Sutra Navigation: Vipakasutra ( विपाकश्रुतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005510 | ||
Scripture Name( English ): | Vipakasutra | Translated Scripture Name : | विपाकश्रुतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 10 | Category : | Ang-11 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] मियापुत्ते णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ सीहे भविस्सइ–अहम्मिए बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणइ समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ। तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवम ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता पक्खीसु उववज्जिहिइ। तत्थ वि कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए सत्त सागरोवम ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तओ सीहेसु, तयानंतरं चोत्थीए, उरगो, पंचमीए, इत्थीओ, छट्ठीए, मनुओ, अहेसत्तमाए। तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता से जाइं इमाइं जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छ कच्छभ गाह मगर सुंसुमाराईणं अड्ढतेरस जाइकुलकोडिजोणिपमुहसयसहस्साइं, तत्थ णं एगमेगंसि जोणिविहाणंसि अनेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ। से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता चउपएसु उरपरिसप्पेसु भुयपरिसप्पेसु खहयरेसु चउरिंदिएसु तेइंदिएसु बेइंदिएसु वणप्फइ कडुयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु वाउ तेउ आउ पुढवीसु अनेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ। से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्ठपुरे नयरे गोणत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे अन्नया कयाइ पढमपाउसंसि गंगाए महानईए खलीणमट्टियं खणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुपइट्ठपुरे नयरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे विन्नय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्सइ। से णं तत्थ अनगारे भविस्सइ– इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण भंड मत्त निक्खेवणासमिए उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्लपारिट्ठावणियासमिए मनगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी। से णं तत्थ बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उव्ववज्जिहिइ। से णं तओ अनंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवंति–अड्ढाइं अपरिभूयाइं तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति। जहा दढपइन्ने जाव सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! यह मृगापुत्र नामक दारक यहाँ से मरणावसर पर मृत्यु को पाकर कहाँ जाएगा ? और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! मृगापुत्र दारक २६ वर्ष के परिपूर्ण आयुष्य को भोगकर मृत्यु का समय आने पर काल करके इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में वैताढ्य पर्वत की तलहटी में सिंहकुल में सिंह के रूप में उत्पन्न होगा। वह सिंह महाअधर्मी तथा पापकर्म में साहसी बनकर अधिक से अधिक पापरूप कर्म एकत्रित करेगा। वह सिंह मृत्यु को प्राप्त होकर इस रत्नप्रभापृथ्वी में, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है; – उन नारकियों में उत्पन्न होगा। बिना व्यवधान के पहली नरक से नीकलकर सीधा सरीसृपों की योनियों में उत्पन्न होगा। वहाँ से काल करके दूसरे नरक में, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की है, उत्पन्न होगा। वहाँ से नीकलकर सीधा पक्षी – योनि में उत्पन्न होगा। वहाँ से सात सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले तीसरे नरक में उत्पन्न होगा। वहाँ से सिंह की योनि में उत्पन्न होगा। वहाँ वह बड़ा अधर्मी, दूर – दूर तक प्रसिद्ध शूर एवं गहरा प्रहार करने वाला होगा। वहाँ से चौथी नरकभूमि में जन्म लेगा। चौथे नरक से नीकलकर सर्प बनेगा। वहाँ से पाँचवे नरक में उत्पन्न होगा। वहाँ से स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा। स्त्री पर्याय से काल करके छट्ठे नरक में उत्पन्न होगा। वहाँ से पुरुष होगा। वहाँ से सबसे निकृष्ट सातवीं नरक में उत्पन्न होगा। वहाँ से जो ये पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचों में मच्छ, कच्छप, ग्राह, मगर, सुंसुमार आदि जलचर पञ्चेन्द्रिय जाति में योनियाँ, एवं कुलकोटियों में, जिनकी संख्या साढ़े बारह लाख है, उनके एक एक योनि – भेद में लाखों बार उत्पन्न होकर पुनः पुनः उत्पन्न होकर मरता रहेगा। तत्पश्चात् चतुष्पदों में उरपरिसर्प, भुज – परिसर्प, खेचर, एवं चार इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और दो इन्द्रिय वाले प्राणियों में तथा वनस्पति कायान्तर्गत कटु वृक्षों में, कटु दुग्धवाली अर्कादि वनस्पतियों में, वायुकाय, तेजस्काय, अप्काय व पृथ्वीकाय में लाखों – लाखों बार जन्म मरण करेगा। तदनन्तर वहाँ से नीकलकर सुप्रतिष्ठपुर नामक नगर में वृषभ के पर्याय में उत्पन्न होगा। जब वह बाल्या – वस्था को त्याग करके युवावस्था में प्रवेश करेगा तब किसी समय, वर्षाऋतु के आरम्भ – काल में गंगा नामक महानदी के किनारे पर स्थित मिट्टी को खोदता हुआ नदी के किनारे पर गिर जाने से पीड़ित होता हुआ मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। मृत्यु के अनन्तर उसी सुप्रतिष्ठपुर नामक नगर में किसी श्रेष्ठि के घर में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। वहाँ पर वह बालभाव को परित्याग कर युवावस्था को प्राप्त होने पर तथारूप – साधुजनोचित गुणों को धारण करने वाले स्थविर – वृद्ध जैन साधुओं के पास धर्म को सूनकर, मनन कर तदनन्तर मुण्डित होकर अगारवृत्ति का परित्याग कर अनगारधर्म को प्राप्त करेगा। अनगारधर्म में ईयासमिति युक्त यावत् ब्रह्मचारी होगा। वह बहुत वर्षों तक यथाविधि श्रामण्य – पर्याय का पालन करके आलोचना व प्रतिक्रमण से आत्मशुद्धि करता हुआ समाधि को प्राप्त कर समय आने पर कालमास में काल प्राप्त करके सौधर्म नाम के प्रथम देव – लोक में देवरूप में उत्पन्न होगा। तदनन्तर देवभव की स्थिति पूरी हो जाने पर वहाँ से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में जो आढ्य कुल हैं; – उनमें उत्पन्न होगा। वहाँ उसका कलाभ्यास, प्रव्रज्याग्रहण यावत् मोक्षगमन रूप वक्तव्यता दृढ़प्रतिज्ञ की भाँति ही समझ लेनी चाहिए। हे जम्बू ! इस प्रकार से निश्चय ही श्रमण भगवान महावीर ने, जो कि मोक्ष को प्राप्त हो चूके हैं; दुःख – विपाक के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। जिस प्रकार मैंने प्रभु से साक्षात् सूना है; उसी प्रकार हे जम्बू ! मैं तुमसे कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] miyaputte nam bhamte! Darae io kalamase kalam kichcha kahim gamihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Miyaputte darae chhavvisam vasaim paramaum palaitta kalamase kalam kichcha iheva jambuddive dive bharahe vase veyaddhagiripayamule sihakulamsi sihattae pachchayahii. Se nam tattha sihe bhavissai–ahammie bahunagaraniggayajase sure dadhappahari sahasie subahum pavam kammam kalikalusam samajjinai samajjinitta kalamase kalam kichcha imise rayanappabhae pudhavie ukkosasagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavajjihii. Se nam tao anamtaram uvvattitta sirisavesu uvavajjihii. Tattha nam kalam kichcha dochchae pudhavie ukkosenam tinni sagarovama tthiiesu neraiesu neraittae uvavajjihii. Se nam tao anamtaram uvvattitta pakkhisu uvavajjihii. Tattha vi kalam kichcha tachchae pudhavie satta sagarovama tthiiesu neraiesu neraiyattae uvavajjihii. Se nam tao sihesu, tayanamtaram chotthie, urago, pamchamie, itthio, chhatthie, manuo, ahesattamae. Tao anamtaram uvvattitta se jaim imaim jalayarapamchimdiyatirikkhajoniyanam machchha kachchhabha gaha magara sumsumarainam addhaterasa jaikulakodijonipamuhasayasahassaim, tattha nam egamegamsi jonivihanamsi anegasayasahassakhutto uddaitta-uddaitta tattheva bhujjo bhujjo pachchayaissai. Se nam tao anamtaram uvvattitta chaupaesu uraparisappesu bhuyaparisappesu khahayaresu chaurimdiesu teimdiesu beimdiesu vanapphai kaduyarukkhesu kaduyaduddhiesu vau teu au pudhavisu anegasayasahassakhutto uddaitta-uddaitta tattheva bhujjo bhujjo pachchayaissai. Se nam tao anamtaram uvvattitta supaitthapure nayare gonattae pachchayahii. Se nam tattha ummukkabalabhave annaya kayai padhamapausamsi gamgae mahanaie khalinamattiyam khanamane tadie pellie samane kalagae tattheva supaitthapure nayare setthikulamsi puttattae pachchayaissai. Se nam tattha ummukkabalabhave vinnaya-parinayamette jovvanagamanuppatte taharuvanam theranam amtie dhammam sochcha nisamma mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissai. Se nam tattha anagare bhavissai– iriyasamie bhasasamie esanasamie ayana bhamda matta nikkhevanasamie uchchara pasavana khela simdhana jallaparitthavaniyasamie managutte vayagutte kayagutte gutte guttimdie guttabambhayari. Se nam tattha bahuim vasaim samannapariyagam paunitta aloiyapadikkamte samahipatte kalamase kalam kichcha sohamme kappe devattae uvvavajjihii. Se nam tao anamtaram chayam chaitta mahavidehe vase jaim kulaim bhavamti–addhaim aparibhuyaim tahappagaresu kulesu pumattae pachchayahiti. Jaha dadhapainne java sijjhihii bujjhihii muchchihii parinivvahii savvadukkhanamamtam kahii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam duhavivaganam padhamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Yaha mrigaputra namaka daraka yaham se maranavasara para mrityu ko pakara kaham jaega\? Aura kaham para utpanna hoga\? He gautama ! Mrigaputra daraka 26 varsha ke paripurna ayushya ko bhogakara mrityu ka samaya ane para kala karake isa jambudvipa namaka dvipa ke antargata bharatavarsha mem vaitadhya parvata ki talahati mem simhakula mem simha ke rupa mem utpanna hoga. Vaha simha mahaadharmi tatha papakarma mem sahasi banakara adhika se adhika paparupa karma ekatrita karega. Vaha simha mrityu ko prapta hokara isa ratnaprabhaprithvi mem, jisaki utkrishta sthiti eka sagaropama ki hai; – una narakiyom mem utpanna hoga. Bina vyavadhana ke pahali naraka se nikalakara sidha sarisripom ki yoniyom mem utpanna hoga. Vaham se kala karake dusare naraka mem, jisaki utkrishta sthiti tina sagaropama ki hai, utpanna hoga. Vaham se nikalakara sidha pakshi – yoni mem utpanna hoga. Vaham se sata sagaropama ki utkrishta sthiti vale tisare naraka mem utpanna hoga. Vaham se simha ki yoni mem utpanna hoga. Vaham vaha bara adharmi, dura – dura taka prasiddha shura evam gahara prahara karane vala hoga. Vaham se chauthi narakabhumi mem janma lega. Chauthe naraka se nikalakara sarpa banega. Vaham se pamchave naraka mem utpanna hoga. Vaham se strirupa mem utpanna hoga. Stri paryaya se kala karake chhatthe naraka mem utpanna hoga. Vaham se purusha hoga. Vaham se sabase nikrishta satavim naraka mem utpanna hoga. Vaham se jo ye panchendriya tiryamchom mem machchha, kachchhapa, graha, magara, sumsumara adi jalachara panchendriya jati mem yoniyam, evam kulakotiyom mem, jinaki samkhya sarhe baraha lakha hai, unake eka eka yoni – bheda mem lakhom bara utpanna hokara punah punah utpanna hokara marata rahega. Tatpashchat chatushpadom mem uraparisarpa, bhuja – parisarpa, khechara, evam chara indriya, tina indriya aura do indriya vale praniyom mem tatha vanaspati kayantargata katu vrikshom mem, katu dugdhavali arkadi vanaspatiyom mem, vayukaya, tejaskaya, apkaya va prithvikaya mem lakhom – lakhom bara janma marana karega. Tadanantara vaham se nikalakara supratishthapura namaka nagara mem vrishabha ke paryaya mem utpanna hoga. Jaba vaha balya – vastha ko tyaga karake yuvavastha mem pravesha karega taba kisi samaya, varsharitu ke arambha – kala mem gamga namaka mahanadi ke kinare para sthita mitti ko khodata hua nadi ke kinare para gira jane se pirita hota hua mrityu ko prapta ho jaega. Mrityu ke anantara usi supratishthapura namaka nagara mem kisi shreshthi ke ghara mem putrarupa se utpanna hoga. Vaham para vaha balabhava ko parityaga kara yuvavastha ko prapta hone para tatharupa – sadhujanochita gunom ko dharana karane vale sthavira – vriddha jaina sadhuom ke pasa dharma ko sunakara, manana kara tadanantara mundita hokara agaravritti ka parityaga kara anagaradharma ko prapta karega. Anagaradharma mem iyasamiti yukta yavat brahmachari hoga. Vaha bahuta varshom taka yathavidhi shramanya – paryaya ka palana karake alochana va pratikramana se atmashuddhi karata hua samadhi ko prapta kara samaya ane para kalamasa mem kala prapta karake saudharma nama ke prathama deva – loka mem devarupa mem utpanna hoga. Tadanantara devabhava ki sthiti puri ho jane para vaham se chyuta hokara mahavideha kshetra mem jo adhya kula haim; – unamem utpanna hoga. Vaham usaka kalabhyasa, pravrajyagrahana yavat mokshagamana rupa vaktavyata drirhapratijnya ki bhamti hi samajha leni chahie. He jambu ! Isa prakara se nishchaya hi shramana bhagavana mahavira ne, jo ki moksha ko prapta ho chuke haim; duhkha – vipaka ke prathama adhyayana ka yaha artha pratipadana kiya hai. Jisa prakara maimne prabhu se sakshat suna hai; usi prakara he jambu ! Maim tumase kahata hum. |