Sutra Navigation: Prashnavyakaran ( प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005408 | ||
Scripture Name( English ): | Prashnavyakaran | Translated Scripture Name : | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Translated Chapter : |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 8 | Category : | Ang-10 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका। कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते? सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क चीण ल्हासिय खस खासिय नेद्दर मरहट्ठ मुट्ठिय आरब डोंबिलग कुहण केकय हूण रोमग रुरु मरुगा चिलायविसयवासी य पावमतिणो, जलयर थलयरसणहपय उरग खहचर संडासतोंड जीवोवघायजीवी, सण्णी य असण्णिणो य पज्जत्ता असुभलेस्सपरिणामा एते अन्नेय एवमादी करेंति पाणातिवायकरणं, पावा पावाभिगमा पावरुई पाणवहकयरती पाणवहरूवाणुट्ठाणा पाणवहकहासु अभिरमंता तुट्ठा पावं करेत्तु होंति य बहुप्पगारं। तस्स य पावस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति–महब्भयं अविस्साम वेयणं दीहकाल-बहुदुक्खसंकडं नरय तिरिक्खजोणिं। इओ आउक्खए चुया असुभकम्मबहुला उववज्जंति नरएसु हुलित्तं–महालएसु, वयरामय कुड्ड रुंद निस्संधि दारविरहिय निम्मद्दव भूमितल खरामस्स विसमणि-रयघरचारएसु, महोसणि सयावतत्त दुग्गंध विस्स उव्वेयणगेसु बीभच्छ दरिसणिज्जेसु, निच्चं हिमपडलसीयलेसु, कालोभासेसु य, भीम गंभीर लोमहरिसणेसु, निरभिरामेसु, निप्पडियार वाहि रोग जरा पीलिएसु, अतीवनिच्चंधकारतिमिसेसु, पतिभएसु, ववगय गह चंद सूर नक्खत्त जोइसेसु, मेयवसामंसपडल पुच्चड पूयरुहिरुक्किण्ण विलीण चिक्कण रसियावावण्ण कुहिय-चिक्खल्ल कद्दमेसु, कुकूलानल पलित्त जाल मुम्मुर असिक्खुरकरवत्तधार सुनिसितविच्छुयडंक निवातोवम्म फरिस अतिदुस्सहेसु, अत्ताणसरण कडुयदुक्खपरितावणेसु, अनुबद्ध निरंतरवेयणेसु, जमपुरिस-संकुलेसु। तत्थ य अंतोमुहुत्तलद्धि भवपच्चएणं निव्वत्तेंति य ते सरीरं, हुंडं बीभच्छदरिसणिज्जं बीहणगं अट्ठि ण्हारु णह रोमवज्जियंअसुभगंध-दुक्खविसहं। ततो य पज्जत्तिमुवगया इंदिएहिं पंचहिं वेदेंति असुभाए वेयणाए उज्जल बल विउल उक्कड खर फरुस पयंड घोर वीहणग दारुणाए, किं ते? – कंदुमहाकुंभियपयणपउलण तवगतलणभट्ठभज्जणाणि य, लोहकडाहकढणाणि य, कोट्ट बलिकरण कोट्टणाणि य, सामलिति-क्खग्ग-लोहकंटक-अभिसरणापसरणाणि फालण विदालणाणि य, अवकोडकबंधणाणि य, लट्ठिसयतालणाणि य, गलगबलुल्लंबणाणि य, सूलग्गभेयणाणि य, आएस-पवंचणाणि, खिंसणविमाणणाणि य, विधुट्ठपणिज्जणाणि, वज्झसयमातिकाणि य। एवं ते पुव्वकम्मकयसंचयोवतत्ता निरयग्गि महग्गिसंपलित्ता गाढदुक्खं महब्भयं कक्कसं असायं सारीरं माणसं च तिव्वं दुविहं वेदेंति वेयणं, पावकम्मकारी बहूणि पलिओवम सागरोवमाणि कलुणं पालेंति ते अहाउ जमकाइय तासिता य सद्दं करेंति भया, किं ते? – अविभाव सामि भाय वप्प तायजियवं मुय मे मरामि दुब्बलो वाहिपीलिओहं, किं दानिऽसि? एवं दारुणे निद्दओ य मा देहि मे पहारे, उस्सासेतं मुहुत्तयं मे देहि, पसायं करेहि, मा रूस, वीसमामि, गेविज्जं मंच मे मरामि, गाढं तण्हाइओ अहं देहि पाणीयं, ता हंत! पिय इमं जलं विमलं सीयलं ति घेत्तूण य नरयपाला तवियं तउयं से देंति कलसेण अंजलीसु, दट्ठूण य तं पवेवियंगमंगा अंसुपगलंतपप्पुयच्छा छिन्ना तण्हा इयम्ह कलुणाणि जंपमाणा, विप्पेक्खंता दिसोदिसं, अत्ताणा असरणा अनाहा अबंधवा बंधुविप्पहूणा विपलायंति य मिगा व वेगेण भयुव्विग्गा घेत्तूण बला पलायमाणाणं निरनुकंपा मुहं विहाडेत्तु लोहडंडेहिं कलकलं ण्हं वयणंसि छुभंति केइ जमकाइया हसंता। तेण य दड्ढा संता रसंति य भीमाइं विस्सराइं, रुदंति य कलुणगाइं पारेवतगा व, एवं पलवित-विलाव-कलुणो कंदिय-बहुरुन्न-रुदियसद्दो परिदेविय-रुद्ध-बद्धकारव-संकुलो नीसट्ठोरसिय-भणिय-कुविय-उक्कूइय-निरयपालतज्जिय-गेण्ह, क्कम, पहर, छिंद, भिंद, उप्पाडेहि, उक्खणाहि, कत्ताहि, विकत्ताहि य, भंज, हण, विहण, विच्छुभोच्छुभ, आकड्ढ, विकड्ढ, किं ण जंपसि? सराहि पाव-कम्माइं दुक्कयाइं–एवं वयणमहप्पगब्भो पडिसुयासद्दसंकुलो तासओ सया निरयगोयराण महानगर डज्झमाण सरिसो निग्घोसो सुच्चए अणिट्ठो तहियं नेरइयाणं जाइज्जंताणं जायणाहिं, किं ते? – असिवन-दब्भवन-जंत-पत्थर-सूइतल-खारवाविकलकलेत-वेयरणि-कलंब-वालुया-जलिय-गुह निरुंभण-उसिणोसिण-कंटइल्ल-दुग्गम-रहजोयण-तत्तलोहपहगमणवाहणाणि। इमेहिं विविहेहिं आयुहेहिं, किं ते? – मोग्गर मुसुंढि करकच सत्ति हल गय मुसल चक्क कोंत तोमर सूल लउल भिंडिमाल सव्वल पट्टिस चम्मेट्ठ दुहण मुट्ठिय असि खेडग खग्ग चाव नाराय कणक कप्पणि वासि परसु टंकतिक्ख निम्मल, अन्नेहि य एवमादिएहिं असुभेहिं वेउव्विएहिं पहरणसतेहिं अनुबद्धतिव्ववेरा परोप्परं वेयणं उदीरेंति अभिहणंता। तत्थ य मोग्गरपहारचुण्णिय-मुसुंढिसंभग्गमहितदेहा जंतोपीलण फुरंत कप्पिया केइत्थ सचम्मका विगत्ता निम्मूलुल्लूण कण्णोट्ठनासिका छिन्नहत्थपादा असि करकय तिक्खकोंत परसुप्पहार-फालिया वासीसंतच्छितंगमंगा कलकलखारपरिसित्तगाढडज्झंतगत्ता कुंतग्गभिण्ण जज्जरिय सव्वदेहा विलोलंति महीतले विसूणियंगमंगा। तत्थ य विग सुणग सियाल काक मज्जार सरभ दीविय वियग्घ सद्दूल सीह दप्पिय खुहाभिभूतेहिं निच्चकालमणसिएहिं घोरा रसमाणभीमरूवेहिं अक्कमित्ता दढदाढागाढडक्ककड्ढिय सुतिक्खनहफालियउद्धदेहा विच्छिप्पंते समंतओ विमुक्कसंधिबंधणा वियंगिमंगा। कंक कुरर गिद्ध घोरकट्ठवायसगणेहिं य पुणो खरथिरदढणक्ख लोहतुंडेहिं ओवतित्ता पक्खाहयतिक्खणक्खविक्खित्तजिब्भ अंछियनयण निद्दयोलुग्ग विगतवयणा, उक्कोसंता य, उप्पयंता निपतंता भमंता पुव्वकम्मोदयोवगता पच्छाणुसएण डज्झमाणा, निंदंता पुरेकडाइं कम्माइं पावगाइं, तहिं-तहिं तारिसाणि ओसण्णचिक्कणाइं दुक्खाइं अणुभवित्ता, ततो य आउक्खएणं उव्वट्टिया समाणा बहवे गच्छंति तिरियवसहिं–दुक्खुत्तारं सुदारुणं जम्मण-मरण-जरावाहि-परियट्टणारहट्टं जलथलखहचर-परोप्पर-विहिंसण-पवंचं। इमं च जगपागडं वराका दुक्खं पावेंति दीहकालं, किं ते? – सीउण्हतण्हखुहवेयण अप्पडीकारअडविजम्मण निच्चभउव्विग्गवास जग्गणवध-बंधन तालणंकण निवायण अट्ठिभंजण नासाभेय प्पहार दूमण छविच्छेयण अभिओगपावण कसंकुसार निवाय दमणाणि वाहणाणि य, मायापिति विप्पयोग सोयपरिपीलणाणि य, सत्थग्गि-विसाभिधाय गलगवलावलण मारणाणि य, गलजालुच्छिंपणाणि पउलण विकप्पणाणि य, जावज्जीविगबंधणाणि पंजर निरोहणाणि य, सज्जूह निद्धाडणाणि धमणाणि दोहणाणि य, कुडंड गलबंधणाणि वाड परिवारणाणि य, पंकजलनिमज्जणाणि वारिप्पवेसणाणि य, ओवायणिभंग विसमणिवडण दवग्गिजाल दहणाइयाइं। एवं ते दुक्खसय संपलित्ता नरगाओ आगया इहं सावसेसकम्मा तिरिक्ख पंचेंदिएसु पावंति पावकारी कम्माणि पमाद राग दोस बहुसंचियाइं अतीव अस्साय कक्कसाइं। भमर मसग मच्छियाइएसु य जाई कुलकोडिसयसहस्सेहिं नवहिं चउरिंदियाण तहिं तहिं चेव जम्मण मरणाणि अणुभवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइय समाणतिव्वदुक्खा फरिस रसण घाण चक्खुसहिया। तहेव तेइंदिएसु–कुंथु पिपीलिका अवधिकादिकेसु य जाती कुलकोडिसयसहस्सेहिं अट्ठहिं अनूनएहिं तेइंदियाण तहिं-तहिं चेव जम्मण मरणाणि अणुहवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइयसमाणतिव्वदुक्खा फरिस रसन घाण संपउत्ता। तहेव बेइंदिएसु–गंडूलय जलुय किमिय चंदणगमादिएसु य जाती कुलकोडिसयसहस्सेहिं सत्तहिं अनूनएहिं बेइंदियाण तहिं-तहिं चेव जम्मण-मरणाणि अणुहवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइयसमाणतिव्वदुक्खा फरिस रसण संपउत्ता। पत्ता एगिंदियत्तणं पि य–पुढवि जल जलण मारुय वणप्फति सुहुम बायरं च पज्जत्तमपज्जत्तं पत्तेयसरीरणामसाहारणं च। पत्तेयसरीरजीविएसु य, तत्थवि कालमसंखेज्जगं भमंति, अनंतकालं च अनंतकाए फासिंदियभावसंपउत्ता दुक्खसमुदयं इमं अणिट्ठं पावेंति पुणो पुणो तहिं तहिं चेव परभव तरुगणगहणे कोद्दालकुलियदालण सलिलमलण खुंभण रुंभण अनलानिल विविहसत्थघट्टण परोप्पराभिहणण मारणविराहणाणि य अकामकाइं परप्पओगोदीरणाहि य कज्जप्पओयणेहि य पेस्सपसु निमित्तं ओसहाहारमाइएहिं उक्खणण उक्कत्थण पयण कोट्टण पीसण पिट्टण भज्जण गालण आमोडण सडण फुडण भंजण छेयण तच्छण विलुंचण पत्तज्झोडण अग्गिदहणाइयाति। एवं ते भवपरंपरादुक्खसमणुबद्धा अडंति संसार बीहणकरे जीवा पाणाइवायनिरया अनंतकालं। जेवि य इह माणुसत्तणं आगया कहंचि नरगाओ उव्वट्टिया अधण्णा, ते वि य दीसंति पायसो विकय विगल रूवा खुज्जा वडभा य वामणा य बहिरा काणा कुंटा य पंगुलाविअला य मूका य मम्मणा य अंधिल्लग एगचक्खुविणिहय सचिल्लया बाहिरोगपीलिय अप्पाउय सत्थवज्झ वाला कुलक्खणुक्किण्णदेह दुब्बल कुसंघयण कुप्पमाण कुसंठिया कुरूवा किविणा य हीना हीनसत्ता निच्चं सोक्खपरिवज्जिया असुह दुक्खभोगो णरगाओ उव्वट्टिया इहं सावसेसकम्मा। एवं नरग तिरिक्खजोणि कुमाणुसत्तं च हिंडमाणा पावंति अनंतकाइं दुक्खाइं पावकारी। एसो सो पाणवहस्स फलविवागो इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चती, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति– एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य पाणवहस्स फलविवागं। एसो सो पाणवहो चंडो रुद्दो खुद्दो अनारिओ निग्घिणो निस्संसो महब्भओ बीहणओ तासणओ अणज्जो उव्वेयणओ य निरवयक्खो निद्धम्मो निप्पिवासो निक्कलुणो निरयवास गमन निधणो मोह महब्भय पवड्ढओ मरण वेमणंसो। पढमं अहम्मदारं समत्तं। | ||
Sutra Meaning : | वे हिंसक प्राणी कौन हैं ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु – मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक, मृगों को आकर्षित करने के लिए मृगियों का पालन करने वाले, सरोवर, ह्लद, वापी, तालाब, पल्लव, खाली करने वाले, जलाशय को सूखाने वाले, विष अथवा गरल को खिलाने वाले, घास एवं खेत को निर्दयतापूर्वक जलाने वाले, ये सब क्रूरकर्मकारी हैं। ये बहुत – सी म्लेच्छ जातियाँ हैं, जो हिंसक हैं। वे कौन – सी हैं ? शक, यवन, शबर, बब्बर, काय, मुरुंड, उद, भडक, तित्तिक, पक्कणिक, कुलाक्ष, गौड, सिंहल, पारस, क्रौंच, आन्ध्र, द्रविड़, विल्वल, पुलिंद, आरोष, डौंब, पोकण, गान्धार, बहलीक, जल्ल, रोम, मास, वकुश, मलय, चुंचुक, चूलिक, कोंकण, मेद, पण्हव, मालव, महुर, आभाषिक, अणक्क, चीन, ल्हासिक, खस, खासिक, नेहुर, मरहष्ट्र, मौष्टिक, आरब, डोबलिक, कुहण, कैकय, हूण, रोमक, रुरु, मरुक, चिलात, इन देशों के निवासी, जो पाप बुद्धि वाले हैं, वे जो अशुभ लेश्या – परिणाम वाले हैं, वे जलचर, स्थलचर, सनखपद, उरग, नभश्चर, संड़ासी जैसी चोंच वाले आदि जीवों का घात करके अपनी आजीविका चलाते हैं। वे संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों का हनन करते हैं। वे पापी जन पाप को ही उपादेय मानते हैं। पाप में ही उनकी रुचि – होती है। वे प्राणिघात करके प्रसन्नता अनुभवते हैं। उनका अनुष्ठान – प्राणवध करना ही होता है। प्राणियों की हिंसा की कथा में ही आनन्द मानते हैं। वे अनेक प्रकार के पाप का आचरण करके संतोष अनुभव करते हैं। (पूर्वोक्त मूढ़ हिंसक लोग) हिंसा के फल – विपाक को नहीं जानते हुए, अत्यन्त भयानक एवं दीर्घकाल पर्यन्त बहुत – से दुःखों से व्याप्त – एवं अविश्रान्त – लगातार निरन्तर होने वाली दुःखरूप वेदना वाली नरकयोनि और तिर्यञ्चयोनि को बढ़ाते हैं। पूर्ववर्णित हिंसाकारी पापीजन यहाँ, मृत्यु को प्राप्त होकर अशुभ कर्मों की बहुलता के कारण शीघ्र ही – नरकों में उत्पन्न होते हैं। नरक बहुत विशाल है। उनकी भित्तियाँ वज्रमय हैं। उन भित्तियों में कोई सन्धिछिद्र नहीं है, बाहर नीकलने के लिए कोई द्वार नहीं है। वहाँ की भूमि कठोर है। वह नरक रूपी कारागार विषम है। वहाँ नारकावास अत्यन्त उष्ण एवं तप्त रहते हैं। वे जीव वहाँ दुर्गन्ध – के कारण सदैव उद्विग्न रहते हैं। वहाँ का दृश्य ही अत्यन्त बीभत्स है। वहाँ हिम – पटल के सदृश शीतलता है। वे नरक भयंकर हैं, गंभीर एवं रोमांच खड़े कर देने वाले हैं। धृणास्पद हैं। असाध्य व्याधियों, रोगों एवं जरा से पीड़ा पहुँचाने वाले हैं। वहाँ सदैव अन्धकार रहने के कारण प्रत्येक वस्तु अतीव भयानक लगती है। ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र आदि की ज्योति का अभाव है, मेद, वसा, माँस के ढेर होने से वह स्थान अत्यन्त धृणास्पद है। पीव और रुधिर के बहने से वहाँ की भूमि गीली और चिकनी रहती है और कीचड़ – सी बनी रहती है। वहाँ का स्पर्श दहकती हुई करीष की अग्नि या खदिर की अग्नि के समान उष्ण तथा तलवार, उस्तरा अथवा करवत की धार के सदृश तीक्ष्ण है। वह स्पर्श बिच्छू के डंक से भी अधिक वेदना उत्पन्न करने वाला अतिशय दुस्सह है। वहाँ के नारक जीव त्राण और शरण से विहीन हैं। वे नरक कटुक दुःखों के कारण घोर परिणाम उत्पन्न करने वाले हैं। वहाँ लगातार दुःखरूप वेदना चालु ही रहती है। वहाँ परमाधामी देव भरे पड़े हैं। नारकों को भयंकर – भयंकर यातनाएं देते हैं। वे पूर्वोक्त पापी जीव नरकभूमि में उत्पन्न होते ही अन्तर्मुहूर्त्त में नरकभवकारणक लब्धि से अपने शरीर का निर्माण कर लेते हैं। वह शरीर हुंडक संस्थान वाला – बेडौल, भद्दी आकृति वाला, देखने में बीभत्स, घृणित, भयानक, अस्थियों, नसों, नाखूनों और रोमों से रहित; अशुभ और दुःखों को सहन करने में सक्षम होता है। शरीर का निर्माण हो जाने के पश्चात् वे पर्याप्तियों से – पर्याप्त हो जाते हैं और पाँचों इन्द्रियों से अशुभ वेदना का वेदन करते हैं। उनकी वेदना उज्ज्वल, बलवती, विपुल, उत्कट, प्रखर, परुष, प्रचण्ड, घोर, डरावनी और दारुण होती है नारकों को जो वेदनाएं भोगनी पड़ती हैं, वै – कैसी हैं ? नारक जीवों को – कढाव जैसे चौड़े मुख के पात्र में और महाकुंभी – सरीखे महापात्र में पकाया और उबाला जाता है। सेका जाता है। भूँजा जाता है। लोहे की कढ़ाई में ईख के रस के समान औटाया जाता है। – उनकी काया के खंड – खंड कर दिये जाते हैं। लोहे के तीखे शूल के समान तीक्ष्ण काँटों वाले शाल्मलिवृक्ष के काँटों पर उन्हें इधर – उधर घसीटा जाता है। काष्ठ के समान उनकी चीर – फाड़ की जाती है। उनके पैर और हाथ जकड़ दिये जाते हैं। सैकड़ों लाठियों से उन पर प्रहार किये जाते हैं। गले में फंदा डालकर लटका दिया जाता है। शूली के अग्रभाग से भेदा जाता है। झूठे आदेश देकर उन्हें ठगा जाता है। उनकी भर्त्सना की जाती है। उन्हें वधभूमि में घसीट कर ले जाया जाता है। वध्य जीवों को दिए जाने वाले सैकड़ों प्रकार के दुःख उन्हें दिये जाते हैं। इस प्रकार वे नारक जीव पूर्व जन्म में किए हुए कर्मों के संचय से संतप्त रहते हैं। महा – अग्नि के समान नरक की अग्नि से तीव्रता के साथ जलते रहते हैं। वे पापकृत्य करने वाले जीव प्रगाढ़ दुःखमय, घोर भय उत्पन्न करने वाली, अतिशय कर्कश एवं उग्र शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार की असातारूप वेदना बहुत पल्योपम और सागरोपम काल तक रहती है। अपनी आयु के अनुसार करुण अवस्था में रहते हैं। वे यमकालिक देवों द्वारा त्रास को प्राप्त होते हैं और भयभीत होकर शब्द करते हैं – (नारक जीव) किस प्रकार रोते – चिल्लाते हैं ? हे अज्ञातबन्धु ! हे स्वामिन् ! हे भ्राता ! अरे बाप ! हे तात ! हे विजेता ! मुझे छोड़ दो। मैं मर रहा हूँ। मैं दुर्बल हूँ। मैं व्याधि से पीड़ित हूँ। आप क्यों ऐसे दारुण एवं निर्दय हो रहे हैं ? मेरे ऊपर प्रहार मत करो। मुहूर्त्तभर साँस तो लेने दीजिए। दया कीजिए। रोष न कीजिए। मैं जरा विश्राम ले लूँ। मेरा गला छोड़ दीजिए। मैं मरा जा रहा हूँ। मैं प्यास से पीड़ित हूँ। पानी दे दीजिए। ‘अच्छा, हाँ, यह निर्मल और शीतल जल पीओ।’ ऐसा कहकर नरकपाल नारकों को पकड़कर खौला हुआ सीसा कलश से उनकी अंजली में उड़ेल देते हैं। उसे देखते ही उनके अंगोपांग काँपने लगते हैं। उनके नेत्रों से आँसू टपकने लगते हैं। फिर वे कहते हैं – ‘हमारी प्यास शान्त हो गई !’ इस प्रकार करुणापूर्ण वचन बोलते हुए भागने के लिए दिशाएं देखने लगते हैं। अन्ततः वे त्राणहीन, शरणहीन, अनाथ, बन्धुविहीन – एवं भय के मारे धबड़ा करके मृग की तरह बड़े वेग से भागते हैं। कोई – कोई अनुकम्पा – विहीन यमकायिक उपहास करते हुए इधर – उधर भागते हुए उन नारक जीवों को जबरदस्ती पकड़कर और लोहे के डंडे से उनका मुख फाड़कर उसमें उबलता हुआ शीशा डाल देते हैं। उबलते शीशे से दग्ध होकर वे नारक भयानक आर्तनाद करते हैं। वे कबूतर की तरह करुणाजनक आक्रंदन करते हैं, खूब रुदन करते हुए अश्रु बहाते हैं। नरकापाल उन्हें रोक लेते हैं, बाँध देते हैं। तब आर्त्तनाद करते हैं, हाहाकार करते हैं, बड़बड़ाते हैं, तब नरकापाल कुपित होकर और उच्च ध्वनि से उन्हें धमकाते हैं। कहते हैं – इसे पकड़ो, मारो, प्रहार करो, छेद डालो, भेद डालो, इसकी चमड़ी उधेड़ दो, नेत्र बाहर नीकाल लो, इसे काट डालो, खण्ड – खण्ड कर डालो, हनन करो, इसके मुख में शीशा उड़ेल दो, इसे उठाकर पटक दो या मुख में और शीशा डाल दो, घसीटो, उलटो, घसीटो। नरकपाल फिर फटकारते हुए कहते हैं – बोलता क्यों नहीं ! अपने पापकर्मों को, अपने कुकर्मों को स्मरण कर ! इस प्रकार अत्यन्त कर्कश नरकपालों की ध्वनि की वहाँ प्रतिध्वनि होती है। नारक जीवों के लिए वह ऐसी सदैव त्रासजनक होती है कि जैसे किसी महानगर में आग लगने पर घोर शब्द – होता है, उसी प्रकार निरन्तर यातनाएं भोगने वाले नारकों का अनिष्ट निर्घोष वहाँ सूना जाता है। वे यातनाएं कैसी हैं ? नारकों को असि – वन में चलने को बाध्य किया जाता है, तीखी नोक वाले दर्भ के वन में चलाया जाता है, कोल्हू में डाल कर पेरा जाता है, सूई की नोक समान अतीव तीक्ष्ण कण्टकों के सदृश स्पर्श वाली भूमि पर चलाया जाता है, क्षारयुक्त पानी वाली वापिका में पटक दिया जाता है, उबलते हुए सीसे आदि से भरी वैतरणी नदी में बहाया जाता है, कदम्बपुष्प के समान – अत्यन्त तप्त – रेत पर चलाया जाता है, जलती हुई गुफा में बंद कर दिया जाता है, उष्णोष्ण एवं कण्टकाकीर्ण दुर्गम – मार्ग में रथ में जोतकर चलाया जाता है, लोहमय उष्ण मार्ग में चलाया जाता है और भारी भार वहन कराया जाता है। वे अशुभ विक्रियालब्धि से निर्मित सैकड़ों शस्त्रों से परस्पर को वेदना उत्पन्न करते हैं। वे विविध प्रकार के आयुध – शस्त्र कौन – से हैं ? वे शस्त्र ये हैं – मुद्गर, मुसुंढि, करवत, शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, कुन्त, तोमर, शूल, लकुट, भिंडिमार, सद्धल, पट्टिस, चम्मेट्ठ, द्रुघण, मौष्टिक, असि – फलक, खङ्ग, चाप, नाराच, कनक, कप्पिणी – कर्त्तिका, वसूला, परशु। ये सभी अस्त्र – शस्त्र तीक्ष्ण और निर्मल – चमकदार होते हैं। इनसे तथा इसी प्रकार के अन्य शस्त्र से भी वेदना की उदीरणा करते हैं। नरकों में मुद्गर के प्रहारों से नारकों का शरीर चूर – चूर कर दिया जाता है, मुसुंढि से संभिन्न कर दिया जाता है, मथ दिया जाता है, कोल्हू आदि यंत्रों से पेरने के कारण फड़फड़ाते हुए उनके शरीर के टुकड़े – टुकड़े कर दिए जाते हैं। कईयों को चमड़ी सहित विकृत कर दिया जाता है, कान और ओठ नाक और हाथ – पैर समूल काट लिए जाते हैं, तलवार, करवत, तीखे भाले एवं फरसे से फाड़ दिये जाते हैं, वसूला से छीला जाता है, उनके शरीर पर उबलता खारा जल सींचा जाता है, जिससे शरीर जल जाता है, फिर भालों की नोक से उसके टुकड़े – टुकड़े कर दिए जाते हैं, इस इस प्रकार उनके समग्र शरीर को जर्जरित कर दिया जाता है। उनका शरीर सूझ जाता है और वे पृथ्वी पर लोटने लगते हैं। नरकक में दर्पयुक्त – मानो सदा काल से भूख से पीड़ित, भयावह, घोर गर्जना करते हुए, भयंकर रूप वाले भेड़िया, शिकारी कुत्ते, गीदड़, कौवे, बिलाव, अष्टापद, चीते, व्याघ्र, केसरी सिंह और सिंह नारकों पर आक्रमण कर देते हैं, अपनी मजबूत दाढ़ों से नारकों के शरीर को काटते हैं, खींचते हैं, अत्यन्त पैने नोकदार नाखूनों से फाड़ते हैं और फिर इधर – उधर चारों ओर फेंक देते हैं। उनके शरीर के बन्धन ढीले पड़ जाते हैं। उनके अंगोपांग विकृत और पृथक् हो जाते हैं। तत्पश्चात् दृढ़ एवं तीक्ष्ण दाढों, नखों और लोहे के समान नुकीली चोंच वाले कंक, कुरर और गिद्ध आदि पक्षी तथा घोर कष्ट देने वाले काक पक्षियों के झुंड कठोर, दृढ़ तथा स्थिर लोहमय चोंचों से झपट पड़ते हैं। उन्हें अपने पंखों से आघात पहुँचाते हैं। तीखे नाखूनों से उनकी जीभ बाहर खींच लेते हैं और आँखें बाहर नीकाल लेते हैं। निर्दयतापूर्वक उनके मुख को विकृत कर देते हैं। इस प्रकार की यातना से पीड़ित वे नारक जीव रुदन करते हैं, कभी ऊपर उछलते हैं और फिर नीचे आ गिरते हैं, चक्कर काटते हैं। पूर्वोपार्जित पापकर्मों के अधीन हुए, पश्चात्ताप से जलते हुए, अमुक – अमुक स्थानों में, उस – उस प्रकार के पूर्वकृत कर्मों की निन्दा करके, अत्यन्त चीकने – निकाचित दुःखों को भुगत कर, तत्पश्चात् आयु का क्षय होने पर नरकभूमियों में से नीकलकर बहुत – से जीव तिर्यंचयोनि में उत्पन्न होते हैं। अतिशय दुःखों से परिपूर्ण होती है, दारुण कष्टों वाली होती है, जन्म – मरण – जरा – व्याधि का अरहट उसमें घूमता रहता है। उसमें जलचर, स्थलचर और नभश्चर के पारस्परिक घात – प्रत्याघात का प्रपंच या दुष्चक्र चलता रहता है। तिर्यंचगति के दुःख जगत में प्रकट दिखाई देते हैं। नरक से किसी भी भाँति नीकले और तिर्यंचयोनि में जन्मे वे पापी जीव बेचारे दीर्घ काल तक दुःखों को प्राप्त करते हैं। वे तिर्यंचयोनि के दुःख कौन – से हैं ? शीत, उष्ण, तृषा, क्षुधा, वेदना का अप्रतीकार, अटवी में जन्म लेना, निरन्तर भय से घबड़ाते रहना, जागरण, वध, बन्धन, ताड़न, दागना, डामना, गड़हे आदि में गिराना, हड्डियाँ तोड़ देना, नाक छेदना, चाबुक, लकड़ी आदि के प्रहार सहन करना, संताप सहना, छविच्छेदन, जबरदस्ती भारवहन आदि कामों में लगना, कोड़ा, अंकुश एवं डंडे के अग्र भाग में लगी हुई नोकदार कील आदि से दमन किया जाना, भार वहन करना आदि – आदि। तिर्यंचगति में इन दुःखों को भी सहन करना पड़ता है – माता – पिता का वियोग, शोक से अत्यन्त पीड़ित होना, या श्रोत – नखूनों आदि के छेदन से पीड़ित होना, शस्त्रों से, अग्नि से और विष से आघात पहुँचना, गर्दन – एवं सींगों का मोड़ा जाना, मारा जाना, गल – काँटे में या जाल में फँसा कर जल से बाहर नीकालना, पकाना, काटा जाना, जीवन पर्यन्त बन्धन में रहना, पींजरे में बन्द रहना, अपने समूह – से पृथक् किया जाना, भैंस आदि को फूँका लगाना, गले में डँड़ा बाँध देना, घेर कर रखना, कीचड़ – भरे पानी में डूबोना, जल में घुसेड़ना, गड्ढे में गिरने से अंग – भंग हो जाना, पहाड़ के विषम – मार्ग में गिर पड़ना, दावानल की ज्वालाओं में जलना, आदि – आदि कष्टों से परिपूर्ण तिर्यंचगति में हिंसाकारी पापी नरक से नीकलकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार वे हिंसा का पाप करने वाले पापी जीव सैकड़ों पीड़ाओं से पीड़ित होकर, नरकगति से आए हुए, प्रमाद, राग और द्वेष के कारण बहुत संचित किए और भोगने से शेष रहे कर्मों के उदयवाले अत्यन्त कर्कश असाता को उत्पन्न करने वाले कर्मों से उत्पन्न दुःखों के भजन बनते हैं। भ्रमर, मच्छर, मक्खी आदि पर्यायों में, उनकी नौ लाख जाति – कुलकोटियों में वारंवार जन्म – मरण का अनुभव करते हुए, नारकों के समान तीव्र दुःख भोगते हुए स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु से युक्त होकर वे पापी जीव संख्यात काल तक भ्रमण करते रहते हैं। इसी प्रकार कूंथु, पिपीलिका, अंधिका आदि त्रीन्द्रिय जीवों की पूरी आठ लाख कुलकोटियों में जन्म – मरण का अनुभव करते हुए संख्यात काल तक नारकों के सदृश तीव्र दुःख भोगते हैं। ये त्रीन्द्रिय जीव स्पर्शन, रसना और घ्राण – से युक्त होते हैं। गंडूलक, जलौक, कृमि, चन्दनक आदि द्वीन्द्रिय जीव पूरी सात लाख कुलकोटियों में से वहीं – वहीं जन्म – मरण की वेदना का अनुभव करते हुए संख्यात हजार वर्षों तक भ्रमण करते रहते हैं। वहाँ भी उन्हें नारकों के समान तीव्र दुःख भुगतने पड़ते हैं। ये द्वीन्द्रिय जीव स्पर्शन और रसना वाले होते हैं। एकेन्द्रिय अवस्था को प्राप्त हुए पृथ्वीकाय, जलकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के दो – दो भेद हैं – सूक्ष्म और बादर, या पर्याप्तक और अपर्याप्तक। वनस्पतिकाय में इन भेदों के अतिरिक्त दो भेद और भी हैं – प्रत्येकशरीरी और साधारणशरीरी। इन भेदों में से प्रत्येकशरीर पर्याय में उत्पन्न होने वाले पापी – जीव असंख्यात काल तक उन्हीं उन्हीं पर्यायों में परिभ्रमण करते रहते हैं और अनन्तकाय में अनन्त काल तक पुनः पुनः जन्म – मरण करते हुए भ्रमण किया करते हैं। ये सभी जीव एक स्पर्शनेन्द्रिय वाले होते हैं। इनके दुःख अतीव अनिष्ट होते हैं। वनस्पतिकाय रूप एकेन्द्रिय पर्याय में कायस्थिति सबसे अधिक – अनन्तकाल की है। कुदाल और हल से पृथ्वी का विदारण किया जाना, जल का मथा जाना और निरोध किया जाना, अग्नि तथा वायु का विविध प्रकार से शस्से घट्टन होना, पारस्परिक आघातों से आहत होना, मारना, दूसरों के निष्प्रयोजन अथवा प्रयोजन वाले व्यापार से उत्पन्न होने वाली विराधना की व्यथा सहन करना, खोदना, छानना, मोड़ना, सड़ जाना, स्वयं टूट जाना, मसलना – कुचलना, छेदन करना, छीलना, रोमों का उखाड़ना, पत्ते आदि तोड़ना, अग्नि से जलाना, इस प्रकार भवपरम्परा में अनुबद्ध हिंसाकारी पापी जीव भयंकर संसार में अनन्त काल तक परिभ्रमण करते रहते हैं। जो अधन्य जीव नरक से नीकलकर किसी भाँति मनुष्य – पर्याय में उत्पन्न होते हैं, किन्तु जिसके पापकर्म भोगने से शेष रह जाते हैं, वे भी प्रायः विकृत एवं विकल – रूप – स्वरूप वाले, कुबड़े, वामन, बधिर, काने, टूटे हाथ वाले, लँगड़े, अंगहीन, गूँगे, मम्मण, अंधे, खराब एक नेत्र वाले, दोनों खराब आँखों वाले या पिशाचग्रस्त, कुष्ठ आदि व्याधियों और ज्वर आदि रोगों से पीड़ित, अल्पायुष्क, शस्त्र से वध किए जाने योग्य, अज्ञान – अशुभ लक्षणों से भरपूर शरीर वाले, दुर्बल, अप्रशस्त संहनन वाले, बेडौल अंगोपांगों वाले, खराब संस्थान वाले, कुरूप, दीन, हीन, सत्त्वविहीन, सुख से सदा वंचित रहने वाले और अशुभ दुःखों के भाजन होते हैं। इस प्रकार पापकर्म करने वाले प्राणी नरक और तिर्यंच योनि में तथा कुमानुष – अवस्था में भटकते हुए अनन्त दुःख प्राप्त करते हैं। यह प्राणवध का फलविपाक है, जो इहलोक और परलोक में भोगना पड़ता है। यह फलविपाक अल्प सुख किन्तु अत्यधिक दुःख वाला है। महान भय का जनक है और अतीव गाढ़ कर्मरूपी रज से युक्त है। अत्यन्त दारुण है, कठोर है और असाता को उत्पन्न करने वाला है। हजारों वर्षों में इससे छूटकारा मिलता है। किन्तु इसे भोगे बिना छूटकारा नहीं मिलता। हिंसा का यह फलविपाक ज्ञातकुल – नन्दन महात्मा महावीर नामक जिनेन्द्रदेव ने कहा है। यह प्राणवध चण्ड, रौद्र, क्षुद्र और अनार्य जनों द्वारा आचरणीय है। यह घृणारहित, नृशंस, महाभयों का कारण, भयानक, त्रासजनक और अन्यायरूप है, यह उद्वेगजनक, दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला, धर्महीन, स्नेहपीपासा से शून्य, करुणाहीन है। इसका अन्तिम परिणाम नरक में गमन करना है, अर्थात् यह नरकगति में जाने का कारण है। मोहरूपी महाभय को बढ़ाने वाला और मरण के कारण उत्पन्न होने वाली दीनता का जनक है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kayare? Je te soyariya machchhabamdha sauniya vaha kurakammadivita bamdhappaoga tappa gala jala virallaga ayasidabbhavaggura kudachhelihattha hariesa uniya ya vidamsaga pasahattha vanacharaga luddhaga ya mahughata-potaghaya eniyara paeniyara sara daha dihia talaga pallala parigalana malana sottabamdhana salilasayasosaga visagaralassa ya dayaga uttana vallara davagginiddaya palivaka. Kurakammakari ime ya bahave milakkhuya, ke te? Saka javana savara babbara kayamurumda udda bhadaga ninnaga pakkaniya kulakkha goda sihala parasa komcha amdha davila chillala pulimda arosa domba pokkana gamdhaharaga bahaliya jalla roma masa bausa malaya ya chumchuya ya chuliya komkanaga meda palhava malava maggara abhasiya anakka china lhasiya khasa khasiya neddara marahattha mutthiya araba dombilaga kuhana kekaya huna romaga ruru maruga chilayavisayavasi ya pavamatino, Jalayara thalayarasanahapaya uraga khahachara samdasatomda jivovaghayajivi, sanni ya asannino ya pajjatta asubhalessaparinama Ete anneya evamadi karemti panativayakaranam, pava pavabhigama pavarui panavahakayarati panavaharuvanutthana panavahakahasu abhiramamta tuttha pavam karettu homti ya bahuppagaram. Tassa ya pavassa phalavivagam ayanamana vaddhemti–mahabbhayam avissama veyanam dihakala-bahudukkhasamkadam naraya tirikkhajonim. Io aukkhae chuya asubhakammabahula uvavajjamti naraesu hulittam–mahalaesu, vayaramaya kudda rumda nissamdhi daravirahiya nimmaddava bhumitala kharamassa visamani-rayagharacharaesu, mahosani sayavatatta duggamdha vissa uvveyanagesu bibhachchha darisanijjesu, nichcham himapadalasiyalesu, kalobhasesu ya, bhima gambhira lomaharisanesu, nirabhiramesu, nippadiyara vahi roga jara piliesu, ativanichchamdhakaratimisesu, patibhaesu, vavagaya gaha chamda sura nakkhatta joisesu, meyavasamamsapadala puchchada puyaruhirukkinna vilina chikkana rasiyavavanna kuhiya-chikkhalla kaddamesu, kukulanala palitta jala mummura asikkhurakaravattadhara sunisitavichchhuyadamka nivatovamma pharisa atidussahesu, attanasarana kaduyadukkhaparitavanesu, anubaddha niramtaraveyanesu, jamapurisa-samkulesu. Tattha ya amtomuhuttaladdhi bhavapachchaenam nivvattemti ya te sariram, humdam bibhachchhadarisanijjam bihanagam atthi nharu naha romavajjiyamasubhagamdha-dukkhavisaham. Tato ya pajjattimuvagaya imdiehim pamchahim vedemti asubhae veyanae ujjala bala viula ukkada khara pharusa payamda ghora vihanaga darunae, kim te? – Kamdumahakumbhiyapayanapaulana tavagatalanabhatthabhajjanani ya, lohakadahakadhanani ya, kotta balikarana kottanani ya, samaliti-kkhagga-lohakamtaka-abhisaranapasaranani phalana vidalanani ya, avakodakabamdhanani ya, latthisayatalanani ya, galagabalullambanani ya, sulaggabheyanani ya, aesa-pavamchanani, khimsanavimananani ya, vidhutthapanijjanani, vajjhasayamatikani ya. Evam te puvvakammakayasamchayovatatta nirayaggi mahaggisampalitta gadhadukkham mahabbhayam kakkasam asayam sariram manasam cha tivvam duviham vedemti veyanam, pavakammakari bahuni paliovama sagarovamani kalunam palemti te ahau jamakaiya tasita ya saddam karemti bhaya, kim te? – Avibhava sami bhaya vappa tayajiyavam muya me marami dubbalo vahipilioham, kim danisi? Evam darune niddao ya ma dehi me pahare, ussasetam muhuttayam me dehi, pasayam karehi, ma rusa, visamami, gevijjam mamcha me marami, gadham tanhaio aham dehi paniyam, Ta hamta! Piya imam jalam vimalam siyalam ti ghettuna ya narayapala taviyam tauyam se demti kalasena amjalisu, datthuna ya tam paveviyamgamamga amsupagalamtapappuyachchha chhinna tanha iyamha kalunani jampamana, vippekkhamta disodisam, attana asarana anaha abamdhava bamdhuvippahuna vipalayamti ya miga va vegena bhayuvvigga ghettuna bala palayamananam niranukampa muham vihadettu lohadamdehim kalakalam nham vayanamsi chhubhamti kei jamakaiya hasamta. Tena ya daddha samta rasamti ya bhimaim vissaraim, rudamti ya kalunagaim parevataga va, evam palavita-vilava-kaluno kamdiya-bahurunna-rudiyasaddo parideviya-ruddha-baddhakarava-samkulo nisatthorasiya-bhaniya-kuviya-ukkuiya-nirayapalatajjiya-genha, kkama, pahara, chhimda, bhimda, uppadehi, ukkhanahi, kattahi, vikattahi ya, bhamja, hana, vihana, vichchhubhochchhubha, akaddha, vikaddha, kim na jampasi? Sarahi pava-kammaim dukkayaim–evam vayanamahappagabbho padisuyasaddasamkulo tasao saya nirayagoyarana mahanagara dajjhamana sariso nigghoso suchchae anittho tahiyam neraiyanam jaijjamtanam jayanahim, kim te? – Asivana-dabbhavana-jamta-patthara-suitala-kharavavikalakaleta-veyarani-kalamba-valuya-jaliya-guha nirumbhana-usinosina-kamtailla-duggama-rahajoyana-tattalohapahagamanavahanani. Imehim vivihehim ayuhehim, kim te? – Moggara musumdhi karakacha satti hala gaya musala chakka komta tomara sula laula bhimdimala savvala pattisa chammettha duhana mutthiya asi khedaga khagga chava naraya kanaka kappani vasi parasu tamkatikkha nimmala, annehi ya evamadiehim asubhehim veuvviehim paharanasatehim anubaddhativvavera paropparam veyanam udiremti abhihanamta. Tattha ya moggarapaharachunniya-musumdhisambhaggamahitadeha jamtopilana phuramta kappiya keittha sachammaka vigatta nimmululluna kannotthanasika chhinnahatthapada asi karakaya tikkhakomta parasuppahara-phaliya vasisamtachchhitamgamamga kalakalakharaparisittagadhadajjhamtagatta kumtaggabhinna jajjariya savvadeha vilolamti mahitale visuniyamgamamga. Tattha ya viga sunaga siyala kaka majjara sarabha diviya viyaggha saddula siha dappiya khuhabhibhutehim nichchakalamanasiehim ghora rasamanabhimaruvehim akkamitta dadhadadhagadhadakkakaddhiya sutikkhanahaphaliyauddhadeha vichchhippamte samamtao vimukkasamdhibamdhana viyamgimamga. Kamka kurara giddha ghorakatthavayasaganehim ya puno kharathiradadhanakkha lohatumdehim ovatitta pakkhahayatikkhanakkhavikkhittajibbha amchhiyanayana niddayolugga vigatavayana, ukkosamta ya, uppayamta nipatamta bhamamta puvvakammodayovagata pachchhanusaena dajjhamana, nimdamta purekadaim kammaim pavagaim, tahim-tahim tarisani osannachikkanaim dukkhaim anubhavitta, tato ya aukkhaenam uvvattiya samana bahave gachchhamti tiriyavasahim–dukkhuttaram sudarunam jammana-marana-jaravahi-pariyattanarahattam jalathalakhahachara-paroppara-vihimsana-pavamcham. Imam cha jagapagadam varaka dukkham pavemti dihakalam, kim te? – Siunhatanhakhuhaveyana appadikaraadavijammana nichchabhauvviggavasa jagganavadha-bamdhana talanamkana nivayana atthibhamjana nasabheya ppahara dumana chhavichchheyana abhiogapavana kasamkusara nivaya damanani vahanani ya, mayapiti vippayoga soyaparipilanani ya, satthaggi-visabhidhaya galagavalavalana maranani ya, galajaluchchhimpanani paulana vikappanani ya, javajjivigabamdhanani pamjara nirohanani ya, sajjuha niddhadanani dhamanani dohanani ya, kudamda galabamdhanani vada parivaranani ya, pamkajalanimajjanani varippavesanani ya, ovayanibhamga visamanivadana davaggijala dahanaiyaim. Evam te dukkhasaya sampalitta naragao agaya iham savasesakamma tirikkha pamchemdiesu pavamti pavakari kammani pamada raga dosa bahusamchiyaim ativa assaya kakkasaim. Bhamara masaga machchhiyaiesu ya jai kulakodisayasahassehim navahim chaurimdiyana tahim tahim cheva jammana maranani anubhavamta kalam samkhejjakam bhamamti neraiya samanativvadukkha pharisa rasana ghana chakkhusahiya. Taheva teimdiesu–kumthu pipilika avadhikadikesu ya jati kulakodisayasahassehim atthahim anunaehim teimdiyana tahim-tahim cheva jammana maranani anuhavamta kalam samkhejjakam bhamamti neraiyasamanativvadukkha pharisa rasana ghana sampautta. Taheva beimdiesu–gamdulaya jaluya kimiya chamdanagamadiesu ya jati kulakodisayasahassehim sattahim anunaehim beimdiyana tahim-tahim cheva jammana-maranani anuhavamta kalam samkhejjakam bhamamti neraiyasamanativvadukkha pharisa rasana sampautta. Patta egimdiyattanam pi ya–pudhavi jala jalana maruya vanapphati suhuma bayaram cha pajjattamapajjattam patteyasariranamasaharanam cha. Patteyasarirajiviesu ya, tatthavi kalamasamkhejjagam bhamamti, anamtakalam cha anamtakae phasimdiyabhavasampautta dukkhasamudayam imam anittham pavemti puno puno tahim tahim cheva parabhava taruganagahane koddalakuliyadalana salilamalana khumbhana rumbhana analanila vivihasatthaghattana paropparabhihanana maranavirahanani ya akamakaim parappaogodiranahi ya kajjappaoyanehi ya pessapasu nimittam osahaharamaiehim ukkhanana ukkatthana payana kottana pisana pittana bhajjana galana amodana sadana phudana bhamjana chheyana tachchhana vilumchana pattajjhodana aggidahanaiyati. Evam te bhavaparamparadukkhasamanubaddha adamti samsara bihanakare jiva panaivayaniraya anamtakalam. Jevi ya iha manusattanam agaya kahamchi naragao uvvattiya adhanna, te vi ya disamti payaso vikaya vigala ruva khujja vadabha ya vamana ya bahira kana kumta ya pamgulaviala ya muka ya mammana ya amdhillaga egachakkhuvinihaya sachillaya bahirogapiliya appauya satthavajjha vala kulakkhanukkinnadeha dubbala kusamghayana kuppamana kusamthiya kuruva kivina ya hina hinasatta nichcham sokkhaparivajjiya asuha dukkhabhogo naragao uvvattiya iham savasesakamma. Evam naraga tirikkhajoni kumanusattam cha himdamana pavamti anamtakaim dukkhaim pavakari. Eso so panavahassa phalavivago ihaloio paraloio appasuho bahudukkho mahabbhao bahurayappagadho daruno kakkaso asao vasasahassehim muchchati, na ya avedayitta atthi hu mokkhotti– evamahamsu nayakulanamdano mahappa jino u viravaranamadhejjo, kahesi ya panavahassa phalavivagam. Eso so panavaho chamdo ruddo khuddo anario nigghino nissamso mahabbhao bihanao tasanao anajjo uvveyanao ya niravayakkho niddhammo nippivaso nikkaluno nirayavasa gamana nidhano moha mahabbhaya pavaddhao marana vemanamso. Padhamam ahammadaram samattam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ve himsaka prani kauna haim\? Shaukarika, matsyabandhaka, mrigom, hiranom ko phamsakara marane vale, krurakarma vagurika, chita, bandhanaprayoga, chhoti nauka, gala, jala, baja pakshi, lohe ka jala, darbha, kutapasha, ina saba sadhanom ko hatha mem lekara phirane vale, chandala, chirimara, baja pakshi tatha jala ko rakhane vale, vanachara, madhu – makkhiyom ka ghata karane vale, potaghataka, mrigom ko akarshita karane ke lie mrigiyom ka palana karane vale, sarovara, hlada, vapi, talaba, pallava, khali karane vale, jalashaya ko sukhane vale, visha athava garala ko khilane vale, ghasa evam kheta ko nirdayatapurvaka jalane vale, ye saba krurakarmakari haim. Ye bahuta – si mlechchha jatiyam haim, jo himsaka haim. Ve kauna – si haim\? Shaka, yavana, shabara, babbara, kaya, murumda, uda, bhadaka, tittika, pakkanika, kulaksha, gauda, simhala, parasa, kraumcha, andhra, dravira, vilvala, pulimda, arosha, daumba, pokana, gandhara, bahalika, jalla, roma, masa, vakusha, malaya, chumchuka, chulika, komkana, meda, panhava, malava, mahura, abhashika, anakka, china, lhasika, khasa, khasika, nehura, marahashtra, maushtika, araba, dobalika, kuhana, kaikaya, huna, romaka, ruru, maruka, chilata, ina deshom ke nivasi, jo papa buddhi vale haim, ve jo ashubha leshya – parinama vale haim, ve jalachara, sthalachara, sanakhapada, uraga, nabhashchara, samrasi jaisi chomcha vale adi jivom ka ghata karake apani ajivika chalate haim. Ve samjnyi, asamjnyi, paryapta aura aparyapta jivom ka hanana karate haim. Ve papi jana papa ko hi upadeya manate haim. Papa mem hi unaki ruchi – hoti hai. Ve pranighata karake prasannata anubhavate haim. Unaka anushthana – pranavadha karana hi hota hai. Praniyom ki himsa ki katha mem hi ananda manate haim. Ve aneka prakara ke papa ka acharana karake samtosha anubhava karate haim. (purvokta murha himsaka loga) himsa ke phala – vipaka ko nahim janate hue, atyanta bhayanaka evam dirghakala paryanta bahuta – se duhkhom se vyapta – evam avishranta – lagatara nirantara hone vali duhkharupa vedana vali narakayoni aura tiryanchayoni ko barhate haim. Purvavarnita himsakari papijana yaham, mrityu ko prapta hokara ashubha karmom ki bahulata ke karana shighra hi – narakom mem utpanna hote haim. Naraka bahuta vishala hai. Unaki bhittiyam vajramaya haim. Una bhittiyom mem koi sandhichhidra nahim hai, bahara nikalane ke lie koi dvara nahim hai. Vaham ki bhumi kathora hai. Vaha naraka rupi karagara vishama hai. Vaham narakavasa atyanta ushna evam tapta rahate haim. Ve jiva vaham durgandha – ke karana sadaiva udvigna rahate haim. Vaham ka drishya hi atyanta bibhatsa hai. Vaham hima – patala ke sadrisha shitalata hai. Ve naraka bhayamkara haim, gambhira evam romamcha khare kara dene vale haim. Dhrinaspada haim. Asadhya vyadhiyom, rogom evam jara se pira pahumchane vale haim. Vaham sadaiva andhakara rahane ke karana pratyeka vastu ativa bhayanaka lagati hai. Graha, chandrama, surya, nakshatra adi ki jyoti ka abhava hai, meda, vasa, mamsa ke dhera hone se vaha sthana atyanta dhrinaspada hai. Piva aura rudhira ke bahane se vaham ki bhumi gili aura chikani rahati hai aura kichara – si bani rahati hai. Vaham ka sparsha dahakati hui karisha ki agni ya khadira ki agni ke samana ushna tatha talavara, ustara athava karavata ki dhara ke sadrisha tikshna hai. Vaha sparsha bichchhu ke damka se bhi adhika vedana utpanna karane vala atishaya dussaha hai. Vaham ke naraka jiva trana aura sharana se vihina haim. Ve naraka katuka duhkhom ke karana ghora parinama utpanna karane vale haim. Vaham lagatara duhkharupa vedana chalu hi rahati hai. Vaham paramadhami deva bhare pare haim. Narakom ko bhayamkara – bhayamkara yatanaem dete haim. Ve purvokta papi jiva narakabhumi mem utpanna hote hi antarmuhurtta mem narakabhavakaranaka labdhi se apane sharira ka nirmana kara lete haim. Vaha sharira humdaka samsthana vala – bedaula, bhaddi akriti vala, dekhane mem bibhatsa, ghrinita, bhayanaka, asthiyom, nasom, nakhunom aura romom se rahita; ashubha aura duhkhom ko sahana karane mem sakshama hota hai. Sharira ka nirmana ho jane ke pashchat ve paryaptiyom se – paryapta ho jate haim aura pamchom indriyom se ashubha vedana ka vedana karate haim. Unaki vedana ujjvala, balavati, vipula, utkata, prakhara, parusha, prachanda, ghora, daravani aura daruna hoti hai Narakom ko jo vedanaem bhogani parati haim, vai – kaisi haim\? Naraka jivom ko – kadhava jaise chaure mukha ke patra mem aura mahakumbhi – sarikhe mahapatra mem pakaya aura ubala jata hai. Seka jata hai. Bhumja jata hai. Lohe ki karhai mem ikha ke rasa ke samana autaya jata hai. – unaki kaya ke khamda – khamda kara diye jate haim. Lohe ke tikhe shula ke samana tikshna kamtom vale shalmalivriksha ke kamtom para unhem idhara – udhara ghasita jata hai. Kashtha ke samana unaki chira – phara ki jati hai. Unake paira aura hatha jakara diye jate haim. Saikarom lathiyom se una para prahara kiye jate haim. Gale mem phamda dalakara lataka diya jata hai. Shuli ke agrabhaga se bheda jata hai. Jhuthe adesha dekara unhem thaga jata hai. Unaki bhartsana ki jati hai. Unhem vadhabhumi mem ghasita kara le jaya jata hai. Vadhya jivom ko die jane vale saikarom prakara ke duhkha unhem diye jate haim. Isa prakara ve naraka jiva purva janma mem kie hue karmom ke samchaya se samtapta rahate haim. Maha – agni ke samana naraka ki agni se tivrata ke satha jalate rahate haim. Ve papakritya karane vale jiva pragarha duhkhamaya, ghora bhaya utpanna karane vali, atishaya karkasha evam ugra sharirika tatha manasika donom prakara ki asatarupa vedana bahuta palyopama aura sagaropama kala taka rahati hai. Apani ayu ke anusara karuna avastha mem rahate haim. Ve yamakalika devom dvara trasa ko prapta hote haim aura bhayabhita hokara shabda karate haim – (naraka jiva) kisa prakara rote – chillate haim\? He ajnyatabandhu ! He svamin ! He bhrata ! Are bapa ! He tata ! He vijeta ! Mujhe chhora do. Maim mara raha hum. Maim durbala hum. Maim vyadhi se pirita hum. Apa kyom aise daruna evam nirdaya ho rahe haim\? Mere upara prahara mata karo. Muhurttabhara samsa to lene dijie. Daya kijie. Rosha na kijie. Maim jara vishrama le lum. Mera gala chhora dijie. Maim mara ja raha hum. Maim pyasa se pirita hum. Pani de dijie. ‘achchha, ham, yaha nirmala aura shitala jala pio.’ aisa kahakara narakapala narakom ko pakarakara khaula hua sisa kalasha se unaki amjali mem urela dete haim. Use dekhate hi unake amgopamga kampane lagate haim. Unake netrom se amsu tapakane lagate haim. Phira ve kahate haim – ‘hamari pyasa shanta ho gai !’ isa prakara karunapurna vachana bolate hue bhagane ke lie dishaem dekhane lagate haim. Antatah ve tranahina, sharanahina, anatha, bandhuvihina – evam bhaya ke mare dhabara karake mriga ki taraha bare vega se bhagate haim. Koi – koi anukampa – vihina yamakayika upahasa karate hue idhara – udhara bhagate hue una naraka jivom ko jabaradasti pakarakara aura lohe ke damde se unaka mukha pharakara usamem ubalata hua shisha dala dete haim. Ubalate shishe se dagdha hokara ve naraka bhayanaka artanada karate haim. Ve kabutara ki taraha karunajanaka akramdana karate haim, khuba rudana karate hue ashru bahate haim. Narakapala unhem roka lete haim, bamdha dete haim. Taba arttanada karate haim, hahakara karate haim, barabarate haim, taba narakapala kupita hokara aura uchcha dhvani se unhem dhamakate haim. Kahate haim – ise pakaro, maro, prahara karo, chheda dalo, bheda dalo, isaki chamari udhera do, netra bahara nikala lo, ise kata dalo, khanda – khanda kara dalo, hanana karo, isake mukha mem shisha urela do, ise uthakara pataka do ya mukha mem aura shisha dala do, ghasito, ulato, ghasito. Narakapala phira phatakarate hue kahate haim – bolata kyom nahim ! Apane papakarmom ko, apane kukarmom ko smarana kara ! Isa prakara atyanta karkasha narakapalom ki dhvani ki vaham pratidhvani hoti hai. Naraka jivom ke lie vaha aisi sadaiva trasajanaka hoti hai ki jaise kisi mahanagara mem aga lagane para ghora shabda – hota hai, usi prakara nirantara yatanaem bhogane vale narakom ka anishta nirghosha vaham suna jata hai. Ve yatanaem kaisi haim\? Narakom ko asi – vana mem chalane ko badhya kiya jata hai, tikhi noka vale darbha ke vana mem chalaya jata hai, kolhu mem dala kara pera jata hai, sui ki noka samana ativa tikshna kantakom ke sadrisha sparsha vali bhumi para chalaya jata hai, ksharayukta pani vali vapika mem pataka diya jata hai, ubalate hue sise adi se bhari vaitarani nadi mem bahaya jata hai, kadambapushpa ke samana – atyanta tapta – reta para chalaya jata hai, jalati hui gupha mem bamda kara diya jata hai, ushnoshna evam kantakakirna durgama – marga mem ratha mem jotakara chalaya jata hai, lohamaya ushna marga mem chalaya jata hai aura bhari bhara vahana karaya jata hai. Ve ashubha vikriyalabdhi se nirmita saikarom shastrom se paraspara ko vedana utpanna karate haim. Ve vividha prakara ke ayudha – shastra kauna – se haim\? Ve shastra ye haim – mudgara, musumdhi, karavata, shakti, hala, gada, musala, chakra, kunta, tomara, shula, lakuta, bhimdimara, saddhala, pattisa, chammettha, drughana, maushtika, asi – phalaka, khanga, chapa, naracha, kanaka, kappini – karttika, vasula, parashu. Ye sabhi astra – shastra tikshna aura nirmala – chamakadara hote haim. Inase tatha isi prakara ke anya shastra se bhi vedana ki udirana karate haim. Narakom mem mudgara ke praharom se narakom ka sharira chura – chura kara diya jata hai, musumdhi se sambhinna kara diya jata hai, matha diya jata hai, kolhu adi yamtrom se perane ke karana pharapharate hue unake sharira ke tukare – tukare kara die jate haim. Kaiyom ko chamari sahita vikrita kara diya jata hai, kana aura otha naka aura hatha – paira samula kata lie jate haim, talavara, karavata, tikhe bhale evam pharase se phara diye jate haim, vasula se chhila jata hai, unake sharira para ubalata khara jala simcha jata hai, jisase sharira jala jata hai, phira bhalom ki noka se usake tukare – tukare kara die jate haim, isa isa prakara unake samagra sharira ko jarjarita kara diya jata hai. Unaka sharira sujha jata hai aura ve prithvi para lotane lagate haim. Narakaka mem darpayukta – mano sada kala se bhukha se pirita, bhayavaha, ghora garjana karate hue, bhayamkara rupa vale bheriya, shikari kutte, gidara, kauve, bilava, ashtapada, chite, vyaghra, kesari simha aura simha narakom para akramana kara dete haim, apani majabuta darhom se narakom ke sharira ko katate haim, khimchate haim, atyanta paine nokadara nakhunom se pharate haim aura phira idhara – udhara charom ora phemka dete haim. Unake sharira ke bandhana dhile para jate haim. Unake amgopamga vikrita aura prithak ho jate haim. Tatpashchat drirha evam tikshna dadhom, nakhom aura lohe ke samana nukili chomcha vale kamka, kurara aura giddha adi pakshi tatha ghora kashta dene vale kaka pakshiyom ke jhumda kathora, drirha tatha sthira lohamaya chomchom se jhapata parate haim. Unhem apane pamkhom se aghata pahumchate haim. Tikhe nakhunom se unaki jibha bahara khimcha lete haim aura amkhem bahara nikala lete haim. Nirdayatapurvaka unake mukha ko vikrita kara dete haim. Isa prakara ki yatana se pirita ve naraka jiva rudana karate haim, kabhi upara uchhalate haim aura phira niche a girate haim, chakkara katate haim. Purvoparjita papakarmom ke adhina hue, pashchattapa se jalate hue, amuka – amuka sthanom mem, usa – usa prakara ke purvakrita karmom ki ninda karake, atyanta chikane – nikachita duhkhom ko bhugata kara, tatpashchat ayu ka kshaya hone para narakabhumiyom mem se nikalakara bahuta – se jiva tiryamchayoni mem utpanna hote haim. Atishaya duhkhom se paripurna hoti hai, daruna kashtom vali hoti hai, janma – marana – jara – vyadhi ka arahata usamem ghumata rahata hai. Usamem jalachara, sthalachara aura nabhashchara ke parasparika ghata – pratyaghata ka prapamcha ya dushchakra chalata rahata hai. Tiryamchagati ke duhkha jagata mem prakata dikhai dete haim. Naraka se kisi bhi bhamti nikale aura tiryamchayoni mem janme ve papi jiva bechare dirgha kala taka duhkhom ko prapta karate haim. Ve tiryamchayoni ke duhkha kauna – se haim\? Shita, ushna, trisha, kshudha, vedana ka apratikara, atavi mem janma lena, nirantara bhaya se ghabarate rahana, jagarana, vadha, bandhana, tarana, dagana, damana, garahe adi mem girana, haddiyam tora dena, naka chhedana, chabuka, lakari adi ke prahara sahana karana, samtapa sahana, chhavichchhedana, jabaradasti bharavahana adi kamom mem lagana, kora, amkusha evam damde ke agra bhaga mem lagi hui nokadara kila adi se damana kiya jana, bhara vahana karana adi – adi. Tiryamchagati mem ina duhkhom ko bhi sahana karana parata hai – mata – pita ka viyoga, shoka se atyanta pirita hona, ya shrota – nakhunom adi ke chhedana se pirita hona, shastrom se, agni se aura visha se aghata pahumchana, gardana – evam simgom ka mora jana, mara jana, gala – kamte mem ya jala mem phamsa kara jala se bahara nikalana, pakana, kata jana, jivana paryanta bandhana mem rahana, pimjare mem banda rahana, apane samuha – se prithak kiya jana, bhaimsa adi ko phumka lagana, gale mem damra bamdha dena, ghera kara rakhana, kichara – bhare pani mem dubona, jala mem ghuserana, gaddhe mem girane se amga – bhamga ho jana, pahara ke vishama – marga mem gira parana, davanala ki jvalaom mem jalana, adi – adi kashtom se paripurna tiryamchagati mem himsakari papi naraka se nikalakara utpanna hote haim. Isa prakara ve himsa ka papa karane vale papi jiva saikarom piraom se pirita hokara, narakagati se ae hue, pramada, raga aura dvesha ke karana bahuta samchita kie aura bhogane se shesha rahe karmom ke udayavale atyanta karkasha asata ko utpanna karane vale karmom se utpanna duhkhom ke bhajana banate haim. Bhramara, machchhara, makkhi adi paryayom mem, unaki nau lakha jati – kulakotiyom mem varamvara janma – marana ka anubhava karate hue, narakom ke samana tivra duhkha bhogate hue sparshana, rasana, ghrana aura chakshu se yukta hokara ve papi jiva samkhyata kala taka bhramana karate rahate haim. Isi prakara kumthu, pipilika, amdhika adi trindriya jivom ki puri atha lakha kulakotiyom mem janma – marana ka anubhava karate hue samkhyata kala taka narakom ke sadrisha tivra duhkha bhogate haim. Ye trindriya jiva sparshana, rasana aura ghrana – se yukta hote haim. Gamdulaka, jalauka, krimi, chandanaka adi dvindriya jiva puri sata lakha kulakotiyom mem se vahim – vahim janma – marana ki vedana ka anubhava karate hue samkhyata hajara varshom taka bhramana karate rahate haim. Vaham bhi unhem narakom ke samana tivra duhkha bhugatane parate haim. Ye dvindriya jiva sparshana aura rasana vale hote haim. Ekendriya avastha ko prapta hue prithvikaya, jalakaya, tejaskaya, vayukaya aura vanaspatikaya ke do – do bheda haim – sukshma aura badara, ya paryaptaka aura aparyaptaka. Vanaspatikaya mem ina bhedom ke atirikta do bheda aura bhi haim – pratyekashariri aura sadharanashariri. Ina bhedom mem se pratyekasharira paryaya mem utpanna hone vale papi – jiva asamkhyata kala taka unhim unhim paryayom mem paribhramana karate rahate haim aura anantakaya mem ananta kala taka punah punah janma – marana karate hue bhramana kiya karate haim. Ye sabhi jiva eka sparshanendriya vale hote haim. Inake duhkha ativa anishta hote haim. Vanaspatikaya rupa ekendriya paryaya mem kayasthiti sabase adhika – anantakala ki hai. Kudala aura hala se prithvi ka vidarana kiya jana, jala ka matha jana aura nirodha kiya jana, agni tatha vayu ka vividha prakara se shasse ghattana hona, parasparika aghatom se ahata hona, marana, dusarom ke nishprayojana athava prayojana vale vyapara se utpanna hone vali viradhana ki vyatha sahana karana, khodana, chhanana, morana, sara jana, svayam tuta jana, masalana – kuchalana, chhedana karana, chhilana, romom ka ukharana, patte adi torana, agni se jalana, isa prakara bhavaparampara mem anubaddha himsakari papi jiva bhayamkara samsara mem ananta kala taka paribhramana karate rahate haim. Jo adhanya jiva naraka se nikalakara kisi bhamti manushya – paryaya mem utpanna hote haim, kintu jisake papakarma bhogane se shesha raha jate haim, ve bhi prayah vikrita evam vikala – rupa – svarupa vale, kubare, vamana, badhira, kane, tute hatha vale, lamgare, amgahina, gumge, mammana, amdhe, kharaba eka netra vale, donom kharaba amkhom vale ya pishachagrasta, kushtha adi vyadhiyom aura jvara adi rogom se pirita, alpayushka, shastra se vadha kie jane yogya, ajnyana – ashubha lakshanom se bharapura sharira vale, durbala, aprashasta samhanana vale, bedaula amgopamgom vale, kharaba samsthana vale, kurupa, dina, hina, sattvavihina, sukha se sada vamchita rahane vale aura ashubha duhkhom ke bhajana hote haim. Isa prakara papakarma karane vale prani naraka aura tiryamcha yoni mem tatha kumanusha – avastha mem bhatakate hue ananta duhkha prapta karate haim. Yaha pranavadha ka phalavipaka hai, jo ihaloka aura paraloka mem bhogana parata hai. Yaha phalavipaka alpa sukha kintu atyadhika duhkha vala hai. Mahana bhaya ka janaka hai aura ativa garha karmarupi raja se yukta hai. Atyanta daruna hai, kathora hai aura asata ko utpanna karane vala hai. Hajarom varshom mem isase chhutakara milata hai. Kintu ise bhoge bina chhutakara nahim milata. Himsa ka yaha phalavipaka jnyatakula – nandana mahatma mahavira namaka jinendradeva ne kaha hai. Yaha pranavadha chanda, raudra, kshudra aura anarya janom dvara acharaniya hai. Yaha ghrinarahita, nrishamsa, mahabhayom ka karana, bhayanaka, trasajanaka aura anyayarupa hai, yaha udvegajanaka, dusare ke pranom ki paravaha na karane vala, dharmahina, snehapipasa se shunya, karunahina hai. Isaka antima parinama naraka mem gamana karana hai, arthat yaha narakagati mem jane ka karana hai. Moharupi mahabhaya ko barhane vala aura marana ke karana utpanna hone vali dinata ka janaka hai. |