Sutra Navigation: Anuttaropapatikdashang ( अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र )

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Sr No : 1005301
Scripture Name( English ): Anuttaropapatikdashang Translated Scripture Name : अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

वर्ग-१ जालि, मयालि, उवयालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Translated Chapter :

वर्ग-१ जालि, मयालि, उवयालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Section : Translated Section :
Sutra Number : 1 Category : Ang-09
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। अज्जसुहम्मस्स समोसरणं। परिसा निग्गया जाव जंबू पज्जुवासमाणे एवं वयासी– जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अंगस्स अनुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अनुत्तरोववाइयदसाणं तिन्नि वग्गा पन्नत्ता। जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अनुत्तरोववाइय-दसाणं तओ वग्गा पन्नत्ता पढमस्स णं भंते! वग्गस्स अनुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महा-वीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अनुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– १. जालि २. मयालि ३. उवयाली, ४. पुरिससेने य ५. वारिसेने य । ६. दीहदंते य ७. लट्ठदंते य, ८. वेहल्ले ९. वेहायसे १०. अभए इ य कुमारे ॥ जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अनुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे–रिद्धत्थिमियसमिद्धे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे। जाली कुमारो। जहा मेहो। अट्ठट्ठओ दाओ। तए णं से जालीकुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ। सामी समोसढे। सेणिओ निग्गओ। जहा मेहो तहा जाली वि निग्गओ। तहेव निक्खंतो जहा मेहो। एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ। गुणरयणं तवोकम्मंजहा खंदयस्स। एवं जा चेव खंदगस्स वत्तव्वया, सा चेव चिंतणा, आपुच्छणा। थेरेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं तहेव दुरुहइ, नवरं–सोलस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं सोहम्मी-साण- सणंकुमार-माहिंद- बंभ-लंतग- महासुक्क-सहस्सा-राणय-पाणय-आरणच्चुए कप्पे नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीईवइत्ता विजयविमाणे देवत्ताए उववन्ने। तए णं ते थेरा भगवंतो जालिं अणगारं कालगयं जाणित्ता परिणिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करेत्ता पत्त-चीवराइं गेण्हंति। तहेव उत्तरंति जाव इमे से आयारभंडए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी जाली नामं अनगारे पगइभद्दए। से णं जाली अनगारे कालगए कहिं गए? कहिं उववन्ने? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी तहेव जहा खंदयस्स जाव कालगए उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जाव विजए विमाणे देवत्ताए उववन्ने। जालिस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। से णं भंते! ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अनुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते।
Sutra Meaning : उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। आर्य सुधर्म्मा विराजमान हुए। नगर की परिषद्‌ गई और धर्म सूनकर वापिस चली गई। जम्बू स्वामी कहने लगे ‘‘हे भगवन्‌ ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अङ्ग, अन्तकृत्‌ – दशा का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्‌ ! नौवें अङ्ग, अनुत्तरोपपातिक दशा का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है। वह सुधर्म्मा अनगार ने जम्बू अनगार से कहा, ‘‘हे जम्बू ! इस प्रकार मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान महावीर ने नौवें अङ्ग, अनुत्तरोपपातिक – दशा के तीन वर्ग प्रतिपादन किये हैं।’’ ‘‘हे भगवन्‌ ! श्री श्रमण भगवान ने यदि नौवें अङ्ग, अनुत्तरोपपातिक – दशा के तीन वर्ग प्रतिपादन किये हैं तो प्रथम वर्ग, अनुत्तरोपपातिक – दशा के कितने अध्ययन प्रतिपादन किये हैं ?’’ ‘‘हे जम्बू ! प्रथम वर्ग, अनुत्तरोपपातिक – दशा के दस अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे – जालि, मयालि, उवयालि, पुरुषसेन, वारिसेन, दीर्घदंत, लष्टदंत, वहेल्ल, वेहायस और अभयकुमार। हे भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग के दस अध्ययन प्रतिपादन किये हैं तो हे भगवन्‌ ! अनुत्तरोपपातिक – दशा के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में ऋद्धि, धन, धान्य से युक्त राजगृह नगर था। उसके बाहर गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था। धारिणी राणी थी। धारिणी देवी ने स्वप्न में सिंह देखा। मेघकुमार के समान जालिकुमार का जन्म हुआ। (जालिकुमार का आठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ।) आठों के घर से बहुत प्रीतिदान आया। सारे सुखों का अनुभव करता हुआ वह विचरण करने लगा। गुणशीलक चैत्य में श्रमण भगवान महावीर विराजमान हुए। वहाँ श्रेणिक राजा उनकी वन्दना के लिए गया। मेघकुमार के समान जालिकुमार भी गया। मेघकुमार के समान जालिकुमार दीक्षित हो गया। उसने एकादशाङ्ग शास्त्रों का अध्ययन किया। गुणरत्न नामक तप भी किया। शेष स्कन्दक के समान जानना। उसी प्रकार धर्म – चिन्तना, श्री भगवान से अनशन का विषय पूछना आदि। फिर वह उसी तरह स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर्वत पर गया। विशेषता इतनी की वह सोलह वर्ष के श्रामण्य – पर्याय का पालन कर मृत्यु के समय के आने पर काल करके चन्द्र से ऊंचे सौधर्मेशान, आरण्याच्युत – कल्प देवलोक और ग्रैवेयक – विमान – प्रस्तटों से भी ऊंचे व्यतिक्रम करके विजय विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ। तब वे स्थविर भगवान जालि अनगार को कालगत हुआ जानकर परिनिर्वाण – प्रत्ययिक कायोत्सर्ग करके तथा जालि अनगार के वस्त्र और पात्र लेकर उसी प्रकार पर्वत से उत्तर आए और श्री श्रमण भगवान महावीर के पास आकर निवेदन किया कि हे भगवन्‌ ! ये जालि अनगार के धर्म – आचार आदि साधन के उपकरण हैं। भगवान गौतम ने प्रश्न किया ‘‘हे भगवन्‌ ! भद्र – भगवान महावीर की सेवा में उपस्थित होकर उन्होंने सविनय निवेदन किया कि हे भगवन्‌ ! ये जालि प्रकृति और विनयी वह आप का शिष्य जालि अनगार मृत्यु के अनन्तर कहा गया ? कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम ! जालि अनगार चन्द्र और बारह देवलोकों से नव ग्रैवेयक विमानों का उल्लङ्घन कर विजय – विमानमें देव – रूप से उत्पन्न हुआ है। हे भगवन्‌ ! उस जालि देव की वहाँ कितनी स्थिति है? हे गौतम ! जालि देव की वहाँ बत्तीस सागरोपम की स्थिति है।हे भगवन्‌ ! वह जालिदेव उस देवलोक से आयु, भव और स्थिति क्षय होने पर कहाँ जाएगा ?हे गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धिगति प्राप्त करेगा। हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का अर्थ प्रतिपादन किया है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nayare. Ajjasuhammassa samosaranam. Parisa niggaya java jambu pajjuvasamane evam vayasi– Jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam atthamassa amgassa amtagadadasanam ayamatthe pannatte, navamassa nam bhamte! Amgassa anuttarovavaiyadasanam samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam ke atthe pannatte? Tae nam se suhamme anagare jambu-anagaram evam vayasi–evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam navamassa amgassa anuttarovavaiyadasanam tinni vagga pannatta. Jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam navamassa amgassa anuttarovavaiya-dasanam tao vagga pannatta padhamassa nam bhamte! Vaggassa anuttarovavaiyadasanam samanenam bhagavaya maha-virenam java sampattenam kai ajjhayana pannatta? Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam anuttarovavaiyadasanam padhamassa vaggassa dasa ajjhayana pannatta, tam jaha– 1. Jali 2. Mayali 3. Uvayali, 4. Purisasene ya 5. Varisene ya. 6. Dihadamte ya 7. Latthadamte ya, 8. Vehalle 9. Vehayase 10. Abhae i ya kumare. Jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam padhamassa vaggassa dasa ajjhayana pannatta, padhamassa nam bhamte! Ajjhayanassa anuttarovavaiyadasanam samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nayare–riddhatthimiyasamiddhe. Gunasilae cheie. Senie raya. Dharini devi. Siho sumine. Jali kumaro. Jaha meho. Atthatthao dao. Tae nam se jalikumare uppim pasayavaragae phuttamanehim muimgamatthaehim java manussae kamabhoge pachchanubhavamane viharai. Sami samosadhe. Senio niggao. Jaha meho taha jali vi niggao. Taheva nikkhamto jaha meho. Ekkarasa amgaim ahijjai. Gunarayanam tavokammamjaha khamdayassa. Evam ja cheva khamdagassa vattavvaya, sa cheva chimtana, apuchchhana. Therehim saddhim viulam pavvayam taheva duruhai, navaram–solasa vasaim samannapariyagam paunitta, kalamase kalam kichcha uddham chamdima-sura-gahagana-nakkhatta-tararuvanam sohammi-sana- sanamkumara-mahimda- bambha-lamtaga- mahasukka-sahassa-ranaya-panaya-aranachchue kappe navayagevejjavimanapatthade uddham duram viivaitta vijayavimane devattae uvavanne. Tae nam te thera bhagavamto jalim anagaram kalagayam janitta parinivvanavattiyam kaussaggam karemti, karetta patta-chivaraim genhamti. Taheva uttaramti java ime se ayarabhamdae. Bhamteti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–evam khalu devanuppiyanam amtevasi jali namam anagare pagaibhaddae. Se nam jali anagare kalagae kahim gae? Kahim uvavanne? Evam khalu goyama! Mamam amtevasi taheva jaha khamdayassa java kalagae uddham chamdima-sura-gahagana-nakkhatta-tararuvanam java vijae vimane devattae uvavanne. Jalissa nam bhamte! Devassa kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Battisam sagarovamaim thii pannatta. Se nam bhamte! Tao devaloyao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Mahavidehe vase sijjhihii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam anuttarovavaiyadasanam padhamassa vaggassa padhamajjhayanassa ayamatthe pannatte.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala aura usa samaya mem rajagriha nagara tha. Arya sudharmma virajamana hue. Nagara ki parishad gai aura dharma sunakara vapisa chali gai. Jambu svami kahane lage ‘‘he bhagavan ! Yadi moksha ko prapta hue shri shramana bhagavana mahavira ne athavem anga, antakrit – dasha ka yaha artha pratipadana kiya hai to he bhagavan ! Nauvem anga, anuttaropapatika dasha ka kya artha pratipadana kiya hai. Vaha sudharmma anagara ne jambu anagara se kaha, ‘‘he jambu ! Isa prakara moksha ko prapta hue shri shramana bhagavana mahavira ne nauvem anga, anuttaropapatika – dasha ke tina varga pratipadana kiye haim.’’ ‘‘he bhagavan ! Shri shramana bhagavana ne yadi nauvem anga, anuttaropapatika – dasha ke tina varga pratipadana kiye haim to prathama varga, anuttaropapatika – dasha ke kitane adhyayana pratipadana kiye haim\?’’ ‘‘he jambu ! Prathama varga, anuttaropapatika – dasha ke dasa adhyayana pratipadana kiye haim, jaise – jali, mayali, uvayali, purushasena, varisena, dirghadamta, lashtadamta, vahella, vehayasa aura abhayakumara. He bhagavan ! Yadi shramana bhagavana mahavira ne prathama varga ke dasa adhyayana pratipadana kiye haim to he bhagavan ! Anuttaropapatika – dasha ke prathama adhyayana ka kya artha pratipadana kiya hai\? He jambu ! Usa kala aura usa samaya mem riddhi, dhana, dhanya se yukta rajagriha nagara tha. Usake bahara gunashila chaitya tha. Shrenika raja tha. Dharini rani thi. Dharini devi ne svapna mem simha dekha. Meghakumara ke samana jalikumara ka janma hua. (jalikumara ka atha kanyaom ke satha vivaha hua.) athom ke ghara se bahuta pritidana aya. Sare sukhom ka anubhava karata hua vaha vicharana karane laga. Gunashilaka chaitya mem shramana bhagavana mahavira virajamana hue. Vaham shrenika raja unaki vandana ke lie gaya. Meghakumara ke samana jalikumara bhi gaya. Meghakumara ke samana jalikumara dikshita ho gaya. Usane ekadashanga shastrom ka adhyayana kiya. Gunaratna namaka tapa bhi kiya. Shesha skandaka ke samana janana. Usi prakara dharma – chintana, shri bhagavana se anashana ka vishaya puchhana adi. Phira vaha usi taraha sthavirom ke satha vipulagiri parvata para gaya. Visheshata itani ki vaha solaha varsha ke shramanya – paryaya ka palana kara mrityu ke samaya ke ane para kala karake chandra se umche saudharmeshana, aranyachyuta – kalpa devaloka aura graiveyaka – vimana – prastatom se bhi umche vyatikrama karake vijaya vimana mem devarupa se utpanna hua. Taba ve sthavira bhagavana jali anagara ko kalagata hua janakara parinirvana – pratyayika kayotsarga karake tatha jali anagara ke vastra aura patra lekara usi prakara parvata se uttara ae aura shri shramana bhagavana mahavira ke pasa akara nivedana kiya ki he bhagavan ! Ye jali anagara ke dharma – achara adi sadhana ke upakarana haim. Bhagavana gautama ne prashna kiya ‘‘he bhagavan ! Bhadra – bhagavana mahavira ki seva mem upasthita hokara unhomne savinaya nivedana kiya ki he bhagavan ! Ye jali prakriti aura vinayi vaha apa ka shishya jali anagara mrityu ke anantara kaha gaya\? Kaham utpanna hua\? He gautama ! Jali anagara chandra aura baraha devalokom se nava graiveyaka vimanom ka ullanghana kara vijaya – vimanamem deva – rupa se utpanna hua hai. He bhagavan ! Usa jali deva ki vaham kitani sthiti hai? He gautama ! Jali deva ki vaham battisa sagaropama ki sthiti haI.He bhagavan ! Vaha jalideva usa devaloka se ayu, bhava aura sthiti kshaya hone para kaham jaega\?He gautama ! Vaha mahavideha kshetra mem siddhigati prapta karega. He jambu ! Isa prakara shramana bhagavana mahavira ne anuttaropapatika dasha ke prathama varga ke prathama adhyayana ka artha pratipadana kiya hai.