Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1005416 | ||
Scripture Name( English ): | Prashnavyakaran | Translated Scripture Name : | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Translated Chapter : |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अदत्त |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 16 | Category : | Ang-10 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अतिधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार निद्दय आरक्खिय खर फरुस वयण तज्जण गलत्थल्ल उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं। तत्थवि गोम्मिकप्पहार दूमण निब्भच्छण कडुयवयण भेसणग भयाभिभूया अक्खित्त नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच पास मग्गण परायणेहिं गोम्मिकभडेहिं विविहेहिं बंधणेहि, किं ते? हडि नियड बालरज्जुय कुदंडग वरत्त लोह-संकल हत्थंदुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहिं, अन्नेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण मोड-णाहि वज्झंति मंदपुण्णा। संपुड कवाड लोहपंजर भूमिघर निरोह कूव चारग खीलग जुय चक्क वितत बंधन खंभालण उद्धचलणबंधण विहम्मणाहि य विहेडयंता, अवकोडकगाढ उरसिरबद्ध उद्धपूरित फुरंतउरकडग मोडणामेडणाहिं बद्धा य नीससंता, सीसावेढ ऊरुयाल चप्पडगसंधिबंधण तत्तसलागसूइया-कोडणाणि तच्छण विमाणणाणि य खार कडूय तित्त नावण जायण कारणसयाणि बहुयाणि पावियंता, उरखोडीदिन्नगाढपेल्लण अट्ठिकसंभग्ग सपंसुलिगा, गल कालकलोहदंड उर उदर वत्थि पट्ठि परिपीलिता, मच्छंत हियय संचुण्णियंगमंगा। आणत्ती किंकरेहिं केति अविराहियवेरिएहिं जमपुरिस सन्निहेहिं पहया ते तत्थ मंदपुण्णा, चडवेला वज्झपट्ट पाराइ छिव कस लत वरत्त वेत्त प्पहारसयतालियंगमंगा, किवणा लंबंतचम्म वण वेयण विमुहियमणा, घणकोट्टिम नियल जुयलसंकोडिय मोडिया य कीरंति निरुच्चारा, एया अण्णा य एवमादीओ वेयणाओ पावापावेंति अदंतिंदिया वसट्टा बहुमोहमोहिया परधणम्मि लुद्धा फासिंदियविसय तिव्वगिद्धा, इत्थिगय रूव सद्द रस गंध इट्ठ रति महितभोग तण्हाइया य धणतोसगा गहिया य जे नरगणा। पुनरवि ते कम्मदुव्वियड्ढा उवणीया रायकिंकराणं तेसिं वधसत्थगपाढयाणं विलउली-कारकाणं लंचस-यगेण्हगाणं कूड कवड माया नियडि आयरण पणिहि वंचण विसारयाणं बहुविहअलियसयजंपकाणं परलोकपरम्मुहाणं निरयगति गामियाणं। तेहिं य आणत्त जीयदंडा तुरियं उग्घाडिया पुरवरे सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापह पहेसु वेत्त दंड लउड कट्ठ लेट्ठु पत्थर पणालि पणोल्लि मुट्ठि लया पाद पण्हि जाणु कोप्पर पहारसंभग्ग महियगत्ता अट्ठारस कम्मकारणा जाइयंगमंगा कलुणा सुक्कोट्ठकंठगलकतालुजिब्भा जायंता पाणीयं विगयजीवियासा तण्हादिता वरागा तंपि य ण लभंति वज्झपुरिसेहिं धाडियंता। तत्थ य खरफरुसपडहघट्टित कूडग्गह गाढरुट्ठनिसट्ठपरामट्ठा वज्झकरकुडिजुयनियत्था, सुरत्तकणवीर गहिय विमुकुल कंठेगुणवज्झदूत आविद्ध मल्लदामा मरणभयुप्पण्णसेयमाय-तणेहुत्तुपियकिलिन्नगत्ता चुण्णगुंडियसरीरा रयरेणुभरियकेसा कुसुंभगोक्खिण्णमुद्धया छिन्नजीवि-यासा धुन्नता वज्झ-पाणपीता तिलं-तिलं चेव छिज्जमाणा सरीरविक्कित्त लोहिओलित्त कागणिमंसाणि खावियंता पावा खरकरसएहिं तालिज्जमाणदेहा वातिकनरनारिसंपरिवुडा पेच्छिज्जंता य नागरजनेन, वज्झनेवत्थिया पणेज्जंति नयरमज्झेण, किवणकलुणा अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविप्पहीणा विपेक्खंता दिसोदिसिं, मरणभयुव्विग्गा आघायण पडिदुवार संपाविया अघन्ना सूलग्ग विलग्ग भिन्नदेहा। ते य तत्थ कीरंति परिकप्पियंगमंगा, उल्लंविज्जंति रुक्खसालेहि केई कलुणाइं विलवमाणा, अवरे चउरंग धनियबद्धा पव्वयकडगा पमुच्चंति दूरपात बहुविसम पत्थरसहा, अन्नेय गयचलण मलण निमद्दिया कीरंति पावकारी, अट्ठारस खंडिया य कीरंति मुंडपरसूहिं, केई उक्कत्तकण्णोट्ठनासा उप्पाडियनयनदसनवसणा जिब्भंछिय छिन्नकण्णसिरा पणिज्जंते, छिज्जंते य असिणा, निव्विसया छिन्नहत्थपाया य पमुच्चंते, जावज्जीवबंधणा य कीरंति केइ परदव्वहरणलुद्धा कारग्गल-नियलजुयलरुद्धा चारगाए–हतसारा सयणविप्पमुक्का मित्तजण निरक्कया निरासा बहुजनधि-क्कारसद्दलज्जाविता अलज्जा अनुबद्धखुहा परद्धा सीउण्हतण्ह-वेयणदुहट्टघट्टिय विवण्णमुह विच्छवीया विहलमइलदुब्बला किलंता कासंता वाहिया य आमाभिभूयगत्ता परूढनहकेसमंसुरोमा छग मुत्तम्मि नियगम्मि खुत्ता तत्थेव मया अकामका बंधिऊण देसु कड्ढिया खाइयाए छूढा। तत्थ य वग सुगण सियाल कोल मज्जारवंद संदंसगतुंड पक्खिगणविविहमुहसय विलुत्तगत्ता कय-विहंगा। केइ किमिणा य कुथितदेहा अनिट्ठवयणेहिं सप्पमाणा–सुट्ठुकयं जं मउति पावो, तुट्ठेण जणेण हम्ममाणा लज्जावणका य होंति सयणस्सवि दीहकालं मया संता। पुणो परलोगसमावण्णा नरगे गच्छंति निरभिरामे अंगारपलित्तककप्प अच्चत्थ सीतवेदण अस्साओदिण्ण सततदुक्खसयसमभिद्दुते। ततोवि उव्वट्टिया समाणा पुणोवि पवज्जति तिरियजोणि। तहिपि निरयोवमं अणुभवंति वेयणं ते। अनंतकालेण जति नाम कहिंचि मनुयभावं लभंति नेगेहिं निरयगतिगमन तिरियभव सयसहस्स परियट्टएहिं। तत्थ वि य भवंतऽनारिया नीचकुलसमुप्पण्णा आरियजणेवि लोगवज्झा तिरिक्खभूता य अकुसला कामभोगतिसिया जहिं निबंधंति निरयवत्तिणि, भवप्पवंचकरण पणोल्लि, पुणोविसंसारनेमे धम्मसुति विवज्जिया अणज्जा कूरा मिच्छत्तसुति पवण्णा य होंति एगंतदंडरुइणो, वेढेंता कोसिकारकीडो व्व अप्पगं अट्ठकम्मतंतु घणबंधणेणं। एवं नरग तिरिय नर अमर गमणपेरंतचक्कवालं जम्मणजरमरणकरण गंभीरदुक्ख पखुभिय-पउरसलिलं संजोगवियोगवीची चिंतापसंगपसरिय वहबंध महल्लविपुलकल्लोल कलुणविलवित लोभकलकलिंतबोलबहुलं अवमाणणफेण तिव्वखिंसण पुलंपुलप्पभूयरोगवेयण पराभवविणिवात फरुसधरिसणसमावडिय कढिणकम्मपत्थर तरंगरंगंतं निच्चमच्चुभय तोयपट्ठं कसायपायाल संकुलं भवसयसहस्सजलसंचयं अणंतं उव्वेयणयं अणोरपारं महब्भयं भयंकरं पइभयं अपरिमियमहिच्छ कलुसमतिवाउवेगउद्धम्म-मान–आसापिवासपायाल कामरति रागदोसबंधण बहुविहसंकप्पविपुलद-गरयरयंधकारं, मोहमहावत्तभोगभममाणगुप्पमाणुव्वलंतबहुगब्भवास पच्चोणियत्तपाणिय पधावित-वसणसमावण्ण रुण्णचंडमारुयसमाहयाऽमणुण्णवीचोवाकुलित भंगफुट्टंतऽनिट्ठकल्लोलसंकुल-जलं, पमायबहुचंडदुट्ठसावयसमाहय उट्ठायमानगपूरघोरविद्धंसणत्थबहुलं... ...अन्नाणभमंतमच्छ-परिहत्थ अनिहुतिंदियमहामगरतुरियचरियखोखुब्भमाण संताव निच्चय चलंतचवलचंचल अत्ताणाऽसरणपुव्व-कयकम्मसं चयोदिण्णवज्जवेइज्जमाण दुहसय-विपाक-धुण्णंतजलसमूहं, इड्ढिरससायगारवोहार-गहियकम्मपडिबद्ध सत्त कड्ढिज्जमाणनिरय-तलहुत्तसण्णविसण्णबहुलं, अरइरइभयविसायसो-गमिच्छत्तसेलसंकडं, अनातिसंताणकम्मबंधन-किलेसचिक्खल्लसुदुत्तारं, अमरनरतिरियनिरयगति-गमनकुडिलपरियत्तविपुलवेलं, हिंसालय अदत्तादान मेहुण परिग्गहारंभ करणकारावणाणुमोदण अट्ठाविहअनिट्ठकम्मपिडित गुरुभारोक्कंत दुग्गजलोघदूरणिवोलिज्जमाण उम्मग्गनिमग्गदुल्लभतलं, सारीरमणोमयाणि दुक्खाणि उप्पियंता, सातस्सायपरितावणमयं उव्वुड्ड-निवुड्डयं करेंता, चउरंतमहंतमणवयग्गं रुद्दं संसारसागरं अट्ठिय-अनालंबणपतिठाणमप्पमेयं, चुलसीति जोणिसयसहस्सगुविलं, अणालोकमंधकारं, अनंतकालं निच्चं उत्तत्थ सुण्ण भय सण्णसंपउत्ता वसंति उव्विग्गवासवसहिं। जहिं जहिं आउयं निबंधंति पावकारी बंधवजण सयण मित्तपरिवज्जिया अनिट्ठा भवंतऽणादेज्ज दुव्विणीया कुट्ठाणासण कुसेज्ज कुभोयणा असुइणो कुसंघयण कुप्पमाण कुसंठिया कुरूवा बहुकोह माण माया लोभा बहुमोहा धम्मसण्ण सम्मत्त परिब्भट्ठा दारिद्दोवद्दवाभिभूया, निच्चं परकम्मकारिणो जीवणत्थरहिया किविणा परपिंडतक्कका दुक्खलद्धाहारा अरस विरस तुच्छ कयकुच्छिपूरा, परस्स पेच्छंता रिद्धिसक्कार भोयणविसेस समुदयविहिं निंदंता अप्पकं कयंतं च, परिवयंता इह य पुरेकडाइं कम्माइं पावगाइं, विमणा सोएण डज्झमाणा परिभूया होंति सत्तपरिवज्जिया य, छोभा सिप्प कला समयसत्थ परिवज्जिया जहाजायपसुभूया अचियत्ता णिच्चनीयकम्मोवजीविणो लोयकुच्छणिज्जा मोहमणोरह निरासबहुला आसापासपडिबद्धपाणा अत्थो पायाण कामसोक्खे य लोयसारे होंति अपच्चंतगा य सुट्ठुवि य उज्जमंता, तद्दिवसुज्जुत्त कम्मकयदुक्ख संठविय सित्थपिंड संचयपरा खीणदव्वसारा, निच्चं अधुवधण धण्ण कोस परिभोग विवज्जिया, रहिय काम भोग परिभोग सव्व सोक्खा परसिरिभोगोवभोगनिस्साण मग्गणपरायणा वरागा अकामिकाए विणेंति दुक्खं, णेव सुहं णेव निव्वुत्तिं उवलभंति, अच्चंतविपुलदुक्खसय संपलित्ता परस्स दव्वेहिं जे अविरया। एसो सो अदिन्नादानस्स फलविवागो इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चति न य अवेयइत्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति–एवमाहंसु णायकुलणंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरना-मधेज्जो, कहेसी य अदिण्णादाणस्स फलविवागं। एयं तं ततियंपि अदिन्नादाणं हर दह मरण भय कलुस तासण परसंतिकऽभेज्जलोममूलं काल विसम संसियं अहो ऽच्छिन्नतण्ह पत्थाण पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्जं छिद्दमंतर विधुर वसण मग्गण उस्सव मत्त प्पमत्त पसुत्त वंचणाखिवण घायणपर अणिहुयपरिणामं तक्करजनबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण मित्तजण भेदविप्पीतिकारकं रायदोसबहुलं पुणो य उप्पूर समर संगाम डमर कलि कलह वेहकरणं दुग्गति विणिवायवड्ढणं भव पुणब्भवकरं चिरपरिगतमणुगतं दुरंतं। ततियं अहम्मदारं समत्तं। | ||
Sutra Meaning : | इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कईं चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा – पीटा जाता है, बाँधा जाता है और कैद किया जाता है। उन्हें वेग के साथ घूमाया जाता है। तत्पश्चात् चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर उन्हें कारागार में ठूंस देते। कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर – हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण एवं कठोर वचनों की डाट – डपट से तथा गर्दन पकड़कर धक्के देने से उनका चित्त खेदखिन्न होता है। उन चोरों को नारकावास सरीखे कारागार में जबरदस्ती घुसेड़ दिया जाता है। वहाँ भी वे कारागार के अधिकारियों द्वारा प्रहारों, यातनाओं, तर्जनाओं, कटुवचनों एवं भयोत्पादक वचनों से भयभीत होकर दुःखी बने रहते हैं। उनके वस्त्र छीन लिये जाते हैं। वहाँ उनको मैले फटे वस्त्र मिलते हैं। बार – बार उन कैदियों से लाँच माँगने में तत्पर कारागार के रक्षकों द्वारा अनेक प्रकार के बन्धनों में बाँध दिये जाते हैं। चोरों को जिन विविध बन्धनों से बाँधा जाता है, वे बन्धन कौन – से हैं ? हड्डि या काष्ठमय बेड़ी, लोहमय बेड़ी, बालों से बनी हुई रस्सी, एक विशेष प्रकार का काष्ठ, चर्मनिर्मित मोटे रस्से, लोहे की सांकल, हथकड़ी, चमड़े का पट्टा, पैर बाँधने की रस्सी तथा निष्कोडन, इन सब तथा इसी प्रकार के अन्य – अन्य दुःखों को समुत्पन्न करने वाले कारागार के साधनों द्वारा बाँधे जाते हैं; इतना ही नहीं – उन पापी चोर कैदियों के शरीर को सिकोड़ कर, मोड़ कर जकड़ दिया जाता है। कैदकोठरी में डाल कर किवाड़ बंद कर देना, लोहे के पींजरेमें डालना, भूमिगृहमें बंद करना, कूपमें उतारना, बंदीघर के सींखचों से बाँध देना, अंगोंमें कीलें ठोकना, जूवा उनके कँधे पर रखना, गाड़ी के पहिये के साथ बाँध देना, बाहों जाँघों और सिर को कस कर बाँधना, खंभे से चिपटाना, पैरों को ऊपर और मस्तक को नीचे करके बाँधना, इत्यादि बन्धन से बाँधकर अधर्मी जेल – अधिकारीयों द्वारा चोर बाँधे जाते हैं। गर्दन नीची करके, छाती और सिर कस कर बाँध दिया जाता है तब वे निश्वास छोड़ते हैं। उनकी छाती धक् धक् करती है। उनके अंग मोड़े जाते हैं। ठंडी श्वासें छोड़ते हैं चमड़े की रस्सी से उनके मस्तक बाँध देते हैं, दोनों जंघाओं को चीर देते हैं, जोड़ों को काष्ठमय यन्त्र से बाँधा जाता है। तपाई हुई लोही की सलाइयाँ एवं सूइयाँ शरीर में चुभोई जाती हैं। शरीर छीला जाता है। मर्मस्थलों को पीड़ित किया जाता है। क्षार कटुक और तीखे पदार्थ उनके कोमल अंगों पर छिड़के जाते हैं। इस प्रकार पीड़ा पहुँचाने के सैकड़ों कारण वे प्राप्त करते हैं। छाती पर काष्ठ रखकर जोर से दबाने से उनकी हड्डियाँ भग्न हो जाती हैं। मछली पकड़ने के काँटे के समान घातक काले लोहे के नोकदार डंडे छाती, पेट, गुदा और पीठ में भोंक देने से वे अत्यन्त पीड़ा अनुभव करते हैं। ऐसी – ऐसी यातनाओं से अदत्तादान करने वालों का हृदय मथ दिया जाता है और उनके अंग – प्रत्यंग चूर – चूर हो जाते हैं। कोई – कोई अपराध किये बिना ही वैरी बने हुए कर्मचारी यमदूतों के समान मार – पीट करते हैं। वे अभागे कारागार में थप्पड़ों, मुक्कों, चर्मपट्टों, लोहे के कुशों, लोहमय तीक्ष्ण शस्त्रों, चाबुकों, लातों, मोटे रस्सों और बेतों के सैकड़ों प्रहारों से अंग – अंग को ताड़ना देकर पीड़ित किये जाते हैं। लटकती हुई चमड़ी पर हुए घावों की वेदना से उन बेचारे चोरों का मन उदास हो जाता है। बेड़ियों को पहनाये रखने के कारण उनके अंग सिकुड़ जाते हैं और शिथिल पड़ जाते हैं। यहाँ तक कि उनका मल – मूत्रत्याग भी रोक दिया जाता है, उनका बोलना बंद कर दिया जाता है। वे इधर – उधर संचरण नहीं कर पाते। ये और इसी प्रकार की अन्यान्य वेदनाएं वे अदत्तादान का पाप करने वाले पापी प्राप्त करते हैं। जिन्होंने अपनी इन्द्रियों का दमन नहीं किया है – वशीभूत हो रहे हैं, जो तीव्र आसक्ति के कारण मूढ – बन गए हैं, परकीय धनमें लुब्ध हैं, जो स्पर्शनेन्द्रिय विषयमें तीव्र रूप से गृद्ध – हैं, स्त्री सम्बन्धी रूप, शब्द, रस और गंध में इष्ट रति तथा इष्ट भोग की तृष्णा से व्याकुल बने हुए हैं, जो केवल धन में ही सन्तोष मानते हैं, ऐसे मनुष्य – गण फिर भी पापकर्म के परिणाम को नहीं समझते। वे आरक्षक – वधशास्त्र के पाठक होते हैं। चोरों को गिरफ्तार करने में चतुर होते हैं। सैकड़ों बार लांच – लेते हैं। झूठ, कपट, माया, निकृति करके वेषपरिवर्तन आदि करके चोर को पकड़ने तथा उससे अपराध स्वीकार कराने में अत्यन्त कुशल होते हैं – वे नरकगतिगामी, परलोक से विमुख एवं सैकड़ों असत्य भाषण करने वाले, ऐसे राजकिंकरों – के समक्ष उपस्थित कर दिये जाते हैं। प्राणदण्ड की सजा पाए हुए चोरों को पुरवर – में शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ और पथ आदि स्थानों में जनसाधारण के सामने – लाया जाता है। तत्पश्चात् बेतों, डंडों, लाठियों, लकड़ियों, ढेलों, पत्थरों, लम्बे लठ्ठों, पणोल्लि, मुक्कों, लताओं, लातों, घुटनों और कोहनियों से, उनके अंग – अंग भंग कर दिए जाते हैं, उनके शरीर को मथ दिया जाता है। अठारह प्रकार के चोरों एवं चोरी के प्रकारों के कारण उनके अंग – अंग पीड़ित कर दिये जाते हैं, करुणाजनक दशा होती है। उनके ओष्ठ, कण्ठ, गला, तालु और जीभ सूख जाती है, जीवन की आशा नष्ट हो जाती है। पानी भी नसीब नहीं होता। उन्हें धकेले या घसीटे जाते हैं। अत्यन्त कर्कश पटह – बजाते हुए, धकियाए जाते हुए तथा तीव्र क्रोध से भरे हुए राजपुरुषों के द्वारा फाँसी पर चढ़ाने के लिए दृढ़तापूर्वक पकड़े हुए वे अत्यन्त ही अपमानित होते हैं। उन्हें दो वस्त्र और लाल कनेर की माला पहनायी जाती है, जो वध्यभूत सी प्रतीत होती है, पुरुष को शीघ्र ही मरणभीति से उनके शरीर से पसीना छूटता है, उनके सारे अंग भीग जाते हैं। कोयले आदि से उनका शरीर पोता है। हवा से उड़कर चिपटी हुई धूल से उनके केश रूखे एवं धूल भरे हो जाते हैं। उनके मस्तक के केशों को कुसुंभी – से रंग दिया जाता है। उनकी जीवन – आशा छिन्न हो जाती है। अतीव भयभीत होने के कारण वे डगमगाते हुए चलते हैं और वे वधकों से भयभीत बने रहते हैं। उनके शरीर के छोटे – छोटे टुकड़े कर दिए जाते हैं। उन्हीं के शरीर में से काटे हुए और रुधिर से लिप्त माँस के टुकड़े उन्हें खिलाए जाते हैं। कठोर एवं कर्कश स्पर्श वाले पत्थर आदि से उन्हें पीटा जाता है। इस भयावह दृश्य को देखने के लिए उत्कंठित, पागलों जैसी नर – नारियों की भीड़ से वे घिर जाते हैं। नागरिक जन उन्हें देखते हैं। मृत्युदण्डप्राप्त कैदी की पोशाक पहनाई जाती है और नगर के बीचों – बीच हो कर ले जाया जाता है। उस समय वे अत्यन्त दयनीय दिखाई देते हैं। त्राणरहित, अशरण, अनाथ, बन्धुबान्धवविहीन, स्वजन द्वारा परित्यक्त वे इधर – उधर नजर डालते हैं और मौत के भय से अत्यन्त घबराए हुए होते हैं। उन्हें वधस्थल पर पहुँचा दिया जाता है और उन अभागों को शूली पर चढ़ा दिया जाता है, जिससे उनका शरीर चिर जाता है। वहाँ वध्यभूमि में उनके अंग – प्रत्यंग काट डाले जाते हैं। वृक्ष की शाखाओं पर टांग दिया जाता है। चार अंगों – को कस कर बाँध दिया जाता है। किन्हीं को पर्वत की चोटी से गिराया जाता है। उससे पत्थरों की चोट सहेनी पड़ती है। किसी – किसी को हाथी के पैर के नीचे कुचला जाता है। उन अदत्तादान का पाप करनेवालों को कुंठित धारवाले – कुल्हाड़ों आदि से अठारह स्थानों में खंडित किया जाता है। कईयों के कान, आँख और नाक काटे जाते हैं तथा नेत्र, दाँत और वृषण उखाड़े जाते हैं। जीभ खींच ली जाती है, कान या शिराएं काट दी जाती हैं। फिर उन्हें वधभूमि में ले जाया जाता है और वहाँ तलवार से काटा जाता है। हाथ और पैर काट कर निर्वासित कर दिया जाता है। कईं चोरों को आजीवन कारागार में रखा जाता है। परकीय द्रव्य के अपहरण में लुब्ध कईं चोरों को सांकल बाँध कर एवं पैरों में बेड़ियाँ डाल कर बन्ध कर के उनका धन छीन लिया जाता है। वे चोर स्वजनों द्वारा त्याग दिये जाते हैं। सभी के द्वारा वे तिरस्कृत होते हैं। अत एव वे सभी की ओर से निराश हो जाते हैं। बहुत – से लोगों के ‘धिक्कार से’ वे लज्जित होते हैं। उन लज्जाहीन मनुष्यों को निरन्तर भूखा मरना पड़ता है। चोरी के वे अपराधी सर्दी, गर्मी और प्यास की पीड़ा से कराहते रहते हैं। उनका मुख – सहमा हुआ और कान्तिहीन को जाता है। वे सदा विह्वल या विफल, मलिन और दुर्बल बने रहते हैं। थके – हारे या मुर्झाए रहते हैं, कोई – कोई खांसते रहते हैं और अनेक रोगों से ग्रस्त रहते हैं। अथवा भोजन भलीभाँति न पचने के कारण उनका शरीर पीड़ित रहता है। उनके नख, केश और दाढ़ी – मूँछों के बाल तथा रोम बढ़ जाते हैं। वे कारागार में अपने ही मल – मूत्र में लिप्त रहते हैं। जब इस प्रकार की दुस्सह वेदनाएं भोगते – भोगते वे, मरने की ईच्छा न होने पर भी, मर जाते हैं। उनके शब के पैरों में रस्सी बाँध कर किसी गड्ढे में फैंका जाता है। तत्पश्चात् भेड़िया, कुत्ते, सियार, शूकर तथा संडासी के समान मुखवाले अन्य पक्षी अपने मुखों से उनके शब को नोच – चींथ डालते हैं। कईं शबों को पक्षी खा जाते हैं। कईं चोरों के मृत कलेवर में कीड़े पड़ जाते हैं, उनके शरीर सड़ – गल जाते हैं। उनके बाद भी अनिष्ट वचनों से उनकी निन्दा की जाती है – अच्छा हुआ जो पापी मर गया। उसकी मृत्यु से सन्तुष्ट हुए लोग उसकी निन्दा करते हैं। इस प्रकार वे पापी चोर अपनी मौत के पश्चात् भी दीर्घकाल तक अपने स्वजनों को लज्जित करते रहते हैं। वे परलोक को प्राप्त होकर नरक में उत्पन्न होते हैं। नरक निराभिराम है और आग से जलते हुए घर के समान अत्यन्त शीत वेदना वाला होता है। असातावेदनीय कर्म की उदीरणा के कारण सैकड़ों दुःखों से व्याप्त है। नरक से उद्वर्त्तन करके फिर तिर्यंचयोनि में जन्म लेते हैं। वहाँ भी वे नरक जैसी असातावेदना को अनुभवते हैं। तिर्यंचयोनि में अनन्त काल भटकते हैं। किसी प्रकार, अनेकों बार नरकगति और लाखों बार तिर्यंचगति में जन्म – मरण करते – करते यदि मनुष्यभव पा लेते हैं तो वहाँ भी नीच कुल में उत्पन्न और अनार्य होते हैं। कदाचित् आर्यकुल में जन्म मिल गया तो वहाँ भी लोकबाह्य होते हैं। पशुओं जैसा जीवन यापन करते हैं, कुशलता से रहित होते हैं, अत्यधिक कामभोगों की तृष्णा वाले और अनेकों बार नरक – भवों में उत्पन्न होने के कु – संस्कारों के कारण पापकर्म करने की प्रवृत्ति वाले होते हैं। अत एव संसार में परिभ्रमण कराने वाले अशुभ कर्मों का बन्ध करते हैं। वे धर्मशास्त्र के श्रवण से वंचित रहते हैं। वे अनार्य, क्रूर मिथ्यात्व के पोषक शास्त्रों को अंगीकार करते हैं। एकान्ततः हिंसा में ही उनकी रुचि होती है। इस प्रकार रेशम के कीड़े के समान वे अष्टकर्म रूपी तन्तुओं से अपनी आत्मा को प्रगाढ बन्धनों से जकड़ लेते हैं। नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गति में गमनागमन करना संसार – सागर की बाह्य परिधि है। जन्म, जरा और मरण के कारण होने वाला गंभीर दुःख ही संसार – सागर का अत्यन्त क्षुब्ध जल है। संसार – सागर में संयोग और वियोग रूपी लहरें उठती रहती हैं। सतत – चिन्ता ही उसका प्रसार है। वध और बन्धन ही उसमें विस्तीर्ण तरंगें हैं। करुणाजनक विलाप तथा लोभ की कलकलाहट की ध्वनि की प्रचुरता है। अपमान रूपी फेन होते हैं। तीव्र निन्दा, पुनः पुनः उत्पन्न होनेवाले रोग, वेदना, तिरस्कार, पराभव, अधःपतन, कठोर झिड़कियाँ जिनके कारण प्राप्त होती हैं, ऐसे कठोर ज्ञानावरणीय आदि कर्मों रूपी पाषाणों से उठी हुई तरंगों के समान चंचल है। मृत्यु का भय उस संसार – समुद्र के जल का तल है। वह संसार – सागर कषायरूपी पाताल – कलशों से व्याप्त है। भव – परम्परा ही उसकी विशाल जलराशि है। वह अनन्त है। अपार है। महान भय रूप है। उसमें प्रत्येक प्राणी को एक दूसरे के द्वारा उत्पन्न होने वाला भय बना रहता है। जिनकी कहीं कोई सीमा नहीं, ऐसी विपुल कामनाओं और कलुषित बुद्धि रूपी पवन आँधी के प्रचण्ड वेग के कारण उत्पन्न तथा आशा और पीपासा रूप पाताल, समुद्रतल से कामरति की प्रचुरता से वह अन्धकारमय हो रहा है। संसार – सागर के जल में प्राणी मोहरूपी भँवरों में भोगरूपी गोलाकार चक्कर लगा रहे हैं, व्याकुल होकर उछल रहे हैं, नीचे गिर रहे हैं। इस संसार – सागर में दौड़धाम करते हुए, व्यसनों से ग्रस्त प्राणियों के रुदनरूपी प्रचण्ड पवन से परस्पर टकराती हुई अमनोज्ञ लहरों से व्याकुल तथा तरंगों से फूटता हुआ एवं चंचल कल्लोंलों से व्याप्त जल है। वह प्रमाद रूपी अत्यन्त प्रचण्ड एवं दुष्ट श्वापदों द्वारा सताये गये एवं इधर – उधर घूमते हुए प्राणियों के समूह का विध्वंस करने वाले घोर अनर्थों से परिपूर्ण है। उसमें अज्ञान रूपी भयंकर मच्छ घूमते हैं। अनुपशान्त इन्द्रियों वाले जीवरूप महामगरों की नयी – नयी उत्पन्न होने वाली चेष्टाओं से वह अत्यन्त क्षुब्ध हो रहा है। उसमें सन्तापों का समूह विद्यमान है, ऐसा प्राणियों के द्वारा पूर्वसंचित एवं पापकर्मों के उदय से प्राप्त होनेवाला तथा भोगा जानेवाला फल रूपी घूमता हुआ जल – समूह है जो बिजली के समान चंचल है। वह त्राण एवं शरण से रहित है, इसी प्रकार संसार में अपने पापकर्मों का फल भोगने से कोई बच नहीं सकता। संसार – सागर में ऋद्धि, रस और सातागौरव रूपी अपहार द्वारा पकड़े हुए एवं कर्मबन्ध से जकड़े हुए प्राणी जब नरकरूप पाताल – तल के सम्मुख पहुँचते हैं तो सन्न और विषण होते हैं, ऐसे प्राणियों की बहुलता वाला है। वह अरति, रति, भय, दीनता, शोक तथा मिथ्यात्व रूपी पर्वतों से व्याप्त हैं। अनादि सन्तान कर्मबन्धन एवं राग – द्वेष आदि क्लेश रूप कीचड़ के कारण उस संसार – सागर को पार करना अत्यन्त कठिन है। समुद्र में ज्वार के समान संसार – समुद्र में चतुर्गति रूप कुटिल परिवर्तनों से युक्त विस्तीर्ण – ज्वार – आते रहते हैं। हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह रूप आरंभ के करने, कराने और अनुमोदने से सचित्त ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के गुरुतर भार से दबे हुए तथा व्यसन रूपी जलप्रवाह द्वारा दूर फेंके गए प्राणियों के लिए इस संसार – सागर का तल पाना अत्यन्त कठिन है। इसमें प्राणी दुःखों का अनुभव करते हैं। संसार संबंधी सुख – दुःख से उत्पन्न होने वाले परिताप के कारण वे कभी ऊपर उठने और कभी डूबने का प्रयत्न करते रहते हैं। यह संसार – सागर चार दिशा रूप चार गतियों के कारण विशाल है। यह अन्तहीन और विस्तृत है। जो जीव संयम में स्थित नहीं, उनके लिए यहाँ कोई आलम्बन नहीं है। चौरासी लाख जीवयोनियों से व्याप्त हैं। यहाँ अज्ञानान्धकार छाया रहता है और यह अनन्त – काल तक स्थायी है। संसार – सागर उद्वेगप्राप्त – दुःखी प्राणियों का निवास – स्थान है। इस संसार में पापकर्मकारी प्राणी – जिस ग्राम, कुल आदि की आयु बाँधते हैं वहीं पर वे बन्धु – बान्धवों, स्वजनों और मित्रजनों से परिवर्जित होते हैं, वे सभी के लिए अनिष्ट होते हैं। उनके वचनों को कोई ग्राह्य नहीं मानता और वे दुर्विनीत होते हैं। उन्हें रहने को, बैठने को खराब आसन, सोने को खराब शय्या और खाने को खराब भोजन मिलता है। वे अशुचि रहते हैं। उनका संहनन खराब होता है, शरीर प्रमाणोपेत नहीं होता। उनके शरीर की आकृति बेडौल होती है। वे कुरूप होते हैं। तीव्रकषायी होते हैं और मोह की तीव्रता होती है। उनमें धर्मसंज्ञा नहीं होती। वे सम्यग् – दर्शन से रहित होते हैं। उन्हें दरिद्रता का कष्ट सदा सताता रहता है। वे सदा परकर्मकारी रहकर जिन्दगी बिताते हैं। कृपण – रंक – दीन – दरिद्र रहते हैं। दूसरों के द्वारा दिये जाने वाले पिण्ड – ताक में रहते हैं। कठिनाई से दुःखपूर्वक आहार पाते हैं, किसी प्रकार रूखे – सूखे, नीरस एवं निस्सार भोजन से पेट भरते हैं। दूसरों का वैभव, सत्कार – सम्मान, भोजन, वस्त्र आदि समुदय – अभ्युदय देखकर वे अपनी निन्दा करते हैं। इस भव में या पूर्वभव में किये पापकर्मों की निन्दा करते हैं। उदास मन रह कर शोक की आग में जलते हुए लज्जित – तिरस्कृत होते हैं। साथ ही वे सत्त्वहीन, क्षोभग्रस्त तथा चित्रकला आदि शिल्प के ज्ञान से, विद्याओं से एवं शास्त्र ज्ञान से शून्य होते हैं। यथाजात अज्ञान पशु के समान जड़ बुद्धि वाले, अविश्वसनीय या अप्रतीति उत्पन्न करने वाले होते हैं। सदा नीच कृत्य करके अपनी आजीविका चलाते हैं – लोकनिन्दित, असफल मनोरथ वाले, निराशा से ग्रस्त होते हैं। अदत्तादान का पाप करने वालों के प्राणी भवान्तर में भी अनेक प्रकार की तृष्णाओं के पाश में बँधे रहते हैं। लोक में सारभूत अनुभव किये जाने वाले अर्थोपार्जन एवं कामभोगों सम्बन्धी सुख के लिए अनुकूल या प्रबल प्रयत्न करने पर भी उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती। उन्हें प्रतिदिन उद्यम करने पर भी बड़ी कठिनाई से इधर – उधर बिखरा भोजन ही नसीब होता है। वे प्रक्षीणद्रव्यसार होते हैं। अस्थिर धन, धान्य और कोश के परिभोग से वे सदैव वंचित रहते हैं। काम तथा भोग के भोगोपभोग के सेवन से भी वंचित रहते हैं। परायी लक्ष्मी के भोगोपभोग को अपने अधीन बनाने के प्रयास में तत्पर रहते हुए भी वे बेचारे न चाहते हुए भी केवल दुःख के ही भागी होते हैं। उन्हें न तो सुख नसीब होता है, न शान्ति। इस प्रकार जो पराये द्रव्यों से विरत नहीं हुए हैं, वे अत्यन्त एवं विपुल सैकड़ों दुःखों की आग में जलते रहते हैं। अदत्तादान का यह फलविपाक है। यह इहलोक और परलोक में भी होता है। यह सुख से रहित है और दुःखों की बहुलता वाला है। अत्यन्त भयानक है। अतीव प्रगाढ कर्मरूपी रज वाला है। बड़ा ही दारुण है, कर्कश है, असातामय है और हजारों वर्षों में इससे पिण्ड छूटता है, किन्तु इसे भोगे बिना छूटकारा नहीं मिलता। ज्ञातकुलनन्दन, महावीर भगवान ने इस प्रकार कहा है। अदत्तादान के इस तीसरे (आस्रव – द्वार के) फलविपाक को भी उन्हीं तीर्थंकर देव ने प्रतिपादित किया है। यह अदत्तादान, परधन – अपहरण, दहन, मृत्यु, भय, मलिनता, त्रास, रौद्रध्यान एवं लोभ का मूल है। इस प्रकार यह यावत् चिर काल से लगा हुआ है। इसका अन्त कठिनाई से होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] taheva kei parassa davvam gavesamana gahita ya haya ya baddharuddha ya taritam atidhadiya puravaram samappiya choraggaha charabhada chadukarana tehi ya kappadappahara niddaya arakkhiya khara pharusa vayana tajjana galatthalla utthallanahim vimana charagavasahim pavesiya nirayavasahisarisam. Tatthavi gommikappahara dumana nibbhachchhana kaduyavayana bhesanaga bhayabhibhuya akkhitta niyamsana malinadamdikhamdavasana ukkoda lamcha pasa maggana parayanehim gommikabhadehim vivihehim bamdhanehi, kim te? Hadi niyada balarajjuya kudamdaga varatta loha-samkala hatthamduya vajjhapatta damaka nikkodanehim, annehi ya evamadiehim gommika bhamdovakaranehim dukkhasamudiranehim samkodana moda-nahi vajjhamti mamdapunna. Sampuda kavada lohapamjara bhumighara niroha kuva charaga khilaga juya chakka vitata bamdhana khambhalana uddhachalanabamdhana vihammanahi ya vihedayamta, avakodakagadha urasirabaddha uddhapurita phuramtaurakadaga modanamedanahim baddha ya nisasamta, sisavedha uruyala chappadagasamdhibamdhana tattasalagasuiya-kodanani tachchhana vimananani ya khara kaduya titta navana jayana karanasayani bahuyani paviyamta, urakhodidinnagadhapellana atthikasambhagga sapamsuliga, gala kalakalohadamda ura udara vatthi patthi paripilita, machchhamta hiyaya samchunniyamgamamga. Anatti kimkarehim keti avirahiyaveriehim jamapurisa sannihehim pahaya te tattha mamdapunna, chadavela vajjhapatta parai chhiva kasa lata varatta vetta ppaharasayataliyamgamamga, kivana lambamtachamma vana veyana vimuhiyamana, ghanakottima niyala juyalasamkodiya modiya ya kiramti niruchchara, eya anna ya evamadio veyanao pavapavemti adamtimdiya vasatta bahumohamohiya paradhanammi luddha phasimdiyavisaya tivvagiddha, itthigaya ruva sadda rasa gamdha ittha rati mahitabhoga tanhaiya ya dhanatosaga gahiya ya je naragana. Punaravi te kammaduvviyaddha uvaniya rayakimkaranam tesim vadhasatthagapadhayanam vilauli-karakanam lamchasa-yagenhaganam kuda kavada maya niyadi ayarana panihi vamchana visarayanam bahuvihaaliyasayajampakanam paralokaparammuhanam nirayagati gamiyanam. Tehim ya anatta jiyadamda turiyam ugghadiya puravare simghadaga tiya chaukka chachchara chaummuha mahapaha pahesu vetta damda lauda kattha letthu patthara panali panolli mutthi laya pada panhi janu koppara paharasambhagga mahiyagatta attharasa kammakarana jaiyamgamamga kaluna sukkotthakamthagalakatalujibbha jayamta paniyam vigayajiviyasa tanhadita varaga tampi ya na labhamti vajjhapurisehim dhadiyamta. Tattha ya kharapharusapadahaghattita kudaggaha gadharutthanisatthaparamattha vajjhakarakudijuyaniyattha, surattakanavira gahiya vimukula kamthegunavajjhaduta aviddha malladama maranabhayuppannaseyamaya-tanehuttupiyakilinnagatta chunnagumdiyasarira rayarenubhariyakesa kusumbhagokkhinnamuddhaya chhinnajivi-yasa dhunnata vajjha-panapita tilam-tilam cheva chhijjamana sariravikkitta lohiolitta kaganimamsani khaviyamta pava kharakarasaehim talijjamanadeha vatikanaranarisamparivuda pechchhijjamta ya nagarajanena, vajjhanevatthiya panejjamti nayaramajjhena, kivanakaluna attana asarana anaha abamdhava bamdhuvippahina vipekkhamta disodisim, maranabhayuvvigga aghayana padiduvara sampaviya aghanna sulagga vilagga bhinnadeha. Te ya tattha kiramti parikappiyamgamamga, ullamvijjamti rukkhasalehi kei kalunaim vilavamana, avare chauramga dhaniyabaddha pavvayakadaga pamuchchamti durapata bahuvisama pattharasaha, anneya gayachalana malana nimaddiya kiramti pavakari, attharasa khamdiya ya kiramti mumdaparasuhim, kei ukkattakannotthanasa uppadiyanayanadasanavasana jibbhamchhiya chhinnakannasira panijjamte, chhijjamte ya asina, nivvisaya chhinnahatthapaya ya pamuchchamte, javajjivabamdhana ya kiramti kei paradavvaharanaluddha karaggala-niyalajuyalaruddha charagae–hatasara sayanavippamukka mittajana nirakkaya nirasa bahujanadhi-kkarasaddalajjavita alajja anubaddhakhuha paraddha siunhatanha-veyanaduhattaghattiya vivannamuha vichchhaviya vihalamailadubbala kilamta kasamta vahiya ya amabhibhuyagatta parudhanahakesamamsuroma chhaga muttammi niyagammi khutta tattheva maya akamaka bamdhiuna desu kaddhiya khaiyae chhudha. Tattha ya vaga sugana siyala kola majjaravamda samdamsagatumda pakkhiganavivihamuhasaya viluttagatta kaya-vihamga. Kei kimina ya kuthitadeha anitthavayanehim sappamana–sutthukayam jam mauti pavo, tutthena janena hammamana lajjavanaka ya homti sayanassavi dihakalam maya samta. Puno paralogasamavanna narage gachchhamti nirabhirame amgarapalittakakappa achchattha sitavedana assaodinna satatadukkhasayasamabhiddute. Tatovi uvvattiya samana punovi pavajjati tiriyajoni. Tahipi nirayovamam anubhavamti veyanam te. Anamtakalena jati nama kahimchi manuyabhavam labhamti negehim nirayagatigamana tiriyabhava sayasahassa pariyattaehim. Tattha vi ya bhavamtanariya nichakulasamuppanna ariyajanevi logavajjha tirikkhabhuta ya akusala kamabhogatisiya jahim nibamdhamti nirayavattini, bhavappavamchakarana panolli, punovisamsaraneme dhammasuti vivajjiya anajja kura michchhattasuti pavanna ya homti egamtadamdaruino, vedhemta kosikarakido vva appagam atthakammatamtu ghanabamdhanenam. Evam naraga tiriya nara amara gamanaperamtachakkavalam jammanajaramaranakarana gambhiradukkha pakhubhiya-paurasalilam samjogaviyogavichi chimtapasamgapasariya vahabamdha mahallavipulakallola kalunavilavita lobhakalakalimtabolabahulam avamananaphena tivvakhimsana pulampulappabhuyarogaveyana parabhavavinivata pharusadharisanasamavadiya kadhinakammapatthara taramgaramgamtam nichchamachchubhaya toyapattham kasayapayala samkulam bhavasayasahassajalasamchayam anamtam uvveyanayam anoraparam mahabbhayam bhayamkaram paibhayam aparimiyamahichchha kalusamativauvegauddhamma-mana–asapivasapayala kamarati ragadosabamdhana bahuvihasamkappavipulada-garayarayamdhakaram, mohamahavattabhogabhamamanaguppamanuvvalamtabahugabbhavasa pachchoniyattapaniya padhavita-vasanasamavanna runnachamdamaruyasamahayamanunnavichovakulita bhamgaphuttamtanitthakallolasamkula-jalam, pamayabahuchamdadutthasavayasamahaya utthayamanagapuraghoraviddhamsanatthabahulam.. ..Annanabhamamtamachchha-parihattha anihutimdiyamahamagaraturiyachariyakhokhubbhamana samtava nichchaya chalamtachavalachamchala attanasaranapuvva-kayakammasam chayodinnavajjaveijjamana duhasaya-vipaka-dhunnamtajalasamuham, iddhirasasayagaravohara-gahiyakammapadibaddha satta kaddhijjamananiraya-talahuttasannavisannabahulam, arairaibhayavisayaso-gamichchhattaselasamkadam, anatisamtanakammabamdhana-kilesachikkhallasuduttaram, amaranaratiriyanirayagati-gamanakudilapariyattavipulavelam, himsalaya adattadana mehuna pariggaharambha karanakaravananumodana atthavihaanitthakammapidita gurubharokkamta duggajaloghaduranivolijjamana ummagganimaggadullabhatalam, sariramanomayani dukkhani uppiyamta, satassayaparitavanamayam uvvudda-nivuddayam karemta, chauramtamahamtamanavayaggam ruddam samsarasagaram atthiya-analambanapatithanamappameyam, chulasiti jonisayasahassaguvilam, analokamamdhakaram, anamtakalam nichcham uttattha sunna bhaya sannasampautta vasamti uvviggavasavasahim. Jahim jahim auyam nibamdhamti pavakari bamdhavajana sayana mittaparivajjiya anittha bhavamtanadejja duvviniya kutthanasana kusejja kubhoyana asuino kusamghayana kuppamana kusamthiya kuruva bahukoha mana maya lobha bahumoha dhammasanna sammatta paribbhattha dariddovaddavabhibhuya, nichcham parakammakarino jivanattharahiya kivina parapimdatakkaka dukkhaladdhahara arasa virasa tuchchha kayakuchchhipura, parassa pechchhamta riddhisakkara bhoyanavisesa samudayavihim nimdamta appakam kayamtam cha, parivayamta iha ya purekadaim kammaim pavagaim, vimana soena dajjhamana paribhuya homti sattaparivajjiya ya, chhobha sippa kala samayasattha parivajjiya jahajayapasubhuya achiyatta nichchaniyakammovajivino loyakuchchhanijja mohamanoraha nirasabahula asapasapadibaddhapana attho payana kamasokkhe ya loyasare homti apachchamtaga ya sutthuvi ya ujjamamta, taddivasujjutta kammakayadukkha samthaviya sitthapimda samchayapara khinadavvasara, nichcham adhuvadhana dhanna kosa paribhoga vivajjiya, rahiya kama bhoga paribhoga savva sokkha parasiribhogovabhoganissana magganaparayana varaga akamikae vinemti dukkham, neva suham neva nivvuttim uvalabhamti, achchamtavipuladukkhasaya sampalitta parassa davvehim je aviraya. Eso so adinnadanassa phalavivago ihaloio paraloio appasuho bahudukkho mahabbhao bahurayappagadho daruno kakkaso asao vasasahassehim muchchati na ya aveyaitta atthi hu mokkhotti–evamahamsu nayakulanamdano mahappa jino u viravarana-madhejjo, kahesi ya adinnadanassa phalavivagam. Eyam tam tatiyampi adinnadanam hara daha marana bhaya kalusa tasana parasamtikabhejjalomamulam kala visama samsiyam aho chchhinnatanha patthana patthoimaiyam akittikaranam anajjam chhiddamamtara vidhura vasana maggana ussava matta ppamatta pasutta vamchanakhivana ghayanapara anihuyaparinamam takkarajanabahumayam akalunam rayapurisarakkhiyam saya sahugarahanijjam piyajana mittajana bhedavippitikarakam rayadosabahulam puno ya uppura samara samgama damara kali kalaha vehakaranam duggati vinivayavaddhanam bhava punabbhavakaram chiraparigatamanugatam duramtam. Tatiyam ahammadaram samattam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isi prakara parakiya dhana dravya ki khoja mem phirate hue kaim chora pakare jate haim aura unhem mara – pita jata hai, bamdha jata hai aura kaida kiya jata hai. Unhem vega ke satha ghumaya jata hai. Tatpashchat chorom ko pakarane vale, chaukidara, guptachara unhem karagara mem thumsa dete. Kapare ke chabukom ke praharom se, kathora – hridaya sipahiyom ke tikshna evam kathora vachanom ki data – dapata se tatha gardana pakarakara dhakke dene se unaka chitta khedakhinna hota hai. Una chorom ko narakavasa sarikhe karagara mem jabaradasti ghusera diya jata hai. Vaham bhi ve karagara ke adhikariyom dvara praharom, yatanaom, tarjanaom, katuvachanom evam bhayotpadaka vachanom se bhayabhita hokara duhkhi bane rahate haim. Unake vastra chhina liye jate haim. Vaham unako maile phate vastra milate haim. Bara – bara una kaidiyom se lamcha mamgane mem tatpara karagara ke rakshakom dvara aneka prakara ke bandhanom mem bamdha diye jate haim. Chorom ko jina vividha bandhanom se bamdha jata hai, ve bandhana kauna – se haim\? Haddi ya kashthamaya beri, lohamaya beri, balom se bani hui rassi, eka vishesha prakara ka kashtha, charmanirmita mote rasse, lohe ki samkala, hathakari, chamare ka patta, paira bamdhane ki rassi tatha nishkodana, ina saba tatha isi prakara ke anya – anya duhkhom ko samutpanna karane vale karagara ke sadhanom dvara bamdhe jate haim; itana hi nahim – Una papi chora kaidiyom ke sharira ko sikora kara, mora kara jakara diya jata hai. Kaidakothari mem dala kara kivara bamda kara dena, lohe ke pimjaremem dalana, bhumigrihamem bamda karana, kupamem utarana, bamdighara ke simkhachom se bamdha dena, amgommem kilem thokana, juva unake kamdhe para rakhana, gari ke pahiye ke satha bamdha dena, bahom jamghom aura sira ko kasa kara bamdhana, khambhe se chipatana, pairom ko upara aura mastaka ko niche karake bamdhana, ityadi bandhana se bamdhakara adharmi jela – adhikariyom dvara chora bamdhe jate haim. Gardana nichi karake, chhati aura sira kasa kara bamdha diya jata hai taba ve nishvasa chhorate haim. Unaki chhati dhak dhak karati hai. Unake amga more jate haim. Thamdi shvasem chhorate haim Chamare ki rassi se unake mastaka bamdha dete haim, donom jamghaom ko chira dete haim, jorom ko kashthamaya yantra se bamdha jata hai. Tapai hui lohi ki salaiyam evam suiyam sharira mem chubhoi jati haim. Sharira chhila jata hai. Marmasthalom ko pirita kiya jata hai. Kshara katuka aura tikhe padartha unake komala amgom para chhirake jate haim. Isa prakara pira pahumchane ke saikarom karana ve prapta karate haim. Chhati para kashtha rakhakara jora se dabane se unaki haddiyam bhagna ho jati haim. Machhali pakarane ke kamte ke samana ghataka kale lohe ke nokadara damde chhati, peta, guda aura pitha mem bhomka dene se ve atyanta pira anubhava karate haim. Aisi – aisi yatanaom se adattadana karane valom ka hridaya matha diya jata hai aura unake amga – pratyamga chura – chura ho jate haim. Koi – koi aparadha kiye bina hi vairi bane hue karmachari yamadutom ke samana mara – pita karate haim. Ve abhage karagara mem thapparom, mukkom, charmapattom, lohe ke kushom, lohamaya tikshna shastrom, chabukom, latom, mote rassom aura betom ke saikarom praharom se amga – amga ko tarana dekara pirita kiye jate haim. Latakati hui chamari para hue ghavom ki vedana se una bechare chorom ka mana udasa ho jata hai. Beriyom ko pahanaye rakhane ke karana unake amga sikura jate haim aura shithila para jate haim. Yaham taka ki unaka mala – mutratyaga bhi roka diya jata hai, unaka bolana bamda kara diya jata hai. Ve idhara – udhara samcharana nahim kara pate. Ye aura isi prakara ki anyanya vedanaem ve adattadana ka papa karane vale papi prapta karate haim. Jinhomne apani indriyom ka damana nahim kiya hai – vashibhuta ho rahe haim, jo tivra asakti ke karana mudha – bana gae haim, parakiya dhanamem lubdha haim, jo sparshanendriya vishayamem tivra rupa se griddha – haim, stri sambandhi rupa, shabda, rasa aura gamdha mem ishta rati tatha ishta bhoga ki trishna se vyakula bane hue haim, jo kevala dhana mem hi santosha manate haim, aise manushya – gana phira bhi papakarma ke parinama ko nahim samajhate. Ve arakshaka – vadhashastra ke pathaka hote haim. Chorom ko giraphtara karane mem chatura hote haim. Saikarom bara lamcha – lete haim. Jhutha, kapata, maya, nikriti karake veshaparivartana adi karake chora ko pakarane tatha usase aparadha svikara karane mem atyanta kushala hote haim – ve narakagatigami, paraloka se vimukha evam saikarom asatya bhashana karane vale, aise rajakimkarom – ke samaksha upasthita kara diye jate haim. Pranadanda ki saja pae hue chorom ko puravara – mem shrimgataka, trika, chatushka, chatvara, chaturmukha, mahapatha aura patha adi sthanom mem janasadharana ke samane – laya jata hai. Tatpashchat betom, damdom, lathiyom, lakariyom, dhelom, pattharom, lambe laththom, panolli, mukkom, lataom, latom, ghutanom aura kohaniyom se, unake amga – amga bhamga kara die jate haim, unake sharira ko matha diya jata hai. Atharaha prakara ke chorom evam chori ke prakarom ke karana unake amga – amga pirita kara diye jate haim, karunajanaka dasha hoti hai. Unake oshtha, kantha, gala, talu aura jibha sukha jati hai, jivana ki asha nashta ho jati hai. Pani bhi nasiba nahim hota. Unhem dhakele ya ghasite jate haim. Atyanta karkasha pataha – bajate hue, dhakiyae jate hue tatha tivra krodha se bhare hue rajapurushom ke dvara phamsi para charhane ke lie drirhatapurvaka pakare hue ve atyanta hi apamanita hote haim. Unhem do vastra aura lala kanera ki mala pahanayi jati hai, jo vadhyabhuta si pratita hoti hai, purusha ko shighra hi maranabhiti se unake sharira se pasina chhutata hai, unake sare amga bhiga jate haim. Koyale adi se unaka sharira pota hai. Hava se urakara chipati hui dhula se unake kesha rukhe evam dhula bhare ho jate haim. Unake mastaka ke keshom ko kusumbhi – se ramga diya jata hai. Unaki jivana – asha chhinna ho jati hai. Ativa bhayabhita hone ke karana ve dagamagate hue chalate haim aura ve vadhakom se bhayabhita bane rahate haim. Unake sharira ke chhote – chhote tukare kara die jate haim. Unhim ke sharira mem se kate hue aura rudhira se lipta mamsa ke tukare unhem khilae jate haim. Kathora evam karkasha sparsha vale patthara adi se unhem pita jata hai. Isa bhayavaha drishya ko dekhane ke lie utkamthita, pagalom jaisi nara – nariyom ki bhira se ve ghira jate haim. Nagarika jana unhem dekhate haim. Mrityudandaprapta kaidi ki poshaka pahanai jati hai aura nagara ke bichom – bicha ho kara le jaya jata hai. Usa samaya ve atyanta dayaniya dikhai dete haim. Tranarahita, asharana, anatha, bandhubandhavavihina, svajana dvara parityakta ve idhara – udhara najara dalate haim aura mauta ke bhaya se atyanta ghabarae hue hote haim. Unhem vadhasthala para pahumcha diya jata hai aura una abhagom ko shuli para charha diya jata hai, jisase unaka sharira chira jata hai. Vaham vadhyabhumi mem unake amga – pratyamga kata dale jate haim. Vriksha ki shakhaom para tamga diya jata hai. Chara amgom – ko kasa kara bamdha diya jata hai. Kinhim ko parvata ki choti se giraya jata hai. Usase pattharom ki chota saheni parati hai. Kisi – kisi ko hathi ke paira ke niche kuchala jata hai. Una adattadana ka papa karanevalom ko kumthita dharavale – kulharom adi se atharaha sthanom mem khamdita kiya jata hai. Kaiyom ke kana, amkha aura naka kate jate haim tatha netra, damta aura vrishana ukhare jate haim. Jibha khimcha li jati hai, kana ya shiraem kata di jati haim. Phira unhem vadhabhumi mem le jaya jata hai aura vaham talavara se kata jata hai. Hatha aura paira kata kara nirvasita kara diya jata hai. Kaim chorom ko ajivana karagara mem rakha jata hai. Parakiya dravya ke apaharana mem lubdha kaim chorom ko samkala bamdha kara evam pairom mem beriyam dala kara bandha kara ke unaka dhana chhina liya jata hai. Ve chora svajanom dvara tyaga diye jate haim. Sabhi ke dvara ve tiraskrita hote haim. Ata eva ve sabhi ki ora se nirasha ho jate haim. Bahuta – se logom ke ‘dhikkara se’ ve lajjita hote haim. Una lajjahina manushyom ko nirantara bhukha marana parata hai. Chori ke ve aparadhi sardi, garmi aura pyasa ki pira se karahate rahate haim. Unaka mukha – sahama hua aura kantihina ko jata hai. Ve sada vihvala ya viphala, malina aura durbala bane rahate haim. Thake – hare ya murjhae rahate haim, koi – koi khamsate rahate haim aura aneka rogom se grasta rahate haim. Athava bhojana bhalibhamti na pachane ke karana unaka sharira pirita rahata hai. Unake nakha, kesha aura darhi – mumchhom ke bala tatha roma barha jate haim. Ve karagara mem apane hi mala – mutra mem lipta rahate haim. Jaba isa prakara ki dussaha vedanaem bhogate – bhogate ve, marane ki ichchha na hone para bhi, mara jate haim. Unake shaba ke pairom mem rassi bamdha kara kisi gaddhe mem phaimka jata hai. Tatpashchat bheriya, kutte, siyara, shukara tatha samdasi ke samana mukhavale anya pakshi apane mukhom se unake shaba ko nocha – chimtha dalate haim. Kaim shabom ko pakshi kha jate haim. Kaim chorom ke mrita kalevara mem kire para jate haim, unake sharira sara – gala jate haim. Unake bada bhi anishta vachanom se unaki ninda ki jati hai – achchha hua jo papi mara gaya. Usaki mrityu se santushta hue loga usaki ninda karate haim. Isa prakara ve papi chora apani mauta ke pashchat bhi dirghakala taka apane svajanom ko lajjita karate rahate haim. Ve paraloka ko prapta hokara naraka mem utpanna hote haim. Naraka nirabhirama hai aura aga se jalate hue ghara ke samana atyanta shita vedana vala hota hai. Asatavedaniya karma ki udirana ke karana saikarom duhkhom se vyapta hai. Naraka se udvarttana karake phira tiryamchayoni mem janma lete haim. Vaham bhi ve naraka jaisi asatavedana ko anubhavate haim. Tiryamchayoni mem ananta kala bhatakate haim. Kisi prakara, anekom bara narakagati aura lakhom bara tiryamchagati mem janma – marana karate – karate yadi manushyabhava pa lete haim to vaham bhi nicha kula mem utpanna aura anarya hote haim. Kadachit aryakula mem janma mila gaya to vaham bhi lokabahya hote haim. Pashuom jaisa jivana yapana karate haim, kushalata se rahita hote haim, atyadhika kamabhogom ki trishna vale aura anekom bara naraka – bhavom mem utpanna hone ke ku – samskarom ke karana papakarma karane ki pravritti vale hote haim. Ata eva samsara mem paribhramana karane vale ashubha karmom ka bandha karate haim. Ve dharmashastra ke shravana se vamchita rahate haim. Ve anarya, krura mithyatva ke poshaka shastrom ko amgikara karate haim. Ekantatah himsa mem hi unaki ruchi hoti hai. Isa prakara reshama ke kire ke samana ve ashtakarma rupi tantuom se apani atma ko pragadha bandhanom se jakara lete haim. Naraka, tiryamcha, manushya aura deva gati mem gamanagamana karana samsara – sagara ki bahya paridhi hai. Janma, jara aura marana ke karana hone vala gambhira duhkha hi samsara – sagara ka atyanta kshubdha jala hai. Samsara – sagara mem samyoga aura viyoga rupi laharem uthati rahati haim. Satata – chinta hi usaka prasara hai. Vadha aura bandhana hi usamem vistirna taramgem haim. Karunajanaka vilapa tatha lobha ki kalakalahata ki dhvani ki prachurata hai. Apamana rupi phena hote haim. Tivra ninda, punah punah utpanna honevale roga, vedana, tiraskara, parabhava, adhahpatana, kathora jhirakiyam jinake karana prapta hoti haim, aise kathora jnyanavaraniya adi karmom rupi pashanom se uthi hui taramgom ke samana chamchala hai. Mrityu ka bhaya usa samsara – samudra ke jala ka tala hai. Vaha samsara – sagara kashayarupi patala – kalashom se vyapta hai. Bhava – parampara hi usaki vishala jalarashi hai. Vaha ananta hai. Apara hai. Mahana bhaya rupa hai. Usamem pratyeka prani ko eka dusare ke dvara utpanna hone vala bhaya bana rahata hai. Jinaki kahim koi sima nahim, aisi vipula kamanaom aura kalushita buddhi rupi pavana amdhi ke prachanda vega ke karana utpanna tatha asha aura pipasa rupa patala, samudratala se kamarati ki prachurata se vaha andhakaramaya ho raha hai. Samsara – sagara ke jala mem prani moharupi bhamvarom mem bhogarupi golakara chakkara laga rahe haim, vyakula hokara uchhala rahe haim, niche gira rahe haim. Isa samsara – sagara mem dauradhama karate hue, vyasanom se grasta praniyom ke rudanarupi prachanda pavana se paraspara takarati hui amanojnya laharom se vyakula tatha taramgom se phutata hua evam chamchala kallomlom se vyapta jala hai. Vaha pramada rupi atyanta prachanda evam dushta shvapadom dvara sataye gaye evam idhara – udhara ghumate hue praniyom ke samuha ka vidhvamsa karane vale ghora anarthom se paripurna hai. Usamem ajnyana rupi bhayamkara machchha ghumate haim. Anupashanta indriyom vale jivarupa mahamagarom ki nayi – nayi utpanna hone vali cheshtaom se vaha atyanta kshubdha ho raha hai. Usamem santapom ka samuha vidyamana hai, aisa praniyom ke dvara purvasamchita evam papakarmom ke udaya se prapta honevala tatha bhoga janevala phala rupi ghumata hua jala – samuha hai jo bijali ke samana chamchala hai. Vaha trana evam sharana se rahita hai, isi prakara samsara mem apane papakarmom ka phala bhogane se koi bacha nahim sakata. Samsara – sagara mem riddhi, rasa aura satagaurava rupi apahara dvara pakare hue evam karmabandha se jakare hue prani jaba narakarupa patala – tala ke sammukha pahumchate haim to sanna aura vishana hote haim, aise praniyom ki bahulata vala hai. Vaha arati, rati, bhaya, dinata, shoka tatha mithyatva rupi parvatom se vyapta haim. Anadi santana karmabandhana evam raga – dvesha adi klesha rupa kichara ke karana usa samsara – sagara ko para karana atyanta kathina hai. Samudra mem jvara ke samana samsara – samudra mem chaturgati rupa kutila parivartanom se yukta vistirna – jvara – ate rahate haim. Himsa, asatya, chori, maithuna aura parigraha rupa arambha ke karane, karane aura anumodane se sachitta jnyanavarana adi atha karmom ke gurutara bhara se dabe hue tatha vyasana rupi jalapravaha dvara dura phemke gae praniyom ke lie isa samsara – sagara ka tala pana atyanta kathina hai. Isamem prani duhkhom ka anubhava karate haim. Samsara sambamdhi sukha – duhkha se utpanna hone vale paritapa ke karana ve kabhi upara uthane aura kabhi dubane ka prayatna karate rahate haim. Yaha samsara – sagara chara disha rupa chara gatiyom ke karana vishala hai. Yaha antahina aura vistrita hai. Jo jiva samyama mem sthita nahim, unake lie yaham koi alambana nahim hai. Chaurasi lakha jivayoniyom se vyapta haim. Yaham ajnyanandhakara chhaya rahata hai aura yaha ananta – kala taka sthayi hai. Samsara – sagara udvegaprapta – duhkhi praniyom ka nivasa – sthana hai. Isa samsara mem papakarmakari prani – jisa grama, kula adi ki ayu bamdhate haim vahim para ve bandhu – bandhavom, svajanom aura mitrajanom se parivarjita hote haim, ve sabhi ke lie anishta hote haim. Unake vachanom ko koi grahya nahim manata aura ve durvinita hote haim. Unhem rahane ko, baithane ko kharaba asana, sone ko kharaba shayya aura khane ko kharaba bhojana milata hai. Ve ashuchi rahate haim. Unaka samhanana kharaba hota hai, sharira pramanopeta nahim hota. Unake sharira ki akriti bedaula hoti hai. Ve kurupa hote haim. Tivrakashayi hote haim aura moha ki tivrata hoti hai. Unamem dharmasamjnya nahim hoti. Ve samyag – darshana se rahita hote haim. Unhem daridrata ka kashta sada satata rahata hai. Ve sada parakarmakari rahakara jindagi bitate haim. Kripana – ramka – dina – daridra rahate haim. Dusarom ke dvara diye jane vale pinda – taka mem rahate haim. Kathinai se duhkhapurvaka ahara pate haim, kisi prakara rukhe – sukhe, nirasa evam nissara bhojana se peta bharate haim. Dusarom ka vaibhava, satkara – sammana, bhojana, vastra adi samudaya – abhyudaya dekhakara ve apani ninda karate haim. Isa bhava mem ya purvabhava mem kiye papakarmom ki ninda karate haim. Udasa mana raha kara shoka ki aga mem jalate hue lajjita – tiraskrita hote haim. Satha hi ve sattvahina, kshobhagrasta tatha chitrakala adi shilpa ke jnyana se, vidyaom se evam shastra jnyana se shunya hote haim. Yathajata ajnyana pashu ke samana jara buddhi vale, avishvasaniya ya apratiti utpanna karane vale hote haim. Sada nicha kritya karake apani ajivika chalate haim – lokanindita, asaphala manoratha vale, nirasha se grasta hote haim. Adattadana ka papa karane valom ke prani bhavantara mem bhi aneka prakara ki trishnaom ke pasha mem bamdhe rahate haim. Loka mem sarabhuta anubhava kiye jane vale arthoparjana evam kamabhogom sambandhi sukha ke lie anukula ya prabala prayatna karane para bhi unhem saphalata prapta nahim hoti. Unhem pratidina udyama karane para bhi bari kathinai se idhara – udhara bikhara bhojana hi nasiba hota hai. Ve prakshinadravyasara hote haim. Asthira dhana, dhanya aura kosha ke paribhoga se ve sadaiva vamchita rahate haim. Kama tatha bhoga ke bhogopabhoga ke sevana se bhi vamchita rahate haim. Parayi lakshmi ke bhogopabhoga ko apane adhina banane ke prayasa mem tatpara rahate hue bhi ve bechare na chahate hue bhi kevala duhkha ke hi bhagi hote haim. Unhem na to sukha nasiba hota hai, na shanti. Isa prakara jo paraye dravyom se virata nahim hue haim, ve atyanta evam vipula saikarom duhkhom ki aga mem jalate rahate haim. Adattadana ka yaha phalavipaka hai. Yaha ihaloka aura paraloka mem bhi hota hai. Yaha sukha se rahita hai aura duhkhom ki bahulata vala hai. Atyanta bhayanaka hai. Ativa pragadha karmarupi raja vala hai. Bara hi daruna hai, karkasha hai, asatamaya hai aura hajarom varshom mem isase pinda chhutata hai, kintu ise bhoge bina chhutakara nahim milata. Jnyatakulanandana, mahavira bhagavana ne isa prakara kaha hai. Adattadana ke isa tisare (asrava – dvara ke) phalavipaka ko bhi unhim tirthamkara deva ne pratipadita kiya hai. Yaha adattadana, paradhana – apaharana, dahana, mrityu, bhaya, malinata, trasa, raudradhyana evam lobha ka mula hai. Isa prakara yaha yavat chira kala se laga hua hai. Isaka anta kathinai se hota hai. |