharatavarsha mem chhagalapura nagara tha. Vaham simhagiri raja rajya karata tha. Vaha himalayadi parvatom ke samana mahana tha. Usa nagara mem chhannika namaka eka chhagalika kasai rahata tha, jo dhanadhya, adharmi yavat dushpratyananda tha. Usa chhannika chhagalika ke aneka ajo, rojho, vrishabhom, kharagosho, mrigashishuom, shukaro, simho, harino, mayuro aura mahashi ke shatabaddha tatha sahasrabaddha yutha, bare mem samyak prakara se roke hue rahate the. Vaham jinako vetana ke rupa mem bhojana tatha rupaya paisa diya jata tha, aise usake aneka adami ajadi aura mahishadi pashuom ka samrakshana – samgopana karate hue una pashuom ko bare mem roke rahate the. Aneka naukara purusha saikarom tatha hajarom ajom tatha bhaisom ko marakara unake mamsom ko kaimchi tatha chhuri se katakara chhannika chhagalika ko diya karate the. Usake anya aneka naukara una bahuta se bakarom ke mamsom tatha mahishom ke mamsom ko tavom para, karahom mem, hamdom mem athava karahiyom ya lohe ke patravisheshom mem, bhunane ke patrom mem, amgarom para talate, bhunate aura shula dvara pakate hue apani ajivika chalate the. Vaha chhannika svayam bhi una mamsom ke satha sura adi pamcha prakara ke madyom ka asvadana visvadana karata hua vaha jivanayapana kara raha tha. Usa chhannika chhagalika ne ajadi pashuom ke mamsom ko khana tatha madiraom ka pina apana kartavya bana liya tha. Inhim papapurna pravrittiyom mem vaha sada tatpara rahata tha. Aura aise hi papapurna karmom ko usane apana sarvottama acharana bana rakha tha. Ata eva vaha kleshotpadaka aura kalushya purna atyadhika klishta karmom ka uparjana kara, sata sau varsha ki ayu palakara kalamasa mem kala karake chaturtha naraka mem, utkrishta dasa sagaropama sthiti vale narakiyom mem naraka rupa se utpanna hua. |