Sutra Navigation: Antkruddashang ( अंतकृर्द्दशांगसूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005239 | ||
Scripture Name( English ): | Antkruddashang | Translated Scripture Name : | अंतकृर्द्दशांगसूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१५,१६ |
Translated Chapter : |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१५,१६ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 39 | Category : | Ang-08 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरे नगरे। सिरिवणे उज्जाणे। तत्थ णं पोलासपुरे नयरे विजये नामं राया होत्था। तस्स णं विजयस्स रन्नो सिरि नामं देवी होत्था–वन्नओ। तस्स णं विजयस्स रन्नो पुत्ते सिरीए देवीए अत्तए अतिमुत्ते नामं कुमारे होत्था–सूमालपाणिपाए। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव सिरिवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणेविहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती अनगारे जहा पन्नत्तीए जाव पोलासपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स भिक्खायरियं अडइ। इमं च णं अइमुत्ते कुमारे ण्हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए बहूहिं दारएहिं य दारियाहि य डिंभएहि य डिंभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव इंदट्ठाणे तेणेव उवागए। तेहिं बहूहिं दारएहि य संपरिवुडे अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ। तए णं भगवं गोयमे पोलासपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स भिक्खायरियाए अडमाणे इंदट्ठाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए, भगवं गोयमं एवं वयासी–के णं भंते! तुब्भे? किं वा अडह? तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी–अम्हे णं देवानुप्पिया! समणा निग्गंथा इरियासमिया जाव गुत्त-बंभयारी उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स भिक्खायरियाए अडामो। तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी–एह णं भंते! तुब्भे जा णं अहं तुब्भं भिक्खं दवावेमी त्ति कट्टु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया। भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी–कहि णं भंते! तुब्भे परिवसह? तए णं से भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे इहेव पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया सिरिवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तत्थ णं अम्हे परिवसामो। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी–गच्छामि णं भंते! अहं तुब्भेहिं सद्धिं समणं भगवं महावीरं पायवंदए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवया गोयमेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ जाव पज्जुवासइ। तए णं भगवं गोयमे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमेइ, पडिक्कमेत्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपानं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्स कुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ। तए णं से अइमुत्ते कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव जं नवरं–देवानुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि तए णं अहं देवानुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से अइमुत्ते कुमारे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागए जाव इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी–बाले सि ताव तुमं पुत्ता! असंबुद्धे, किं णं तुमं जाणसि धम्मं? तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी–एवं खलु अहं अम्मयाओ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि। तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी–कहं णं तुमं पुत्ता! जं चेव जाणसि तं चेव न जाणसि? जं चेव न जाणसि तं चेव जाणसि? तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी–जाणामि अहं अम्मयाओ! जहा जाएणं अवस्स मरियव्वं, न जाणामि अहं अम्मयाओ! काहे वा कहिं वा कहं वा कियच्चिरेण वा? न जाणामि णं अम्मयाओ! केहिं कम्माययणेहिं जीव नेरइय-तिरिक्ख-जोणिय-मणुस्स-देवेसु उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयाओ! जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेसु उववज्जंति। एवं खलु अहं अम्मयाओ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि। तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए जाव पव्वइत्तए। तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामकाइं चेव अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी– तं इच्छामो ते जाया! एगदिवसमवि रायसिरिं पासेत्तए। तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापिउवयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। अभिसेओ जहा महब्बलस्स निक्खमणं जाव सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ। बहूइं वासाइं सामन्नपरियागं पाउणइ, गुणरयणं तवोकम्मं जाव विपुले सिद्धे। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में पोलासपुर नामक नगर था। वहाँ श्रीवन नामक उद्यान था। उस नगर में विजय नामक राजा था। उसकी श्रीदेवी नामकी महारानी थी, यहाँ राजा – रानी का वर्णन समझ लेना। महाराजा विजय का पुत्र, श्रीदेवी का आत्मज अतिमुक्त नामका कुमार था जो अतीव सुकुमार था। उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर पोलासपुर नगर के श्रीवन उद्यान में पधारे। उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति, व्याख्या प्रज्ञप्ति में कहे अनुसार निरन्तर बेले – बेले का तप करते हुए संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे। पारणे के दिन पहली पौरीसी में स्वाध्याय, दूसरी पौरिसी में ध्यान और तीसरी पौरिसी में शारीरिक शीघ्रता से रहित, मानसिक चपलता रहित, आकुलता और उत्सुकता रहित होकर मुख – वस्त्रिका की पडिलेखना करते हैं और फिर पात्रों और वस्त्रों की प्रतिलेखना करते हैं। फिर पात्रों की प्रमार्जना करके और पात्रों को लेकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहाँ आए, आकर भगवान को वंदना – नमस्कार कर इस प्रकार निवेदन किया – ‘‘हे भगवन् ! आज षष्ठभक्त के पारणे के दिन आपकी आज्ञा होने पर पोलासपुर नगर में यावत् – भिक्षार्थ भ्रमण करने लगे। इधर अतिमुक्त कुमार स्नान करके यावत् शरीर की विभूषा करके बहुत से लड़के – लड़कियों, बालक – बालिकाओं और कुमार – कुमारियों के साथ अपने घर से नीकले और नीकल कर जहाँ इन्द्रस्थान अर्थात् क्रीड़ास्थान था वहाँ आए। वहाँ आकर उन बालक बालिकाओं के साथ खेलने लगे। उस समय भगवान गौतम पोलासपुर नगर में सम्पन्न – असम्पन्न था मध्य कुलों में यावत् भ्रमण करते हुए उस क्रीड़ास्थल के पास से जा रहे थे। उस समय अतिमुक्त कुमार ने भगवान गौतम को पास से जाते हुए देखा। देखकर जहाँ भगवान गौतम से इस प्रकार बोले – ‘भन्ते ! आप कौन हैं ? और क्यों घूम रहे हैं ?’ तब भगवान गौतम ने अतिमुक्त कुमार को इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! हम श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, ईयासमिति आदि सहित यावत् ब्रह्मचारी हैं, छोटे बड़े कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करते हैं।’ यह सूनकर अतिमुक्त कुमार बोले – ‘भगवन् ! आप आओ ! मैं आपको भिक्षा दिलाता हूँ।’ ऐसा कहकर अतिमुक्त कुमार ने भगवान गौतम की अंगुली पकड़ी और उनको अपने घर ले आए। श्रीदेवी महारानी भगवान गौतम स्वामी को आते देख बहुत प्रसन्न हुई यावत् आसन से उठकर सम्मुख आई। भगवान गौतम को तीन बार प्रदक्षिणा करके वंदना की, नमस्कार किया फिर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से प्रतिलाभ दिया यावत् विधिपूर्वक विसर्जित किया। इसके बाद भगवान गौतम से अतिमुक्त कुमार इस प्रकार बोले – ‘हे देवानुप्रिय ! आप कहाँ रहते हैं ?’ देवानुप्रिय ! मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक भगवान महावीर धर्म की आदि करने वाले, यावत् शाश्वत स्थान – के अभिलाषी इसी पोलासपुर नगर के बाहर श्रीवन उद्यान में मर्यादानुसार स्थान ग्रहण करके संयम एवं तप से आत्मा को भावित कर विचरते हैं। हम वहीं रहते हैं।’ तब अतिमुक्त कुमार भगवान गौतम से इस प्रकार बोले – ‘हे पूज्य ! मैं भी आपके साथ श्रमण भगवान महावीर को वंदन करने चलता हूँ।’ ‘देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो !’ तब अतिमुक्त कुमार गौतम स्वामी के साथ श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आये और आकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा की। फिर वंदना करके पर्युपासना करने लगे। इधर गौतम स्वामी भगवान महावीर की सेवा में उपस्थित हुए, और गमनागमन संबंधी प्रतिक्रमण किया, तथा भिक्षा लेने में लगे हुए दोषों की आलोचना की। फिर लाया हुआ आहारपानी भगवान को दिखाया और दिखाकर संयम तथा तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तब श्रमण भगवान महावीर ने अतिमुक्त कुमार को तथा महती परिषद् को धर्म – कथा कही। अतिमुक्त कुमार श्रमण भगवान महावीर के पास धर्मकथा सूनकर और उसे धारण कर बहुत प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ। विशेष यह है कि उसने कहा – ‘‘देवानुप्रिय ! मैं माता – पिता से पूछता हूँ। तब मैं देवानुप्रिय के पास यावत् दीक्षा ग्रहण करूँगा।’’ ‘‘हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसे करो। पर धर्मकार्य में प्रमाद मत करो।’’ तत्पश्चात् अतिमुक्त कुमार अपने माता – पिता के पास पहुँचे। उनके चरणों में प्रणाम किया और कहा – ‘माता – पिता ! मैंने श्रमण भगवान महावीर के निकट धर्म श्रवण किया है। वह धर्म मुझे इष्ट लगा है, पुनः पुनः इष्ट प्रतीत हुआ है और खूब रुचा है।’ वत्स ! तुम धन्य हो, वत्स ! तुम पुण्यशाली हो, वत्स ! तुम कृतार्थ हो कि तुमने श्रमण भगवान महावीर के निकट धर्म श्रवण किया है और वह धर्म तुम्हें इष्ट, पुनः पुनः इष्ट और रुचिकर हुआ है। तब अतिमुक्त कुमार ने दूसरी और तीसरी बार भी यही कहा – ‘माता – पिता ! मैंने श्रमण भगवान महावीर के निकट धर्म सूना है और वह धर्म मुझे इष्ट, प्रतीष्ट और रुचिकर हुआ है। अत एव मैं हे माता – पिता ! आपकी अनुमति प्राप्त कर श्रमण भगवान महावीर के निकट मुण्डित होकर, गृहत्याग करके अनगार – दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ।’ इस पर माता – पिता अतिमुक्त कुमार से इस प्रकार बोले – ‘हे पुत्र ! अभी तुम बालक हो, असंबुद्ध हो। अभी तुम धर्म को क्या जानो ?’ ‘हे माता – पिता ! मैं जिसे जानता हूँ, उसे नहीं जानता हूँ और जिसको नहीं जानता हूँ उसको जानता हूँ।’ पुत्र ! तुम जिसको जानते हो उसको नहीं जानते और जिसको नहीं जानते उसको जानते हो, यह कैसे ? ‘माता – पिता ! मैं जानता हूँ कि जो जन्मा है उसको अवश्य मरना होगा, पर यह नहीं जानता कि कब, कहाँ, किस प्रकार और कितने दिन बाद मरना होगा ? फिर मैं यह भी नहीं जानता कि जीव किन कर्मों के कारण नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव – योनि में उत्पन्न होते हैं, पर इतना जानता हूँ कि जीव अपने ही कर्मों के कारण नरक यावत् देवयोनि मे उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार निश्चय ही हे माता – पिता ! मैं जिसको जानता हूँ उसी को नहीं जानता और जिसको नहीं जानता उसीको जानता हूँ। अतः मैं आपकी आज्ञा पाकर यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ।’’ अतिमुक्त कुमार को माता – पिता जब बहुत – सी युक्ति – प्रयुक्तियों से समझाने में समर्थ नहीं हुए, तो बोले – हे पुत्र ! हम एक दिन के लिए तुम्हारी राज्यलक्ष्मी की शोभा देखना चाहते हैं। तब अतिमुक्त कुमार माता – पिता के वचन का अनुवर्तन करके मौन रहे। तब महाबल के समान उसका राज्याभिषेक हुआ फिर भगवान के पास दीक्षा लेकर सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्षों तक श्रमण – चारित्र का पालन किया। गुण – रत्नसंवत्सर तप का आराधन किया, यावत् विपुलाचल पर्वत पर सिद्ध हुए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam polasapure nagare. Sirivane ujjane. Tattha nam polasapure nayare vijaye namam raya hottha. Tassa nam vijayassa ranno siri namam devi hottha–vannao. Tassa nam vijayassa ranno putte sirie devie attae atimutte namam kumare hottha–sumalapanipae. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire java sirivane ujjane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemaneviharai. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhuti anagare jaha pannattie java polasapure nayare uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyam adai. Imam cha nam aimutte kumare nhae java savvalamkaravibhusie bahuhim daraehim ya dariyahi ya dimbhaehi ya dimbhiyahi ya kumaraehi ya kumariyahi ya saddhim samparivude sao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva imdatthane teneva uvagae. Tehim bahuhim daraehi ya samparivude abhiramamane-abhiramamane viharai. Tae nam bhagavam goyame polasapure nayare uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adamane imdatthanassa adurasamamtenam viivayai. Tae nam se aimutte kumare bhagavam goyamam adurasamamtenam viivayamanam pasai, pasitta jeneva bhagavam goyame teneva uvagae, bhagavam goyamam evam vayasi–ke nam bhamte! Tubbhe? Kim va adaha? Tae nam bhagavam goyame aimuttam kumaram evam vayasi–amhe nam devanuppiya! Samana niggamtha iriyasamiya java gutta-bambhayari uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adamo. Tae nam aimutte kumare bhagavam goyamam evam vayasi–eha nam bhamte! Tubbhe ja nam aham tubbham bhikkham davavemi tti kattu bhagavam goyamam amgulie genhai, genhitta jeneva sae gihe teneva uvagae. Tae nam sa siridevi bhagavam goyamam ejjamanam pasai, pasitta hatthatuttha asanao abbhutthei, abbhutthetta jeneva bhagavam goyame teneva uvagaya. Bhagavam goyamam tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta viulenam asana-pana-khaima-saimenam padilabhei, padilabhetta padivisajjei. Tae nam se aimutte kumare bhagavam goyamam evam vayasi–kahi nam bhamte! Tubbhe parivasaha? Tae nam se bhagavam goyame aimuttam kumaram evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mama dhammayarie dhammovaesae samane bhagavam mahavire aigare java siddhigainamadhejjam thanam sampaviukame iheva polasapurassa nagarassa bahiya sirivane ujjane ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tattha nam amhe parivasamo. Tae nam se aimutte kumare bhagavam goyamam evam vayasi–gachchhami nam bhamte! Aham tubbhehim saddhim samanam bhagavam mahaviram payavamdae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam se aimutte kumare bhagavaya goyamenam saddhim jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai java pajjuvasai. Tae nam bhagavam goyame jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagae, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte gamanagamanae padikkamei, padikkametta esanamanesanam aloei, aloetta bhattapanam padidamsei, padidamsetta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam samane bhagavam mahavire aimuttassa kumarassa tise ya mahaimahaliyae parisae majjhagae vichittam dhammamaikkhai. Tae nam se aimutte kumare samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatutthe evam vayasi–saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam java jam navaram–devanuppiya! Ammapiyaro apuchchhami tae nam aham devanuppiyanam amtie java pavvayami Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam se aimutte kumare jeneva ammapiyaro teneva uvagae java ichchhami nam ammayao! Tubbhehim abbhanunnae samane samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Tae nam tam aimuttam kumaram ammapiyaro evam vayasi–bale si tava tumam putta! Asambuddhe, kim nam tumam janasi dhammam? Tae nam se aimutte kumare ammapiyaro evam vayasi–evam khalu aham ammayao! Jam cheva janami tam cheva na janami, jam cheva na janami tam cheva janami. Tae nam tam aimuttam kumaram ammapiyaro evam vayasi–kaham nam tumam putta! Jam cheva janasi tam cheva na janasi? Jam cheva na janasi tam cheva janasi? Tae nam se aimutte kumare ammapiyaro evam vayasi–janami aham ammayao! Jaha jaenam avassa mariyavvam, na janami aham ammayao! Kahe va kahim va kaham va kiyachchirena va? Na janami nam ammayao! Kehim kammayayanehim jiva neraiya-tirikkha-joniya-manussa-devesu uvavajjamti, janami nam ammayao! Jaha saehim kammayayanehim jiva neraiya-tirikkhajoniya-manussa-devesu uvavajjamti. Evam khalu aham ammayao! Jam cheva janami tam cheva na janami, jam cheva na janami tam cheva janami. Tam ichchhami nam ammayao! Tubbhehim abbhanunnae java pavvaittae. Tae nam tam aimuttam kumaram ammapiyaro jahe no samchaemti bahuhim aghavanahi ya pannavanahi ya sannavanahi ya vinnavanahi ya aghavittae va pannavittae va sannavittae va vinnavittae va tahe akamakaim cheva aimuttam kumaram evam vayasi– tam ichchhamo te jaya! Egadivasamavi rayasirim pasettae. Tae nam se aimutte kumare ammapiuvayanamanuyattamane tusinie samchitthai. Abhiseo jaha mahabbalassa nikkhamanam java samaiyamaiyaim ekkarasa amgaim ahijjai. Bahuim vasaim samannapariyagam paunai, gunarayanam tavokammam java vipule siddhe. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem polasapura namaka nagara tha. Vaham shrivana namaka udyana tha. Usa nagara mem vijaya namaka raja tha. Usaki shridevi namaki maharani thi, yaham raja – rani ka varnana samajha lena. Maharaja vijaya ka putra, shridevi ka atmaja atimukta namaka kumara tha jo ativa sukumara tha. Usa kala aura usa samaya shramana bhagavana mahavira polasapura nagara ke shrivana udyana mem padhare. Usa kala, usa samaya shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha shishya indrabhuti, vyakhya prajnyapti mem kahe anusara nirantara bele – bele ka tapa karate hue samyama aura tapa se atma ko bhavita karate hue vicharate the. Parane ke dina pahali paurisi mem svadhyaya, dusari paurisi mem dhyana aura tisari paurisi mem sharirika shighrata se rahita, manasika chapalata rahita, akulata aura utsukata rahita hokara mukha – vastrika ki padilekhana karate haim aura phira patrom aura vastrom ki pratilekhana karate haim. Phira patrom ki pramarjana karake aura patrom ko lekara jaham shramana bhagavana mahavira virajamana the vaham ae, akara bhagavana ko vamdana – namaskara kara isa prakara nivedana kiya – ‘‘he bhagavan ! Aja shashthabhakta ke parane ke dina apaki ajnya hone para polasapura nagara mem yavat – bhikshartha bhramana karane lage. Idhara atimukta kumara snana karake yavat sharira ki vibhusha karake bahuta se larake – larakiyom, balaka – balikaom aura kumara – kumariyom ke satha apane ghara se nikale aura nikala kara jaham indrasthana arthat krirasthana tha vaham ae. Vaham akara una balaka balikaom ke satha khelane lage. Usa samaya bhagavana gautama polasapura nagara mem sampanna – asampanna tha madhya kulom mem yavat bhramana karate hue usa krirasthala ke pasa se ja rahe the. Usa samaya atimukta kumara ne bhagavana gautama ko pasa se jate hue dekha. Dekhakara jaham bhagavana gautama se isa prakara bole – ‘bhante ! Apa kauna haim\? Aura kyom ghuma rahe haim\?’ taba bhagavana gautama ne atimukta kumara ko isa prakara kaha – ‘he devanupriya ! Hama shramana nirgrantha haim, iyasamiti adi sahita yavat brahmachari haim, chhote bare kulom mem bhikshartha bhramana karate haim.’ Yaha sunakara atimukta kumara bole – ‘bhagavan ! Apa ao ! Maim apako bhiksha dilata hum.’ aisa kahakara atimukta kumara ne bhagavana gautama ki amguli pakari aura unako apane ghara le ae. Shridevi maharani bhagavana gautama svami ko ate dekha bahuta prasanna hui yavat asana se uthakara sammukha ai. Bhagavana gautama ko tina bara pradakshina karake vamdana ki, namaskara kiya phira vipula ashana, pana, khadima aura svadima se pratilabha diya yavat vidhipurvaka visarjita kiya. Isake bada bhagavana gautama se atimukta kumara isa prakara bole – ‘he devanupriya ! Apa kaham rahate haim\?’ devanupriya ! Mere dharmacharya aura dharmopadeshaka bhagavana mahavira dharma ki adi karane vale, yavat shashvata sthana – ke abhilashi isi polasapura nagara ke bahara shrivana udyana mem maryadanusara sthana grahana karake samyama evam tapa se atma ko bhavita kara vicharate haim. Hama vahim rahate haim.’ Taba atimukta kumara bhagavana gautama se isa prakara bole – ‘he pujya ! Maim bhi apake satha shramana bhagavana mahavira ko vamdana karane chalata hum.’ ‘devanupriya ! Jaise tumhem sukha ho vaisa karo !’ taba atimukta kumara gautama svami ke satha shramana bhagavana mahavira svami ke pasa aye aura akara shramana bhagavana mahavira ko tina bara pradakshina ki. Phira vamdana karake paryupasana karane lage. Idhara gautama svami bhagavana mahavira ki seva mem upasthita hue, aura gamanagamana sambamdhi pratikramana kiya, tatha bhiksha lene mem lage hue doshom ki alochana ki. Phira laya hua aharapani bhagavana ko dikhaya aura dikhakara samyama tatha tapa se apani atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Taba shramana bhagavana mahavira ne atimukta kumara ko tatha mahati parishad ko dharma – katha kahi. Atimukta kumara shramana bhagavana mahavira ke pasa dharmakatha sunakara aura use dharana kara bahuta prasanna aura santushta hua. Vishesha yaha hai ki usane kaha – ‘‘devanupriya ! Maim mata – pita se puchhata hum. Taba maim devanupriya ke pasa yavat diksha grahana karumga.’’ ‘‘he devanupriya ! Jaise tumhem sukha ho vaise karo. Para dharmakarya mem pramada mata karo.’’ tatpashchat atimukta kumara apane mata – pita ke pasa pahumche. Unake charanom mem pranama kiya aura kaha – ‘mata – pita ! Maimne shramana bhagavana mahavira ke nikata dharma shravana kiya hai. Vaha dharma mujhe ishta laga hai, punah punah ishta pratita hua hai aura khuba rucha hai.’ vatsa ! Tuma dhanya ho, vatsa ! Tuma punyashali ho, vatsa ! Tuma kritartha ho ki tumane shramana bhagavana mahavira ke nikata dharma shravana kiya hai aura vaha dharma tumhem ishta, punah punah ishta aura ruchikara hua hai. Taba atimukta kumara ne dusari aura tisari bara bhi yahi kaha – ‘mata – pita ! Maimne shramana bhagavana mahavira ke nikata dharma suna hai aura vaha dharma mujhe ishta, pratishta aura ruchikara hua hai. Ata eva maim he mata – pita ! Apaki anumati prapta kara shramana bhagavana mahavira ke nikata mundita hokara, grihatyaga karake anagara – diksha grahana karana chahata hum.’ isa para mata – pita atimukta kumara se isa prakara bole – ‘he putra ! Abhi tuma balaka ho, asambuddha ho. Abhi tuma dharma ko kya jano\?’ ‘he mata – pita ! Maim jise janata hum, use nahim janata hum aura jisako nahim janata hum usako janata hum.’ putra ! Tuma jisako janate ho usako nahim janate aura jisako nahim janate usako janate ho, yaha kaise\? ‘mata – pita ! Maim janata hum ki jo janma hai usako avashya marana hoga, para yaha nahim janata ki kaba, kaham, kisa prakara aura kitane dina bada marana hoga\? Phira maim yaha bhi nahim janata ki jiva kina karmom ke karana naraka, tiryamcha, manushya aura deva – yoni mem utpanna hote haim, para itana janata hum ki jiva apane hi karmom ke karana naraka yavat devayoni me utpanna hote haim. Isa prakara nishchaya hi he mata – pita ! Maim jisako janata hum usi ko nahim janata aura jisako nahim janata usiko janata hum. Atah maim apaki ajnya pakara yavat pravrajya amgikara karana chahata hum.’’ Atimukta kumara ko mata – pita jaba bahuta – si yukti – prayuktiyom se samajhane mem samartha nahim hue, to bole – he putra ! Hama eka dina ke lie tumhari rajyalakshmi ki shobha dekhana chahate haim. Taba atimukta kumara mata – pita ke vachana ka anuvartana karake mauna rahe. Taba mahabala ke samana usaka rajyabhisheka hua phira bhagavana ke pasa diksha lekara samayika se lekara gyaraha amgom ka adhyayana kiya. Bahuta varshom taka shramana – charitra ka palana kiya. Guna – ratnasamvatsara tapa ka aradhana kiya, yavat vipulachala parvata para siddha hue. |