Sutra Navigation: Anuttaropapatikdashang ( अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005313 | ||
Scripture Name( English ): | Anuttaropapatikdashang | Translated Scripture Name : | अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-२ थी १० |
Translated Chapter : |
वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र... अध्ययन-२ थी १० |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 13 | Category : | Ang-09 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नयरी। जियसत्तू राया। तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा। तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धन्नो तहेव। बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायवडेंसए विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं। जहा धन्ने तहा सुनक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अनगारे जाए–इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। तए णं से सुनक्खत्ते जं चेव दिवस समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए तं चेव दिवसं अभिग्गहं तहेव जाव बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारं आहारेइ, आहारेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। सामी बहिया जनवयविहारं विहरइ। एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से सुनक्खत्ते अनगारे तेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं जहा खंदओ अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। राया निग्गओ। धम्मकहा। राया पडिगओ। परिसा पडिगया। तए णं तस्स सुनक्खत्तस्स अनगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, जहा खंदयस्स। बहू वासा परियाओ। गोयमपुच्छा। तहेव कहेइ जाव सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववन्ने। तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। एवं सुनक्खत्तगमेणं सेसा वि अट्ठ अज्झयणा भाणियव्वा, नवरं–आनुपुव्वीए दोन्नि रायगिहे, दोन्नि साकेते, दोन्नि वाणियग्गामे, नवमो हत्थिणपुरे, दसमो रायगिहे। नवण्हं भद्दाओ जननिओ। नवण्हं वि बत्तीसओ दाओ। नवण्हं निक्खमणं थावच्चापुत्तस्स सरिसं। वेहल्लस्स पिया करेइ। छम्मासा वेहल्लए। नव धन्ने। सेसाणं बहू वासा। मासं संलेहणा। सव्वट्ठसिद्धे। सव्वे महाविदेहे सिज्झिस्संति। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सहसंबुद्धेणं लोगनाहेणं लोगप्पदीवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरनाणदंसणधरेणं जिणेणं जाणएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयएणं तिन्नेणं तारएणं सिवमयलमरुयमनंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं अनुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। अनुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयखंधो। तिन्नि वग्गा। तिसु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जंति। तत्थ पढमे वग्गे दस उद्देसगा। बिइए वग्गे तेरस उद्देसगा। तइए वग्गे दस उद्देसगा। सेसं जहा नायाधम्मकहाणं तहा नेयव्वं। | ||
Sutra Meaning : | हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी। उसमें भद्रा नाम की सार्थवाहिनी थी। वह धन – धान्य – सम्पन्ना थी। उस भद्रा सार्थवाहिनी का पुत्र सुनक्षत्र था। वह सर्वाङ्ग – सम्पन्न और सुरूपा था। पाँच धाईयाँ उसके लालन पालन के लिए नीत थीं। जिस प्रकार धन्य कुमार के लिए बत्तीस दहेज आये उसी प्रकार सुनक्षत्र कुमार के लिए भी आये और वह सर्व – श्रेष्ठ भवनों में सुख का अनुभव करता हुआ विचरण करने लगा। उसी समय श्री भगवान महावीर काकन्दी नगरी के बाहर बिराजमान हो गये। धन्यकुमार की तरह सुनक्षत्र कुमार भी धर्म कथा सूनने गए। थावच्चापुत्र की तरह प्रव्रजीत भी हुए। अनगार होकर वह ईर्यासमिति वाला और साधु के सब गुणों से युक्त पूर्ण ब्रह्मचारी हो गया। वह सुनक्षत्र अनगार जिस दिन मुण्डित हो प्रव्रजित हुआ उसी दिन से उसने अभिग्रह धारण कर लिया। यावत् जिस प्रकार सर्प बिल में प्रवेश करता है उसी प्रकार वह भोजन करने लगा। संयम और तप से अपनी आत्मा की भावना करते हुए विचरण करने लगा। इसी बीच श्री भगवान महावीर स्वामी जनपद – विहार के लिए बाहर गये और सुनक्षत्र अनगार ने एकादशाङ्ग शास्त्र का अध्ययन किया। वह संयम और तप से अपनी आत्मा की भावना करते हुए विचरण करने लगा। तदनु अत्यन्त कठोर तप के कारण स्कन्दक के समान सुनक्षत्र अनगार का शरीर भी कृश हो गया। उस काल और उस समय राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था। गुणशैलक चैत्य में श्रमण भगवान महावीर बिराजमान थे। परिषद् धर्म – कथा सूनने को आई और राजा भी आया। धर्म – कथा सूनकर परिषद् और राजा चले गए। तदनु मध्यरात्रि के समय धर्म – जागरण करते हुए सुनक्षत्र अनगार को स्कन्दक के समान भाव उत्पन्न हुए। वह बहुत वर्ष की दीक्षा पालन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव – रूप से उत्पन्न हुए। उसकी वहाँ पर तैंतीस सागरोपम की आयु है। वहाँ से च्युत होकर वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेंगे। इसी प्रकार शेष आठ अध्ययनों के विषय में भी जानना चाहिए। विशेषता इतनी कि अनुक्रम से दो राजगृह नगर में, दो साकेतपुर में, दो वाणिज – ग्राम में, नौवाँ हस्तिनापुर में और दशवाँ राजगृह नगर में उत्पन्न हुए। इनमें नौ की माता भद्रा थीं और नौ को बत्तीस बत्तीस दहेज मिले। नौ का निष्क्रमण थावच्चापुत्र समान हुआ। केवल वेहल्लकुमार का निष्क्रमण उसके पिता के द्वारा हुआ। छः मास का दीक्षा – पर्याय वेहल्ल अनगार ने पालन किया, नौ मास का धन्य ने। शेष आठों ने बहुत वर्ष तक दीक्षा – पर्याय पालन किया। दशों ने एक एक मास की संलेखना धारण की। सब के सब सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए और वहाँ से च्युत होकर सब महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध – गति प्राप्त करेंगे। हे जम्बू ! इस प्रकार धर्म – प्रवर्तक, चार तीर्थ स्थापन करने वाले, स्वयं बुद्ध, लोकनाथ, लोकों को प्रकाशित और प्रदीप्त करने वाले, अभय प्रदान करने वाले, शरण देने वाले, ज्ञान – चक्षु प्रदान करने वाले, मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले, धर्म देने वाले, धर्मोपदेशक, धर्मवर – चतुरन्त – चक्रवर्ती, अनभिभूत श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन वाले, राग – द्वेष को जीतने वाले, ज्ञापक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, स्वयं संसार – सागर से तैरने वाले और दूसरों को तराने वाले, कल्याणरूप, नित्य स्थिर, अन्त – रहित, विनाश – रहित, शारीरिक और मानसिक आधि – व्याधि – रहित, पुनः पुनः सांसारिक जन्म – मरण से रहित सिद्ध – गति नामक स्थान को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अनुत्त – रोपपातिकदशा के तृतीय वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam tachchassa vaggassa padhamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte, dochchassa nam bhamte! Ajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam kakamdi nayari. Jiyasattu raya. Tattha nam kakamdie nayarie bhadda namam satthavahi parivasai–addha. Tise nam bhaddae satthavahie putte sunakkhatte namam darae hottha–ahina-padipunna-pamchemdiyasarire java suruve pamchadhaiparikkhitte jaha dhanno taheva. Battisao dao java uppim pasayavademsae viharai. Tenam kalenam tenam samaenam samosaranam. Jaha dhanne taha sunakkhatte vi niggae. Jaha thavachchaputtassa taha nikkhamanam java anagare jae–iriyasamie java guttabambhayari. Tae nam se sunakkhatte jam cheva divasa samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie tam cheva divasam abhiggaham taheva java bilamiva pannagabhuenam appanenam aharam aharei, aharetta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Sami bahiya janavayaviharam viharai. Ekkarasa amgaim ahijjai, samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam se sunakkhatte anagare tenam oralenam tavokammenam jaha khamdao aiva-aiva uvasobhemane chitthai. Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nayare. Gunasilae cheie. Senie raya. Sami samosadhe. Parisa niggaya. Raya niggao. Dhammakaha. Raya padigao. Parisa padigaya. Tae nam tassa sunakkhattassa anagarassa annaya kayai puvvarattavarattakale dhammajagariyam jagaramanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha, jaha khamdayassa. Bahu vasa pariyao. Goyamapuchchha. Taheva kahei java savvatthasiddhe vimane devattae uvavanne. Tettisam sagarovamaim thii. Mahavidehe vase sijjhihii. Evam sunakkhattagamenam sesa vi attha ajjhayana bhaniyavva, navaram–anupuvvie donni rayagihe, donni sakete, donni vaniyaggame, navamo hatthinapure, dasamo rayagihe. Navanham bhaddao jananio. Navanham vi battisao dao. Navanham nikkhamanam thavachchaputtassa sarisam. Vehallassa piya karei. Chhammasa vehallae. Nava dhanne. Sesanam bahu vasa. Masam samlehana. Savvatthasiddhe. Savve mahavidehe sijjhissamti. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam aigarenam titthagarenam sahasambuddhenam loganahenam logappadivenam logapajjoyagarenam abhayadaenam saranadaenam chakkhudaenam maggadaenam dhammadaenam dhammadesaenam dhammavarachauramtachakkavattina appadihayavarananadamsanadharenam jinenam janaenam buddhenam bohaenam muttenam moyaenam tinnenam taraenam sivamayalamaruyamanamtamakkhayamavvabahamapunaravattayam siddhigainamadheyam thanam sampattenam anuttarovavaiyadasanam tachchassa vaggassa ayamatthe pannatte. Anuttarovavaiyadasanam ego suyakhamdho. Tinni vagga. Tisu cheva divasesu uddisijjamti. Tattha padhame vagge dasa uddesaga. Biie vagge terasa uddesaga. Taie vagge dasa uddesaga. Sesam jaha nayadhammakahanam taha neyavvam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He jambu ! Usa kala aura usa samaya mem kakandi nagari thi. Usamem bhadra nama ki sarthavahini thi. Vaha dhana – dhanya – sampanna thi. Usa bhadra sarthavahini ka putra sunakshatra tha. Vaha sarvanga – sampanna aura surupa tha. Pamcha dhaiyam usake lalana palana ke lie nita thim. Jisa prakara dhanya kumara ke lie battisa daheja aye usi prakara sunakshatra kumara ke lie bhi aye aura vaha sarva – shreshtha bhavanom mem sukha ka anubhava karata hua vicharana karane laga. Usi samaya shri bhagavana mahavira kakandi nagari ke bahara birajamana ho gaye. Dhanyakumara ki taraha sunakshatra kumara bhi dharma katha sunane gae. Thavachchaputra ki taraha pravrajita bhi hue. Anagara hokara vaha iryasamiti vala aura sadhu ke saba gunom se yukta purna brahmachari ho gaya. Vaha sunakshatra anagara jisa dina mundita ho pravrajita hua usi dina se usane abhigraha dharana kara liya. Yavat jisa prakara sarpa bila mem pravesha karata hai usi prakara vaha bhojana karane laga. Samyama aura tapa se apani atma ki bhavana karate hue vicharana karane laga. Isi bicha shri bhagavana mahavira svami janapada – vihara ke lie bahara gaye aura sunakshatra anagara ne ekadashanga shastra ka adhyayana kiya. Vaha samyama aura tapa se apani atma ki bhavana karate hue vicharana karane laga. Tadanu atyanta kathora tapa ke karana skandaka ke samana sunakshatra anagara ka sharira bhi krisha ho gaya. Usa kala aura usa samaya rajagriha nagara mem shrenika raja tha. Gunashailaka chaitya mem shramana bhagavana mahavira birajamana the. Parishad dharma – katha sunane ko ai aura raja bhi aya. Dharma – katha sunakara parishad aura raja chale gae. Tadanu madhyaratri ke samaya dharma – jagarana karate hue sunakshatra anagara ko skandaka ke samana bhava utpanna hue. Vaha bahuta varsha ki diksha palana kara sarvarthasiddha vimana mem deva – rupa se utpanna hue. Usaki vaham para taimtisa sagaropama ki ayu hai. Vaham se chyuta hokara vaha mahavideha kshetra mem siddhi prapta karemge. Isi prakara shesha atha adhyayanom ke vishaya mem bhi janana chahie. Visheshata itani ki anukrama se do rajagriha nagara mem, do saketapura mem, do vanija – grama mem, nauvam hastinapura mem aura dashavam rajagriha nagara mem utpanna hue. Inamem nau ki mata bhadra thim aura nau ko battisa battisa daheja mile. Nau ka nishkramana thavachchaputra samana hua. Kevala vehallakumara ka nishkramana usake pita ke dvara hua. Chhah masa ka diksha – paryaya vehalla anagara ne palana kiya, nau masa ka dhanya ne. Shesha athom ne bahuta varsha taka diksha – paryaya palana kiya. Dashom ne eka eka masa ki samlekhana dharana ki. Saba ke saba sarvarthasiddha vimana mem utpanna hue aura vaham se chyuta hokara saba mahavideha kshetra mem siddha – gati prapta karemge. He jambu ! Isa prakara dharma – pravartaka, chara tirtha sthapana karane vale, svayam buddha, lokanatha, lokom ko prakashita aura pradipta karane vale, abhaya pradana karane vale, sharana dene vale, jnyana – chakshu pradana karane vale, mukti ka marga dikhane vale, dharma dene vale, dharmopadeshaka, dharmavara – chaturanta – chakravarti, anabhibhuta shreshtha jnyana aura darshana vale, raga – dvesha ko jitane vale, jnyapaka, buddha, bodhaka, mukta, mochaka, svayam samsara – sagara se tairane vale aura dusarom ko tarane vale, kalyanarupa, nitya sthira, anta – rahita, vinasha – rahita, sharirika aura manasika adhi – vyadhi – rahita, punah punah samsarika janma – marana se rahita siddha – gati namaka sthana ko prapta hue shri shramana bhagavana mahavira svami ne anutta – ropapatikadasha ke tritiya varga ka yaha artha pratipadana kiya hai. |